कक्षा 11 नए की जन्म कुंडली : एक पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ नए की जन्म कुंडली : एक लेखक गजानंद माधव मुक्तिबोध जी के द्वारा लिखित है | लेखक ने प्रस्तुत पाठ में व्यक्ति और समाज के बाहरी तथा आंतरिक परिवर्तन के फलस्वरूप प्राप्त चेतना को नए की सन्दर्भ में देखने का प्रयास किया है। मुक्तिबोध जी का कहना है कि धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परिवर्तन के फलस्वरूप पर्याप्त यथार्थ के वैज्ञानिक चेतना को नया मानना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि संघर्ष और विरोध के परिणाम को व्यवहारिकता में ना जीने के कारण ही हम पुराने को छोड़ देते हैं। लेकिन नए को वास्तविक रूप से अपना नहीं पाते। लेखक के अनुसार नए की पुकार हम लगाते हैं, लेकिन नया क्या है, इस विषय में हमारी जानकारी शून्य के बराबर है। हमने सोचा ही नहीं है कि यह नया मान-मूल्य हो, एक नया मनुष्य हो या क्या हो ? जब हम यह नहीं जान पाए, तो जो स्वरूप उभरा था, वह भी शून्यता के कारण मिट गया। उनको दृढ़ तथा नए जीवन, नए मानसिक सत्ता का रूप धारण करना था | पर वे प्रश्नों के उत्तर न होने के कारण समाप्त हो गए। वे हमारे धर्म और दर्शन का स्थान नहीं ले सके। वे इनका स्थान तभी ले पाते जब हम इन विषयों पर अधिक सोचते। नए को अपना पाते।
इस संसार का नियम है कि जो पुराना हो चुका है, वह वापिस नहीं आता। अर्थात् जो बातें, विचार, परंपराएँ इत्यादि हैं, वे आज भी हमारे परिवार में दिखाई दे जाती हैं। वे मात्र उनके अवशेष के रूप में विद्यमान हैं। समय बदल रहा है और नए विचार, बातें तथा परंपराएँ जन्म ले रही हैं। ये जो भी नया आ रहा है, इसने पुराने का स्थान नहीं लिया है। ये अलग से अपनी जगह बना रहे हैं। परिणाम जो पुराना है, वह अपने अस्तित्व के लिए तड़प रहा है और नए का विरोध करता है। इस कारण दोनों में अंतर्द्वंद्व की स्थिति बन गई है। उदाहरण के लिए धर्म हमारी संस्कृति का आधार है। हम लोगों की इस पर बड़ी आस्था है। आज की पीढ़ी वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए है। उसने धर्म को नकार दिया है। चूंकि धर्म हमारी संस्कृति का आधार है। अतः इसे पूर्णरूप से निकालना संभव नहीं है। हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हर बात को परखते हैं, लेकिन कई चीज़ें हमारी समझ से परे होती हैं, तो हम उसे धर्म के क्षेत्र में लाकर खड़ा कर देते हैं। हमने धार्मिक भावना को तो छोड़ दिया है लेकिन वैज्ञानिक बुद्धि का सही से प्रयोग करना नहीं सीखा है। हम इसके लिए न प्रयास करते हैं और न हमें ज़रूरत महसूस होती है। ये दोनों बातें एक दूसरे से टकरा जाती हैं। हमें उत्तर में कुछ नहीं मिलता है। प्रायः यह स्थिति शिक्षित परिवारों में देखने को मिलती हैं |
