डायरी के पन्ने Class 12 Hindi Vitan NCERT Books Solutions
अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न 1. “यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज है। एक ऐसी आवाज, जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है।” इल्या इहरनबुर्ग की इस टिप्पणी के सन्दर्भ में ऐनी फ्रैंक की डायरी के पठित अंशो पर विचार करें।
ऐनी फ्रैंक की डायरी में उनके निजी जीवन का वर्णन नहीं किया गया है बल्कि साठ लाख यहूदियों पर अत्याचार किए गए थे; उनकी यह जीती जागती कहानी हैं। यह लड़की न तो कोई संत थी, न ही कोई कवि; बल्कि हिटलर के अत्याचारों द्वारा भूमिगत रहने वाले परिवार की एक आम सदस्य थी। उस समय यहूदी लोग फटे पुराने कपड़े और घिसे पिटे जूते पहनकर समय काट रहे थे। राशन की बहुत कमी रहती थी और बिजली का कोटा निर्धारित था। जब कोई हवाई आक्रमण होता था तो बेचारे कांप जाते थे। इसलिए यह कहना उचित है कि डायरी के पन्ने में वर्णित कहानी किसी एक परिवार की नहीं बल्कि साठ लाख लोगों की कहानी है।
प्रश्न 2. “काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता। अफसोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला-।” क्या आपको लगता है कि एन के इस कथन में आप उसके डायरी लेखन का कारण छिपा है?
यह सच्चाई है कि लेखक अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए कविता, कहानी या कोई लेख लिखता है। परंतु अगर उसे कोई गंभीर श्रोता नहीं मिले तो वह किसी कल्पित पात्र अथवा पाठकों के लिए अपनी अभिव्यक्ति करता है। ऐनी फ्रैंक के सामने भी यही स्थिति थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि भूमिगत आवास में क्या करें? वह बाहर की प्रकृति को देखना चाहती थी परंतु यह वर्जित था। उसकी भावनाओं को और उसकी बातों को सुनने वाला कोई नहीं था। इसलिए उसने अपने उद्गार इस डायरी में व्यक्त किए हैं।
प्रश्न 3. “प्रकृति-प्रदत-प्रजनन शक्ति के उपयोग का अधिकार बच्चे पैदा करें या न करें अथवा कितने बच्चे पैदा करें- इस की स्वतंत्रता स्त्री से छीनकर हमारी विश्व-व्यवस्था ने न सिर्फ स्त्री को व्यक्तित्व विकास के अनेक अवसरों से वंचित किया है बल्कि जनाधिक्य की समस्या भी पैदा की है।” ऐन की डायरी के 13 जून 1944 के अंश में व्यक्त विचारों के संदर्भ में इस कथन का औचित्य ढूँढें।
एन का विचार है कि पुरुष शारीरिक दृष्टि से सक्षम होता है और नारियाँ कमजोर होती है। इसलिए पुरुष नारियों पर शासन करते हैं। बच्चे को जन्म देते समय नारी जो पीड़ा व व्यथा भोगती है। वह युद्ध में घायल हुए सैनिकों से कम नहीं है। सच्चाई तो यह है कि नारी अपनी बेवकूफी के कारण अपमान व उपेक्षा को सहन करती रहती है। परंतु नारियों को समाज में उचित सम्मान मिलना चाहिए। उनका अभिप्राय यह नहीं है कि महिलाएँ बच्चों को जन्म देना बंद कर दे; प्रकृति चाहती है कि महिलाएँ बच्चों को जन्म दे। समाज में औरतों का योगदान विशेष महत्त्व रखता है अतः स्त्रियों को भी उचित सम्मान मिलना चाहिए।
प्रश्न 4. “ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज है तो साथ ही उसके निजी सुख-दुख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी। इन पृष्ठों में दोनों का फर्क मिट गया है।” इस कथन पर विचार करते हुए अपनी सहमति और असहमति तर्कपूर्वक व्यक्त करें।
डायरी-लेखक जब अपने जीवन का वर्णन करता है तब वह अपने आसपास के वातावरण पर भी प्रकाश डालता है। एन एक सामान्य लड़की है। वह कोई साहित्यकार नहीं है। फिर भी उसने अपने निजी सुख-दुख और भावनात्मक उथल पुथल का संवेदनात्मक वर्णन किया है। वे भूमिगत होकर अभावमय और कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। लेकिन एन तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करती है। जैसे अज्ञातवास जाने के कारण आवास में जर्मनों के डर के कारण दिन-रात अंधकार में छिपकर रहना, ब्रिटेन द्वारा हालैंड को मुक्त कराने का प्रयास करना, प्रतिदिन वायुयानों द्वारा बारूद की वर्षा करना आदि तत्कालीन ऐतिहासिक दौर के जीवंत दस्तावेज भी कहे जा सकते हैं। एन ने निजी जीवन की व्यथा के साथ-साथ ऐतिहासिक तथ्यों का यदा कदा वर्णन किया है जिससे दोनों का अंतर मिट गया है।
प्रश्न 5. ऐन ने अपनी डायरी ‘किट्टी’ (एक निर्जीव गुड़िया) को संबोधित चिट्ठी की शक्ल में लिखने की जरूरत क्यों महसूस की होगी?
