उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ का सारांश | Upbhoktavad Ki Sanskriti Summary class 9 Chapter-3 | Kshitiz Hindi class 9 | EduGrown

शयामचरण दुबे  उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ का सारांश | Upbhoktavad Ki Sanskriti Summary class 9 Chapter-3 | Kshitiz Hindi class 9 | EduGrown

लेखक परिचय

शयामचरण दुबे

इनका जन्म सन 1922 में मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में हुआ। उन्होंने नागपुर विश्वविधालय से से मानव विज्ञान में पीएचडी की। वे भारत के अग्रणी समाज वैज्ञानिक रहे हैं। इनका देहांत सन 1996 में हुआ।

उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ का सारांश ( Very Short Summary)

लेखक कहते हैं कि उपभोग सुख नहीं है। उनके अनुसार मानसिक, शारीरिक और सूक्ष्म आराम सुख है। लेकिन आजकल केवल उपभोग के साधनों – संसाधनों का अधिक से अधिक भोग ही सुख माना जाता है।

      उपभोक्तावाद संस्कृति ने हमारे दैनिक जीवन को पूर्ण रूप से अपने प्रभाव में ले लिया है। सुबह उठने के समय से लेकर सोने के समय तक ऐसा लगता है कि दुनिया में विज्ञापन के अलावा कोई चीज़ देखने या सुनने लायक नहीं है। परिणाम स्वरूप हम वही खाते-पीते और पहनते-ओढ़ते हैं जो विज्ञापन हमें बताते हैं।

      इस प्रकार उभोक्तावादी संस्कृति के कारण हम उभोगों के गुलाम बनते जा रहे हैं। हम सिर्फ अपने बारे में सोचने लगे हैं। इससे हमारे सामाजिक संबंध संकुचित हो गए हैं। मर्यादा और नैतिकता समाप्त हो रही है।

      गांधीजी ने उपभोक्तावादी संस्कृति के दुष्प्रभाव को पहले ही समझ लिया था। इसलिए उन्होंने भारतीयों को अपनी बुनियाद और अपनी संस्कृति पर दृढ़ रहने के लिए कहा था।     

उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ का सारांश ( Detailed Summary)

उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ का सारांश ( Detailed Summary)

लेखक ने इस पाठ में उपभोक्तावाद के बारे में बताया है। उनके अनुसार सबकुछ बदल रहा है। नई जीवनशैली आम व्यक्ति पर हावी होती जा रही है। अब उपभोग-भोग ही सुख बन गया है। बाजार विलासिता की सामग्रियों से भरा पड़ा है।

एक से बढ़कर एक टूथपेस्ट बाजार में उपलब्ध हैं। कोई दाँतो को मोतियों जैसा बनाने वाले, कोई मसूढ़ों को मजबूत रखता है तो कोई वनस्पति और खनिज तत्वों द्वारा निर्मित है। उन्ही के अनुसार रंग और सफाई की क्षमता वाले ब्रश भी बाजार में मौजूद हैं। पल भर में मुह की दुर्गन्ध दूर करने वाले माउथवाश भी उपस्थित है। सौंदर्य-प्रासधन में तो हर माह नए उत्पाद जुड़ जाते हैं। अगर एक साबुन को ही देखे तो ऐसे साबुन उपलब्ध हैं जो तरोताजा कर दे, शुद्ध-गंगाजल से निर्मित और कोई तो सिने-स्टार्स की खूबसूरती का राज भी है। संभ्रांत महिलओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार के आराम से मिल जाती है।

वस्तुओं और परिधानों की दुनिया से शहरों में जगह-जगह बुटीक खुल गए हैं। अलग-अलग ब्रांडो के नई डिज़ाइन के कपडे आ गए हैं। घड़ियां अब सिर्फ समय देखने के लिए बल्कि प्रतिष्ठा को बढ़ाने के रूप में पहनी जाती हैं। संगीत आये या न पर म्यूजिक सिस्टम बड़ा होना चाहिए भले ही बजाने न आये। कंप्यूटर को दिखावे के लिए ख़रीदा जा रहा है। प्रतिष्ठा के नाम पर शादी-विवाह पांच सितारा होटलों में बुक होते हैं। इलाज करवाने के लिए पांच सितारा हॉस्पिटलों में जाया जाता है। शिक्षा के लिए पांच सितारा स्कूल मौजूद हैं कुछ दिन में कॉलेज और यूनिवर्सिटी भी बन जाएंगे। अमेरिका और यूरोप में मरने के पहले ही अंतिम संस्कार के बाद का विश्राम का प्रबंध कर लिया जाता है। कब्र पर फूल-फव्वारे, संगीत आदि का इंतज़ाम कर लिया जाता है। यह भारत में तो नही होता पर भविष्य में होने लग जाएगा।


हमारी परम्पराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। हमारी मानसिकता में गिरावट आ रही है। हमारी सिमित संसाधनों का घोर अप्व्यय हो रहा है। आलू चिप्स और पिज़्ज़ा खाकर कोई भला स्वस्थ कैसे रह सकता है? सामाजिक सरोकार में कमी आ रही है। व्यक्तिगत केन्द्रता बढ़ रही है और स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। गांधीजी के अनुसार हमें अपने आदर्शों पर टिके रहते हुए स्वस्थ बदलावों को अपनाना है। उपभोक्ता संस्कृति भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा साबित होने वाली है।

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ल्हासा की ओर पाठ का सारांश | Lhasa ki aur Summary class 9 Chapter-2 | Kshitiz Hindi class 9 | EduGrown

लेखक परिचय

राहुल सांकृत्यायन

इनका जन्म सन 1893 में उनके ननिहाल गाँव पन्दाह, जिला आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ। इनका मूल नाम केदार पाण्डेय था। इनकी शिक्षा काशी, आगरा और लाहौर में हुई। सन 1930 में इन्होने श्री लंका जाकर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। सन 1963 में इनका देहांत हो गया।

Lhasa ki aur पाठ का सारांश ( Very Short Summary)

नेपाल से तिब्बत आने-जाने का मुख्य मार्ग नेपाल-तिब्बत मार्ग ही है। जब फरी कलिघ्पाघ् का रास्ता नहीं खुला था, तब नेपाल का ही नहीं भारत का भी व्यापार इसी रास्ते से होता था। इसी मार्ग से फौजें भी आया-जाया करती थीं। आज भी इस मार्ग पर अनेक चैकियाँ तथा किले बने हुए हैं। किसी समय चीनी फौज यहाँ रहा करती थी। परंतु ये फौजी मकान आज गिर चुके हैं। दुर्ग का कोई-कोई भाग (जहाँ किसानों ने अपना निवास बना लिया है) आबाद दिखाई देता है।

तिब्बत में जाति-पाँति का भेद-भाव नहीं है। औरतों के लिए परदा प्रथा नहीं है। भिखमंगों को छोड़कर अपरिचित भी घर के अंदर जा सकते हैं। घरों की सास-बहुएँ बिना संकोच के चाय बना लाती हैं। वहाँ चाय, मक्खन और सोडा-नमक मिलाकर तथा चोडगी में कूटकर मिट्टी के दाँतेदार बर्तन में परोसी जाती है। परित्यक्त चीनी किले से चलने पर एक आदमी लेखक से राहदारी माँगने आया। लेखक ने अपनी तथा सुमति की चिटें दिखा दीं। सुमति के परिचय से लेखक को थोडला के आखिरी गाँव में ठहरने के लिए उचित जगह मिल गई थी।

डाँड़ा तिब्बत के खतरनाक घने जंगलों एवं ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से भरे स्थान हैं। यह स्थान सोलह-सत्राह हशार फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव भी नहीं है। रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा तथा निर्जन है। यहाँ कोई भी आदमी दिखाई नहीं देता है। यहाँ डाकू निर्भय रहते हैं। यहाँ पुलिस के बंदोबस्त पर सरकार पैसा खर्च नहीं करती। यहाँ डाकू किसी की भी हत्या कर उसे लूट लेते हैं। डाकू यात्राी को पहले मार डालते हैं। यदि डाकू राही को न मारें तो राही उन्हें भी मार सकते हैं|

Lhasa ki aur पाठ का सारांश ( Detailed Summary)

Lhasa ki aur पाठ का सारांश ( Detailed Summary)

इस पाठ में राहुल सांकृत्यायन जी ने अपनी पहली तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है जो उन्होंने सन् 1929-30 में नेपाल के रास्ते की थी। चूंकि उस समय भारतीयो को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं  थी, इसलिए उन्होंने  यह यात्रा एक भिखमन्गो के छद्म वेश में  की थी। 

