पाठ 13 ग्राम श्री  | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

NCERT important question for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 13 ग्राम श्री

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि ने गाँव को ‘हरता जन-मन’ क्यों कहा है?

उत्तर-
कवि ने गाँव को ‘हरता जन-मन’ इसलिए कहा है क्योंकि उसकी शोभा अनुराग है। खेतों में दूर-दूर तक मखमली हरियाली फैली हुई है। उस पर सूरज की धूप चमक रही है। इस शोभा के कारण पूरी वसुधा प्रसन्न दिखाई देती है। इसके कारण गेहूँ, जौ, अरहर, सनई, सरसों की फसलें उग आई हैं। तरह-तरह के फूलों पर रंगीन तितलियाँ मँडरा रही हैं। आम, बेर, आड़, अनार आदि मीठे फल पैदा होने लगे हैं। आलू, गोभी, बैंगन, मूली, पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर, मिर्च आदि खूब फल-फूल रहे हैं। गंगा के किनारे तरबूजों की खेती फैलने लगी है। पक्षी आनंद विहार कर रहे हैं। ये सब दृश्य मनमोहक बन पड़े हैं। इसलिए गाँव सचमुच जन-मन को हरता है।

प्रश्न 2.
कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है?

उत्तर-
कविता में सरदी के मौसम के सौंदर्य का वर्णन है। इसी समय गुलाबी धूप हरियाली से मिलकर हरियाली पर बिछी चाँदी की उजली जाली का अहसास कराती है और पौधों पर पड़ी ओस हवा से हिलकर उनमें हरारक्त होने का भान होता है। इसके अलावा खेत में सब्ज़ियाँ तैयार होने, पेड़ों पर तरह-तरह के फल आने, तालाब के किनारे रेत पर मँगरौठ नामक पक्षी के अलसीकर सोने से पता चलता है कि यह सरदी के मौसम का ही वर्णन है।

प्रश्न 3.
गाँव को ‘मरकत डिब्बे-सा खुला’ क्यों कहा गया है?

उत्तर-
गाँव में चारों ओर मखमली हरियाली और रंगों की लाली छाई हुई है। विविध फसलें लहलहा रही हैं। वातावरण मनमोहक सुगंधों से भरपूर है। रंगीन तितलियाँ उड़ रही हैं। चारों ओर रेशमी सौंदर्य छाया हुआ है। सूरज की मीठी-मीठी धूप इस सौंदर्य को और जगमगा रही है। इसलिए इस गाँव की तुलना मरकत डिब्बे से की गई है।

प्रश्न 4.
अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं?

उत्तर-
अरहर और सनई फलीदार फ़सलें हैं। इनकी फ़सलें पकने पर, जब हवा चलती है तो इनमें से मधुर आवाज़ आती है। यह मधुर आवाज़ किसी स्त्री की कमर में बँधी करधनी से आती हुई प्रतीत होती है। इन्हीं मधुर आवाजों के कारण कवि को अरहर और सनई के खेत धरती की करधनी जैसे दिखाई देते हैं।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए-

  1. बालू के साँपों से अंकित गंगा की सतरंगी रेती।
  2. हँसमुख हरियाली हिम-आतप सुख से अलसाए-से सोए।

उत्तर-

  1. गंगा-तट की रेत बल-खाते साँप की तरह लहरदार है और वह विविध रंगों वाली है।
  2. हरियाली धूप के प्रकाश में जगमगाती हुई हँसमुख-सी लग रही है। सर्दी की धूप भी स्थिर और शांत है। उन्हें देखकर यों लगता है मानो दोनों अलसाकर एक-दूसरे के संग सो गए हों।

प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?

तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक
उत्तर-

  1. हरे-हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  2. ‘हरे-हरे’ ‘हिल-हरित’ में अनुप्रास अलंकार है।
  3. ‘हरित रुधिर’-रुधिर का रंग हरा बताने के कारण विरोधाभास अलंकार है।
  4. ‘तिनकों के हरे-भरे तन पर’ में रूपक एवं मानवीकरण अलंकार है।

प्रश्न 7.
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है वह भारत के किस भू-भाग पर स्थित है?

उत्तर-
इस कविता में गंगा के तट पर बसे गाँव का चित्रण हुआ है।

प्रश्न 8.
भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-
‘ग्राम श्री’ कविता में उस ग्रामीण सौंदर्य का चित्रण है जो लोगों के मन को अनायास अपनी ओर खींच लेता है। गाँव हरियाली से भरपूर है। यह खेतों में लहराती फ़सलें हैं जिन पर रंग-बिरंगे फूल खिले हैं तो दूसरी ओर फलों से लदे पेड़ भी हैं जिन पर पके फलं मुँह में पानी ला देते हैं।

कविता में गंगा की सतरंगी रेती और जल क्रीड़ा करते पक्षियों का चित्रण भी है। हरा-भरा गाँव देखकर लगता है कि यह मरकत का कोई डिब्बा हो। कविता की भाषा सरल सहज बोधगम्य, प्रवाहमयी है जिसमें चित्रमयता है। वर्णन इतना प्रभावी है कि सारा का सारा दृश्य आँखों के सामने साकार हो उठता है। कविता में अनुप्रास, रूपक मानवीकरण और विरोधाभास अलंकारों का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग है। इस तरह ग्राम श्री’ कविता भाव एवं भाषा की दृष्टि से उत्कृष्ट है।

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पाठ 12 कैदी और कोकिला  | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

NCERT important questions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 12 कैदी और कोकिला

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी?

उत्तर-
कोयल की कूक सुनकर कवि को लगा कि वह मानो उसे कुछ कहना चाहती है। या तो वह उसे निरंतर लड़ते रहने की प्रेरणा देना चाहती है या उसकी यातनाओं के दर्द को बाँटना चाहती है। उसे लगता है कि कोकिल कवि के कष्टों को देखकर आँसू बहा रही है और चुपचाप अँधेरे को बेधकर विद्रोह की चेतना जगा रही है। इसलिए अंत में कवि उसके इशारों पर आत्म-बलिदान करने को तैयार हो जाता है।

प्रश्न 2.
कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई?

उत्तर-
कवि ने कोकिल के बोलने पर निम्नलिखित कारणों की संभावना जताई है-

  • कोयल जेल में बंद क्रांतिकारियों को देशवासियों की दुर्दशा के बारे में बताने आयी है।
  • कोयल कैदी क्रांतिकारियों को धैर्य बँधाने एवं दिलासा देने आई है।
  • कोयल कैदी क्रांतिकारियों के दुखों पर मरहम लगाने आई है।
  • कोयल पागल हो गई है जो आधी रात में चीख रही है।

प्रश्न 3.
किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है और क्यों?

