अतीत में दबे पाँव Class 12 Hindi Vitan NCERT Books Solutions
अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न 1. सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था। कैसे?
सिंधु सभ्यता के नगर नियोजित था। यहाँ की खुदाई में मिले काँसे के बर्तन, चाक पर बने मिट्टी के बर्तन, उन पर की गई चित्रकारी, चौपड़ की गोटियाँ कंघी, तांबे का दर्पण, मनके के हार, सोने के आभूषण आदि यह सिद्ध करते हैं कि सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी। उनके भंडार हमेशा अनाज से भरे रहते थे। साधन संपन्न होने के बावजूद इस सभ्यता में भव्यता का आडम्बर नहीं था। न ही वहाँ कोई भव्य प्रसाद, न ही कोई मंदिर, राजा का मुकुट, नाव, मकान और कमरे भी छोटे थे। इसलिए यह कहना सर्वथा उचित है कि सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी। उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था।
प्रश्न 2. ‘सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।’ ऐसा क्यों कहा गया?
उस काल के मनुष्यों की दैनिक प्रयोगों की वस्तुओं को देखकर यह प्रतीत होता है कि सिंधु घाटी के लोग कला प्रिय थे। वहाँ पर धातु तथा मिट्टी की मूर्तियाँ मिली है। वनस्पति, पशु पक्षियों की छवियाँ मुहरे, आभूषण, खिलौने, तांबे के बर्तन तथा सुघड़ लिपि भी प्राप्त हुई है। यहाँ भव्य मंदिर, स्मारकों के कोई अवशेष नहीं मिले। ऐसा कोई चित्र या मूर्ति प्राप्त नहीं हुई जिससे पता चले कि ये लोग प्रभुत्व तथा आडंबर प्रिय हो। इसलिए यह कहना उचित होगा कि सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म पोषित न होकर समाज-पोषित था।
प्रश्न 3. पुरातत्व के किन चिह्नों के आधार पर आप सकते हैं कि- “सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”
मोहनजोदड़ो के अजायबघर में जिन वस्तुओं तथा कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया है, उनमें औजार तो है परंतु हथियार नहीं है। आश्चर्य की बात यह है कि मोहनजोदड़ो हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक संपूर्ण सिंधु सभ्यता में किसी भी जगह हथियार के अवशेष नहीं मिले। इससे पता चलता है कि वहाँ कोई राजतंत्र नहीं था। इस सभ्यतामें सत्ता का कोई केंद्र नहीं था। यह सभ्यता स्वतः अनुशासन थी, ताकत के बल पर नहीं। यहाँ के लोग अपनी सोच समझ के अनुसार ही अनुशासित थे।
प्रश्न 4. ‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी फूटी सीढ़ी अब आपको कहीं नहीं ले जाती; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती है। लेकिन उन अधूरे पायदान पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर है, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उसके पार झाँक रहे हैं।’ इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?
पुरातत्व वेत्ताओं का विचार है कि मोहनजोदड़ो की सभ्यता 5000 वर्ष पुरानी है। मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिली टूटी फूटी सीढ़ियों पर पैर रखकर हम किसी छत पर नहीं पहुँच सकते परंतु जब हम इन सीढ़ियों पर पैर रखते हैं तो हमें गर्व होता है कि हमारी सभ्यता उस समय सुसंस्कृत तथा उन्नत सभ्यता थी। जबकि शेष संसार में उन्नति का सूरज अभी उगा भी नहीं था। हम इतिहास के पार देखते हैं कि इस सभ्यता के विकास में एक लंबा समय लगा होगा। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता संसार की शिरोमणि सभ्यता थी।
प्रश्न 5. टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
