भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है का सारांश
प्रस्तुत पाठ भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ? लेखक हरिश्चंद्र भारतेंदु जी के द्वारा लिखित है। यह पाठ भारतेंदु जी के प्रसिद्ध भाषण से लिया गया है इसमें लेखक ने भारतीयों एवं ब्रिटिशों के बीच तुलना किया है | एक ओर ब्रिटिश शासन के मनमानी पर व्यंग्य है तो वहीं दूसरी ओर उनके परिश्रमी स्वभाव के प्रति आदर भी है। तो वहीं भारतीयों के आलसी पन का भी उल्लेख किया लेखक ने भारतीयों को रेल गाड़ी के समान भी कहा है जो बिना इंजन का कुछ नहीं कर सकते हैं। भारतेंदु ने आलसी पन, समय के अपव्यय आदि कमियों को दूर करने की बात कही है तथा भारतीय समाज के रूढ़िवादी और गलत जीवन शैली पर भी तीखा प्रहार किया है। लेखक ने भारतीयों को देश का हितैषी बन कर मेहनत और परिश्रम करके देश की उन्नति में आगे बढ़कर कार्य करने को भी कहा है जिससे हमारा देश आगे बढ़ते रहे। जनसंख्या नियंत्रण, श्रम की महत्ता, आत्म बल और त्याग भावना को देश की उन्नति में अनिवार्य माना है |
लेखक ने मेहनत करके आगे बढ़ने को कहा है क्योंकि जो मेहनत नहीं करेगा वह इस जिंदगी की दौड़ में पीछे रह
जाएगा | उसके बाद लाख कोशिश कर ले आगे नहीं बढ़ सकेगा। देश की गरीबी को लेकर भी उन्होंने बताने का प्रयास किया है | देश में गरीबी बुरी तरीके से छाई हुई है। गरीबी से सब ह्रास हैं | जो लीगों को आगे बढ़ने का मौका ही नहीं देती है। ना ही गरीब लोग अपनी इज्ज़त बचा सकते हैं। इनको तो बस अपनी रोजी-रोटी की ही चिंता होती है तो ये कब उन्नति के बारे में सोच पाएंगे। पहले के जो राजा-महाराजा थे प्रजा की समस्याओं को हल करने के स्थान पर पूजा-पाठ, खाने-पीने तथा बेकार की बातें करने और छट्टियाँ मानने में समय नष्ट कर देते थे। अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर भागते थे तथा प्रजा को सुखी नहीं रखते थे। बस अपनी ही धुन में रहते थे और ब्रिटिश मेहनत करके अपने विवेक का इस्तेमाल करके उन्नती की शिखर चढ़ रहे थे। कई लोग धर्म के आड़ में, देश की चाल की आड़ में देश को खोखला कर रहे हैं। धर्म शास्त्रों में कई बातें लिखी गई है, जो समाज के विरुद्ध मानी जाती है | लेकिन धर्म शास्त्रों के खिलाफ़ है, जैसे जहाज का सफर, बाल-विवाह, विधवा विवाह, कुलीन प्रथा, बहुविवाह आदि इनका संशोधन होना चाहिए। समय और देश के अनुसार इनमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। लेखक ने हिंदू, मुसलमानों के झगड़े पर भी व्यंग्य किया है | उन्होंने कहा है कि एक ही देश में रहकर एक दूसरे के बुराई मत करो। जो एक दूसरे को दुख पहुँचाए मित्र बनकर एक दूसरे के भई बनकर देश की उन्नति में साथ दो। हिन्दुओं को भी जंतर मंतर से दूर रहने को कहा है तथा मुसलमानों को पुरानी बादशाहत छोड़कर बच्चों को अच्छी तालीम देने को कहा है एवं लड़कियों को रोजगार भी सीखने का उल्लेख किया है। लोगों को जाती-पति, रंग-भेद, छोटे-बड़े, ऊँच-नीच की भवना को छोड़कर प्रेम से रहने की सिख दी है। तथा एक दूसरे की सहायता करने की तालीम भी दी है। लेखक ने आगे विलायती वस्तु को छोड़कर अपने परिश्रम से बने चीजों को उपयोग करने को कहा है क्योंकि हम विदेशियों के बनाए हुए चीज़ों को उपयोग में लाते हैं | लेखक कहते हैं, यह तो वही मसला हुई कि एक बेफ़िकरे मँगनी का कपड़ा पहिनकर किसी महफ़िल में गए। वे कहते हैं कि बहुत अफसोस की बात है कि तुम अपने निजी काम की वस्तु भी नहीं बना सकते लेकिन अब तो जाग जाओ अपने देश की सब तरह से उन्नति करो । जो तुम्हें पसन्द है वही करो परदेशी वस्तु और परदेसी भाषा का भरोसा मत रखो अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो। परिश्रम से आगे बढ़ो देश की उन्नति में अपना योगदान दो ताकि देश सबसे आगे हो आलस छोड़कर मेहनत करो लेखक देश के उन्नती के लिए सबको जगाने का प्रयास किया है…||
