Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 5 Summary
अरब और मंगोल जब हर्ष उत्तर भारत में शक्तिशाली शासक था उस समय अरब में इस्लाम अपना प्रचार एवं प्रसार कर रहा था। उसे उस समय से भारत आने में 60 वर्ष लग गए। जब उसने राजनीतिक विजय के साथ भारत में प्रवेश किया तब उसमें काफ़ी बदलाव आ चुका था। धीरे-धीरे सिंध बगदाद की केंद्रीय सत्ता से अलग हो गया और अलग सत्ता के रूप में कायम किया। समय बीतने के साथ अरब और भारत के संबंध बढ़ते गए। दोनों देशों के यात्रियों का आना जाना लगा रहा। राजदूतों की आपस में अदला बदली होती रही। भारतीय गणित खगोल शास्त्र की पुस्तकें बगदाद पहुँची। अरबी भाषा में इन पुस्तकों का अनुवाद हुआ। इसके अलावे कई भारतीय चिकित्सक बगदाद गए।
भारत के दक्षिण के राज्यों खासकर राष्ट्रकूटों ने भी व्यापार व सांस्कृतिक संबंध बगदाद के साथ बनाए। धीरे-धीरे भारतीयों को इस्लाम धर्म की जानकारी होती गई। इस्लाम धर्म के प्रचारकों का स्वागत हुआ। मस्जिदों का निर्माण का दौर शुरू हुआ। अतः यह निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि भारत आने से पहले इस्लाम ने धर्म के रूप में प्रविष्ट किया।
महमूद गज़नवी और अफगान
लगभग तीन सौ वर्षों तक भारत विदेशी आक्रमण से बचा रहा। सन् 1000 ई. के आस-पास महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया। गज़नवी तुर्क जाति का था। इसने बहुत खून खराबा किया। उसने उत्तर भारत के एक भाग में लूट-पाट की। उसने पंजाब और सिंध को अपने राज्य में मिला लिया व हर बार खजाना लूटकर ढेरों धन अपने साथ ले गया। उसने हिंदुओं को धूल चटा दिया। हिंदुओं के मन में मुसलमानों के प्रति नफ़रत भर चुकी थी। वह कश्मीर पर विजय नहीं पा सका। कठियावाड़ में सोमनाथ से लौटते हुए उसे राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पराजय का सामना करना पड़ा। सन् 1830 में उसकी मृत्यु हो गई। 160 वर्षों के बाद शहाबुद्दीन गौरी ने गजनी पर कब्जा कर लिया। फिर लाहौर पर आक्रमण किया, इसके बाद दिल्ली पर भी आक्रमण किया। दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने उसे पराजित कर दिया। वह अफगानिस्तान लौट गया फिर एक साल बाद उसने फिर दिल्ली पर आक्रमण किया। 1192 ई. में वह दिल्ली का शासक बन गया।
दिल्ली को जीतने के बाद भी दक्षिण भारत शक्तिशाली बना रहा। 14वीं सदी के अंत में तुर्क-मंगोल तैमूर ने उत्तर भारत की ओर से आकर दिल्ली की सल्तनत को ध्वस्त कर दिया। दुर्भाग्यवश वह बहुत आगे नहीं बढ़ सका। 14वीं शताब्दी की शुरुआत में दो बड़े राज्य कायम हुए- गुलबर्ग, जो बहमनी राज्य के नाम से प्रसिद्ध है और विजयनगर का हिंदू राज्य।
इस समय उत्तर भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो चुका था। दक्षिण भारत सुदृढ़ व उन्नतं था। ऐसे में बहुत से हिंदू भागकर दक्षिण भारत की ओर चले गए। विजय नगर की तरक्की के वक्त उत्तरी पहाड़ियों से होकर एक आक्रमणकारी दिल्ली के पास पानीपत के मैदान में आ गया। उसने 1526 ई. में दिल्ली को जीतकर मुगल साम्राज्य की नींव डाली। वह आक्रमणकारी तैमूर वंश का तुर्क बाबर था।
समन्वय और मिली-जुली संस्कृति का विकास कबीर, गुरु नानक और अमीर खुसरो
वास्तविक रूप में इस्लाम भारत में धर्म प्रचार-प्रसार के रूप में आया था। जबकि भारत पर आक्रमण तुर्कों, अफगानों व मुसलमानों ने किए। अफगान और तुर्क पूरे भारत पर छा गए। जबकि मुसलमान अजनबी होते हुए भी भारतीय रीति रिवाजो में घुल-मिल गए। वे भारत को अपना देश मानने लगे। अधिकतर राजपूत घरानों ने भी इनसे अच्छे संबंध कायम किए। इस समय हिंदू-मुसलमानों के वैवाहिक संबंध भी काफ़ी हद तक बढ़ते गए। फिरोजशाह व गयासुद्दीन तुगलक की माँ भी हिंदू थी। गुलबर्ग (बहमनी राज्य) के मुस्लिम शासक ने विजय नगर की हिंदू राजकुमारी से धूमधाम विवाह किया था।