मोहनजोदड़ो हड़प्पा के टूटे-फूटे खण्डरों को देखने से हमारे मन में यह भाव उत्पन्न होता है कि आज से 5000 वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों की सभ्यता कितनी विकसित तथा साधन संपन्न थी। ये खंडर हमें सिंधु घाटी सभ्यता और संस्कृति से परिचित कराते हैं। हमारे मन में इन खण्डरों को देखकर धारना बनती है कि यहाँ हजारों साल पहले कितनी चहल-पहल रही होगी और लोगों के मन में कितनी सुख शांति रही होगी। काश! हम भी उनके पद चिन्हों का अनुसरण कर पाते। ये खण्डर हमारी प्राचीन सभ्यता के प्रमाण हैं जिन्हें हम कभी नहीं भुला सकते।
प्रश्न 6. इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नज़दीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (परीक्षोपयोगी नहीं है)
चारमीनार
इस बार की छुट्टियों में देखा हुआ हैदराबाद शहर का चारमीनार हमेशा यादों में बसा रहेगा। हैदराबाद शहर प्राचीन और आधुनिक समय का अनोखा मिश्रण है जो देखने वालों को 400 वर्ष पुराने भवनों की भव्यता के साथ आपस में सटी आधुनिक इमारतों का दर्शन कराता है।
चार मीनार 1591 में शहर के मोहम्मद कुली कुतुब शाह द्वारा बनवाई गई बृहत वास्तुकला का एक नमूना है।
शहर की पहचान मानी जाने वाली चार मीनार चार मीनारों से मिलकर बनी एक चौकोर प्रभावशाली इमारत है। यह स्मारक ग्रेनाइट के मनमोहक चौकोर खम्भों से बना है, जो उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम दिशाओं में स्थित चार विशाल आर्च पर निर्मित किया गया है। यह आर्च कमरों के दो तलों और आर्चवे की गैलरी को सहारा देते हैं। चौकोर संरचना के प्रत्येक कोने पर एक छोटी मीनार है। ये चार मीनारें हैं, जिनके कारण भवन को यह नाम दिया गया है। प्रत्येक मीनार कमल की पत्तियों के आधार की संरचना पर खड़ी है। इस तरह चारमीनार को देखकर हुई अनुभूति एक स्वप्न को साकार होने जैसी थी।
प्रश्न 7. नदी, कुएँ, स्नानघर और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल- संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दीजिए।
मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के समीप बसा था। नगर में लगभग 700 कुँए थे। प्रत्येक घर में स्नान घर व जल निकासी की व्यवस्था थी। अतः लेखक द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता को ‘जल संस्कृति’ कहना उचित है। इस संदर्भ में निम्नलिखित प्रमाण दिए जा सकते हैं:
क) यहाँ जल निकासी की व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि आज भी विकसित नगरों में ऐसी व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।
ख) प्रत्येक नाली पक्की ईंटों से निर्मित थी और ईंटो से ढकी थी।
ग) आज के नगरों तथा कस्बों में बदबू और गंदे नाले देखे जा सकते हैं।
प्रश्न 8. सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मोहनजोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है, क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह-चर्चा करें।
सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में हमें लिखित प्रमाण नहीं मिला हमें केवल अवशेषों के आधार पर अवधारणा बनानी पड़ी है जोकि तथ्यहीन नहीं है। खुदाई के दौरान सुघड़ लिपि मिली है जिसे भली प्रकार से समझा नहीं जा सकता। फिर भी अवशेषों के आधार पर व्यक्त की गई धारणा से हम असहमत नहीं है। निश्चय ही यह संस्कृति अबतक की प्राचीन समृद्ध संस्कृति है जो आज की मानव सभ्यता के लिए दिग्दर्शक बनी हुई है।
