हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 6 स्पीति में बारिश
पाठ का सारांश
यह पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है। स्पीति, हिमालय के मध्य में स्थित है। यह स्थान अपनी भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं के कारण अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न है। लेखक ने यहाँ की जनसंख्या, ऋतु, फसल, जलवायु व भूगोल का वर्णन किया है। ये एक-दूसरे से संबंधित हैं। उन्होंने दुर्गम क्षेत्र स्पीति में रहने वाले लोगों के कठिनाई भरे जीवन का भी वर्णन किया है। कुछ युवा पर्यटकों का पहुँचना स्पीति के पर्यावरण को बदल सकता है। ठंडे रेगिस्तान जैसे स्पीति के लिए उनका आना, वहाँ बूंदों भरा एक सुखद संयोग बन सकता है।
लेखक बताता है कि हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील स्पीति है। ऊँचे दरों व कठिन रास्तों के कारण इतिहास में इसका नाम कम ही रहा है। आजकल संचार के आधुनिक साधनों में वायरलेस के जरिए ही केलग व काजा के बीच संबंध रहता है। केलग के बादशाह को हमेशा अवज्ञा या बगावत का डर रहता है। यह क्षेत्र प्राय: स्वायत्त रहा है चाहे कोई भी राजा रहा हो। इसका कारण यहाँ का भूगोल है। भूगोल ही इसकी रक्षा तथा संहार करता है। पहले राजा का हरकारा आता था तो उसके आने तक अल्प वसंत बीत जाता था। जोरावर सिंह हमले के समय स्पीति के लोग घर छोड़कर भाग गए थे। उसने यहाँ के घरों और विहारों को लूटा।
स्पीति में जनसंख्या लाहुल से भी कम है। 1901 में यहाँ 3231 लोग थे, अब यहाँ 34,000 लोग हैं। लाहुल स्पीति का क्षेत्रफल 12210 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ जनसंख्या प्रति वर्गमील बहुत कम है। भारत को यहाँ का प्रशासन ब्रिटिश राज से मिला। अंग्रेजों ने 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से यहाँ का प्रशासन लिया था ताकि वे पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में जा सकें। लद्दाख मंडल के समय यहाँ का शासन स्थानीय राजा (नोनी) द्वारा चलाया जाता था। अंग्रेजी काल में कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से नोनो काम करता था। स्थानीय लोग इसे अपना राजा मानते थे।
1873 ई. में स्पीति रेगुलेशन में लाहुल व स्पीति को विशेष दर्जा दिया गया। यहाँ पर अन्य कानून लागू नहीं होते थे। यहाँ के नोनो को मालगुजारी इकट्ठा करने तथा छोटे-छोटे फौजदारी के मुकदमों का फैसला करने का अधिकार दिया गया। उससे ऊपर के मामले वह कमिश्नर के पास भेज देता था। 1960 में इस क्षेत्र को पंजाब राज्य में तथा 1966 में हिमाचल प्रदेश बनने के बाद राज्य के उत्तरी छोर का जिला बनाया गया।
स्पीति 31.42 और 32.59 अक्षांश उत्तर और 77.26 और 78.42 पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। यहाँ चारों तरफ पहाड़ हैं। इसकी मुख्य घाटी स्पीति नदी की घाटी है। स्पीति नदी तिब्बत की तरफ से आती है तथा किन्नौर जिले से बहती हुई सतलुज में मिलती है। लेखक पारा नदी, पिन की घाटी के बारे में भी मान भाई से सुना है। यह क्षेत्र अत्यंत बीहड़ और वीरान है। यहाँ लोग रहते कैसे हैं? स्पीति के बारे में बताने पर यह सवाल लोग लेखक से पूछते हैं। ये क्षेत्र आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं। वे एक फसल उगाते हैं तथा लकड़ी व रोजगार भी नहीं है, फिर भी वे यहाँ रह रहे हैं, क्योंकि वे यहाँ रहते आए हैं। यह तर्क से परे की चीज है।
