Class-11 पाठ – 5 ज्योतिबा फुले : सारांश
- पाठ सारांश (मुख्य बिंदू)
लेखिका ‘सुधा अरोड़ा’ द्वारा प्रसिद्ध समाज- सुधारक ‘ज्योतिबा फुले’ और उनकी पत्नी ‘सावित्रीबाई फुले’ के द्वारा शिक्षा एवं सामाजिक क्षेत्र में किए गए कार्यों का वर्णन इस पाठ में किया गया है। लेकिन सामाजिक विकास के आंदोलन के पांच प्रमुख लोगों में उनका नाम नहीं लिया जाता है , क्योंकि सूची को बनाने वाले उच्च वर्ग के प्रतिनिधि थे। ‘ज्योतिबा फुले’ ने पूंजीवादी , पुरोहित वादी मानसिकता पर खुला हमला बोला। वर्ण , जाति और वर्ग व्यवस्था में निहित शोषण प्रक्रिया को एक दूसरे का पूरक बताया। ‘गुलामगिरी’ , ‘शेतकर याचाआसूङ’ में विचारों का संकल्प किया गया है उनके मत में -जिस परिवार में पिता बौद्ध , माता इसाई , बेटी मुसलमान और बेटा सत्य धर्मी हो वह परिवार आदर्श परिवार है।
उन्होंने ब्रह्मांड वादी और पूंजीवादी मानसिकता के विरुद्ध आवाज उठाई। उनका मानना था कि शिक्षा अगर उच्च वर्ग के लोगों को ही मिलने लगी तो ऐसी शिक्षा का कोई काम नहीं। शिक्षा पर सभी का अधिकार है। एक शिक्षा ही है जो समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समानता व शोषण से आजादी दिला सकती है। ज्योतिबा फुले तथा उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले जी का मुख्य रूप से इसी बात पर अधिक बल रहा कि शिक्षा सभी की है अकेले उच्च या अमीर वर्गों की ही नहीं। समाज के प्रत्येक महिला और पुरुष दोनों बराबर है तथा शिक्षा पर पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का भी समान अधिकार होना चाहिए। इसके लिए ज्योतिबा फुले तथा उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले दोनों को समाज का तिरस्कार , अपमान व विद्रोह भी सहना पड़ा।
प्रस्तुत पाठ की लेखिका ‘सुधा अरोड़ा’ द्वारा ‘ज्योतिबा फूले’ और उनकी पत्नी ‘सावित्रीबाई फुले’ के जीवन चरित्र को दर्शाया गया है। जिसमें यह बताया गया है कि शिक्षा का अधिकार सभी धर्म-जाति , वर्ग , के लोगों को समान है और इसके लिए फूले दंपत्ति ने जो संघर्ष किया है उसे भी बताने का प्रयास सुधा अरोड़ा द्वारा इस पाठ में किया गया है। इन्होंने अछूतों , शोषितो , महिलाओं , विधवाओं आदि के उद्धार का वचन लिया और उसके लिए बहुत संघर्ष भी किया। सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने उस समय मे चालू , सामाजिक असमानताएं तथा रूढ़ीवादी परंपराओं का प्रतिरोध किया और साथ-साथ समाज के निचले वर्ग के अधिकारों के लिए लड़ाई भी लड़ी।
लेखिका ‘सुधा अरोड़ा’ द्वारा इस पाठ में ‘ज्योतिबा फुले’ व उनकी पत्नी ‘सावित्रीबाई फुले’ के इसी संघर्ष , समाज सुधार के मार्ग में आने वाली अनेक समस्याओं और उससे लड़ने की कहानी को बताया है।
स्त्री-शिक्षा के दरवाजे पुरुषों ने इसीलिए बंद कर रखे हैं , ताकि वह पुरुषों के बराबर स्वतंत्रता ना ले सकें। इसलिए महात्मा ज्योतिबा फुले ने स्त्री शिक्षा पर बल देते हुए यह वाक्य लिखा।
ज्योतिबा फुले ने स्त्री समानता को प्रतिष्ठित करने वाली नई विवाह- विधि बनाई। उन्होंने अपने इस नए विधवत् तरीके से साधु व ब्राह्मणों की जगह ही हटा दी।
उन्होंने पुरुष को प्रधान और स्त्री को गुलामगिरी सिद्ध करने वाले सारे मंत्र हटा दिए तथा उनके स्थान पर ऐसे मंत्र रखें जिन्हें वर-वधू आसानी से समझ सके तथा उन मंत्रों को अपने जीवन में ढाल सकें।
1888 ज्योतिबा फुले ने महात्मा की उपाधि को लेने के लिए मना कर दिया यह कहकर कि मेरे संघर्ष के कार्य मैं रुकावट आएगी। उनके कहे शब्दों में यह बात उनके व्यवहार में दिखाई दे रही थी।