उत्तर-
ब्रिटिश शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है।
क्यों ब्रिटिश शासकों ने बेकसूर भारतीयों पर घोर अत्याचार किए। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को कारागृह में तरह-तरह की यातनाएँ दीं। उन्हें कोल्हू के बैल की तरह जोता गया।

प्रश्न 4.
कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर-
पराधीन भारत की जेलों में भारतीयों को पशुओं की भाँति-रखा जाता था। उन्हें ऐसी यातनाएँ दी जाती थीं कि सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • उन्हें ऊँची-ऊँची दीवार वाली जेलों में रखा जाता था।
  • उन्हें दस फुट की छोटी-छोटी कोठरियों में रखा जाता था।
  • उन्हें भरपेट खाना नहीं दिया जाता था।
  • उनके साथ पशुओं-सा व्यवहार किया जाता था।
  • उन्हें बात-बात पर गालियाँ दी जाती थीं।
  • उन्हें तड़प-तड़पकर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए

(क) मृदुल वैभव की रखवाली-सी, कोकिल बोलो तो!
(ख) हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुँआ।
उत्तर-
(क) कवि के अनुसार, वैसे तो संसार में कष्ट-ही-कष्ट हैं। यदि कहीं कुछ मृदुलता और सरसता बची है तो वह कोयल के मधुर स्वर में बची है। अतः कोयल मृदुलता की रखवाली करने वाली है। वह उससे पूछता है कि आखिर वह जेल में अपना मधुर स्वर गुँजाकर उसे क्या कहना चाहती है!

(ख) इसमें जेल की असहनीय यातनाएँ झेलता हुआ कवि स्वाभिमानपूर्वक कहता है कि वह अपने पेट पर कोल्हू का जूआ बाँधकर चरसा चला रहा है। आशय यह है कि उससे पशुओं जैसा सख्त काम लिया जा रहा है। फिर भी वह हार नहीं मान रहा। इससे ब्रिटिश सरकार की अकड़ ढीली पड़ रही है। अंग्रेज़ों को बोध हो गया है कि अब अत्याचार करने से भी वे सफल नहीं हो सकते।

प्रश्न 6.
अर्धरात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है?

उत्तर-
आधी रात में कोयल की चीख सुनकर कवि को यह अंदेशा होता है कि उसने भारतीयों के आक्रोश एवं असंतोष की ज्वाला देख ली होगी। यह ज्वाला जंगल में लगने वाली आग के समान भयंकर रही होगी। कोयल उसी ज्वाला (क्रांति) की सूचना देने जेल परिसर के पास आई है।

प्रश्न 7.
कवि को कोयल से ईष्र्या क्यों हो रही है?

उत्तर-
कवि को कोयल से इसलिए ईर्ष्या हो रही है क्योंकि कोयल स्वतंत्र है, जबकि कवि बंदी है। कोयल हरियाली का आनंद ले रही है, जबकि कवि दस फुट की अँधेरी कोठरी में जीने के लिए विवश है। कोयल के गान की सभी सराहना करते हैं, जबकि कवि के लिए रोना भी गुनाह हो गया है।

प्रश्न 8.
कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की कौन सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है?

उत्तर-
कवि के स्मृति पटल पर कोयल की कर्णप्रिय अत्यंत मधुर स्वर की स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें अब वह नष्ट करने पर तुली है।

प्रश्न 9.
हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है?

उत्तर-
गहना उस आभूषण को कहते हैं, जो धारणकर्ता का गौरव और सौंदर्य बढ़ाए। पं. माखनलाल चतुर्वेदी जैसे क्रांतिकारी, जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए स्वयं प्रेरणा से संघर्ष का मार्ग अपनाया था, जेल को अपना प्रिय आवास तथा हथकड़ियों को गहना समझते थे। उन्हें किसी गलत कार्य के लिए हथकड़ी नहीं पहननी पड़ी। उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के महान उद्देश्य के लिए हथकड़ियाँ स्वीकार कीं, अतः उनसे उनका गौरव बढ़ा। समाज ने उन्हें उन हथकड़ियों के लिए प्रतिष्ठा दी। इसलिए उन्होंने हथकड़ियों को गहना कहा।

प्रश्न 10.
‘काली तू …. ऐ आली!’-इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन कीजिए।

उत्तर-
‘काली तू … ऐ आली!’ इन पंक्तियों में काली शब्द की आवृत्ति हुई है। इस शब्द का अर्थ भी उसके संदर्भानुसार है। संदर्भ के अनुसार काली शब्द के निम्नलिखित अनेक अर्थ हैं-

  • हथकड़ियाँ रात, कोयल आदि का रंग काला बताने के लिए।
  • अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण कारनामें बताने के लिए।
  • पराधीन भारतीयों का भविष्य अंधकारमय बताने के लिए।
  • अंग्रेज़ों के प्रति भारतीयों के मन में उठने वाले आक्रोश के संबंध में।
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पाठ 11 सवैये | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

NCERT important questions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 11 सवैये

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?

उत्तर-
कवि को ब्रजभूमि से गहरा प्रेम है। वह इस जन्म में ही नहीं, अगले जन्म में भी ब्रजभूमि का वासी बने रहना चाहता है। ईश्वर अगले जन्म में उसे ग्वाला बनाएँ, गाय बनाएँ, पक्षी बनाएँ या पत्थर बनाएँ-वह हर हाल में ब्रजभूमि में रहना चाहता है। वह ब्रजभूमि के वन, बाग, सरोवर और करील-कुंजों पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को भी तैयार है।

प्रश्न 2.
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?

उत्तर-
कवि का ब्रज के वन-बाग और तालाब निहारने का कारण यह है कि वह इन सबसे श्रीकृष्ण का जुड़ाव महसूस करता है। कवि श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त है। अपने आराध्य से जुड़ी वस्तुएँ उसे शांति और आनंद की अनुभूति कराती है।

प्रश्न 3.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है?

उत्तर-
कवि के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हैं-कृष्ण। इसलिए कृष्ण की एक-एक चीज़ उसके लिए महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है कि वह कृष्ण की लाठी और कंबल के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार है।

प्रश्न 4.
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

उत्तर-
सखी ने गोपी से कृष्ण का ठीक वैसा ही रूप धारण करने का अग्रह किया था जैसा कृष्ण दिखते थे। इसके लिए उसने सिर पर मोर पंखों को बना मुकुट, गले में गूंज की माला, शरीर पर पीला वस्त्र पहने और हाथ में लाठी लेने का अग्रह किया था।

प्रश्न 5.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?

उत्तर-
कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य इसलिए प्राप्त करना चाहता है क्योंकि इन सबके साथ श्रीकृष्ण का जुड़ाव किसी न किसी रूप में रहा था।

प्रश्न 6.
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?

उत्तर-
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आपको इसलिए विवश पाती हैं क्योंकि श्रीकृष्ण की मुसकान अत्यंत आकर्षक है। इस मुसकान के आकर्षण से बच पाना उनके लिए कठिन हो जाता है। इस मुसकान के कारण वे अपने तन-मन पर अपना नियंत्रण नहीं रख पाती है।

प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर-
(क) रसखान ब्रजभूमि से इतना प्रेम करते हैं कि वे वहाँ के काँटेदार करील के कुंजों के लिए करोड़ों महलों के सुखों को भी न्योछावर करने को तैयार हैं। आशय यह है कि वे महलों की सुख-सुविधा त्यागकर भी उस ब्रजभूमि पर रहना पसंद करते हैं।

(ख) एक गोपी कृष्ण की मधुर-मोहिनी मुसकान पर इतनी मुग्ध है कि उससे कृष्ण की मोहकता झेली नहीं जाती। वह पूरी तरह उस पर समर्पित हो गई है।

प्रश्न 8.
‘कालिंदी कुल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर-
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए

या मुरली मुरलीधर की अधरा न धरी अधरा न धरौंगी।।
उत्तर-
इसमें यमक अलंकार का सौंदर्य है। ‘मुरली मुरलीधर’ में सभंग यमक है। ‘अधरान’ धरी ‘अधरा न’ में भी सभंग यमक है।

अधरान = अधरों पर
अधरा न = होठों पर नहीं।
अनुप्रास अलंकार का सौंदर्य भी देखते बनता है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10.
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।

उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 11.
रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।

उत्तर-
छात्र अध्यापक की मदद से स्वयं करें।

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पाठ 10 वाख | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

NCERT important questions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 10 वाख

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नाव किसका प्रतीक है? कवयित्री उसे कैसे खींच रही है?

