Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी Class 9 important questions
प्रश्न 1 – ‘उनाकोटी’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर – उनाकोटी का अर्थ है एक कोटि, यानी एक करोड़ से एक कम। एक काल्पनिक कथा के अनुसार उनाकोटी में शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ हैं। विद्वानों का मानना है कि यह जगह दस वर्ग किलोमीटर से कुछ ज्यादा इलाके में फैली है और पाल शासन के दौरान नवीं से बारहवीं सदी तक के तीन सौ वर्षों में यहाँ चहल-पहल रहा करती थी। परन्तु यह जगह अब जंगल से घिर गई है और विद्रोहियों के हमलों के कारण अब यहाँ कुछ ज्यादा चहल-पहल नहीं होती। यहाँ पहाड़ों को अंदर से काटकर विशाल आधार-मूर्तियाँ बनाई गई हैं। एक बहुत विशाल चट्टान ऋषि भगीरथ की प्रार्थना पर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा के उतरने की पौराणिक कथा को चित्रित करती है। यहाँ पर भगवान शिव का चेहरा एक पूरी चट्टान पर बना हुआ है और उनकी जटाएँ दो पहाड़ों की चोटियों पर फैली हुई हैं। भारत में शिव की यह सबसे बड़ी आधार-मूर्ति है। यहाँ पूरे साल बहने वाला एक झरना पहाड़ों से उतरता है जिसे गंगा जितना ही पवित्र माना जाता है। यह पूरा इलाका ही प्रत्येक शब्द के अनुसार ही देवियों-देवताओं की मूर्तियों से भरा पड़ा है। यहाँ हर कदम पर आपको किसी न किसी देवी-देवता की मूर्ति जरूर मिल जाएगी। उनाकोटी भारत का सबसे बड़ा तो नहीं परन्तु सबसे बड़े भगवान् शिव के तीर्थों में से एक जरूर है। संसार के इस हिस्से में युगों से केवल स्थानीय आदिवासी धर्म ही फलते-फूलते रहे हैं, और यह एक प्रसिद्ध शिव तीर्थ है। बहुत अधिक मूर्तियाँ एक ही स्थान पर होने के कारण यह स्थान प्रसिद्ध है।
प्रश्न 2 – पाठ के संदर्भ में उनाकोटी में स्थित गंगावतरण की कथा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – उनाकोटी में पहाड़ों को अंदर से काटकर विशाल आधार मूर्तियाँ बनाई गई हैं। एक बहुत विशाल चट्टान ऋषि भगीरथ की प्रार्थना पर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा के उतरने की पौराणिक कथा को चित्रित करती है। गंगा के पृथ्वी पर उतरने के धक्के से कहीं पृथ्वी ध्ँसकर पाताल लोक में न चली जाए, इसी वजह से भगवान शिव को इसके लिए तैयार किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में उलझा लें और इसके बाद इसे धीरे-धीरे पृथ्वी पर बहने दें। लेखक कहता है कि यहाँ पर भगवान शिव का चेहरा एक पूरी चट्टान पर बना हुआ है और उनकी जटाएँ दो पहाड़ों की चोटियों पर फैली हुई हैं। भारत में शिव की यह सबसे बड़ी आधार-मूर्ति है। लेखक कहता है कि यहाँ पूरे साल बहने वाला एक झरना पहाड़ों से उतरता है जिसे गंगा जितना ही पवित्र माना जाता है।
प्रश्न 3 – कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से किस प्रकार जुड़ गया?
उत्तर – उनाकोटी में बनी इन आधार-मूर्तियों का निर्माण किसने किया है यह अभी तक पता नहीं किया जा सका हैं। स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। वह माता पार्वती का भक्त था और भगवान् शिव-माता पार्वती के साथ उनके निवास स्थान कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। परन्तु भगवान शिव उसे अपने साथ नहीं लेना चाहते थे। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को कैलाश ले चलने को तैयार तो हो गए लेकिन इसके लिए उन्होंने कल्लू के सामने एक शर्त रखी और वह शर्त थी कि उसे एक रात में शिव की एक करोड़ मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू अपनी धुन का पक्का व्यक्ति था इसलिए वह इस काम में जुट गया। लेकिन जब सुबह हुई तो कल्लू के द्वारा बनाई गई मूर्तियाँ एक करोड़ से एक कम निकलीं। कल्लू नाम की इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने पर अड़े भगवान् शिव ने इसी बात को बहाना बनाते हुए कल्लू कुम्हार को उसके द्वारा बनाई गई मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़ दिया और खुद माता पार्वती के साथ कैलाश की ओर चलते बने। इसी मान्यता के कारण कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से जुड़ गया।
प्रश्न 4 – मेरी रीढ़ में एक झुरझरी-सी दौड़ गई’-लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है?