स्त्री शिक्षा के समर्थन में ज्योतिबा फुले ने सबसे पहले अपने पत्नी को शिक्षा दिलवाई। उन्हें मराठी अंग्रेजी भाषा में परंपरागत किया।
सावित्री बाई फुले को पढ़ने की रुचि बचपन से ही थी। अब इस बात को साबित करने के लिए उनकी एक छोटी सी कहानी है। एक बार बचपन में लाट साहब ने उन्हें एक पुस्तक दी।घर पहुंचने पर पिता ने वह पुस्तक कूड़ेदान में फेक दी। सावित्रीबाई ने उसे छिपा कर रख दिया तथा शादी के बाद शिक्षित होने पर उन्होंने उस पुस्तक को पढ़ा।
भारत के 3000 वर्षों के इतिहास में पहली बार , पहली कन्याशाला की स्थापना पुणे में , 14 जनवरी 1848 को भारत में हुई तथा निम्न वर्ग की लड़कियों के लिए पाठशाला खोलने के लिए ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले को लगातार बहुत अधिक मुश्किलों तथा बहिष्कारो का सामना करना पड़ा।
ज्योतिबा फुले के धर्मभीरू पिता ने बहू – बेटे को घर से निकाल दिया। सावित्री बाई फुले को तरह-तरह से अपमानित किया जाता था लेकिन उन्होंने 1840-1890 तक 50 वर्षों तक एक प्रण होकर अपना मिशन पूरा किया। उन्होंने मिशनरी औरतों की तरह किसानों और अछूतों की झुग्गी-झोपड़ी में जाकर काम किया। वे दलितों और शोषितो के हक में खड़े हो गए महात्मा फुले और सावित्रीबाई का अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन एक मिसाल बन गया।
लिखका ‘सुधा अरोड़ा ’ बताती है कि ज्योतिबा फूले का नाम भारत के प्रमुख पांच समाज-सुधारकों की सूची में शामिल नहीं किया जाता। यह कोई अचानक घटित हुई किसी घटना का परिणाम नहीं है , कि भारत के समाज को प्रगति और परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ाने वाले ज्योतिबा फुले को इस सूची में विलग कर दिया गया। वास्तव में उनके सराहनीय कार्य व महत्वपूर्ण भूमिका को जानबूझकर अनदेखा किया गया क्योंकि सूची को तैयार करने वाले समाज के उच्च वर्ग के लोग थे।
उच्चवर्गीय समाज को प्रतिनिधित्व देने वाले यह लोग निम्नवर्गीय ज्योतिबा फूले को महात्मा अथवा समाज-सुधारक मानने को तैयार नहीं थे ,क्योंकि ज्योतिबा फूले ब्राह्मण के एकाधिकार व ऐसी शिक्षा-पद्धति के विरुद्ध थे जो परंपरागत सामाजिक मूल्यों को ही नहीं रखना चाहती थीं।
इसका कारण यह है कि ,ज्योतिबा फुले ने पूंजीवादी और पुरोहितों वादी मानसिकता पर तीव्र प्रहार किए , उन्होंने निम्न वर्ग को अधिकार दिलाने के लिए ‘सत्यशोधक समाज’ को भी स्थापना किया व ऐसा साहित्य रचा जिसमें उनके क्रांतिकारी विचार सम्मिलित थे। इनके माध्यम से उन्होंने अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष किया और समाज-सुधारक के अपने प्रयासों का प्रमाण दिया।
शब्दार्थ :–
- अप्रत्याशित= जिसकी उम्मीद ना हो
- शुमार= गिनती, शामिल
- उच्च वर्गीय= ऊंची जाति के
- वर्चस्व= दबदबा, प्रधानता
- कायम= स्थिर
- पूंजीवादी= पूंजी को सर्वाधिक महत्व प्रदान करने वाली
- अधिपत्य= प्रभुत्व अधिकार
- तहत= अधीन
- खिलाफ= विरुद्ध
- संग्रहित= एकत्र किया गया
- अवधारणा= विचार सुविचारित धारणा
- सर्वांगीण= सभी अंगों में व्याप्त होने वाला
- असलियत= वास्तविकता
- पर्दाफाश= उजागर करना , भंडाफोड़
- गुलामगिरी= लोगों से गुलामी कराना
- पूर्ण विराम= पूरी तरह समाप्त करना
- मठाधीश= धर्म तथा वर्ग के नाम पर समूह बनाने और अपना निर्णय थोपने वाले
- अग्रसर= आगे बढ़ा हुआ
- ग्रह शक्ति= ग्रहण करने की शक्ति
- अनीतिपुणे= अनैतिक या अन्यायपूर्ण
- तकलीफ= कष्ट
- हक= अधिकार
- आमादा= तैयार, तत्पर
- मिसाल= उदाहरण
- संभ्रांत= घबराया हुआ
- प्रतिस्पर्धा= होड़ प्रतियोगिता
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