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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वेडिंग
अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न 1. यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?
यशोधर बाबू और उनकी पत्नी दोनों ही आधुनिक सोच से बहुत दूर है परंतु यशोधर बाबू की पत्नी अपने बच्चों को साथ देते देते आधुनिका हो गई है। जब वह विवाह के बाद ससुराल में आई थी तो घर में उनके ताऊजी और ताई जी की चलती थी। इसीलिए वह अपनी अतृप्त इच्छाओं को पूरा ना कर सकी। अतः अब वह अपनी इच्छाओं को अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करती है। परंतु यशोधर बाबू एक परंपरावादी व्यक्ति हैं। नए जमाने की सुविधाएँ जैसे गैस, फ्रीज, टीवी आदि को अच्छा नहीं मानते। सच्चाई तो यह है कि वे समय के साथ ढल नहीं पाते और बार-बार किशनदा के संस्कारों को याद करते हैं।
प्रश्न 2. पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते हैं?
‘जो हुआ होगा’ वाक्यांश का पाठ में अपने एक बार प्रयोग हुआ है। पहली बार इसका प्रयोग तब हुआ जब यशोधर बाबू ने किशनदा के किसी जाति भाई से उनकी मृत्यु का कारण पूछा। उत्तर में उसने कहा था ‘जो हुआ होगा’ अर्थात पता नहीं क्या हुआ? किशनदा ने भी इस वाक्य का प्रयोग किया है। किशनदा इस वाक्य का प्रयोग करते हुए कहते हैं कि “भाऊ, सभी लोग इसी ‘जो हुआ होगा’ से ही मरते हैं। गृहस्थ हो; ब्रह्मचारी हो; गरीब हो या अमीर हो; मरते ‘जो हुआ होगा’ से ही हैं। शुरू में और आखिर में सब अकेले ही होते हैं। बस अपना नियम अपना हुआ।” भाव यह है कि बच्चे जब अपने माता-पिता की उपेक्षा करने लगते हैं तो माता-पिता अकेले ही रह जाते हैं।
प्रश्न 3. ‘समहाउ इम्प्रोपर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी की कथ्य से क्या संबंध बनता है?
‘समहाउ इम्प्रोपर’ यशोधर बाबू का तकिया कलाम है। इसका अर्थ है कि ‘फिर भी यह अनुचित है’ उदाहरण के रूप में सिल्वर वेडिंग के लिए वे अपने अधिनस्थ कर्मचारियों को ₹30 चाय पानी के लिए देते हैं। परंतु इसे वे ‘समहाउ इम्प्रोपर’ ही कहते हैं। यही नहीं भी अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलने को भी ‘समहाउ इम्प्रोपर’ कहते हैं। यह वाक्यांश कहानी के मूल कथ्य से जुड़ा हुआ है। लेखक यह बताना चाहता है कि प्रत्येक पुरानी पीढ़ी नवीन परिवर्तनों को अनुचित मानती है। लेखक इस पाठ द्वारा कहना चाहता है कि यदि लोग अपने बच्चों के साथ सम्मान पूर्वक जीना चाहते हैं तो उन्हें नए परिवर्तनों को स्वीकारना पड़ेगा। अन्यथा उनकी हालत यशोधर बाबू जैसी हो जाएगी।
प्रश्न 4. यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे? (परीक्षोपयोगी नहीं है)
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। मेरे जीवन को दिशा देने में मेरी बड़ी बहन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वे पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद सभी में हमेशा आगे रहती थी। उन्हें देखकर मुझे भी आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती थी। वे समय-समय पर मुझे मार्गदर्शन भी देती रही।
प्रश्न 5. वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं?
