Chapter 15 नौकर summary class 6th hindi vasant

नौकर वसंत भाग – 1 (Summary of Naukar Vasant)

यह पाठ अनु बंद्योपाध्याय द्वारा रचित निबंध है। गाँधीजी नौकर का काम खुद से करते थे| आश्रम में गांधी जी आटा चक्की पर स्वयं पीसते थे। उन्हें बाहरी लोगों के सामने भी शारीरिक मेहनत करने में शर्म अनुभव नहीं होती थी। एक बार कॉलेज के कुछ छात्र गांधी जी से मिलने आए और उनसे कुछ सेवा करने के लिए कहने लगे। गांधी जी ने उन छात्रों को भी गेहूँ साफ़ करने दिया। वे एक घंटे में ही इस कार्य को करने से थक गए और गांधी जी से विदा लेकर चले गए।

गांधी जी ने कुछ वर्षों तक आश्रम में भंडार का काम भी संभाला था। उन्हें सब्जी, फल और अनाज के पौष्टिक गुणों का ज्ञान था। गांधी जी आश्रमवासियों को स्वयं भोजन परोसते थे, जिस कारण उन लोगों को बेस्वाद, उबली हुई सब्ज़ियाँ बिना शिकायत किए खानी पड़ती थीं। उन्हें चमकते हुए बरतन पसंद थे।

गांधी जी आश्रम में चक्की पीसने और कुएँ से पानी निकालने का काम रोज़ करते थे। उन्हें यह पसंद नहीं था कि जब तक शरीर में बिलकुल लाचारी न हो तब तक कोई उनका काम करे। उनमें हर प्रकार का काम करने की अद्भुत क्षमता तथा शक्ति थी। दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध के दौरान उन्होंने घायलों को स्ट्रेचर पर लाद कर पच्चीस-पच्चीस मील तक ढोया था। एक बार किसी तालाब की भराई का काम चल रहा था। उनके साथी वहाँ पर काम कर रहे थे। उन्होंने लौटकर देखा कि गांधी जी ने उन लोगों के नाश्ते के लिए फल आदि तैयार करके रखे हुए थे।

एक बार दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों की माँगों को लेकर गांधी जी लंदन गए। वहाँ भारतीय छात्रों ने उन्हें शाकाहारी भोज के लिए आमंत्रित किया। वे लोग स्वयं गांधी जी के लिए भोजन बनाने लगे। तीसरे पहर एक दुबला-पतला व्यक्ति भी उनमें शामिल होकर काम करने लगा। बाद में छात्रों को पता चला कि वह दुबला-पतला व्यक्ति गांधी जी ही थे।

दूसरों से काम लेने में गांधीजी बहुत सख्त थे परन्तु दूसरों से अपना काम कराना उन्हें नापसंद था| एक बार गांधी जी राजनीतिक सम्मेलन से लौटकर रात के दस बजे अपना कमरा झाड़ लेकर साफ़ करने लगे।  गांधी जी को बच्चों से बहुत प्यार था। उनका मानना था कि बच्चों के विकास के लिए माँ-बाप का प्यार और उनकी देखभाल अनिवार्य है।

दक्षिण अफ्रीका में जेल से छूटने पर उन्होंने देखा कि उनके मित्र की पत्नी श्रीमती पोलक बहुत कमज़ोर और दुबली हो गई हैं, क्योंकि बच्चा बहुत प्रयत्न के बाद उनका दूध पीना नहीं छोड़ रहा था। गांधी जी ने एक महीने तक बच्चे को अपने पास सुलाया। रात के लिए वे अपनी चारपाई के पास पानी रख कर सोते थे। यदि बच्चे को प्यास लगती तो वे पानी पिला देते। आधे महीने तक माँ से अलग सोने पर बच्चे ने माँ का दूध पीना छोड़ दिया। 

गांधी जी अपने से बड़ों का आदर करते थे। दक्षिण अफ्रीका में गोखले जी गांधी जी के साथ ठहरे थे। गांधी जी उनके सभी काम स्वयं करते। जब कभी आश्रम में किसी सहायक को रखने की आवश्यकता होती तो वे किसी हरिजन को रखने का आग्रह करते थे। उनके अनुसार नौकरों को हमें वेतनभोगी मज़दूर नहीं बल्कि अपने भाई के समान मानना चाहिए। इसमें कुछ कठिनाई हो सकती है, कुछ चोरियाँ हो सकती हैं, फिर भी हमारी कोशिश बेकार नहीं जाएगी| इंग्लैंड में गांधी जी ने देखा था कि ऊँचे घरानों में घरेलू नौकरों को परिवार के आदमी की तरह रखा जाता था।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• बैरिस्टरी – वकालत

• आगंतुक – अतिथि

• कालिख – धुएँ आदि से काला होना

• नवागत – नया आया हुआ मेहमान

• प्रवासी – दूसरे देश में रहने वाले

• अनुकरण करना – नकल करना।

• फर्श बुहारना – फर्श पर झाडू लगाना

• पखवाड़ा – पन्द्रह दिन का समय

• अधिवेशन – मीटिंग

• कारकुन – कार्यकर्ता

• प्रतिदान – किसी ली हुई वस्तु के बदले दूसरी वस्तु देना

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Chapter 14 लोकगीत summary Notes class 6th Hindi Vasant

लोकगीत वसंत भाग – 1 (Summary of Lokgit Vasant)

यह पाठ एक निबंध है जिसमें लेखक ने लोकगीत की उत्पत्ति, विकास और महत्व को विस्तार से समझाया है| लोकगीत जनता का संगीत है| लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता के कारण शास्त्रीय संगीत से अलग होता है। त्योहारों और विशेष अवसर पर ये गाए जाते हैं| इन्हें साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि वाद्ययंत्रों की मदद से गाया जाता है। पहले ये शास्त्रीय संगीत से खराब समझा जाता था परन्तु बदलते समय ने