लेखक के अनुसार आज की युवापीढ़ी के स्वभाव में अंतर हैं। वे घर से बाहर साहित्य और राजनीति की अनेकों बातें करते हैं। उसके बारे में सोचते हैं और करते भी हैं। जब यह बात घर की आती है, तो उनका व्यवहार बदल जाता है। पूंजीपतियों के विरुद्ध विद्रोह, शासन के विरुद्ध विद्रोह आदि विद्रोह सरलता से खड़े हो जाते हैं। जब समाज की बात आती है, तो उनके मुँह में ताले लग जाते हैं। राजनीति के पास समाज-सुधार का कोई कार्यक्रम नहीं है। राजनीति अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए मनुष्य द्वारा की जाती है। यही कारण है कि राजनीति के पास समाज-सुधार का कोई कार्यक्रम नहीं है। राजनीति ने समाज को विकास के स्थान पर मतभेद और अशांति इत्यादि ही दी है। आज जाति भेद, आरक्षण आदि बातें राजनीति की देन हैं। यदि राजनीति देश के विकास का कार्य करती, तो भारत की स्थिति ही अलग होती | पिछले बीस वर्षों में भारत जैसे देश में संयुक्त परिवार का ह्रास हुआ है। यह स्वयं में बहुत बड़ी बात है। संयुक्त परिवार आज के समय में मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है। उसकी सर्वप्रथम शिक्षा, संस्कार, विकास, चरित्र का विकास इत्यादि परिवार के मध्य रहकर ही होता है। आज ऐसा नहीं है। इसके परिणाम हमें अपने आसपास दिखाई दे रहे हैं। इससे मनुष्य को सामाजिक तौर पर ही नहीं अन्य तौर भी पर नुकसान झेलना पड़ रहा है। लेखक कहता है कि साहित्य और राजनीति ऐसा कोई साधन विकसित नहीं कर पाया है, जिससे संयुक्त परिवार के विघटन को रोक पाए। परिणाम आज वे समाप्त होते जा रहे हैं। इससे समाज को ही नहीं देश को भी नुकसान होगा।
इस पाठ में लेखक व्यक्ति को असामान्य तथा असाधारण मानता था। उसके पीछे कारण था। उसके अनुसार जो व्यक्ति अपने एक विचार या कार्य के लिए स्वयं को और अपनों का त्याग सकता है, वह असामान्य तथा असाधारण व्यक्ति है। वह अपने मन से निकलने वाले उग्र आदेशों को निभाने का मनोबल रखता है। ऐसा प्रायः साधारण लोग कर नहीं पाते हैं। वह सांसारिक समझौते करते हैं और एक ही परिपाटी में जीवन बीता देते हैं। ऐसा व्यक्ति ही असामान्य तथा असाधारण होता है। इसमें लेखक ने दो मित्रों के स्वभाव और उनके समय के साथ बदलने वाले व्यवहार को बताया है जो आज के आधुनिक समय में होता आ रहा है। प्रस्तुत पाठ में मुक्तिबोध जी स्वयं और मित्र के बीच के अंतर को भी बताया है। मित्र सांसारिक खुशियों से दूर हो जाता है हमेशा असफलता मिलने के कारण उसके व्यवहार में निर्दयता और क्रूरता आ जाता है, लेकिन लेखक शान्त और अच्छे आचरण वाला होता है जिसे दूसरों को खुश करना अच्छा लगता है। लेकीन मित्र बिल्कुल अलग होता है। इसमें सामाजिक व्यवस्था और परिवार के महत्व के बारे में बताया गया है…||
गजानन माधव मुक्तिबोध का जीवन परिचय
प्रस्तुत पाठ के लेखक गजानन माधव मुक्तिबोध जी हैं। इनका जन्म सन् 1917 में श्योपुर कस्बा, ग्वालियर मध्य प्रदेश में हुआ था। मुक्तिबोध जी के पिता जी पुलिस विभाग में सब-इंस्पेक्टर थे उनके पिता जी का बार-बार तबादला होने के कारण इनकी पढ़ाई बीच-बीच में प्रभावित होती थी। इसके बाद में माधव जी ने सन् 1954 में एम.