पाठ 12 लखनवी अंदाज़ | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions For Class 10 Hindi Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न 1.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक यशपाल ने यात्रा करने के लिए सेकंड क्लास का टिकट क्यों खरीदा?
उत्तर-

लेखक यशपाल ने यात्रा करने के लिए सेकंड क्लास का टिकट इसलिए खरीदा, क्योंकि

  • उन्हें अधिक दूरी की यात्रा नहीं करनी थी।
  • वे भीड़ से बचकर एकांत में यात्रा करते हुए नई कहानी के बारे में सोचना चाहते थे।
  • वे खिड़की के पास बैठकर प्राकृतिक दृश्य का आनंद उठाना चाहते थे।
  • सेकंड क्लास का कम दूरी का टिकट बहुत महँगा न था।

प्रश्न 2.
लेखक के डिब्बे में आने पर नवाब ने कैसा व्यवहार किया?
उत्तर-

लेखक जब डिब्बे में आया तो उसका आना नवाब साहब को अच्छा न लगा। उन्होंने लेखक से मिलने और बात करने का उत्साह न दिखाया। पहले तो नवाब साहब खिड़की से बाहर कुछ देर तक देखते रहे और फिर डिब्बे की स्थिति पर निगाहें दौडाने लगे। उनका यह उपेक्षित व्यवहार लेखक को अच्छा न लगा।

प्रश्न 3.
खीरे को खाने योग्य बनाने के लिए नवाब साहब ने क्या-क्या किया और उन्हें किस तरह सजाकर रखा? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर-

नवाब साहब ने खीरे को खाने योग्य बनाने के लिए पहले उसे अच्छी तरह धोया फिर तौलिए से पोछा। अब उन्होंने चाकू निकालकर खीरों के सिरे काटे और गोदकर झाग निकाला। फिर उन्होंने खीरों को छीला और फाँकों में काटकर करीने से सजाया।

प्रश्न 4.
नवाब साहब द्वारा लेखक से बातचीत की उत्सुकता न दिखाने पर लेखक ने क्या किया?
उत्तर-

नवाब साहब ने लेखक से बातचीत की उत्सुकता उस समय नहीं दिखायी जब वह डिब्बे में आया। लेखक ने इस उपेक्षा का बदला उपेक्षा से दिया। उसने भी नवाब साहब से बातचीत की उत्सुकता नहीं दिखाई और नवाब साहब की ओर से आँखें फेर लिया। यह लेखक के स्वाभिमान का प्रश्न था, जिसे वह बनाए रखना चाहता था।

प्रश्न 5.
खीरे की फाँकें खिड़की से फेंकने के बाद नवाब साहब ने गुलाबी आँखों से लेखक की ओर क्यों देखा?
उत्तर-

खीरे की फाँकें एक-एककर उठाकर सँधने के बाद नवाब साहब खिड़की से बाहर फेंकते गए। उन्होंने डकार ली और लेखक की ओर गुलाबी आँखों से इसलिए देखा क्योंकि उन्होंने लेखक को दिखा दिया था नवाब खीरे को कैसे खाते हैं। अपनी नवाबी का प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने खीरा खाने के बजाय फेंक दिया था।

प्रश्न 6.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़का जिसे देखकर लेखक ललचाया पर उसने खीरे खाने का प्रस्ताव अस्वीकृत क्यों कर दिया?
उत्तर-

नवाब साहब ने करीने से सजी खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़ककर लेखक से खाने के लिए आग्रह किया तो लेखक ने साफ़ मना कर दिया। जबकि लेखक खीरे खाना चाहता था। इसका कारण यह था लेखक पहली बार नवाब साहब को खीरा खाने के लिए मना कर चुका था।

प्रश्न 7.
बिना खीरा खाए नवाब साहब को डकार लेते देखकर लेकर क्या सोचने पर विवश हो गया?
उत्तर-

लेखक ने देखा कि नवाब साहब ने खीरों की फाँकों का रसास्वादन किया उन्हें मुँह के करीब ले जाकर सूंघा और बाहर फेंक दिया। इसके बाद नवाब साहब को डकार लेता देखकर लेखक यह सोचने पर विवश हो गया कि क्या इस तरह सँघने मात्र से पेट भर सकता है।

प्रश्न 8.
सेकंड क्लास के डिब्बे में लेखक के अचानक आ जाने से नवाब साहब के एकांत चिंतन में विघ्न पड़ गया? उनके चिंतन के बारे में लेखक ने क्या अनुमान लगाया?
उत्तर-

सेकंड क्लास के जिस डिब्बे में नवाब साहब अब तक अकेले बैठे थे वहाँ अचानक लेखक के आ जाने से उनके एकांत चिंतन में विघ्न पड़ गया। उसके बारे में लेखक ने यह अनुमान लगाया कि ये भी शायद किसी कहानी के लिए नई सूझ में होंगे या खीरे जैसी साधारण वस्तु खाने के संकोच में पड़ गए होंगे।

प्रश्न 9.
लेखक और नवाब साहब की प्रथम मुलाकात का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-

