Chapter 3 अपू के साथ ढाई साल | Class 11 | revision notes for Hindi aroh

हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 3 अपू के साथ ढाई साल

पाठ का सारांश

अपू के साथ ढाई साल नामक संस्मरण पथेर पांचाली फिल्म के अनुभवों से संबंधित है जिसका निर्माण भारतीय फिल्म के इतिहास में एक बड़ी घटना के रूप में दर्ज है। इससे फिल्म के सृजन और उनके व्याकरण से संबंधित कई बारीकियों का पता चलता है। यही नहीं, जो फिल्मी दुनिया हमें अपने ग्लैमर से चुधियाती हुई जान पड़ती है, उसका एक ऐसा सच हमारे सामने आता है, जिसमें साधनहीनता के बीच अपनी कलादृष्टि को साकार करने का संघर्ष भी है। यह पाठ मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखा गया है जिसका अनुवाद विलास गिते ने किया है।

किसी फिल्मकार के लिए उसकी पहली फिल्म एक अबूझ पहेली होती है। बनने या न बन पाने की अमूर्त शंकाओं से घिरी। फिल्म पूरी होने पर ही फिल्मकार जन्म लेता है। पहली फिल्म के निर्माण के दौरान हर फिल्म निर्माता का अनुभव संसार इतना रोमांचकारी होता है कि वह उसके जीवन में बचपन की स्मृतियों की तरह हमेशा जीवंत बना रहता है। इस अनुभव संसार में दाखिल होना उस बेहतरीन फिल्म से गुजरने से कम नहीं है।

लेखक बताता है कि पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग ढाइ साल तक चली। उस समय वह विज्ञापन कंपनी में काम करता था। काम से फुर्सत मिलते ही और पैसे होने पर शूटिंग की जाती थी। शूटिंग शुरू करने से पहले कलाकार इकट्ठे करने के लिए बड़ा आयोजन किया गया। अपू की भूमिका निभाने के लिए छह साल का लड़का नहीं मिल रहा था। इसके लिए अखबार में विज्ञापन दिया। रासबिहारी एवेन्यू के एक भवन में किराए के कमरे पर बच्चे इंटरव्यू के लिए आते थे। एक सज्जन तो अपनी लड़की के बाल कटवाकर लाए थे। लेखक परेशान हो गया। एक दिन लेखक की पत्नी की नज़र पड़ोस में रहने वाले लड़के पर पड़ी और वह सुबीर बनर्जी ही ‘पथेर पांचाली’ में अपू बना।

फिल्म में अधिक समय लगने लगा तो लेखक को यह डर लगने लगा कि अगर अपू और दुर्गा नामक बच्चे बड़े हो गए तो दिक्कत हो जाएगी। सौभाग्य से वे नहीं बढ़े। फिल्म की शूटिंग के लिए वे पालसिट नामक गाँव गए। वहाँ रेल-लाइन के पास काशफूलों से भरा मैदान था। उस मैदान में शूटिंग शुरू हुई। एक दिन में आधी शूटिंग हुई। निर्देशक, छायाकार, कलाकार आदि सभी नए होने के कारण घबराए हुए थे। बाकी का सीन बाद में शूट करना था। सात दिन बाद वहाँ दोबारा पहुँचे तो काशफूल गायब थे। उन्हें जानवर खा गए। अत: आधे सीन की शूटिंग के लिए अगली शरद ऋतु की प्रतीक्षा करनी पड़ी।

अगले वर्ष शूटिंग हुई। उसी समय रेलगाड़ी के शॉट्स भी लिए गए। कई शॉट्स होने के लिए तीन रेलगाड़ियों से शूटिंग की गई। कलाकार दल का एक सदस्य पहले से ही गाड़ी के इंजन में सवार होता था ताकि वह शॉट्स वाले दृश्य में बायलर में कोयला डालता जाए और रेलगाड़ी का धुआँ निकलता दिख सके। सफेद काशफूलों की पृष्ठभूमि पर काला धुआँ अच्छा सीन दिखाता है। इस सीन को कोई दर्शक नहीं पहचान पाया।

लेखक को धन की कमी से कई समस्याएँ झेलनी पड़ीं। फिल्म में ‘भूलो’ नामक कुत्ते के लिए गाँव का कुत्ता लिया गया। दृश्य में कुत्ते को भात खाते हुए दिखाया जाना था, परंतु जैसे ही यह शॉट शुरू होने को था, सूरज की रोशनी व पैसे-दोनों ही खत्म हो गए। छह महीने बाद पैसे इकट्ठे करके बोडाल गाँव पहुँचे तो पता चला कि वह कुत्ता मर गया था। फिर भूलो जैसा दिखने वाला कुत्ता पकड़ा गया और उससे फिल्म की शूटिंग पूरी की गई। लेखक को आदमी के संदर्भ में भी यही समस्या हुई। फिल्म में मिठाई बेचने वाला है-श्रीनिवास। अपू व दुर्गा के पास पैसे नहीं थे। वे मुखर्जी के घर गए जो उससे मिठाई खरीदेंगे और बच्चे मिठाई खरीदते देखकर ही खुश होंगे। पैसे के अभाव के कारण दृश्य का कुछ अंश चित्रित किया गया। बाद में वहाँ पहुँचे तो श्रीनिवास का देहांत हो चुका था। किसी तरह उनके शरीर से मिलता-जुलता व्यक्ति मिला और उनकी पीठ वाले दृश्य से शूटिंग पूरी की गई।

श्रीनिवास के सीन में भूलो कुत्ते के कारण भी परेशानी हुई। एक खास सीन में दुर्गा व अपू को मिठाई वाले के पीछे दौड़ना होता है तथा उसी समय झुरमुट में बैठे भूलो कुत्ते को भी छलाँग लगाकर दौड़ना होता है। भूलो प्रशिक्षित नहीं था, अत: वह मालिक की आज्ञा को नहीं मान रहा था। अंत में दुर्गा के हाथ में थोड़ी मिठाई छिपा कुत्ते को दिखाकर दौड़ने की योजना से शूटिंग पूरी की गई।

