Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Summary
भारत की अतीत की झाँकी नेहरू जी इस पाठ के माध्यम से कहते हैं कि बीते सालों में उनका यह प्रयास रहा है कि वे भारत को समझें और उसके प्रति उनके प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करें। कभी-कभी उनके मन में यह भी विचार आता था कि आखिर भारत क्या है? यह भूतकाल की किन विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता था? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया? भारत उनके खून में रचा-वसा था। उन्होंने भारत को शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखा था। क्या अब वह अपनी शक्ति को खो दिया है? इतना विशाल जन समूह होने के बावजूद भारत के पास कुछ ऐसा है जिसे जानदार कहा जा सके। इस आधुनिक युग में तालमेल किस रूप में बैठता था।
उस समय नेहरू जी भारत के उत्तर पश्चिम में स्थित सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़े थे। इस नगर को 5000 वर्ष पहले का बताया गया है। यह एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी। इसका ठेठ भारतीयपन हमारी आधुनिक सभ्यता का आधार है। भारत ने फारस, मिश्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य एशिया तथा भूमध्यसागर के लोगों को प्रभावित किया तथा स्वयं भी उनसे प्रभावित हुआ। नेहरू जी ने आने वाले विदेशी विद्वान यात्री जो चीन, पश्चिमी व मध्य एशिया से आए थे, उनके द्वारा लिखित साहित्य का अध्ययन किया। उन्होंने पूर्वी एशिया, अंगकोर, बोरोबुदुर और बहुत सी जगहों से भारत की उपलब्धियों के बारे में जाना। हिमालय पर्वत व उनसे जुड़ी प्राचीन कथाओं को भी उन्होंने जाना। वे हिमालय में भी घूमते रहे जिसका पुराने मिथकों और दंत कथाओं के साथ निकट का संबंध है। पहाड़ों के प्रति विशेषकर कश्मीर के प्रति उनका विशेष लगाव रहा। भारत की विशाल नदियों ने भी उन्हें आकर्षित किया। इंडस या सिंधु के नाम पर हमारे देश का नाम इंडिया और हिंदुस्तान पड़ा। यमुना के चारों ओर नृत्य और नृत्य उत्सव और नाटक से संबद्ध न जाने कितनी पौराणिक कथाएँ एकत्र हैं। भारत की नदी गंगा ने भारत के हृदय पर राज किया है। प्राचीन काल से आधुनिक युग तक गंगा की गाथा भारत की सभ्यता और संस्कृति की कहानी है।
भारत के अतीत की कहानी को स्वरूप देनेवाली अजंता, एलोरा, ऐलिफेंटा की गुफाएँ व दिल्ली तथा आगरा की विशेष इमारतों ने भी नेहरू जी को भारत के अस्तित्व के बारे में अवगत करवाया।
जब भी वे अपने शहर इलाहाबाद या फिर हरिद्वार में महान-स्नान पर्व कुंभ के मेले को देखते तो उन्हें एहसास होता था कि हज़ारों वर्ष पूर्व से उनके पूर्वज भी इस स्नान के लिए आते रहे हैं। विदेशियों ने भी इन पर्यों के लिए बहुत कुछ लिखा। उन्हें इस बात की हैरानी थी कि वह कौन-सी प्रबल आस्था है जो भारतीयों को कई पीढ़ियों से भारत की इस प्रसिद्ध नदी की ओर खींचती रही है। उनकी यात्राओं ने अतीत में देखने की दृष्टि प्रदान की। उन्हें सच्चाई का बोध होने लगा। उनके मन में अतीत के सैकड़ों चित्र भरे पड़े थे। ढाई हजार वर्ष पहले दिया महात्मा बुद्ध का उपदेश उन्हें ऐसा लगता जैसे बुद्ध अपना पहला उपदेश अभी दे रहे हों, अशोक के पाषण स्तंभ अपने शिलालेखों के माध्यम से अशोक की महानता प्रकट करते, फतेहपुर सीकरी में अकबर सभी धर्मों में समानता को मानते हुए मनुष्य की शाश्वत समस्याओं का हल खोजता फिरता है।