मुस्लिम शासन काल में भारत का चहुँमुखी विकास हुआ। सैनिक सुरक्षा, उत्तम रखने के लिए यातायात साधनों में सुधार किया। शेरशाह सूरी ने उत्तम मालगुजारी व्यवस्था की, जिसका अकबर ने विकास किया। इस काल में व्यापार उद्योग भी प्रगति पर रहा। अकबर के लोकप्रिय राजस्व मंत्री टोडरमल की नियुक्ति शेरशाह ने की थी। वास्तुकला की नई शैलियों का विकास हुआ। खाना-पहनना बदल गया। गीत-संगीत में भी समन्वय दिखाई पड़ने लगा फारसी भाषा राजदरबार की भाषा बन गई। जब तैमूर के हमले से दिल्ली की सलतनत कमज़ोर हो गई तो जौनपुर में एक छोटी सी मुस्लिम रियासत खड़ी हुई। 15वीं शताब्दी के दौरान यह रियासत कला संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता का केंद्र रही। यहाँ आम भाषा हिंदी को प्रोत्साहित किया गया तथा हिंदू और मुसलमानों के बीच समन्वय का प्रयास किया गया। इसी समय ऐसे कामों के लिए एक कश्मीरी शासक जैनुल आबदीन को बहुत यश मिला।
अमीर खुसरो तुर्क थे। वे फारसी के महान कवि थे और उन्हें संस्कृत का भी ज्ञान था। कहा जाता है कि सितार का आविष्कार उन्होंने ही किया था। अमीर खुसरो ने अनगिनत पहेलियाँ लिखी। अपने जीवन काल में ही खुसरो अपने गीतों और पहेलियों के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी लोकप्रियता आज भी कायम है। पंद्रहवीं सदी में दक्षिण में रामानंद और उनसे भी अधिक प्रिय कबीर हुए। कबीर की साखियाँ और पद आज भी प्रसिद्ध हैं। उत्तर में गुरु नानक हुए; जो सिख धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। पूरे हिंदू धर्म सुधारकों के विचारकों का प्रभाव पड़ा।
इसी समय कुछ समाज सुधारकों का उदय हुआ जिन्होंने इस समन्वय का समर्थन तथा वर्ण-व्यवस्था की उपेक्षा की। पंद्रहवीं शताब्दी में रामानंद और उनके शिष्य कबीर ऐसे ही समाज सुधारक थे। कबीर की साखियाँ और पद आज भी जनमानस में लोकप्रिय हैं। उत्तर भारत में गुरु नानक देव ने सिख धर्म की स्थापना की। हिंदू धर्म इन सुधारकों के विचारों से प्रभावित हुआ।
अमीर खुसरो भी फारसी लेखकों में काफी प्रसिद्ध थे। वे फारसी लेखक के साथ-साथ फ़ारसी कवि भी थे। भारतीय वाद्य यंत्र सितार उनके द्वारा ही आविष्कृत है। उन्होंने धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र आदि विषयों पर लिखा। उनके लिखे लोकगीत और अनगिनत पहेलियाँ आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।
बाबर और अकबर-भारतीयकरण की प्रक्रिया
‘बाबर’ ने सन् 1526 ई. में पानीपत का युद्ध जीतकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। उसका व्यक्त्तिव आकर्षक था। उसने केवल चार वर्षों तक ही भारत पर शासन किया। इन चार वर्षों में उसका समय आगरा में विशाल राजधानी में बीता।
अकबर भारत में मुगल साम्राज्य का तीसरा शासक था। वह बाबर का पोता था। वह आकर्षक, गुणवान, साहसी, बहादुर और योग्य शासक एवं सेनानायक था। वह विनम्र और दयालु होने के साथ-साथ लोगों का दिल जीतना चाहता था। 1556 ई. से आरंभ होने वाले अपने लंबे शासन काल 50 वर्ष तक रहा। उसने एक राजपूत राजकुमारी से शादी की। उसका पुत्र जहाँगीर आधा मुगल और आधा हिंदू राजपूत था। जहाँगीर का बेटा भी राजपूत, माँ का बेटा था। राजपूत घरानों से संबंध बनाने में साम्राज्य बहुत मज़बूत हुआ। राणा प्रताप ने मुगलों से टक्कर ली। इसके बाद अकबर को मेवाड़ के राणा प्रताप को अधीन बनाने में सफलता नहीं मिली। अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बजाए वे जंगलों में फिरते रहे।
अकबर ने प्रतिभाशाली लोगों का समुदाय एकत्रित किया। इनमें फैजी, अबुल फजल, बीरबल, राजा मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना प्रमुख थे। उसने दीन-ए-एलाही नामक नए धर्म की स्थापना कर मुगल वंश को भारत के वंश जैसा ही बना दिया।