लोकगीतों और लोकसाहित्य को उच्च स्थान दिया है।

लोकगीत कई प्रकार के होते हैं। आदिवासी मध्य प्रदेश, दकन, छोटा नागपुर में गोंड-खांड, ओराँव-मुंडा, भील-संथाल आदि क्षेत्रों में फैले हुए हैं और इनके संगीत बहुत ही ओजस्वी तथा सजीव होते हैं| पहाड़ियों के गीत भिन्न-भिन्न रूपों में होते हैं। गढ़वाल, किन्नौर, कांगड़ा आदि के अपने-अपने गीत हैं और उन्हें गाने की अपनी-अपनी विधियाँ हैं। विभिन्न होते हुए भी इन गीतों का नाम ‘पहाड़ी’ पड़ गया है। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि के लोकगीत मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के अन्य पूर्वी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाए जाते हैं। बंगाल में बाऊल और भतियाली, पंजाब में माहिया, हीर-राँझा, सोहनी-महिवाल संबंधी गीत और राजस्थान में ढोला मारु लोकगीत बड़े चाव से गाए जाते हैं। 

लोकगीत कल्पना पर आधारित नहीं होते हैं बल्कि देहाती जीवन के रोजमर्रा के विषय पर आधारित होते हैं। इनके राग भी साधारणत: पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन आदि हैं। देहात में कहरवा, बिरहा, धोबिया आदि राग गाए जाते हैं। बिहार में ‘बिदेसिया’ बहुत लोकप्रिय है। इनका विषय रसिका प्रेमी और प्रियाओं तथा परदेसी प्रेमी पर आधारित होता है। जंगल की जातियों में भी दल-गीत होते हैं जो बिरहा आदि पर गाए जाते हैं। बुंदेलखंड में आल्हा के गीत गाए जाते हैं। इनकी शुरुआत चंदेल राजाओं के राजकवि जगनिक द्वारा रचित आल्हा-ऊदल की वीरता के महाकाव्य से माना जाता है। धीरे-धीरे दूसरे देहाती कवियों ने इन्हें अपनी बोली में उतारा है। इन गीतों को नट रस्सियों पर खेल करते हुए गाते हैं|

हमारे देश में स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों की संख्या ज्यादा है। इनकी रचना भी वे ही करती हैं। भारत के लोकगीत अन्य देशों से भिन्न हैं क्योंकि अन्य देशों में स्त्रियों के गीत मर्द से अलग नहीं होते। हमारे देश में विभिन्न अवसरों पर विभिन्न गीत गाए जाते हैं – जैसे जन्म, विवाह, मटकोड़, ज्यौनार आदि जो स्त्रियाँ गाती हैं। इन अवसरों पर गाए जाने वाले गीतों का संबंध प्राचीन काल से है। बारहमासा गीत आदमियों के साथ-साथ स्त्रियाँ भी गाती हैं। स्त्रियों के गीत दल बनाकर गाए जाते हैं। इनके स्वरों में मेल नहीं होता है फिर भी अच्छे लगते हैं। होली, बरसात में गाई जाने वाली कजरी सुनने वाली होती है। पूर्वी भारत में अधिकतर मैथिल कोकिल विद्यापति के गीत गाए जाते हैं। गुजरात में ‘गरबा’ नामक नृत्य गायन प्रसिद्ध है। इस दल में औरतें घूम-घूम कर एक विशेष विधि से गाती हैं और नाचती हैं। ब्रज में होली के अवसर पर रसिया दल बनाकर गाया जाता है। गाँव के गीतों के अनेक प्रकार हैं|

कठिन शब्दों के अर्थ –

• लोच-लचीलापन

• झाँझ–एक वाद्य यंत्र जो काँसे की दो तश्तरियों से बना होता है

• करताल-तालियाँ

• हेय-हीन

• निर्द्वद्व-बिना किसी दुविधा के

• मर्म को छूना-प्रभावित करना

• आह्लादकर–प्रसन्न करने वाले 

• सिरजती-बनाती

• पुट-अंश

• उद्दाम-निरंकुश

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ch-13 मैं सबसे छोटी होऊँ Summary Notes class 6th Hindi Vasant

प्रस्तुत कविता में एक बालिका अपनी माँ की सबसे छोटी संतान बनने की इच्छा प्रकट करती है। ऐसा करने से वह सदा अपनी माँ का प्यार और दुलार पाती रहेगी। उसकी गोद में खेल पाएगी। उसकी माँ हमेशा उसे अपने आँचल में रखेगी, उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगी। उसे लगता है कि वह सबसे छोटी होगी, तो माँ उसका सबसे अधिक ध्यान रखेगी। सबसे छोटी होने से उसकी माँ उसे अपने हाथ से नहलाएगी, सजाएगी और सँवारेगी। उसे प्यार से परियों की कहानी सुनाकर सुलाएगी। वह कभी बड़ी नहीं होना चाहती क्योंकि इससे वह अपनी माँ का सुरक्षित और स्नेह से भरा आँचल खो देगी।

भावार्थ
मैं सबसे छोटी होऊँ
तेरी गोदी में सोऊँ
तेरा आँचल पकड़-पकड़कर
फिरू सदा माँ तेरे साथ
कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ


भावार्थ- कविता की इन पक्तियों में बच्ची कह रही है कि काश मैं अपनी माँ की सबसे छोटी संतान बनूँ ताकि मैं उनकी गोदी में प्यार से सो सकूँ। प्यार से उनका आँचल पकड़कर, हमेशा उनके साथ घूमती रहूँ और उनका हाथ कभी ना छोड़ूँ।


बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात


भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में बालिका कह रही है कि जैसे ही हम बड़े हो जाते हैं, माँ हमारा साथ छोड़ देती है। फिर वह दिन-रात हमारे आगे-पीछे नहीं घूमती, इसलिए हमें छोटा ही बने रहना चाहिए।


अपने कर से खिला, धुला मुख
धूल पोंछ, सज्जित कर गात
थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात


भावार्थ- प्रस्तुत पक्तितों में बच्ची आगे कहती है कि बड़े होने के बाद माँ हमें अपने हाथ से नहलाती नहीं, ना ही सजाती और सँवारती है। फिर तो माँ हमें प्यार से एक जगह बिठा कर खिलौनों से नहीं खिलाती और परियों की कहानी भी नहीं सुनाती।


