देव का जीवन परिचय:-
👉 महाकवि देव का जन्म सन् 1673 में इटावा उत्तर प्रदेश में हुआ था | उनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था | औरंगजेब के पुत्र आलमशाह के संपर्क में आने से देव ने कई अस्रादाता बदले, परन्तु उन्हें सबसे ज्यादा संतुष्टि भोगीलाल नाम के सह्रदय अश्रेदाता के यहाँ प्राप्त हुई जिसमे उनके काव्य से खुश होकर इन्हें लाखो की संपत्ति दान की |
कई अश्रेयदाता राजाओं, नवाबो, धनिकों से सम्बन्ध रहने के कारण राज दरबारों का आदम्बर्पूर्ण व चाटुकारिता भरा जीवन देव ने बहुत नजदीक से देखा था, इसलिए उन्हें ऐसे जीवन से वृतषषना हो गयी थी |
रचनाएं:-
👉 देव कृत कुल ग्रंथो की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है | उनमे ‘भावविलास’, ‘भवानीविलास’, ‘अष्टयम’, ‘सुमिल विनोद’, ‘सुजन्विनोद’ , ‘काव्यरसायन’, ‘प्रेमदीपिका’ आदि मुख्या है |
भाषा शैली:-
👉 देव के कवित्त सवैयों में प्रेम व सौंदर्य के इन्द्रधनुष चित्र मिलती हैं | संकलित सवैयों तथा कवित्तों में एक तरफ जहाँ रूप-सौन्दर्य का अलंकारिक चित्रण हुआ है, वही रागात्मक भावनाओ की अभिव्यक्ति भी संवेदनशील के साथ हुई है |
👉 रीतिकालीन कविओ में देव बड़े प्रगतिशील कवि थे | दरबारी अभिरुचि से बंधे होने के कारण उनकी कविता में जीवन के विविध दृश्य नही मिलते, परन्तु उन्होंने प्रेम और सौन्दर्य के मार्मिक चित्र पेश किए है|
काव्यगत विशेषताएं:-
👉 कवि देव प्रेम और सौंदर्य के कवि थे। इनके काव्य में श्रंगार के उदास रूप का चित्रण है। अनुप्रास और यमक इनके पसंदीदा अलंकार है।
👉 कवि देव के काव्य की भाषा कोमलकांत पदावली युक्त ब्रज भाषा है। भाषा में प्रवाह और लालित्य हैं। प्रचलित मुहावरों का भी खूब प्रयोग किया है।
Hasi ki chot summary in Hindi
👉 ‘हंसी की चोट’ विप्रलंभ शृंगार का अच्छा उदाहरण है। कृष्ण के मुँह फेर लेने से गोपियाँ हँसना ही भूल गई हैं। वे कृष्ण को खोज-खोज कर हार गई हैं। अब तो वे कृष्ण के मिलने की आशा पर ही जीवित हैं। उनके शरीर के पंच तत्त्वों में से अब केवल आकाश तत्त्व ही शेष रह गया है।
👉 ‘सपना’ में कृष्ण स्वप्न में गोपी को अपने साथ झूला झूलने को कहते हैं। तभी गोपी की नींद टूट जाती है, और उसका स्वप्न खंडित हो जाता है। इसमें संयोग-वियोग का मार्मिक चित्रण हुआ है। ‘दरबार’ में पतनशील और निष्क्रिय सामंती व्यवस्था पर देव ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
हंसी की चोट
साँसनि ही सौं समीर गयो अरु, आँसुन ही सब नीर गयो ढरि।
तेज गयो गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तन की तनुता करि।।
‘देव’ जियै मिलिबेही की आस कि, आसहू पास अकास रह्यो भरि,
जा दिन तै मुख फेरि हरै हँसि, हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि।।
Hasi ki chot vyakhya – हंसी की चोंट की व्याख्या:-
👉 कृष्ण के चले जाने पर गोपी कहती है कि जब से कान्हा ने मुंह फेरा है, तब से मेरी सांसों की वायु चली गई है अर्थात् सांस तो चल रही है पर जान चली गई है। उसके आंसू थम नहीं रहे हैं। उसके शरीर का सारा पानी सूख रहा है। अपने सारे गुण अर्थात् शक्ति को साथ लिए हुए तेज़ भी चला गया है। कमजोरी के कारण मात्र कंकाल रह गया है।
देव कहते हैं कि गोपी केवल कृष्ण से मिलने की आश में जीवित है। उस आशा के पास ही आकाश पानी शून्य भर रहा है, अतः वहीं मेरे जीने का सहारा है। गोपी कहती है कि कान्हा ने मेरी हंसी का भी हरण कर लिया है, मैं हंसना भूल गई हूं। मैं उसे ढूंढ़ती फिर रही हूं, जिसने मेरे हृदय को हर लिया है।
सपना
झहरि-झहरि झीनी बूँद हैं परति मानो,
घहरि-घहरि घटा घेरी है गगन में।
आनि कह्यो स्याम मो सौं ‘चलौ झूलिबे को आज’
फूली न समानी भई ऐसी हौं मगन मैं।।
चाहत उठ्योई उठि गई सो निगोड़ी नींद,
सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में।
आँख खोलि देखौं तौ न घन हैं, न घनश्याम,
वेई छाई बूँदैं मेरे आँसु ह्वै दृगन में।।
सपना कविता की व्याख्या:-
👉 गोपी कहती है कि मैंने सपने में देखा कि झर-झर की आवाज के साथ हल्की हल्की बूंदे पड़ रही है। आकाश में गड़गड़ाहट करते हुए बादल छाए हुए है। उसी समय कृष्ण आकर कहते है कि चलो झूला झूलते है। मैं आनंद में मग्न होकर बहुत खुश हो रही है।
मैं उठना ही चाहती थी कि आभगी नींद खुल गई। मेरा भाग्य ही खराब था कि मेरी नींद ही खुल गई और मैं कृष्ण के सहचर्या का आनंद ना उठा सकी। आंखे खुली तो देखा कि ना बादल थे ना ही कृष्ण थे। कृष्ण से मिलन का वह आंनद अब विरह कि वेदना के रूप में बदल चुका है।
दरबार
साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहिरी, रंग रीझ को माच्यो।
भूल्यो तहाँ भटक्यो घट औघट बूढ़िबे को काहू कर्म न बाच्यो।।
भेष न सूझ्यो, कह्यो समझ्यो न, बतायो सुन्यो न, कहा रुचि राच्यो।
‘देव’ तहाँ निबरे नट की बिगरी मति को सगरी निसि नाच्यो।।
दरबार कविता की व्याख्या:-
👉 कवि कहता है कि वर्तमान समाज में राजा अंधे हो चुके है, दरबारी गूंगे है तथा राजसभा बहरी बन चुकी है। वे लोग सुंदर रंग-रूप में सब कुछ लुटा रहे है। राजा अपने फर्ज और जिम्मेदारियों को अनदेखा कर रहे है। दरबारी चुप है।
आम जनता की आवाज़ दब रही है। राजा और दरबारी अपना कर्त्तव्य को भुला कर रूप सौंदर्य में खो रहे है। वे लोग सारे पतित कार्य कर रहे है।
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