बारिश के दृश्य चित्रित करने में पैसे का अभाव परेशान करता था। बरसात में पैसे नहीं थे। अक्टूबर में बारिश की संभावना कम थी। वे हर रोज देहात में बारिश का इंतजार करते। एक दिन शरद ऋतु में बादल आए और धुआँधार बारिश हुई। दुर्गा व अप्पू ने बारिश में भीगने का सीन किया। ठंड से दोनों काँप रहे थे, फिर उन्हें दूध में ब्रांडी मिलाकर पिलाई गई। बोडाल गाँव में अपू-दुर्गा का घर, स्कूल, गाँव के मैदान, खेत, आम के पेड़, बाँस की झुरमुट आदि मिले। यहाँ उन्हें कई तरह के विचित्र व्यक्ति भी मिले। सुबोध दा साठ वर्ष से अधिक के थे और झोंपड़ी में अकेले रहकर बड़बड़ाते रहते थे। फिल्मवालों को देखकर उन्हें मारने की कहने लगे। बाद में वे वायलिन पर लोकगीतों की धुनें बजाकर सुनाते थे। वे सनकी थे।

इसी तरह शूटिंग के साथ वाले घर में एक धोबी था जो पागल था। वह किसी समय राजकीय मुद्दे पर भाषण देने लगता था। शूटिंग के दौरान उसके भाषण साउंड के काम को प्रभावित करता था। पथेर पांचाली की शूटिंग के लिए लिया गया घर खंडहर था। उसे ठीक करवाने में एक महीना लगा। इस घर के कई कमरों में सामान रखा था तथा उन्हें फिल्म में नहीं दिखाया गया था। भूपेन बाबू एक कमरे में रिकॉर्डिंग मशीन लेकर बैठते थे। वे साउंड के बारे में बताते थे। एक दिन जब उनसे साउंड के बारे में पूछा गया तो आवाज नदारद थी। उनके कमरे से एक बड़ा साँप खिड़की से नीचे उतर रहा था। उनकी बोलती बंद थी। लोगों ने उसे मारने से रोका, क्योंकि वह वास्तुसर्प था जो बहुत दिनों से वहाँ रह रहा था।

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Chapter 2 मियाँ नसीरुद्दीन | Class 11 | revision notes for Hindi aroh

हिन्दी Notes Class 11 Chapter 2 Hindi मियाँ नसीरुद्दीन

पाठ का सारांश

मियाँ नसीरुद्दीन शब्दचित्र हम-हशमत नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज से रोट्री पकाने की कला और उसमें अपनी खानदानी महारत बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं।

लेखिका बताती है कि एक दिन वह मटियामहल के गद्वैया मुहल्ले की तरफ निकली तो एक अँधेरी व मामूली-सी दुकान पर आटे का ढेर सनते देखकर उसे कुछ जानने का मन हुआ। पूछताछ करने पर पता चला कि यह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है। ये छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं। मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। उनके चेहरे पर अनुभव और आँखों में चुस्ती व माथे पर कारीगर के तेवर थे।

लेखिका के प्रश्न पूछने की बात पर उन्होंने अखबारों पर व्यंग्य किया। वे अखबार बनाने वाले व पढ़ने वाले दोनों को निठल्ला समझते हैं। लेखिका ने प्रश्न पूछा कि आपने इतनी तरह की रोटियाँ बनाने का गुण कहाँ से सीखा? उन्होंने बेपरवाही से जवाब दिया कि यह उनका खानदानी पेशा है। इनके वालिद मियाँ बरकत शाही नानबाई थे और उनके दादा आला नानबाई मियाँ कल्लन थे। उन्होंने खानदानी शान का अहसास करते हुए बताया कि उन्होंने यह काम अपने पिता से सीखा।

नसीरुद्दीन ने बताया कि हमने यह सब मेहनत से सीखा। जिस तरह बच्चा पहले अलिफ से शुरू होकर आगे बढ़ता है या फिर कच्ची, पक्की, दूसरी से होते हुए ऊँची जमात में पहुँच जाता है, उसी तरह हमने भी छोटे-छोटे काम-बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी को आँच देना आदि करके यह हुनर पाया है। तालीम की तालीम भी बड़ी चीज होती है।

खानदान के नाम पर वे गर्व से फूल उठते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार बादशाह सलामत ने उनके बुर्जुगों से कहा कि ऐसी चीज बनाओ जो आग से न पके, न पानी से बने। उन्होंने ऐसी चीज बनाई और बादशाह को खूब पसंद आई। वे बड़ाई करते हैं कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है। लेखिका ने इस कहावत की सच्चाई पर प्रश्नचिहन लगाया तो वे भड़क उठे। लेखिका जानना चाहती थी कि उनके बुजुर्ग किस बादशाह के यहाँ काम करते थे। अब उनका स्वर बदल गया। वे बादशाह का नाम स्वयं भी नहीं जानते थे। वे इधर-उधर की बातें करने लगे। अंत में खीझकर बोले कि आपको कौन-सा उस बादशाह के नाम चिट्ठी-पत्री भेजनी है।

लेखिका से पीछा छुड़ाने की गरज से उन्होंने बब्बन मियाँ को भट्टी सुलगाने का आदेश दिया। लेखिका ने उनके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे उन्हें मजदूरी देते हैं। लेखिका ने रोटियों की किस्में जानने की इच्छा जताई तो उन्होंने फटाफट नाम गिनवा दिए। फिर तुनक कर बोले-तुनकी पापड़ से ज्यादा महीन होती है। फिर वे यादों में खो गए और कहने लगे कि अब समय बदल गया है। अब खाने-पकाने का शौक पहले की तरह नहीं रह गया है और न अब कद्र करने वाले हैं। अब तो भारी और मोटी तंदूरी रोटी का बोलबाला है। हर व्यक्ति जल्दी में है।

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Chapter 1 नमक का दारोगा | Class 11 | revision notes for Hindi aroh

हिन्दी Notes Class 11 Hindi Chapter 1 नमक का दारोगा

पाठ का सारांश

‘नमक का दारोगा’ प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी है जो आदर्शान्मुख यथार्थवाद का एक मुकम्मल उदाहरण है। यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत है। ‘धन’ और ‘धर्म’ को क्रमश: सद्वृत्ति और असद्वृत्ति, बुराई और अच्छाई, असत्य और सत्य कहा जा सकता है। कहानी में इनका प्रतिनिधित्व क्रमश: पडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है। ईमानदार कर्मयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते हैं, लेकिन अंत:सत्य के आगे उनका सिर झुक जाता है। वे सरकारी विभाग से बखास्त वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते हैं और गहरे अपराध-बोध से भरी हुई वाणी में निवेदन करते हैं –

‘‘ परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे।”