लेखक और नवाब साहब की प्रथम मुलाकात पैसेंजर ट्रेन के सेकंड क्लास के डिब्बे में हुई जहाँ नवाब साहब पहले से पालथी लगाए बैठे थे। लेखक का यूँ अचानक आ जाना नवाब साहब को तनिक भी अच्छा न लगा। उन्होंने लेखक की ओर न देखकर डिब्बे से बाहर देखना शुरू कर दिया। लेखक ने अपना स्वाभिमान बनाए रखते हुए उनसे बात करने की पहल नहीं की।

प्रश्न 10.
सेकंड क्लास के डिब्बे की उन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिनके कारण लेखक और नवाब साहब दोनों ने उसे यात्रा के लिए चुना।
उत्तर-

लेखक और नवाब साहब दोनों ने ही अपनी यात्रा के लिए सेकंड क्लास के डिब्बे को चुना। उस डिब्बे की विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं

  • सेकंड क्लास का डिब्बा अधिक सुविधाओं से युक्त होता है।
  • इसका किराया अधिक होता है, अतः इसमें कम यात्री सफ़र करते हैं।
  • इसमें भीड़-भाड़ नहीं होती है।
  • ये डिब्बे अधिकांशतः खाली ही रहते हैं।

प्रश्न 11.
नवाब साहब के व्यवहार में अचानक कौन-सा बदलाव आया और क्यों?
उत्तर-

सेकंड क्लास के डिब्बे में जैसे ही लेखक चढ़ा, सामने एक सफ़ेदपोश सज्जन को बैठे पाया। लेखक का यूँ आना उन्हें अच्छा न लगा और वे खिड़की से बाहर देखने लगे पर अचानक ही उनके व्यवहार में बदलाव आ गया। उन्होंने लेखक से खीरा खाने के लिए कहा। ऐसा करके वे अपनी शराफ़त का नमूना प्रस्तुत करना चाहते थे।

प्रश्न 12.
लेखक ने ऐसा क्या देखा कि उसके ज्ञान चक्षु खुल गए?
उत्तर-

लेखक ने देखा कि नवाब साहब खीरे की नमक-मिर्च लगी फाँकों को खाने के स्थान पर सँघकर खिड़की के बाहर फेंकते गए। बाद में उन्होंने डकार लेकर अपनी तृप्ति और संतुष्टि दर्शाने का प्रयास किया। यही देखकर लेखक के ज्ञान-चक्षु खुल गए कि इसी तरह बिना घटनाक्रम, पात्र और विचारों के कहानी भी लिखी जा सकती है।

प्रश्न 13.
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर-

‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक के मूल में व्यंग्य निहित है। इस कहानी में वर्णित स्थान लखनऊ के आसपास का प्रतीत होता है। इसके अलावा नवाब साहब की शान, दिखावा, रईसी का प्रदर्शन, नवाबी ठसक, नज़ाकत आदि सभी लखनऊ के उन नवाबों जैसी है, जिनकी नवाबी कब की छिन चुकी है पर उनके कार्य व्यवहार में अब भी इसकी झलक मिलती है। पाठ को पूरी तरह अपने में समेटे हुए यह शीर्षक ‘लखनवी अंदाज़’ पूर्णतया सार्थक एवं उपयुक्त है।

प्रश्न 14.
लखनवी अंदाज़’ पाठ में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘लखनवी अंदाज’ नामक पाठ के माध्यम से लेखक यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपना व्यावहारिक दृष्टिकोण विस्तृत करते हुए दिखावेपन से दूर रहना चाहिए। हमें वर्तमान के कठोर यथार्थ का सामना करना चाहिए तथा काल्पनिकता को छोड़कर वास्तविकता को अपनाना चाहिए जो हमारे व्यवहार और आचरण में भी दिखना चाहिए।

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पाठ 11 बालगोबिन भगत | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर-

बालगोबिन भगत बेटा-पतोहू से युक्त परिवार, खेतीबारी और साफ़-सुथरा मकान रखने वाले गृहस्थ थे, फिर भी उनका आचरण साधुओं जैसा था। वह सदैव खरी-खरी बातें कहते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे। वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे। वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे। वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।

प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर-

भगत की पुत्रवधू उन्हें इसलिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि भगत के इकलौते पुत्र और उसके पति की मृत्यु के बाद भगत अकेले पड़ गए थे। स्वयं भगत वृद्धावस्था में हैं। वे नेम-धर्म का पालन करने वाले इंसान हैं, जो अपने स्वास्थ्य की तनिक भी चिंता नहीं करते हैं। वह वृद्धावस्था में अकेले पड़े भगत को रोटियाँ बनाकर देना चाहती थी और उनकी सेवा करके अपना जीवन बिताना चाहती थी।

प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उत्तर-

भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर औरों की तरह शोक और मातम नहीं मानाया। वे मृत बेटे के सामने बैठकर मस्ती और तल्लीनता में कबीर के पद गाते रहे। वे मृत्यु को आत्मा-परमात्मा का मिलन मानकर इससे दुखी होने के बजाय खुश होने का समय मान रहे थे। वे अपनी पुत्रवधू को भी आनंदोत्सव मनाने के लिए कहते जा रहे थे।