आधुनिक युग में संयुक्त परिवार प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है। प्रायः परिवार छोटे बनते जा रहे हैं। बेटे अपनी आय को स्वयं खर्चना चाहते हैं। और इस प्रकार पुरानी तथा नई पीढ़ी के बीच दरार उत्पन्न हो गई है। परंतु सामंजस्य के द्वारा इस समस्या का हल निकाल सकते हैं। पुराने लोगों को थोड़ा आधुनिक बनना पड़ेगा और नए को पुराना। आज के बच्चे आधुनिक युग की सुख-सुविधाओं को पाना चाहते हैं तो उन्हें यशोधर बाबू जैसे पिता को अपमानित नहीं करना चाहिए। इसके साथ-साथ यशोधर बाबू के समान एक पिता को अधिक परंपरावादी होना भी अच्छा नहीं है। दोनों पक्षों में सामंजस्य स्थापित करने से आधुनिक युग को सफल बनाया जा सकता है।
प्रश्न 6. निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे/ कहेंगी और क्यों? क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य ख) पीढ़ी का अंतराल ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
इस कहानी में मानवीय मूल्यों को हाशिए पर धकेले जाते हुए दिखाया गया है। उदाहरण के रूप में यशोधर बाबू के बच्चे भाईचारा व रिश्तेदारी का ध्यान नहीं रखते और न ही बुजुर्गों का उचित सम्मान करते हैं। इस कहानी में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी देखा जा सकता है। यशोधर बाबू तो आधुनिक बन नहीं पाते परंतु उनकी पत्नी आधुनिक बन गई है। परंतु गहराई से अध्ययन किया जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कहानी की मूल संवेदना पीढ़ी का अंतराल है। उदाहरण के लिए बच्चे यशोधर बाबू के लिए गाउन इसलिए लाते हैं ताकि वे फटा हुआ पुलोवर पहनकर समाज में उनकी बेइज्जती न कराएँ। बच्चों को अपने मान सम्मान की तो चिंता है, परंतु वे अपने पिता की मनःस्थिति को नहीं समझ पाते। अतः ‘पीढ़ी का अंतराल’ इस कहानी की मुख्य समस्या है।
प्रश्न 7. अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखे जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
आज का युग वैज्ञानिक है। प्रतिदिन नए-नए आविष्कार हो रहें हैं। अधिकांश अविष्कार मानव को सुविधाएँ देने में अत्यधिक सहायक है। आज प्रत्येक घर में बिजली के पंखे, ए०सी०, रसोई गैस के चूल्हे, टेलीफोन, इंटरनेट आदि अनेक ऐसी वस्तु है जो लोगों के जीवन को सुविधाजनक बना रही है। लेकिन हमारे बड़े बूढ़े अभी तक पुरानी बातों को याद करते हैं। वे प्रायः कहते रहते हैं कि चूल्हे की रोटी का कोई मुकाबला नहीं है। उनका कहना है कि फ्रिज के कारण हम बासी भोजन करते हैं। मोबाइल का अधिक प्रयोग युवा को बिगाड़ रहा है। इंटरनेट के दुरुपयोग के कारण लोग चरित्रहीन बन गए हैं। यद्यपि सच्चाई यह है कि बुजुर्गों के विचार पुराने हो सकते हैं परंतु आधुनिक सुविधाओं का अधिक प्रयोग हमारी जीवनशैली को जटिल बनाता जा रहा है।
प्रश्न 8. यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उनके लिए तर्क दीजिए-क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं है।ख) यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण उन्हें नया कभी-कभी खींचता तो है परंतु पुराना छोड़ता नहीं इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है। और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों का अपनाना ही उचित है।
यशोधर बाबू एक द्वंदग्रस्त व्यक्ति है। कभी-कभी नया उन्हें अपनी ओर खींचता है परंतु पुराना उनसे छूटता नहीं। वे स्वयं यह निर्णय नही ले पाते कि नवीन मूल्यों को अपनाना चाहिए अथवा पुराने मूल्यों से चिपका रहना चाहिए। इसलिए हमें उनके बारे में सहानुभूति से सोचना चाहिए। मेरे नाना जी प्रायः नई वस्तु की आलोचना करते रहते हैं। एक बार हमने घर में ए०सी० लगवाया। नाना जी इस सुविधा का विरोध किया। परंतु अगले ही दिन वे ए०सी० ठंडी हवा में काफी देर तक सोते रहे। इसी प्रकार यशोधर बाबू का द्वंद्व भी स्वाभाविक है। हमें घर के बड़े-बुजुर्गों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए तथा उनकी उपेक्षा कभी नहीं करनी चाहिए।
सिल्वर वैडिंग
अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1:
यशोधर बाबू पुरानी परंपरा को नहीं छोड़ पा रहे हैं। उनके ऐसा करने को आप वर्तमान में कितना प्रासंगिक समझते हैं?
