Sandhya Ke Baad Class 11 Hindi Antra Chapter 14 Summary
सुमित्रानन्दन पंत का जीवन परिचय :
👉 छायावादी काव्यधारा के महान कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गांव में हुआ। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी में हुई तथा उच्च शिक्षा इलाहाबाद के ‘म्योर कॉलेज’ में हुई।
पंत जी ने ‘लोकायतन’ संस्था की स्थापना की। ये लंबे समय तक आकाशवाणी के परामर्शदाता रहें। 28 दिसम्बर 1977 में इनका निधन हो गया।
सुमित्रानन्दन पंत की रचनाएं व सम्मान:-
👉 ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘ग्रंथि’, ‘स्वर्नकिरण’, ‘गुंजन’ एवं ‘उत्तरा’।
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960 कला व बूढ़ा चांद) ज्ञानपीठ पुरस्कार (1969 चिदम्बरा) पाने वाले हिन्दी के प्रथम कवि हैं।
पद्मभूषण (1961) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार।
सुमित्रानन्दन पंत की काव्यगत विशेषताएं:-
- सुमित्रानंदन पंत की आरंभिक कविताओं में प्रकृति प्रेम एवं रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद के चरण की कविताएं मार्क्स व गांधी से प्रभावित है अगले चरण की कविताओं पर अरविंद दर्शन का प्रभाव नजर आता है।
- पंत जी प्रकृति के चितेरे (चित्रकार) कवि है।
- प्रकृति के काल रूप का चित्रण एवं उसके पल-पल के परिवर्तनशील सौंदर्य का चित्रात्मक वर्णन इनकी विशेषता है।
सुमित्रानन्दन पंत की भाषा-शैली:-
- तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
- मानवीकरण, विशेषण-विप्रयय एवं धवन्यार्थ व्यंजना जैसे नवीन अलंकारों के साथ उपमा, रूपक एवं उत्प्रेक्षा जैसे परम्परागत अलंकारों का प्रयोग।
- अमृत के माध्यम से मूर्त का वर्णन उनकी प्रमुख विशेषता है।
Sandhya ke baad summary in Hindi – संध्या के बाद कविता का सारांश
👉 प्रस्तुत कविता छायावाद के प्रमुख आधार स्तंभ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ‘ग्राम्या’ में संकलित है।
कविता में संध्या के समय होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों, ग्रामीण जीवन के दैनिक किर्याकलापों के वर्णन के साथ-साथ मानवता एवं संवेदनशीलता का भी संदेश दिया है कवि ने एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की आश्यकता पर बल दिया है।
जो शोषणमुक्त हो, जिसमें दरिद्रता न हो एवं कर्म तथा गुणों के आधार पर साधनों व अर्थ की प्रप्ति हो, गावन दरिद्रता, उत्पीड़न एवं निराशा व्याप्त है। परंतु व्यक्ति इनको प्रकट करने में असमर्थ है। कवि ने समस्त पापों का कारण दरिद्रता को माना है। दरिद्रता के लिए कोई व्यक्ति-विशेष दोषी नहीं है। बल्कि सामाजिक व्यवस्था दोषी है।
गांव के बनिए के माध्यम से कवि कहना चाहता है की व्यक्ति अपनी कथनी और कहनी में समानता द्वारा सामाजिक व्यवस्था में तभी परिवर्तन का सकता है। जब व्यक्ति की सोच और आचरण समान है।
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