इस प्रकार नेहरू जी को प्राचीन पाँच हज़ार वर्ष पूर्व से चली आ रही सांस्कृतिक परंपरा की निरंतरता में विलक्षणता साफ़ और स्पष्ट तथा वर्तमान के धरातल पर सजीव प्रतीत होती है।
भारत की शक्ति और सीमा
भारत की शक्ति और सीमा के बारे में खोज लंबे समय से हो रही है। नई वैज्ञानिक तकनीकों से पश्चिमी देशों को सैन्य शक्ति के विस्तार का मौका मिला। इन शक्तियों का प्रयोग कर इन देशों ने पूरब के देशों पर अधिकार कर लिया। प्राचीन काल में भारत में मानसिक सजगता और तकनीकी कौशल की कमी नहीं थी लेकिन बाद में इसमें काफ़ी गिरावट हो गई। नई खोजों की लालच में परिश्रम की कमी होने लगी। नित नए आविष्कार करने वाला भारत दूसरों का अनुकरण करने लगा। विकास के कार्यों में शिथिलता आने लगी। साहित्य रचना अधिक होने लगी। सुंदर इमारतों का निर्माण करने वाले भारत में पश्चिमी देशों के प्रभाव के कारण पच्चीकारी वाली नक्काशी की जाने लगी।
सरल, सजीव और समृद्ध भाषा की जगह अलंकृत और जटिल साहित्य-शैली विकसित हुई। विवेकपूर्ण चेतना लुप्त होती चली गई और अतीत की अंधी मूर्ति पूजा ने उसकी जगह ले ली। इस हालत में भारत का पतन होने लगा जबकि इस समय में विश्व के दूसरे हिस्से लगातार प्रगति करते रहे।
इन उपरोक्त बातों के साथ-साथ यह भी नहीं कहा जा सकता है कि इतना कुछ होने पर भी भारत की मज़बूती, दृढ़ता और अटलता को हिला नहीं सका। प्राचीन भारत का स्वरूप तो पुराने रूप में रहा लेकिन अंदर की गतिविधियाँ बदलती रहीं, भले ही नए लक्ष्य खींचे गए लेकिन पुरानी व नई सामंजस्य स्थापित करने की इच्छा बराबर बनी रही। इसी लालसा ने भारत को गति दी और पुराने के जगह नए विचारों को आत्मसात करने का सामर्थ्य दिया।
भारत की तलाश
नेहरू जी की सोच यह थी भारत का अतीत जानने के लिए पुस्तकों का अध्ययन, प्राचीन स्मारकों तथा भवनों का दर्शन, सांस्कृतिक उपलब्धियों का अध्ययन तथा भारत के विभिन्न भागों की पद यात्राएँ पर्याप्त होगी, पर इन सबसे उन्हें वह संतोष न हो सका जिसकी उन्हें तालाश थी। उन्होंने भारत के नाम पर भरत नाम की प्राचीनता बताई। उन्होंने उन्हें सुदूर-उत्तर-पश्चिम में खैबर पास से कन्याकुमारी या केप कैमोरिन तक अपनी यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने देश के किसानों की विभिन्न समस्याओं गरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान और पुलिस अत्याचार पर चर्चा की। उन लोगों को प्राचीन महाकाव्यों, दंत कथाओं की पूरी जानकारी थी। ग्रामीण अभावों में रहते हुए भी भारत की शान थे। जो बात उनमें थी वह भारत के माध्यम वर्ग में न थी। केवल उत्तेजना के भाव रहते थे।