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अतीत में दबे पाँव
अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1:
मुअनजो-दड़ो सभ्यता में औजार तो मिले हैं, पर हथियार नहीं। यह देखकर आपको कैसा लगा? मनुष्य के लिए हथियारों को आप कितना महत्वपूर्ण समझते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
मुअनजो-दड़ो सभ्यता के अजायबघर में जो अवशेष रखे हैं, उनमें औजार बहुतायत मात्रा में हैं, पर हथियार नहीं। इस सभ्यता में उस तरह हथियार नहीं मिलते हैं, जैसा किसी राजतंत्र में मिलते हैं। दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले विभिन्न उपकरण और वस्तुएँ मिलती हैं। इन वस्तुओं में महल, उपासना स्थल, मूर्तियाँ, पिरामिड आदि के अलावा विभिन्न प्रकार के हथियार मिलते हैं, परंतु इस सभ्यता में हथियारों की जगह औजारों को देखकर लगा कि मनुष्य ने अपने जीने के लिए पहले औजार बनाए।
ये औजार उसकी आजीविका चलाने में मददगार सिद्ध होते रहे होंगे। मुअनजो-दड़ो में हथियारों को न देखकर अच्छा लगा क्योंकि मनुष्य ने अपने विनाश के साधन नहीं बनाए थे। इन हथियारों को देखकर मन में युद्ध, मार-काट, लड़ाई-झगड़े आदि के दृश्य साकार हो उठते हैं। इनका प्रयोग करने वालों के मन में मानवता के लक्षण कम, हैवानियत के लक्षण अधिक होने की कल्पना उभरने लगती है। मनुष्य के लिए हथियारों का प्रयोग वहीं तक आवश्यक है, जब तक उनका प्रयोग वह आत्मरक्षा के लिए करता है। यदि मनुष्य इनका प्रयोग दूसरों को दुख पहुँचाने के लिए करता है तो हथियारों का प्रयोग मानवता के लिए विनाशकारी सिद्ध होता है। मनुष्य के जीवन में हथियारों की आवश्यकता न पड़े तो बेहतर है। हथियारों का प्रयोग करते समय मनुष्य, मनुष्य नहीं रहता, वह पशु बन जाता है।
प्रश्न 2:
ऐतिहासिक महत्त्व और पुरातात्विक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर कुछ समस्याएँ उठ खडी होती हैं जो इनके अस्तित्व के लिए खतरा है। ऐसी किन्हीं दो मुख्य समस्याओं का उल्लेख करते हुए उनके निवारण के उपाय भी सुझाइए।
उत्तर –
ऐतिहासिक महत्त्व और पुरातात्विक दृष्टि से महत्त्व रखने वाले स्थानों का संबंध हमारी सभ्यता और संस्कृति से होता है। इन स्थानों पर उपलब्ध वस्तुएँ हमारी विरासत या धरोहर का अंग होती हैं। ये वस्तुएँ आने वाली पीढी की तत्कालीन सभ्यता से परिचित कराती हैं। यहाँ विविध प्रकार की बहुमूल्य वस्तुएँ भी होती है जो आकर्षण का केद्र होती हैं। इनमें सोने…चाँदी के सिक्के, मूर्तियाँ, आभूषण तथा तत्कालीन लोगों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले आभूषण, रत्नजड़ित वस्तुएँ या अन्य महँगी धातुओं से बनी वस्तुएँ होती है जो उस समय को समृद्धि की कहानी कहती हैं। मेरी दृष्टि में इन स्थलों पर दो मुख्य समस्याएँ उत्पन्न दुई हैं…एक है चोरी की और दूसरी उन स्थानों पर अतिक्रमण और अवैध कब्जे की। ये दोनों ही समस्याएँ इन स्थानों के अस्तित्व के लिए खतरा सिद्ध हुई हैं। लोगों का यह नैतिक दायित्व होना चाहिए कि वे इनकी रक्षा करें। जिन लोगों को इनकी रक्षा का दायित्व सौंपा गया है, उनकी जिम्मेदारी तो और भी बढ़ जाती है। दुर्भाग्य से ऐसे लोग भी चोरी की घटनाओं में शामिल पाए जाते हैं। वे निजी स्वार्थ और लालच के कारण अपना नैतिक दायित्व एवं कर्तव्य भूल जाते हैं। इसी प्रकार लोग उन स्थानों के आस–पास अस्थायी या स्थायी घर बनाकर कब्जे करने लगे है जो उनके सौंदर्य पर ग्रहण है। यह कार्य सुरक्षा अधिकारियों की मिली–भगत से होता है और बाद में सीमा पार कर जाता है।
