इस कहानी की लेखिका इस्मत चुगताई जी हैं। इस्मत चुगताई की कहानी “कामचोर” , लगभग ऐसे हर घर की कहानी है जिसमें दो या दो से ज्यादा बच्चे व भी कामचोर होते हैं। यह कहानी लेखिका व उसके परिवार के अन्य बच्चों की कहानी है जो दिन भर या तो बैठकर आराम फरमाते रहते हैं या फिर मौज मस्ती और शरारत करने में अपना पूरा दिन निकाल देते थे। यहां तक कि वे खुद के कार्य भी अपने आप नहीं करते थे।
ऐसे में घर के बड़ों ने सोचा कि घर के सारे नौकरों को निकाल दिया जाए और इन निकम्मे बच्चों को घर के छोटे-बड़े कामों में हाथ बटाँना सिखाया जाए । सोच को हकीकत का रूप देने से असली कहानी की शुरूवात होती हैं।
मां-बाप के बातों को सुनकर बच्चों ने सोचा कि हमें भी कुछ काम खुद करने चाहिए। सो बच्चों ने काम की शुरुवात अपने लिए पीने का पानी खुद लाने से की और फिर सभी बच्चे मटके और सुराहियों से पानी लेने दौड़ पड़े।
फिर क्या था पहले पानी लेने के चक्कर में धक्का-मुक्की शुरू हो गई। कोई किसी से डरने वाला नहीं था और कोई किसी की सुनने वाला भी नहीं था। सो वहीं पर फिर से लड़ाई झगड़ा शुरू हो गया। नतीजा सारे मटके , सुराहियों , पतीलियों इधर-उधर बिखर गई और बच्चे बुरी तरह से पानी से भीग गए।
लेखिका की मां ने फरमान सुनाया “जो काम नहीं करेगा। उसे रात का खाना नहीं दिया जाएगा”। यह सुनते ही सभी बच्चे काम करने के लिए राजी हो गये। लेखिका की मां ने बच्चों को कई सारे काम बताए। जैसे गंदी दरी को साफ करना , आंगन में पड़े कूड़े को साफ करना , पेड़ पौधों में पानी देना आदि। साथ में लेखिका के पिता ने बच्चों को इनाम का लालच भी दिया।
बच्चों ने अपने काम की शुरुआत फर्श पर पड़ी दरी साफ करने से शुरू की। दरी की धूल साफ करने के लिए बच्चों ने उस पर लकड़ी के डंडों से मारना शुरू कर दिया जिसकी वजह से दरी की सारी धूल कमरे में फैल गई और बच्चों के नाक और आंखों में धुस गई जिसकी वजह से बच्चे खाँसते-खाँसते बेदम हो गए।
इसके बाद बच्चों ने दूसरा मोर्चा संभाला आंगन में झाड़ू लगाने का। कुछ बच्चों के दिमाग में यह बात आयी कि झाड़ू लगाने से पहले थोड़ा पानी डाल देना चाहिए। फिर क्या था दरी में डालकर पानी छिड़कने का कार्य शुरू हुआ। काम तो क्या होना था। लेकिन छीना झपटी की वजह से बच्चों ने झाड़ू के तिनके तिनके बिखेर दिए। पानी डालने की वजह से पूरा आंगन व बच्चे कीचड़ से सन गये।
खैर अगला काम था पेड़ – पौधों में पानी देना। सारे बच्चे घर की सारी बाल्टियों , लोटे , भगौने आदि लेकर पौधों में पानी डालने निकल पड़े। अब पानी भरने के लिए भी लड़ाई झगड़ा , धक्का-मुक्की शुरू हो गई। नतीजा सारे बच्चे कीचड़ से सन गये। बच्चों को काबू करने के लिए सभी बड़ों को ( भाइयों , मामा-मामी , मौसी आदि ) को बुला लिया गया। फिर पड़ोस के बंगलों से नौकर बुला कर चार आना प्रति बच्चे के हिसाब से , हर बच्चे को नहलाया गया।
बच्चे यह मान चुके थे कि उनसे सफाई और पौधों में पानी देने का काम नहीं हो सकता है। इसलिए अब वो मुर्गियों को उनके दबड़े (मुर्गी घर) में बंद करने का कार्य करेंगे। फिर क्या था सभी बच्चे मुर्गियों को पकड़ने लगे जिस वजह से मुर्गियों डर के मारे इधर उधर भागने लगी। डर से भागती मुर्गियों ने घर की रसोई से लेकर पूरे आंगन में खूब उत्पात मचाया। लेकिन उन बच्चों से एक भी मुर्गी दबड़े में नहीं गई।
अचानक कुछ बच्चों का ध्यान घर आती हुई भेड़ों के ऊपर चला गया। उन्होंने सोचा कि क्यों न भेड़ों को ही खाना खिला दिया जाए। जैसे ही उन्होंने अनाज के दाने भेड़ों के आगे रखे तो , सारी भूखी भेड़ें अनाज पर टूट पड़ी और कुछ भेड़ों ने रसोई में रखी सब्जियों , मटर और अन्य चीजों को भी खाना शुरु कर दिया जिस वजह से पूरे घर में अफरा-तफरी का माहौल हो गया। बड़ी मुश्किल से भेड़ों पर काबू पाया गया।
इतना सब काम करने के बाद भी बच्चे कहां मानने वाले थे। उन्होंने फिर से काम करने की सोची और भैसों का दूध दोहने में जुट गए। भैंस इतने सारे बच्चों को वहां देख कर डर गई और उसने चारों पैरों में उछलकर दूसरी तरफ छलांग लगा दी।
बच्चों ने सोचा कि क्यों न भैंस के पैर बाँधकर दूध निकाला जाय और बच्चों ने भैंस के अगले दो पैर चाचाजी की चारपाई से बांध दिए। भैंस डर के मारे इधर-उधर भागने लगी और साथ में चाचा जी की चारपाई भी धसीट कर अपने साथ ले गई।
अब भैंस जहां-जहां जाती। चाचाजी भी चारपाई सहित वहाँ वहाँ जाते। इतने में कुछ बच्चों ने भैंस का बछड़ा भी खोल दिया । बछड़े के चिल्लाने से भैंस रुक गई और बछड़ा तत्काल दूध पीने में लग गया।
इतना सब होने के बाद लेखिका की माँ इतना परेशान हो गई कि उन्होंने मायके जाने की धमकी दे डाली। तब पिताजी ने सबको बुलाया और आदेश दिया कि अब से कोई किसी भी काम पर हाथ नहीं लगाएगा।
अगर कोई किसी काम पर हाथ लगायेगा , तो उसे रात का खाना नहीं दिया जाएगा। यानि कहानी जहां से शुरू हुई थी वहीं पर आकर खत्म हो गई। निकम्मे बच्चे जो पहले भी कोई काम नहीं करते थे। आज के बाद भी नहीं करेंगे।
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