आठ सदस्य अज्ञातवास में रह रहे हैं। इनमें से ऐनी सबसे छोटी आयु की लड़की थी। परंतु आठ सदस्यों में से कोई भी उसकी भावनाओं को नहीं समझता था। भूमिगत आवास में से बाहर निकलना संभव नहीं था। उसकी माँ केवल उपदेश देती थी। मिस्टर वानदान और मिसेज़ वानदान उसकी हर बात की नुक्ताचीनी करते रहते थे। यही बातचीत उसकी डायरी के पन्ने बन गए। किट्टी को संबोधित करके डायरी लिखना उसकी मजबूरी थी।
डायरी के पन्ने
अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1:
ऐन-फ्रैंक का परिवार सुरक्षित स्थान पर जाने से पहले किस मनोदशा से गुज़र रहा था और क्यों? ऐसी ही परिस्थितियों से आपको दो-चार होना पड़े तो आप क्या करेंगे?
उत्तर –
द्रवितीय विश्व-युद्ध के समय हॉलैंड के यहूदी परिवारों को जर्मनी के प्रभाव के कारण बहुत सारी अमानवीय यातनाएँ सहनी पड़ीं। लोग अपनी जान बचाने के लिए परेशान थे। ऐसे कठिन समय में जब ऐन फ्रैंक के पिता को ए०एस०ए० के मुख्यालय से बुलावा आया तो वहाँ के यातना शिविरों और काल-कोठरियों के दृश्य उन लोगों की आँखों के सामने तैर गए। ऐन फ्रैंक और उसका परिवार घर के किसी सदस्य को नियति के भरोसे छोड़ने के पक्ष में न था। वे सुरक्षित और गुप्त स्थान पर जाकर जर्मनी के शासकों के अत्याचार से बचना चाहते थे। उस समय ऐन के पिता यहूदी अस्पताल में किसी को देखने गए थे। उनके आने की प्रतीक्षा की घड़ियाँ लंबी होती जा रही थीं।
दरवाजे की घंटी बजते ही लगता था कि पता नहीं कौन आया होगा। वे भय एवं आतंक के डर से दरवाजा खोलने से पूर्व तय कर लेना चाहते थे कि कौन आया है? वे घंटी बजते ही दरवाजे से उचककर देखने का प्रयास करते कि पापा आ गए कि नहीं। इस प्रकार ऐन फ्रैंक का परिवार चिंता, भय और आतंक के साये में जी रहा था। यदि ऐसी ही परिस्थितियों से हमें दो-चार होना पड़ता तो मैं अपने परिवार वालों के साथ उस अचानक आई आपदा पर विचार करता और बड़ों की राय मानकर किसी सुरक्षित स्थान पर जाने का प्रयास करता। इस बीच सभी से धैर्य और साहस बनाए रखने का भी अनुरोध करता।
प्रश्न 2:
हिटलर ने यहूदियों को जातीय आधार पर निशाना बनाया। उसके इस कृत्य को आप कितना अनुचित मानते हैं? इस तरह का कृत्य मानवता पर क्या असर छोड़ता है? उसे रोकने के लिए आप क्या उपाय सुझाएँगे?
उत्तर –
हिटलर जर्मनी का क्रूर एवं अत्याचारी शासक था। उसने जर्मनी के यहूदियों को जातीयता के आधार पर निशाना बनाया। किसी जाति-विशेष को जातीय कारणों से ही निशाना बनाना अत्यंत निंदनीय कृत्य है। यह मानवता के प्रति अपराध है। इस घृणित एवं अमानवीय कृत्य को हर दशा में रोका जाना चाहिए, भले ही इसे रोकने के लिए समाज को अपनी कुर्बानी देनी पड़े। हिटलर जैसे अत्याचारी शासक मनुष्यता के लिए घातक हैं। इन लोगों पर यदि समय रहते अंकुश न लगाया गया तो लाखों लोग असमय और अकारण मारे जा सकते हैं। उसका यह कार्य मानवता का विनाश कर सकता है। अत: उसे रोकने के लिए नैतिक-अनैतिक हर प्रकार के हथकंडों का सहारा लिया जाना चाहिए। इस प्रकार के अत्याचार को रोकने के लिए मैं निम्नलिखित सुझाव देना चाहूँगा।
पीड़ित लोगों के साथ समस्या पर विचार-विमर्श करना चाहिए।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हिंसा का जवाब हिंसा से देकर उसे शांत नहीं किया जा सकता, इसलिए इसका शांतिपूर्ण हल खोजने का प्रयास करना चाहिए।
अहिंसात्मक तरीके से काम न बनने पर ही हिंसा का मार्ग अपनाने के लिए लोगों से कहूँगा।
मैं लोगों से कहूँगा कि मृत्यु के डर से यूँ बैठने से अच्छा है, अत्याचारी लोगों से मुकाबला किया जाए। इसके लिए संगठित होकर मुकाबला करते हुए मुँहतोड़ जवाब देना चाहिए।
हिंसा के खिलाफ़ विश्व जनमत तैयार करने का प्रयास करूंगा ताकि विश्व हिटलर जैसे अत्याचारी लोगों के खिलाफ़ हो जाए और उसकी निंदा करते हुए उसके कुशासन का अंत करने में मदद करे।
प्रश्न 3:
ऐन फ्रैंक ने यातना भरे अज्ञातवास के दिनों के अनुभव को डायरी में किस प्रकार व्यक्त किया है? आपके विचार से लोग डायरी क्यों लिखते हैं?