नमक का विभाग बनने के बाद लोग नमक का व्यापार चोरी-छिपे करने लगे। इस काले व्यापार से भ्रष्टाचार बढ़ा। अधिकारियों के पौ-बारह थे। लोग दरोगा के पद के लिए लालायित थे। मुंशी वंशीधर भी रोजगार को प्रमुख मानकर इसे खोजने चले। इनके पिता अनुभवी थे। उन्होंने घर की दुर्दशा तथा अपनी वृद्धावस्था का हवाला देकर नौकरी में पद की ओर ध्यान न देकर ऊपरी आय वाली नौकरी को बेहतर बताया। वे कहते हैं कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। आवश्यकता व अवसर देखकर विवेक से काम करो। वंशीधर ने पिता की बातें ध्यान से सुनीं और चल दिए। धैर्य, बुद्ध आत्मावलंबन व भाग्य के कारण नमक विभाग के दरोगा पद पर प्रतिष्ठित हो गए। घर में खुशी छा गई।

सर्दी के मौसम की रात में नमक के सिपाही नशे में मस्त थे। वंशीधर ने छह महीने में ही अपनी कार्यकुशलता व उत्तम आचार से अफसरों का विश्वास जीत लिया था। यमुना नदी पर बने नावों के पुल से गाड़ियों की आवाज सुनकर वे उठ गए। उन्हें गोलमाल की शंका थी। जाकर देखा तो गाड़ियों की कतार दिखाई दी। पूछताछ पर पता चला कि ये पंडित अलोपीदीन की है। वह इलाके का प्रसिद्ध जमींदार था जो ऋण देने का काम करता था। तलाशी ली तो पता चला कि उसमें नमक है। पंडित अलोपीदीन अपने सजीले रथ में ऊँघते हुए जा रहे थे तभी गाड़ी वालों ने गाड़ियाँ रोकने की खबर दी। पंडित सारे संसार में लक्ष्मी को प्रमुख मानते थे। न्याय, नीति सब लक्ष्मी के खिलौने हैं। उसी घमंड में निश्चित होकर दरोगा के पास पहुँचे। उन्होंने कहा कि मेरी सरकार तो आप ही हैं। आपने व्यर्थ ही कष्ट उठाया। मैं सेवा में स्वयं आ ही रहा था। वंशीधर पर ईमानदारी का नशा था। उन्होंने कहा कि हम अपना ईमान नहीं बेचते। आपको गिरफ्तार किया जाता है।

यह आदेश सुनकर पडित अलोपीदीन हैरान रह गए। यह उनके जीवन की पहली घटना थी। बदलू सिंह उसका हाथ पकड़ने से घबरा गया, फिर अलोपीदीन ने सोचा कि नया लड़का है। दीनभाव में बोले-आप ऐसा न करें। हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। वंशीधर ने साफ मना कर दिया। अलोपीदीन ने चालीस हजार तक की रिश्वत देनी चाही, परंतु वंशीधर ने उनकी एक न सुनी। धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।

सुबह तक हर जबान पर यही किस्सा था। पंडित के व्यवहार की चारों तरफ निंदा हो रही थी। भ्रष्ट व्यक्ति भी उसकी निंदा कर रहे थे। अगले दिन अदालत में भीड़ थी। अदालत में सभी पडित अलोपीदीन के माल के गुलाम थे। वे उनके पकड़े जाने पर हैरान थे। इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए? इस आक्रमण को रोकने के लिए वकीलों की फौज तैयार की गई। न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया। वंशीधर के पास सत्य था, गवाह लोभ से डाँवाडोल थे।

मुंशी जी को न्याय में पक्षपात होता दिख रहा था। यहाँ के कर्मचारी पक्षपात करने पर तुले हुए थे। मुकदमा शीघ्र समाप्त हो गया। डिप्टी मजिस्ट्रेट ने लिखा कि पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध प्रमाण आधारहीन है। वे ऐसा कार्य नहीं कर सकते। दरोगा का दोष अधिक नहीं है, परंतु एक भले आदमी को दिए कष्ट के कारण उन्हें भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी दी जाती है। इस फैसले से सबकी बाँछे खिल गई। खूब पैसा लुटाया गया जिसने अदालत की नींव तक हिला दी। वंशीधर बाहर निकले तो चारों तरफ से व्यंग्य की बातें सुनने को मिलीं। उन्हें न्याय, विद्वता, उपाधियाँ आदि सभी निरर्थक लगने लगे।

वंशीधर की बखास्तगी का पत्र एक सप्ताह में ही आ गया। उन्हें कत्र्तव्यपरायणता का दंड मिला। दुखी मन से वे घर चले। उनके पिता खूब बड़बड़ाए। यह अधिक ईमानदार बनता है। जी चाहता है कि तुम्हारा और अपना सिर फोड़ लें। उन्हें अनेक कठोर बातें कहीं। माँ की तीर्थयात्रा की आशा मिट्टी में मिल गई। पत्नी कई दिन तक मुँह फुलाए रही।

एक सप्ताह के बाद अलोपीदीन सजे रथ में बैठकर मुंशी के घर पहुँचे। वृद्ध मुंशी उनकी चापलूसी करने लगे तथा अपने पुत्र को कोसने लगे। अलोपीदीन ने उन्हें ऐसा कहने से रोका और कहा कि कुलतिलक और पुरुषों की कीर्ति उज्ज्वल करने वाले संसार में ऐसे कितने धर्मपरायण ग्ष्य हैं जो धर्म पर अपना सब कुछ अर्पण कर सकें। उन्होंने वंशीधर से कहा कि इसे खुशामद न समझिए। आपने मुझे परार कर दिया। वंशीधर ने सोचा कि वे उसे अपमानित करने आए हैं, परंतु पंडित की बातें सुनकर उनका संदेह दूर हो गया। उन्होंने कहा कि यह आपकी उदारता है। आज्ञा दीजिए।

अलोपीदीन ने कहा कि नदी तट पर आपने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी, अब स्वीकार करनी पड़ेगी। उसने एक स्टांप पत्र निकाला और पद स्वीकारने के लिए प्रार्थना की। वंशीधर ने पढ़ा। पंडित ने अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर छह हजार वार्षिक वेतन, रोजाना खर्च, सवारी, बंगले आदि के साथ नियत किया था। वंशीधर ने काँपते स्वर में कहा कि मैं इस उच्च पद के योग्य नहीं हूँ। ऐसे महान कार्य के लिए बड़े अनुभवी मनुष्य की जरूरत है।