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भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय
प्रस्तुत पाठ के लेखक ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र’ जी हैं | इनका जन्म सन् 1850 में काशी में हुआ था। इनके पिता गोपालचंद्र जी थे | वे भी एक प्रसिद्ध कवि थे। जब हरिश्चन्द्र जी मात्र 5 वर्ष के थे तब इनकी माता चल बसीं और दस वर्ष की आयु में पिता जी भी चल बसे। भारतेन्दु जी विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। इन्होंने अपने परिस्थितियों से प्रेरणा ली। इनके सारे मित्र बड़े-बड़े लेखक, कवि एवं विचारक थे, जिनकी बातों से हरिश्चंद्र जी प्रभावित थे। बंगाल के प्रख्यात व्यक्ति ईश्वरचंद्र विद्यासागर से इनका गहरा सम्बंध था। हरिश्चंद्र जी देशप्रेम और क्रांतिचेतना वाले व्यक्ति थे। वे पुनर्जागरण के चेतना के अप्रतिम नायक रहे है तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। इन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया जैसे – कविवचनसुधा, हरिश्चंद्र चंद्रिका आदि का प्रकाशन किया। उनके द्वारा स्त्री-शिक्षा के लिए बाला बोधनी पत्रिका प्रकाशित की गई। हिंदी नाटक और निबंध की परंपरा भी इन्होंने ही प्रारंभ की थी। आधुनिक हिंदी गद्य के इतिहास में इनका उलेखनीय योगदान है। हरिश्चंद्र जी को हिन्दी, अँग्रेजी, संस्कृत, फारसी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं का उच्च ज्ञान था |
उन्होंने अनेक विधाओं में साहित्य सृजन किया और हिन्दी साहित्य को सर्वाधिक रचनाएँ समर्पित कर समृद्ध बनाया । काव्य-सृजन में भारतेन्दु जी ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया तथा गद्य-लेखन में उन्होंने खड़ी बोली भाषा को अपनाया। उन्होंने खड़ी बोली को व्यवस्थित, परिष्कृत और परिमार्जित रूप प्रदान किया। उन्होंने आवश्यकतानुसार अरबी, फारसी, उर्दू, अँग्रेजी, आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया। भाषा में प्रवाह, प्रभाव तथा ओज लाने हेतु उन्होंने लोकोक्तियॉं एवं मुहावरों का भलीभॉंति प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है। हरिश्चंद्र जी के गद्य में विविध शैलियों के दर्शन होते है, जिसमें प्रमुख हैं वर्णनात्मक विचारात्मक, भावात्मक, विवरणात्मक व्यंग्यात्मक आदि। भारतेन्दु जी के विषय थे- भाक्ति, श्रृंगार, समाज-सुधार, प्रगाढ़ देश-प्रेम, गहन राष्ट्रीय चेतना, नाटक और रंगमंच का परिष्कार आदि। उन्होंने जीवनी और यात्रा-वृत्तान्त भी लिखे है। 6 जनवरी 1885 ई. में 35 वर्ष की अल्पायु में ही इनकी मृत्यु हो गयी।
इनके प्रमुख कृतियाँ हैं — भारत-दुर्दशा ,नील देवी, अँधेर नगरी , सती प्रताप , प्रेम-जोगिनी, विद्या, सुन्दर , रत्नावली, पाखण्उ विडम्बन ,धनंजय विजय कर्पूर मंजरी ,मुद्राराक्षस , भारत जननी , दुर्लभ बंधु ,वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ,सत्य हरिश्चन्द्र ,श्री चन्द्रावली विषस्य विषमौषधम् आदि…||
भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 हिंदुस्तानी लोगों की रेल की गाड़ी से तुलना क्यों कि गई है ?
