NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ
अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न 1. ‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
इस पाठ का शीर्षक ‘जूझ’ संपूर्ण कथा नायक का बिंदु है। जिसका अर्थ है- संघर्ष। कथानायक आनंद इस पाठ में हमें आदि से अंत तक संघर्ष करते दिखाई देता है। पाठशाला जाने के लिए आनंद को एक लंबे संघर्ष का सामना करना पड़ा। प्रवेश लेने के पश्चात अपने अस्तित्व के लिए आनंद को जूझना पड़ा। तब कहीं जाकर वह कक्षा मॉनिटर बना। उसने कवि बनने के लिए भी निरंतर संघर्ष किया। वह कागज के टुकड़ों पर अथवा पत्थर की शिला पर या भैंस की पीठ पर कविता लिखा करता। उसके संघर्ष में मराठी अध्यापक न०वा० सौंदलगेकर के साथ उपन्यास का यह शीर्षक कथानायक की संघर्षमय प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है। अतः यह शीर्षक उचित है।
प्रश्न 2. स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
लेखक मराठी भाषा के अध्यापक न०वा० सौंदलगेकर से अधिक प्रभावित हुआ। उन्हें लय, छंद, यति-गति आरोह-अवरोह का उचित ज्ञान था। जिसका कथानायक पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। जब लेखक को पता चला कि अध्यापक ने अपने घर के दरवाजे पर लगी ‘मालती’ नामक लता पर कविता लिखी है तब उसे अनुभव हुआ कि कवि भी अन्य मनुष्यों के समान ही हाड-मास, क्रोध-लोभ आदि प्रवृत्तियों का दास होता है। कथानायक ने ‘मालती’ लता देखी थी और उस पर लिखी कविता को पढ़ा था। इसके बाद उसे महसूस हुआ कि वह अपने गाँव के तथा आसपास के अनेक दृश्यों पर कविता लिख सकता है। शीघ्र ही वह तुकबंदी करने लगा और अध्यापक ने भी उसका उत्साह बढ़ाया। उसके मन में यह विश्वास उत्पन्न हुआ कि वह भी कवि बन सकता है।
प्रश्न 3. श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई।
श्री न०वा० सौंदलगेकर लेखक की कक्षा में मराठी पढ़ाते थे। वे बड़े सुरीले कण्ठ से कविता सुनाया करते थे। उन्हें छंद, यति-गति, आरोह-अवरोह का समुचित ज्ञान था. वे प्राय: कविता गाकर सुनाया करते थे। कवितागान के समय उनके चेहरे पर भावों के अनुकूल हाव-भाव देखे जा सकते थे। श्री न०वा० सौंदलगेकर ने लेखक की तुकबंदी का अनेक बार संशोधन किया तथा बार-बार उसे प्रोत्साहित भी किया करते। वे लेखक को यह भी बताते कि कविता की भाषा कैसी होनी चाहिए, संस्कृत भाषा का प्रयोग कविता के लिए किस प्रकार होता है, और छंद की जाति कैसे पहचानी जाए। इस प्रकार न०वा० सौंदलगेकर कथानायक को कविता लिखने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहते। जिससे लेखक भी कविता लेखन में रुचि लेने लगा।
प्रश्न 4. कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
कविता के प्रति लगाव से पहले कथानायक को ढोर चराते समय, खेत में पानी लगाते समय, कोई दूसरा काम करते समय अकेलापन अत्यधिक खटकता था। परंतु अब अकेलापन उसे खटकता नहीं है। कविता लिखते समय वह अपने आप से खेलता था। इस अकेलेपन के कारण वह ऊँची आवाज में कविता का गान करता था। कभी-कभी वह कविता पाठ करते समय अभिनय भी करता था और थुई-थुई करके नाचता भी था।
