एक तिनका पाठ सार
एक तिनका कविता में कवि ‘हरिऔध’ जी ने हमें कभी भी अहंकार ना करने की सलाह देते हुए कहते है कि एक दिन जब वे अभिमान से तथा अकड़ से भरे हुए अपने घर के छत के निचले हिस्से पर खड़े होकर घमंड से चुर होकर सोच रहे थे कि उनके जीवन में कोई दुख नहीं है। तभी एकदम से हवा से उड़कर एक तिनका उड़ता हुआ आया और उनकी आँख मे पड़ जाता है और उनका अपने जीवन में किसी दुःख के न होने का घमंड चूर – चूर हो गया। आँख में तिनका चले जाने के कारण वे अपने घमंड पर लज्जित हो गए और चिन्तित हो कर तिलमीला उठते है, उन्हें बड़ी तकलीफ होती है। तिनके के आँख में जाने के कारण उनकी आँख लाल हो गई थी और उसमें दर्द होने लग गया था। उनकी तकलीफ को देखकर लोग उनकी मदद करने पहुँच जाते है। कपड़े की मूँठ से जैसे-तैसे तिनका उनकी आँख से निकला जा सका। तिनके के निकलने के साथ ही कवि के मन से घमंड भी निकल जाता है और उन्हें यह एहसास होता है कि मनुष्य को जीवन में कभी अहंकार नहीं करना चाहिए । कवि कहते हैं कि आँख में तिनका चले जाने से उन्हें बड़ी ही बेचैनी हुई। उनकी आँख लाल हो गई और दुखने लगी। इसके बाद उन्हें मन में एक ख़याल आया कि उन्हें घमंड नहीं करना चाहिए था, उनका घमंड तो एक मामूली तिनके ने ही तोड़ दिया। इन पंक्तियों के ज़रिए कवि हमें भी घमंड से दूर रहने का संदेश दे रहे हैं। चाहे इंसान कितना भी बड़ा हो जाए, उसका घमंड चकनाचूर हो ही जाता है। एक तिनका कविता में कवि हरिऔध जी ने हमें घमंड ना करने की प्रेरणा दी है।
एक तिनका पाठ व्याख्या
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ ,
एक दिन जब था मुंडेर पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा ।
शब्दार्थ –
घमंड – अभिमान , अकड़बाज़ , डींग मारने वाला
ऐंठ – अकड़ , गर्व , हठ
मुंडेर – छज्जा ( छत का निचला हिस्सा )
अचानक – एकदम से
तिनका – सुखे घास का छोटा सा हिस्सा
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि एक दिन जब वे अभिमान से तथा अकड़ से भरे हुए अपने घर के छत के निचले हिस्से पर खड़े होकर घमंड से चुर होकर सोच रहे थे कि उनके जीवन में कोई दुख नहीं है। तभी एकदम से हवा से उड़कर एक तिनका उड़ता हुआ आया और उनकी आँख मे पड़ जाता है और उनका अपने जीवन में किसी दुःख के न होने का घमंड चूर – चूर हो गया।
भावार्थ – जीवन में कभी किसी भी चीज पर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि जीवन में आने वाली विभिन्न परिस्थितियों में छोटी से छोटी वस्तु या तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति भी आपको हानि या दुःख पहुँचा सकता है।
मैं झिझक उठा , हुआ बेचैन – सा ,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे ,
ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी।
शब्दार्थ –
झिझक – संकोच , किसी कार्य में लज्जा या भय आदि के कारण होने वाला संकोच , हिचक
बेचैन – चिन्तित , व्याकुल , उत्सुक , बेसब्र , उतावला , अधीर
मूँठ – किसी वस्तु को मट्ठी भर का आकार देना
ऐंठ – घमंड
दबे पाँव आना / जाना (मुहावरा ) – बिना आहट किए आना / जाना
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि आँख में तिनका चले जाने के कारण वे अपने घमंड पर लज्जित हो गए और चिन्तित हो उठे। तिनके के आँख में जाने के कारण उनकी आँख लाल हो गई थी और उसमें दर्द होने लग गया था। लोग कपड़े को मट्ठी भर का आकार दे कर उनकी आँख से तिनका निकालने की कोशिश करने लगे। इस दौरान उनका अहंकार और घमंड उनके मन से बिना कोई आवाज़ किए कहीं दूर भाग गए।
भावार्थ – जीवन में घमंड ही आपके दुःख का सबसे बड़ा कारण होता है और घमंड के चले जाने पर ही आपको मन की शांति प्राप्त हो सकती है अन्यथा नहीं।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया ,
तब ‘ समझ ’ ने यों मुझे ताने दिए ।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा ,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए ।
शब्दार्थ –
ढब – ढंग , तरीका , कोई कार्य करने की विशेष प्रक्रिया , युक्ति , उपाय
यों – इस तरह
ताने – व्यंग्यपूर्ण वाक्य , बुरा भला कहना , निन्दा करना
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि लोंगो ने जैसे – तैसे उपाय करके कवि की आँखों से तिनका निकाला। इस सारे वाक्य के बाद कवि के मन ने कवि पर व्यंग्य कस्ते हुए कवि से कहा कि कवि किस बात का घमंड कर रहा था जबकि एक छोटे से तिनके ने ही उसको इतना दुःख दे दिया अर्थात कवि के मन में यह ख़याल आया कि उन्हें घमंड नहीं करना चाहिए था, उनका घमंड तो एक मामूली तिनके ने ही चूर कर दिया।
भावार्थ – व्यक्ति कितना भी ताकतवर हो जाए , कितना भी धनी हो जाए , उसे घमंड नहीं करना चाहिए। जिंदगी में कभी भी अपने किसी हुनर पर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि पत्थर जब पानी में गिरता है तो अपने ही वजन से डूब जाता है।
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