          लेखक की यात्रा बहुत वर्ष पहले जब फटी–कलिङ्पोङ् का रास्ता नहीं बना था, तो नेपाल से तिब्बत जाने का एक ही रास्ता था। इस रास्ते पर नेपाल के लोगों के साथ–साथ भारत के लोग भी जाते थे। यह रास्ता व्यापारिक और सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए इसे लेखक ने मुख्य रास्ता बताया है। तिब्बत में जाति–पाति, छुआछूत का सवाल नहीं उठता और वहाँ औरतें परदा नहीं डालती है। चोरी की आशंका के कारण भिखमंगो को कोई घर में घुसने नहीं देता। नहीं तो अपरिचित होने पर भी आप घर के अंदर जा सकते हैं और जरूरत अनुसार अपनी झोली से चाय दे सकते हैं, घर की बहु अथवा सास उसे आपके लिए पका देगी। 

          परित्यक्त चीनी किले से जब वह चले तो एक व्यक्ति को दो चिटें राहदारी देकर थोड़ला के पहले के आखिरी गाँव में पहुँच गए। यहाँ सुमति (मंगोल भिक्ष, राहुल का दोस्त) पहचान तथा भिखारी होने के कारण रहने को अच्छी जगह मिली। पांच साल बाद वे लोग इसी रास्ते से लौटे थे तब उन्हें रहने की जगह नहीं मिली थी और गरीब के झोपड़ी में ठहरना पड़ा था क्योंकि वे भिखारी नहीं बल्कि भद्र यात्री के वेश में थे। 

          अगले दिन राहुल जी एवं सुमति जी को एक विकट डाँडा थोङ्ला पार करना था। डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगह थी। सोलह–सत्रह हजार फीट उंची होने के कारण दोनों ओर गाँव का नामोनिशान न था। डाकुओं के छिपने की जगह तथा सरकार की नरमी के कारण यहाँ अक्सर खून हो जाते थे। चूँकि वे लोग भिखारी के वेश में थे इसलिए हत्या की उन्हें परवाह नहीं थी परन्तु उंचाई का डर बना था। दूसरे दिन उन्होंने डाँडे की चढ़ाई घोड़े से की जिसमें उन्हें दक्षिण–पूरब ओर बिना बर्फ और हरियाली के नंगे पहाड़ दिखे तथा उत्तर की ओर पहाड़ों पर कुछ बर्फ दिखी। उतरते समय लेखक का घोडा थोड़ा पीछे चलने लगा और वे बाएं की ओर डेढ़ मील आगे चल दिए। बाद में पूछ कर पता चला लङ्कोर का रास्ता दाहिने के तरफ तथा जिससे लेखक को देर हो गयी तथा सुमति नाराज हो गए परन्तु जल्द ही गुस्सा ठंडा हो गया और वे लङ्कोर में एक अच्छी जगह पर ठहरे। 

         वे अब तिट्टी के मैदान में थे जो की पहाड़ों से घिरा टापूथा सामने एक छोटी सी पहाड़ी दिखाई पड़ती थी जिसका नाम तिट्टी–समाधि–गिटी था। आसपास के गाँवों में सुमति के बहुत परिचित थे वे उनसे जाकर मिलना चाहते थे परन्तु लेखक ने उन्हें मना कर दिया और ल्हासा पहुंचकर पैसे देने का वादा किया। सुमति मान गए और उन्होंने आगे बढ़ना शुरू किया। उन्होंने सुबह चलना शुरू नहीं किया था इसीलिए उन्हें कड़ी धूप में आगे बढ़ना पड़ रहा था, वे पीठ पे अपनी चीज़े लादे और हाथ में डंडा लिए चल रहे थे। सुमति एक ओर यजमान से मिलना चाहते थे इसलिए उन्होंने बहाना कर टोकर विहार की ओर चलने को कहा। तिब्बत की जमीन छोटे–बड़े जागीरदारों के हाथों में बँटी है। इन जागीरों का बड़ा हिस्सा मठों के हाथ में है।अपनी–अपनी जागीर में हर जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता है जिसके लिए मजदुर उन्हें बेगार में मिल जाते हैं।

        लेखक शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु न्मसे से मिले। वहां एक अच्छा मंदिर था जिसमें बुद्ध वचन की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी थीं जिसे लेखक पढ़ने में लग गए इसी दौरान सुमति ने आसपास अपने यजमानों से मिलकर आने के लिए लेखक से पूछा जिसे लेखक ने मान लिया, दोपहर तक सुमति वापस आ गए। चूँकि तिट्टी वहां से ज्यादा दूर नहीं था इसीलिए उन्होंने अपना सामान पीठ पर उठाया और न्मसे से विदा लेकर चल दिए। 

          सुमित का परिचय– वह लेखक को यात्रा के दौरान मिला जो एक मंगोल भिक्षु था। उनका नाम लोब्ज़टोख था। इसका अर्थ हैं सुमति प्रज. अतः सुविधा के लिए लेखक ने उसे सुमति नाम से पुकारा हैं। 

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दो बैलों की कथा पाठ का सारांश | Do bailon ki katha Summary class 9 Chapter-1 | Kshitiz Hindi class 9 | EduGrown

प्रेमचंद  दो बैलों की कथा पाठ का सारांश | Do bailon ki katha Summary class 9 Chapter-1 | Kshitiz Hindi class 9 | EduGrown

लेखक परिचय

प्रेमचंद
इनका जन्म सन 1880 में बनारस के लमही गाँव में हुआ था। इनका मूल नाम धनपत राय था। बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी कर ली परंतु असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और लेखन कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए। सन १९३६ में इस महान कथाकार का देहांत हो गया।

दो बैलों की कथा पाठ का सारांश ( Very Short Summary)

यह कहानी दो बैलों के बारे में है जो अपने मालिक से बेहद प्यार करते थे और जिनमे आपस में भी गहरी मित्रता थी। दोनों बैल स्वाभिमानी, बहादुर और परोपकारी हैं। उनका मालिक उन्हें बड़े स्नेह से रखता है। लेकिन एक बार दोनों बैलों को मालिक के ससुराल भेज दिया जाता है। नये ठिकाने पर उचित सम्मान न मिलने के कारण दोनों बैल वहाँ से भागकर अपने असली मालिक के पास आते हैं। उन्हें दोबारा नये ठिकाने पर भेज दिया जाता है। जब वे दोबारा भागने की कोशिश करते हैं तो कई मुसीबतों में फँस जाते हैं। आखिर में उन्हें किसी कसाई के हाथ नीलाम कर दिया जाता है। लेकिन दोनों बैल उस कसाई के चंगुल से छूटने में भी कामयाब हो जाते हैं और अंत में अपने असली मालिक के पास पहुँच जाते हैं। यह कहानी बड़ी ही रोचक है और सरल भाषा में लिखी गई है।

दो बैलों की कथा पाठ का सारांश | Do bailon ki katha Summary class 9 Chapter-1 | Kshitiz Hindi class 9 | EduGrown

दो बैलों की कथा पाठ का सारांश (Detailed Summary)

लेखक के अनुसार गधा एक सीधा और निरापद जानवर है। वह सुख-दुख , हानि-लाभ, किसी भी दशा में कभी नहीं बदलता। उसमें ऋषि-मुनियों के गुण होते हैं, फिर भी आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है। बैल गधे के छोटे भाई हैं जो कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट करते हैं।

झूरी काछी के पास हीरा और मोती नाम के दो स्वस्थ और सुंदर बैल थे। वह अपने बैलों से बहुत प्रेम करता था। हीरा और मोती के बीच भी घनिष्ठ संबंध था। एक बार झूरी ने दोनों को अपने ससुराल के खेतों में काम करने के लिए भेज दिया। वहाँ उनसे खूब काम करवाया जाता था लेकिन खाने को रुखा-सूखा ही दिया जाता था। अत: दोनों रस्सी तुड़ाकर झूरी के पास भाग आए। झूरी उन्हें देखकर बहुत खुश हुआ और अब उन्हें खाने-पीने की कमी नहीं रही। दोनों बड़े खुश थे। मगर झूरी की स्त्री को उनका भागना पसंद नहीं आया। उसने उन्हें खरी-खोटी और मजूर द्वारा खाली सूखा भूसा खिलाया गया। दूसरे दिन झूरी का साला फिर उन्हें लेने आ गया। फिर उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी पर खाने को सूखा भूसा ही मिला।