प्रश्न 5. आपके ख्याल से पढ़ाई लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दें।
हमारे विचार से पढ़ाई लिखाई के संबंध में दत्ताजी राव का रवैया सही था और लेखक के पिता का रवैया गलत था। लेखक का सोचना भी सही था कि पढ़-लिख कर कोई नौकरी मिल जाएगी और चार पैसे हाथ में आने से कोई व्यापार किया जा सकता है। इसी प्रकार दत्ता जी राव का रवैया सही ठहराया जा सकता है। उन्होंने ही लेखक के पिता को धमकाया तथा लेखक को पढ़ने के लिए पाठशाला भिजवाया। परंतु आज के हालात को देखते हुए आज का पढ़ा लिखा व्यक्ति वैज्ञानिक खेती करके अच्छे पैसे कमा सकता है और समाज के निर्माण में योगदान दे सकता है।
प्रश्न 6. दत्ताजी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
कथानायक और उसकी माँ दत्ताजी राव के पास इसलिए गए थे ताकि वे लेखक के पिता पर दबाव डालकर पाठशाला भिजवा सके। यदि लेखक की माँ यह झूठ नहीं बोलती तो लेखक के पिता बहुत नाराज हो जाते और माँ बेटे की खूब पिटाई करते। इसी प्रकार लेखक ने झूठ न बोला होता कि “पिता को बुलाने आया हूँ, उन्होंने अभी खाना नहीं खाया” तब लेखक वहाँ जा नहीं पाता और पिता बेटे पर झूठे आरोप लगाकर दत्ताजी राव को चुप करवा लेता। लेखक जीवनभर पढ़ाई न कर पाता और कोल्हू के समान खेत में पिसता रहता।
जूझ
अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1:
लेखक के दादा का पढ़ाई के प्रति जो दृष्टिकोण था उसे आप कितना उपयुक्त पाते हैं? ऐसे लोगों के दृष्टिकोण में बदलाव लाने के लिए आप क्या प्रयास कर सकते हैं?
उत्तर –
लेखक चाहता था कि वह भी अन्य बच्चों के साथ पाठशाला जाए, पढ़ाई करे और अच्छा आदमी बने। पाठशाला जाने के लिए उसका मन तड़पता था, पर उसके दादा का पढ़ाई के प्रति दृष्टिकोण स्वस्थ न था। वे चाहते थे कि लेखक पढ़ाई करने की बजाय खेती में काम करे और जानवरों को चराए। किसी दिन खेत में काम करने के लिए न जाने पर वे लेखक को बुरी तरह डाँटते। एक बार वे लेखक से कह रहे थे, “हाँ, यदि नहीं आया किसी दिन तो देख, गाँव में जहाँ मिलेगा, वही कुचलता हूँ कि नहीं, तुझे। तेरे ऊपर पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है, बालिस्टर नहीं होने वाला है तू?” बच्चे को पढ़ाई से विमुख करने वाला, बच्चों की शिक्षा में बाधक बनने वाला ऐसा दृष्टिकोण किसी भी कोण से उपयुक्त नहीं है। ऐसे लोगों का दृष्टिकोण बदलने के लिए मैं निम्नलिखित प्रयास करूंगा –
लेखक के दादा जैसे लोगों को शिक्षा का महत्त्व बताऊँगा।
शिक्षा से वंचित बच्चे मजदूर बनकर रह जाते हैं। यह बात उन्हें समझाऊँगा।
शिक्षा व्यक्ति के जीविकोपार्जन में साधन का कार्य करती है। इस तथ्य से उन्हें अवगत कराऊँगा।
पढ़े-लिखे सभ्य लोगों के उन्नत जीवन का उदाहरण ऐसे लोगों के सामने प्रस्तुत करूंगा।
प्रश्न 2:
आज भी समाज को दत्ता जी राव जैसे व्यक्तित्व की आवश्यकता है। इससे आप कितना सहमत हैं और क्यों? यदि आप दत्ता जी राव की जगह होते तो क्या करते?