प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा को अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-

बालगोबिन भगत साठ वर्ष से अधिक उम्र वाले गोरे-चिट्टे इंसान थे। उनके बाल सफ़ेद हो चुके थे। उनका चेहरा सफ़ेद बालों से जगमगाता रहता था। कपड़ों के नाम पर उनके शरीर पर एक लँगोटी और सिर पर कनफटी टोपी धारण करते थे बालगोबिन भगत और गले में तुलसी की बेडौल माला पहने रहते थे। उनके माथे पर रामानंदी टीका सुशोभित होता था। सरदियों में वे काली कमली ओढ़े रहते थे।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर-

बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के लिए कुतूहल का कारण थी। वे अत्यंत सादगी, सरलता और नि:स्वार्थ भाव से जीवन जीते थे। उनके पास जो कुछ था, उसी में काम चलाया करते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे उपयोग में न लाते थे। इस नियम का वे इतना बारीकी से पालन करते कि दूसरे के खेत में शौच के लिए भी न बैठते थे। इसके अलावा दाँत किटकिटा देने वाली सरदियों की भोर में खुले आसमान के नीचे पोखरे पर बैठकर गाना, उससे पहले दो कोस जाकर नदी स्नान करने जैसे कार्य लोगों के आश्चर्य का कारण थी।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-

बालगोबिन भगत सुमधुर कंठ से इस तरह गाते थे कि कबीर के सीधे-सादे पद भी उनके मुँह से निकलकर सजीव हो उठते थे। उनके गीत सुनकर बच्चे झूम उठते थे, स्त्रियों के होंठ गुनगुनाने लगते थे और काम करने वालों के कदम लय-ताल से उठने लगते थे। इसके अलावा भादों की अर्धरात्रि में उनका गान सुनकर उसी तरह चौंक उठते थे, जैसे अँधेरी रात में बिजली चमकने से लोग चौंक कर सजग हो जाते हैं।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक बालगोबिन भगत को गृहस्थ साधु क्यों मानता है? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

बालगोबिन भगत घर-परिवार वाले आदमी थे। उनके परिवार में उनका बेटा और पतोहू थे। उनके पास खेतीबारी और साफ़ सुथरा मकान था। इसके बाद भी बालगोबिन भगत साधुओं की तरह रहते और साधु की सारी परिभाषाओं पर खरा उतरते थे, इसलिए लेखक ने भगत को गृहस्थ साधु माना है।

प्रश्न 2.
‘भगत अपनी सब चीज़ साहब की मानते थे’, उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

बालगोबिन भगत अपनी सब चीज़ साहब की मानते थे, इसका उदाहरण यह है कि उनके खेत में जो कुछ पैदा होता था, उसे सिर पर लादकर ‘साहब’ के दरबार में ले जाते थे। उस दरबार अर्थात् मठ में उसे भेंट स्वरूप रख लिया जाता और उन्हें जो कुछ प्रसाद स्वरूप दिया जाता, उसी में गुज़ारा करते थे।

प्रश्न 3.
लेखक बालगोबिन भगत को गृहस्थ साधु मानता था पर वह भगत के किस अन्य गुण पर मुग्ध था और क्यों?
उत्तर-

लेखक भगत को गृहस्थ साधु मानता था पर वह भगत के मधुर गान पर मुग्ध था, जिसे कोई भी सदा-सर्वदा सुन सकता था। वे कबीर के सीधे-सादे पदे गाते थे पर उनके कंठ से लय-तालबद्ध होकर जब निकलते तो सजीव हो उठते थे।

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत के संगीत को जादू क्यों कहा गया है?
उत्तर-

बालगोबिन भगत का संगीत हर आयुवर्ग के लोगों पर समान रूप से असर करता था। उनका स्वर अचानक एक मधुर स्वर तरंग झंकृत-सी हो उठती है। उनके मधुर गान को सुनकर बच्चे झूम उठते थे, मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ गुनगुना उठते थे, हलवाहों के पैर ताल से उठने से लगते थे और रोपनी करने वालों की अँगुलियाँ क्रम से चलने लगती थीं।

प्रश्न 5.
भगत प्रभातियाँ किस महीने में गाया करते थे? उनके प्रभाती गायन का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

भगत प्रभातियाँ कार्तिक से फाल्गुन महीने तक गाया करते थे। इन महीनों में वे कड़ाके की सरदी में तड़के भोर में उठ जाते थे। वे नदी स्नान को जाते और लौटते समय पोखर के भिंडे पर चटाई बिछाकर पूरब की ओर मुँह करके प्रभातियाँ टेरना शुरू कर देते। गाते-गाते इतने सुरूर और उत्तेजना से भर जाते कि श्रमबिंदु छलक उठते थे।

