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जाग तुझको दूर जाना – महादेवी वर्मा (अंतरा भाग 1 पाठ 15)
कवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद, उत्तरप्रदेश में हुआ था l इनकी प्रारंभिक शिक्षा, इंदौर में हुईl इनका विवाह बारह वर्ष की आयु मे हो गया था।
प्रयाग विश्वविद्यालय से इन्होंने एम. ए. किया l
इनकी प्रमुख काव्य कृति है– निहार, रश्मि, नीरजा, संध्या गीत, यामा और दीप शिखा है l महा देवी वर्मा ने भारतीय समाज में स्त्री जीवन के बारे में वर्तमान, अतीत और भविष्य सब का मूल्यांकन किया है l प्रस्तुत काव्यांश दीप शिखा पाठ्य पुस्तक से उद्धृत की गई है, सब आँखों के आंसू उजले कविता में प्रकृति कि उस मनोरम दृश्य की चर्चा की गई है जो जीवन का सत्य है और मनुष्य को हर संभव लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता करता है l
जाग तुझको दूर जाना कविता का भावार्थ – Jaag Tujhko Door Jaana Hai Poem Summary in Hindi
ये महादेवी वर्मा का एक प्रेरक गीत है इस गीत में महादेवी वर्मा खुद को मोटीवेट करती हुई कहती है कि आज तुम इतने आलस्य में क्यों है, क्यों व्यर्थ के कामों में उलझी हुई हो। फालतु व्यवस्थाओं और आलस्य से खुद को जगाओ क्योंकि अभी तुमे जिंदगी में काफी कुछ करना है, अभी तुमे अपनी जिंदगी में काफी दूर जाना है।
चाहे कुछ भी हो जाये तुमे बिना किसी बात से परेशान हुए हमेशा अपने मार्ग में आगे बढ़ते रहना है फिर चाहे भले ही हिमालय पर्वत अपनी जगह से हिलने लगे या आसमानों से ऑसुओ की बारिश होने लगे या फिर आकाश में घना अधेंरा हो जाये और सिवाय अंधकार के कुछ भी दिखाई ना दे। चाहे कुछ भी हो जाये तुम्हें निरंतर आगे बढ़ते रहना है। चाहे बिजली की चमक से भयंकर तूफान आ जाये या भयंकर तूफान आने की वजह से मार्ग भी दिखाई ना दे।
लेकिन तुझे बिना किसी बात की परवाह करते हुए आगे बढ़ते रहना है। निराशा को कभी अपने ऊपर हावी नही होने देना है भले ही अपनी इस कोशिश में तुम्हें अपनी जान भी गवानी पड़ जाये। इस दुनिया में कुछ ऐसा करके जाना है कि दुनिया वाले तुमे हमेशा याद रखे और तुम्हारे जाने के बाद भी इस दुनिया में तुम्हारी अमिट छाप मौजूद रहें।
महादेवी वर्मा इस कविता में संसारिक बंधनों के बारे में भी बात करती है। वो कहती है कि क्या संसारिक मोहमाया के बंधन जो बहुत आसानी से मोम के सामान पिघल सकते हैं तेरा रास्ता रोक सकते है। क्या तितलियों के रंगों के जैसे दिखने वाले संसारिक सुख तुम्हारी राह में रूकावट बन सकते हैं। इस संसार में इसके अलावा भी बहुत कुछ है। ये संसार दुखों से भरा पड़ा है।
क्या इन दुखों के बारे में सोचकर और इन्हें जानकर भी तुम संसारिक सुखों के बारे में सोच सकती हो। क्या तुम्हारा हृदय समाज की इस व्यथा को दूर करने के लिए तड़प नही उठता है। संसार के सभी सुख और आर्कषण तुम्हारी खुद की परछाई के सामान है। यदि तुम अपनी परछाई का पीछा करने लग गए तो कभी आगे नही बढ़ पाओगे और तुम्हारा विकास रूक जाएगा। इसलिए बिना डरे, बिना निराश हुए अपनी परछाई को अपने रास्ते की रूकावट मत बनने दो और हमेशा आगे बढ़ते रहो।
वो अपनी इस कविता में आगे कहती है कि तुम्हें अपनी अंदर की शक्ति को पहचानना होगा। तुम्हारे अंदर काफी साहस है। तुम्हारे अंदर असीम इच्छा शक्ति है जिसके सामने कोई भी ससांरिक आर्कषण ज्यादा समय तक नही टिक सकता। लेकिन आज तुम्हें ना जाने क्या हो गया है। आज तुम्हारी इच्छा शक्ति क्यों कमजोर पड़ रही है।
आज क्यों तुम संसार के अत्याचार और उत्पीड़न को भूलकर आलस्य में डूबी हुई हो। ऐसे तो तुम अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच पाओगी। तुम्हे इस आलस्य को छोड़कर अपने लक्ष्य के बारे में सोचना पड़ेगा।
अभी अपने लक्ष्य को याद करके अपना सफर शुरू का दो। अपनी मौत से पहले तुम्हे उसे हर हाल में पाना होगा। इसलिए अब निराश होने का वक्त नही है। अपने गुजरे हुए कल के बारे में सोचकर निराश होने से कुछ नही मिलने वाला। अपने अतीत को भूल जाओ और आगे बढ़ो। उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति होने से पहले रूको मत।
अपने लक्ष्य पर पहुंचने से पहले अगर तुम्हारी जान भी चली गई तो ये संसार तुमहे हमेशा याद रखेगा। दीपक की लौ पर चलने वाला पंतग मरने के बाद भी दीपक को अमर बना देता है। तुम्हारा रास्ता त्याग और बलिदान का है। तुम्हें जीवन की तमाम कठिनाईयो से पार पाते हुए आगे बढ़ते रहना है। अत: अब तुम जागो और आगे बढ़ो अभी तुम्हारी मंजिल काफी दूर है।
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