उत्तर-
नाव इस नश्वर शरीर का प्रतीक है। कवयित्री उसे साँसों की डोर रूपी रस्सी के सहारे खींच रही है।

प्रश्न 2.
कवयित्री भवसागर पार होने के प्रति चिंतिते क्यों है?

उत्तर-
कवयित्री भवसागर पार होने के प्रति इसलिए चिंतित है क्योंकि वह नश्वर शरीर के सहारे भवसागर पार करने का निरंतर प्रयास कर रही है परंतु जीवन का अंतिम समय आ जाने पर भी उसे अच्छी प्रार्थना स्वीकार होती प्रतीत नहीं हो रही है।

प्रश्न 3.
कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना किससे की है और क्यों?

उत्तर-
कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना कच्चे सकोरों से की है। मिट्टी के इन कच्चे सकोरों में जल रखने से जल रिसकर बह जाता है और सकोरा खाली रहता है उसी प्रकार कवयित्री के प्रयास निष्फल हो रहे हैं।

प्रश्न 4.
कवयित्री के मन में कहाँ जाने की चाह है? उसकी दशा कैसी हो रही है?

उत्तर-
कवयित्री के मन में परमात्मा की शरण में जाने की चाह है। यह चाह पूरी न हो पाने के कारण उसकी दशा चिंताकुल है।

प्रश्न 5.
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री क्या आवश्यक मानती है?

उत्तर-
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री का मानना है कि मनुष्य को भोग लिप्ता से आवश्यक दूरी बनाकर भोग और त्याग के बीच का मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। उसे संयम रखते हुए भोग और त्याग में समान भाव रखना चाहिए।

प्रश्न 6.
‘न खाकर बनेगा अहंकारी’-कवयित्री ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर-
‘न खाकर बनेगा अहंकारी’-कवयित्री ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि भोग से दूरी बनाते-बनाते लोग इतनी दूरी बना लेते हैं कि वे वैराग्य धारण कर लेते हैं। उन्हें अपनी इंद्रियों को वश में करने के कारण घमंड हो जाता है। वे स्वयं को सबसे बड़ा तपस्वी मानने लगते हैं।

प्रश्न 7.
कवयित्री किसे साहब मानती है? वह साहब को पहचानने का क्या उपाय बताती है?

उत्तर-
कवयित्री परमात्मा को साहब मानती है, जो भवसागर से पार करने में समर्थ हैं। वह साहब को पहचानने का यह उपाय बताती है कि मनुष्य को आत्मज्ञानी होना चाहिए। वह अपने विषय में जानकर ही साहब को पहचान सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री ने क्या कहना चाहा है? इससे मनुष्य को क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर-
‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री यह कहना चाहती है कि हठयोग, आडंबर, भक्ति का दिखावा आदि के माध्यम से प्रभु को प्राप्त करने का प्रयास असफल ही होता है। इस तरह का प्रयास भले ही आजीवन किया जाए पर उसके हाथ भक्ति के नाम कुछ नहीं लगता है। भवसागर को पार करने के लिए मनुष्य जब अपनी जेब टटोलता है तो वह खाली मिलती है। इससे मनुष्य को यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति का दिखावा एवं आडंबर नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘वाख’ पाठ के आधार पर बताइए कि परमात्मा को पाने के रास्ते में कौन-कौन सी बाधाएँ आती हैं?

उत्तर-
परमात्मा को पाने के रास्ते में आने वाली निम्नलिखित बाधाएँ पाठ में बताई गई हैं-

  1. क्षणभंगुर मानव शरीर और नश्वर साँसों के सहारे मनुष्य परमात्मा को पाना चाहता है।
  2. परमात्मा को पाने के प्रति मन का शंकाग्रस्त रहना।
  3. अत्यधिक भोग में लिप्त रहना या भोग से पूरी तरह दूर होकर वैरागी बन जाना।
  4. मन में अभिमान आ जाना।
  5. सहज साधना का मार्ग त्यागकर हठयोग आदि का सहारा लेना।
  6. ईश्वर को सर्वव्यापक न मानना।
  7. मत-मतांतरों के चक्कर में उलझे रहना।
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पाठ 9 साखियाँ एवं सबद | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

NCERT important questions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हंस किसके प्रतीक हैं? वे मानसरोवर छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते हैं?

उत्तर-
हंस जीवात्मा के प्रतीक हैं। वे मानसरोवर अर्थात् मेन रूपी सरोवर को छोड़कर अन्यत्र इसलिए जाना चाहते हैं क्योंकि उसे प्रभु भक्ति का आनंद रूपी मोती चुगने को मिल रहे हैं। ऐसा आनंद उसे अन्यत्र दुर्लभ है।

प्रश्न 2.
कबीर ने सच्चा संत किसे कहा है? उसकी पहचान बताइए।

उत्तर-
कबीर ने सच्चा संत उसे कहा है जो हिंदू-मुसलमान के पक्ष-विपक्ष में न पड़कर इनसे दूर रहता है और दोनों को समान दृष्टि से देखता है, वही सच्चा संत है। उसकी पहचान यह है कि किसी धर्म/संप्रदाय के प्रति कट्टर नहीं होता है और प्रभुभक्ति में लीन रहता है।

प्रश्न 3.
कबीर ने ‘जीवित’ किसे कहा है?

उत्तर-
कबीर ने उस व्यक्ति को जीवित कहा है जो राम और रहीम के चक्कर में नहीं पड़ता है। इनके चक्कर में पड़े व्यक्ति राम-राम या खुदा-खुदा करते रह जाते हैं पर उनके हाथ कुछ नहीं लगता है। इन दोनों से दूर रहकर प्रभु की सच्ची भक्ति करने वालों को ही कबीर ने ‘जीवित’ कहा है।

प्रश्न 4.
‘मोट चून मैदा भया’ के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर-
मोट चून मैदा भया के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों की बुराइयाँ समाप्त हो गई और वे अच्छाइयों में बदल गईं। अब मनुष्य इन्हें अपनाकर जीवन सँवार सकता है।

प्रश्न 5.
कबीर ‘सुबरन कलश’ की निंदा क्यों करते हैं?

उत्तर-
कबीर ‘सुबरन कलश’ की निंदा इसलिए करते हैं क्योंकि कलश तो बहुत महँगा है परंतु उसमें रखी सुरा व्यक्ति के लिए हर तरह से हानिकारक है। सुरा के साथ होने के कारण सोने का पात्र निंदनीय बन गया है।

प्रश्न 6.
‘सुबरन कलश’ किसका प्रतीक है? मनुष्य को इससे क्या शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए?

