सार
‘दीवानों की हस्ती’ कविता को लिखा है भगवतीचरण शर्मा ने| यह कविता आजादी से पहले की है| कवि ने उन दीवानों अर्थात उन वीरों का वर्णन किया है जो देश की आजादी के लिए अपना सबकुछ लुटाने को तैयार रहते हैं|
हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?
कवि कहते हैं दीवाने अर्थात वीर देश की आजादी के लिए कुछ भी करने को तत्पर हैं| ये बेफिक्र लोग हैं| जहाँ भी ये जाते हैं, खुशियाँ खुद चली आती हैं| ये लोग एक जगह नहीं टिकते| जब ये आते हैं तो कुछ के चेहरों पर ख़ुशी यानी अंग्रेज़ सरकार द्वारा प्रताड़ित लोगों के चेहरों पर ख़ुशी तो वहीं जाते हैं यानी शहीद होते हैं तो उन लोगों के आँखों में आँसू छोड़ जाते हैं| उन्हें जल्दी वापस जाता देख लोगों उनसे पूछना चाहते हैं कि तुम अभी तो आए हो और अभी किधर जा रहे हो।
किस ओर चले? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले।
दो बात कही, दो बात सुनी;
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले।
दीवाने लोगों से कहते हैं कि वे कहाँ जा रहे हैं यह उनसे ना पूछे चूँकि मंजिल किधर है यह उन्हें भी नहीं पता| वे मंजिल कि ओर चलते जाने को ही जीवन समझते हैं| वे जग से दुःख लेते जा रहे हैं और अपने गुण और खुशियाँ देते जा रहे हैं| मंजिल के रास्ते में दीवानों ने लोगों पर हो रहे अत्याचारों, उनके विचारों को सुना और कुछ अपने विचारों को भी रखा| ऐसा कर उन्हें हंसी और दुःख दोनों का अनुभव हुआ| लेकिन इस सुख-दुख के चक्र को उन्होंने एक समान माना| न तो सुख से अधिक खुश हुए और न ही दुख से अधिक दुखी। इसी तरह इन्होनें अपना जीवन जिया।
हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी-सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।
अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहें रुकनेवाले!
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले।
दीवाने इस भिखमंगों की दुनिया यानी गरीब स्नेहरहित लोगों के लिए अपना प्यार लुटाया| ऐसा करते समय उन्होंने कोई भेदभाव नहीं किया| इन सब के बावजूद वे अपने लक्ष्य यानी आजादी से दूर रहे, इस बात का भी भार उन्होंने अपने सर लेकर दुनिया से विदा हुए| दीवानों के लिए कौन अपना कौन पराया| वे धर्म, जाति को नहीं मानते| उनका लक्ष्य तो केवल आजादी है ताकि सब ख़ुशी से रहें| हंसी से रहने के लिए जो बंधन दीवानों ने बनाये थे जब वह आजादी छिनने लगे तब उन्होंने खुद इन बन्धनों को भी तोड़ा| धन्यवाद|
Discover more from EduGrown School
Subscribe to get the latest posts sent to your email.