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सहर्ष स्वीकारा है Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 5
सहर्ष स्वीकारा है कविता का सारांश
गजानन माधव मुक्तिबोध नई कविता के प्रमुख कवि हैं। वे लंबी कविताओं के कवि हैं। ‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की छोटी कविता है जो छायावादी चेतना से प्रेरित है। इस कविता में कवि ने जीवन में मनुष्य को सुख-दुख, राग-विराग, हर्ष-विषाद, आशा-निराशा, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक आदि भावों को सहर्ष अंगीकार करने की प्रेरणा प्रदान की है। इसके साथ यह कविता उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता की ओर संकेत करती हैं जिससे कवि को प्रेरणा प्राप्त हुई है।
कवि उस विशिष्ट सत्ता को संबोधन करके कहता है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, हर्ष-विषाद आदि मिला है उसको मैंने सहर्ष भाव से अंगीकार किया है। इसलिए वह जीवन में सब कुछ उसी सत्ता का दिया हुआ मानता है। गर्वयुक्त गरीबी, गंभीर अनुभव, भव्य विचार, दृढ़ता हृदय रूपी सरिता सब कुछ उनके जीवन में मौलिक हैं, बनावटी कुछ भी नहीं। इसलिए उन्हें गोचर जगत अदृश्य शक्ति का भाव लगता है।
वे सोचते हैं कि न जाने उस असीम सत्ता से उनका क्या रिश्ता-नाता है कि बार-बार वे उनके प्रति प्रेम रूपी झरने को ख़त्म करना चाहते हैं लेकिन वह बार-बार अपने-आप भर जाता है, जिसे चाहकर भी वे समाप्त नहीं कर सकते। उन्हें रात्रि में धरती पर मुसकुराते चाँद की भाँति अपने ऊपर असीम सत्ता का चेहरा मुसकुराता हुआ दिखता है। कवि बार-बार उस प्रभु से अपनी भूल के लिए दंड चाहते हैं। वे दक्षिण ध्रुव पर स्थित अमावस्या में पूर्ण रूप से डूब जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अब प्रभु द्वारा ढका और घिरा हुआ रमणीय प्रकाश सहन नहीं होता। अब उन्हें ममता रूपी बादलों की कोमलता भी हृदय में पीड़ा पहुँचाती है।
उनकी आत्मा कमजोर और शक्तिहीन हो गई है। इसलिए होनी को देखकर उनका हृदय छटपटाने लगता है। अब तो स्थिति यह है कि उन्हें दुखों को बहलाने व सहलानेवाली आत्मीयता भी सहन नहीं होती। कवि वास्तव में उस असीम, विशिष्ट जन से दंड चाहता है। ऐसा दंड जिससे कि वह पाताल लोक की गहन गुफाओं, बिलों और धुएँ के बादलों में बिलकुल खो जाए। लेकिन वहाँ भी उन्हें प्रभु का ही सहारा दिखता है। इसलिए वह अपना सब कुछ उसी सत्ता को स्वीकार करते हैं और जो कुछ उस सत्ता ने सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, आशा-निराशा आदि प्रदान किए हैं उन्हें खुशी-खुशी स्वीकार करता है।
इस कविता के माध्यम से कवि मनुष्यों को भी यही प्रेरणा देते हैं कि जीवन में मनुष्य को प्रभु प्रदत्त राग-विराग, सुख-दुख, आशा-निराशा आदि भाव सहर्ष भाव से या निर्विवाद रूप से स्वीकार कर लेने चाहिए।
सहर्ष स्वीकारा है कवि परिचय
जीवन परिचय-श्री गजानन माधव मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी साहित्य की नई कविता के बेजोड़ 0 कवि थे। ये एक संघर्षशील साहित्यकार थे जो आजीवन समाज, इतिहास और स्वयं से संघर्ष करते रहे। इनका जन्म 13 नवंबर, सन् 1917 ई० को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पूर्वज पहले महाराष्ट्र में रहते थे जो बाद में मध्य प्रदेश में आकर रहने लगे। इनके पिता का नाम माधव मुक्तिबोध था। वे पुलिस में सिपाही थे।