यांत्रिक उन्नति और रचनात्मक शक्ति में एशिया और यूरोप के बीच अंतर अकबर सभी क्षेत्रों के ज्ञाता था।
उसे सैनिक और राजनीतिक मामलों के अतिरिक्त यांत्रिक कलाओं का भी पूरा ज्ञान था। अकबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की मज़बूत नींव रखी थी तथा उस पर जो इमारत बनाई वह सौ वर्षों तक बनी रही। सिंहासन के लिए उच्चाधिकारियों में युद्ध होते रहे और केंद्रीय नेतृत्व कमज़ोर होता गया। यूरोप में मुगल बादशाहों के यश में वृद्धि हो रही थी। अकबर के समय में दक्षिण में मंदिरों से भिन्न शैली में कई इमारतें बनी जिन्होंने आने वाले दर्शकों को प्रेरित किया। आगरा का ताजमहल इसी का उदाहरण है।
इस प्रकार दिल्ली और आगरा में सुंदर इमारतें तैयार हुईं। भारत में रहने वाले अधिकतर मुसलमानों ने हिंदू धर्म से धर्म परिवर्तन कर लिया। दोनों में काफ़ी समानताएँ विकसित हो गईं। भारत के हिंदुओं और मुसलमानों के साथ रहने के कारण उनकी आदतें, रहन-सहन के ढंग और कलात्मक रुचियों में समानता दिखाई देती थी। वे शांतिपूर्वक साथ रहने उत्सवों में आने-जाने में एक जैसे थे तथा वे एक ही भाषा का प्रयोग करते थे। गाँव की आबादी के बड़े हिस्से में जीवन मिला-जुला था। गाँव में हिंदू और मुसलमानों के बीच गहरे संबंध थे। वे मिल-जुलकर जीवन की परेशानियों व आर्थिक समस्याओं का सामना करते थे। दोनों जातियों के लोक गीत सामान्य थे। गाँवों में रहने वाले अधिकतर हिंदू व मुसलमान किसान, दस्तकार एवं शिल्पी थे।
मुगल शासन काल के दौरान कई हिंदुओं ने दरबारी भाषा में फारसी पुस्तके लिखी। फारसी में संस्कृत की पुस्तकों का अनुवाद हुआ। हिंदी के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी तथा अब्दुल रहीम खानखाना की कविताओं का स्तर बहुत ऊँचा था। रहीम ने राणा प्रताप का गुणगान अपने कविताओं में काफी किया। रहीम ने मेवाड़ के राणा प्रताप की प्रशंसा में भी लिखा, जो लगातार अकबर से युद्ध करते रहे और कभी हथियार न डाले यानी हार न मानी।
औरंगजेब ने उल्टी गंगा बहाई – हिंदू राष्ट्रवाद का लार शिवाजी
औरंगजेब एक कट्टरवादी मुसलमान था। वह धर्मान्ध व कठोर नैतिकतावादी था। वह एक ऐसा सम्राट हुआ जिसने हिंदू और मुसलमानों के बीच दीवारें खड़ी कर दी। उसने एक हिंदू विरोधी कर लगाया जिसे ‘जजिया टैक्स’ कहते हैं। उसने अनेक मंदिरों को तुड़वाया। जो राजपूत मुगल साम्राज्य के स्तंभ थे उसने हिंदू विरोधी कार्य करके उनके हृदयों में अपने प्रति घृणा, रोष एवं विद्वेष की भावना पैदा की। इस प्रकार मुगल सम्राट औरंगजेब की नीतियों से तंग आकर उत्तर में सिख मुगलों के विरुद्ध खड़े हो गए।
इसकी प्रतिक्रिया में पूर्ण जागरण विचार पनपने लगे। मुगल साम्राज्य की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई। जो पतन का एक प्रमुख कारण बना। इसी समय 1627 ई. में शिवाजी के रूप में हिंदुओं का एक नेता उभरा। उनके छापामार दस्तों ने मुगलों की नाक में दम कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों की कोठियों को लूटा और मुगल साम्राज्य के क्षेत्रों पर चौथ कर लगाया। मराठा पूरी शक्ति पा गए। 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई। लेकिन मराठा शक्ति का विस्तार होते चला गया। वह भारत पर अपना एकाधिकार करना चाहती थी।
प्रभुत्व के लिए मराठों और अंग्रेजों के बीच संघर्ष-अंग्रेज़ों की विजय
औरंगजेब की सन् 1707 में मृत्यु हो गई। इसके बाद लगभग 100 वर्षों तक भारत पर अधिकार करने लिए अलग-अलग जातियों का संघर्ष एवं आक्रमण जारी रहा।
18वीं शताब्दी में भारत पर अपना आधिपत्य करने के लिए प्रमुख चार दावेदार थे-