प्रश्न 6.
भगत का आँगन नृत्य-संगीत से किस तरह ओत-प्रोत हो उठता था?
उत्तर-

गरमियों में भगत और उनकी प्रेमी मंडली आँगन में आसन जमाकर बैठ जाते। वहाँ पुँजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। बालगोबिन एक पद गाते, प्रेमी-मंडली उसे दोहराती-तिहराती। धीरे स्वर एक निश्चित लय, ताल और गति से ऊँचा होने लगता और गाते-गाते भगत नाचने लगते। इस प्रकार सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत हो जाती।

प्रश्न 7.
भगत अपने सुस्त और बोदे से बेटे के साथ कैसा व्यवहार करते थे और क्यों?
उत्तर-

बालगोबिने भगत का इकलौता बेटा कुछ सुस्त और बोदा-सा था। भगत का मानना था कि ऐसे लोगों पर ज्यादा निगरानी रखते हुए प्यार करना चाहिए क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। इस कारण भगत अपने उस बेटे को अधिक प्यार करते थे।

प्रश्न 8.
पुत्र की मृत्यु के अवसर पर भगत अपनी पतोहू को परंपरा से हटकर कौन-सा कार्य करने को कह रहे थे और क्यों?
उत्तर-

पुत्र की मृत्यु के अवसर पर भगत तल्लीनता से गाए जा रहे थे और उनकी पतोहू विलाप कर रही थी। इसी समय भगत अपनी पतोहू से रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। भगत ऐसा इसलिए कह रहे थे क्योंकि उनका मानना था कि मृत्यु | खुशी का अवसर है। इस समय आत्मा और परमात्मा का मिलन हो जाता है।

प्रश्न 9.
भगत की किस दलील के आगे उनकी पतोहू की एक न चली?
उत्तर-

भगत ने अपने बेटे की श्राद्ध की अवधि खत्म होते ही अपनी पतोहू के भाई को बुलवाया और आदेश दिया कि इसकी। दूसरी शादी कर देना। भगत की पतोहू उनके बुढ़ापे का ध्यान रखकर उन्हें छोड़कर नहीं जाना चाहती थी, पर भगत ने कहा कि यदि तू न गई तो मैं घर छोड़कर चला जाऊँगा। इस दलील के आगे उसकी एक न चली।

प्रश्न 10.
भगत की मृत्यु उन्हीं के अनुरूप हुई, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

जिस तरह के टेक और नेम-व्रत वाली भगत की दिनचर्या थी, उसी प्रकार उनकी मृत्यु हुई। वे अपने गायन के माध्यम से अपने साहब की निकटता पाना चाहते थे। ऐसा उन्होंने मृत्यु से पूर्ण सायंकाल तक गीत गाकर किया। इसके अलावा वे जीवन में दोनों समय स्नान-ध्यान करते थे। इसे उन्होंने आमरण निभाया। इस तरह हम कह सकते हैं कि भगत की मृत्यु । उन्हीं के अनुरूप हुई।

प्रश्न 11.
बालगोबिन भगत ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए क्या किया?
उत्तर-

बालगोबिन भगत ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए दो कार्य किया

  • उन्होंने अपने पुत्र को अपनी पतोहू से मुखाग्नि दिलाकर महिलाओं को पुरुषों के बराबर लाने का प्रयास किया।
  • अपने पुत्र की मृत्यु ने पतोहू के भाई को बुलवाकर आदेशात्मक स्वर में कहा, ”इसकी दूसरी शादी कर देना”। इस
    प्रकार विधवा विवाह के माध्यम से उन्होंने नारियों की सामाजिक स्थिति को सुधारना चाहा।।

प्रश्न 12.
बालगोबिन भगत अपने साधु और गृहस्थ होने का स्वाभिमान कैसे बनाए रखते थे? उनकी गंगा-स्नान यात्रा के आलोक में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

बालगोबिन भगत प्रति वर्ष अपने घर से तीस कोस दूर गंगा स्नान को जाते थे। इस यात्रा में चार-पाँच दिन लग जाते थे। भगत इतने स्वाभिमानी थे कि पैदल आते-जाते किंतु किसी का सहारा न लेते। वे मानते थे कि साधु को संबल लेने का के या हक। इसी प्रकार वे रास्ते में उपवास कर लेते पर किसी से माँगकर न खाते क्योंकि वे कहते थे कि गृहस्थ किसी से भिक्षा क्यों माँगे। इस प्रकार उन्होंने साधु और गृहस्थ होने के स्वाभिमान को बनाए रखा।

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पाठ 10 नेताजी का चश्मा | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरपालिका द्वारा किसकी मूर्ति को कहाँ लगवाने का निर्णय लिया गया?
उत्तर-

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति को नगरपालिका द्वारा लगवाने का निर्णय लिया गया। इस मूर्ति को कस्बे के बीचोबीच चौराहे पर लगवाने का फैसला किया गया। ताकि हर आने-जाने वाले की दृष्टि उस पर पड़ सके।

प्रश्न 2.
जिस कस्बे में मूर्ति लगवाई जानी थी उसका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-

जिस कस्बे में नेताजी की मूर्ति लगवाई जानी थी, वह बहुत बड़ा नहीं था। वहाँ कुछ मकान पक्के थे। एक छोटा-सा बाज़ार था। वहीं, लड़के-लड़कियों का एक स्कूल, सीमेंट का एक छोटा कारखाना, दो ओपन एअर सिनेमाघर और नगरपालिका थी।

