Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 9 Summary
भारत में अगस्त, 1942 में जो कुछ हुआ, वह आकस्मिक नहीं था। वह पहले से जो कुछ होता आ रहा था, उसकी परिणति थी।
व्यापक उथल-पुथल और उसका दमन- जनता की ओर से अकस्मात् संगठित प्रदर्शन और विस्फोट जिसका अंत हिंसात्मक संघर्ष और तोड़-फोड़ होता था। इससे जनता की तीव्रता का पता चलता था। 1942 में पूरी युवा पीढ़ी ने विशेष रूप से विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों ने हिंसक और शांतिपूर्ण दोनों की तरह की कार्यवाहियों में महत्त्वपूर्ण काम किया। 1942 के दंगों में पुलिस और सेना की गोलीबारी से मारे गए और घायलों की संख्या सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1028 लोग मरे और 3200 लोग घायल हुए। जनता के अनुसार मृतकों की संख्या 25000 थी। संभवतः यह संख्या कुछ ज्यादा रही हो, पर 10000 की संख्या ठीक होगी।
भारत की बीमारी : अकाल- भारत तन और मन दोनों से बीमार था। उन दिनों अकाल पड़ा। इसका व्यापक असर बंगाल और दक्षिणी भारत पर पड़ा। पिछले 170 सालों में यह सबसे बड़ा और विनाशकारी था। इसकी तुलना 1766 ई. से 1770 ई. के दौरान बिहार और बंगाल के उन भयंकर अकालों से की जा सकती है जो ब्रिटिश शासन की स्थापना के आरंभिक परिणाम थे। इसके बाद महामारी फैली, विशेषकर हैजा और मलेरिया।
हजारों की संख्या में लोग काल का ग्रास बन गए। कोलकाता की सड़कों पर लाशें बिछी थीं। ऊपरी तबके के लोगों में विलासिता जारी थी। उनका जीवन उल्लास से भरा था। सन् 1943 के उत्तरार्द्ध में अकाल के उन भयंकर दिनों में जैसा अंतर्विरोध कोलकाता में दिखाई दिया, वैसा पहले कभी नहीं था। भारत गरीबी और भुखमरी के कगार पर था। भारत में ब्रिटिश शासन पर बंगाल की भयंकर बरबादी ने और उड़ीसा मालाबार और दूसरे स्थानों पर पड़ने वाले अकाल ने आखिरी फैसला दे दिया कि जब अंग्रेज जाएँगे तो क्या छोड़ेंगे। वे अपने पीछे कचरा और कीचड़ ही छोड़ेंगे।
भारत का सजीव सामर्थ्य- अकाल और युद्ध के बावजूद प्रकृति अपना कायाकल्प करती है और कल के लड़ाई के मैदान को आज फूल और हरी घास से ढक देती है। मनुष्य के पास स्मृति का विलक्षण गुण होता है। आज जो बीते हुए कल की संतान हैं, खुद अपनी जगह अपनी संतान आने वाले कल को दे जाते हैं। कमजोर आत्मा वाले लोग समर्पण कर देते हैं, लेकिन बाकी लोग मशाल को आगे ले जाते हैं और आने वाले मार्गदर्शकों को सौंप देते हैं।
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