कई बार काम करते समय मोती ने गाड़ी खाई में गिरानी चाही तो हीरा ने उसे समझाया। मोती बड़ा गुस्सैल था , हीरा धीरज से काम लेता था। हीरा की नाक पर जब खूब डंडे बरसाए गए तो मोती गुस्से से हल लेकर भागा, पर गले में बड़ी रस्सियाँ होने के कारण पकड़ा गया। कभी-कभी उन्हें खूब मारा-पीटा भी जाता था। इस तरह दोनों की हलत बहुत खराब थी।
वहाँ एक छोटी-सी बालिका रहती थी। उसकी माँ मर चुकी थी। उसकी सौतेली माँ उसे मारती रहती थी , इसलिए उन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी। वह रोज़ दोनों को चोरी-छिपे दो रोटियाँ डाल जाती थी। इस तरह दोनों की दशा बहुत खराब थी। एक दिन उस बालिका ने उनकी रस्सियाँ खोल दी। दोनों भाग खड़े हुए। झूरी का साला और दूसरे लोग उन्हें पकड़ने दौड़े पर पकड़ न सके। भागते-भागते दोनों नई ज़गह पहुँच गए। झूरी के घर जाने का रास्ता वे भूल गए। फिर भी बहुत खुश थे। दोनों ने खेतों में मटर खाई और आज़ादी का अनुभव करने लगे। फिर एक साँड से उनका मुकाबला हुआ। दोनों ने मिलकर उसे मार भगाया , लेकिन खेत में चरते समय मालिक आ गया। मोती को फँसा देखकर हीरा भी खुद आ फँसा। दोनों काँजीहौस में बंद कर दिए गए। वहाँ और भी जानवर बंद थे। सबकी हालत बहुत खराब थी। जब हीरा-मोती को रात को भी भोजन न मिला तो दिल में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। फिर एक दिन दीवार गिराकर दोनों ने दूसरे जानवरों को भगा दिया। मोती भाग सकता था पर हीरा को बँधा देखकर वह भी न भाग सका।

काँजीहौस के मालिक को पता लगने पर उसने मोती की खूब मरम्मत की और उसे मोटी रस्सी से बाँध दिया। एक सप्ताह बाद कँजीहौस के मालिक ने जानवरों को कसाई के हाथों बेच दिया। एक दढ़ियल आदमी हीरा-मोती को ले जाने लगा। वे समझ गए कि अब उनका अंत समीप है। चलते-चलते अचानक उन्हें लगा कि वे परिचित राह पर आ गए हैं। उनका घर नज़दीक आ गया था। दोनों उन्मत्त होकर उछलने लगे और दौड़ते हुए झूरी के द्वार पर आकर खड़े हो गए। झूरी ने देखा तो खुशी से फूल उठा। अचानक दढ़ियल ने आकर बैलों की रस्सियाँ पकड़ ली। झूरी ने कहा कि वे उसके बैल हैं , पर दढ़ियल ज़ोर-ज़बरदस्ती करने लगा। तभी मोती ने सींग चलाया और दढ़ियल को दूर तक खदेड़ दिया। थोड़ी देर बाद ही दोनों खुशी से खली-भूसी-चूनी खाते दिखाई पड़े । घर की मालकिन ने भी आकर दोनों को चूम लिया।

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NCERT Solution – दो बैलों की कथा

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दिये जल उठे पाठ का सारांश | Diye Jal Uthe Summary class 9 Chapter-6 | Sanchayan Hindi class 9 | EduGrown

दिये जल उठे पाठ का सारांश | Diye Jal Uthe Summary class 9 Chapter-6 | Sanchayan Hindi class 9 | EduGrown

दिये जल उठे पाठ का सारांश ( Very Short Summary ) class 9 Sanchayan

दांडी कूच की तैयारी के सिलसिले में वल्लभभाई पटेल सात मार्च को रास पहुँचे थे। लोगों के आग्रह पर पटेल ने संक्षिप्त भाषण दिया। इसी बीच मजिस्ट्रेट ने निषेधाज्ञा लागू कर दी और पटेल को गिरफ़्तार कर लिया गया। यह गिरफ़्तारी शिलिडी के आदेश पर हुई थी जिसे पटेल ने पिछले आंदोलन के समय अहमदाबाद से भगा दिया था। पटेल को बोरसद की आदलत में लाया गया। पटेल को 500 जुर्माने के साथ तीन महीने की जेल हुई। पटेल को अहमदाबाद से साबरमती जेल लाया गया। साबरमती आश्रम में गांधी को पटेल की गिरफ़्तारी, सजा और उन्हें जेल ले जाने की सूचना मिली जिससे वे बहुत क्षुब्ध हुए।
बोरसद से जेल का रास्ता साबरमती आश्रम से होकर जाता था। सारे आश्रमवासी इन्तजार कर रहे थे। पटेल को गिरफ़्तार करके ले जाने वाली मोटर रुकी और पटेल सबसे मिले। पटेल की गिरफ़्तारी की देशभर में प्रतिक्रिया हुई। सबने जेल भेजने के सरकारी कदम की भर्त्सना की। 


दांडी कुछ से पहले नेहरू गांधी जी से मिलना चाहते थे लेकिन गांधी जी ने उन्हें पत्र द्वारा बता दिया कि वह अपनी यात्रा को आगे नहीं बढ़ायेंगे। तय दिन गांधी जी नमक बनाने के लिए आश्रम से निकल पड़े। रास में उनका भव्य स्वागत हुआ। वहाँ के दरबारी लोग उनके साथ मिल गए। वहाँ उमड़े जनसभा में गांधी जी ने भाषण दिया और ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दी। गांधी जी किसी राजघराने के इलाके से नहीं जाना चाहते थे। वे चाहते थे कि अपनी पूरी यात्रा ब्रिटिश हुकूमतवाली जमीन से ही करें लेकिन फिर भी उन्हें कुछ रास्ता बड़ौदा रियासत के बीच से तय करना पड़ा।


सत्याग्रही शाम छह बजे रास से चले और आठ बजे कनकापुरा पहुँचे। वहाँ की जनसभा को गांधीजी ने संबोधित करते हुए ब्रितानी कुशासन का जिक्र किया। संबोधन के बाद उस दिन की यात्रा समाप्त होनी थी परन्तु उसमे बदलाव किया गया। कनकापुरा से दांडी जाने के लिए मही नदी पर करनी थी तय हुआ कि नदी को आधी रात के समय समुद्र का पानी चढ़ने पर पार किया जाए ताकि कीचड़ और दलदल में कम-से-कम चलना पड़े। रात साढ़े दस बजे भोजन के बाद सत्याग्रही नदी की ओर चल पड़े। अँधेरी रात में गांधी जी लगभग चार किलोमीटर दलदली जमीन पर चले और नदी के तट पर एक कुटिया में आराम किया।

आधी रात को मही नदी का किनारा भरा था। कनकापुरा के लोगों के हाथ में दिए थे। तट के दूसरी ओर भी लोग दिए जलाकर खड़े थे। लोगों ने दिए द्वारा उस रात को जगमग रात बना दिया था। गांधीजी घुटने भर पानी में चलकर नाव पर चढ़े। महात्मा गांधी, सरदार पटेल और नेहरू की जय के नारे लगने लगे। महिसागर नदी का दूसरा तट भी कीचड़ और दलदली जमीन से भरा था। डेढ़ किलोमीटर कीचड़ और पानी में चलकर रात एक बजे उस पार पहुंचे और सीधे विश्राम करने चले गए। दोनों किनारों पर लोग रातभर दिए लेकर खड़े रहे चूँकि कई सत्याग्रहियों को नदी पार करनी थी।

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NCERT Solution – दिये जल उठे

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हामिद खाँ सारांश | Hamid Khan Summary class 9 Chapter-5 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

हामिद खाँ सारांश | Hamid Khan Summary class 9 Chapter-5 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

हामिद खाँ पाठ का सारांश ( Very Short Summary ) class 9 Sanchayan

गर्मियों में लेखक तक्षशिला के खंडहर देखने गया था। गर्मी के कारण लेखक का भूख प्यास से बुरा हाल था। खाने की तलाश में वह रेलवे स्टेशन से आगे बसे गाँव की ओर चला गया। वहाँ तंग और गंदी गलियों से भरा बाज़ार था, वहाँ पर खाने पीने का कोई होटल या दुकान नहीं दिखाई दे रही थी और लेखक भूख प्यास से परेशान था। तभी एक दुकान पर रोटियाँ सेंकी जा रही थीं जिसकी खुशबू से लेखक की भूख और बढ़ गई। वह दुकान में चला गया और खाने के लिए माँगा। वहीं हामिद खाँ से परिचय हुआ।

लेखक हामिद खान के जरिये अपने बात रखते है ।यह दो अलग अलग लोगो को अलग अलग धर्मो के बीच आत्मीयता से बांधते है ।यह कहानी अंतर दिल को छू लेने वाले है ।यह कहानी हमें प्रेरणा देते है की हमें लड़ाई न कर प्रेम से रहना चाहिए

हामिद खाँ पाठ का सारांश ( Detailed Summary ) class 9 Sanchayan

लेखक को एक दिन समाचार पत्र में तक्षशिला (पाकिस्तान) में आगजनी की खबर पढ़ते हैं जिससे लेखक को हामिद खाँ नाम के व्यक्ति की याद आ जाती है जो तक्षशिला भ्रमण के दौरान लेखक को मिला था। लेखक उसके लिए ईश्वर से हिफ़ाज़त की दुआ माँगते हैं। 
दो साल पहले लेखक तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने गए थे। कड़ी धुप और भूख-प्यास के कारण उनका बुरा हाल हो रहा था। वे रेलवे स्टेशन से करीब पौने मील दूर बसे एक गाँव की और चल पड़े। उन्हें वहाँ तंग बाज़ार, धुआँ, मच्छर और गंदगी से भरी जगहें दिखीं। होटल का कहीं नामोनिशान ना था। कही-कहीं सड़े हुए चमड़े की बदबू आ रही थी।


