Short Summary
Glimpses of the Past is an insight into India’s history before Independence. It gives readers an understanding into what led to India’s freedom struggle.
When the British first set foot on the Indian soil, they had no plans of invading their country. All they wanted to do was to establish trade for their livelihood. However, they soon noticed loopholes in the administration by Indians and used this to their advantage. They took control over the country and enforced various laws that affected the livelihood of Indians in their own motherland.
But, things took a different turn when India witnessed the rise of various people like Raja Ram Mohan Roy. Inspired by them, Indians started their revolt against the British and marked the herald of the Great Revolt of 1857. All this and more noteworthy episodes of India’s struggle for freedom are highlighted in Glimpses of the Past.
The Glimpses of the Past Summary in English
The Glimpse of the Past is in the form of conversation dealing with India’s struggle for Independence. It is written by S. D. Sawant. The chapter describes the events and the circumstances that took place in India during the year 1757 to 1857. It starts with the time when the East India Company was very strong in India.
The Indian princes and states were busy fighting with each other. They often sought British help and thus British took advantage of this to gain power and establish their rule in India. The social conditions were also not in good shape. Social evils such as child marriages, untouchability, sati pratha, etc. were prevalent in society. Also, the farmers had to pay heavy taxes.
Raja Ram Mohan Roy worked a lot towards reforming society. British also passed many resolutions to ruin India and Indian industries. Lord Macaulay also brought a bill according to which the medium of education could only be English.
The main aim of the British was to prepare clerks who can assist them in the administration. By 1856, India had fully become a British colony. However, after the revolt of 1857, the British rule started to shake. The Indians revolted and struggled for freedom until 1947, i.e. till they achieved it.
The chapter starts with the events that were taking place in the year 1757. At this time, the British were in a strong position in India. They had superior arms and ammunitions and also financial resources. On the other hand, the Indian states and the princes were short-sighted and were busy fighting with each other. They lacked unity. They also often sought British help and East India Company took full advantage of this.
The British followed the policy of ‘Divide and Rule’ and also subdued the Princes. Some people favoured the British while some did not. However, Tipu Sultan of Mysore fought with the British. But unfortunately, he died in the year 1799 fighting the Fourth Anglo-Mysore War.
The chapter further describes the social fabric from 1765 to 1836. Evil social practices such as untouchability, child marriages, Sati pratha, etc. were preached by the religious leaders. The British disdained the Indians and, in the process, Indians lost their self-respect also. The British imposed heavy taxes on the farmers. They also cut the thumbs of the expert artisans. However, the imports from England were tax-free. Thus, the main motive of the British was the maximisation of profit and wealth at any cost.
From 1772 to 1833, Raja Ram Mohan Roy started his efforts to reform Indian society. He established Brahmo Samaj for this purpose. He propagated the idea that the main teachings and principals of all religions are the same. Also, he started newspapers in India. He was against evil practices such as Sati pratha, polygamy, child marriages, and the caste system. He played a major role in the abolishment of Sati pratha.
In 1818, the British passed The Third Regulation Act. According to it, an Indian could be sent to jail even without any trial in the court. This was a phase of oppression of the Indians. By 1829, the value of British exports was worth seven crore rupees. While the Indian industries were ruining, the British were prospering.
It seems this was not enough so the British now aimed at preparing clerks for running the administration. Thus, in 1835, Lord Macaulay recommended that the medium of education should be English. This education policy also generated some intellectuals who understood the evils of British Raj and educated the fellow Indians.
By 1856, India had become a fully controlled British Colony. The suppression was at its peak and thus it led to revolts. In 1855, the Santhals rebelled and killed the British as well as their servants. In 1857, the first Sepoy Mutiny started with the execution of Mangal Pandey.
The sepoys marched towards Delhi shouting slogans in favour of Bahadur Shah Zafar. The landlords also joined this movement. People circulated chapattis with the message that their native ruler needs their help. Similarly, a lotus flower was distributed among the Indian soldiers.