प्रश्न 3.
मूर्ति बनवाने का कार्य स्थानीय ड्राइंग मास्टर को क्यों सौंपना पड़ा?
उत्तर-

मूर्ति बनवाने का कार्य स्थानीय ड्राइंग मास्टर को इसलिए सौंपना पड़ा क्योंकि अधिकारी ने फाइलों और मूर्ति संबंधी अन्य बातों के निर्णय में बहुत अधिक समय ले लिया। ये अधिकारी अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही मूर्ति बनवाने का काम कर लेना चाहते थे, इसलिए जल्दबाजी में इसे स्थानीय ड्राइंग मास्टर को सौंप दिया।

प्रश्न 4.
नगरपालिका मूर्ति लगवाने में ठोस निर्णय क्यों नहीं ले पा रही थी?
उत्तर-

नगरपालिका मूर्ति के संबंध में ठोस निर्णय इसलिए नहीं ले पा रही थी क्योंकि नगरपालिका को अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी न थी। उन्होंने पत्र व्यवहार में काफ़ी समय निकाल दिया। उन्हें अपना कार्यकाल समाप्त होने का डर सता रहा था। इसके अलावा उन्हें मूर्ति के लिए उपलब्ध बजट भी कम होता दिख रहा था।

प्रश्न 5.
नेताजी की मूर्ति का संक्षिप्त चित्रण कीजिए।
उत्तर-

कस्बे की हृदयस्थली के चौराहे पर नेताजी की जो मूर्ति लगाई गई थी वह टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक दो फुट ऊँची थी। संगमरमर की बनी इस मूर्ति में नेताजी सुंदर लग रहे थे। उन्हें देखते ही उनके नारे याद आने लगते थे।

प्रश्न 6.
नेताजी की मूर्ति में कौन-सी कमी खटकती थी?
उत्तर-

नेताजी की मूर्ति सुंदर थी। वह अपने उद्देश्य में सार्थक सिद्ध हो रही थी। उसे देखते ही नेताजी द्वारा किए गए कार्य याद आने लगते थे, परंतु इस मूर्ति में एक कमी जो खटकती थी वह थी-मूर्ति पर चश्मा न होना। चश्मा न होने से नेताजी का व्यक्तित्व अधूरा-सा प्रतीत होता था।

प्रश्न 7.
मूर्ति की कमी को कौन और किस तरह पूरा करने का प्रयास करता था?
उत्तर-

नेताजी की मूर्ति चश्माविहीन थी। इससे उनका व्यक्तित्व अपूर्ण-सा लगता था। इस कमी को पूरा करने का प्रयास कैप्टन चश्मेवाला करता था। वह नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगा दिया करता था। इस प्रकार वह मूर्ति की कमी और नेताजी के व्यक्तित्व की अपूर्णता को भरने का प्रयास करता था।

प्रश्न 8.
कैप्टन कौन था? उसका व्यक्तित्व नाम के विपरीत कैसे था?
उत्तर-

कैप्टन फेरी लगाकर चश्मे बेचने वाला एक मरियल और लँगड़ा-सा व्यक्ति था, जो हाथ में संदूकची और एक बाँस में चश्मे के फ्रेम टाँगे घूमा करता था। कैप्टन नाम से लगता था कि वह फ़ौजी या किसी सिपाही जैसा शारीरिक रूप से मजबूत रोबीले चेहरे वाला बलिष्ठ व्यक्ति होगा, पर ऐसा कुछ भी न था।।

प्रश्न 9.
कैप्टन मूर्ति के चश्मे को बार-बार क्यों बदल दिया करता था?
उत्तर-

कैप्टन देशभक्त तथा शहीदों के प्रति आदरभाव रखने वाला व्यक्ति था। वह नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति देखकर दुखी होता था। वह मूर्ति पर चश्मा लगा देता था पर किसी ग्राहक द्वारा वैसा ही चश्मा माँगे जाने पर उतारकर उसे दे देता था और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा दिया करता था।

प्रश्न 10.
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश देने का प्रयास किया है?
उत्तर-

‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ के माध्यम से लेखक ने देशवासियों विशेषकर युवा पीढ़ी को राष्ट्र प्रेम एवं देशभक्ति की भावना मजबूत बनाए रखने के साथ-साथ शहीदों का सम्मान करने का भी संदेश दिया है। देशभक्ति का प्रदर्शन देश के सभी नागरिक अपने-अपने ढंग से कार्य-व्यवहार से कर सकते हैं।

प्रश्न 11.
हालदार साहब के लिए कैप्टन सहानुभूति का पात्र था? इसे आप कितना उचित समझते हैं?
उत्तर-

हालदार साहब जब कैप्टन को फेरी लगाते हुए देखते हैं तो उनके मुँह से अनायास निकल जाता है, तो बेचारे की अपनी दुकान भी नहीं है। वे चश्मेवाले की देशभक्ति के कारण उससे सहानुभूति रखते हैं। उनके इस विचार से मैं पूर्णतया सहमत हूँ क्योंकि कैप्टन जैसा व्यक्ति सहानुभूति का पात्र है।