नेहरू जी इस बात से भी अपरिचित न थे कि भारत की तस्वीर कुछ-कुछ बदल रही है क्योंकि हमारा देश 200 वर्षों से अंग्रेजों के अत्याचार झेल रहे थे। काफ़ी कुछ तो उसी कारण समाप्त हो गया लेकिन जो मूल्य या धरोहर बच गई है वह सार्थक है। लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो निरर्थक व अनिष्टकारी है।
भारत-माता
नेहरू जी सभी भारतीय किसानों को संदेश देना चाहते थे कि भारत महान है। हमें इसकी महत्ता को समझना चाहिए। वे जब भी किसी भी सभा में जाते तो लोगों को अवगत कराते कि इस विशाल भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसका भाग अलग-अलग होते हुए भी सभी को मिलाकर भारत बना है। उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक यह एक ही स्वरूप रखता है। उन्होंने उन्हें सुदूर उत्तर-पश्चिम में खैबर पास से कन्याकुमारी या केप केमोरिन तक अपनी यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने किसानों की विविध समस्याओं गरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान और पुलिस अत्याचार पर चर्चा की। उन लोगों को प्राचीन महाकाव्यों दंत कथाओं की पूरी जानकारी थी। लोग जब ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते तब नेहरू जी उनसे पूछते थे कि भारत माता की जय इसका क्या अर्थ है ? इसका इन्हें सही-सही उत्तर नहीं सूझता था। एक व्यक्ति ने उत्तर दिया – भारत माता हमारी धरती है, भारत की प्यारी मिट्टी। भारत तो वह सब कुछ है भारत के पहाड़ और नदियाँ, जंगल, खेत और भारत की जनता। भारत माता की जय का अर्थ है- इसी जनता जनार्दन की जय। यह विचार उनके दिमाग में बैठता जाता था। उनकी आखें चमकने लगती थीं मानो उन्होंने एक नई महान खोज कर दी हो।
भारत की विविधता और एकता
यह सौ प्रतिशत सत्य है कि भारत में विविधता होते हुए भी एकता है। पूरे भारत देश में लोगों के खान-पान, रहन-सहन, पहनावे, भाषा, शारीरिक व मानसिक रूप में विविधता झलकती है, पर विविधता होते हुए भी भारत देश एक है। इनमें चेहरे-मोहरे, खान-पान, पहनावे और भाषा में बहुत अंतर है। पठानों के लोक प्रचलित नृत्य रूसी कोजक नृत्य शैली में मिलते हैं। इन तमाम विविधताओं के बावजूद पठान पर भारत की छाप वैसी ही स्पष्ट है जैसे तमिल पर 1 सीमांत क्षेत्र प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रमुख केंद्रों में था। तक्षशिला का महान विश्वविद्यालय दो हज़ार वर्ष पहले इसकी लोकप्रियता चरम सीमा पर थी। पठान और तमिल दो चरम उदाहरण है, बाकी की स्थिति इन दोनों के बीच की है। सबकी अलग-अलग विशेषताएँ हैं, पर इन सब पर भारतीयता की गहरी छाप है। भारत में विविध भाषाओं के बोलने वाले लोग हैं। प्राचीन चीन की भाँति प्राचीन भारत अपने आप एक संसार थी। यहाँ विदेशी भी आए और यहाँ जज्ब हो गए। किसी भी देशी समूह में छोटी-बड़ी विभिन्नताएँ हमेशा देखी जाती हैं। अब राष्ट्रवाद की अवधारणा जोरों पर विकसित होने लगी। विदेशों में भारतीय एक राष्ट्रीय समुदाय के लोग एक साथ रहते हैं। भले ही उनमें भीतरी मतभेद हो, एक हिंदुस्तानी भले ही किसी भी धर्म का हो, वह अन्य देशों में हिंदुस्तानी ही माना जाता है।