अलोपीदीन ने वंशीधर को कलम देते हुए कहा कि मुझे अनुभव, विद्वता, मर्मज्ञता, कार्यकुशलता की चाह नहीं। परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, कठोर, परंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे। वंशीधर की आँखें डबडबा आई। उन्होंने काँपते हुए हाथ से मैनेजरी के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए। अलोपीदीन ने उन्हें गले लगा लिया।

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Chapter 19 धूमिल | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

घर में वापसी कविता क्लास 11 अंतरा पाठ 19 –  सुदामा पांडे (धूमिल)

कवि सुदामा पांडे (धूमिल) का जीवन परिचय – Sudama Pandey Dhoomil

धूमिल का पूरा नाम सुदामा पांडेय ‘धूमिल’ है। इनका जन्म 9 नवम्बर 1936 को वाराणसी जिले के खेवली गांव में हुआ। बालक सुदामा ने सन् 1953 में हाई स्कूल परीक्षा पास की। सन् 1958 में आई.टी.आई. वाराणसी से विद्युत-डिप्लोमा किया और वहीं अनुदेशक के पद पर नियुक्त हो गए। असमय ही ब्रेन-ट्यूमर हो जाने के कारण 10 फ़रवरी 1975 को इनका स्वर्गवास हो गया।

इनकी प्रमुख रचनाएं हैं– बांसुरी जल गई, संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे और सुदामा पांडेय का प्रजातंत्र। धूमिल को मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनकी काव्यगत विशे सुदामा पांडेय ‘धूमिल’ ‘नई कविता’ के सशक्त हस्ताक्षर थे।

उनके काव्य में एक विशेष प्रकार का गवैयेपन दिखाई देता है धूमिल की कविता में परंपरा, सभ्यता, शालीनता और भद्रता का विरोध है। इन्होंने व्यंग्यों के माध्यम से उपहास, झुंझलाहट और पीड़ा को व्यक्त किया है।

इनके काव्य में मुहावरें, लोकोक्तियों और सूक्तियों का सुंदर प्रयोग मिलता है। संवाद-शैली के प्रयोग से भाषा सशक्त हो गई है। लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता इनकी भाषा की विशेषता है भाषा सरल और सहज हैं। इन्होंने मुक्त छंदों का प्रयोग किया है।

घर में वापसी कविता का सारांश – Ghar Me Wapsi Poem Summary

‘घर की वापसी’ धूमिल जी की गरीबी से संघर्ष कर रहे परिवार की दुख भरी कविता है। कोई भी व्यक्ति अपने रोज की भाग दौड़ वाली जिंदगी में प्रेम, ममत्व, स्नेह, सुरक्षा, ऊर्जावान रिश्ते चाहता है। वह एक ऐसा घर चाहता है जहां उस घर में रहने वाले लोगों के बीच आपसी संबंध मधुर, परिपक्व, ऊर्जावान हो।

परन्तु इस कविता में जिस घर का उल्लेख किया गया है उसकी अपनी त्रासदी है। त्रासदी यह है कि उस घर के लोगों के बीच आपस में संवेदनहीनता कि दीवार खिंच गई है। इस संवेदनहीनता का कारण गरीबी है।

ऐसा नहीं है कि ये परिवार पैसे की ओर आकर्षित या धन का लालच रखता है। बल्कि सच तो ये है कि परिवार के सभी सदस्यों को एक-दूसरे की मजबूरी और लाचारी को जानते हैं, समझते है। इसलिए वे एक दूसरे से बोलते नहीं है।

यह परिवार गरीबी से लड़ते-लड़ते इतना ऊर्जाहीन, दीन-हीन जर्जर हो गया है कि आपसी रिश्तों को जीवित रखने के लिए जिस संवाद और ऊर्जा की जरूरत होती है, वह समाप्त हो चुकी है। परिवार में पांच सदस्य है।

सभी के बीच खून का रिश्ता है, परंतु गरीबी के कारण ये सभी अपने मन के भावों को अभिव्यक्त भी नहीं कर पाते है। ये संवाद हीनता इनके बीच आपस में भाषा रूपी जर्जर ताले को खोल भी नहीं पाती है।

यहां तक कि ये आपस में एक दूसरे के प्रति अपने दायित्वों, कर्त्तव्यों को भी गरीबी के कारण पूरा कर पाने में असमर्थ है। गरीबी इनके रिश्तों को आपस में जिंदा रखने में सबसे बड़ी बाधक है।

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Chapter 18 श्रीकांत वर्मा | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

हस्तक्षेप कविता क्लास 11 अंतरा पाठ 18 – श्रीकांत वर्मा

कवि श्रीकांत वर्मा का जीवन परिचय-
कवि श्रीकांत वर्मा का जन्म 18 दिसंबर 1931 को बिलासपुर मध्य प्रदेश में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा बिलासपुर में ही हुई। सन् 1956 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. करने के बाद, उन्होंने एक पत्रकार के रूप में अपना सहित्यिक जीवन शुरू किया।

इन्हें निम्नलिखित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है:-
=>तुलसी पुरस्कार
=>आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी पुरस्कार
=>शिखर सम्मान
=>कुमारन आशान पुरस्कार

इनकी प्रमुख रचनाएं हैं – जलसाघर, मगध, भटका मेघ, माया-दर्पण, झाड़ी संवाद, घर, दूसरे के पैर, जिरह, अपोलो का रथ, फैसले का दिन, बीसवीं शताब्दी के अंधेरे में।

इनकी काव्यगत विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-
=>श्रीकांत वर्मा जी को कम शब्दों में अधिक कहने में महारथ हासिल है।
=>उन्होंने आधुनिक जीवन के यथार्थ का नाटकीय चित्र प्रस्तुत किया है।
=>भाषा आम बोलचाल वाली, सरल व सरस है।
=>तत्सम-तद्भव शब्दों का प्रयोग किया है।

हस्तक्षेप कविता का सारांश – Hastakshep Poem Summary

इस कविता में कवि ने मगध की सत्ता की निरंकुशता एवं क्रूरता का वर्णन करते हुए दर्शाया है कि वहां ऐसा आतंकपूर्ण वातावरण हो गया है, जिससे लोग भयभीत और भौंचक्के हो गए हैं। कवि सत्ताधारी वर्ग पर अप्रत्यक्ष रूप से व्यंग करते हुए कहते हैं, मगध के लोग यह सोचते हैं कि मगध में शांति रहनी ही चाहिए। शांति भंग होने के डर से कोई छींक तक नहीं मार रहा है। मगध के अस्तित्व के लिए शांति का होना अत्यंत आवश्यक है।