प्रश्न 12.
बच्चों द्वारा मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या प्रदर्शित करता है?
उत्तर-

बच्चों द्वारा मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगाना यह प्रदर्शित करता है कि बच्चों के मन में देश प्रेम और देशभक्ति के बीज अंकुरित हो गए हैं। उन्हें यह ज्ञान हो गया है कि शहीदों और देशभक्तों का आदर करना चाहिए।

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पाठ 9 संगतकार | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9 संगतकार

प्रश्न 1.
संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है?
उत्तर-

संगतकार के माध्यम से कवि उस तरह के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है जो महान और सफल व्यक्तियों की सफलता में परदे के पीछे रहकर अपना योगदान देते हैं। ये लोग महत्त्वपूर्ण योगदान तो देते हैं परंतु ये लोगों की निगाह में नहीं आ पाते हैं और सफलता के श्रेय से वंचित रह जाते हैं। मुख्य गायक की सफलता में साथी गायकों वाद्य कलाकारों, ध्वनि एवं प्रकाश व्यवस्था देखने वाले कलाकारों या कर्मियों का योगदान रहता है पर उन्हें इसका श्रेय नहीं मिल पाता है।

प्रश्न 2.
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
उत्तर-

संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और भी बहुत से क्षेत्रों में होते हैं

  • खेल में जीत का श्रेय कैप्टन को मिलता है जबकि विजेता बनाने में कई खिलाड़ियों का योगदान होता है। इसके अलावा उनके कोच और अन्य अनेक लोगों का योगदान होता है।
  • राजनीति के क्षेत्र में चुनाव में जीत केवल उम्मीदवार विशेष की होती है, परंतु उसे विजयी बनाने में छोटे नेताओं के आलावा चुनावी चंदा देने वाले, प्रचार करने वाले जैसे बहुतों का योगदान होता है।
  • सिनेमा के क्षेत्र में फ़िल्म को सफल बनाने में अगणित लोगों का योगदान होता है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में परीक्षाफल बढ़ने का श्रेय अधिकारियों को मिलता है पर उसके लिए अध्यापकगण एवं अन्य कर्मचारियों का अमूल्य योगदान होता है।
  • किसी युद्ध को जीतने में सेनापति के अलावा बहुत से वीरों का योगदान होता है।

प्रश्न 3.
संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?
उत्तर-

संगतकार विभिन्न रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं; जैसे

  • वे मुख्य गायक की भारी आवाज में अपनी सुंदर और कमज़ोर आवाज़ की गूंज मिलाकर गायन को प्रभावपूर्ण बना देते
  • गायक जब अंतरे के जटिल जंगल में खो जाते हैं तो संगतकार ही स्थायी को सँभाले रखकर उनकी मदद करते हैं।
  • तारसप्तक गाते समय संगतकार उसके स्वर में स्वर मिलाकर उसे अकेले होने का अहसास नहीं होने देते हैं।
  • संगतकार मुख्य गायक के स्वर से अपना स्वर ऊँचा न करके उसकी सफलता में बाधक नहीं बनते हैं।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
संगतकार किन्हें कहा जाता है?
उत्तर-

संगतकार उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो मुख्य गायक के सहायक होते हैं। वे मुख्य गायक के स्वर में स्वर मिलाकर उसके गायन को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं। वास्तव में संगतकारों के बिना मुख्य गायक की सफलता की कल्पना नहीं की जा सकती है।

प्रश्न 2.
संगतकार कभी-कभी यूँ ही मुख्य गायक का साथ क्यों देता है?
उत्तर-

संगतकार कभी-कभी यूँ ही मुख्य गायक का साथ इसलिए देता है क्योंकि मुख्य गायक को यह लगे कि वह अकेला नहीं है। उसका साथ देने के लिए संगतकार भी है। ऐसा करके वह मुख्य गायक के उत्साह को कम नहीं होने देता है।

प्रश्न 3.
तारसप्तक गाते समय मुख्य गायक को क्या-क्या परेशानियाँ होती हैं?
उत्तर-

तारसप्तक सात स्वरों का समूह होता है जिनकी ध्वनियाँ साधारण, मध्यम और मंद होती हैं। इन सुरों को ऊँचा-नीचा या मध्यम बनाए रखने के क्रम में मुख्य गायक की आवाज़ बैठने लगती है। उसका उत्साह कमज़ोर होने लगता है और उसकी आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ प्रतीत होता है।

प्रश्न 4.
मुख्य गायक और संगतकार के संबंध एक-दूसरे के पूरक हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

मुख्य गायक और संगतकार के मध्य अटूट संबंध होता है। संगतकार के बिना मुख्य गायक प्रसिद्ध के शिखर पर नहीं। पहुँच सकता है। संगतकार मुख्य गायक को कदम-कदम पर सँभालकर उसके गायन को प्रभावी बनाए रखता है। इसी तरह मुख्य गायक संगतकार को अपनी प्रतिभा दिखाने का मंच प्रदान करता है। इस तरह दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