अचानक लेखक को एक दूकान दिखी जहाँ चपातियाँ सेंकी जा रहीं थीं। लेखक ने मुस्कराहट के साथ उस दूकान में प्रवेश किया। वहाँ एक अधेड़ उम्र का पठान चपातियाँ बना रहा था। लेखक ने खाने के बारे में उससे पूछा। दुकानदार ने लेखक को बेंच पर बैठने के लिए कहा।


दुकानदार ने चपातियाँ बनाते हुए लेखक से पूछा कि वह कहाँ के रहने वाले हैं? लेखक ने उसे बताया कि वह हिंदुस्तान के दक्षिणी छोर पर मद्रास के आगे मालबार क्षेत्र का रहने वाला है। दुकानदार ने पूछा की क्या वे हिन्दू हैं? लेखक ने हामी भरी। इसपर दुकानदार ने पूछा कि क्या वे मुसलमानी होटल में खाना खाएँगे? इसपर लेखक ने हामिद (दुकानदार) को बताया कि उनके यहाँ अगर किसी बढ़िया चाय पीनी हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बिना कुछ सोचे मुसलमानी होटलों में जाया करते हैं।हामिद लेखक की बात पर विश्वास नहीं कर पाया। लेखक ने उसे बताया कि उनके यहाँ हिन्दू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं है और उनके बीच न के बराबर होते हैं। हामिद इन बातों को ध्यानपूर्वक सुनकर बोला कि काश वः भी यह सब देख पाता।


हामिद ने लेखक का स्वागत करते हुए खाना खिलाया। लेखक ने खाना खाकर हामिद को पैसे दिए परतु उसने लेने से इनकार कर दिया। बहुत करने पर हामिद ने पैसे लिए और वापस देते हुए कहा कि मैंने पैसे ले लिए , मगर मैं चाहता हूँ आप इस पैसे से हिंदुस्तान जाकर किसी मुसलमानी होटल में पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद को याद करें। लेखक वहाँ से तक्षशिला के खंडहरों की तरफ चले गए। उसके बाद लेखक ने हामिद को कभी नहीं देखा।
लेखक आज समाचार पत्र पढ़कर हामिद और उसकी दूकान को सांप्रदायिक दंगों से बच जाने की प्रार्थना क्र रहे थे।

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NCERT Solution – हामिद खाँ

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मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय पाठ का सारांश | Kallu Kumhar Ki Unakoti summary class 9 Chapter-4 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय पाठ का सारांश  | Kallu Kumhar Ki Unakoti summary class 9 Chapter-4 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय पाठ का सारांश ( Short Summary ) class 9 Sanchayan

यह पाठ लेखक ‘धर्मवीर भारती’ की आत्मकथा है। सन् 1989 में लेखक को लगातार तीन हार्ट अटैक आए। उनकी नब्ज़, साँसें, धड़कन सब बंद हो चुकी थीं। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया परन्तु डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी और उनके मृत पड़ चुके शरीर को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक दिए जिससे उनके प्राण तो लौटे परन्तु हार्ट का चालीस प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो गया और उसमें में भी तीन अवरोध थे। तय हुआ कि उनका ऑपरेशन बाद में किया जाएगा। उन्हें घर लाया गया। लेखक की जिद पर उन्हें उनकी किताबों वाले कमरे में लिटाया गया। उनका चलना, बोलना, पढ़ना सब बन्द हो गया।
लेखक को सामने रखीं किताबें देखकर ऐसा लगता मानो उनके प्राण किताबों में ही बसें हों। उन किताबों को लेखक ने पिछले चालीस-पचास सालों में जमा किया था जो अब एक पुस्तकालय का रूप ले चुका था। 


उस समय आर्य समाज का सुधारवादी पुरे ज़ोर पर था। लेखक के पिता आर्यसमाज रानीमंडी के प्रधान थे और माँ ने स्त्री-शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी। पिता की अच्छी खासी नौकरी थी लेकिन लेखक के जन्म से पहले उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। लेखक के घर में नियमित पत्र-पत्रिकाएँ आतीं थीं जैसे ‘आर्यमित्र साप्ताहिक’, ‘वेदोदम’,’सरस्वती’,’गृहिणी’। उनके लिए ‘बालसखा’ और ‘चमचम’ दो बाल पत्रिकाएँ भी आतीं थीं जिन्हें पढ़ना लेखक को बहुत अच्छा लगता था। लेखक बाल पत्रिकाओं के अलावा ‘सरस्वती’ और ‘आर्यमित्र’ भी पढ़ने की कोशिश करते। लेखक को ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़ना बहुत पसंद था। वे पाठ्यक्रम की किताबों से अधिक इन्हीं किताबों और पत्रिकाओं को पढ़ते थे।


लेखक के पिता नहीं चाहते थे की लेखक बुरे संगति में पड़े इसलिए उन्हें स्कूल नहीं भेजा गया और शुरू की पढाई के लिए घर पर मास्टर रखे गए। तीसरी कक्षा में उनका दाखिला स्कूल में करवाया गया। उस दिन शाम को पिता लेखक को घुमाने ले गए और उनसे वादा करवाया कि वह पाठ्यक्रम की पुस्तकें भी ध्यान से पढेंगे। पांचवीं में लेखक फर्स्ट आये और अंग्रेजी में उन्हें सबसे ज्यादा नंबर आया। इस कारण उन्हें स्कूल से दो किताबें इनाम में मिलीं। एक किताब में लेखक को विभिन्न पक्षियों के बारे में जानकारी मिली तथा दूसरे पानी की जहाजों की जानकारी मिली। लेखक के पिता ने अलमारी के खाने से अपनी चीज़ें हटाकर जगह बनाई और बोले ‘यह अब तुम्हारी लाइब्रेरी। यहीं से लेखक की निजी लाइब्रेरी की शुरुआत हुई।


लेखक के मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी जिसमें लेखक बैठकर किताबें पढ़ते थे उन्हें साहित्यिक किताबें पढ़ने में बहुत आनंद आता। उन दिनों विश्व साहित्य के किताबों के हिंदी में खूब अनुवाद हो रहे थे जिससे लेखक को विश्व का भी अनुभव होता था। चूँकि लेखक के पिता की मृत्यु हो चुकी थी इसलिए वे किताबें घर नही ले जा पाते थे जिसका उन्हें बहुत दुःख होता था। लेखक का आर्थिक संकट बहुत बढ़ गया था। वे अपने प्रमुख पाठ्यक्रम की पुस्तकें भी सेकंड-हैंड ही लेते थे और बाकी के पुस्तकों का सहपाठियों से लेकर नोट्स बनाते थे।

लेखक ने किस तरह से अपनी पहली साहित्यिक पुस्तक खरीदी उसका वर्णन किया है। उन्होंने उस साल इंटरमीडिएट पास किया था और अपनी पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए की पुस्तकें लेने सेकंड-हैण्ड पुस्तकों की दूकान पर खड़े थे। पाठ्यपुस्तकें खरीद कर लेखक के पास दो रूपए बचे। सामने के सिनेमाघर में ‘देवदास’ लगी थी। लेखक उस फिल्म के एक गाना हमेशा गुनगुनाते रहते थे जिसे सुनकर एक दिन माँ ने कहा ‘जा फिल्म देख आ।’ लेखक बचे दो रूपए लेकर सिनेमा घर गए। फिल्म शुरू होने में देरी थी। लेखक सामने एक परिचित की पुस्तकों की दूकान के सामने चक्कर लगाने लगे। तभी वहाँ उन्हें ‘देवदास’ की पुस्तक दिखाई दी। लेखक ने उस पुस्तक को ले लिया चूँकि पुस्तक की कीमत केवल दस आने थी जबकि फिल्म देखने में डेढ़ रूपए लगते हुए। बचे हुए पैसे लेखक ने माँ को दे दिए। यह उनकी निजी लाइब्रेरी की पहली किताब थी।

आज लेखक के लाइब्रेरी में उपन्यास, नाटक, कथा संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण सभी प्रकार की किताबें हैं लेखक देश-विदेश के महान लेखकों-चिंतकों के कृतियों के बीच अपने को भरा-भरा महसूस करते हैं।

लेखक मानते हैं कि उनके ऑपरेशन के सफल होने के बाद उनसे मिलने आये मराठी के वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने उस दिन सच कहा था कि ये सैकड़ों महापुरुषों के आश्रीवाद के कारण ही उन्हें पुनर्जीवन मिला है।

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NCERT Solution – मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय

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कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का सारांश | Kallu Kumhar Ki Unakoti summary class 9 Chapter-3 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का सारांश  | Kallu Kumhar Ki Unakoti summary class 9 Chapter-3 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का सारांश ( Very Short Summary ) class 9 Sanchayan