निरंकुश शासन व्यवस्था में लोगों पर कितना ही अत्याचार क्यों न हो जाए, कोई चीख-पुकार नहीं कर सकता। ऐसा करना शासन के विरुद्ध समझा जाएगा। शासन व्यवस्था में व्यवधान हो जाएगा। मगध सिर्फ नाम का मगध है, रहने के लिए मगध नहीं है।

कवि कहता है कि तुम विरोध से कितना ही बचो, परन्तु तुम उसके स्पष्ट विरोध से बच नहीं पाओगे। जब कोई विरोध नहीं करता, तो शहर के बीच से गुज़रता मुर्दा यह प्रश्न करता है कि मनुष्य क्यों मरता है अर्थात् अत्याचार बढ़ने पर दबा-कुचला वर्ग भी निरंकुश सत्ता पर उंगली उठा सकता है।

कुल-मिलाकर कवि ने हस्तक्षेप कविता में आम व्यक्ति को गलत निर्णयों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया है। कवि आम जनता का आह्वान करते हुए कहते हैं कि सत्ता के गलत निर्णयों के विरुद्ध विद्रोह करते हुए डरना नहीं चाहिए।

व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाने के लिए समय-समय पर उसमें हस्तक्षेप की जरूरत होती है, वरना व्यवस्था निरंकुश हो जाती है। इस कविता में ऐसे ही तंत्र का वर्णन है, जहां किसी भी प्रकार के विरोध के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है। कवि बताता है कि हस्तक्षेप तो मुर्दा भी कर जाता है। फिर जिंदा लोग चुप बैठे रह जाएंगे, यह कैसे संभव है।

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Chapter 17 नागार्जुन | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

Class 11 Hindi Antra Chapter 17 Badal Ko Ghirte Dekha Hai Poem Summary

बादल को घिरते देखा है क्लास 11 अंतरा पाठ 17 – नागार्जुन

कवि नागार्जुन का जीवन परिचय:

बाबा नागार्जुन का जन्म बिहार के तरौनी ज़िले में हुआ था। नागार्जुन जी का असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृति पाठशाला तथा उच्च शिक्षा वाराणसी और कोलकाता में हुई। इनकी प्रमुख काव्य कृतियां हैं – युगधारा, पथराई आंखें, तालाब की मछलियां, सतरंगे पंखों वाली, तुमने कहा था, रत्नगर्भा, पुरानी जूतियों का कोरस, हज़ार-हज़ार बांहों वाली आदि।
इनके द्वारा लिखे गए उपन्यासों का नाम है- बलचनामा, जमनिया का बाबा, कुंभी पाक, उग्रतारा, रविनाथ की चाची, वरुण के बेटे आदि।
विलक्षण प्रतिभा के धनी नागार्जुन को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। जो कुछ इस प्रकार हैं–
1. साहित्य अकादमी पुरस्कार
2. भारत भारती पुरस्कार
3. मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार
4. राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार
5. अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान आदि।

कवि नागार्जुन के लिखने का अंदाज़ ही कुछ अलग था। वे अपनी लेखनी में साधारण लोगों के दुखों को जगह देते थे। समाज के यथार्थ को अपनी लेखनी के माध्यम से व्यक्त करते थे। शायद यही कारण है कि इनको ज़मीनी कलाकार भी कहा जाता था। वे मनुष्य के दर्द को महसूस करते थे एवं उनकी व्यथा को अपने लेखनी में स्थान देते थे। बाबा अपने पाठकों को समाज की असलियत से भी परिचित करवाते थे।
बाबा नागार्जुन न सिर्फ हिंदी भाषा में लिखा करते थे, बल्कि अरबी, फारसी, बांग्ला, संस्कृत एवं मैथिली भाषा में भी लिखा करते थे। वे बहु भाषा प्रेमी थे और बहु भाषा में ही इन्होंने कविताएं लिखी हैं, उपन्यास लिखे हैं।

बादल को घिरते देखा है कविता का सारांश – Badal Ko Ghirte Dekha Hai Summary

कवि नागार्जुन घूमने-फिरने के शौकीन थे। जहां-जहां वे जाते थे, उस स्थान पर मन खोल कर घूमते थे एवं अपने भ्रमण के अनुभवों को अपनी कविता में स्थान देते थे। बाबा नागार्जुन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने हिंदुस्तान के हर एक स्थान में घूमकर आनंद लिया है। इसके अलावा वे विदेशों में भी भ्रमण कर चुके हैं। नेपाल, भूटान एवं म्यांमार इनमें से प्रमुख हैं।
इस तरह, एकबार वे यात्रा करते-करते हिमालय प्रदेश में पहुंच गए। वहां की वादियां उन्हें बहुत भा गईं और उस पर ही कवि ने बादल को घिरते देखा है कविता लिख डाली।

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Chapter 16 नरेंद्र शर्मा | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

Class 11 Hindi Antra Chapter 16 Neend Uchat Jati Hai Poem Summary

नींद उचट जाती है क्लास 11 अंतरा पाठ 16 – नरेन्द्र शर्मा

कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा का जीवन परिचय:-

पंडित नरेंद्र शर्मा हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, लेखक एवं सम्पादक थे। पं. नरेंद्र शर्मा का जन्म 28 फ़रवरी, 1923 में उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी में एम.ए. किया। इन्होंने फिल्म जगत में भी लेखन कार्य किया ।

नरेंद्र जी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में अधिकारी भी रहे। बंबई आने के बाद इन्होंने बॉम्बे टाकीज़ के लिए फिल्मी गीत भी लिखे। बाद में ये आकाशवाणी से भी जुड़ गए। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं– ‘प्रभात फेरी‘ , ‘पलाश वन‘ , ‘प्रीति कथा‘ , ‘कामिनी‘ , ‘मिट्टी के फूल‘ , ‘हंसमाला‘ ,’ रक्त चंदन‘ , ‘कदली वन‘ , ‘द्रौपदी‘ , ‘प्यासा निर्झर‘ , ‘उत्तर जय‘ , आदि अनेक रचनाएं लिखी।

