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सिल्वर वैडिंग (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1:
यशोधर बाबू पुरानी परंपरा को नहीं छोड़ पा रहे हैं। उनके ऐसा करने को आप वर्तमान में कितना प्रासंगिक समझते हैं?
उत्तर –
यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी के प्रतीक हैं। वे रिश्ते–नातों के साथ–साथ पुरानी परंपराओं से अपना विशेष जुड़ाव महसूस करते हैं। वे पुरानी परंपराओं को चाहकर भी नहीं छोड़ पाते। यद्यपि वे प्रगति के पक्षधर है, फिर भी पुरानी परंपराओं के निर्वहन में रुचि लेते हैं। यशोधर बाबू किशनदा को अपना मार्गदर्शक मानते हैं और उन्हीं के बताए–सिखाए आदर्शों में जीना चाहते हैं। आपसी मेलजोल बढाना, रिश्तों को गर्मजोशी से निभाना, होली के आयोजन के लिए उत्साहित रहना, रामलीला का आयोजन करवाना; उनका स्वभाव बन गया है। इससे स्पष्ट है कि वे अपनी परंपराओं से अब भी जुड़े हैं। यद्यपि उनके बच्चे आधुनिकता के पक्षधर होने के कारण इन आदतों पर नाक–भी सिकोड़ते है, फिर भी यशोधर बाबू उन्हें निभाते आ रहे हैं। इसके लिए उन्हें अपने घर में टकराव झेलना पड़ता है।
यशोधर बाबू जैसे पुरानी पीढ़ी के लोगों को परंपरा से मोह बना होना स्वाभाविक है। उनका यह मोह अचानक नहीं समाप्त हो सकता। उनका ऐसा करना वर्तमान में भी प्रासंगिक है, क्योकि पुरानी परंपराएँ हमारी संस्कृति का अंग होती हैं। इन्हें एकदम से त्यागना किसी समाज के लिए शुभ लक्षण नहीं है। हाँ, यदि पुरानी परंपराएँ रूढ़ि बन गई हों तो उन्हें त्यागने में ही भलाई होती है। युवा पीढ़ी में मानवीय मूल्यों को प्रगाढ़ बनाने में परंपराएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अत: मैं इन्हें वर्तमान में भी प्रासंगिक समझता हूँ।
प्रश्न 2:
यशोधर बाबू के बच्चे युवा पीढी और नई सोच के प्रतीक हैं। उनका लक्ष्य प्रगति करना है। आप उनकी सोच और जीवन–शैली को भारतीय संस्कृति के कितना निकट पाते हैं?
उतार –
यशोधर बाबू जहाँ पुरानी पीढी के प्रतीक और परंपराओं की निभाने में विश्वास रखने वाले व्यक्ति है, वहींं उनके बच्चे की सोच एकदम अलग है। वे युवा पीढी और नई सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे आधुनिकता में विश्वास रखते हुए प्रगति की राह पर आगे बढ़ रहे है। वे अपने पिता की अपेक्षा एकाएक खूब धन कमा रहे है और उच्च पदों पर आसीन तो हो रहें हैं, किंतु परिवार से, समाज से, रिश्तेदारिओं से, परंपराओं से वे विमुख हो रहे हैं। वे प्रगति को अंधी दौड़ में शामिल होकर जीवन से किनारा कर बैठे है। प्रगति को पाने के लिए उन्होंने प्रेम, सदभाव, आत्मीयता, परंपरा, संस्कार से दूरी बना ली है। वे प्रगति और सुख को अपने जीवन का लक्ष्य मान बैठे हैं। इस प्रगति ने उन्हें मानसिक स्तर पर भी प्रभावित किया है, जिससे वे अपने पिता जी को ही पिछडा, परंपरा को व्यर्थ की वस्तु और मानवीय संबंधों की बोझ मानने लगे हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार यह लक्ष्य से भटकाव है।
भारतीय संस्कृति में भौतिक सुखों की अपेक्षा सबके कल्याण की कामना की गई है। इस संस्कृति में संतुष्टि को महत्ता दी गई है। प्रगति की भागदौड़ से सुख तो पाया जा सकता है पर संतुष्टि नहीं। इसलिए उनके बच्चे की सोच और उनकी जीवन–शैली भारतीय संस्कृति के निकट नहीं पाए जाते। इसका कारण यह है कि भौतिक सुखों को ही इस पीढी ने परम लक्ष्य मान लिया है।
प्रश्न 3:
यशोधर बाबू और उनके बच्चों के व्यवहार एक–दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। दोनोंं में से आप किसका व्यवहार अपनाना चाहेंगे और क्यों ?
यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी के प्रतीक और पुरानी सोच वाले व्यक्ति हैँ। वे अपनी परंपरा के प्रबल पक्षधर हैं। वे रिश्ते–नातों और परंपराओं को बहुत महत्त्व देते है और मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के पक्ष में हैं। उनकी सोच भारतीय संस्कृति के अनुरूप है। वे परंपराओं को निभाना जाते है तथा इनके साथ ही प्रगति भी चाहते हैं। इसके विपरीत, यशोधर बाबू के बच्चे रिश्ते–नातों और परंपराओं की उपेक्षा करते हुए प्रगति की अंधी दौड़ में शामिल हैं। वे परंपराओं और रिश्तों की बलि देकर प्रगति करना चाहते हैं। इससे उनमें मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है। वे अपने पिता को ही पिछड़ा, उनके विचारों को दकियानूसी और पुरातनपंथी मानने लगे हैँ। उनकी निगाह में भौतिक सुख ही सर्वोपरि है। इस तरह दोनों के विचारों में द्वंद्व और टकराव है।
यदि मुझे दोनों में से किसी के व्यवहार को अपनाना पडे तो मैं यशोधर बाबू के व्यवहार को अपनाना चाहूँगा, पर कुछ सुधार के साथ। इसका कारण यह है कि यशोधर बाबू के विचार हमें भारतीय संस्कृति के निकट ले जाते हैं। मानव–जीवन में रिश्ते-नातों तथा संबंधों का बहुत महत्त्व है। प्रगति से हम भौतिक सुख तो पा सकते है, पर संतुष्टि नहीं। यशोधर बाबू के विचार और व्यवहार हमें संतुष्टि प्रदान करते हैं। मैं प्रगति और परंपरा दोनों के बीच संतुलन बनाते हुए व्यवहार करना चाहूँगा।
प्रश्न 4:
सामान्यतया लोग अपने बच्चों की आकर्षक आय पर गर्व करते है, पर यशोधर बाबू ऐसी आय को गलत मानते है। आपके विचार से इसके क्या कारण हो सकते हैं? यदि आप यशोधर बाबू की जगह होते तो क्या करते?
उत्तर –
यदि पैसा कमाने का साधन मर्यादित है तो उससे होने वाली आय पर सभी को गर्व होता है। यह आय यदि बच्चों की हो तो यह गर्वानुभूति और भी बढ जाती है। यशोधर बाबू की परिस्थितियाँ इससे हटकर थी। वे सरकारी नौकरी करते थे, जहाँ उनका वेतन बहुत धीरे–धीरे बढ़ा था। उनका वेतन जितना बढ़ता था, उससे अधिक महँगाई बढ़ जाती थी। इस कारण उनकी आय में हुई वृद्धि का असर उनके जीवन–स्तर को सुधार नहीं पता था। नौकरी की आय के सहारे वे गुजारा करते थे। समय का चक्र घूमा और यशोधर बाबू के बच्चे किसी बडी विज्ञापन कंपनी में नौकरी पाकर रातों–रात मोटा वेतन कमाने लगे। यशोधर बाबू को इतनी मोटी तनख्वाह का रहस्य समझ में नहीं आता था। इसलिए वे समझते थे कि इतनी मोटी तनख्वाह के पीछे कोई गलत काम अवश्य किया जा रहा है। उन्होंने सारा जीवन कम वेतन में जैसै–तैसे गुजारा था, जिससे इतनी शान–शौकत्त को पचा नहीं पा रहे हैं। यदि मैं यशोधर की जगह होता तो बच्चे की मोटी तनख्वाह पर शक करने की बजाय वास्तविकता जानने का प्रयास करता और अपनी सादगी तथा बच्चों की तड़क–भड़क–भरी जिदगी के बीच सामंजस्य बनाकर खुशी–खुशी जीवन बिताने का प्रयास करता।
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