ऐसी बड़ी न होऊँ मैं
तेरा स्‍नेह न खोऊँ मैं
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्‍पृह, निर्भय
कहूँ दिखा दे चंद्रोदय


भावार्थ- प्रस्तुत अंतिम पक्तियों में बच्ची कह रही है कि मुझे बड़ा नहीं बनना है क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मैं माँ के आँचल का साया खो दूँगी, जिसमें मैं निर्भय और सुरक्षित होकर आराम से सो जाती हूँ।
अतः बच्ची हमेशा छोटी ही रहना चाहती है क्योंकि बड़ा होने के बाद उसे माँ का प्यार और दुलार नहीं मिल पाएगा।

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Chapter 12 संसार पुस्तक है summary notes class 6th hindi vasant

संसार पुस्तक है वसंत भाग – 1 (Summary of Sansar Pustak hai Vasant)

यह पाठ पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा अपनी पुत्री को लिखा गया एक पत्र है। इस पत्र के माध्यम से दुनिया और छोटे देशों के बारे में अपनी पुत्री को बताना चाहते थे। नेहरू जी इलाहाबाद में थे और उनकी दस वर्षीय पुत्री इंदिरा गाँधी मसूरी में थीं। वे पत्रों द्वारा अपनी बेटी को दुनिया की जानकारी देना चाहते थे| 

वह अपनी बेटी से कहते हैं कि तुमने इंग्लैंड तथा हिंदुस्तान के विषय में इतिहास में पढ़ा होगा लेकिन यदि दुनिया को जानना है तो समझना कि सारा संसार एक है। इसमें रहने वाले सभी भाई-बहन हैं। यह धरती लाखों-करोड़ों वर्ष पुरानी है। एक समय था जब धरती बेहद गर्म थी और इस पर कोई जीवित नहीं रह सकता था। इतिहास को किताबों में पढ़ा जा सकता है परन्तु पुराने जमाने में जब आदमी नहीं था, तब किताबें कौन लिखता? पहाड़, समुद्र, सितारों, नदियाँ, जंगल आदि के माध्यम से भी पुरानी दुनिया का पता लग सकता है। इसके लिए संसार रूपी पुस्तक को पढ़ना होगा। संसार रूपी पुस्तक को पढ़ने के लिए पत्थरों और पहाड़ों को पढ़ना चाहिए। सड़क पर या पहाड़ के नीचे का छोटा-सा पत्थर का टुकड़ा भी पुस्तक का पृष्ठ बन जाता है| 

जैसे हम कोई भाषा सीखने के लिए अक्षर ज्ञान प्राप्त करते हैं उसी प्रकार प्रकृति को समझने का ज्ञान हम पत्थरों और चट्टानों से प्राप्त कर सकते हैं| कोई चिकना-सा पत्थर भी अपने बारे में बहुत कुछ बताता है कि यह गोल, चिकना, चमकीला और खुरदुरे किनारे कैसे हो गया। अंत में वह बालू का कण कैसे हो गयाऔर सागर के किनारे जम गया। अगर छोटा-सा पत्थर इतनी जानकारी दे सकता है, तो पहाड़ों और अन्य चीजों से हमें कई बातें पता चल सकती हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• अकसर – प्रायः 

• खत – पत्र

• आबाद – बसा हुआ 

• गौर से – ध्यान से

• जर्रा – कण 

• दामन–तलहटी

• खुरदरा-जिसकी सतह चिकनी न हो

• घरौंदा-बच्चों द्वारा बनाया मिट्टी का छोटा-सा घर

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Chapter 11 जो देखकर भी नहीं देखते Class 6 Summary notes class 6th hindi vasant

जो देखकर भी नहीं देखते वसंत भाग – 1 (Summary of Jo Dekhkar bhi nhi dekhte Vasant)

यह पाठ हेलेन केलेर द्वार लिखा एक निबंध है जो दृष्टिहीन एवं बधिर थी। उनकी सहेली कुछ समय पहले जंगल की सैर करके आई थीं परन्तु पूछने पर उसने कहा उसने कुछ खास नहीं देखा। चूँकि ऐसा सुनने की लेखिका को आदत पड़ चुकी थी इसलिए उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ| साथ ही उन्हें यह भी लगता था की कोई इतना घूमकर भी विशेष चीज़ कैसे नहीं देख सकता, जबकि वे अंधी होते हुए भी सब कुछ देख लेती है। 

वे रोज़ाना सैकड़ों चीज़ों को छूकर और महसूस कर पहचान लेती हैं जैसे भोजपत्र की चिकनी छाल, चीड़ की खुरदरी छाल, वसंत में खिली कलियाँ तथा फूलों की पंखुड़ियों की मखमली सतह आदि| इन सबको स्पर्श करने से उन्हें आनंद प्राप्त होता है| अपनी अँगुलियों के बीच बहते पानी को महसूस करने से उन्हें आनंद मिलता है| बदलता हुआ मौसम उनके जीवन में खुशियाँ भर देता है| लेखिका को लगता है जब इन सब चीजों को छूने मात्र से ही इतनी खुशी मिलती है अगर वे इन सबको देखतीं तो उन में खो जातीं। 

उनके अनुसार जिनकी आँखें होती हैं वे लोग बहुत ही कम देखते हैं। वे प्रकृति को लेकर असंवेदनशील होते हैं| मनुष्य के पास जिस चीज़ की कमी होती है, वह उसे प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है। ईश्वर से मिली दृष्टि को मानव एक साधारण-सी चीज़ समझकर उसका उचित प्रयोग नहीं । करता है, जबकि इसके उचित प्रयोग से जीवन में खुशियों के इंद्रधनुषी रंग भरे जा सकते हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• परखने – जाँचने 
• अचरज – आश्चर्य, हैरानी
• रोचक – अच्छी लगने वाली 
• समाँ – वातावरण 
• मुग्ध – मोहित 
• क्षमता – ताकत
• कदर – पहचानना
• आस – उम्मीद 
• नियामत – ईश्वर की देन 
• इंद्रधनुषी रंग – अनेक प्रकार के रंग