Many rulers like Hazrat Mahal of Lucknow, Maulvi Ahmadullah of Faizabad, Tatya Tope, and Peshwa Nana Saheb of the Maratha empire and Kunwar Singh of Bihar also joined the revolt. This was the beginning of the Indian freedom struggle.
The Glimpses of the Past Summary in Hindi
यह एक चित्रकथा है। यह स्वतन्त्रता संग्राम की गाथा को चित्रों द्वारा दर्शाता है। इसमें यह वर्णन किया गया है कि 1857 के पहले स्वतन्त्रता संग्राम किन कारणों से शुरु हुआ था।
दिल्ली के एक समारोह में लता मंगेस्कर ने एक देशभक्ति का गीत, ऐ मेरे वतन के लोगों गाया था। उसने भारत के लोगों को आंसू भरी आंखों से भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्राणों की आहुतियों को याद करने का आग्रह किया।
अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में व्यापार के सिलसिले से आई। पर अपने उत्तम एवं कूटनीतिक कौशल द्वारा उसने 18वीं शताब्दी में अपना प्रभुत्व फैला लिया। भारतीय राजा आपस में विभाजित तथा संकीर्ण दृष्टिकोण वाले थे। लोगों को राज्यों के बीच निरन्तर होने वाली लड़ाइयों के कारण शांति नहीं मिल पा रही थी। उन्होंने अंग्रेज सौदागरों की मदद माँगी ताकि एक दूसरे को नीचा दिखा सकें। आपसी प्रतिद्वन्द्विता ने कम्पनी का रास्ता साफ कर दिया। एक-एक करके उसने भारतीय नवाबों पर अपना अधिकार जमा लिया।
दूरदृष्टि वाला एक वीर मैसूर का शासक टीपू सुल्तान अंग्रेजों से युद्ध करते हुए शहीद हो गया। भारतीयों ने अब अंग्रेज कम्पनी की विजय यात्रा को स्वीकार कर लिया। कुछेक ने तो परमात्मा तथा कम्पनी दोनों का आभार व्यक्त किया कि उन्होंने ठगों की लूटपाट रोककर देश में शांति स्थापित की। वे कहने लगे की भारत कि किस्मत अंग्रेजों के साथ जुड़ी है। पर कुछ अन्य व्यक्ति दुखी हो गये। उन्होंने शिकायत की कि गोरे लोग या तो राजाओं की हत्या कर रहे हैं अथवा उनसे उनकी राजसत्ता छीन रहे हैं। भारतीय गोरों के दास बनते गये।
कुछ धार्मिक नेताओं ने सामाजिक बुराइयों जैसे छुआछूत तथा बाल विवाह का समर्थन किया। उन्होंने समुद्री यात्रा करके देश से बाहर जाने को मना कर दिया। कुछेक बोले कि सभी कष्टों की जड़ महिलायें हैं। सच यह था कि भारतीय आत्मसम्मान खो चुके थे। अंग्रेज उन पर अविश्वास करते थे तथा उनसे घृणा करते थे।
अंग्रेज मूलरुप से सौदागर थे। उनका लक्ष्य था तेजी से धन कमाना। उन्होंने किसानों पर भारी कर लगा दिए तथा कर न देने पर उन्हें जेल भेज देते थे। उन्होंने भारतीय कुटीर उद्योगों को खत्म कर दिया ताकि वे इंग्लैण्ड में निर्मित सामान भारत को निर्यात करते रहें। उन्होंने इंग्लैण्ड से आयात किये सभी प्रकार की चीजों को कर मुक्त कर दिया। इस प्रकार उन्होंने भारतीय कारीगरों एवं व्यापार को नष्ट कर दिया।