ए. की डिग्री नागपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त किया। माधव जी ने ईमानदारी, दृढ़ इच्छाशक्ति एवं न्यायप्रियता के गुण अपने पिता जी के अच्छे आचरण से सीखा था। वे लंबे समय तक नया खून साप्ताहिक का संपादन करते थे। उसके बाद वे दिग्विजय महाविद्यालय मध्य प्रदेश में अध्यापन कार्य में लग गए। मुक्तिबोध जी का पुरा जीवन संघर्ष और विरोध से गुजरा। उनकी कविताओं में उनके जीवन की छवि नजर आती है। पहली बार उनकी कविता तारसप्तक में सन् 1943 में छपी थी। वे कहानी, उपन्यास, आलोचना भी लिखते थे। मुक्तिबोध जी एक समर्थ पत्रकार थे। वे नई कविता के प्रमुख कवि हैं। इनमें गहन विचारधारा और विशिष्ट भाषा शिल्प के कारण इनकी साहित्य में एक अलग पहचान है। उनके साहित्य में स्वतंत्र भारत के मध्यमवर्गीय ज़िंदगी की विडंबनाओं और विद्रूपताओं के चित्रण के साथ ही एक बेहतर मानवीय समाज-व्यवस्था के निर्माण की आकांक्षा भी की है। उनके साहित्य की प्रमुख विशेषता आत्म लोचन की प्रवृत्ति है |
इनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं — चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल, नए साहित्य का सौंदयशास्त्र ,कामायनी, एक पुनर्विचार, एक साहित्यिक की डायरी…||
नए की जन्म कुंडली : एक पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 ‘सांसारिक समझौते’ से लेखक का क्या आशय है ?
उत्तर- मुक्तिबोध जी कहते हैं कि सांसारिक समझौते से ज्यादा विनाशक कोई चीज़ नहीं है। खास तौर पर वहाँ, जहाँ किसी अच्छी व महत्वपूर्ण बात के मार्ग में अपने या अपने जैसे लोग या पराए लोग आड़े आते हों। वे कहते हैं, जितनी जबरदस्त उनकी बाधा होगी उतनी ही कड़ी लड़ाई भी होगी अथवा उतना ही निम्नतम समझौता होगा |
प्रश्न-2 लेखक ने ‘व्यावहारिक सामान्य बुद्धि’ किसे माना है ?
उत्तर- लेखक ने ‘व्यावहारिक सामान्य बुद्धि’ उसे माना है, जिसमें लेखक यदि कोई काम करता तो इसलिए करता की लोग खुश हों और उनका मित्र काम करता तो इसलिए की कोई काम एक बार हाथ में ले लेने पर उसे आधिकारिक ढंग से भली-भाँति करना ही है। यह लेखक की अपनी व्यावहारिक सामान्य बुद्धि थी |
प्रश्न-3 लेखक के मित्र ने यह क्यों कहा की उसकी पूरी जिन्दगी भूल का एक नक्शा है ?
उत्तर- लेखक कहते हैं कि उसका दोस्त ज़िंदगी में छोटी-छोटी सफलताएँ चाहता था, लेकिन उसे असफलता ही हासिल हुई | उसके दोस्त को संयुक्त परिवार का ह्रास भी था और सांसारिक सफलताओं की चाहत भी, जो पूरी नहीं हो सकी | इसलिए उसने पूरी ज़िंदगी को भूल का नक्शा कहा है |
प्रश्न-4 व्यक्ति ने तैश में आकर समाज और परिवार के बारे में जो विचार रखे उससे आप कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर- व्यक्ति ने तैश में आकर समाज और परिवार के बारे में जो विचार रखे वो बिल्कुल सही है लेखक ने व्यक्ति एवं समाज के बाहरी तथा आंतरिक परिवर्तन के बारे में इस पाठ में बताने का प्रयास किया है। मित्र तैश में कहता है कि समाज में वर्ग है, श्रेणियाँ हैं, श्रेणियों में परिवार है, परिवार समाज की बुनियादी इकाई होती है। समाज की अच्छाई-बुराई परिवार के माध्यम से व्यक्त होती है | मनुष्य के चरित्र का विकास भी परिवार में ही होता है। बच्चे पलते हैं, उनको सांस्कृतिक शिक्षा मिलती है |
सारे अच्छे-बुरे गुण परिवार से ही सीखते हैं। मित्र की समाज एवं परिवार के बारे में जो विचार है, उससे हम शत प्रतिशत सहमत हैं |
प्रश्न-5 लेखक ने शैले की ‘ओड टू वैस्ट विंड’ और ‘स्क्वेअर रुट ऑफ माइनस वन’ प्रयोग किस संदर्भ में किया और क्यों ?
