सारांश
लेखक ने इस पाठ में देश की पहली बोलने वाली फिल्म का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जब देश की पहली बोलने वाली फिल्म ‘आलम आरा’ प्रदर्शित होने वाली थी तो शहर भर में उसके पोस्टरों में कुछ इस तरह की पंक्तियाँ लिखी हुई थी कि- ‘वे सभी जिन्दा हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा मानव ज़िंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’ इन पंक्तियों का अर्थ था कि फिल्म में जितने भी पात्र हैं वह सब जीवित नजर आ रहे हैं, सभी उनको बोलते, बातें करते देख सकते हैं, इस तरह का विज्ञापन तैयार करके लोगों को फिल्म को देखने के लिए आकर्षित किया गया था और यह ‘आलम आरा’ फिल्म का सबसे पहला पोस्टर था।
14 मार्च 1931 की वह ऐतिहासिक तारीख भारतीय सिनेमा में बड़े बदलाव का दिन था। इसी दिन पहली बार भारत के सिनेमा ने बोलना सीखा था। हालाँकि वह दौर ऐसा था जब मूक सिनेमा लोकप्रियता के शिखर पर था।
आलम आरा’ पहली सवाक फिल्म है। ये फिल्म 14 मार्च 1931 को बनी। भारतीय सिनेमा की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ बनाने वाले फिल्मकार ‘अर्देशिर एम. ईरानी’ थे। अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी थी जिससे उन्हें इस तरह की फिल्म बनाने की प्रेरणा मिली और उनके मन में भी भारतीय सिनेमा में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जागी।
इस फिल्म में पहले पार्श्वगायक बने डब्लू. एम. खान। पहला गाना था ‘दे दे खुदा के नाम पर प्यारे अगर देने की ताकत है’। आलम आरा का संगीत उस समय डिस्क फॉर्म में रिकार्ड नहीं किया जा सका, फिल्म की शूटिंग शुरू हुई तो साउंड के कारण ही इसकी शूटिंग रात में करनी पड़ती थी।
आलम आरा फिल्म ‘अरेबियन नाइट्स’ जैसी फैंटेसी थी। फिल्म ने हिंदी-उर्दू के मेलवाली ‘हिंदुस्तानी’ भाषा को लोकप्रिय बनाया। इसमें गीत, संगीत तथा नृत्य के अनोखे संयोजन थे। फिल्म की नायिका जुबैदा थीं। नायक थे विट्ठल। वे उस दौर के सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाले स्टार थे।
लेखक कहते है कि जब विट्ठल को फिल्म के नायक के रूप में चुना गया तो उनके बारे में एक कहानी बहुत ही मशहूर थी कि विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किलें आती थीं। पहले तो उनका बतौर नायक चयन किया गया मगर उर्दू न बोल पाने के कारण उन्हें फिल्म में नायक की भूमिका से हटाकर उनकी जगह मेहबूब को नायक बना दिया गया। मेहबूब भी एक बहुत ही प्रसिद्ध और बेहतरीन कलाकार रहे हैं।
विट्ठल नाराज़ हो गए और अपना हक पाने के लिए उन्होंने मुकदमा कर दिया। उस दौर में उनका मुकदमा मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा जो तब के मशहूर वकील हुआ करते थे। विट्ठल मुकदमा जीते और भारत की पहली बोलती फिल्म के नायक बनें।
इसके नायक बिट्ठल तथा नायिका जुबैदा थी। अर्देशिर को इस फिल्म को बनाने के बाद ‘भारतीय सवाक् फिल्म का पिता’ कहा गया। ये फिल्म 8 सप्ताह तक हाउस फुल चली थी।
इस फिल्म में सिर्फ तीन वाद्य यंत्र प्रयोग किये गए थे। आलम आरा फिल्म फैंटेसी फिल्म थी। फिल्म ने हिंदी-उर्दू के तालमेल वाली हिंदुस्तानी भाषा को लोकप्रिय बनाया। यह फिल्म 14 मार्च 1931 को मुंबई के ‘मैजेस्टिक’ सिनेमा में प्रदर्शित हुई। फिल्म 8 सप्ताह तक ‘हाउसफुल’ चली और भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण करना मुश्किल हो जाया करता था।
इसी फिल्म के उपरान्त ही फिल्मों में कई ‘गायक – अभिनेता’ बड़े परदे पर नज़र आने लगे। आलम आरा भारत के अलावा श्रीलंका, बर्मा और पश्चिम एशिया में पसंद की गई।
इसी सिनेमा से सिनेमा का एक नया युग शुरू हो गया था।
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