उत्तर –
द्रवितीय विश्व-युद्ध के समय जर्मनी ने यहूदी परिवारों को अकल्पनीय यातना सहन करनी पड़ी। उन्होंने उन दिनों नारकीय जीवन बिताया। वे अपनी जान बचाने के लिए छिपते फिरते रहे। ऐसे समय में दो यहूदी परिवारों को गुप्त आवास में छिपकर जीवन बिताना पड़ा। इन्हीं में से एक ऐन फ्रैंक का परिवार था। मुसीबत के इस समय में फ्रैंक के ऑफ़िस में काम करने वाले इसाई कर्मचारियों ने भरपूर मदद की थी। ऐन फ्रैंक ने गुप्त आवास में बिताए दो वर्षों के समय के जीवन को अपनी डायरी में लिपिबद्ध किया है। फ्रैंक की इस डायरी में भय, आतंक, भूख, प्यास, मानवीय संवेदनाएँ, घृणा, प्रेम, बढ़ती उम्र की पीड़ा, पकड़े जाने का डर, हवाई हमले का डर, बाहरी दुनिया से अलग-थलग रहकर जीने की पीड़ा, युद्ध की भयावह पीड़ा और अकेले जीने की व्यथा है।
इसके अलावा इसमें यहूदियों पर ढाए गए जुल्म और अत्याचार का वर्णन किया गया है। मेरे विचार से लोग डायरी इसलिए लिखते हैं क्योंकि जब उनके मन के भाव-विचार इतने प्रबल हो जाते हैं कि उन्हें दबाना कठिन हो जाता है और वे किसी कारण से दूसरे लोगों से मौखिक रूप में उसे अभिव्यक्त नहीं कर पाते तब वे एकांत में उन्हें लिपिबद्ध करते हैं। वे अपने दुख-सुख, व्यथा, उद्वेग आदि लिखने के लिए प्रेरित होते हैं। उस समय तो वे अपने दुख की अभिव्यक्ति और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए लिखते हैं पर बाद में ये डायरियाँ महत्वपूर्ण दस्तावेज बन जाती हैं।
प्रश्न 4:
‘डायरी के पन्ने’ की युवा लेखिका ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में किस प्रकार दवितीय विश्व-युद्ध में यहूदियों के उत्पीड़न को झेला? उसका जीवन किस प्रकार आपको भी डायरी लिखने की प्रेरणा देता है, लिखिए।
उत्तर –
ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में इतिहास के सबसे दर्दनाक और भयप्रद अनुभव का वर्णन किया है। यह अनुभव उसने और उसके परिवार ने तब झेला जब हॉलैंड के यहूदी परिवारों को जर्मनी के प्रभाव के कारण अकल्पनीय यातनाएँ सहनी पड़ीं। ऐन और उसके परिवार के अलावा एक अन्य यहूदी परिवार ने गुप्त तहखाने में दो वर्ष से अधिक समय का अज्ञातवास बिताते हुए जीवन-रक्षा की। ऐन ने लिखा है कि 8 जुलाई, 1942 को उसकी बहन को ए०एस०एस० से बुलावा आया, जिसके बाद सभी गुप्त रूप से रहने की योजना बनाने लगे।
यह उनके जीवन कर । दिन में घर के परदे हटाकर बाहर नहीं देख सकते थे। रात होने पर ही वे अपने आस-पास के परदे देख सकते थे। वे ऊल-जुलूल हरकतें करके दिन बिताने पर विवश थे। ऐन ने पूरे डेढ़ वर्ष बाद रात में खिड़की खोलकर बादलों से लुका-छिपी करते हुए चाँद को देखा था। 4 अगस्त, 1944 को किसी की सूचना पर ये लोग पकड़े गए। सन 1945 में ऐन की अकाल मृत्यु हो गई। इस प्रकार उन्होंने यहूदियों के उत्पीड़न को झेला। ऐन फ्रैंक का जीवन हमें साहस बनाए रखते हुए जीने की प्रेरणा देता है और प्रेरित करता है कि अपने जीवन और आस-पास की घटनाओं को हम लिपिबद्ध करें।
Discover more from EduGrown School
Subscribe to get the latest posts sent to your email.