आओ मिलकर बचाएँ ,निर्मला पुतुल Class 11 Hindi Aroh Poem NCERT Books Solutions
Table of Contents
आओ मिलकर बचाएँ (अभ्यास प्रश्न)
प्रश्न 1. ‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?
‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए संथाली लोगों को विस्थापित होने से बचाने और उनको रोकने का प्रयास किया है। ‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए कवयित्री कहती हैं कि जिस स्थान पर हम बड़े हो रहे हैं। उसी स्थान की मिट्टी से हमें प्यार होना भी होना चाहिए। उस मिट्टी में मिले हमारे भाव को हमें संजोकर रखना है। उस मिट्टी की हमें इज्जत करनी चाहिए। उसकी गरिमा को भी बचाना होगा।
प्रश्न 2. भाषा में झारखंडीपन से क्या तात्पर्य है?
कवयित्री संथाल परगना की बात करती है। जिसमें झारखंडी बोली बोली जाती है। वहाँ के लोग इसी भाषा को समझते हैं और कहते हैं। अतः कवयित्री झारखंडी भाषा को बचाने का प्रयास करती है। अन्यथा लोग दूसरी भाषा को बोलना और समझना शुरू कर देंगे जिससे झारखंडी भाषा समाप्त हो जाएगी। अतः कवयित्री झारखंडी भाषा को बचाने का प्रयास करती है।
प्रश्न 3. दिल के भोलेपन के साथ साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
झारखंड के लोग भोलेभाले स्वभाव के हैं। वे छल-कपट से हमेशा दूर रहते हैं। इसलिए कवयित्री कहती है कि यदि दिल से भोले भाले बने रहे तो न तो हम सुरक्षित रह पाएँगे और न समाज। दिल के भोले होने के साथ-साथ हमें अपनी सही बात पर अड़ना और विवेकपूर्ण उत्तर देना भी आना चाहिए। दिल का भोलापन तो ठीक है परंतु सही बात पर अक्खड़पन होना, कार्य करने के लिए उत्साह होना और मेहनत करना भी अनिवार्य है।
प्रश्न 4. प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज के किन बुराइयों की ओर संकेत करता है?
कवयित्री ने शहरीकरण के नाम पर झारखंड क्षेत्र के विस्थापित संथाल समाज के आदिवासियों की बुरी हालात पर चिंता व्यक्त की है। यद्यपि सामाजिक बुराइयों के कारण उस क्षेत्र की प्रकृति विनाश के कगार पर है। समाज भी कुरीतियों के कारण बुराई की ओर बढ़ रहा है। उनके पास अपनी संस्कृति-सभ्यता को बचाने के लिए बहुत सी चीजें हैं जिन्हें उनकी धरोहर कहा जा सकता है।
प्रश्न 5. इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है- से क्या आशय है?
इस दौर में बजाने को बहुत कुछ बचा है। उन वस्तुओं को बचाना है जो हमारे सामाजिक व प्राकृतिक परिवेश को स्वच्छ बनाती है। उदाहरण के तौर पर जीवन सादगी, कठोर-परिश्रम प्राकृतिक प्रेम आदि के द्वारा हम संथाल परगना के लोगों के जीवन को सुखी बना सकते हैं। इसलिए कवयित्री ने कहा है कि अभी बचाने को बहुत कुछ बचा है।
प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उदघाटित कीजिए-
(क) ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
(ख) थोड़ा-सा विश्वास
थोडी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ।
उत्तर –
(क) इस पंक्ति में कवयित्री ने आदिवासी क्षेत्रों से विस्थापन की पीड़ा को व्यक्त किया है। विस्थापन से वहाँ के लोगों की दिनचर्या ठंडी पड़ गई है। हम अपने प्रयासों से उनके जीवन में उत्साह जगा सकते हैं। यह काव्य पंक्ति लाक्षणिक है इसका अर्थ है-उत्साहहीन जीवन। ‘गर्माहट’ उमंग, उत्साह और क्रियाशीलता का प्रतीक है। इन प्रतीकों से अर्थ गांभीर्य आया है। शांत रस विद्यमान है। अतुकांत अभिव्यक्ति है।
(ख) इस अंश में कवयित्री अपने प्रयासों से लोगों की उम्मीदें, विश्वास व सपनों को जीवित रखना चाहती है। समाज में बढ़ते अविश्वास के कारण व्यक्ति का विकास रुक-सा गया है। वह सभी लोगों से मिलकर प्रयास करने का आहवान करती है। उसका स्वर आशावादी है। ‘थोड़ा-सा’ ; ‘थोड़ी-सी’ व ‘थोड़े-से’ तीनों प्रयोग एक ही अर्थ के वाहक हैं। अत: अनुप्रास अलंकार है। उर्दू (उम्मीद), संस्कृत (विश्वास) तथा तद्भव (सपने) शब्दों का मिला-जुला प्रयोग किया गया है। तुक, छद और संगीत विहीन होते हुए कथ्य में आकर्षण है। खड़ी बोली का प्रयोग दर्शनीय है।
प्रश्न 7. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?