इन्होंने आम जन जीवन से जुड़ी कहानियां एवं कविताएं लिखी। समाज की बुराइयों, विषमताओं को इन्होंने अपनी कविताओं में लिखकर व्यक्त किया है। इन्होंने छायावादी एवं प्रगतिवादी दोनों प्रकार की ही कविताएं लिखी हैं। 

पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की भाषा सरल, सहज व मधुर है। इनकी भाषा में प्रेरक तत्व की प्रधानता मिलती हैं जो पढ़ने वालों को दृढ़ निश्चयी बनाती है। इनकी भाषा में एक ओर जहां कोमलता दिखाई पड़ती है वहीं दूसरी ओर कठोरता भी दिखाई देती है। इस महान कवि की मृत्यु 11 फ़रवरी 1984 को हृदय की गति रुकने के कारण हुई।

नींद उचट जाती है कविता का सारांश – Neend Uchat Jati Hai Poem Summary

कवि नरेंद्र शर्मा द्वारा रचित कविता ‘नींद उचट जाती है’ एक व्यक्ति और समाज के भीतर अवसाद बेचैनी, निराशा, सन्नाटा, चिंताओं के भावों की कविता है। यहां कवि ने इन सभी नकारात्मक भावों को प्रकट करने के लिए रात, अंधेरे, नींद न आना आदि शब्दों का प्रयोग किया है।

कवि ने कविता में जिस अंधेरे की बात की है वह दो स्तर पर है। एक व्यक्ति के स्तर पर और दूसरा समाज के स्तर पर। व्यक्ति पर यह अंधेरा, उसकी निराशा, चिन्ता, बुरे सपने, बेचैनी आदि के रूप में है।

जो समाज के अंधेरे के रूप में प्रतिबिंबित हुई है। अर्थात् समाज में अंधेरे के रूप में विषमता, चेतना व जागृति का अभाव, विकास न होना, शोषण, छल, कपट विद्यमान है जिसके फलस्वरूप समझ में विसंगति बढ़ती जा रही है। और इन्हीं विसंगति के परिणामस्वरूप समाज के व्यक्ति की नींद उचट जाती है।

कवि – जीवन में दोनों स्तर के अंधेरे को दूर करने की बात करता है। वह चाहता है कि समाज में जागृति, चेतना फैले और सभी के जीवन से अंधेरा दूर हो जाए।

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Chapter 15 महादेवी वर्मा | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

जाग तुझको दूर जाना – महादेवी वर्मा (अंतरा भाग 1 पाठ 15)

कवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद, उत्तरप्रदेश में हुआ था l इनकी प्रारंभिक शिक्षा, इंदौर में हुईl इनका विवाह  बारह वर्ष की आयु मे हो गया था।
प्रयाग विश्वविद्यालय से इन्होंने एम. ए. किया l
इनकी प्रमुख काव्य कृति है– निहार, रश्मि, नीरजा, संध्या गीत, यामा और दीप शिखा है l महा देवी वर्मा ने भारतीय समाज में स्त्री जीवन के बारे में वर्तमान, अतीत और भविष्य सब का मूल्यांकन किया है l प्रस्तुत काव्यांश दीप शिखा पाठ्य पुस्तक से उद्धृत की गई है, सब आँखों के आंसू उजले कविता में प्रकृति कि उस मनोरम दृश्य की चर्चा की गई  है जो जीवन का सत्य है और मनुष्य को हर संभव लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता करता है l

जाग तुझको दूर जाना कविता का भावार्थ – Jaag Tujhko Door Jaana Hai Poem Summary in Hindi

ये महादेवी वर्मा का एक प्रेरक गीत है इस गीत में महादेवी वर्मा खुद को मोटीवेट करती हुई कहती है कि आज तुम इतने आलस्य में क्यों है, क्यों व्यर्थ के कामों में उलझी हुई हो। फालतु व्यवस्थाओं और आलस्य से खुद को जगाओ क्योंकि अभी तुमे जिंदगी में काफी कुछ करना है, अभी तुमे अपनी जिंदगी में काफी दूर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये तुमे बिना किसी बात से परेशान हुए हमेशा अपने मार्ग में आगे बढ़ते रहना है फिर चाहे भले ही हिमालय पर्वत अपनी जगह से हिलने लगे या आसमानों से ऑसुओ की बारिश होने लगे या फिर आकाश में घना अधेंरा हो जाये और सिवाय अंधकार के कुछ भी दिखाई ना दे। चाहे कुछ भी हो जाये तुम्हें निरंतर आगे बढ़ते रहना है। चाहे बिजली की चमक से भयंकर तूफान आ जाये या भयंकर तूफान आने की वजह से मार्ग भी दिखाई ना दे।

लेकिन तुझे बिना किसी बात की परवाह करते हुए आगे बढ़ते रहना है। निराशा को कभी अपने ऊपर हावी नही होने देना है भले ही अपनी इस कोशिश में तुम्हें अपनी जान भी गवानी पड़ जाये। इस दुनिया में कुछ ऐसा करके जाना है कि दुनिया वाले तुमे हमेशा याद रखे और तुम्‍हारे जाने के बाद भी इस दुनिया में तुम्हारी अमिट छाप मौजूद रहें।

महादेवी वर्मा इस कविता में संसारिक बंधनों के बारे में भी बात करती है। वो कहती है कि क्या संसारिक मोहमाया के बंधन जो बहुत आसानी से मोम के सामान पिघल सकते हैं तेरा रास्ता रोक सकते है। क्या तितलियों के रंगों के जैसे दिखने वाले संसारिक सुख तुम्हारी राह में रूकावट बन सकते हैं। इस संसार में इसके अलावा भी बहुत कुछ है। ये संसार दुखों से भरा पड़ा है।

क्या इन दुखों के बारे में सोचकर और इन्हें जानकर भी तुम संसारिक सुखों के बारे में सोच सकती हो। क्या तुम्‍हारा हृदय समाज की इस व्यथा को दूर करने के लिए तड़प नही उठता है। संसार के सभी सुख और आर्कषण तुम्हारी खुद की परछाई के सामान है। यदि तुम अपनी परछाई का पीछा करने लग गए तो कभी आगे नही बढ़ पाओगे और तुम्हारा विकास रूक जाएगा। इसलिए बिना डरे, बिना निराश हुए अपनी परछाई को अपने रास्ते की रूकावट मत बनने दो और हमेशा आगे बढ़ते रहो।