उत्तर-
‘सुबरन कलश’ अच्छे और प्रतिष्ठित कुल का प्रतीक है जिसमें जन्म लेकर व्यक्ति अपने-आप को महान समझने लगता है। व्यक्ति तभी महान बनता है जब उसके कर्म भी महान हैं। इससे व्यक्ति को अच्छे कर्म करने की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
कबीर मनुष्य के लिए क्रिया-कर्म और योग-वैराग्य को कितना महत्त्वपूर्ण मानते हैं?
उत्तर-

कबीर मनुष्य के लिए क्रिया-कर्म और योग-वैराग्य को महत्त्वपूर्ण नहीं मानते हैं क्योंकि मनुष्य इन क्रियाओं के माध्यम से ईश्वर को पाने का प्रयास करता है, जबकि कबीर के अनुसार ईश्वर को इन क्रियाओं के माध्यम से नहीं पाया जा सकता है।

प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को क्यों नहीं खोज पाता है?

उत्तर-
मनुष्य ईश्वर को इसलिए नहीं खोज पाता है क्योंकि वह ईश्वर का वास मंदिर-मस्जिद जैसे धर्मस्थलों और काबा-काशी जैसी पवित्र मानी जाने वाली जगहों पर मानता है। वह इन्हीं स्थानों पर ईश्वर को खोजता-फिरता है। वह ईश्वर को अपने भीतर नहीं खोजता है।

प्रश्न 9.
कबीर ने संसार को किसके समान कहा है और क्यों?

उत्तर-
कबीर ने संसार को श्वान रूपी कहा है क्योंकि जिस तरह हाथी को जाता हुआ देखकर कुत्ते अकारण भौंकते हैं उसी तरह ज्ञान पाने की साधना में लगे लोगों को देखकर सांसारिकता में फँसे लोग तरह-तरह की बातें बनाने लगते हैं। वे ज्ञान के साधक को लक्ष्य से भटकाना चाहते हैं।

प्रश्न 10.
कबीर ने ‘भान’ किसे कहा है? उसके प्रकट होने पर भक्त पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर-
कबीर ने ‘भान’ (सूर्य) ज्ञान को कहा है। ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त होने पर मनुष्य के मन का अंधकार दूर हो जाता है। इस अंधकार के दूर होने से मनुष्य के मन से कुविचार हट जाते हैं। वह प्रभु की सच्ची भक्ति करता है और उस आनंद में डूब जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि कबीर खरी-खरी कहने वाले सच्चे समाज सुधारक थे।

उत्तर-
कबीर ने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों को अत्यंत निकट से देखा था। उन्होंने महसूस किया कि सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता, भक्ति का आडंबर, मूर्तिपूजा, ऊँच-नीच की भावना आदि प्रभु-भक्ति के मार्ग में बाधक हैं। उन्होंने ईश्वर की वाणी को जन-जन तक पहुँचाते हुए कहामोको केही ढूँढे बंदे मैं तो तेरे पास में। इसके अलावा ऊँचे कुल में जन्म लेकर महान कहलाने वालों के अभिमान पर चोट करते हुए कहा-‘सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोय’। इससे स्पष्ट होता है कि कबीर खरी-खरी कहने वाले सच्चे समाज-सुधारक थे।

प्रश्न 2.
ज्ञान की आँधी आने से पहले मनुष्य की स्थिति क्या थी? बाद में उसकी दशा में क्या-क्या बदलाव आया? पठित ‘सबद’ के आधार पर लिखिए।

उत्तर-
ज्ञान की आँधी आने से पहले मनुष्य का मन मोह-माया, अज्ञान तृष्णा, लोभ-लालच और अन्य दुर्विचारों से भरा था। वह सांसारिकता में लीन था, इससे वह प्रभु की सच्ची भक्ति न करके भक्ति का आडंबर करता था। ज्ञान की आँधी आने के बाद मनुष्य के मन से अज्ञान का अंधकार और कुविचार दूर हो गए। उसके मन में प्रभु-ज्ञान का प्रकाश फैल गया। वह प्रभु की सच्ची भक्ति में डूबकर उसके आनंद में सराबोर हो गया।

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पाठ 8 एक कुत्ता और एक मैना | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

NCERT important questions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैनालघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरुदेव को श्रीनिकेतन के पुराने आवास में ले जाने में परेशानी क्यों हो रही थी?

उत्तर-
गुरुदेव को श्रीनिकेतन के पुराने आवास में ले जाने में इसलिए परेशानी हो रही थी क्योंकि-

  • गुरुदेव वृद्ध थे। उनका शरीर कमज़ोर हो चुका था।
  • उन्होंने तीसरी मंजिल पर अपना आवास बनाने का निर्णय लिया था।
  • लोहे की चक्करदार सीढ़ियों से उन्हें ले जाना आसान न था।
  • गुरुदेव अपने आप चल-फिर नहीं सकते थे।

प्रश्न 2.
गुरुदेव कैसे दर्शनार्थियों से डरते थे और क्यों ?

उत्तर-
गुरुदेव उन दर्शनार्थियों से डरते थे जो समय-असमय, स्थान आदि का ध्यान रखे बिना गुरुदेव से मिलने आ जाते थे और देर तक वह गुरुदेव से बातें किया करते थे। उनकी इस धृष्टता से गुरुदेव को कितनी परेशानी होती थी इसकी उन्हें चिंता नहीं रहती थी।

प्रश्न 3.
गुरुदेव को शांतिनिकेतन की तुलना में श्रीनिकेतन किस तरह सुविधाजनक लगा?

उत्तर-
गुरुदेव को शांतिनिकेतन की अपेक्षा श्रीनिकेतन कई तरह से सुविधाजनक लगा; जैसे-

  • श्रीनिकेतन का वातावरण अधिक शांतिमय था।
  • श्रीनिकेतन में गुरुदेव से मिलने वालों की भीड़ नहीं होती थी।
  • श्रीनिकेतन में वे अकेले रहते थे।
  • यहाँ उन्हें अधिक सुखानुभूति होती थी।

प्रश्न 4.
अचानक कुत्ते के आ जाने से गुरुदेव को कैसा लगा और क्यों?

उत्तर-
श्रीनिकेतन में अचानक कुत्ते के आ जाने से गुरुदेव को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसे श्रीनिकेतन के दो मील लंबे रास्ते का पता न था, न उसे किसी ने बताया था कि गुरुदेव यहाँ हैं। वह आत्मज्ञान से आया था।

प्रश्न 5.
कुत्ता गुरुदेव के पास क्यों आ गया? गुरुदेव का सान्निध्य उसे कैसा लगता था?

उत्तर-
कुत्ता अत्यंत स्वामिभक्त था। वह गुरुदेव से असीम लगाव रखता था। वह गुरुदेव का प्यार भरा स्पर्श पाने के लिए उनके पास गया था। जब गुरुदेव ने कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरा तो वह आँखें बंदकर रोम-रोम से स्नेह रस का अनुभव करने लगा। गुरुदेव के सान्निध्य की परितृप्ति उसके चेहरे पर झलकने लगी।

प्रश्न 6.
आरोग्य में लिखी कविता में गुरुदेव ने कुत्ते की किस अद्भुत विशेषता की ओर ध्यान आकर्षित कराया है?

उत्तर-
आरोग्य में लिखी कविता में गुरुदेव ने कुत्ते की अद्भुत विशेषता के बारे में लिखा है कि इस वाक्यहीन प्राणिलोक में यही अकेला जीव अच्छा-बुरा सबको भेदकर संपूर्ण मनुष्य को देख सकता है। यह उस आनंद को देख सका है जिसे प्राण दिया जा सकता है, जिसमें अहैतुक प्रेम ढाल दिया जा सकता है, जिसकी चेतना असीम चैतन्य लोक में राह दिखा सकती है।

प्रश्न 7.
गुरुदेव द्वारा लिखी कविता पढ़कर लेखक के सामने कौन-सी घटना साकार हो उठती है?

