Bal Ram Katha is a book containing various chapters of stories about Ram and his family and all of the stories that children grow up hearing. About Ram, we know about the Ramayana, but the Bal Ram Katha propagates a lot more stories about the god so that students get a fair idea of Hindu culture and its history and significance. In a country like India, where culture takes centre-stage in every aspect of life, it is important to know these stories.
Table of Contents
Chapter-4 राम का वन-गमन सार Summary Class 6th | Hindi Bal Ram Katha
पाठ का सार
कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी थी। सारे नगर में राम के राज्याभिषेक का उत्साह था। गुरु वशिष्ठ, महामंत्री सुमंत्र सभी शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे। महाराज के न आने पर महर्षि ने सुमंत्र को राजभवन भेजा। मंत्री सुमंत्र ने देखा महाराज पलंग पर बीमार अवस्था में पड़े हैं। दशरथ ने टूटते स्वर में राम से मिलने की इच्छा जाहिर की।
राम के साथ लक्ष्मण भी वहाँ आ गए। राम ने पिता और माता कैकेयी को प्रणाम किया। राजा दशरथ उन्हें देखकर राम कहकर मूर्छित हो गए। होश आने पर भी वे कुछ नहीं बोले। राम ने पिता से पूछा-“पिताजी मुझसे कोई अपराध हुआ है? कैकेयी बोली-“महाराज दशरथ ने मुझे दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात्रि दोनों वर माँगे। जिससे यह पीछे हट रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का ही हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में रहो| राम पिता के वचन को पूरा करने के लिए आज ही वन जाने के लिए तैयार हो गए। कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माता कौशल्या के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकेयी के भवन में हुए वार्तालाप के बारे में बताया और अपना निर्णय सुनाया। कौशल्या ने उन्हें अनुचित राजाज्ञा न मानने के लिए कहा पर राम ने इसे पिता की आज्ञा मानकर माता से वन जाने के लिए आशीर्वाद माँगा। कौशल्या ने अपने पुत्र को दसों दिशाओं को जीतने का आशीर्वाद दिया।
राम के साथ लक्ष्मण भी वहाँ आ गए। राम ने पिता और माता कैकेयी को प्रणाम किया। राजा दशरथ उन्हें देखकर राम कहकर मूर्छित हो गए। होश आने पर भी वे कुछ नहीं बोले। राम ने पिता से पूछा-“पिताजी मुझसे कोई अपराध हुआ है? कैकेयी बोली-“महाराज दशरथ ने मुझे दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात्रि दोनों वर माँगे। जिससे यह पीछे हट रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का ही हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में रहो| राम पिता के वचन को पूरा करने के लिए आज ही वन जाने के लिए तैयार हो गए। कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माता कौशल्या के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकेयी के भवन में हुए वार्तालाप के बारे में बताया और अपना निर्णय सुनाया। कौशल्या ने उन्हें अनुचित राजाज्ञा न मानने के लिए कहा पर राम ने इसे पिता की आज्ञा मानकर माता से वन जाने के लिए आशीर्वाद माँगा। कौशल्या ने अपने पुत्र को दसों दिशाओं को जीतने का आशीर्वाद दिया।
लक्ष्मण राम के इस निर्णय से सहमत न होकर इस आज्ञा का विरोध करना चाहते थे| राम ने उन्हें समझाया| कौशल्या-भवन से राम सीता के पास गए और उसे सारी बातें बताकर वन जाने के लिए विदा माँगी। सीता उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गई क्योंकि उसे उसके पिता ने सदा अपने पति की छाया बनकर रहने का उपदेश दिया था। लक्ष्मण भी राम के साथ जाने के लिए तैयार हो गए। तीनों वन जाने के लिए तैयार होकर पिता का आशीर्वाद लेने आए। वहाँ तीनों रानियाँ, मंत्रिगण आदि भी उपस्थित थे। सब कैकेयी को समझा रहे थे, पर वह टस-से-मस नहीं हुईं। दशरथ ने कहा कि – पुत्र मैं वचन से बँधा हूँ परन्तु तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बनाकर राज संभालो। राम ने उन्हें समझाया कि उसे राज्य का लोभ नहीं था। कैकेयी ने राम, लक्ष्मण और सीता को वल्कल वस्त्र दिए। उन्होंने राजसी वस्त्र त्याग कर तपस्वियों के वस्त्र पहन लिए और महल से बाहर आ गए।
महल के बाहर सुमंत्र रथ लेकर खड़े थे। राम, सीता और लक्ष्मण रथ पर सवार हो गए। राम के रथ को तेज़ चलाने के लिए कहा। सुमंत्र ने शाम तक राम, लक्ष्मण व सीता को श्रृंगवेरपुर में पहुँचा दिया। निषादराज गुह ने उसका स्वागत किया। सुमंत्र के अयोध्या लौटते ही सभी लोगों ने तथा महाराज ने प्रश्न पूछने शुरू किए। वन-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। राम का वियोग उनसे सहा नहीं गया। दूसरे दिन महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद् से चर्चा की कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए। एक घुड़सवार दूत को भरत को लाने के लिए भेजा गया तथा उसे भरत को अयोध्या की घटनाएँ न बताने को कहा गया|
शब्दार्थ –
• कोलाहल – शोर-शराबा का स्थान
• विस्मित – हैरान
• राज्याभिषेक – राजतिलक
• शास्त्र सम्मत – शास्त्रों के अनुसार
• असहज – जो स्वाभाविक न हो
• स्पंदनहीन – कोई हरकत न होना आयोजन – प्रबंध
• क्षीण – कमज़ोर
• मंगलकारी – शुभ
• अनिष्ठ – नुकसान
• प्रतिवाद – विरोध
• वल्कल – पेड़ों की छाल
• विचलित – व्याकुल
• दूत – संदेशवाहक
महल के बाहर सुमंत्र रथ लेकर खड़े थे। राम, सीता और लक्ष्मण रथ पर सवार हो गए। राम के रथ को तेज़ चलाने के लिए कहा। सुमंत्र ने शाम तक राम, लक्ष्मण व सीता को श्रृंगवेरपुर में पहुँचा दिया। निषादराज गुह ने उसका स्वागत किया। सुमंत्र के अयोध्या लौटते ही सभी लोगों ने तथा महाराज ने प्रश्न पूछने शुरू किए। वन-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। राम का वियोग उनसे सहा नहीं गया। दूसरे दिन महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद् से चर्चा की कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए। एक घुड़सवार दूत को भरत को लाने के लिए भेजा गया तथा उसे भरत को अयोध्या की घटनाएँ न बताने को कहा गया|
शब्दार्थ –
• कोलाहल – शोर-शराबा का स्थान
• विस्मित – हैरान
• राज्याभिषेक – राजतिलक
• शास्त्र सम्मत – शास्त्रों के अनुसार
• असहज – जो स्वाभाविक न हो
• स्पंदनहीन – कोई हरकत न होना आयोजन – प्रबंध
• क्षीण – कमज़ोर
• मंगलकारी – शुभ
• अनिष्ठ – नुकसान
• प्रतिवाद – विरोध
• वल्कल – पेड़ों की छाल
• विचलित – व्याकुल
• दूत – संदेशवाहक
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