उत्तर- हिंदुस्तानी लोगों की तुलना रेल की गाड़ी से इसलिए कि गई है क्योंकि रेल की गाड़ी बहुत बड़ी-बड़ी, अच्छी-अच्छी महसुल होती है | फर्स्ट क्लास, सेकण्ड क्लास लेकिन उसे चलाने के लिए इंजन की आवश्यकता होती है, वैसे ही हिंदुस्तानी लोगों को किसी चलाने वाले कि आवश्यकता होती है जो उन्हें सही रास्ता दिखा सके |
प्रश्न-2 लेखक ने अपनी खराबियों के मूल कारण खोजने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर- लेखक ने अपनी खराबियों के मूल कारण खोजने के लिए इसलिए कहा है कि देश में जो लोग खुद को देश का हितैषी मानते हों वे सभी अपने सुख को छोड़कर, धन और मान का बलिदान करके कमर कस के उठो देख-देख के सब सिख जाओगे लेकिन अपने अन्दर के कमी को पहचानो और देश मे छिपे चोरों को पकड़-पकड़कर लाओ उनको बांधकर कैद करो। अपनी शक्ति के अनुरूप कार्य करो |
प्रश्न-3 देश का रुपया और बुद्धि बढ़े इसके लिए क्या करना चाहिए?
प्रश-4 ऐसी कौन सी बातें हैं जो समाज विरुद्ध मानी जाती है, किंतु धर्मशास्त्रों में उनका विधान है ?
उत्तर- बहुत सी बातें हैं जो समाज विरुद्ध मानी जाती है लेकिन धर्मशास्त्रों में उनका विधान है जैसे- जहाज का सफर, विधवा-विवाह, लड़कों को छोटेपन में ही विवाह कर देना, कुलीन-प्रथा, बहुविवाह, आदि |
प्रश-5 देश की सब प्रकार से उन्नति हो उसके लिए लेखक ने क्या उपाय बताए हैं ?
उत्तर- देश की सब प्रकार से उन्नति हो उसके लिए लेखक ने कई उपाय बताए हैं जैसे — जिसमें तुम्हारी भलाई हो वैसी ही किताब पढ़ो, वैसे ही खेल खेलो वैसी ही बातचीत करो, परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत करो अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो |
प्रश्न-6 निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए —
(क)- राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, झूठ गप से छुट्टी नहीं |
उत्तर- इस पंक्ति में लेखक ने उस समय के राजा-महाराजों के बारे में बताया है। उस समय के राजा-महाराजा प्रजा की समस्याओं को हल करने के स्थान पर पूजा-पाठ, खाने-पीने तथा बेकार की बातें करने और छट्टियाँ मानने में समय नष्ट कर देते थे। अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर भागते थे तथा प्रजा को सुखी नहीं रखते थे। बस अपनी ही धुन में रहते थे |
(ख)- सबके जी में यही है कि पाला हमीं पहले छू लें |
उत्तर- इस पंक्ति का आशय यह है कि सब के मन में यही बात है कि हमें ही सबकुछ पहले मिले। हमें ही सबसे पहले सफलता मिले |
(ग)- हमको पेट के धंधे के मारे छुट्टी ही नहीं रहती बाबा, हम क्या उन्नति करैं ?