इनकी माँ बुंदेलखंड के एक किसान की बेटी थी। मुक्तिबोध जी एक विचारक एवं घुमक्कड़ प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। ये अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। ये शांता नामक लड़की से प्रेम करते थे। बाद में इन्होंने परिवार की मरजी के खिलाफ़ शांता जी से शादी कर ली थी। इस घटना से इनका परिवार के सदस्यों से मतभेद हो गया। मुक्तिबोध की प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। ये मिडिल की परीक्षा में एक बार अनुत्तीर्ण हुए लेकिन निरंतर परिश्रम करते हुए सन् 1953 ई० में नागपुर विश्वविद्यालय से एम० ए० की परीक्षा पास की। बाद में जीविकोपार्जन के लिए मध्य प्रदेश के एक मिडिल स्कूल में अध्यापक नियुक्त हुए किंतु चार मास के बाद ही यह नौकरी छोड़ दी।
तत्पश्चात शुजालपुर में शारदा शिक्षण सदन में रहे। फिर दौलतगंज मिडिल स्कूल उज्जैन में आ गए। इस प्रकार ० कवि ने आजीविका हेतु कोलकाता, इंदौर, मुंबई, बंगलौर (बेंगलुरु), बनारस, जबलपुर, राजनाँद गाँव आदि स्थानों पर कार्य किया। इन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। सन 1945 ई० में ‘हँस’ पत्र के संपादक मंडल के सदस्य के रूप में कार्य किया। 0 सन् 1956 से 1958 तक ‘नया खून’ नामक पत्र के संपादन कार्य से जुड़े रहे। इस प्रकार मुक्तिबोध जी को जीवन में दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। अंत में ये बीमार रहने लगे। ‘मैनिन जाइटिस’ नामक रोग ने इनके शरीर को जकड़ लिया।
उन्हें उपचार के लिए भोपाल और दिल्ली लाया गया किंतु वे स्वस्थ नहीं हुए। अंततः 11 सितंबर सन् 1964 ई० को नई दिल्ली में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ-मुक्तिबोध जी एक संघर्षशील साहित्यकार थे। ये बहुमुखी प्रतिभा से ओत-प्रोत रचनाकार थे। जो संघर्ष इनके जीवन में रहा
वही इनके साहित्य में भी दृष्टिगोचर होता है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(i) काव्य-संग्रह-चाँद का मुँह टेढ़ा है (सन 1964), भूरी-भूरी खाक धूल (सन 1964)।
(ii) कहानी-संग्रह-काठ का सपना, सतह से उठता आदमी।
(iii) उपन्यास-विपात्र।
(iv) समीक्षात्मक ग्रंथ-कामायनी-एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्म-संघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, एक साहित्यिक डायरी, ० समीक्षा की समस्याएँ, भारत : इतिहास और संस्कृति।
साहित्यिक विशेषताएँ-‘मुक्तिबोध’ के साहित्य में सामाजिक चेतना, लोक-मंगल की भावना तथा जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण विद्यमान ० हैं। इनके काव्य में प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी संवेदनाओं का चित्रण मिलता है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) शोषक वर्ग के प्रति घृणा-मुक्तिबोध जी मार्क्सवादी चिंतन से प्रेरित कवि हैं। इन्होंने समाज के पूँजीपति वर्ग के प्रति घृणा-भाव व्यक्त किए हैं। इनकी अनेक कविताओं में उस व्यवस्था के प्रति गहन आक्रोश अभिव्यक्त किया गया है जो मजदूरों, निर्धनों का शोषण करके ऐशो-आराम का जीवन जी रहे हैं। पूँजीवादी समाज के प्रति’ इनकी ऐसी ही कविता है जिसमें प्रगतिवादी भावना दृष्टिगोचर होती है। ये पूँजीवादियों की मनोवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं
तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ
तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ।
