पाठ 2 – दोपहर का भोजन (Dophar ka Bhojan) अन्तरा भाग – 1 NCERT Class 11th Hindi Notes
सारांश
अमरकांत द्वारा रचित ‘दोपहर का भोजन’ कहानी गरीबी से जूझ रहे एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार की कहानी है| इस कहानी में समाज में व्याप्त गरीबी को चिन्हित किया गया है| मुंशीजी के पूरे परिवार का संघर्ष भावी उम्मीदों पर टिका हुआ है| सिद्धेश्वरी गरीबी के एहसास को मुखर नहीं होने देती और उसकी आँच से अपने परिवार को बचाए रखती है|
कहानी की नायिका सिद्धेश्वरी दोपहर का भोजन बनाकर अपने परिवार के सदस्यों की प्रतीक्षा करती है| वह गर्मियों की दोपहर में भूख से व्याकुल बैठी है क्योंकि घर में इतना खाना नहीं है कि दो रोटी खाकर वह अपना पेट भर सके| वह एक लोटा पानी ही पीकर अपनी भूख मिटाने का प्रयास करती है| वहीं सामने उसका छोटा बेटा खाट पर सोया हुआ है जो कुपोषण का शिकार है| दोपहर के बारह बज गए हैं और भोजन का समय हो गया है| तभी बड़ा बेटा रामचंद्र आकर चौकी पर बैठता है, जिसके चेहरे पर निराशा झलक रही है| वह एक दैनिक समाचार-पत्र के दफ्तर में प्रूफ रीडरी का काम सीखता है और अभी तक बेरोजगार है| सिद्धेश्वरी उसके सामने भोजन परोसती है| रामचंद्र के दो रोटी खा लेने के बाद वह उससे और रोटी लेने के लिए आग्रह करती है लेकिन वह भूख न होने का बहाना बनाकर मना कर देता है| वह अपने छोटे भाई मोहन के विषय में पूछता है| सिद्धेश्वरी उससे झूठ बोलती है कि वह अपने मित्र के यहाँ पढ़ने गया है| वह रामचंद्र को खुश करने के लिए यह भी कहती है कि मोहन हर समय उसकी प्रशंसा करता है ताकि वह थोड़ी देर के लिए अपने दुःख को भूल सके|
कुछ देर बाद उसका मँझला बेटा मोहन खाने के लिए आता है| सिद्धेश्वरी खाने में उसे भी दो रोटी, दाल और थोड़ी सब्जी परोसती है| सिद्धेश्वरी उससे भी झूठ बोलती है कि उसका बड़ा भाई रामचंद्र उसकी बहुत प्रशंसा कर रहा था| यह सुनकर मोहन प्रसन्न हो जाता है| सिद्धेश्वरी के कहने पर वह थोड़ी दाल पीकर ही पेट भरने का बहाना करता है और रोटी लेने से मना कर देता है| उसके बाद घर के मुखिया और सिद्धेश्वरी के पति मुंशी चंद्रिका प्रसाद आते हैं और खाना खाने बैठ जाते हैं| दो रोटी खाने के बाद सिद्धेश्वरी उनसे और रोटी लेने का आग्रह करती हैं लेकिन घर की वास्तविकता से परिचित मुंशीजी मना कर देते हैं| उसके सामने भी सिद्धेश्वरी दोनों बेटों की प्रशंसा करती है ताकि उनमें एकजुटता बनी रहे| सबके खाने के बाद सिद्धेश्वरी खाना खाने बैठती है जिसके हिस्से में केवल एक रोटी आती है| तभी उसकी नजर उसके छोटे बेटे प्रमोद पर पड़ती है जो सोया हुआ था| वह उसके लिए आधी रोटी रखकर स्वयं आधी रोटी खाकर पानी पी लेती है| खाना खाते समय उसकी आँखों से बहते आँसू उसकी विवशता को बयान करते हैं| पर्याप्त भोजन न होने के कारण भूख होते हुए भी वह भरपेट खाना नहीं खा पाती|
इस प्रकार ‘दोपहर का भोजन’ एक गरीब परिवार की विवशता को बयान करती कहानी है जिसमें परिवार के सभी लोग अभावग्रस्त तथा संघर्षपूर्ण वातावरण में खुश रहने का प्रयास करते हैं|
कथाकार-परिचय
जन्म एवं शिक्षा- अमरकांत का जन्म सन् 1925 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगरा गाँव में हुआ| उनकी मृत्यु सन् 2014 में हुई| उनका मूल नाम श्रीराम वर्मा है तथा आरंभिक शिक्षा बलिया में हुई| इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी,ए. की डिग्री प्राप्त की|
अमरकांत ने अपनी साहित्यिक जीवन की शुरुआत पत्रकारिता से की| वे नयी कहानी आंदोलन के एक प्रमुख कहानीकार हैं| उन्होंने अपनी कहानियों में शहरी और ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रं किया है| वे मुख्यतः मध्यवर्ग के जीवन की वास्तविकता और विसंगतियों को व्यक्त करने वाले कहानीकार हैं| उनकी शैली की सहजता और भाषा की सजीवता पाठकों को आकर्षित करती है| वे जीवन की कथा उसी ढंग से कहते हैं, जिस ढंग से जीवन चलता है|
प्रमुख रचनाएँ- उनकी प्रमुख रचनाएँ जिंदगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र-मिलन, कुहासा (कहानी संग्रह); सूखा पत्ता, ग्राम सेविका, काले उजले दिन, सुखजीवी, बीच की दीवार, इन्हीं हथियारों से (उपन्यास) हैं| अमरकांत ने बाल-साहित्य भी लिखा है| इस पुस्तक के लिए उनकी कहानी ‘दोपहर का भोजन’ ली गई है|
कठिन शब्दों के अर्थ
• व्यग्रता- व्याकुलता, घबराया हुआ
• बर्राक- याद रखना, चमकता हुआ
• पंडूक- कबूतर का तरह का एक प्रसिद्ध पक्षी
• कनखी- आँख के कोने से
• ओसारा- बरामदा
• निर्विकार- जिसमें कोई विकार या परिवर्तन न होता हो
• छिपुली- खाने का छोटा बर्तन
• अलगनी- कपडे टाँगने के लिए बाँधी गई रस्सी
• नाक में दम आना- परेशान होना
• जी में जी आना- चैन आ जाना
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