हमें अपने नगर और बस्ती के बढ़ते प्रदूषण और प्राकृतिक संपदा का विनाश होने से बचाना चाहिए। पर्यावरण मानव जाति के लिए सुरक्षा कवच के समान है। यदि प्रदूषण के कारण पर्यावरण को हानि होगी तो बस्ती में दुख-रोग आदि बढ़ने लगेंगे। हम कोशिश करेंगे कि हमारी बस्ती और नगर की वायु शुद्ध हो और इसके आसपास वृक्षारोपण किया जाए।
आओ मिलकर बचाएँ (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1:
आओ, मिलकर बचाएँ-कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर –
इस कविता में दोनों पक्षों का यथार्थ चित्रण हुआ है। बृहतर संदर्भ में यह कविता समाज में उन चीजों को बचाने की बात करती है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक परिवेश के लिए जरूरी है। प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आज आदिवासी समाज संकट में है, जो कविता का मूल स्वरूप है। कवयित्री को लगता है कि हम अपनी पारंपरिक भाषा, भावुकता, भोलेपन, ग्रामीण संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। प्राकृतिक नदियाँ, पहाड़, मैदान, मिट्टी, फसल, हवाएँ ये सब आधुनिकता का शिकार हो रहे हैं। आज के परिवेश में विकार बढ़ रहे हैं, जिन्हें हमें मिटाना है। हमें प्राचीन संस्कारों और प्राकृतिक उपादानों को बचाना है। वह कहती है कि निराश होने की बात नहीं है, क्योंकि अभी भी बचाने के लिए बहुत कुछ बचा है।
प्रश्न 2:
लेखिका के प्रकृतिक परिवेश में कौन-से सुखद अनुभव हैं?
उत्तर –
लेखिका ने संथाल परगने के प्राकृतिक परिवेश में निम्नलिखित सुखद अनुभव बताए हैं-
1. जगल की ताजा हवा
2. नदियों का निर्मल जल
3 पहाड़ी की शांति
4 गीतों की मधुर धुनें
5 मिट्टी की स्वाभाविक सुगंध
6 लहलहाती फसलें कीजिए।
प्रश्न 3:
बस्ती को बचाएँ डूबने से-आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर =
बस्ती के डूबने का अर्थ हैं पारंपरिक रीति रिवाजों का लोप हो जाना और मौलिकता खोकर विस्थापन की ओर बढ़ना। यह चिंता का विषय है। आदिवासियों की संस्कृति का लुप्त होना बस्ती के डूबने के समान है।
आओ मिलकर बचाएँ (पठित पद्यांश)
1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
अपनी बस्तियों की
न होने से
शहर की आबो हवा से बचाएँ उसे
अपने चहरे पर
सथिल परगान की माटी का रंग
बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
भाषा में झारखंडीयन
प्रश्न
1. कवयित्री वक्या बचाने का आहवान करती है?
2 संथाल परगना की क्या समस्या है?