उत्तर- इसमें लेखक कहते हैं कि भारतीय लोगों को बस रोजी-रोटी से लेना-देना है। जो मिल जाता है बस, उसी में ही वे खुश हो जाते हैं। यही कारण है कि भारतीयों की उन्नति नहीं होती है। जीवन में मात्र पेट भरना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए। पेट की आग बुझाने के साथ-साथ देश के हित के लिए हमें हमेशा आगे बढ़ना चाहिए |
(घ)- उन चोरों को वहाँ-वहाँ से पकड़-पकड़कर लाओ, उनको बांध-बांध कर कैद करो |
उत्तर- लेखक कहते हैं कि जो धर्म की आड़ में, देश की चाल की आड़ में, कोई सुख की आड़ में छिपे हैं, उनको पकड़ के लाओ उनको कैद करो और देश के लिए अपना फर्ज पूरा करो देश की उन्नति में भागीदार बनो |
(ड़)- यह तो वही मसल हुई कि एक बेफ़िकरे मँगनी का कपड़ा पहिनकर किसी महफिल में गए |
प्रश्न-7 निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए —
(क)- सास के अनुमोदन से …………….. फिर परदेस चला जाएगा।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति ”भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?” लेखक ‘हरिश्चंद्र भारतेंदु’ जी के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक कहते हैं कि भारवासी आलस्य प्रवृत्ति के होते हैं | उन्होंने उदाहरण के माध्यम से कटाक्ष करते हुए बताया है कि एक बहू अपनी सास से पति से मिलने की आज्ञा लेकर पति से मिलने जाती है लेकिन लज्जा के कारण कुछ बोल ही नहीं पाई। सारी परिस्थितियाँ उसके अनुकूल थी । लेकिन कुछ बोल न सकी इस कारण पति का मुख देखना भी नसीब नहीं हुआ। अब इसे उसका दुर्भाग्य ही कहें कि अगले दिन उसका पति वापिस परदेस जाने वाला था। लेकिन उससे मिलना नही हुआ। इसके माध्यम से लेखक बताना चाहते हैं कि भारवासियों को सभी प्रकार के अवसर मिले हुए हैं। भारतवासियों में आलस्य इस प्रकार छाया हुआ है कि वह इस अवसर का सही उपयोग नहीं कर पा रहे हैं |
(ख)- दरिद्र कुटुंबी इस तरह …………… वही दशा हिंदुस्तान की है।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति ”भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?” लेखक ‘हरिश्चंद्र भारतेंदु’ जी के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक कहते हैं कि हमारे देश में एक गरीब परिवार समाज में अपनी इज्जत बचाने में असमर्थ हो जाता है। लेखक बताते हैं कि गरीब तथा कुलीन वधू अपने फटे हुए वस्त्रों में अपने अंगों को छिपाकर अपनी इज्जत बचाने का हर संभव प्रयास करती है। भले उसके पास कुछ नहीं है लेकिन वह हार नहीं मानती है | ऐसे ही भारतावासियों के हाल है। चारों ओर गरीबी विद्यमान है। सभी गरीबी से त्रस्त हैं। इसके कारण लोग अपनी इज्जत बचा पाने में असमर्थ हो रहे हैं। गरीबी ने देश को चारो ओर से घेर रखा है |
(ग)- वास्तविक धर्म तो ……………….. शोधे और बदले जा सकते हैं।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति ”भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?” लेखक ‘हरिश्चंद्र भारतेंदु’ जी के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक कहते हैं कि जो धर्म और ग्रंथो में लिखा गया है उसे तो बदला जा सकता है | उसका संशोधन भी किया जा सकता है। जो समाज और धर्म के अलावा अन्य बातें धर्म के साथ जोड़ी गई हैं, वे समाज-धर्म कहलाती हैं। समय और देश के अनुसार इनमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। हमें जरूरी बातों को जोड़ कर उसमें संशोधन करवाना चाहिए |
भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है पाठ से संबंधित शब्दार्थ
• महसूल – कर टैक्स
• चुंगी की कटवार – म्युनिसिपालिटी का कचरा
• रंगमहल – भोग विलास का स्थान
• कमबख्ति – अभागापन
• मर्दु मशुमारी – जनगणना
• तिल्फ़ी – बचपन से सम्बंधित
• तालीम – शिक्षा
• बरताव – व्यवहार |
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