उत्तर-
गुरुदेव द्वारा लिखी कविता पढ़कर लेखक के सामने श्री निकेतन के तितल्ले वाली वह घटना साकार हो उठती है, जब स्वामिभक्त कुत्ता गुरुदेव को खोजते-खोजते दो मील चलकर आ गया और गुरुदेव के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव द्वारा उसकी पीठ पर हाथ फेरते ही उसका रोम-रोम स्नेह रस से आनंदित हो उठा।

प्रश्न 8.
गुरुदेव की मृत्यु पर कुत्ते ने अपनी संवेदना का परिचय कैसे दिया?

उत्तर-
गुरुदेव की मृत्यु के बाद जब उनका चिता भस्म कोलकाता से आश्रम लाया गया उस समय अपने सहज बोध के बल पर। आश्रम के द्वार तक आया और चिताभस्म के साथ अन्य आश्रमवासियों के साथ गंभीर भाव से उत्तरायण तक आया और कलश के पास थोड़ी देर तक बैठा रहा।

प्रश्न 9.
गुरुदेव पशु-पक्षियों से भी लगाव रखते थे। एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-
गुरुदेव पशु-पक्षियों से भी लगाव रखते थे, यह बात दो उदाहरणों से स्पष्ट हो जाती है-

  • गुरुदेव का स्वामिभक्त कुत्ता उनका सान्निध्य पाने के लिए सदैव आतुर रहता था। गुरुदेव भी उस पर प्यार भरा हाथ फेरकर उसे आनंदमय कर देते थे।
  • गुरुदेव ने दल से अलग होकर चल रही मैना को देखकर उसकी करुण स्थिति के बारे में अनुमान कर लिया।

प्रश्न 10.
गुरुदेव प्रकृति से निकटता रखते हुए उससे असीम प्रेम करते थे। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-
गुरुदेव प्रकृति के निकट रहकर उससे असीम प्रेम करते थे। यह इस बात से पता चलता है कि लेखक जब गुरुदेव से मिलने गया तो वे कुरसी पर बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यानमग्न होकर आनंदित हो रहे थे।
बगीचे में सवेरे-सेवेरे टहलते हुए वे एक-एक फूल-पत्ते को ध्यान से देख रहे थे। यह उनके प्रकृति प्रेम का उदाहरण है

प्रश्न 11.
मैना के चेहरे पर करुण भाव देखकर लेखक ने क्या अनुमान लगाया?

उत्तर-
गुरुदेव की बात पर विचार करके लेखक ने मैना के चेहरे के करुणभाव को देखकर लेखक ने यह अनुमान लगाया कि शायद यह विधुर मैना है जो पिछली स्वयंवर-सभा के युद्ध में घायल होकर परास्त हो गया था या विधवा पत्नी है जो पिछले बिड़ाल आक्रमण के समय पति को खोकर ईषत् चोट खाकर एकांत विहार कर रही है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक ने किस आधार पर ऐसा कहा है कि मैना दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है?

उत्तर-
लेखक तीन-चार साल से ऐसे नए मकान में रहने लगा है जिसकी दीवारों में सूराख छोड़ दिया गया है। इसी मकान में एक मैना दंपत्ति प्रतिवर्ष घोंसला बना लिया करता था। वे तिनके और चिथड़े लाकर जमा करते और नाना प्रकार की मधुर वाणी में गाना शुरू कर देते। उन्हें मकान में रहने वालों की कोई परवाह नहीं। यदि नर मैना कोई कागज का टुकड़ा लाते तो मादा और नर दोनों नाच-गाना और आनंद से सारा मकान मुखरित कर देते। मैना के ऐसे स्वभाव को देखकर ही लेखक ने कहा है कि मैना दूसरों पर अनुकंपा दिखाया करती है।

प्रश्न 2.
करुण भाव वाली मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने जो कविता लिखी थी, उसका सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-

गुरुदेव द्वारा लिखी कविता का सार इस प्रकार है। गुरुदेव ने अपने बगीचे में सेमल के पेड़ के नीचे एक अकेली मैना देखी जो लँगड़ाकर चल रही थी। इसके बाद गुरुदेव ने देखा कि वह मैना रोज़ सवेरे साथियों से अलग होकर कीड़ों का शिकार करती है, बरामदे में चढ़ जाती है, नाच-नाचकर चहल-कदमी करती है। गुरुदेव सोचते हैं कि समाज के किस दंड पर उसे निर्वासन मिला है। कुछ ही दूरी पर बाकी मैनाएँ बक-झक कर रही हैं, घास पर उछल-कूद रही हैं पर इसके जीवन में न जाने कहाँ गाँठ पड़ी है। इसकी चाल में वैराग्य का गर्व भी नहीं है।

प्रश्न 3.
लेखक को कौओं के संबंध में किस नए तथ्य का ज्ञान हुआ और कैसे?

उत्तर-
एक दिन गुरुदेव सवेरे-सवेरे बगीचे में टहल रहे थे। लेखक भी एक अध्यापक महोदय को लेकर उनके साथ हो लिया गुरुदेव एक-एक फूल-पत्ते को ध्यान से देखते हुए टहल रहे थे तभी गुरुदेव ने पूछा कि आश्रम के कौए कहीं चले गए। हैं क्या, उनकी आवाज़ सुनाई ही नहीं दे रही। लेखक अब तक कौओं को सर्वव्यापी पक्षी समझता था पर उस दिन पता चला कि कौए भी प्रवास पर चले जाते हैं। आखिर सप्ताह भर बाद ही आश्रम में बहुत से कौए दिखाई दिए।

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पाठ 7 मेरे बचपन के दिन | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

पाठ 7 – मेरे बचपन के दिन important Questions क्षितिज़ Class 9th हिंदी

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. महादेवी के परिवार में लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार होता था?

उत्तर

200 वर्ष पहले तक महादेवी के परिवार में लड़कियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था| महादेवी का जन्म परिवार में कई पीढ़ियों के बाद कुल-देवी दुर्गा की आराधना के बाद हुआ था| लेखिका का पालन-पोषण बड़े ही लाड़-प्यार से हुआ| माता-पिता ने खूब पढ़ाया-लिखाया और किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया गया|

2. लेखिका उर्दू-फारसी क्यों नहीं सीख पाईं?