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Chapter 10 झाँसी की रानी Class 6 Summary notes | class 6th Hindi vasant

झाँसी की रानी सार वसंत भाग – 1 (Summary of Jhansi ki Rani Vasant)

इस कविता में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का बखान किया गया है| यह कविता सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की परिस्थितियों की झलक देता है|

अंग्रेज़ों के बढ़ते अत्याचार के खिलाफ और स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए भारत के राजाओं में हलचल हुई जिससे सिंहासन हिल गए। राजवंश अंग्रेजों पर गुस्सा हो गए। गुलामी के जंजीर में जकड़े जर्जर बूढ़े भारत में फिर से नया जोश का संचार हुआ। सभी राजा अपनी खोई हुई आजादी का मूल्य समझने लगे थे इसलिए उन्होंने फिरंगी यानी अंग्रेज़ो को भारत से भगाने का निश्चय कर लिया था। भारत की पुरानी तलवार सन् 1857 में चमक उठी। झाँसी की रानी उस युद्ध में वीर पुरुषों की भाँति लड़ी। उसकी यह कहानी हमने बुंदेलखण्ड के हरबोलों से सुनी थीं।

लक्ष्मीबाई कानपुर के नाना साहब की मुँहबोली बहन थी जिनका बचपन का नाम छबीली था। वह अपने पिता की अकेली संतान थीं। उनका बचपन नाना साहब के साथ पढ़ते और खेलते बिता था। वह अपने उम्र की लड़कियों को सहेली नहीं बनाकर बरछी, ढाल, कृपाण को वह अपनी सहेली मानती थी। उन्हें शिवाजी जैसे वीरों की कहानियाँ जबानी याद थीं। कवयित्री कहती हैं कि हमने बुंदेले हरबोलों के मुँह से सुना है कि रानी लक्ष्मीबाई वीर पुरुषों की भाँति बहादुरी से लड़ी थीं।

लक्ष्मीबाई को देखकर ऐसा लगता था कि मानो वह वीरता की अवतार लक्ष्मी या दुर्गा हैं| उनकी तलवारों की चोटें देखकर मराठे प्रसन्न होते थे। नकली युद्ध करना, चक्रव्यूह बनाना, खूब शिकार करना, शत्रु की सेना को घेरना, शत्रु के किले तोड़ना उनके प्रिय खेल थे। महाराष्ट्र की कुलदेवी भवानी लक्ष्मीबाई की आराध्य थीं।

वीरांगना छबीली का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ तब वह रानी लक्ष्मीबाई बनकर झाँसी आ गई। राजमहल में बधाई के बाजे बजने लगे। उनके विवाह के अवसर पर झाँसी के राजमहल में बधाइयाँ बजीं और खुशियाँ छा गईं। मानो, वह झाँसी में वीर बुंदेलों की कीर्ति बनकर आ गई हो। ऐसा लगा जैसे चित्रा को वीर अर्जुन मिल गया या शिव से भवानी मिली हो।

रानी के विवाह के बाद झाँसी का सौभाग्य जाग गया। महलों में प्रसन्नता का प्रकाश हो गया, किन्तु समय के साथ दुर्भाग्य के बादल भी घिर आए। दुर्भाग्य को तीर चलाने वाले हाथों का चूड़ियाँ पहनना अच्छा नहीं लगा और हाय रानी लक्ष्मीबाई विधवा हो गई। भाग्य को भी उन पर दया नहीं आई। राजा गंगाधर राव नि:संतान मर गए। रानी शोक में डूब गई।

लक्ष्मीबाई विवाह के बाद जब झाँसी में आई तो वहाँ का सौभाग्य जाग गया| महलों में उजाला छा गया। किंतु हथियार उठाने वाले हाथों को चूड़ियाँ कब शोभा देती हैं? दुर्भाग्य को तीर चलाने वाले हाथों का चूड़ियाँ पहनना अच्छा नहीं लगा| राजा की मृत्यु हो गई और रानी विधवा हो गई। भाग्य को भी उन पर दया नहीं आई। राजा गंगाधर राव नि:संतान मर गए। रानी शोक में डूब गई।

झाँसी का दीपक बुझ जाने पर अर्थात राजा के मर जाने पर अंग्रेज गवर्नर लॉर्ड डलहौजी को बड़ी प्रसन्नता हुई, क्योंकि उसे झाँसी का राज्य हड़पने का अच्छा अवसर मिल गया। उसने तुरन्त अपनी फौजें भेज झाँसी के किले पर अपना झंडा फहरा दिया। इस प्रकार उस वारिस रहित झाँसी के राज्य का वारिस ब्रिटिश राज्य बन गया।रानी ने आँसू भरकर देखा कि झाँसी उजड़ रही थी।

जब अंग्रेजों ने झाँसी को अपने राज्य में मिलाया, तब रानी ने उनसे अनेक तरह से विनम्र प्रार्थना की परन्तु सब बेकार रहा। अंग्रेज़ जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में आए तो वे साधारण व्यापारी थे। उस समय वे यहाँ के राजाओं की दया चाहते थे। डलहौजी ने धीरे-धीरे अंग्रेजी शासन का विस्तार किया और धीरे-धीरे परिस्थितियाँ उनके पक्ष में आ गईं| जिन राजाओं और नवाबों से वे तब दया माँगते थे, उन्हीं को अंग्रेजों ने पैरों से ठुकराया है। अब अंग्रेज़ी राज्य की दासी थी और दासी के समान रहने वाली अंग्रेज़ी शासन की विक्टोरिया अब हमारे देश की महारानी बन गई थी यानी अंग्रेजी साम्राज्य पूरे भारत में फ़ैल गया।

अंग्रेजों ने दिल्ली छीन ली और उस पर अपना अधिकार कर लिया। लखनऊ को भी उन्होंने जीत लिया। बिठूर के पेशवा बाजीराव को बंदी बना लिया गया तथा नागपुर पर भी घातक हमला हुआ। इसी प्रकार उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक आदि भी अंग्रेजों के सामने न ठहर सके। सिंध, पंजाब, म्यांमार (बर्मा) आदि का भी पतन हो गया। यही हालत बंगाल और मद्रास (चेन्नई) की भी हुई।