कल्लू कुम्हार की उनाकोटी में लेखक के. विक्रम सिंह ने अपनी यात्रा का वर्णन करा है। एक बार काम के सिलसिले में लेखक त्रिपुरा गए थे। वहाँ अपने कार्यक्रम के लिए उन्होंने अनेक स्थानों की यात्रा करी। उनाकोटी उन स्थानों में से एक था। लेखक ने इस स्थान का विशेष रूप से वर्णन करा है और बताया है कि वहाँ शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ हैं।

            त्रिपुरा में कल्लू नाम का एक कुम्हार रहता था। वह शिव जी के साथ रहना चाहता था। भगवान शिव ने शर्त रखी कि उसे एक रात में शिव जी की एक करोड़ मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू जाने के लिए बहुत उत्सुक्त था इसलिए तुरंत मूर्तियाँ बनाने लगा। परन्तु एक मूर्ति रह गयी और सुबह हो गई। इसलिए वह शिव जी के साथ नहीं जा सका और वहीँ रह गया। उसी के नाम से त्रिपुरा के उस स्थान का नाम उनाकोटी पड़ा। उनाकोटी का अर्थ है एक करोड़ से एक कम।

            लेखक को यह स्थान बहुत रमणीय लगा। इस स्थान पर लेखक ने अपने कार्यक्रम की शूटिंग भी करी।

     इसके अतिरिक्त लेखक ने त्रिपुरा की संस्कृति, सभ्यता, धर्म, वहाँ का जन जीवन और जनजातियों के बारे में बताया है। त्रिपुरा बहुधार्मिक समाज का उदाहरण है। वहाँ पर लगातार बाहरी लोग आते रहे हैं। त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियाँ हैं। वहाँ विश्व के चारों बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है। अगरतला के बाहरी हिस्से पैचारथल में एक सुंदर बौध मंदिर है। त्रिपुरा के उन्नीस कबीलों में से चकमा और मुघ महायानी बौध हैं। ये कबीले म्यांमार से आये थे। इस मंदिर की मुख्य बुद्ध प्रतिमा 1930 में रंगून से लाई गयी थी।

     टीलियामुरा में लेखक का परिचय समाज सेविका मंजू ऋषिदास और लोकगायक  हेमंत कुमार जमातिया से हुई।

      त्रिपुरा में अगरबत्ती बनाना, बाँस के खिलौने बनाना और गले में पहनने की मालायें बनाना आदि घरेलू उद्योग चलते हैं।    

कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का सारांश ( Detailed Summary ) class 9 Sanchayan

इस पाठ में लेखक ने अपनी त्रिपुरा यात्रा का वर्णन किया है। इन्होनें त्रिपुरा के व्यक्तियों, धर्मों, दर्शनीय स्थलों आदि का वर्णन किया है। यह पाठ हमें छोटे से राज्य त्रिपुरा के बारे में कई जानकरियाँ देता है।
लेखक सूर्योदय के समय उठतें हैं, चाय और अखबार लेकर सुबह का आनंद लेते हैं। एक दिन लेखक की नींद बिजलियाँ चमकने और बादलों के गर्जना की कानफोड़ू आवाज़ से खुली। इस दृश्य ने उन्हें दिसम्बर 1999 की घटना जब वह ‘ऑन द रोड’ शीर्षक की टीवी श्रृंखला बनाने के सिलसिले में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की यात्रा पर गए थे की याद दिला दी। श्रृंखला का मुख्य उद्देश्य त्रिपुरा की राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से यात्रा करने और राज्य के विकास संबंधी गतिविधियों की बारे में जानकारी देना था।
त्रिपुरा राज्य की जनसंख्या 34 प्रतिशत है, जो काफी ऊँची है। यह राज्य बांग्लादेश से तीन तरफ से घिरा है और एक तरफ से भारत के दो राज्य मिजोरम और असम सटे हैं। सोनुपुरा, बेलोनिया, सबरूम , कैलासशहर त्रिपुरा के महत्वपूर्ण शहर हैं, जो बांग्लादेश करीब है। अगरतला भी सीमा चौकी से दो किलोमीटर दूर है। बांग्लादेश, अस्मा, पश्चिम बंगाल के क्षेत्रों से लोगों की भारी आवक ने यहाँ के जनसंख्या को असंतुलित कर दिया है, जो त्रिपुरा में आदिवासी असंतोष की मुख्य वजह है।
पहले तीन दिनों में लेखक ने अगरतला और उसके नजदीक स्थित जगहों की शूटिंग की। उज्जयंत महल अगरतला का मुख्य महल है जिसमें अब वहाँ की राज्य विधानसभा बैठती है। त्रिपुरा में बाहरी लोगों के आने से समस्याएँ पैदा हुईं हैं, लेकिन इस कारण यह राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण भी बना है। त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चार बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है।

अगरतल्ला के बाद लेखक टीलियामुरा कस्बा पहुँचे जो एक विशाल गाँव है। यहाँ लेखक की मुलाकात हेमंत कुमार जमातिया से हुई। जिन्हें 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। ये कोकबारोक बोली में गाते हैं जो त्रिपुरा की कबीलाई बोलियों में से है। हेमंत ने हथियारबंद संघर्ष का रास्ता छोड़कर चुनाव लड़ा और जिला परिषद के सदस्य बने गए थे। जिला परिषद ने लेखक के शूटिंग यूनिट के लिए एक भोज का आयोजन भी किया जिसमें उन्हें सीधा-सादा खाना परोसा गया। भोज के बाद लेखक ने हेमंत से गीत सुनाने के अनुरोध किया और उन्होंने लेखक को धरती पर बहती शक्तिशाली नदियों, ताज़गी भरी हवाओं और शांति का एक गीत गाया। बॉलीवुड के सबसे मौलिक संगीतकारों में एक एस. डी. बर्मन त्रिपुरा से ही थे।
टीलियामुरा शहर के वार्ड नं. 3 में लेखक की मुलाकात एक और गायक मंजू ऋषिदास से हुई। ऋषिदास मोचियों के एक समुदाय का नाम है जो जूते बनाने के अलावा तबला और ढोल जैसे वाद्यों का निमाण भी करते हैं। ऋषिदास रेडियो कलाकार होने के अतिरिक्त नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व भी करती थीं। उन्होंने लेखक को दो गीत सुनाए  जिनका लेखक ने शूटिंग किया।

टीलियामुरा के बाद त्रिपुरा का हिंसाग्रस्त इलाका शुरू होता है। लेखक वहाँ से सी.आर.पी.एफ. की हथियारबन्द गाड़ी में मनु कस्बे ओर चल पड़े। मनु कस्बा मनु नदी के किनारे स्थित है। शाम के समय वे लोग मनु कस्बा पहुँचे। वे लोग उत्तरी त्रिपुरा जिले में पहुँच चुके थे। वहाँ लोकप्रिय घरेलू गतिविधियों में से एक है अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींके तैयार करना। अगरबत्तियाँ बनाने के लिए इन्हें कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है।

उत्तरी त्रिपुरा जिले का मुख्यालय कैलासशहर है जो बांग्लादेश की सीमा से करीब है। यहाँ के जिलाधिकारी से लेखक ने टी.पी.एस (टरु पोटेटो सीड्स) के बारे में जाना जो मात्र 100 ग्राम में ही एक हेक्टेयर की बुआई कर देती है।

लेखक को बाद में उनकोटि के बारे में पता चला जो देश के सबसे बड़े तीर्थों में से एक है। उनाकोटी का अर्थ होता है एक करोड़ से कम। दंतकथा के अनुसार उनकोटि में शिव की एक करोड़ में से एक मूर्ति कम है। विद्वानों के अनुसार यह जगह दस वर्ग से किलोमीटर इलाके से ज्यादा में फैली हुयी है। पहाड़ों को अंदर से काटकर मूर्तियों का निर्माण किया गया है। एक विशाल चट्टान पर गंगा अवतरण की कथा को चित्रित किया गया है।

इन आधार-मूर्तियों का निर्माता कौन है यह नहीं पता है। आदिवासियों के अनुसार इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। कल्लू पार्वती का बड़ा भक्त था और शिव-पार्वती के साथ कैलाश जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को ले जाने के लिए तैयार हो गए परन्तु उन्होंने शर्त रखी कि एक रात में कल्लू कुम्हार को शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू रात भर काम करता रहा परन्तु सुबह में उसकी मूर्तियों की संख्या एक करोड़ में से एक कम निकलीं। इसी बात का बहाना बनाते हुए शिव ने कल्लू कुम्हार से अपना पीछा छुड़ा लिया और कैलाश चले गए।

इस जगह की शूटिंग करते हुए लेखक को चार बजे गए। उनाकोटी में अँधेरा छा गया और बादल गरज-गरज कर बरसने लगे। आज का गर्जन ने लेखक को तीन साल पहले वाले उनाकोटी के गर्जन का याद दिला दिया।

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NCERT Solution – कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

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स्मृति पाठ का सारांश | Smriti summary class 9 Chapter-2 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