प्रश्न-6 ‘अभिधार्थ एक होते हुए भी ध्वन्यार्थ और व्यंग्यार्थ अलग-अलग हो जाते हैं।’ इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- यदि हम अभिधार्थ का अर्थ देखें, तो इसका मतलब सामान्य अर्थ होता है। जब हम किसी शब्द का प्रयोग करते हैं, तो कई बार उस शब्द का अर्थ हमारे काम नहीं आता। उसका अर्थ हमारे लिए उपयोगी नहीं होता। यदि हम ध्वन्यार्थ के बारे में कहे, तो इसका अर्थ होता हैः ध्वनि द्वारा अर्थ का पता चलना और व्यंग्यार्थ का अर्थ होता हैः व्यंजना शक्ति के माध्यम से अर्थ मिलना। इसे हम सांकेतिक अर्थ कहते हैं। पाठ में दूरियों का अभिधार्थ फासले से है |
प्रश्न-7 लेखक को अपने मित्र की ज़िंदगी के किस बुनियादी तथ्य से सदा बैर रहा और क्यों ?
उत्तर- लेखक की दृष्टि में उनका मित्र असाधारण और असामान्य था। एक असाधारणता और क्रूरता भी उसमें थी। निर्दयता भी उसमें थी | वह अपनी एक धुन, अपने विचार या एक कार्य पर सबसे पहले खुद को और साथ में लोगों को कुर्बान कर सकता था। इस भीषण त्याग के कारण, उसके अपने आत्मीयों का उसके विरुद्ध युद्ध होता तो वह उसका नुकसान भी बर्दाश्त कर लेता था। उसकी ज़िंदगी की इस बुनियादी तथ्य से लेखक का सदा बैर रहा। क्योंकि इससे उसके मित्र का ही नुकसान था और लेखक इसके ठीक विपरीत स्वभाव का था |
प्रश्न-8 स्वयं और अपने मित्र के बीच लेखक ‘दो ध्रुवों का भेद’ क्यों मानता है ?
उत्तर- लेखक स्वयं और अपने मित्र के बीच ‘दो ध्रुवों का भेद’ इसलिए मानता है क्योंकि लेखक यदि कोई काम करता तो इसलिए करता की लोग खुश हों। और वह काम करता तो इसलिए की कोई काम एक बार हाथ में ले लेने पर उसे आधिकारिक ढंग से भली-भाँति करना ही है। यह लेखक की अपनी व्यावहारिक सामान्य बुद्धि थी। उसकी कार्य-शक्ति, आत्म प्रकटीकरण की एक निर्द्वंद्व शैली के कारण दोनों में दो ध्रुवों का भेद था |
प्रश्न-9 ”वैज्ञानिक पद्धति का अवलंबन करके उत्तर खोज निकालने की ना जल्दी है ना तबियत है” — यह वाक्य किसके लिए कहा गया है और क्यों ?