कवि शहरी सभ्यता को भी सुविधा भोगी वर्ग की देन मानते हैं। यहाँ एक ओर शोषक समाज की चमक-दमक झूठी शान की जिंदगी है तो दूसरी ओर दीन-हीन मजदूर वर्ग की विवशतापूर्ण जिंदगी। इस दोहरी नागरिकता से परिपूर्ण जीवन पर कवि ने गहन आक्रोश व्यक्त किया है। जैसे
पाउडर में सफ़ेद अथवा गुलाबी
छिपे बड़े-बड़े चेचक के दाग मुझे दीखते हैं
सभ्यता के चेहरे पर।
(ii) शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति-मुक्तिबोध ने शोषक वर्ग के प्रति गहन आक्रोश तथा शोषित वर्ग के प्रति विशेष सहानुभूति प्रकट की है। कवि समाज के दीन-हीन निर्धन लोगों को आर्थिक शोषण से मुक्त करना चाहता है। इन्होंने अपनी अनेक कविताओं में शोषण के शिकार नारी, शिशु और मजदूरों का सजीव और मार्मिक अंकन किया है। ये शोषित समाज के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहते हैं
गिरस्तिन मौन माँ बहनें
उदासी से रंगे गंभीर मुरझाए हुए प्यारे
गऊ चेहरे
निरखकर
पिघल उठता मन।
(iii) समाज का यथार्थ चित्रण-मुक्तिबोध जी भ्रमणशील व्यक्ति थे। अतः इन्होंने समाज को बहुत नजदीकी से देखा। इसलिए इनके काव्य में समाज का यथार्थ बोध होता है। इनके काव्य में भोगे हुए यथार्थ की अभिव्यंजना हुई है। कवि ने समकालीन समाज में | फैली विसंगतियों, कुरीतियों, शोषण, अमानवीय मूल्यों का यथार्थ चित्रण किया है।
ये ‘चाँद का मुंह टेढ़ा’ में समकालीन समाज के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं
आज के अभाव के और कल के उपवास के
व परसों की मृत्यु के
दैन्य के महा अपमान के व क्षोभपूर्ण
भयंकर चिंता के उस पागल यथार्थ का
दीखता पहाड़ स्याह।
(iv) निराशा, वेदना एवं कुंठा का चित्रण-मुक्तिबोध की प्रारंभिक रचनाओं में उनका व्यक्तिगत चित्रण हुआ है। इसी प्रवृत्ति के कारण इनकी अनेक कविताओं में निराशा, वेदना, कुंठा आदि का चित्रण हुआ है। मुक्तिबोध आजीवन संघर्षरत रहे। इन्हें पग-पग पर ठोकरें खानी पड़ी। इसी संघर्ष और वेदना के उनके काव्य में दर्शन होते हैं। कवि ने अपनी वेदना को संत-चित वेदना इसलिए कहा है क्योंकि ये समाज की विसंगतियों, शोषण वेदना को अपने भीतर घटित होते देखते हैं। इन्होंने आजीवन जिस वेदना, कुंठा, दुख, पीड़ा को झेला उसी का सजीव चित्रांकन अपनी कविताओं में किया है
दुख तुम्हें भी है,
दुख मुझे भी है
हम एक ढहे हुए मकान के नीचे
दबे हैं।
चीख निकालना भी मुश्किल है
असंभव
हिलना भी।
‘अँधेरे में मुक्तिबोध का आस्थावादी दृष्टिकोण अभिव्यक्त हुआ है। इन्होंने निराशा-वेदना के अंधकारमय वातावरण में भी आशा का दीपक जलाए रखा है।
(v) वैयक्तिकता-छायावादी कवियों की भाँति मुक्तिबोध की अनेक कविताओं में व्यक्तिवादिता का भाव अभिव्यक्त हुआ है। इनकी वैयक्तिकता व्यक्तिगत होते हुए भी समाजोन्मुख है। ‘तारसप्तक’ में संकलित इनकी अधिकांश कविताएँ इसी छायावादी भावना से ओत-प्रोत हैं। इनकी अनेक कविताएँ छायावादी भावना और प्रगतिशीलता का अनूठा समन्वय लिए हुए हैं।
कहीं-कहीं अकेलेपन की प्रवृत्ति झलकती है लेकिन वह भी समाज से उन्मुख होती दिखाई पड़ती है। कवि ‘चाँद का मुँह टेढ़ा’ में कहते हैं याद रखो कभी अकेले में मुक्ति नहीं मिलती
यदि वह है तो सब के साथ ही।
