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नमक Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 16
नमक पाठ का सारांश
नमक’ कहानी रजिया सज्जाद जहीर द्वारा रचित एक उत्कृष्ट कहानी है। यह भारत-पाक विभाजन के बाद सरहद के दोनों तरफ के विस्थापित लोगों के दिलों को टटोलती एक मार्मिक कहानी है। दिलों को टटोलने की इस कोशिश में उन्होंने अपने-पराए देश-परदेश की।
कई प्रचलित धारणाओं पर सवाल खड़े किए हैं। विस्थापित होकर आई सिख बीबी आज भी लाहौर को ही अपना वतन मानती हैं और ॥ सौगात के तौर पर वहाँ का लाहौरी नमक ले आने की फरमाइश करती हैं। सफ़िया का बड़ा भाई पाकिस्तान में एक बहुत बड़ा पुलिस अफसर है। सफ़िया के नमक को ले जाने पर वह उसे गैर-कानूनी बताता है। लेकिन सफ़िया वहाँ से नमक ले जाने की जिद्द करती है। वह नमक को एक फलों की टोकरी में डालकर कस्टम अधिकारियों से। बचना चाहती है।
सफ़िया को विस्थापित सिख बीबी याद आती हैं, जो अभी भी लाहौर को ही अपना वतन मानती है। अब भी उनके हृदय में अपने लाहौर का सौंदर्य समाया हुआ है। सफ़िया भारत आने के लिए फर्स्ट क्लास के वेटिंग रूम में बैठी थी। वह मन-ही-मन में सोच रही थी कि उसके किन्नुओं की टोकरी में नमक है, यह बात केवल वही जानती है, लेकिन वह मन-ही-मन कस्टम वालों से डरी। हुई थी। कस्टम अधिकारी सफ़िया को नमक ले जाने की इजाजत देता है तथा देहली को अपना वतन बताता है, तथा सफ़िया को कहता।
है कि “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।” रेल में सवार होकर सफ़िया पाकिस्तान से अमृतसर पहुँची। वहाँ भी उसका सामान कस्टम वालों ने चेक किया। भारतीय कस्टम अधिकारी सुनील दासगुप्त ने सफ़िया को कहा कि “मेरा वतन ढाका है।” और उसने यह भी बताया कि जब भारत-पाक विभाजन हुआ था, तभी वे भारत में आए थे।
इन्होंने भी सफ़िया को नमक अपने हाथ से सौंपा। इसे देखकर सफ़िया सोचती रही कि किसका वतन कहाँ है? इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने बताया है कि राष्ट्र-राज्यों की नई सीमा रेखाएँ खींची जा चुकी हैं और मजहबी आधार पर लोग : । इन रेखाओं के इधर-उधर अपनी जगहें मुकर्रर कर चुके हैं, इसके बावजूद ज़मीन पर खींची गई रेखाएँ उनके अंतर्मन तक नहीं पहुंच पाई हैं।
नमक लेखक परिचय
लेखिका परिचय जीवन-परिचय-रज़िया सज्जाद जहीर आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य की प्रमुख लेखिका मानी जाती हैं। उनका जन्म 15 फरवरी, सन् 1917 ई० में राजस्थान के अजमेर में हुआ था। उन्होंने बी०ए० तक की शिक्षा घर पर रहकर ही प्राप्त की। विवाह के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम०ए० उर्दू की परीक्षा पास की। सन् 1947 ई० में वे अजमेर से लखनऊ आकर करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज में अध्यापन कार्य करने लगीं।
सन् 1965 ई० में उनकी नियुक्ति सोवियत सूचना विभाग में हुई। उन्हें सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुआ। उत्तर प्रदेश से उन्हें उर्दू अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड से अलंकृत किया गया। अंततः 18 दिसंबर, सन् 1979 ई० को उनकी मृत्यु हो गई। प्रमुख रचनाएँ-रजिया सज्जाद जहीर मूलत: उर्दू की कहानी लेखिका हैं। उनका उर्दू कहानियों का संग्रह ‘जर्द गुलाब’ प्रमुख है। साहित्यिक विशेषताएँ-श्रीमती रजिया सज्जाद जहीर जी का आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों लिखे हैं। उन्होंने उर्दू में बाल-साहित्य की रचना भी की है।
अपनी रचनाओं में लेखिका ने बालमनोविज्ञान के अनेक सुंदर चित्र अंकित किए हैं। उनकी कहानियों में सामाजिक सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता और आधुनिक संदर्भो में बदलते हुए पारिवारिक मूल्यों को उभारने का सफल प्रयास मिलता है। उन्होंने अपनी अनेक कहानियों में समकालीन, सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक आदि विसंगतियों और विडंबनाओं का अनूठा चित्रण किया है।
सामाजिक यथार्थ और मानवीय गुणों का सहज सामंजस्य उनकी कहानियों की महत्वपूर्ण विशेषता है। उनकी कहानियाँ मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत हैं। प्रस्तुत कहानी ‘नमक’ में लेखिका ने भारत-पाक विभाजन के पश्चात सरहद के दोनों ओर विस्थापित पुनर्वासित लोगों के दिलों को टटोलते हुए उनका मार्मिक वर्णन किया है। इसी प्रकार उनकी अनेक कहानियाँ मानवीय पीड़ाओं का सजीव और मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती हैं। भाषा-शैली-रज़िया जी की भाषा सहज, सरल और मुहावरेदार है।
वे उर्दू भाषा की श्रेष्ठ लेखिका हैं। उनका साहित्य उर्दू भाषा में रचित है। उनकी कुछ कहानियाँ देवनागरी लिपि में भी लिखी जा चुकी हैं। उनकी कहानियों में उर्दू के साथ-साथ अरबी-फारसी आदि अनेक भाषाओं के शब्द भी मिलते हैं। मुहावरों के प्रयोग से उनकी भाषा में रोचकता उत्पन्न हुई है। वस्तुतः श्रीमती रज़िया सज्जाद जहीर उर्दू कथा-साहित्य की एक महान लेखिका हैं। उनका उर्दू कथा-साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
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