उत्तर

लेखिका के परिवार में बाबा उर्दू-फारसी के अच्छे जानकार थे| वे चाहते थे कि लेखिका भी उर्दू-फारसी सीख ले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ| जब भी मौलवी साहब घर पर सिखाने आते थे, लेखिका चारपाई के नीचे छिप जातीं थीं| उन्हें उर्दू-फारसी सीखने में कोई रुचि नहीं थी| इस प्रकार वह कभी उर्दू-फारसी नहीं सीख पाईं|

3. महादेवी वर्मा की माँ के व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन करें|

उत्तर

लेखिका महादेवी वर्मा की माँ को हिंदी से बहुत लगाव था| वे पूजा-पाठ भी बहुत करती थीं| वह संस्कृत भी जानती थीं| गीता में उन्हें विशेष रुचि थी| उन्हें लिखने का भी शौक था| वह विशेष रूप से मीरा के पद भी गाती थीं|

4. बेगम साहिबा की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन किजिए|

उत्तर

बेगम साहिबा मुसलमान होते हुए भी लेखिका महादेवी जी के परिवार से भावनात्मक रूप से जुड़ी थीं| वह एक मिलनसार तथा खुले विचारों वाली महिला थी| उन्होंने महादेवी के परिवार के साथ ऐसे संबंध जोड़ लिए थे जैसे वह उन्हीं के परिवार का हिस्सा हो|   

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. बचपन की स्मृतियों में एक विचित्र-सा आकर्षण होता है। कभी-कभी लगता है, जैसे सपने में सब देखा होगा। परिस्थितियाँ बहुत बदल जाती हैं। अपने परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई। मेरे परिवार में प्राय: दो | सौ वर्ष तक कोई लड़की थी ही नहीं। सुना है, उसके पहले लड़कियों को पैदा होते ही परमधाम भेज देते थे। फिर मेरे बाबा ने बहुत दुर्गा पूजा की। हमारी कुलदेवी दुर्गा थीं। मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा | जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है। परिवार में बाबा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी। हिंदी का कोई वातावरण नहीं था। मेरी माता जबलपुर से आईं तब वे अपने साथ हिंदी लाईं। वे पूजा-पाठ भी बहुत करती थीं। पहले-पहल उन्होंने मुझको ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया।

(क) महादेवी के जन्म के समय समाज में लड़कियों की दशा कैसी थी?

(ख) महादेवी ने हिंदी किस प्रकार सीखी?

(ग) लेखिका का पालन-पोषण अन्य लड़कियों से भिन्न कैसे और क्यों हुआ?

उत्तर

(क) महादेवी के जन्म के समय समाज में लड़कियों को बोझ माना जाता था| उनके पैदा होते ही उन्हें मार दिया जाता था|

(ख) महादेवी के पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी और घर में हिंदी का कोई वातावरण नहीं था| जब उनकी माता जबलपुर से आईं तब उन्होंने महादेवी को पंचतन्त्र पढ़ना सिखाया और इस प्रकार उन्होंने हिंदी सीखी|

(ग) लेखिका के जन्म के समय लड़कियों को हीन दृष्टि से देखा जाता था, लेकिन उनका पालन-पोषण बड़े ही लाड़-प्यार से हुआ| उनकी बड़ी खातिर हुई तथा किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया गया|

2. फिर यहाँ कवि-सम्मेलन होने लगे | तो हम लोग भी उनमें जाने लगे। हिंदी का उस समय प्रचार-प्रसार था। मैं सन् 1917 में यहाँ आई थी। उसके उपरांत गांधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया और आनंद भवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केंद्र हो गया। जहाँ-तहाँ हिंदी का भी प्रचार चलता था। कवि-सम्मेलन होते थे तो क्रास्थवेट से मैडम हमको साथ लेकर जाती थीं। हम कविता सुनाते थे। कभी हरिऔध जी अध्यक्ष होते थे, कभी श्रीधर पाठक होते थे, कभी रत्नाकर जी होते थे, कभी कोई होता था। कब हमारा नाम पुकारा जाए, बेचैनी से सुनते रहते थे। मुझको प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। सौ से कम पदक नहीं मिले होंगे उसमें|

(क) प्रतिभागी के रूप में महादेवी कवि-सम्मलेन में कौन-सा स्थान प्राप्त करती थीं?

(ख) 1917 में स्वतंत्रता-संग्राम का क्या स्वरुप था?


(ग) सन् 1917 में हिंदी की क्या स्थिति थी?

उत्तर

(क) प्रतिभागी के रूप में महादेवी वर्मा को कवि-सम्मलेन में प्रथम पुरस्कार मिलता था| उन्हें सौ से अधिक पदक मिले थे| 

(ख) 1917 में गांधीजी के नेतृत्व में स्वतंत्रता-संग्राम शुरू हो चुका था| इसकी पहल गांधीजी ने सत्याग्रह से किया| जगह-जगह हिंदी के कवि-सम्मलेन के द्वारा जन-जागरण का कार्य शुरू हो चुका था|

(ग) सन् 1917 में हिंदी का खूब प्रचार-प्रसार हो रहा था और जगह-जगह हिंदी में कवि-सम्मलेन भी होते थे| हिंदी के प्रचार के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन को और भी व्यापक बनाया जा रहा था|

 

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पाठ 6 प्रेमचंद के फटे जूते  | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

पाठ 6 – प्रेमचंद के फटे जूते Extra important Questions क्षितिज़ Class 9th हिंदी

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. लोग फोटो में अधिक सुंदर क्यों दिखना चाहते हैं?

उत्तर

लोग फोटो में अधिक सुंदर दिखना चाहते हैं ताकि बाहरी दुनिया में उनकी प्रशंसा हो| इसके लिए वे जब फोटो खिंचवाते हैं तो कई प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग करते हैं, जिससे कि फोटो में सुंदर और भले दिख सकें| वे माँगी हुई पोशाक तक पहनने में नहीं हिचकिचाते| कई तो इत्र लगाकर फोटो खिंचाते हैं ताकि उनकी फोटो में भी खुशबू आ जाए|

2. लेखक के अनुसार, प्रेमचंद के जूते फटने का क्या कारण था?

उत्तर

लेखक के अनुसार, प्रेमचंद का जूता किसी सख्त चट्टान से टकराने के कारण ही फटा है| अर्थात् प्रेमचंद ने चट्टान से बचकर निकलने की कोशिश नहीं की बलिक उसे रास्ते से हटाने का प्रयास किया| इसका अर्थ है कि वे हमेशा समाज की कुरीतियों से लड़ते रहे भले ही उनका जीवन कष्टमय रहा हो|

3. प्रेमचंद की फोटो से उनके किस व्यक्तित्व का पता चलता है?

उत्तर

प्रेमचंद ने फोटो में फटे जूते पहन रखे हैं तथा बंद भी बेतरतीब ढंग से बँधे हुए हैं| उनकी पोशाक भी पुरानी है| इससे यही पता चलता है कि उनके वास्तविक जीवन और बाहरी जीवन में कोई अंतर नहीं था| उन्होंने हमेशा सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत किया| इस प्रकार उनकी फोटो से उनके सरल व्यक्तित्व का पता चलता है| 

4. ‘पर्दे के महत्त्व’ पर लेखक और प्रेमचंद में क्या अंतर है?

उत्तर

प्रेमचंद पर्दे को महत्त्व नहीं देते थे क्योंकि उन्होंने कभी अपनी वास्तविकता दुनिया से नहीं छिपाई| उन्होंने अपनी दुर्दशा पर पर्दा डालकर अच्छी छवि बनाने की कोशिश नहीं की| वहीँ दूसरी ओर, लेखक को पर्दे का महत्व पता है| वे अपनी वास्तविकता दुनिया से छिपा कर रखना चाहते हैं| प्रेमचंद की तरह वे भी अभाव तथा कमी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, लेकिन अपनी दुर्दशा पर पर्दा डालकर कमजोरियाँ छिपाते हैं| 

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड़ियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूंछे चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।

पाँवों में कैनवस के जते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं।

दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।

मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है। सोचता हूँ-फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी-इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है। यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है।

(क) फोटो में प्रेमचंद ने कैसे जूते पहन रखे थे?