(vi) वर्गहीन समाज का चित्रण-मुक्तिबोध मार्क्सवादी चेतना से प्रेरित कवि हैं। ये समाज से शोषक वर्ग को समाप्त कर वर्गहीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं। यही भावना इनकी अनेक कविताओं में प्रकट होती है। जहाँ ये पूँजीपति समाज का साम्राज्य समाप्त करना चाहते हैं। इनकी कविताएँ जन-विरोधी समाज व्यवस्था के विरुद्ध संघर्षशील हैं। कवि ने अपने काव्य में शोषण, वर्ग-भेद को मिटाकर एक स्वस्थ एवं वर्गहीन समाज की कल्पना की है। ये वर्तमान समाज के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कविता में कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ वर्तमान समाज चल नहीं सकता।
(vii) भाषा-शैली-मुक्तिबोध की काव्य-कला की महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि इन्होंने मानव-जीवन की जटिल संवेदनाओं और अंतवंवों की सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए फैटेसियों का कलात्मक उपयोग किया है। मुक्तिबोध सामान्य जन-जीवन में प्रचलित शब्दावली से युक्त भाषा का प्रयोग किया है। भाषा की मौलिकता इनकी काव्य-कला की प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग है तो अंग्रेजी, उर्दू, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। इनकी भाषा पाठक को वास्तविक मर्म सौंपने का कार्य करती है। इनकी शैली भावपूर्ण है। इसके साथ-साथ आत्मीय व्यंजनात्मक, चित्रात्मक, व्यंग्यात्मक, प्रतीकात्मक आदि शैलियों के भी दर्शन होते हैं।
(viii) बिंब-विधान-मुक्तिबोध का बिंब-विधान अत्यंत श्रेष्ठ है। इस दृष्टि से इनका काव्य अत्यंत समृद्ध है। इनकी संपूर्ण कविताएँ बिंबमयी हैं। इन्होंने सामाजिक यथार्थ, विसंगति, त्रासदी, वेदना आदि के सजीव चित्र उपस्थित किए हैं। इन्होंने अपने काव्य में दृश्य, ध्वनि, स्पर्श, स्थिर, गत्यात्मक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक आदि अनेक बिंबों का सजीव चित्रण किया है।
जैसे
सामने मेरे
सरदी में बोरे को ओढ़ कर
कोई एक अपने
हाथ-पैर समेटे
काँप रहा, हिल रहा-वह मर जाएगा।
(ix) प्रतीक विधान-मुक्तिबोध ने अपने काव्य में प्रतीकों का प्रचुर प्रयोग किया है। इन्होंने अपने काव्य में परंपरावादी प्रतीकों की अपेक्षा नए, जीवंत और सामान्य जन-जीवन के प्रतीकों का प्रयोग किया है। ब्रह्मराक्षस, ओरांग, उटांग, बावड़ी कवि के प्रिय प्रतीक हैं। इसलिए इनका उन्होंने बार-बार प्रयोग किया है। मुक्तिबोध की लंबी कविता ‘अँधेरे में’ समकालीन मनुष्य के संघर्ष का प्रतीक है जिसमें प्रयुक्त चरित्र ‘गांधी और तिलक’ दो। विचारधाराओं के प्रतीक हैं। इसके साथ-साथ इन्होंने पौराणिक प्रतीकों का भी प्रयोग किया है।
(x) छंद-मुक्तिबोध ने अपनी काव्य-रचना के लिए मुख्यतः मुक्तक छंद का प्रयोग किया है। इनके काव्य में लय और ताल का अनूठा संगम दिखाई देता है। इसके साथ तुकांत, अतुकांत छंदों के भी दर्शन होते हैं। अष्टक इनका प्रिय छंद है। इन्होंने लंबी कविताओं में इस छंद का प्रयोग किया है।
(xi) अलंकार-योजना-मुक्तिबोध की अलंकार योजना अत्यंत सुंदर है। इन्होंने परंपरागत उपमानों की अपेक्षा नवीन उपमानों का प्रचुर प्रयोग किया है। इनके काव्य में अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेह, उल्लेख, मानवीकरण’ रूपकातिशयोक्ति आदि अलंकारों का सुंदर एवं सजीव प्रयोग हुआ है। रूपक अलंकार का उदाहरण दृष्टव्य है
रवि निकलता
लाल चिंता की रुधिर-सरिता
प्रवाहित कर दीवारों पर
उदित होता चंद्र
ब्रज पर बाँध देता
श्वेत धौली पट्टियाँ।
वस्तुतः गजानन माधव मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी काव्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका हिंदी साहित्य में प्रमुख स्थान है।
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