प्रश्न 5.
संगतकार की मनुष्यता किसे कहा गया है। वह यह मनुष्यता कैसे बनाए रखता है?
उत्तर-

संगतकार में योग्यता, प्रतिभा, क्षमता और अवसर होने पर भी वह अपनी आवाज़ को मुख्य गायक की आवाज़ से ऊँचा नहीं उठाता है तथा कभी भी अपनी गायिकी को मुख्य गायक के गायन से बेहतर सिद्ध करने का प्रयास नहीं करता है। इसे संगतकार की मनुष्यता कहा गया है। वह यह मनुष्यता मुख्य गायक को सम्मान देते हुए बनाए रखता है।

प्रश्न 6.
लोग प्रायः संगतकार की विफलता किसे समझ बैठते हैं?
उत्तर-

लोग देखते हैं कि मुख्य गायक की भारी भरकम आवाज़ के सम्मुख संगतकार की आवाज़ दबी रह जाती है। संगतकार चाहकर भी अपनी आवाज को ऊँचा नहीं उठा पाता है। इस प्रकार संगतकार सदा के लिए संगतकार या मुख्यगायक का सहायक बनकर रह जाता है। संगतकार द्वारा अपनी आवाज़ को न उठा पाने को लोग उसकी विफलता समझ बैठते हैं।

प्रश्न 7.
वर्तमान में संगतकार जैसे व्यक्तियों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

भूत, वर्तमान या भविष्य काल हो, संगतकार जैसे व्यक्तियों की प्रासंगिकता हर काल में रही है और रहेगी। संगतकार ही वह व्यक्ति होते हैं जो प्रसिद्ध या महान व्यक्तियों की सफलता में अपना अदृश्य योगदान देते हैं। ये लोग पर्दे के पीछे रहकर ऐसे व्यक्तियों की सफलता में विशिष्ट योगदान देते हैं। जैसे किसी अच्छे रेस्त्राँ के भोजन को स्वादिष्ट बनाने तथा उसे प्रसिद्ध दिलाने में बहुत से लोगों का योगदान होता है।

प्रश्न 8.
‘संगतकार’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘संगतकार’ कविता उन व्यक्तियों के योगदान पर प्रकाश डालती है जो मुख्य व्यक्तियों की सफलता के लिए अपनी इच्छाओं की बलि चढ़ा देते हैं। मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार उसके गायन को और भी सुंदर बनाते हैं तथा उसका उत्साह बनाए रखते हुए उसे अकेलेपन का अहसास नहीं होने देते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रायः सभी क्षेत्रों नृत्य, संगीत, खेल, राजनीति, उत्सवों के आयोजन को सफल बनाने में अपना योगदान देते हुए देखे जा सकते हैं। ये लोग अपनी महत्त्वाकांक्षा का त्यागकर अपनी मनुष्यता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

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पाठ 8 कन्यादान | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions For Class 10 Hindi Kshitiz Chapter 8 कन्यादान

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प्रश्न 1.
वैवाहिक संस्कार में कन्यादान खुशी का अवसर माना जाता है, पर यहाँ माँ दुखी क्यों थी?
उत्तर-

वैवाहिक संस्कार की रस्मों में कन्यादान पवित्र एवं महत्त्वपूर्ण रस्म है। यह खुशी का अवसर होता है परंतु ‘कन्यादान’ कविता में माँ इसलिए दुखी थी क्योंकि विवाह के उपरांत वह बिलकुल अकेली पड़े जाएगी। वह अपने सुख दुख की बातें अब किससे करेगी। इसके अलावा वह बेटी को पूँजी समझती थी जो आज उससे दूर हो रही है।

प्रश्न 2.
लड़की की माँ की चिंता के क्या कारण थे?
उत्तर-

लड़की की माँ की चिंता के निम्नलिखित कारण थे

  • लड़की अभी समझदार नहीं थी।
  • लड़की को ससुराल के सुखों की ही समझ थी दुखों की नहीं।
  • लड़की दुनिया की छल-कपट एवं शोषण की मनोवृत्ति से अनभिज्ञ थी।
  • लड़की को ससुराल एवं जीवन पथ पर आनेवाली कठिनाइयों का ज्ञान न था।

प्रश्न 3.
कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों के आधार पर कन्या की मनोदशा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

कन्यादान कविता में विवाह योग्य कन्या को विवाह एवं ससुराल के सुखों का ही आभास था। वह जानती थी कि ससुराल में सभी उसके रूप सौंदर्य की प्रशंसा करेंगे, उसे वस्त्राभूषणों से लाद दिया जाएगा जिससे उसका रूप और भी निखर उठेगा। इससे ससुराल के सभी लोग उसे प्यार करेंगे। इसके अलावा विवाह को वह ऐसा कार्यक्रम मानती है जो हँसी-खुशी के गीत गायन से पूरा हो जाता है।