(ख) प्रेमचंद के फटे जूते देखकर लेखक के मन में क्या विचार आया?

(ग) फोटो देखकर प्रेमचंद के किस गुण का पता चलता है?

उत्तर

(क) फोटो में प्रेमचंद ने फटे जूते पहन रखे थे, जिनके बंद बेतरतीब बँधे थे|

(ख) प्रेमचंद के फटे जूतों को देखकर प्रेमचंद के मन में यही विचार आया कि यदि फोटो खिंचवाते समय इन्होने ऐसी पोशाक पहन रखी है तो वास्तविक जीवन में उनका क्या हाल होगा| या फिर ये भी हो सकता है कि ये वास्तविक जीवन में भी ऐसे ही रहते होंगे|

(ग) लेखक के पास प्रेमचंद की जो फोटो थी, उससे यही पता चलता है कि वे वास्तविक जीवन में बहुत-ही सीधे-सादे व्यक्ति थे| वे अपना जीवन बड़ी सरलता से जीते थे| 

2. तुम फोटो का महत्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं। और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए! गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है।

(क) फोटो के महत्व को कौन नहीं जानता और क्यों?

(ख) लोग फोटो खिंचाने के लिए क्या-क्या करते हैं?

(ग) गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है- में छिपा व्यंग्य स्पष्ट कीजिए|

उत्तर

(क) लेखक के अनुसार प्रेमचंद फोटो के महत्व को नहीं जानते क्योंकि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ जो फोटो खिंचवाई थी, उसमें उनके जूते फटे हुए थे| 

(ख) लोग फोटो खिंचाने के लिए सुंदर बनते हैं| इसके लिए वे माँगी हुई पोशाक तक पहनने में नहीं हिचकिचाते| कई तो इत्र लगाकर फोटो खिंचाते हैं ताकि उनकी फोटो में भी खुशबू आ जाए|    

(ग) प्रस्तुत कथन में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो वास्तविक जीवन में कुछ और होते हैं लेकिन दिखावे के लिए अच्छे बनते हैं| दुनिया के सामने वे अपनी सुंदर छवि प्रस्तुत करते हैं| ऐसे आदमी बनावटी होते हैं और अपनी असलियत सबसे छिपा कर रखते हैं|

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पाठ 4 साँवले सपनों की याद | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

पाठ 4 – साँवले सपनों की याद Extra important Questions क्षितिज़ Class 9th हिंदी

1. सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है। 

इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र पिछले तमाम सफ़रों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने | सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा।

मुझे नहीं लगता, कोई इस सोए हुए पक्षी को जगाना चाहेगा। वर्षों पूर्व, खुद सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नज़र से नहीं, आदमी की नजर से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज़ का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है?

(क) सालिम अली किसकी तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं?

(ख) सालिम अली पक्षियों को किन नजरों से देखना चाहते थे?

(ग) मनुष्य पक्षियों की मधुर आवाज सुनकर रोमांच अनुभव क्यों नहीं कर सकता?

उत्तर

(क) प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो|

(ख) सालिम अली को पक्षियों से बहुत प्रेम था| वे पक्षियों को उनकी ही नजर से देखते थे| वे पक्षियों की सुरक्षा तथा उनके आनंद के बारे में सोचते थे| पक्षियों की सुरक्षा में उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था| 

(ग) मनुष्य पक्षियों की भाषा नहीं समझ सकता| वह उन्हें अपने मनोरंजन के साधन के रूप में देखता है| यही कारण है कि पक्षी कलरव अथवा अपनी मधुर आवाज के माध्यम से जिन भावनाओं को व्यक्त करते हैं, उन्हें सुनकर मनुष्य रोमांच का अनुभव नहीं करता| 

2. पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भाँडे फोड़े थे और दूध-छाली से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँह | में विश्राम किया था। कब दिल की धडकनों को एकदम से तेज करने वाले अंदाज़ में बंसी बजाई थी। और, पता नहीं, कब वृंदावन की पूरी दुनिया संगीतमय हो गई थी। पता नहीं, यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटनाक्रम की याद दिला देगा। हर सुबह, सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है | जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज़ पर सब किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का | माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं | से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा। | वृंदावन कभी कृष्ण की बाँसुरी के जादू से खाली हुआ है क्या!

(क) वृंदावन में सुबह-शाम क्या अनुभूति होती है?

(ख) यमुना नदी का साँवला पानी किस घटना-क्रम की याद दिलाता है?

(ग) वृंदावन किसकी जादू से खाली क्यों नहीं होता?

उत्तर

(क) वृंदावन में सुबह-शाम ऐसी अनुभूति होती है कि जैसे भीड़ को चीरते हुए कृष्ण आएँगे और अपनी बाँसुरी की मधुर आवाज सुनाने लगेंगे|

(ख) यमुना नदी का साँवला पानी वहाँ आने वाले को कृष्ण के बाललीला की याद दिलाता है| इतिहास में यहीं पर कृष्ण ने रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था| कब माखन भरे घड़े फोड़े थे और दूध-छाली से अपने मुँह भरे थे| यमुना किनारे घने पेड़ों की छांह में विश्राम किया था तथा मनमोहक बाँसुरी बजाई थी|

(ग) वृंदावन में वर्ष-भर तीर्थयात्री भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए आते रहते हैं| सुबह-शाम यमुना नदी के किनारे ऐसा लगता है मानो कृष्ण की बाँसुरी की मधुर आवाज सुनाई दे रही है| इसलिए वृंदावन कृष्ण की बाँसुरी की आवाज के जादू से कभी खाली नहीं होता| 

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. लेखक ने सालिम अली की अंतिम यात्रा का वर्णन कैसे किया है?

उत्तर

लेखक के शब्दों में, प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली किसी वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे थे, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो| ऐसा लग रहा था मानो सुनहरे पक्षियों के पंखों पर साँवले सपनों का एक झुंड सवार है और सालिम अली उसका नेतृत्व कर रहे हैं| वे सैलानियों की तरह पीठ पर बोझ लादे अंतहीन यात्रा पर चल पड़े हैं|    

2. वृंदावन में कृष्ण की मुरली का जादू हमेशा क्यों बना रहता है?

उत्तर

वृंदावन कृष्ण की नगरी के रूप में जाना जाता है| हिंदू तीर्थयात्री यहाँ वर्ष-भर कृष्ण के दर्शन के लिए आते रहते हैं| उन्हें यहाँ की गलियों में कृष्ण की बाँसुरी की मधुर धुन सुनाई पड़ती है| इस प्रकार वृंदावन में कृष्ण की मुरली जादू हमेशा बना रहता है|    

3. सालिम अली के अनुसार प्रकृति को किस नजर से देखना चाहिए?

उत्तर

सालिम अली के अनुसार प्रकृति को उसी के नजर से देखना चाहिए| प्रकृति को अपने आनंद के लिए नहीं, बल्कि उसकी सुरक्षा की दृष्टि से देखना चाहिए| लोग प्रकृति को अपने स्वार्थ पूर्ति का साधन-मात्र मानते हैं, जबकि सालिम अली प्रकृति की सुंदरता बनाए रखने में विश्वास रखते थे|

4. सालिम अली की तुलना टापू से न करके अथाह सागर से क्यों की गई है?