स्पीति के पहाड़ लाहुल से अधिक ऊँचे, भव्य व नंगे हैं। इनके सिरों पर स्पीति के नर-नारियों का आर्तनाद जमा हुआ है। यहाँ हिम का आर्तनाद है, ठिठुरन है और व्यथा है। स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। यह हिमालय का तलुआ है। लाहुल । समुद्र की तरह से 10535 फीट ऊँचा है तो स्पीति 12986 फीट ऊँचा। स्पीति घाटी को घेरने वाली पर्वत श्रेणियों की ऊँचाई 16221 से 16500 फीट है। दो चोटियाँ 21,000 फीट से भी ऊँची हैं। इन्हें बारालचा श्रेणियाँ कहते हैं। दक्षिण की पर्वत श्रेणियों को माने श्रेणियाँ कहते हैं। शायद बौद्धों के माने मंत्रों के नाम पर इनका नामकरण किया गया हो। बौद्धों का बीज मंत्र ‘ओों मणि पद्भे हु’ है। इसे संक्षेप में माने कहते है।
स्पीति के पार बाह्य हिमालय दिखता है। इसकी एक चोटी 23,064 फीट ऊँची बताई जाती है। लेखक चोटियों से होड़ लगाने के पक्ष में नहीं है। इन ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। कभी-कभी उनका मान-मर्यादा करना मर्द और औरत की शान है। लेखक चाहता है कि देश-दुनिया के मैदानों व पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आकर अपने अहंकार को गलाकर फिर चोटियों के अहंकार को चूर करें। माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई। युवक-युवतियाँ यहाँ आकर किलोल करें तो यहाँ आनंद का प्रसार हो।
स्पीति में दो ही ऋतुएँ होती हैं। जून से सितंबर तक अल्पकालिक वसंत ऋतु तथा शेष वर्ष शीत ऋतु होती है। बसंत में जुलाई में औसत तापमान 15० सेंटीग्रेड तथा शीत में, जनवरी में औसत तापमान 8० सेंटीग्रेड होता है। वसंत में दिन गर्म तथा रात ठंडी होती है। शीत ऋतु की ठंड की कल्पना ही की जा सकती है। यहाँ वसंत का समय लाहुल से कम होता है। इस ऋतु में यहाँ फूल, हरियाली आदि नहीं आते। दिसंबर से मई तक बर्फ रहती है। नदी-नाले जम जाते हैं। तेज हवाएँ मुँह, हाथ व अन्य खुले अंगों पर शूल की तरह चुभती हैं।
यहाँ मानसून की पहुँच नहीं है। यहाँ बरखा बहार नहीं है। कालिदास को अपने ‘ऋतु संहार’ ग्रंथ में से वर्षा ऋतु का वर्णन हटाना होगा। उसका वर्षा वर्णन लाहुल-स्पीति के लोगों की समझ से परे है। वे नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं,बादल बरसते हैं और मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं। जंगलों में हरियाली छा जाती है और वियोगिनी स्त्रियाँ तड़पती हैं। यहाँ के लोगों ने कभी पर्याप्त वर्षा नहीं देखी। धरती सूखी, ठंडी व वंध्या रहती है।
स्पीति में एक ही फसल होती है जिनमें जौ, गेहूँ, मटर व सरसों प्रमुख है। इनमें भी जो मुख्य है। सिंचाई के साधन पहाड़ों से बहने वाले झरने हैं। स्पीति नदी का पानी काम में नहीं आता। स्पीति की भूमि पर खेती की जा सकती है बशर्त वहाँ पानी पहुँचाया जाए। यहाँ फल, पेड़ आदि नहीं होते। भूगोल के कारण स्पीति नंगी व वीरान है। वर्षा यहाँ एक घटना है। लेखक एक घटना का वर्णन करता है। वह काजा के डाक बंगले में सो रहा था। आधी रात के समय उन्हें लगा कि कोई खिड़की खड़का रहा है। उसने खिड़की खोली तो हवा का तेज झोंका मुँह व हाथ को छीलने-सा लगा। उसने पल्ला बंद किया तथा आड़ में देखा कि बारिश हो रही है। बर्फ की बारिश हो रही थी। सुबह उठने पर पता चला कि लोग उनकी यात्रा को शुभ बता रहे थे। यहाँ बहुत दिनों बाद बारिश हुई।
Discover more from EduGrown School
Subscribe to get the latest posts sent to your email.