उत्तर –
यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी के प्रतीक हैं। वे रिश्ते–नातों के साथ–साथ पुरानी परंपराओं से अपना विशेष जुड़ाव महसूस करते हैं। वे पुरानी परंपराओं को चाहकर भी नहीं छोड़ पाते। यद्यपि वे प्रगति के पक्षधर है, फिर भी पुरानी परंपराओं के निर्वहन में रुचि लेते हैं। यशोधर बाबू किशनदा को अपना मार्गदर्शक मानते हैं और उन्हीं के बताए–सिखाए आदर्शों में जीना चाहते हैं। आपसी मेलजोल बढाना, रिश्तों को गर्मजोशी से निभाना, होली के आयोजन के लिए उत्साहित रहना, रामलीला का आयोजन करवाना; उनका स्वभाव बन गया है। इससे स्पष्ट है कि वे अपनी परंपराओं से अब भी जुड़े हैं। यद्यपि उनके बच्चे आधुनिकता के पक्षधर होने के कारण इन आदतों पर नाक–भी सिकोड़ते है, फिर भी यशोधर बाबू उन्हें निभाते आ रहे हैं। इसके लिए उन्हें अपने घर में टकराव झेलना पड़ता है।
यशोधर बाबू जैसे पुरानी पीढ़ी के लोगों को परंपरा से मोह बना होना स्वाभाविक है। उनका यह मोह अचानक नहीं समाप्त हो सकता। उनका ऐसा करना वर्तमान में भी प्रासंगिक है, क्योकि पुरानी परंपराएँ हमारी संस्कृति का अंग होती हैं। इन्हें एकदम से त्यागना किसी समाज के लिए शुभ लक्षण नहीं है। हाँ, यदि पुरानी परंपराएँ रूढ़ि बन गई हों तो उन्हें त्यागने में ही भलाई होती है। युवा पीढ़ी में मानवीय मूल्यों को प्रगाढ़ बनाने में परंपराएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अत: मैं इन्हें वर्तमान में भी प्रासंगिक समझता हूँ।
प्रश्न 2:
यशोधर बाबू के बच्चे युवा पीढी और नई सोच के प्रतीक हैं। उनका लक्ष्य प्रगति करना है। आप उनकी सोच और जीवन–शैली को भारतीय संस्कृति के कितना निकट पाते हैं?
उत्तर –
यशोधर बाबू जहाँ पुरानी पीढी के प्रतीक और परंपराओं की निभाने में विश्वास रखने वाले व्यक्ति है, वहींं उनके बच्चे की सोच एकदम अलग है। वे युवा पीढी और नई सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे आधुनिकता में विश्वास रखते हुए प्रगति की राह पर आगे बढ़ रहे है। वे अपने पिता की अपेक्षा एकाएक खूब धन कमा रहे है और उच्च पदों पर आसीन तो हो रहै है, किंतु परिवार से, समाज से, रिश्तेदारिओं से, परंपराओं से वे विमुख हो रहे हैं। वे प्रगति को अंधी दोड़ में शामिल होकर जीवन से किनारा कर बैठे है। प्रगति को पाने के लिए उन्होंने प्रेम, सदभाव, आत्मीयता, परंपरा, संस्कार से दूरी बना ली है। वे प्रगति और सुख को अपने जीवन का लक्ष्य मान बैठे हैं। इस प्रगति ने उम्हें मानसिक स्तर पर भी प्रभावित किया है, जिससे वे अपने पिता जी को ही पिछडा, परंपरा को व्यर्थ की वस्तु और मानवीय संबंधों की बोझ मानने लगे हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार यह लक्ष्य से भटकाव है।
भारतीय संस्कृति में भौतिक सुखों अपेक्षा सबके कल्याण की कामना की गई है। इस संस्कृति में संतुष्टि को महत्ता दी गई है। प्रगति की भागदौड़ से सुख तो माया जा सकता है पर संतुष्टि नहीं, इसलिए उनके बच्चे की सोच और उनकी जीवन–शैली भारतीय संस्कृति के निकट नहीं पाए जाते। इसका कारण यह है कि भौतिक सुखों को ही इस पीढी ने परम लक्ष्य मान लिया है।
प्रश्न 3:
यशोधर बाबू और उनके बच्चों के व्यवहार एक–दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। दोनोंं में से आप किसका व्यवहार अपनाना चाहेंगे और क्यों ?
यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी के प्रतीक और पुरानी सोच वाले व्यक्ति हैँ। वे अपनी परंपरा के प्रबल पक्षधर हैं। वे रिश्ते–नातों और परंपराओं को बहुत महत्त्व देते है और मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के पक्ष में हैं। उनकी सोच भारतीय संस्कृति के अनुरूप है। वे परंपराओं को निभाना जाते है तथा इनके साथ ही प्रगति भी चाहते हैं। इसके विपरीत, यशोधर बाबू के बच्चे रिश्ते–नातों और परंपराओं की उपेक्षा करते हुए प्रगति की अंधी दौड़ में शामिल हैं। वे परंपराओं और रिश्तों की बलि देकर प्रगति करना चाहते हैं। इससे उनमें मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है। वे अपने पिता को ही पिछड़ा, उनके विचारों को दकियानूसी और पुरातनपंथी मानने लगे हैँ। उनकी निगाह में भौतिक सुख ही सर्वापरि है। इस तरह दोनों के विचारों में द्वंद्व और टकराव है।
यदि मुझे दोनों में से किसी के व्यवहार को अपनाना पडे तो मैं यशोधर बाबू के व्यवहार को अपनाना चाहूँगा, पर कुछ सुधार के साथ इसका कारण यह है कि यशोधर बाबू के विचार हमें भारतीय संस्कृति के निकट ले जाते हैं। मानव–जीवन में रिश्ते-नातों तथा संबंधों का बहुत महत्त्व है। प्रगति से हम भौतिक सुख तो पा सकते है, पर संतुष्टि नहीं। यशोधर बाबू के विचार और व्यवहार हमे संतुष्टि प्रदान करते हैं। मैं प्रगति और परंपरा दोनों के बीच संतुलन बनाते हुए व्यवहार करना चाहूँगा।
प्रश्न 4:
सामान्यतया लोग अपने बच्चों की आकर्षक आय पर गर्व करते है, पर यशोधर बाबू ऐसी आय को गलत मानते है। आपके विचार से इसके क्या कारण हो सकते हैं? यदि आप यशोधर बाबू की जगह होते तो क्या करते?
उत्तर –
यदि पैसा कमाने का साधन मर्यादित है तो उससे होने वाली आय पर सभी को गर्व होता है। यह आय यदि बच्चों की हो तो यह गर्वानुभूति और भी बढ जाती है। यशोधर बाबू की परिस्थितियाँ इससे हटकर थी। वे सरकारी नौकरी करते थे, जहाँ उनका वेतन बहुत धीरे–धीरे बढ़ा था। उनका वेतन जितना बढ़ता था, उससे अधिक महँगाई बढ़ जाती थी। इस कारण उनकी आय में हुई वृद्धि का असर उनके जीवन–स्तर को सुधार नहीं पता था। नौकरी की आय के सहारे वे गुजारा करते थे। समय का चक्र घूमा और यशोधर बाबू के बच्चे किसी बडी विज्ञापन कंपनी में नौकरी पाकर रातों–रात मोटा वेतन कमाने लगे। यशोधर बाबू को इतनी मोटी तनख्वाह का रहस्य समझ में नहीं आता था। इसलिए वे समझते थे कि इतनी मोटी तनख्वाह के पीछे कोई गलत काम अवश्य किया जा रहा है। उन्होंने सारा जीवन कम वेतन में जैसै–तैसे गुजारा था, जिससे इतनी शान–शौकत्त को पचा नहीं पा रहे हैं। यदि मैं यशोधर की जगह होता तो बच्चे की मोटी तनख्वाह पर शक करने की बजाय वास्तविकता जानने का प्रयास करता और अपनी सादगी तथा बच्ची की तड़क–भड़क–भरी जिदगी के बीच सामंजस्य बनाकर खुशी–खुशी जीवन बिताने का प्रयास करता।
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