ऐसे स्थानों की सुरक्षा के लिए सरकार को सुरक्षा–व्यवस्था कडी करनी चाहिए तथा लोगों को नैतिक संस्कार दिए जाने चाहिए। इसके अलावा इन घटनाओं में संलिप्त लोगों के पकड़े जाने पर कड़े दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि ऐसी घटना की पुनरावृत्तियों से बचा जा सके।
प्रश्न 3:
सिंधु घाटी सभ्यता को ‘जल–सभ्यता’ कहने का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए बताइए कि वर्त्तमान में जल–संरक्षण क्यों आवश्यक हो गया है और इसके लिए उपाय भी सुझाइए।
उत्तर –
सिंधु घाटी की सभ्यता में नदी, कुएँ, स्नानागार और तालाब तो बहुतायत मात्रा में मिले ही है, वहाँ जल–निकासी की उत्तम व्यवस्था के प्रमाण भी मिले हैं। इस कारण इस सभ्यता को ‘जल–सभ्यता‘ कहना अनुचित नहीं है। इसके अलावा यह सभ्यता नदी के किनारे बसी थी। मोहनजोदड़ो के निकट सिंधु नदी बहती थी। यहाँ पीने के जल का मुख्य स्रोत कुएँ थे। यहाँ मिले कुओं की संख्या सात सौ से भी अधिक है। मुअनजो–दड़ो में एक जगह एक पंक्ति में आठ स्नानाघर है जिनके द्वार एक–दूसरे के सामने नहीं खुलते। यहाँ जल के रिसाव को रोकने का उत्तम प्रबंध था। इसके अलावा, जल की निकासी के लिए पक्की नालियों और नाले बने हैं। ये प्रमाण इस सभ्यता को ‘जल–सभ्यता‘ सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं।
वर्तमान में विश्व की जनसंख्या तेज़ गति से बढी है, जिससे जल की माँग भी बही है। पृथ्वी पर तीन–चौथाई भाग में जल जरूर है, पर इसका बहुत थोडा–सा भाग ही पीने के योग्य है।मनुष्य स्वार्थपूर्ण गतिविधियों से जल को दूषित एवं बरबाद कर रहा है। अतः जल–संरक्षण की आवश्यकता बहुत ज़रूरी हो गई है। जल–संरक्षण के लिए –
*. जल का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
*. जल को दूषित करने से बचने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।
*. अधिकाधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।
*. फ़ैक्टरियों तथा घरों का दूषित एवं अशुद्ध जल नदी-नालों तथा जल-स्रोतों में नहीं मिलने देना चाहिए।
*. नदियों तथा अन्य जल-स्रोतों को साफ़-सुथरा रखना चाहिए ताकि हमें स्वच्छ जल प्राप्त हो सके।
प्रश्न 4:
‘अतीत में दबे पाँव’ में सिंधु-सभ्यता के सबसे बड़े नगर मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना आज की नगर-योजनाओं से किस प्रकार भिन्न है? उदाहरण देते हुए लिखिए।
उत्तर –
‘अतीत में दबे पाँव’ नामक पाठ में लेखक ने वर्णन किया है कि सिंधु-सभ्यता के सबसे बड़े नगर मुअनजो-दड़ो की नगर-योजना आज की नगर-योजनाओं से इस प्रकार भिन्न थी कि यहाँ का नगर-नियोजन बेमिसाल एवं अनूठा था। यहाँ की सड़कें चौड़ी और समकोण पर काटती हैं। कुछ ही सड़कें आड़ी-तिरछी हैं। यहाँ जल-निकासी की व्यवस्था भी उत्तम है। इसके अलावा, इसकी अन्य विशेषताएँ निम्नलिखित थी…
*. यहाँ सुनियोजित ढंग से नगर बसाए गए थे।
*. नगर निवासी की व्यवस्था उत्तम एवं उत्कृष्ट थी।
*. यहाँ की मुख्य सड़कें अधिक चौड़ी तथा गलियाँ सँकरी थीं।
*. मकानों के दरवाजे मुख्य सड़क पर नहीं खुलते थे।
*. कृषि को व्यवसाय के रूप में लिया जाता था।
*. हर जगह एक ही आकार की पक्की ईटों का प्रयोग होता था।
*. सड़क के दोनों ओर ढँकी हुई नालियाँ मिलती थीं।
*. हर नगर में अन्न भंडारगृह और स्नानागार थे।
*. यहाँ की मुख्य और चौड़ी सड़क के दोनों ओर घर हैं, जिनका पृष्ठभाग सड़क की ओर है।
इस प्रकार मुअनजो-दड़ो की नगर योजना अपने-आप में अनूठी मिसाल थी।
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