उत्तर –
दत्ता जी राव नेक दिल, उदार एवं गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। वे बच्चों एवं महिलाओं से विशेष स्नेह करते थे। वे हरेक व्यक्ति की सहायता करते थे। लेखक और उसकी माँ ने जब उनको अपनी पीड़ा बताई तो शिक्षा के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण रखने वाले दत्ता राव जी ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया और लेखक के दादा को बुलवाया। जब वे राव जी के पास गए तो उन्होंने बच्चे को स्कूल न भेजने के लिए दादा जी को खूब डाँटा-फटकारा। उन्होंने बच्चे का भविष्य खराब करने की बात कहकर बच्चे को स्कूल भेजने का वायदा ले लिया और स्कूल न भेजने पर लेखक को पढ़ाने का जिम्मा स्वयं लेने की बात कही। राव जी की डाँट से लेखक के दादा कुछ न कह सके और पढ़ाई के लिए स्वीकृति दे दी। इसके बाद लेखक स्कूल जाने लगा। आज भी बहुत-से बच्चे विभिन्न कारणों से स्कूल का मुँह देखने से वंचित हो जाते हैं या पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। ऐसे बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए राव जी जैसे व्यक्तित्व की आज भी आवश्यकता है। इससे मैं पूर्णतया सहमत हूँ। इसका कारण यह है कि इससे बच्चे पढ़-लिखकर योग्य और समाजोपयोगी नागरिक बन सकेंगे। वे पढ़-लिखकर देश की उन्नति में अपना योगदान दे सकेंगे। यदि मैं दत्ता जी राव की जगह होता तो लेखक को स्कूल भेजने के लिए हर संभव प्रयास करता और फिर भी उसके दादा उसे स्कूल भेजने के लिए न तैयार होते तो मैं लेखक को अपने पास रखकर पढ़ाता और उसकी हर संभव मदद करता।
प्रश्न 3:
सौंदलगेकर के व्यक्तित्व ने लेखक को किस प्रकार प्रभावित किया? आप उनके व्यक्तित्व की कौन-कौन-सी विशेषताएँ अपनाना चाहेंगे?
उत्तर –
सौंदलगेकर एक अध्यापक थे जो लेखक के गाँव में मराठी पढ़ाया करते थे। वे कविताओं को बहुत अच्छी तरह से पढ़ाते थे और कथ्य में खो जाते थे। उनके सुरीले कंठ से निकली कविता और भी सुरीली हो जाती थी। उन्हें मराठी के अलावा अंग्रेजी कविताएँ भी जबानी याद थीं। वे स्वयं कविता की रचना करते थे और छात्रों को सुनाया करते थे। लेखक उनकी इस कला और कविता सुनाने की शैली से बहुत प्रभावित हुआ। इससे पहले लेखक कवियों को किसी दूसरी दुनिया का जीव मानता था पर सौंदलगेकर से मिलने के बाद जाना कि इतनी अच्छी कविता लिखने वाले भी हमारे-उसके जैसे मनुष्य ही होते हैं। अब लेखक को लगा कि वह भी उनकी जैसी कविता गाँव, खेत आदि से जुड़े दृश्यों पर बना सकता है। वह भैंस चराते-चराते फसलों और जानवरों पर तुकबंदी करने लगा। वह राह चलते तुकबंदी करता और उसे लिखकर अध्यापक को दिखाता। बाद में निरंतर अभ्यास से वह कविता लिखना सीख गया। इस प्रकार लेखक को सौंदलगेकर के व्यक्तित्व ने बहुत प्रभावित किया और उसमें कविता-लेखन की रुचि उत्पन्न कर दी। मैं सौंदलगेकर के व्यक्तित्व की अपने कार्य के प्रति समर्पित रहने, दूसरों को प्रोत्साहित करने, यथासंभव दूसरों की मदद करने जैसी विशेषताएँ अपनाना चाहूँगा।
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