वो अपनी इस कविता में आगे कहती है कि तुम्हें अपनी अंदर की शक्ति को पहचानना होगा। तुम्हारे अंदर काफी साहस है। तुम्हारे अंदर असीम इच्छा शक्ति है जिसके सामने कोई भी ससांरिक आर्कषण ज्यादा समय तक नही टिक सकता। लेकिन आज तुम्हें ना जाने क्या हो गया है। आज तुम्हारी इच्छा शक्ति क्यों कमजोर पड़ रही है।

आज क्यों तुम संसार के अत्याचार और उत्पीड़न को भूलकर आलस्य में डूबी हुई हो। ऐसे तो तुम अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच पाओगी। तुम्हे इस आलस्य को छोड़कर अपने लक्ष्य के बारे में सोचना पड़ेगा।

अभी अपने लक्ष्य को याद करके अपना सफर शुरू का दो। अपनी मौत से पहले तुम्‍हे उसे हर हाल में पाना होगा। इसलिए अब निराश होने का वक्‍त नही है। अपने गुजरे हुए कल के बारे में सोचकर निराश होने से कुछ नही मिलने वाला। अपने अतीत को भूल जाओ और आगे बढ़ो। उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति होने से पहले रूको मत।

अपने लक्ष्य पर पहुंचने से पहले अगर तुम्‍हारी जान भी चली गई तो ये संसार तुमहे हमेशा याद रखेगा। दीपक की लौ पर चलने वाला पंतग मरने के बाद भी दीपक को अमर बना देता है। तुम्‍हारा रास्‍ता त्‍याग और बलिदान का है। तुम्हें जीवन की तमाम कठिनाईयो से पार पाते हुए आगे बढ़ते रहना है। अत: अब तुम जागो और आगे बढ़ो अभी तुम्हारी मंजिल काफी दूर है। 

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Chapter 14 सुमित्रानंदन पंत | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

Sandhya Ke Baad Class 11 Hindi Antra Chapter 14 Summary

सुमित्रानन्दन पंत का जीवन परिचय :

👉 छायावादी काव्यधारा के महान कवि सुमित्रानंदन पंत  का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गांव में हुआ। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी में हुई तथा उच्च शिक्षा इलाहाबाद के ‘म्योर कॉलेज’ में हुई।

      पंत जी ने ‘लोकायतन’ संस्था की स्थापना की। ये लंबे समय तक आकाशवाणी के परामर्शदाता रहें। 28 दिसम्बर 1977 में इनका निधन हो गया।

सुमित्रानन्दन पंत की रचनाएं व सम्मान:-

👉 ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘ग्रंथि’, ‘स्वर्नकिरण’, ‘गुंजन’ एवं ‘उत्तरा’।

साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960 कला व बूढ़ा चांद) ज्ञानपीठ पुरस्कार (1969 चिदम्बरा) पाने वाले हिन्दी के प्रथम कवि हैं।

पद्मभूषण (1961) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार।

सुमित्रानन्दन पंत की काव्यगत विशेषताएं:-

  1. सुमित्रानंदन पंत की आरंभिक कविताओं में प्रकृति प्रेम एवं रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद के चरण की कविताएं मार्क्स व गांधी से प्रभावित है अगले चरण की कविताओं पर अरविंद दर्शन का प्रभाव नजर आता है।
  2. पंत जी प्रकृति के चितेरे (चित्रकार) कवि है।
  3. प्रकृति के काल रूप का चित्रण एवं उसके पल-पल के परिवर्तनशील सौंदर्य का चित्रात्मक वर्णन इनकी विशेषता है।

सुमित्रानन्दन पंत की भाषा-शैली:-

  1. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
  2. मानवीकरण, विशेषण-विप्रयय एवं धवन्यार्थ व्यंजना जैसे नवीन अलंकारों के साथ उपमा, रूपक एवं उत्प्रेक्षा जैसे परम्परागत अलंकारों का प्रयोग।
  3. अमृत के माध्यम से मूर्त का वर्णन उनकी प्रमुख विशेषता है।

Sandhya ke baad summary in Hindi – संध्या के बाद कविता का सारांश 

👉 प्रस्तुत कविता छायावाद के प्रमुख आधार स्तंभ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ‘ग्राम्या’ में संकलित है।

      कविता में संध्या के समय होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों, ग्रामीण जीवन के दैनिक किर्याकलापों के वर्णन के साथ-साथ मानवता एवं संवेदनशीलता का भी संदेश दिया है कवि ने एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की आश्यकता पर बल दिया है।

जो शोषणमुक्त हो, जिसमें दरिद्रता न हो एवं कर्म तथा गुणों के आधार पर साधनों व अर्थ की प्रप्ति हो, गावन दरिद्रता, उत्पीड़न एवं निराशा व्याप्त है। परंतु व्यक्ति इनको प्रकट करने में असमर्थ है। कवि ने समस्त पापों का कारण दरिद्रता को माना है। दरिद्रता के लिए कोई व्यक्ति-विशेष दोषी नहीं है। बल्कि सामाजिक व्यवस्था दोषी है।

      गांव के बनिए के माध्यम से कवि कहना चाहता है की व्यक्ति अपनी कथनी और कहनी में समानता द्वारा सामाजिक व्यवस्था में तभी परिवर्तन का सकता है। जब व्यक्ति की सोच और आचरण समान है।

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Chapter 13 पद्माकर| CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

Padmakar Class 11 Hindi Antra Chapter 13 Summary

Padmakar ka jeevan parichay – पद्माकर का जीवन परिचय
👉 श्री पद्माकर का जन्म 1733 में सागर में हुआ था लेकिन कुछ इतिहासकार इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बताते है। इनके पिता श्री मोहन लाल भट्ट थे। इनके पिता व अन्य वशंज कवि थे इसलिए इनके वंश का नाम कविश्वर पड़ा। बूंदी नरेश, पन्ना के राजा जयपुर से इन्हें विशेष सम्मान मिला। इनका निधन सन् 1833 में हुआ।

पद्माकर की रचनाएं:-
पदमाभरण, रामरसायन, गंगा लहरी, हिम्मत बहादुर, विरुदावली, प्रताप सिंह विरुदावली, प्रबोध पचासा इनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं। कवि राज शिरोमणि की उपाधि से इन्हें सम्मानित किया गया।

