संसार पुस्तक है वसंत भाग – 1 (Summary of Sansar Pustak hai Vasant)
यह पाठ पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा अपनी पुत्री को लिखा गया एक पत्र है। इस पत्र के माध्यम से दुनिया और छोटे देशों के बारे में अपनी पुत्री को बताना चाहते थे। नेहरू जी इलाहाबाद में थे और उनकी दस वर्षीय पुत्री इंदिरा गाँधी मसूरी में थीं। वे पत्रों द्वारा अपनी बेटी को दुनिया की जानकारी देना चाहते थे|
वह अपनी बेटी से कहते हैं कि तुमने इंग्लैंड तथा हिंदुस्तान के विषय में इतिहास में पढ़ा होगा लेकिन यदि दुनिया को जानना है तो समझना कि सारा संसार एक है। इसमें रहने वाले सभी भाई-बहन हैं। यह धरती लाखों-करोड़ों वर्ष पुरानी है। एक समय था जब धरती बेहद गर्म थी और इस पर कोई जीवित नहीं रह सकता था। इतिहास को किताबों में पढ़ा जा सकता है परन्तु पुराने जमाने में जब आदमी नहीं था, तब किताबें कौन लिखता? पहाड़, समुद्र, सितारों, नदियाँ, जंगल आदि के माध्यम से भी पुरानी दुनिया का पता लग सकता है। इसके लिए संसार रूपी पुस्तक को पढ़ना होगा। संसार रूपी पुस्तक को पढ़ने के लिए पत्थरों और पहाड़ों को पढ़ना चाहिए। सड़क पर या पहाड़ के नीचे का छोटा-सा पत्थर का टुकड़ा भी पुस्तक का पृष्ठ बन जाता है|
जैसे हम कोई भाषा सीखने के लिए अक्षर ज्ञान प्राप्त करते हैं उसी प्रकार प्रकृति को समझने का ज्ञान हम पत्थरों और चट्टानों से प्राप्त कर सकते हैं| कोई चिकना-सा पत्थर भी अपने बारे में बहुत कुछ बताता है कि यह गोल, चिकना, चमकीला और खुरदुरे किनारे कैसे हो गया। अंत में वह बालू का कण कैसे हो गयाऔर सागर के किनारे जम गया। अगर छोटा-सा पत्थर इतनी जानकारी दे सकता है, तो पहाड़ों और अन्य चीजों से हमें कई बातें पता चल सकती हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ –
• अकसर – प्रायः
• खत – पत्र
• आबाद – बसा हुआ
• गौर से – ध्यान से
• जर्रा – कण
• दामन–तलहटी
• खुरदरा-जिसकी सतह चिकनी न हो
• घरौंदा-बच्चों द्वारा बनाया मिट्टी का छोटा-सा घर
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