उत्तर- ‘वैज्ञानिक पद्धति का अवलंबन करके उत्तर खोज निकालने की ना जल्दी है ना तबियत है’ — यह वाक्य मध्यम वर्गीय परिवार के लिए कहा गया है। क्योंकी जो पुराना है वह लौट के नहीं आएगा, लेकिन जो नया है वह पुराने का स्थान नहीं लिया। धर्म-भावना गई, लेकिन वैज्ञानिक बुद्धि नहीं आई | धर्म ने हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष को अनुशासित किया था। वैज्ञानिक मानवीय दृष्टि ने धर्म का स्थान नहीं लिया, इसलिए केवल हम प्रवृत्तियों के यंत्र में चालित हो उठे। नए की अपेक्षा में मानसिक सत्ता के अनुशासन का रूप धारण ना कर सके |
प्रश्न-10 निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए —
(क)- इस भीषण संघर्ष की हृदय भेदक ………….इसलिए वह असामान्य था।
उत्तर- लेखक ने इसमें व्यक्ति के बारे में बताया है। लेखक कहते हैं कि व्यक्ति ने बहुत संघर्ष किया है। संघर्ष ने उसके व्यक्तित्व को बहुत अलग बना दिया है। इस संघर्ष से व्यक्ति के ऊपर जो भी गुजरा है वह संघर्ष करना व्यक्ति के लिए कठिन था। लेखक का कहना है कि इतने संघर्षों से गुजरने के बाद प्रायः लोग संभल नहीं पाते हैं। वे स्वयं के व्यक्तित्व को खो देते हैं। लेखक को इस बात से हैरानी होती है कि उस व्यक्ति ने स्वयं को नहीं खोया है। उसने स्वयं के स्वाभिमान को बचाए रखा है। उसने समझौता नहीं किया है। वह लड़ा है और इस लड़ाई में स्वयं को बचाए रखना उसके असामान्य होने का प्रमाण है।
(ख)- लड़के बाहर राजनीति या साहित्य के मैदान में …………. धर के बाहर दी गई।
उत्तर- लेखक के अनुसार आज की युवापीढ़ी और पुराने लोगों के स्वभाव में अंतर हैं। वे घर से बाहर साहित्य और राजनीति की बहुत सी बातें करते हैं। लेकिन जब यह बात घर आती है, तो उनका व्यवहार बदल जाता है। अन्याय तो कहीं भी हो सकता है घर के बाहर भी और घर के अंदर भी जब अन्याय को चुनौती देने बात जो तो मनुष्य चुप हो जाता है इस कारण घर के लोग उसके अपने होते हैं । अतः लोग चुप्पी साध लेते हैं। घर के बाहर अन्यायपूर्ण व्यवस्था को चुनौती देना सरल होता है। पूंजीपतियों के विरुद्ध विद्रोह, शासन के विरुद्ध विद्रोह आदि विद्रोह सरलता से खड़े हो जाते हैं। जब समाज की बात आती है, तो उनके मुँह में ताले लग जाते हैं |
(ग)- इसलिए पुराने सामंती अवशेष बड़े मज़े ……… शिक्षित परिवारों की बात कर रहा हूँ।
उत्तर- लेखक कहना चाहता है कि इस संसार का नियम है कि जो पुराना हो चुका है, वह वापिस नहीं आता। अर्थात् जो बातें, विचार, परंपराएँ इत्यादि हैं, वे आज भी हमारे परिवार में दिखाई दे जाती हैं। वे मात्र उनके अवशेष के रूप में विद्यमान हैं। समय बदल रहा है और नए विचार, बातें तथा परम्पराएँ जन्म ले रही हैं। ये जो भी नया आ रहा है, इसने पुराने का स्थान नहीं लिया है। ये अलग से अपनी जगह बना रहे हैं। परिणाम जो पुराना है, वह अपने अस्तित्व के लिए तड़प रहा है और नए का विरोध करता है। इस कारण दोनों में अंतर्द्वंद्व की स्थिति बन गई है। उदाहरण के लिए धर्म हमारी संस्कृति का आधार है। हम लोगों की इस पर बड़ी आस्था है। आज की पीढ़ी वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए है। उसने धर्म को नकार दिया है। चूंकि धर्म हमारी संस्कृति का आधार है। अतः इसे पूर्णरूप से निकालना संभव नहीं है। हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हर बात को परखते हैं, लेकिन कई चीज़ें हमारी समझ से परे होती हैं, तो हम उसे धर्म के क्षेत्र में लाकर खड़ा कर देते हैं। हमने धार्मिक भावना को तो छोड़ दिया है लेकिन वैज्ञानिक बुद्धि का सही से प्रयोग करना नहीं सीखा है। हम इसके लिए न प्रयास करते हैं और न हमें ज़रूरत महसूस होती है। ये दोनों बातें एक दूसरे से टकरा जाती हैं। हमें उत्तर में कुछ नहीं मिलता है। प्रायः यह स्थिति शिक्षित परिवारों में देखने को मिलती हैं |