जिन राजाओं के राजपाट छिने उनकी रानियाँ रनिवासों में रो रही थीं और जिन नवाबों की रियासत छिनी उनकी बेगमें भी बहुत दुखी थीं। उनके बहुमूल्य कपड़े और गहने कलकत्ता के बाजार में बिक रहे थे। अंग्रेजी अखबार नीलामी की खबरें सबके बीच पहुँचा रहे थे। नागपुर के जेवरों और लखनऊ के प्रसिद्ध नौलखे हार बाजारों में बिक रहे थे। वे गहने जो औरतों तथा रानियों की शोभा थे, पर्दे की इज्जत थे, दूसरों के हाथों बिक रहे थे।

जब झाँसी पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया तो झाँसी को मुक्त कराने के लिए प्रयास होने लगे। जो कुटिया में रहते थे वे बहुत दुखी थे और महलों में रहने वाले भी अपमानित महसूस कर रहे थे। झाँसी के वीर सैनिकों के मन में अपने वीर पूर्वजों की वीरता का अभिमान भी था। वे अंग्रेजों से बदला लेने के लिए तैयार थे। नाना धुंधूपंत और पेशवा अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए आवश्यक सामान जुटा रहे थे। उनकी बहन छबीली यानी रानी लक्ष्मीबाई ने भी राज्य की स्त्रियों में देवी दुर्गा के रणचंडी रूप को जागृत कर रही थी अर्थात् युद्ध का प्रशिक्षण देकर अपनी सेना में शामिल कर रही थी।  इस प्रकार सभी ने स्वतंत्रता रूपी यज्ञ में सोई हुई ज्योति को जगाने का निश्चय कर लिया था।

अंग्रेजों से अपनी आजादी छीन लेने की बात महलों में आग की तरह फैल रहीं थीं तो साथ ही झोपड़ी यानी गरीब वर्ग में भी अंग्रेजों के प्रति गुस्सा था। आजादी प्राप्त करने का यह जोश, जुनून उनके हृदय से निकल रहा था। झाँसी और दिल्ली जाग चुकी थी तो लखनऊ में भी लोग अंग्रेजी सेना के विरुद्ध तैयार खड़े थे। मेरठ, पटना, कानपुर में आजादी प्राप्त करने की बात सबके दिलों में थी। जबलपुर और कोल्हापुर के लोगों में यह बात भरनी थी यानी उनको भी प्रेरित करना था।

जब स्वतंत्रता रूपी महायज्ञ आरंभ हुआ तो अनेक वीर योद्धाओं ने अपना बलिदान दिया। इनमें नाना धुंधूपंत, ताँतिया, अजीमुल्ला-अहमद शाह मौलवी, कुर कुँवर सिंह जैसे वीर सैनिक थे। आजादी के इस महायज्ञ में कई वीरों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ी। भारत की स्वतंत्रता के इतिहास रूपी आकाश में इनका नाम सूरज-चाँद की तरह हमेशा अमर रहेगा। उनकी इस कुर्बानी, त्याग और बलिदान को अंग्रेज जुर्म अर्थात् अपराध कहते थे।

हम अन्य प्रदेशों की बातें छोड़कर झाँसी के मैदानों का दृश्य देखते हैं, जहाँ लक्ष्मीबाई मर्दो में मर्द बनी खड़ी है अर्थात् मर्दो से बढ़कर वीर योद्धा के रूप में लड़ रही थीं। अंग्रेजों की ओर से लेफ्टिनेंट वॉकर ने अपने जवानों के साथ झाँसी पर हमला किया। रानी ने भी उसका विरोध करने के लिए तलवार खींच ली अर्थात युद्ध की घोषणा कर दी थी। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। धूल से आकाश ढक गया। अंग्रेज सेनापति घायल होकर भाग गया। उसे रानी की वीरता देखकर बहुत आश्चर्य हुआ।

रानी झाँसी लगातार सौ मील की यात्रा करके कालपी आ गई। इतना सफ़र करने के कारण उनका घोड़ा थककर धरती पर गिर पड़ा और तुरन्त मर गया। वहाँ यमुना के किनारे फिर अंग्रेज़ रानी से हार गए। कालपी जीतकर रानी फिर आगे बढ़ी और उसने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। ग्वालियर का राजा सिंधिया अंग्रेज़ों का मित्र था। उसे रानी से पराजित होकर राजधानी छोड़नी पड़ी।

रानी की जीत हुई पर फिर से अंग्रेजों की सेना रानी को घेरती हुई आ पहुँची। इस बार सामने से आ रही टुकड़ी का नेतृत्व जनरल स्मिथ कर रहा था। उधर रानी के साथ उसकी दो सहेलियाँ काना और मंदरा भी आई थीं और उन्होंने युद्ध में बहुतसे शत्रुओं को मारा| परंतु तभी पीछे से यूरोज ने आकर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार रानी दोनों ओर से घिर गई|

लक्ष्मीबाई दोनों ओर से घिर जाने पर भी मार-काट करती हुई आगे बढ़ गई और सेना को पार करती हुई निकल गई। तभी अचानक सामने एक बहुत बड़ा नाला आ गया। रानी के लिए यह एक भारी संकट था। रानी का नया घोड़ा उसे पार न करने के लिए अड़ गया। इतने में पीछा करते हुए अंग्रेज सैनिक आ गए और दोनों ओर से वार पर वार होते चले गए। शेरनी-सी रानी घायल होकर गिर गई और वीरगति को प्राप्त हुई।

रानी स्वर्ग सिधार गई अब उसकी अनोखी सवारी चिता ही थी। तेज-से-तेज मिल गया अर्थात रानी का आत्मरूपी तेज प्रभु के तेज से मिल गया। वह तेज की सच्ची अधिकारी भी थी। अभी वह केवल तेईस वर्ष की थी और तेईस वर्षों में उन्होंने जो वीरता दिखाई उससे लगता है वह मनुष्य नहीं कोई देवता थीं। वह स्वतंत्रता की देवी बनकर हमें जीवित करने आई थीं। वह हमें बलिदान का मार्ग दिखा गईं और जो सीख देनी थी दे गईं।