नेहरू जी का कहना है कि वे जब भी भारत के बारे में सोचते हैं तो उनके सामने दूर-दूर तक फैले मैदान, उन पर बसे अनगिनत गाँव, व शहर व कस्बे जिनमें वे घूमे, वर्षा ऋतु की जादुई बरसात जिससे झुलसी हुई धरती का सौंदर्य और हरियाली खिल जाए, विशाल नदियाँ व उनमें बहता जल, ठंडा प्रदेश खैबर, भारत का दक्षिण रूप, बर्फीला प्रदेश हिमालय या वसंत ऋतु में कश्मीर की कोई घाटी फूलों से लदी हुई व उसके बीच से कल-कल छल-छल करते बहते झरने की तस्वीर बन जाती है, जिसे वे सहेजकर रखना चाहते हैं।
जन संस्कृति
भारत की तलाश के क्रम में नेहरू जी जब भारतीय जनता के जीवन की गतिशीलता को देखते तो उसका संबंध अतीत से जोड़ते थे, जबकि इन लोगों की नज़रें भविष्य पर टीकी रहती थी। लेखक को हर जगह एक संस्कृति पृष्ठभूमि मिली जिसका जनता के जीवन पर गहरा असर था। इस पृष्ठभूमि में लोक प्रचलित दर्शन परंपरा, इतिहास, मिथक, पुरा-कथाओं का सम्मेलन था। ये कथाएँ आपस में इस प्रकार से मिली हुई थी कि इसे एक दूसरे से अलग करना असंभव था। भारत के प्राचीन महाकाव्य रामायण और महाभारत जनता के बीच प्रसिद्ध थे। वे ऐसी कहानी का उल्लेख करते थे जिससे कोई नैतिक उपदेश निकलता था। लेखक के मन में लिखित इतिहास और तथ्यों का भंडार था। गाँव के रास्ते से गुजरते हए लेखक की नज़र मनोहर पुरुष या सुंदर स्त्री पर पड़ती थी जिसे देखकर वह विस्मय विमुग्ध हो जाता था। चारों ओर अनगिनत विपत्तियाँ फैली हुई थीं। लेखक को इस बात से हैरानी होती थी कि तमाम भयानक कष्टों के बावजूद, आखिर यह सौंदर्य कैसे टिका और बना रहा। भारत में स्थितियों को समर्पित भाव से स्वीकार करने की प्रवृत्ति प्रबल थी।
भारत में नम्रता, यह सब कुछ होने के बाद भी स्थिति को स्वीकारने की प्रबल प्रवृत्ति थी जो हज़ारों सालों की संस्कृति विरासत की देन थी और इसे दुर्भाग्य भी न मिटा पाया था। यानी भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्वों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था।
very short summary
तलाश पाठ में पंडित जवाहर लाल नेहरु जी ने भारत के बारे में अपने विचार व्यक्त करे हैं। वे प्राचीन भारत की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं। वे यह समझने की कोशिश करते हैं कि क्या वास्तव में भारत ने अपनी शक्ति को खो दिया है। वे इस बात पर विचार करते हैं कि आधुनिक विश्व में भारत का क्या स्थान है।
वे बताते हैं कि भारतीय सभ्यता पांच – छह हजारों वर्ष पुरानी है। उसका सांस्कृतिक आधार इतना मज़बूत है कि इतने वर्षों में भी हिला नहीं। उन्होंने पुराने स्मारकों को देखा और हजारों वर्ष पुराने पर्वों को देखा जो भारत की महानता का प्रतीक हैं।
लेकिन भारत तकनीकी विकास में अन्य देशों से पीछे रह गया। भारत में आबादी और गरीबी बढ़ गई।
वे भारत की चर्चा करते समय लोगों को बताते थे कि इसका नाम भरत के नाम पर आधारित है। वे लोगों से पूछते थे कि उनके लिए भारत माता की जय का क्या आशय है। उन्हें भारत के पहाड़, खेत, जंगल, नदियाँ, और जनता सबसे प्रेम था।
वे कहते हैं कि भारत में विविधता है पर साथ में एकता भी है।
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