स्मृति पाठ का सारांश  | Smriti summary class 9 Chapter-2 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

स्मृति पाठ का सारांश ( Very Short Summary ) class 9 Sanchayan

पं० श्रीराम शर्मा द्वारा रचित लेख ‘स्मृति’ एक संस्मरणात्मक लेख है, जो साहसिक एवं शिकार कथा पर आधारित है। यह पं० श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘शिकार’ नामक पुस्तक से संकलित है जिसमें लेखक ने अपने बचपन की रोमांचकारी घटना का वर्णन किया है। सन् 1908 ई० में दिसंबर या जनवरी के महीने में शाम के साढ़े तीन या चार बजे जब लेखक अपने छोटे भाई के साथ झरबेरी से बेर तोड़कर खा रहा था, उन्हें (लेखक को) उनके बड़े भाई ने बुलवाया। लेखक पिटाई के भय से डर गया, परंतु भाई साहब ने लेखक को मक्खनपुर डाकखाने में पत्र डालने के लिए दिए जो बहुत आवश्यक थे। लेखक अपने छोटे भाई के साथ अपने-अपने डंडे लेकर व माँ के दिए चने लेकर चल दिए। लेखक ने पत्रों को अपनी टोपी में रख लिया क्योंकि उनके कुर्ते में जेबें न थी। मार्ग में दोनों भाई उस कुएँ के पास पहुँचे जो कच्चा था तथा जिसमें एक अतिभयंकर काला साँप था। प्रतिदिन लेखक व उसके मित्र कुएँं में ढेला फेंककर साँप की क्रोधपूर्ण फुसकार पर कहकहे लगाते थे। आज भी लेखक के मन में साँप की फुसकार सुनने की इच्छा जाग्रत हुई।

लेखक ने एक ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारकर कुएँ में गिरा दिया। लेखक के टोपी हाथ में लेते ही तीनों चिट्ठियाँ जो टोपी में रखी थीं चक्कर काटती हुए कुएँ में गिर गई। निराशा व पिटने के भय से दोनों भाई कुएँ के पाट पर बैठकर रोने लगे। लेखक का मन करता कि माँ आकर गले लगाकर कहे कोई बात नहीं या घर जाकर झूठ बोल दे, परंतु लेखक झूठ बोलना नहीं जानता था तथा सच बताने पर उसे पिटाई का भय था, तब लेखक ने कुएँ मे घुसकर चिट्ठियाँ निकालने का दृढ़ निश्चय किया। लेखक ने अपनी व भाई की धोतियाँ तथा रस्सी बाँधी और रस्सी के एक सिरे पर डंडा बाँधकर कुएँ में डाल दिया तथा दूसरा सिरा कुएँ की डेंग से बाँध दिया और स्वयं धोती के सहारे कुएँ मे घुस गया। कुएँ में धरातल से चार-पाँच गज की ऊँचाई से लेखक ने देखा कि साँप उसका मुकाबला करने के लिए फन पैâलाकर तैयार था। लेखक को साँप को मारने व चिट्ठियाँ लेने के लिए कुएँ के धरातल पर उतरना ही था क्योंकि चिट्ठियाँ वहीं गिरी हुई थी। जैसे-जैसे लेखक नीचे उतरता वैसे-वैसे उसका चित्त एकाग्र होता जाता। कच्चे कुएँ का व्यास कम होता है इसलिए डंडा चलाने के लिए पर्याप्त स्थान न था। तभी लेखक ने साँप को न छेड़ने का निर्णय लिया। लेखक ने डंडे से चिट्ठियाँ सरकाने का प्रयास किया और साँप की फुसकार से लेखक के हाथ से डंडा छूट गया। लेखक ने दूसरा प्रयास किया और साँप डंडे से चिपट गया।

डंडे के लेखक की ओर खिंच आने से साँप की मुद्रा बदल गई और लेखक ने लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिए। लेखक ने चिट्ठियों को धोती से बाँध दिया, जिसे छोटे भाई ने ऊपर खींच लिया तथा डंडा उठाकर हाथों के सहारे ऊपर चढ़ गया। ऊपर आकर वह थोड़ी देर पड़ा रहा तथा किशनपुर के जिस लड़के ने उसे ऊपर चढ़ते देखा था उसे कहा कि इस घटना के बारे में किसी से न कहे। सन 1915 में मैट्रीक्युलेशन उत्तीर्ण करने के बाद लेखक ने यह घटना अपनी माँ को बताई और माँ ने लेखक को अपनी गोद में छुपा लिया।

स्मृति पाठ का सारांश ( Detailed Summary ) class 9 Sanchayan

प्रस्तुत पाठ या संस्मरण स्मृति लेखक श्रीराम शर्मा जी के द्वारा लिखित है | इस पाठ के माध्यम से लेखक ने अपने बाल्यावस्था के अविस्मरणीय घटना का वर्णन किया है | प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने उस घटना का चित्रण किया है, जिसमें उन्होंने साँप से लड़कर चिट्ठीयों को सुरक्षा प्रदान किया था | 

आगे प्रस्तुत पाठ या संस्मरण के अनुसार, ठंड का मौसम गतिमान था | एक रोज शाम में जब लेखक अपने दोस्तों के साथ क्रीड़ा अथवा खेल-कूद कर रहे थे, तभी एक आदमी ने उन्हें आवाज़ दी कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं | लेखक

अपने छोटे भाई के साथ डरे-सहमे घर की तरफ़ चल पड़ते हैं | लेखक के मन में किसी गलती के कारण पिटने का ख़ौफ़ सता रहा था | जब लेखक अपने घर पहुँचते हैं तो वे देखते हैं कि उनके बड़े भाई चिट्ठी लिख रहे हैं | तत्पश्चात्, लेखक को उनके बड़े भाई ने चिट्टियाँ सौंपी तथा उन्हें मक्खनपुर पोस्ट ऑफिस में पोस्ट करने को कहा | लेखक और उनके छोटे भाई ने चिट्ठीयों को टोपी में रखा और अपने-अपने डंडे पकड़कर चल दिए | आगे पाठ के अनुसार, वे लोग गाँव से चार फर्लांग दूर उस कुएँ के पास आ पहुँचे, जहाँ पर एक भयंकर काला साँप मौजूद था | देखा जाए तो कुआँ कच्चा था तथा लगभग चौबीस हाथ गहरा था | पानी के नाम पर उस कुएँ में कुछ भी नहीं था | वास्तव में, जब लेखक और उसके सहपाठी स्कूल के लिए जाते थे, तब उस वक़्त वे लोग कुएँ में ढेला मारते और साँप की आवाज़ सुनकर मजे लेते थे | आज भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला | लेखक ने ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेला मार दिया | टोपी के हाथ में लेते ही तीनों चिट्ठीयाँ कुएँ में गिर पड़ी | लेखक को ऐसा लगा मानों उसकी जान ही निकल गई हो | तत्पश्चात्, लेखक और उनके छोटे भाई दोनों कुएँ के समीप बैठकर दहाड़ें मार-मार कर रोने लगते हैं | कुछ समय गुजर जाने के पश्चात् दोनों के मध्य यह भयमुक्त फैसला लिया गया कि लेखक कुएँ के अंदर जाकर चिट्ठीयाँ निकाल कर लाएँगे | 

आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, उन लोगों ने धोतियों और रस्सियों में गाठें लगाकर एक बड़ी रस्सी तैयार की | तत्पश्चात्, रस्सी के एक छोर पर डंडा बाँधा गया और उसे कुएँ में डाल दिया गया | लेखक ने रस्सी के दूसरे छोर को लकड़ी से बाँधकर अपने छोटे भाई के हाथ में थमा दिया | कुएँ के अंदर साँप फ़न फैलाकर बैठा था | लेखक भी अपने साहस का परिचय देते हुए धीरे-धीरे कुएँ के अंदर उतरने लगे | लेखक अपनी आँखें साँप के फ़न की तरफ़ ही टिकाकर रखे थे | लेकिन जहाँ साँप था, वहाँ पर डंडा चलाने का स्थान भी नहीं था | इन्हीं सब वजहों से लेखक को अपनी योजना कहीं न कहीं असफल होते लगने लगी थीं | अभी तक साँप ने लेखक पर किसी प्रकार का हमला नहीं किया था | इसलिए लेखक ने भी अपने डंडे से फ़न को दबाने की कोई कोशिश नहीं की थी | तत्पश्चात्, ज्यों ही लेखक ने डंडे को साँप के दायीं ओर पड़ी चिट्ठी की तरफ बढ़ाया, साँप ने अपना विष डंडे पर छोड़ दिया | लेकिन इसके बाद लेखक के हाथ से डंडा छूट गया | तत्पश्चात्, साँप ने डंडे के ऊपर लगातार तीन प्रहार किए | इस दृश्य को देखकर लेखक के छोटे भाई को अंदेशा हुआ कि कहीं लेखक को साँप ने डस तो नहीं लिया है | यह सोचकर लेखक का भाई चीखता है | आगे पाठ के अनुसार, लेखक ने डंडे को पुन: उठाकर चिट्ठीयाँ उठाने का प्रयत्न किया, परन्तु साँप ने फिर से वार किया | लेकिन इस बार लेखक ने अपने हाथों से डंडा नहीं गिरने दिया | पर तत्पश्चात् जैसे ही साँप का पिछला भाग लेखक के हाथों में स्पर्श हुआ, लेखक ने फ़ौरन डंडा पटक दिया | इसी उठा-पटक में साँप का जगह बदल गया | तभी लेखक ने तुरंत चिट्ठीयों को उठाया और रस्सी में बाँध दिया | तत्पश्चात्, लेखक के भाई ने रस्सी से बंधे चिट्ठीयों को ऊपर की ओर खींच लिया | 