कवयित्री कहती है कि रानी लक्ष्मीबाई, तुम तो स्वर्ग को जाओ परन्तु स्वतंत्रता आंदोलन  में आपके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आपका यह बलिदान हमें कभी न नष्ट होने वाली आजादी के प्रति सचेत करता रहेगा। इतिहास चाहे कुछ भी न कहे और सच्चाई का गला घोंट दिया जाए| अंग्रेजों द्वारा विजय प्राप्त कर

भी ली जाए या वे झाँसी को गोलों से नष्ट कर दें पर भारतवासी यह बलिदान नहीं भूल सकेंगे। हे रानी! तू अपना स्मारक स्वयं होगी यानी आप तो अपने आप में ही अपनी याद का चिह्न थी।

कठिन शब्दों के अर्थ –

• भृकुटी तानना – क्रोध करना
• गुमी हुई – खोई हुई
• फिरंगी – विदेशी (अंग्रेज़)
• मन में ठानना – पक्का इरादा करना
• हरबोले – हर व्यक्ति के मुँह से
• कृपाण – तलवार
• अवतार – विशेष रूप से जन्म लेना
• पुलकित – प्रसन्न
• व्यूह-रचना – मोर्चा बनाना
• दुर्ग तोड़ना – किला तोड़ना
• खिलबाड़ – खेल
• भवानी  -पार्वती
• सुमट – अच्छे वीर
• विरुदावलि – प्रशंसा की कहानी
• उदित हुआ – जगा
• मुदित – प्रसन्न
• कालगति – मृत्यु की चाल
• काली घटा घेर लाना – मुसीबतें आना
• अश्रुपूर्ण – आँसुओं से भरे हुए
• बिरानी – पराई
• अनुनय-विनय – प्रार्थना
• विषम – कठिन
• पैर पसारना – विस्तार करना
• काया पलटना – बदलाव आना
• घात – आक्रमण
• कौन बिसात – क्या औकात
• वज्र नियात – करारी चोट
• बेजार – पीड़ित
• सरेआम – सबके सामने
• नौलखा – बहुमूल्य हार
• रणचंडी – दुर्गा का एक रूप
• आह्वान – पुकारना
• अंतरतम – हृदय
• चेती – जाग्रत हो गई
• लपटें छाना – भयंकर रूप से फैल जाना
• उकसाना – प्रेरित करना
• अभिराम – सुन्दर
• मुँह की खाना – हारना,
• वीर गति पाना – युद्ध में शहीद होना
• दिव्य – अलौकिक
• मदमाती – मस्त करने वाली
• अमिट – न मिटने वाली।

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Chapter 9 टिकट अलबम Notes for Class 6 Hindi Vasant

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार – टिकट-अलबम वसंत भाग – 1

राजप्पा और नागराजन दोनों सहपाठी थे। राजप्पा के पास डाक-टिकटों का एक सुन्दर अलबम था। उसके अलबम की लड़कों में काफ़ी तारीफ़ रही थी। परन्तु जब से नागराजन के मामा ने सिंगापुर से उसके लिए अलबम भेज था तब से राजप्पा के अलबम को कोई नहीं पूछता था। नागराजन अपना अलबम सबको दिखाता था पर किसी को छूने नहीं देता। लड़कियों द्वारा माँगे जाने पर नागराजन ने अलबम पर कवर चढ़ाकर दिया। शाम तक देखने के बाद उसने अलबम वापस ले लिया।

काफ़ी मेहनत से तैयार की गई राजप्पा के अलबम के कोई तारीफ़ नहीं करता। कई सहपाठी उसके अलबम की तुलना नागराजन के अलबम से कर राजप्पा के अलबम को फिसड्डी बताते। राजप्पा ने नागराजन के अलबम को देखने की कभी इच्छा प्रकट नहीं की।

अब राजप्पा मन ही मन कुढ़ने लगा था। लड़कों के सामने जाने में शर्म आने लगा था। पहले वो टिकट की खोज में घूमा करता था परन्तु अब घर में रहने लगा। उसे नागराजन के अलबम से चिढ़ होने लगी थी। वह नागराजन के घर की तरफ़ चल पड़ा। राजप्पा ने सोच लिया था कि वह अपने फ़ालतू टिकट से नागराजन के अच्छे टिकट बदल लेगा। उसे अपने पर विश्वास था चूँकि उसने पहले भी ऐसा कई बार किया था।

वह नागराजन के घर पहुँचकर ऊपर चला गया। थोड़ी देर बाद नागराजन की बहन कामाक्षी ऊपर आई। उसने बताया नागराजन शहर गया है। उसने भी अपने भाई के अलबम की तारीफ़ की। कामाक्षी थोड़ी देर बाद नीचे चली गई। राजप्पा ने नागराजन के अलबम को चुरा लिया और अपने घर में जाकर अलमारी की पीछे छुपा दिया।

रात को एक सहपाठी आया जिसने उसे बताया कि नागराजन का अलबम चोरी हो गया। उस रात उसे नींद नहीं आयी। सुबह को वह सहपाठी दोबारा आया और राजप्पा को बताया कि शायद नागराजन पुलिस में जाएगा। उसके पापा डी.एस.पी के दफ़्तर में काम करते हैं।

राजप्पा के पापा दफ़्तर चले गए। राजप्पा बिस्तर पर बैठा था। दरवाजे पर दस्तक हुई। राजप्पा घबरा गया, उसे लगा पुलिस आयी है। पकड़े जाने के डर से उसने नागराजन के अलबम को अँगीठी में डाल कर जला दिया। तभी अम्मा की आवाज़ आयी कि नागराजन उससे मिलने आया है। नागराजन ने राजप्पा को बताया कि उसका अलबम चोरी हो गया है। नागराजन बहुत मायूस था। राजप्पा ने उसे अपना अलबम देकर कहा कि वह उसे रख ले। नागराजन ने सोचा वह मज़ाक कर रहा है परन्तु राजप्पा बार-बार वही बात कर रहा था। जब नागराजन राजप्पा का अलबम ले जाने लगा तब राजप्पा ने कहा कि वह उसे रातभर देखना चाहता है, सुबह वह उसे लौटा देगा।