(i) मराठे, (ii) हैदर अली और उसका बेटा टीपू सुल्तान (iii) फ्रांसीसी (iv) अंग्रेज़। फ्रांसीसी और अंग्रेज़ विदेशी दावेदार थे। इसी बीच 1739 में ईरान का बादशाह नादिरशाह दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। उसने काफ़ी खून खराबा किया और लूटपाट मचाई। बेशुमार दौलत लूटी। वह तख्ते ताऊस भी ले गया। बँगाल में जालसाजी और बगावत को बढ़ावा देकर क्लाइव ने 1757 में प्लासी का युद्ध जीत लिया। 1770 में बंगाल तथा बिहार में अकाल पड़ा, जिसमें एक तिहाई जनसंख्या की मौत हो गई। दक्षिण में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच युद्ध में फ्रांसीसियों का अंत हो गया। भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए मराठे, अंग्रेज़ और हैदर अली रह गए थे। इससे भारत पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। 1799 में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को हरा दिया। इसके बाद अंग्रेज़ काफ़ी शक्तिशाली हो गए और उनकी राह और आसान हो गई।
मराठे सरदारों में आपसी रंजिश थी। 1804 में अंग्रेजों ने उन्हें अलग-अलग युद्धों में हरा दिया। अंग्रेजों ने भारत को अव्यवस्था और अराजकता से बचाया। 1818 तक के अंत तक उन्होंने मराठों को हराकर भारत पर कब्जा कर लिया। अब अंग्रेज़ भारत में सुव्यवस्थित ढंग से शासन करने लगे। अब आतंक युग की समाप्ति हो गई यानी मारकाट बंद हो गया लेकिन यह कहा जा सकता है कि आपस में भेदभाव, आपसी रंजिश भुलाकर काम करते तो अंग्रेजों की सहायता के बिना भी भारत में शांति और व्यवस्थित शासन की स्थापना की जा सकती थी।
रणजीत सिंह और जयसिंह
आतंक के उस दौर में दो प्रमुख भारतीय सितारे उभरे, उनके नाम थे – रणजीत सिंह और जयसिंह।
महाराजा रणजीत सिंह एक जाट सिख थे। पंजाब में उन्होंने अपना शासन कायम किया। राजपूताने में जयपुर का सवाई जयसिंह था। जयसिंह ने जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में बड़ी-बड़ी बेधशालाएँ बनवाईं। जयपुर की नगर योजना उन्हीं की देन है। उन्होंने मानवीय विचारों को आधार बनाया तथा खून-खराबे को नापसंद किया। युद्ध के सिवा उन्होंने किसी की जान नहीं ली। वह बहादुर योद्धा, कुशल राजनयिक होने के साथ गणित, खगोल विज्ञानी, नगर निर्माण करने वाले तथा इतिहास में रुचि रखने वाले थे।
भारत की आर्थिक पृष्ठभूमि-इंग्लैंड के दो रूप
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद उसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय माल लेकर यूरोप के देशों में बेचना। भारतीय कारीगरों का बना माल इंग्लैंड की तकनीकों का सफलता पूर्वक मुकाबला करता था। कंपनी का ध्येय अधिक से अधिक धन कमाना था। इंग्लैंड में मशीनों का दौर शुरू होने पर मशीनों से बने माल के साथ-साथ भारतीय वस्तुएँ भी थी। कंपनी ने इससे काफ़ी मुनाफा कमाया। इंग्लैंड का भारत में वास्तविक रूप से तभी आगमन हुआ जब 1600 ई. में एलिजाबेथ ने ईस्ट इंडिया कंपनी को परवाना दिया। 1608 ई. मिल्टन का जन्म होने के सो साल बाद कपड़ा बुनने की तेज़ मशीन का आविष्कार हुआ। इसके बाद काटने की कला, इंजन और मशीन के करघे निकाले गए। उस समय इंग्लैंड सामंतवाद और प्रतिक्रियावाद से घिरा हुआ था। इंग्लैंड को प्रभावित करने वाले लेखकों में शेक्सपियर, मिल्टन था। साथ ही में राजनीतिक और स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने वाले, विज्ञान और तकनीक में प्रगति करने वाले भी थे।
उस समय अमेरिका इंग्लैंड के चंगुल से स्वतंत्र हुआ था। अमेरिका में नई शुरुआत के लिए भी रास्ते साफ़ थे। जबकि भारतीय प्राचीन परंपराओं में जकड़े हुए थे। इसके बावजूद यह सत्य है कि यदि ब्रिटेन मुगलों के शक्ति खोने पर भारत का बोझ न उठाता तो भी भारत देश अधिक शक्तिशाली और समृद्ध होता।