Padmakar class 11 summary in Hindi


👉 पहले कवित्त में कवि ने प्रकृति-सौंदर्य का वर्णन किया है। प्रकृति का संबंध विभिन्न ऋतुओं से है। वसंत ऋतुओं का राजा है। वसंत के आगमन पर प्रकृति, विहग और मनुष्यों की दुनिया में जो सौंदर्य संबंधी परिवर्तन आते हैं, कवि ने इसमें उसी को लक्षित किया है।

👉 दूसरे कवित्त में गोपियाँ लोक-निंदा और सखी-समाज की कोई परवाह किए बिना कृष्ण के प्रेम में डूबे रहना चाहती हैं।

👉 अंतिम कवित्त में कवि ने वर्षा ऋतु के सौंदर्य को भौंरों के गुंजार, मोरों के शोर और सावन के झूलों में देखा है। मेघ के बरसने में कवि नेह को बरसते देखता है।

पद्माकर के कवित्त 

औरै भाँति कुंजन में गुंजरत
औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौंर,
औरे डौर झौरन पैं बौरन के ह्वै गए।
कहैं पद्माकर सु औरै भाँति गलियानि,
छलिया छबीले छैल औरै छबि छ्वै गए।
औरै भाँति बिहग-समाज में अवाज होति,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए।
औरै रस औरै रीति औरै राग औरै रंग,
औरै तन औरै मन औरै बन ह्वै गए।।

गोकुल के कुल के गली के गोप
गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के
जौ लगि कछू-को-कछू भाखत भनै नहीं।
कहैं पद्माकर परोस-पिछवारन के,
द्वारन के दौरि गुन-औगुन गनैं नहीं।
तौ लौं चलित चतुर सहेली याहि कौऊ कहूँ,
नीके कै निचौरे ताहि करत मनै नहीं।
हौं तो स्याम-रंग में चुराई चित चोराचोरी,
बोरत तौं बोर्यौ पै निचोरत बनै नहीं।।

भौंरन को गुंजन बिहार
भौंरन को गुंजन बिहार बन कुंजन में,
मंजुल मलारन को गावनो लगत है।
कहैं पद्माकर गुमानहूँ तें मानहुँ तैं,
प्रानहूँ तैं प्यारो मनभावनो लगत है।
मोरन को सोर घनघोर चहुँ ओरन,
हिंडोरन को बृंद छवि छावनो लगत है।
नेह सरसावन में मेह बरसावन में,
सावन में झूलिबो सुहावनो लगत है।।

Padmakar class 11 vyakhya

औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौंर,
औरे डौर झौरन पैं बौरन के ह्वै गए।
कहैं पद्माकर सु औरै भाँति गलियानि,
छलिया छबीले छैल औरै छबि छ्वै गए।
औरै भाँति बिहग-समाज में अवाज होति,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए।
औरै रस औरै रीति औरै राग औरै रंग,
औरै तन औरै मन औरै बन ह्वै गए।।

Padmakar class 11 explanation: कवि कहता है कि वसंत ऋतु के आते ही लताओं-झांडियो में घूमते विचरते भांरों की गुंजार कुछ और ही प्रकार की हो गई है। आम की मंजरियों के गुच्छों की छटा भी अलग ही प्रकार की हो गई है। कवि का तात्पर्य यह है कि वसंत ऋतु का आगमन होते ही प्रकृति में एक विशेष प्रकार का निखार आ गया है ल। कवि पद्माकर कहते है कि गलियों में घूमने वाले वांके, सजीले और सुंदर नवयुवकों पर अलग प्रकार की ही छवि छा गई है। अर्थात् सुंदर युवकों की छवि और भी आकर्षक प्रतीत हो रही है।

गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के
जौ लगि कछू-को-कछू भाखत भनै नहीं।
कहैं पद्माकर परोस-पिछवारन के,
द्वारन के दौरि गुन-औगुन गनैं नहीं।
तौ लौं चलित चतुर सहेली याहि कौऊ कहूँ,
नीके कै निचौरे ताहि करत मनै नहीं।
हौं तो स्याम-रंग में चुराई चित चोराचोरी,
बोरत तौं बोर्यौ पै निचोरत बनै नहीं।।

Padmakar class 11 explanation: कवि के अनुसार गोकुल क्षेत्र के ग्वालों के सभी गांवों की गली-गली में होली का उल्लास इस तरह से छाया हुआ है कि वहां के हाल के बारे में कुछ भी कहते नहीं बनता। कवि का तात्पर्य यह है कि वहां हर ओर होली की मस्ती छाई हुई है। कवि पद्माकर कहते है कि लोग अपने आस-पड़ोस, पिछवाड़े और द्वार-द्वार तक दौड़ लगते हुए होली खेल रहे है। वे किसी के गुण-अवगुण का भी ध्यान नहीं रखते। कवि होली का वर्णन करते हुए आगे कहता है कि कोई चंचल और चतुर सखी अपनी सखी से कहती है कि वह रंग में भीगे हुए अपने कपड़े को अच्छी तरह से निचोड़ने का प्रयास करती है, लेकिन उसमें निचोड़ते नहीं बनता क्योंकि उसका मन वश में नहीं रहा।

भौंरन को गुंजन बिहार बन कुंजन में,
मंजुल मलारन को गावनो लगत है।
कहैं पद्माकर गुमानहूँ तें मानहुँ तैं,
प्रानहूँ तैं प्यारो मनभावनो लगत है।
मोरन को सोर घनघोर चहुँ ओरन,
हिंडोरन को बृंद छवि छावनो लगत है।
नेह सरसावन में मेह बरसावन में,
सावन में झूलिबो सुहावनो लगत है।।

Padmakar class 11 explanation: कवि के अनुसार सावन में वन और झंडियों  – लताओं के बीच घूमते हुए भौरों का गुंजार करना राग मल्हार में गीत गाने जैसा प्रतीत हो रहा है कवि पद्माकर कहते हैं कि वर्षा के प्रेमपूर्ण वातावरण में मुझे आत्म अभियान, मान-सम्मान अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय अपना प्रियतम लगता है। दूसरा अर्थ यह है कि सावन में प्रेयसी का घमंड से रूठना भी प्राणों से प्यारा और मन को अच्छा लगने वाला लगता है। यहां कवि का तात्पर्य यह है कि वर्षा ऋतु के आनंददायक परिवेश में यदि प्रेयसी घमंड करते हुए रूठ भी जाए तो उसको बुरा नहीं लगता बल्कि अधिक आकर्षक उत्पन्न होता है।

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