आगे पाठ के अनुसार, नीचे गिरे अपने डंडे को साँप के पास से लेने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा | आगे लेखक के साथ और भी मुश्किल सामने आई, उसे अब अपने हाथों के बल पर ऊपर चढ़ना था | लेखक ने ग्यारह वर्ष की उम्र में 36 फुट चढ़ने का कारनामा किया था | वो भी जान हथेली पर रखकर उन्होंने ऐसे साहस भरे काम को अंजाम दिया था | तत्पश्चात्, लेखक और उनके छोटे भाई ने वहीं पर विश्राम किया | जब लेखक 10वीं की परीक्षा पास किए तो उन्होंने यह साहसिक घटना अपनी माँ को सुनाई | उस वक़्त लेखक की माँ ने उन्हें अपनी गोद में बैठाकर लेखक के प्रति प्रशंसा के पुल बाँधे | 

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NCERT Solution – स्मृति

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गिल्लू पाठ का सारांश | Gillu summary class 9 Chapter-1 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

गिल्लू पाठ का सारांश  | Gillu summary class 9 Chapter-1 | Sanchayan Hindi class 9| EduGrown

गिल्लू पाठ का सारांश ( Very Short Summary ) class 9 Kritika

छायावादी​ कविता के मुख्य निपुणों में से एक महादेवी वर्मा भी है। आधुनिक मीरा के रूप में महादेवी जी को जाना जाता है, उन्हें ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी पुरस्कारों जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

लेखक के जीवन का एक रोचक बात यह थी कि उनको जानवरों से बहुत प्रेम था। पशु क्रूरता के खिलाफ एक मजबूत अधिवक्ता होने के नाते, अपने पालतू जानवरों पर कहानियों की एक विशाल पुस्तक लिखी जिसने अप्रत्याशित रूप से उनके जीवन में कदम रखा।

गिलु, महादेवी जी को उनके बगीचे में घायल पाया गया था। कौवा के ठोकर से गिलु माटी पर निश्चिछल था।वह उसे अपने बेडरूम में ले गई जो कि अगले दो साल तक अपने प्रवास में बनी रही। वह महादेवी जी के साथ खेलता था, उनके हाथों से खाता था। उनको पढ़ाई के वक्त एक टक देखता था। जब एक कार दुर्घटना में महादेवी जी घायल हो तो गिलू ने काजू नहीं खाता था। जब वह अपने घर वापसी की तो उन्होंने​ देखा कि काजू के एक ढेर गिलु के स्विंग पर ढेर हो गया था। गिल्लू अब तक केवल एकमात्र पशु था, जिसने उसकी प्लेट से खाया है और ऐसा ही कुछ महादेवी को याद करते हैं।

दुर्भाग्यपूर्ण दिन, लेखक ने गिलू के पंजे को ठंडा होते हुए देखा। उसने हीटर पर स्विच करने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आखिरकार गिलु चला गया।

गिल्लू पाठ का सारांश ( Detailed Summary ) class 9 Kritika

इस पाठ में लेखिका महादेवी वर्मा का एक छोटे, चंचल जीव गिलहरी के प्रति प्रेम झलकता है। उन्होंने इस पाठ में उसके विभिन्न क्रियाकलापों और लेखिका के प्रति उसके प्रेम से हमें अवगत कराया है। उन्होंने गिलहरी जैसे लघु जीव के जीवन का बड़ा अच्छे ढंग से चित्रण किया है।  
एक दिन लेखिका की नजर बरामदे में गिलहरी के एक छोटे से बच्चे पर पड़ी जो शायद घोंसले से गिर गया होगा जिसे दो कौवे मिलकर अपना शिकार बनाने की तैयारी में थे। लेखिका गिलहरी के बच्चे को उठाकर अपने रूम ले गयी और कौवे की चोंच से घायल बच्चे का मरहम-पट्टी किया। कई घंटे के उपचार के बाद मुँह में एक बूँद पानी टपकाया जा सका। तीसरे दिन वह इतना अच्छा हो गया कि लेखिका की ऊँगली अपने पंजो से पकड़ने लगा।

तीन चार महीने में उसके चिकने रोएँ, झब्बेदार पूँछ और चंचल चमकती आँखें सभी को आश्चर्य में डालने लगीं। लेखिका ने उसका नाम गिल्लू रखा। लेखिका ने फूल रखने की एक हल्की डलिया में रुई बिछाकर तार से खिड़की पर लटका दिया जो दो साल तक गिल्लू का घर रहा।

गिल्लू ने लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए वह लेखिका के पैर तक आकर सर्र से पर्दे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेजी से उतरता। वह दौड़ लगाने का काम तब तक करता जब तक लेखिका उसे पकड़ने के लिए न उठती। वह अपनी चमकीली आँखों से लेखिका के क्रियाकलापों को भी देखा करता। भूख लगने पर वह लेखिका को चिक-चिक कर सूचना देता था।

गिल्लू के जीवन में पहला बसंत आया। अन्य गिलहरियाँ जाली खिड़की के जाली के पास आकर चिक-चिक करने लगीं और गिल्लू भी जाली के पास जाकर बैठा रहता। इसे देखकर लेखिका ने जाली के एक कोना खोलकर गिल्लू को मुक्त कर दिया।

लेखिका के कमरे से बाहर जाने पर गिल्लू भी जाली से बाहर चला जाता। वह दिन भर अन्य गिलहरियों के साथ उछलता-कूदता और शाम होते ही अपने झूले में वापस आ जाता। लेखिका के खाने के कमरे में पहुँचते ही गिल्लू भी वहाँ पहुँच जाता और थाली में बैठ जाना चाहता। बड़ी मुश्किल से लेखिका ने उसे थाली के पास बैठना सिखाया। वह वहीं बैठकर चावल का एक-एक दानासफाई से खाता।
गिल्लू का प्रिय खाद्य पदार्थ काजू था। कई दिन काजू नहीं मिलने पर वह अन्य खानें की चीजें लेना बंद कर देता या झूले से नीचे फेंक देता था।

उसी बीच लेखिका मोटर दुर्घटना में आहत हो गयीं जिससे उन्हें कुछ दिन अस्पताल में रुकना पड़ा। उन दिनों में गिल्लू ने अपना प्रिय पदार्थ काजू लेना काफी कर दिया था। लेखिका के घर लौटने पर वह तकिये पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हे पंजों से लेखिका सर और बालों को हौले-हौले सहलाता और एक सेविका की भूमिका निभाता।

गर्मियों में वह लेखिका के पास रखी सुराही पर लेट जाता और लेखिका के समीप रहने के साथ-साथ ठंडक में भी रहता।

चूँकि गिलहरियों की उम्र दो वर्ष से अधिक नहीं होती इसलिए उसके जीवन का भी अंत आ गया। दिन भर उसने कुछ नहीं खाया-पीया। रात में वह झूले से उतरकर लेखिका के बिस्तर पर आया और ठंडे पंजों से उनकी उँगली पकड़कर चिपक गया। लेखिका ने हीटर जलाकर उसे ऊष्मा देने का प्रयास किया परन्तु प्रयास व्यर्थ रहा और सुबह की पहली किरण के साथ सदा के लिए सो गया।

लेखिका ने उसे सोनजुही की लता के नीचे उसे समाधि दी। सोनजुही में एक पीली कली को देखकर लेखिका को गिल्लू की याद आ गयी।

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NCERT Solution – गिल्लू पाठ

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किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ का सारांश | Kis Tarah Aakhirkar Main Hindi Mein Aaya summary class 9 Chapter-5 | Kritika Hindi class 9| EduGrown

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ का सारांश  | Kis Tarah Aakhirkar Main Hindi Mein Aaya  summary class 9 Chapter-5 | Kritika Hindi class 9| EduGrown

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया कहानी का सारांश ( Very Short Summary ) class 9 Kritika

