The NCERT Solutions For Class 9th Hindi are given below. Students Should also check NCERT Solutions Class 9 for other subjects to.
NCERT Book Solutions For Class 9 Hindi Kshitz Chapter 3
पृष्ठ संख्या: 38
प्रश्न अभ्यास
1. लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर
लेखक के अनुसार उपभोग का भोग करना ही सुख है। अर्थात् जीवन को सुखी बनाने वाले उत्पाद का ज़रूरत के अनुसार भोग करना ही जीवन का सुख है।
2. आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ?
उत्तर
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर रही है। इसके कारण हमारी सामाजिक नींव खतरे में है। मनुष्य की इच्छाएँ बढ़ती जा रही है, मनुष्य आत्मकेंद्रित होता जा रहा है। सामाजिक दृष्टिकोण से यह एक बड़ा खतरा है।
3. गाँधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है ?
उत्तर
गाँधी जी सामाजिक मर्यादाओं और नैतिकता के पक्षधर थें। गाँधी जी चाहते थे कि लोग सदाचारी, संयमी और नैतिक बनें, ताकि लोगों में परस्पर प्रेम, भाईचारा और अन्य सामाजिक सरोकार बढ़े। लेकिन उपभोक्तावादी संस्कृति इन सबके विपरीत चलती है। वह भोग को बढ़ावा देती है जिसके कारण नैतिकता तथा मर्यादा का ह्रास होता है। गाँधी जी चाहते थें कि हम भारतीय अपनी बुनियाद और अपनी संस्कृति पर कायम रहें। उपभोक्ता संस्कृति से हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास हो रहा है। उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित होकर मनुष्य स्वार्थ-केन्द्रित होता जा रहा है। भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह बदलाव हमें सामाजिक पतन की ओर अग्रसर कर रहा है।
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4. आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
उत्तर
(क) उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव अत्यंत कठिन तथा सूक्ष्म हैं। इसके प्रभाव में आकर हमारा चरित्र बदलता जा रहा है। हम उत्पादों का उपभोग करते-करते न केवल उनके गुलाम होते जा रहे हैं बल्कि अपने जीवन का लक्ष्य को भी उपभोग करना मान बैठे हैं। सही बोला जाय तो – हम उत्पादों का उपभोग नहीं कर रहे हैं, बल्कि उत्पाद हमारे जीवन का भोग कर रहे हैं।
(ख) सामाजिक प्रतिष्ठा विभिन्न प्रकार की होती है जिनके कई रूप तो बिलकुल विचित्र हैं। हास्यास्पद का अर्थ है- हँसने योग्य। अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए ऐसे – ऐसे कार्य और व्यवस्था करते हैं कि अनायास हँसी फूट पड़ती है। जैसे अमरीका में अपने अंतिम संस्कार और अंतिम विश्राम-स्थल के लिए अच्छा प्रबंध करना ऐसी झूठी प्रतिष्ठा है जिसे सुनकर हँसी आती है।
रचना और अभिव्यक्ति
5. कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देख कर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं। क्यों ?
उत्तर
टी .वी .पर दिखाए जानेवाले विज्ञापन बहुत सम्मोहक एवं प्रभावशाली होते हैं। वे हमारी आँखों और कानों को विभिन्न दृश्यों और ध्वनियों के सहारे प्रभावित करते हैं। वे हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्रामक आकर्षण पैदा करते हैं। ‘खाए जाओ ‘,’क्या करें ,कंट्रोल ही नहीं होता’,’दिमाग की बत्ती जला देती है’ जैसे आकर्षण हमारी लार टपका देते हैं। इसके प्रभाव में आनेवाला हर व्यक्ति इनके वश में हो जाता है। और इस तरह अनुपयोगी वस्तुएँ भी हमें ललायित कर देती हैं।
6. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन ? तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर
वस्तुओं को खरीदने का एक ही आधार होना चाहिए – वस्तु की गुणवत्ता। विज्ञापन हमें गुणवत्ता वाली वस्तुओं का परिचय करा सकते हैं। अधिकतर विज्ञापन हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्रामक आकर्षण पैदा करते हैं। वे आकर्षक दृश्य दिखाकर गुणहीन वस्तुओं का प्रचार करते हैं।
7. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही “दिखावे की संस्कृति” पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर
यह बात बिल्कुल सच है की आज दिखावे की संस्कृति पनप रही है। आज लोग अपने को आधुनिक से अत्याधुनिक और कुछ हटकर दिखाने के चक्कर में क़ीमती से क़ीमती सौंदर्य-प्रसाधन, म्युज़िक-सिस्टम, मोबाईल फोन, घड़ी और कपड़े खरीदते हैं। समाज में आजकल इन चीज़ों से लोगों की हैसियत आँकी जाती है। यहाँ तक कि लोग मरने के बाद अपनी कब्र के लिए लाखों रूपए खर्च करने लगे हैं ताकि वे दुनिया में अपनी हैसियत के लिए पहचाने जा सकें। “दिखावे की संस्कृति” के बहुत से दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं। इससे हमारा चरित्र स्वत: बदलता जा रहा है। हमारी अपनी सांस्कृतिक पहचान, परम्पराएँ, आस्थाएँ घटती जा रही है। हमारे सामाजिक सम्बन्ध संकुचित होने लगा है। मन में अशांति एवं आक्रोश बढ़ रहे हैं। नैतिक मर्यादाएँ घट रही हैं। व्यक्तिवाद, स्वार्थ, भोगवाद आदि कुप्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं।
8. आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति -रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए ।
उत्तर
उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारे रीति-रिवाज़ और त्योहार भी बहुत हद तक प्रभावित हुए हैं। आज त्योहार, रीति-रिवाज़ का दायरा सीमित होता जा रहा। त्योहारों के नाम पर नए-नए विज्ञापन भी बनाए जा रहे हैं; जैसे-त्योहारों के लिए खास घड़ी का विज्ञापन दिखाया जा रहा है, मिठाई की जगह चॉकलेट ने ले ली है। आज रीति-रिवाज़ का मतलब एक दूसरे से अच्छा लगना हो गया है। इस प्रतिस्पर्धा में रीति-रिवाज़ों का सही अर्थ कहीं लुप्त हो गया है।
भाषा अध्यन
9. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में बदल रहा है क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है – धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया कि विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
उत्तर
1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है । (‘धीरे-धीरे’ रीतिवाचक क्रिया-विशेषण) (सब-कुछ ‘परिणामवाचक क्रिया-विशेषण’)
2. आपको लुभाने कि जी-तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है । (‘निरंतर’ रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
3. सामंती संस्कृति के तत्व भारत में पहले भी रहे हैं । (‘पहले’ कालवाचक क्रिया-विशेषण)
4. अमेरिका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। (आज, कल कालवाचक क्रिया-विशेषण)
5. हमारे सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)
Important Link
Chapter Summary –पाठ 3 – उपभोक्तावाद की संस्कृति
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