3 झारखंडीपन से क्या आशय है?
4. काव्यांश में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
1. कवयित्री आदिवासी संभाल बस्ती को शहरी अपसंस्कृति से बचाने का आह्वान करती है।
2 संथाल परगना की समस्या है कि यहाँ कि भौतिक संपदा का बेदर्दी से शोषण किया गया है, बदले में यहाँ लोगों को कुछ नहीं मिलता। बाहरी जीवन के प्रभाव से संथाल की अपनी संस्कृति नष्ट होती जा रही है।
3. इसका अर्थ है कि झारखंड के जीवन के भोलेपन, सरलता, सरसता, अक्खड़पन, जुझारूपन गर्मजोशी के गुणों को बचाना।
4. काव्यांश में निहित संदेश यह है कि हम अपनी प्राकृतिक धरोहर नदी, पर्वत, पेड़, पौधे, मैदान, हवाएँ आदि को प्रदूषित होने से बचाएँ। हमें इन्हें समृद्ध करने का प्रयास करना चाहिए।
2. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
ठड़ी होती दिनचय में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन जुझारूपन भी
प्रश्न
1. आम व्यक्ति की दिनचर्या पर क्या प्रभाव पड़ा है।
2. जीवन की गर्माहट से क्या आशय है।
3. कवयित्री आदिवासियों की किस प्रवृत्ति को बचाना चाहती है।
4. मन का हरापन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर =
1, शहरी प्रभाव से आम व्यक्ति की दिनचर्या ठहर-सी गई है। उनमें उदासीनता बढ़ती जा रही है।
2. जीवन की गरमाहट का भाशय है-कार्य करने के प्रति उत्साह, गतिशीलता।
3, कवयित्री आदिवासियों के भोलेपन, अक्खड़पन व संघर्ष करने की प्रवृत्ति को बचाना चाहती है।
4. मन का हरापन से तात्पर्य है-मन की मधुरता, सरसता व उमंग।
3. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुन्हा की धार
जगंल की ताज हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोंधार
फलों की ललहाहट
प्रश्न
1. आदिवासी जीवन के विषय में बताइए।
2. भादिवासियों की दिनचर्या का अंग कौन-सी चीजें हैं?
3, कवयित्री किस किस चीज को बचाने का आहवान करती है।
4. भीतर की आग से क्या तात्पर्य है।
उत्तर –
1. आदिवासी जीवन में तीर, धनुष, कुल्हाड़ी का प्रयोग किया जाता है। आदिवासी जंगल, नदी, पर्वत जैसे प्राकृतिक चीजों से सीधे तौर पर जुड़े हैं। उनके गीत विशिष्टता लिए हुए हैं।
2. भादिवासियों की दिनचर्या का अंग धनुष तीर, व कुल्हाड़ियाँ होती हैं।
३, कवयित्री जंगलों की ताजा हवा, नदियों की पवित्रता, पहाड़ों के मौन, मिट्टी की खुशबू, स्थानीय गीतों द फसलों की लहलहाहट को बचाना चाहती है।
4. इसका तात्पर्य है आतरिक जोश व संघर्ष करने की क्षमता।
4. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकात
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी हरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शांति
प्रश्न
1. हँसने और गाने के बारे में कवयित्री क्या कहना चाहती है?
2. कवयित्री एकांत की इच्छा क्यों रखती है।
3. बच्चों, पशुओं व बूढों को किनकी आवश्यकता है?
4. कवयित्री शहरी प्रभाव पर क्या व्यंग्य करती है?