उत्तर – लेखक राजमार्ग संख्या 44 पर टीलियामुरा से 83 किलोमीटर आगे मनु नामक स्थान पर शूटिंग के लिए जा रहा था। इस यात्रा में वह सी.आर.पी.एफ. की सुरक्षा में चल रहा था। लेखक और उसका कैमरा मैन हथियार बंद गाड़ी में चल रहे थे। लेखक अपनी शूटिंग के काम में ही इतना व्यस्त था कि उस समय तक डर के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं थी जब तक लेखक को सुरक्षा प्रदान कर रहे सी.आर.पी.एफ. कर्मी ने साथ की निचली पहाड़ियों पर किसी इरादे से रखे दो पत्थरों की तरफ लेखक का ध्यान आकर्षित नहीं हुआ। जब लेखक ने उन दो पत्थरों के बारे में पूछा तो सी.आर.पी.एफ. कर्मी ने लेखक को बताया कि दो दिन पहले ही उनके एक जवान को यहीं विद्रोहियों द्वारा मार डाला गया था। यह सुन कर लेखक कहता है कि डर के कारण लेखक की रीढ़ में एक झुरझुरी सी दौड़ गई थी। मनु तक की अपनी शेष यात्रा में लेखक अपने दिल से यह खयाल निकाल नहीं पाया कि उनको घेरे हुए सुंदर और पूरी तरह से शांतिपूर्ण लगने वाले जंगलों में किसी जगह बंदूकें लिए विद्रोही भी छिपे हो सकते हैं। अब लेखक को डर लगने लगा था।
प्रश्न 5 – त्रिपुरा ‘बहुधार्मिक समाज’ का उदाहरण कैसे बना?
उत्तर – बांग्लादेश से लोगों का बिना अनुमति के त्रिपुरा में आना और यहीं बस जाना जबरदस्त है और इसे यहाँ सामाजिक रूप से स्वीकार भी किया गया है। यहाँ की असाधारण जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण लेखक इसी को मानता है। असम और पश्चिम बंगाल से भी लोगों का त्रिपुरा प्रवास यहाँ होता ही है। कुल मिलाकर बाहरी लोगों की इस तरह भारी संख्या में आना और यही बस जाने के कारण जनसंख्या संतुलन को यहाँ के स्थानीय आदिवासियों के खिलाफ ला खड़ा किया है। त्रिपुरा में लगातार बाहरी लोगों के आने और यहीं बस जाने से कुछ समस्याएँ तो पैदा हुई हैं लेकिन इसके कारण यह राज्य विभिन्न धर्मों वाले समाज का उदाहरण भी बना है। त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चारों बड़े धर्मों का प्रतिनिध्त्वि मौजूद है। इस प्रकार यहाँ अनेक धर्मों का समावेश हो गया है। तब से यह राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण बन गया है।
प्रश्न 6 – टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय किन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ? समाज-कल्याण के कार्यों में उनका क्या योगदान था?
उत्तर – टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय जिन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ उनमें एक हैं- हेमंत कुमार जमातिया, जो त्रिपुरा के प्रसिद्ध लोक गायक हैं। जमातिया 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत किए जा चुके हैं। अपनी युवावस्था में वे पीपुल्स लिबरेशन आर्गनाइजेशन के कार्यकर्ता थे, पर अब वे चुनाव लड़ने के बाद जिला परिषद के सदस्य बन गए हैं। लेखक की मुलाकात दूसरी प्रमुख हस्ती मंजु ऋषिदास से हुई, जो आकर्षक महिला थी। वे रेडियो कलाकार भी थीं। रेडियो कलाकार होने के अलावा वे नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व भी करती थीं। लेखक ने उनके गाए दो गानों की शूटिंग की। गीत के तुरंत बाद मंजु ने एक कुशल गृहिणी के रूप में चाय बनाकर पिलाई।
प्रश्न 7 – कैलासशहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को क्या जानकारी दी?
उत्तर – जब लेखक और वह जिलाधिकारी चाय पी रहे थे उस दौरान उस जिलाधिकारी ने लेखक को बताया कि टी.पी.एस. (टरू पोटेटो सीड्स) की खेती को त्रिपुरा में, खासकर पर उत्तरी जिले में किस तरह से सफलता मिली है। आलू की बुआई के लिए आमतौर पर परंपरागत आलू के बीजों की शुरुआत दो मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर पड़ती है। इसके बरक्स टी.पी.एस की सिर्फ 100 ग्राम मात्रा ही एक हेक्टेयर की बुआई के लिए काफी होती है। त्रिपुरा से टी.पी.एस. को अब न सिर्फ असम, मिज़ोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को ही भेजा जाता है, बल्कि अब तो विदेशो में जैसे बांग्लादेश, मलेशिया और विएतनाम को भी भेजा जा रहा है।
प्रश्न 8 – त्रिपुरा के घरेलू उद्योगों पर प्रकाश डालते हुए अपनी जानकारी के कुछ अन्य घरेलू उद्योगों के विषय में बताइए?
उत्तर – त्रिपुरा के लघु उद्योगों में लोकप्रिय घरेलू गतिविधियों में से एक गति-विधि अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींकें तैयार करना है। अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींकें तैयार करने के बाद अगरबत्तियाँ बनाने के लिए इन्हें कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है। इनका प्रयोग अगरबत्तियाँ बनाने में किया जाता है। इन्हें कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है ताकि अगरबत्तियाँ तैयार की जा सकें। त्रिपुरा में बाँस बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। इस बाँस से टोकरियाँ सजावटी वस्तुएँ आदि तैयार की जाती हैं।
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