कठिन शब्दों के अर्थ

• चबेना – चबाने के लिए भुने हुए चने आदि
• अगुवा – नेता
• पगडंडी – पैदल चलने से बना रास्ता
• टीपना – नकल लगाकर लिखना
• घुड़की देना – धमकाना
• बघारना – अपनी होशियारी दिखाने के लिए किसी बात की चर्चा करना
• कोरस – एक साथ मिलकर गाना
• खलना – बुरा लगना
• साँकल खटकी – कुंडी की आवाज आना
• साँस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रहना – घबरा जाना
• आग में घी डालना – गुस्से या चिंता आदि को और बढ़ाना
• चेहरा उतरा हुआ होना – निराश होना

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Chapter 8 ऐसे ऐसे Notes for Class 6 Hindi Vasant

ऐसे-ऐसे’ एकांकी विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित है। इस पाठ में नाटककार ने एक ऐसे बच्चे के नाटक को दिखाया है जो छुट्टी के दिनों में अपना गृहकार्य नहीं बना पाने पर बिमारी का बहाना करता है ताकि वह स्कूल जाने से बच जाए।

पात्र परिचय

• मोहन – एक विद्यार्थी
• दीनानाथ – एक पड़ोसी
• मोहन की माँ
• मोहन की पिताजी
• मोहन की मास्टरजी
• वैध
• पड़ोसिन
• डॉक्टर

सार

मोहन कमरे में बेड पर लेटा बार बार पेट  पकड़ कर कराह रहा है। बगल में बैठी उसकी माँ गरम पानी का बोतल से पेट सेंक रहीं है। वह मोहन के पिता से पूछती हैं कि उसने कुछ ख़राब चीज़ तो नहीं खायी है। पिता तसल्ली देते हुए कहते हैं कि मोहन ने केवल केला और संतरा खाया है। दफ़्तर से ठीक ही आया था, बस अड्डे पर अचानक बोला – पेट में ‘ऐसे-ऐसे’ हो रहा है।

माँ पिता से पूछती हैं कि डॉक्टर अभी तक क्यों नहीं आया। माँ पिता को बताती हैं कि हींग, चूरन, पिपरमेंट दे चुकीं हैं परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। तभी फ़ोन की घंटी बजती है। पिता फ़ोन रखने के बाद बताते हैं कि डॉक्टर साहब आ रहे हैं।

थोड़ी देर बाद वैध जी आते हैं। वे मोहन की नाड़ी छूकर बताते हैं कि उसके शरीर में वायु बढ़ने के कारण ऐसा हो रहा है। वह बताते हैं कि उसे कब्ज़ है, कुछ पुड़िया खाने के बाद ठीक हो जाएगा। वैध जी के जाने के बाद डॉक्टर साहब आ जाते हैं। वे मोहन की जीभ को देखते हैं और बताते हैं कि उसे बदहजमी है। वह दवाई भेजने की बात करते हुए निकल जाते हैं।

डॉक्टर के जाने के बाद पड़ोसिन आती है। वह मोहन की माँ को नयी-नयी बीमारियों के बारे में बताती है। उसी वक़्त मोहन के मास्टरजी भी आ जाते हैं। वह मोहन का हाल पूछते हैं। मास्टरजी समझ जाते हैं कि मोहन ने गृहकार्य पूरा नहीं किया है इसलिए वह बिमारी का बहाना कर रहा है। मास्टरजी सभी को बताते हैं कि मोहन ने महीने भर मस्ती की जिसके कारण उसका स्कूल का कार्य पूरा नहीं हुआ इसलिए उसने यह बिमारी का बहाना किया। मास्टरजी मोहन को दो दिन का वक़्त देते हैं और कार्य पूरा करने के लिए कहते हैं। माँ यह बात सुनकर दांग रह जाती है। पिताजी के हाथ से दवा की शीशी गिरकर टूट जाती है। सभी लोग हँस पड़ते हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ

• हवाइयॉ उड़ना – घबराना

• अंट शंट – ऐसी – वैसी चीजे

• गड़  गड़ – गुड़ – गुड़ की आवाज

• भला चंगा – स्वस्थ

• चेरा सफेद होना – परेशान करना

• बला – मुसीबत

• वात – शरीर में रहने वाली वायु के बढ़ने का रोग

• गुलजार – चहल पहल वाला

• बदहजमी – अपच

• छका देना – परेशान करना

• जान निकलना – बहुत डर जाना / परेशान होना

• पेट में दाढ़ी होना – बहुत होशियार होना

• अट्टहास – जोर की हँसी

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Chapter 7 साथी हाथ बढ़ाना Notes for Class 6 Hindi Vasant

सार

‘साथी हाथ बढ़ाना’ गीत साहिर लुधियानवी द्वारा लिखा गया है। यह गीत ‘नया दौर’ फिल्म के लिए लिखा गया था। यह गीत आजादी के कुछ समय बाद लिखा गया था जब देश का निर्माण हो रहा था। यह गीत हमें मिल-जुलकर कर काम करने को प्रेरित करता है। कवि ने इस गीत में बताया है कि जब-जब मनुष्य ने मिलकर काम किया है, तब-तब उसने हर मुश्किल को आसानी से पार किया है। कवि के अनुसार सुख-दुःख का चक्र जीवन में हमेशा आता रहता है। हमें हर परिस्थिति में हमेशा अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहना चाहिए। दुनिया में हर बड़ा चीज़ छोटे-छोटे चीजों से मिलकर ही बना है।