उत्तर –
1. कवयित्री कहती है कि झारखंड के क्षेत्र में स्वाभाविक हँसी व गाने अभी भी बचे हुए हैं। यहाँ संवेदना अभी पूर्णतः मृत नहीं हुई है। लोगों में जीवन के प्रति प्रेम है।
2. कवयित्री एकांत की इच्छा इसलिए करती है ताकि एकांत में रोकर मन की पीड़ा, वेदना को कम कर सके।
3. बच्चों को खेलने के लिए मैदान, पशुओं के लिए हरी हरी घास तथा बूढ़ों को पहाड़ों का शांत वातावरण चाहिए।
4. कवयित्री व्यंग्य करती है कि शहरीकरण के कारण अब नाचने-गाने के लिए स्थान नहीं है, लोगों की हँसी गायब होती जा रही है, जीवन की स्वाभाविकता समाप्त हो रही है। यहाँ तक कि रोने के लिए भी एकांत नहीं बचा है।
5. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
और इस अविश्वास भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोडे-से सपने
आओ मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा हैं।
अब भी हमारे पास
प्रश्न
1. कवयित्री ने आज के युग को कैसा बताया है।
2. कवयित्री क्या-क्या बचाना चाहती है?
3. कवयित्री ने ऐसा क्यों कहा कि बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास
4. कवयित्री का स्वर आशावादी है या निराशावादी?
उत्तर =
1. कवयित्री ने आज के युग को अविश्वास से युक्त बताया है। आज कोई एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करता।
2. कवयित्री थोड़ा सा विश्वास, उम्मीद व सपने बचाना चाहती है।
3. कवयित्री कहती हैं कि हमारे देश की संस्कृति व सभ्यता के सभी तत्वों का पूर्णतः विनाश नहीं हुआ है। अभी भी हमारे पास अनेक तत्व मौजूद हैं जो हमारी पहचान के परिचायक हैं।
4. कवयित्री का स्वर आशावादी है। वह जानती है कि आज घोर अविश्वास का युग है, फिर भी वह आस्था व सपनों के जीवित रखने की कआशा रखे हुए है।
आओ मिलकर बचाएँ
काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न
पूरी कविता से काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य के कुछ कॉमन पॉइंट्स:
● मुक्तक छंद का प्रयोग किया गया है।
● कविता मूल रूप से संथाली भाषा में लिखी गई है, जिसका हिंदी रूपांतरण किया गया है।
● कवयित्री ने संथाली समाज के प्रति अपनी चिंता प्रकट की है।
● सहज, सरल तथा स्वाभाविक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
● देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है।
● प्रसाद गुण तथा शांत रस का परिपाक है।
1
अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर को आबो हवा से बचाएँ उसे
बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती की
हड़िया में
अपने चहरे पर
संथाल परगना की माटी का रंग
भाषा में झारखंडीपन
प्रश्न
क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
ख) शिल्प सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर –
क) इस काव्यांश में कवयित्री स्थानीय परिवेश को बाहय प्रभाव से बचाना चाहती है। बाहरी लोगों ने इस क्षेत्र के प्राकृतिक व मानवीय संसाधनों को बुरी तरह से दोहन किया है। वह अपने संथाली लोक-स्वभाव पर गर्व करती है।
ख) प्रस्तुत काव्यांश में प्रतीकात्मकता है।
० ‘माटी का रंग लाक्षणिक प्रयोग है। यह सांस्कृतिक विशेषता का परिचायक है।
० नंगी होना’ के कई अर्थ है-
० मर्यादा छोड़ना।
० कपड़े कम पहनना।
० वनस्पतिहीन भूमि।
० उर्दू व लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग है।
० छदमुक्त कविता है।
० खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
2
ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन जुझारूपन भी
प्रश्न
क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
ख) शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर =
क) इस काव्यांश में कवयित्री ने झारखंड प्रदेश की पहचान व प्राकृतिक परिवेश के विषय में बताया है। वह लोकजीवन की सहजता को बनाए रखना चाहती है। वह पर्यावरण की स्वच्छता व निदषता को बचाने के लिए प्रयासरत है।
ख) ‘भीतर की आग” मन की इच्छा व उत्साह का परिचायक है।
० भाषा सहज व सरल है।
० छोटे-छोटे वाक्यांश पूरे बिंब को समेटे हुए हैं।
० खड़ी बोली है।
० अतुकांत शैली है।
Discover more from EduGrown School
Subscribe to get the latest posts sent to your email.