उत्तर

लेखक के अनुसार, सालिम अली ने प्रकृति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया था| उनका जीवन देखने में सरल था लेकिन उनका ज्ञान प्रकृति के संबंध में असीम था| उन्होंने किसी सीमा में बंधकर काम नहीं किया बल्कि प्रकृति के हर अनुभव को महसूस किया| उन्हें अथाह सागर की तरह प्रकृति से गहरा प्रेम था| इस प्रकार उन्होंने किसी छोटे टापू की तरह नहीं बल्कि गहरे सागर की तरह खुले संसार में प्रकृति का गहन अध्ययन किया| 

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पाठ 2 ल्हासा की ओर | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

Important Questions for Class 9th:ल्हासा की ओर Kshitiz Hindi

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. वह नेपाल से तिब्बत जाने का मुख्य रास्ता है। फरी-कलिङपोङ का रास्ता जब नहीं खुला था, तो नेपाल ही नहीं हिंदुस्तान की भी चीजें इसी रास्ते तिब्बत जाया करती थीं। यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं, जिनमें कभी चीनी पलटन रहा करती थी। आजकल बहुत से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं। दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है, वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं। ऐसा ही परित्यक्त एक चीनी किला था। हम वहाँ चाय पीने के लिए ठहरे। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत सी तकलीफें भी हैं और कुछ आराम की बातें भी। वहाँ जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं। बहुत निम्नश्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते; नहीं तो आप बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं। चाहे आप बिलकुल अपरिचित हों, तब भी घर की बहू या सासु को अपनी झोली में से चाय दे सकते हैं। वह आपके लिए उसे पका देगी। मक्खन और सोडा-नमक दे दीजिए, वह चाय चोङी में कूटकर उसे दूधवाली चाय के रंग की बना के मिट्टी के टोटीदार बरतन (खोटी) में रखके आपको दे देगी। यदि बैठक की जगह चूल्हे से दूर है और आपको डर है कि सारा मक्खन आपकी चाय में नहीं पड़ेगा, तो आप खुद जाकर चोङी में चाय मथकर ला सकते हैं। चाय का रंग तैयार हो जाने पर फिर नमक-मक्खन डालने की जरूरत होती है।

(क) नेपाल-तिब्बत मार्ग किस-किस काम आता था?

(ख) तिब्बत में यात्रियों के लिए आराम की बातें क्या थीं?

(ग) नेपाल-तिब्बत मार्ग पर फौजी चौकियाँ और किले क्यों बने हुए हैं?

उत्तर

(क) नेपाल-तिब्बत मार्ग व्यापारिक मार्ग होने के साथ-साथ सैनिक रास्ता भी था| साथ ही यह आम आवागमन का भी मार्ग था|

(ख) तिब्बत में यात्रियों के लिए कई आराम की बातें थीं, जैसे वहाँ जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं| चाहे आप बिलकुल अपरिचित हों, तब भी घर की बहू या सासू को अपनी झोली में से चाय दे सकते हैं| वह आपके लिए उसके पका देगी| 

(ग) नेपाल-तिब्बत मार्ग पर अनेक फौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं क्योंकि पहले कभी यह सैनिक मार्ग था| इसलिए इसमें चीनी सैनिक रहा करते थे| आजकल इन किलों का उपयोग किसान करते हैं| 

2. अब हमें सबसे विकट डाँडा थोङ्ला पार करना था। डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ़ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे

अच्छी जगह है। तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए, तब तो खूनी को सज़ा भी मिल सकती है, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता। सरकार खुफ़िया-विभाग और पुलिस पर उतना खर्च नहीं करती और वहाँ गवाह भी तो कोई नहीं मिल सकता। डकैत पहिले आदमी को मार डालते हैं, उसके बाद देखते हैं कि कुछ पैसा है कि नहीं। हथियार का कानून न रहने के कारण यहाँ लाठी की तरह लोग पिस्तौल, बंदूक लिए फिरते हैं। डाकू यदि जान से न मारे तो खुद उसे अपने प्राणों का खतरा है। 

(क) तिब्बत के डाँड़े खतरनाक क्यों हैं?

(ख) डाँड़े डाकुओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह क्यों हैं?

(ग) तिब्बत में डाकू आदमियों को लूटने से पहले क्यों मार देते हैं? 

उत्तर

(क) तिब्बत के डाँड़े सोलह-सत्रह फुट की ऊँचाई पर स्थित हैं, जहाँ दूर-दराज तक कोई गाँव नहीं है| ये डाकुओं के छिपने की अच्छी जगह है, जिसके कारण वे खतरनाक हैं| 

(ख) डाँड़े डाकुओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह हैं क्योंकि यहाँ दूर-दूर तक गाँव नहीं हैं, आबादी नहीं है| नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता| यहाँ पुलिस का भी कोई डर नहीं है, यही कारण है कि डाकू इन्हें अपने लिए सुरक्षित जगह मानते हैं|

(ग) तिब्बत में हथियार रखने या न रखने के संबंध में कोई कानून-व्यवस्था नहीं है| डाकुओं को पता है कि यहाँ लोग पिस्तौल या बंदूक रखते हैं| इसलिए उन्हें अपनी जान का खतरा बना रहता है, इसलिए वे आदमियों को लूटने से पहले मार देते हैं|

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. नेपाल-तिब्बत मार्ग की विशेषताओं का वर्णन करें|

उत्तर

नेपाल-तिब्बत मार्ग व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था| इस मार्ग से ही नेपाल और हिंदुस्तान की चीजें तिब्बत जाया करती थीं| सैनिक मार्ग होने के कारण जगह-जगह फौजी चौकियाँ और किले बने हुए थे| इसमें चीनी सेना रहा करती थी| आजकल बहुत-से फौजी मकान गिर चुके हैं और किले के कई भागों में किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है|

2. लेखक के अनुसार, तिब्बत में यात्रियों के लिए कौन-सी आरामदायक सुविधाएँ हैं?

उत्तर

लेखक के अनुसार, तिब्बत में यात्रियों के लिए कई आरामदायक सुविधाएँ हैं| तिब्बत के समाज में जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं| चाहे आप बिलकुल अपरिचित हों, तब भी घर की बहू या सासू को अपनी झोली में से चाय दे सकते हैं| वह आपके लिए उसके पका देगी| बस निम्नश्रेणी के भिखमंगों को छोड़कर कोई भी अपरिचित व्यक्ति घर के अंदर जा सकता है| 

3. तिब्बत में हथियार का कानून न होने के कारण यात्रियों को किस खतरे का सामना करना पड़ता था?

उत्तर

लेखक की यात्रा के समय तक तिब्बत में हथियार रखने से संबंधित कोई कानून नहीं था| लोग वहाँ खुलेआम हथियार रखते थे| निर्जन और वीरान जगहों पर डाकुओं का खतरा मंडराता रहता था क्योंकि वहाँ पुलिस का कोई प्रबंध नहीं था| वे यात्रियों को लूटने से पहले मार दिया करते थे|

4. तिब्बत में प्रचलित जागीरदारी व्यवस्था का वर्णन करें|  

उत्तर

तिब्बत की जमीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बंटी है| इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों के हाथ में है| अपनी-अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी कराता है, जिसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं| खेती का प्रबंध देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए किसी राजा से कम नहीं होता|  

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