साथी हाथ बढ़ाना … आज अपनी खातिर करना।

व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि ने लोगों को साथ मिलकर काम करने को प्रेरित किया है। एक अकेला काम करते-करते थक जाएगा इसलिए भारत के निर्माण में सभी को हिस्सेदार बनने के लिए कहा है। भारतीयों का हौसला अफजाई करने के लिए कवि ने बताया है कि जब भी लोगों ने एकता के साथ काम किया तब समुद्र ने अपना रास्ता छोड़ मदद की है तथा पर्वत ने भी उनके सामने अपना सिर झुकाकर उन्हें जगह दी है। कवि के अनुसार हमारी बाहें और सीना फौलाद से बना है जिससे हम  मुश्किल काम कर सकने की क्षमता रखते हैं। कवि ने याद दिलाते हुए कहा कि हमने पहले भी गैरों (ब्रिटिश) के लिए काम किया है और आज हमें खुद आजाद भारत का निर्माण करना है।

अपना दुःख भी एक है साथी … साथी हाथ बढ़ाना।

व्याख्या: इन पंक्तियों में कवि ने सुख-दुःख को लोगों का साथी बताया है चूँकि इनका क्रम जीवन में हमेशा चलता रहता है। हमें दुःख में घबराना नहीं चाहिए वहीं सुख में ज्यादा उत्साहित भी नहीं होना चाहिए और अपनी मंजिल को ओर सदा कदम बढ़ाते रहना चाहिए।

कवि ने एकता की ताकत को स्पष्ट करते हुए बताया है कि एक-एक बूँद के मिलने से ही दरिया बनता है। छोटे-छोटे अंशों को मिलाकर सेहरे का निर्माण होता है। छोटे राई के दानों से पर्वत बन जाता है उसी प्रकार अगर हर व्यक्ति एक-दूसरे से मिलकर काम करे तो किस्मत को भी पलट कर उसे सुनहरा रूप दिया जा सकता है। इसीलिए हमें मिल-जुलकर काम करना चाहिए।

कठिन शब्दों के अर्थ

• फौलादी – मजबूत

• राहे – रास्ते

• लेख की रेखा – भाग्य में लिखा होना

• गैर – पराए

• कतरा – बूँद

• ज़र्रा  – कण

• इंसाँ – मनुष्य  

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Chapter 6 पार नज़र के Notes for Class 6 Hindi Vasant

पार नज़र के पाठ का सारांश

पार नज़र के कहानी जयंत विष्णु नार्लीकर जी द्वारा लिखा गया है ,जिसमें आपने रोमांचकारी ढंग से मंगल गृह के जीवन के बारे में बताया है। कथा की शुरुवात में बताया गया है कि छोटू नाम के लड़के ने अपने पापा के सिकुरित्य्य पास को ले लिया और सुरंग के रास्ते जाने लगा ,लेकिन वह पकड़ा गया और वापस फिर घर भेज दिया गया। छोटू के पापा इन्ही सुरंगनुमा जगहों जगहों पर काम करते थे। छोटू सुरंगनुमा जगह पर इसीलिए पकड़ा गया क्योंकि निरीक्षक यंत्र में संदेहास्पद स्थिति दर्ज हो गयी है। छोटू के पापा न होते ,तो छोटू का बचना मुश्किल था। घर पहुँच कर छोटू के ऊपर बहुत डांट पड़ी। पापा ने माँ के गुस्से से बचा लिया। पापा ने छोटू को समझाया कि सुरंगनुमा जगह को पार कर धरती के ऊपर जाया जाता है। उसके लिए ख़ास तरह के स्पेस शूट की जरुरत होती है। पापा कहने लगे कि एक समय था जब मंगल ग्रह पर सभी लोग जमीन पर ही रहते थे। लेकिन वातावरण में परिवर्तन आने से कई तरह के जीवन जो धरती पर रहा करते थे ,मरने लगे। सूरज में परिवर्तन होते ही वहां का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगा। ऐसी पारिस्थितियों का सामना करने के लिए पशु पक्षी ,पेड़ पौधे आदि सभी अक्षम साबित हुए। केवल तकनीकी ज्ञान के आधार पर वे जमीन के नीचे बना पाए। अतः यंत्रों के सहारे जीवन चलता है। उन्ही यंत्रों की मरम्मत करने के लिए मुझे जाना पड़ता है। यह सुनकर छोटू भी चहक उठा और कहने लगा कि बड़ा होकर मैं आपकी तरह बनूँगा। यह सुनकर माँ ने कहा कि इसके लिए तुम्हे पढना पड़ेगा। दूसरे दिन जब छोटू के पापा काम पर गए तो उन्हें पता चला कि मंगल ग्रह की तरफ दो यान बढ़ते चले आ रहे है। ऐसी आपदा की स्थिति में कॉलोनी की प्रबंध समिति की सभा बुलाई गयी। अध्यक्ष ने बताया कि किसी अन्य ग्रह से अन्तरिक्ष यान चले आ रहे है। सभी लोगों ने सलाह मशविरा कर बताया कि कुछ ऐसा प्रबंध किया जाए ,जिससे इन यानों में लगे यंत्रों को इस धरती की कोई चीज़ महत्वपूर्ण  हाथ न लगे। सभा चल ही रही थी कि अन्तरिक्ष यान धरती पर उतर चुका है। अन्तरिक्ष यान से एक यांत्रिक हाथ बाहर निकला ,जिसकी लम्बाई हर पल बढती जा रही थी। तभी छोटू ने कंसोल का लाल बटन दबा दिया ,जिससे यान के यांत्रिक हाथ का हिस्सा बिगड़ गया। इससे छोटू के पापा गुस्सा हो गए। सभी लोगों की नज़र लाल बटन पर गयी जिसे पुनः स्थिति में लाया गया। तब तक अन्तरिक्ष यान के यांत्रिक हाथ की स्थिति बिगड़ गयी थी। यंत्र बेकार हो गया था। 

कुछ दिनों बाद पृथ्वी के प्रमुख अखबारों में यह खबर छपी कि मंगल की धरती पर उतरा हमारा यान वाइकिंग अपना निर्धारित कार्य कर रहा है। लेकिन  किसी अज्ञात कारणवश उसमें खराबी आ गयी है ,जिसे दुरुस्त कर लिया जाएगा। आज भी पृथ्वी पर रहस्य बना हुआ है कि क्या मंगल ग्रह पर भी पृथ्वी की ही तरह जीवन है या नहीं। 

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