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ इस पाठ के माध्यम से लेखक शमशेर बहादुर जी ने अपने हिन्दी लेखन में आने की घटनाओं का उल्लेख किया है। बहादुर जी के अनुसार लेखन में उनका कोई विशेष झुकाव नहीं था और हिन्दी में तो बिलकुल नहीं था। वह दिल्ली में चित्रकारी सीखा करते थे। अपनी पत्नी की मृत्यु से आहत, वह यहाँ-वहाँ भागा करते थे। अंग्रेज़ी और उर्दू भाषा में वह थोड़ा बहुत लिख लिया करते थे लेकिन लेखन क्षेत्र में वह कुछ करेंगे ऐसा कभी सोचा नहीं था। हरिवंश राय ‘बच्चन’ के अथक प्रयास के कारण ही वह हिन्दी के क्षेत्र में आए। पंत जी और निराला जी ने भी उनको सहयोग दिया। धीरे-धीरे हिन्दी की तरफ़ उनका झुकाव आरम्भ हुआ और आगे चलकर उन्होंने हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। यह पाठ जहाँ बहादुर जी के व्यक्तित्व और जीवन से हमारा परिचय कराता है, वहीं हरिवंश राय बच्चन की संवेदनशीलता और बहादुर जी के प्रति उनकी आत्मीयता को भी दर्शाता है। यह रचना शमशेर बहादुर के जीवन से लिए गए कुछ महत्वपूर्ण पलों का एक सुंदर रूप है।

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया कहानी का सारांश ( Detailed Summary ) class 9 Kritika

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया कहानी का सारांश ( Detailed Summary ) class 9 Kritika

इस कहानी के लेखक शमशेर बहादुर सिंह जी हैं।इस कहानी में लेखक ने अपने जीवन के उन तमाम घटनाक्रमों का जिक्र किया है जिसके फलस्वरूप उन्होंने हिंदी साहित्य जगत में कदम रखा और हिन्दी लेखन कार्य आरंभ किया और खूब सारी कविताएं , निबंध और कहानियां लिखकर प्रसिद्धि कमाई। अपने इस लेख में लेखक ने श्री हरिवंश राय बच्चनजी , सुमित्रानंदन पंतजी , निरालाजी का दिल से आभार प्रकट किया है।

कहानी की शुरुआत करते हुए लेखक शमशेर बहादुर जी कहते हैं कि वो जिस स्थिति में थे उसी स्थिति में अपने घर से पहली बस पकड़कर दिल्ली के लिए रवाना हो गए। दिल्ली पहुंच कर  उन्होंने तय किया कि उन्हें कोई न कोई काम अवश्य करना है। इसीलिए वो अपनी इच्छानुसार पेंटिंग की शिक्षा लेने “उकील आर्ट स्कूल” पहुंचे। परीक्षा में सफल होने के कारण उन्हें बिना फीस दिए ही वहाँ प्रवेश मिल गया।

लेखक ने करोलबाग में सड़क किनारे एक कमरा किराए में लिया और वहीं से वो पेंटिंग सीखने कनाट प्लेस जाते थे। पेंटिंग क्लास जाने और आने के रास्ते में वो अपना अधिकतर समय कभी ड्राइंग बनाकर तो कभी कविताएं लिखकर गुजारा करते थे।

हालाँकि उन्हें इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि कभी उनकी कविताएं प्रकाशित होगी। आर्थिक हालत अच्छे न होने के कारण कभी-कभी लेखक के बड़े भाई तेज बहादुर उन्हें कुछ रुपए भेज देते थे और कुछ रुपए लेखक स्वयं साइन बोर्ड पेंट करके भी कमा लेते थे।

कुछ समय बाद लेखक के एक तीस-चालीस वर्ष के महाराष्ट्रीयन पत्रकार मित्र उनके साथ आकर रहने लगे।लेखक उस वक्त कभी कविताएं और कभी उर्दू में गजल के कुछ शेर भी लिख लिया करते थे।

लेखक की पत्नी का देहांत टी.बी नामक बीमारी के कारण हो चुका था। इसीलिए वो अपने आप को बिल्कुल अकेला महसूस करते और दुखी रहते थे। पेंटिंग करना , कविताएं लिखना , उनका जीवन बस इन्हीं तक सीमित रह गया था।

एक बार लेखक अपनी क्लास खत्म होने के बाद घर जा चुके थे। तब बच्चन जी उनके स्टूडियो में आए और लेखक को वहां ना पाकर उनके नाम एक नोट छोड़ कर चले गए। लेखक कहते हैं कि उनकी एक बहुत बुरी आदत थी कि वह कभी भी किसी के भी पत्रों का जवाब नहीं देते थे। लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने बच्चन जी के लिए एक अंग्रेजी का सॉनेट लिखा। लेकिन वह उसे बच्चन जी को भेज नहीं पाए।

इसके बाद लेखक अपनी ससुराल देहरादून आ गए। जहां उन्होंने एक केमिस्ट की दुकान में कंपाउंडरी सीखी । और एक दिन अचानक उन्होंने अंग्रेजी में लिखा अपना वह सॉनेट बच्चन जी को भेज दिया।

बात सन 1937 की हैं जब बच्चनजी गर्मियों की छुट्टियों में देहरादून आए और बृज मोहन गुप्ता के यहां ठहरे। और फिर एक दिन वो बृज मोहन गुप्ता के साथ उनकी केमिस्ट की दुकान में आकर उनसे मिले। लेखक बताते हैं कि उस दिन मौसम खराब था और आँधी आने के कारण वो एक गिरते पेड़ के नीचे आते-आते बच गए।

इस छोटी सी मुलाकात में लेखक का बच्चन जी के साथ एक व्यवहारिक रिश्ता जुड़ गया था ।लेखक कहते हैं कि बच्चनजी की पत्नी का भी देहांत हो चुका था। इसीलिए वो भी बहुत दुखी रहते थे। उनकी पत्नी उनके सुख-दुख की संगिनी थी। वह विशाल हृदय की मलिक्का व बात की धनी महिला थी।

लेखक की मनोदशा देखकर बच्चनजी ने उन्हें इलाहाबाद आकर पढ़ने की सलाह दी और उनकी बात मान कर लेखक इलाहाबाद पहुंच गए। बच्चन जी ने लेखक को M.A में प्रवेश दिला दिया।

इलाहाबाद में लेखक को बच्चनजी व उनके परिवार से बहुत सहयोग मिला। बच्चनजी के पिताजी ने लेखक को उर्दू-फारसी की सूफी नज्मों का एक संग्रह भी भेंट किया। बच्चनजी ने स्वयं भी M.A अंग्रेजी विषय से किया था लेकिन उन्होंने नौकरी नहीं की। लेखक का भी सरकारी नौकरी के प्रति कोई रुझान नहीं था। इसीलिए वो भी सरकारी नौकरी से दूर ही रहे।

लेखक आगे कहते हैं कि श्री सुमित्रानंदन पंतजी की सहायता से उन्हें “हिंदू बोर्डिंग हाउस” के कॉमन रूम में एक सीट फ्री मिल गई थी।और इसी के साथ ही उन्हें पंत जी की सहायता से “इंडियन प्रेस” में अनुवाद का काम भी मिल गया था।

यहीं से लेखक ने हिंदी कविताओं व लेखन कार्य को गंभीरता से लेना आरंभ किया। लेखक के परिवार में उर्दू का माहौल होने के कारण उन्हें उर्दू का अच्छा ज्ञान था। लेकिन उनका हिंदी लिखने का अभ्यास बिल्कुल ही छूट चुका था।बच्चन जी की मदद से उन्होंने पुन: हिंदी लिखने में महारत हासिल की। 

उनकी कुछ रचनाएं “सरस्वती” और “चाँद” में भी छप चुकी थी। “अभ्युदय” में छपा उनका एक “सॉनेट” बच्चन जी को बहुत पसंद आया। लेखक कहते हैं कि उन्हें पंतजी और निरालाजी ने हिंदी की ओर आकर्षित किया । अब बच्चनजी भी हिंदी में लेखन कार्य शुरू कर चुके थे।

लेखक को लगा कि अब उन्हें भी हिंदी में लेखन कार्य करने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। लेखक लाख कोशिशों के बाद भी M.A. नहीं कर पाए जिसका बच्चनजी को बहुत दुख था।

लेखक ने अब हिंदी कवितायें लिखनी आरम्भ की और उनके प्रयास सार्थक भी हो रहे थे। “सरस्वती” पत्रिका में छपी लेखक की एक कविता ने निराला जी का ध्यान खींचा। इसी के साथ ही  लेखक ने कुछ और निबंध भी लिखें।

लेखक के अनुसार उनके हिंदी साहित्य जगत में फलने फूलने के पीछे बच्चनजी का बहुत बड़ा योगदान रहा है।

लेखक कहते हैं कि बाद में वो निश्चित रूप से बच्चन जी से दूर ही रहे क्योंकि उन्हें चिट्ठी-पत्री तथा मिलने जुलने में अधिक विश्वास नहीं था लेकिन बच्चनजी हमेशा उनके बहुत निकट रहे।

लेखक कहते हैं कि बच्चनजी का व्यक्तित्व उनकी श्रेष्ठ कविताओं से भी बहुत बड़ा व अद्भुत है। बच्चनजी जैसे व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति इस दुनिया में कम ही होते हैं।

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