राजा राम मोहन राय बंगाल के एक विद्वान एवं समाज सुधारक थे। उन्होंने समझ लिया कि देश में क्या कमी है। उन्होंने लोगें से कहा कि अपनी पुरानी संस्कृति पर गर्व करो तथा समाज को मूर्खतापूर्ण अंधविश्वासों से छुटकारा दिलाओ। उन्होंने बताया कि सभी धर्म एक ही शिक्षा देते हैं। उन्होने विज्ञान एवं आधुनिक ज्ञान के महत्त्व को पहचाना। उन्होंने अखबार प्रकाशन शुरु किया पर अंग्रेजों ने 1823 में उन्हें बंद कर दिया। वह समुद्र पार करके इंग्लैण्ड गये, यह पता लगाने कि किस कारण अंग्रेज इनसे बलशाली हो गये। उन्होनें फिर मध्यमार्ग अपनाया। उन्होने अंग्रेजों को शासक के रुप में स्वीकार कर लिया। पर उन्हें यह बताया कि उन्हें याद रखना चाहिए कि एक शासक का अपनी प्रजा के प्रति क्या उत्तरदायित्व होता है।
1765 से 1835 तक अंग्रेज भारतीयों पर अत्याचार करते रहे। 1818 में उन्होंने एक प्रस्ताव पारित किया जिसके अनुसार वे किसी भी भारतीय को बिना मुकदमे के जेल भेज सकते थे। भारत में अंग्रेज अफसरों को ज्यादा वेतन मिलता था तथा वे अपने निजी व्यवसाय द्वारा भी धन कमाते थे। अंग्रेज समृद्ध होते गये पर भारतीय उद्योग बन्द होने लगे। गवर्नर जनरल बेन्टिक ने इंग्लैण्ड लिखकर भेजा कि भारतीय कपड़ा उद्योग में लगे कारीगर भूख से मर रहे हैं।
भारतीयों को फारसी तथा संस्कृत पढायी जाती थी। 1835 में मैकाले नामक व्यक्ति ने अंग्रेजी शिक्षा की सिफारिश की। अंग्रेजी शिक्षा ऐसे क्लर्क बनाने लगी जिन्हें छोटी-छोटी नौकरियाँ मिल जाती थीं। पर अंग्रेजी शिक्षा ने बुद्धिजीवियों को भी पैदा किया जिन्होंने कहा कि भारतीयों को अंग्रेजी पढ़ना चाहिये, जिससे वे अपने आर्थिक स्थिति तथा शिकायतों को ब्रिटिश संसद में भेज सकें।
1856 तक अंग्रेजों ने पूरे भारत को अपने अधीन कर लिया था। उन्हें भारतीयों की कुशलता की तो चिन्ता थी ही नहीं। भारतीय राजा और शासक उनके हाथ की कठपुतली बन गये थे। लोगों से उनके काम, धाम और उनकी भूमि-सब कुछ छिन गई थी। उन्हें लगा कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ना जरुरी है। संथालियों ने 1855 में विद्रोह कर दिया और बहुत से यूरोपियन लोगों की हत्या कर दी। अंग्रेजी सेना में जो भारतीय सैनिक थे, उनमें भी असंतोष पनप रहा था क्योंकि उनको वेतन कम मिलता था। उन्हें देश के बाहर भेज दिया जाता था। सिपाही मंगल पाण्डे ने गोरे अफसर पर हमला कर दिया जिससे उसे फाँसी पर लटका दिया गया।
हजारों अन्य सिपाहियों को भी जंजीर से बाँध दिया गया। कुछ ब्राह्मण सैनिकों को पता चल गया कि उनकी गोलियों में गायों तथा सुअरों की चर्बी लगी है। विद्रोह के लिये तैयार रहने हेतु हर गांव में संदेश भेज दिया गया। मेरठ में हिंसात्मक कार्यवाई शुरु हो गई। सिपाही दिल्ली की ओर कूच कर गये तथा सम्राट बहादुर शाह को अपना नेता मान लिया।
विद्रोह फैलता गया। अनेक जमींदार भी इसमें शामिल हो गये। लखनऊ की बेगम हजरत महल, अजीमुल्ला खान, पेशवा नाना साहव, बिहार के कुँअर सिंह-सब ने पूरे उत्तरी भारत में अंग्रेजों से डटकर लड़ाई की। बरेली, कानपुर तथा इलाहाबाद में भी लोग भड़क गये। इस प्रकार से भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरु हो गया।
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