(घ)- मान-मूल्य, नया इंसान ………… वे धर्म और दर्शन का स्थान न ले सके।
उत्तर- लेखक के अनुसार नए की पुकार हम लगाते हैं, लेकिन नया क्या है इस विषय में हमारी जानकारी शून्य के बराबर है। हमने सोचा ही नहीं है कि यह नया मान-मूल्य हो, एक नया मनुष्य हो या क्या हो ? जब हम यह नहीं जान पाए, तो जो स्वरूप उभरा था, वह भी शून्यता के कारण मिट गया। उनको दृढ़ तथा नए जीवन, नए मानसिक सत्ता का रूप धारण करना था, पर वे प्रश्नों के उत्तर न होने के कारण समाप्त हो गए। वे हमारे धर्म और दर्शन का स्थान नहीं ले सके। वे इनका स्थान तभी ले पाते जब हम इन विषयों पर अधिक सोचते |
प्रश्न-11 निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए —
(ख)- बुलबुल भी यह चाहती है कि वह उल्लू क्यों न हुई !
उत्तर- इसका अभिप्राय है कि हमें अपने से अधिक दूसरे अच्छे लगते हैं। हम दूसरे से प्रभावित होकर वैसा बनना चाहते हैं। हम स्वयं को नहीं देखते हैं। अपने गुणों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है |
(ग)- मैं परिवर्तन के परिणामों को देखने का आदी था, परिवर्तन की प्रक्रिया को नहीं।
उत्तर-लेखक कहता है कि मेरे सामने बहुत बदलाव हुए। मैंने उन बदलावों से हुए परिणाम देखें। अर्थात् यह देखा कि बदलाव हुआ, तो उसका लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा। इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि जब बदलाव हो रहे तो वह क्यों और कैसे हो रहे थे ? इस प्रक्रिया पर मेरा कभी ध्यान ही नहीं गया।
(घ)- जो पुराना है, अब वह लौटकर आ नहीं सकता।
उत्तर- इससे आशय यह है कि जो समय बीत गया है, उसे हम लौटाकर नहीं ला सकते हैं। जो चला गया, वह चला गया। उसका वर्तमान में कोई अस्तित्व नहीं बचा है |
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नए की जन्म कुंडली पाठ से संबंधित शब्दार्थ
• शिकंजा – जकड़
• मस्तिष्क तन्तु – मस्तिष्क की शिराएँ
• रोमैंटिक कल्पना – ऐसी कल्पना जिसमे प्रेम और रोमांच हो
• ‘ओड टू वेस्ट विंड’ – अंग्रेजी कवि शैले की रचना
• ‘स्क्वेअर रुट ऑफ माइनस वन – गणित का एक सूत्र
• अभिधार्थ – शब्द का सामान्य अर्थ, तीन शब्द शक्तियों में से एक का बोध कराने वाली
• ध्वन्यार्थ – वह अर्थ जिसका बोध व्यंजना शब्द शक्ति से होता है
• आच्छन्न – छिपा हुआ ,ढँका हुआ
• हृदयभेदक – हृदय को भीतर तक प्रभावित करने वाली
• निजत्व – अपना पन
• ऐंड़ा-वेंड़ा – टेढ़ा-मेढ़ा
• इंटीग्रल – अभिन्न
• आत्म प्रकटीकरण – मन की बात कहना
• यशस्विता – प्रतिष्ठा, अत्याधिक, यश, प्रसिद्धि
• अप्रत्याशिता – जिसकी आशा ना हो, उम्मीद ना हो
• खरब – सौ अरब की संख्या
• वस्तुस्थिति – वास्तविक स्तिथि
• सप्रश्ननता – प्रश्न के साथ
• सर्व तोमुखी – सभी ओर से, सभी दिशाओं में |
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