दोनों राजकुमार ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। सुग्रीव किष्किंधा वनराज के छोटे पुत्र थे। पिता की मृत्यु के बाद बड़े भाई बाली राजा बने। राजकाज की कोई बात पर लड़ाई होने से बाली सुग्रीव की हत्या पर आ गए। सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर निवास कर रहे थे ,एक दिन उन्हें दो युवक आते दिखे, लगा ये बाली के गुप्तचर हैं। उनके मुख्य साथी हनुमान इससे असहमत होकर, भेष बदल कर वहाँ पहुंचे और उसने उनका परिचय पूछा। लक्ष्मण ने आने का कारण बताया। हनुमान समझ गए कि वे एक दूसरे के मित्र हो सकते हैं इसलिए उन्हें अपने कंधे पर बैठा कर शिखर पर ले गए। अग्नि को साक्षी मानकर राम-लक्ष्मण सुग्रीव के मित्र बने। राम ने उन्हें सीता के हरण के बारे में बताया। उन्होंने वानरों द्वारा लाई गहनों की पोटली राम को दी। वे सीता के गहने पहचान गए। सुग्रीव ने अपनी व्यथा सुनाई। राम ने उन्हें चिंता न करने को कहा। सुग्रीव को राम के आश्वासन पर भरोसा नहीं था। उन्होंने बताया कि बाली एक बार में सात शाल के पेड़ गिरा देता है।
राम चुप रहे और एक ही बाण से सात विशाल शाल के वृक्ष काट दिए। राम ने सुग्रीव को बाली को युद्ध के लिए ललकारने को कहा और बताया की उसकी मृत्यु उनके बाण से ही होगी। राम पेड़ के पीछे खड़े रहकर भी बाण नहीं चला पाए। सुग्रीव वहाँ से भागकर आये और राम पर क्रोधित होकर राम से सहायता न करने का कारण पुछा। राम ने समझाया की दोनों भाई एक जैसे लग रहे थे इसलिए वो बाण नहीं चला पाए। उन्होंने सुग्रीव को दोबारा युद्ध पर भेजा और इस बार बाली को बाण से मार दिया। सुग्रीव का राज्याभिषेक किया गया। सुग्रीव की सेना को चार भाग में बाँटा। दक्षिण दिशा में जाने वाले दल के नेता अंगद थे। हनुमान को राम ने अपनी अंगूठी देकर कहा कि सीता के मिलने पर उन्हें वो ये दिखा दे। दक्षिण जा कर पता चला आगे भूमि नहीं जल है। तभी जटायु के भाई संपाति ने बताया की सीता लंका में हैं और वहाँ जाने का एकमात्र रास्ता यही है। जामवंत ने पवनपुत्र हनुमान को कहा कि ये कार्य वही कर सकते हैं।
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