प्रश्न 4.
‘कन्यादान’ कविता में ऐसा क्यों कहा गया है कि लड़की को दुख बाँचना नहीं आता?
उत्तर-

कन्यादान कविता में ऐसा इसलिए कहा गया है कि लड़की को दुख बाँचना नहीं आता क्योंकि लड़की अभी सयानी नहीं हुई है। उसे दुनियादारी का अनुभव नहीं है। उसे जीवन के एक ही पक्ष का ज्ञान है। वह दुखों से अनभिज्ञ है क्योंकि माँ के घर पर दुखों से उसका कभी सामना नहीं हुआ था। अब तक वह सुखमय परिस्थितियों में ही जीती आई थी।

प्रश्न 5.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं’ कहकर कवयित्री ने समाज पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर-

माँ द्वारा अपनी बेटी को सीख देते हुए यह कहना ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है, जलने के लिए नहीं’ के माध्यम से कन्या को सीख तो दिया ही है पर समाज पर कठोर व्यंग्य किया है। समाज में कुछ लोग बहुओं को इतना प्रताड़ित करते हैं कि उस प्रताड़ना से मुक्ति पाने के लिए या तो लड़की स्वयं को आग के हवाले कर देती है या ससुराल के लोग उसे जला देते हैं।

प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ कविता में नारी सुलभ किन कमजोरियों की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर-

‘कन्यादान’ कविता में कवयित्री ने नारी सुलभ जिन कमजोरियों की ओर संकेत किया है वे हैं

  • नारी दूसरों की प्रशंसा सुनकर अपने ही रूप सौंदर्य पर मुग्ध हो जाती है।
  • उसे सुंदर वस्त्र और आभूषणों से विशेष लगाव होता है, जो अंतत: उसके लिए बंधन सिद्ध होते हैं।
  • वह आग का दुरुपयोग करके आत्महत्या करने जैसा कदम उठा लेती है।
  • वह कमज़ोर दिखती है जिसकी कमज़ोरी का अनुचित फायदा दूसरे उठाते हैं।

प्रश्न 7.
‘कन्यादान’ कविता में माँ द्वारा जो सीख दी गई हैं, वे वर्तमान परिस्थितियों में कितनी प्रासंगिक हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘कन्यादान’ कविता में माँ द्वारा अपनी बेटी को जो सीख दी गई है वह उसके अनुभव की उपज है। माँ को दुनियादारी और ससुराल वालों द्वारा किए गए व्यवहार का अनुभव है। उन्हें ध्यान में रखकर भावी जीवन के लिए सीख देती है। आज जब समाज में छल-कपट, शोषण, दहेज प्रथा आदि बुराइयाँ बढ़ी हैं तथा ससुराल में अधिक सजग रहने की जरूरत बढ़ गई है तब माँ द्वारा बेटी को दी गई सीख की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 8.
‘कन्यादान’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर-

‘कन्यादान’ कविता में माँ द्वारा बेटी को स्त्री के परंपरागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर सीख दी गई है। कवि का मानना है। कि सामाजिक-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं वे आदर्श होकर भी बंधन होते हैं। कोमलता’ में कमजोरी का उपहास, लड़की जैसा न दिखाई देने में आदर्श का प्रतिकार है। माँ की बेटी से निकटता के कारण उसे अंतिम पूँजी कहा गया है। इस कविता में माँ की कोरी भावुकता नहीं, बल्कि माँ के संचित अनुभवों की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है।

2.

प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसा मत दिखाई देना?
उत्तर-

मेरे विचार से लड़की की माँ ने ऐसा इसलिए कहा होगा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना ताकि लड़की अपने नारी सुलभ गुणों सरलता, निश्छलता, विनम्रता आदि गुणों को तो बनाए रखे परंतु वह इतनी कमजोर भी न होने पाए। कि लड़की समझकर ससुराल के लोग उसका शोषण न करने लगे। इसके अलावा वह भावी जीवन की कठिनाइयों का साहसपूर्वक मुकाबला कर सके।

प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं।
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?
उत्तर-

(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्रियों की कमज़ोर स्थिति और ससुराल में परिजनों द्वारा शोषण करने की ओर संकेत किया गया है। कभी-कभी बहुएँ इस शोषण से मुक्ति पाने के लिए स्वयं को आग के हवाले करके अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेती है।

(ख) माँ ने बेटी को इसलिए सचेत करना उचित समझा क्योंकि उसकी बेटी अभी भोली और नासमझ थी जिसे दुनियादारी और छल-कपट का पता न था। वह लोगों की शोषण प्रवृत्ति से अनजान थी। इसके अलावा वह शादी-विवाह को सुखमय एवं मोहक कल्पना का साधन समझती थी। वह ससुराल के दूसरे पक्ष से अनभिज्ञ थी।

प्रश्न 3.
‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-

उपर्युक्त काव्य पंक्तियों को पढ़कर हमारे मन में लड़की की जो छवि उभरती है वह कुछ इस प्रकार है

  • लड़की अभी सयानी नहीं है।
  • लड़की को दुनिया के उजले पक्ष की जानकारी तो है पर दूसरे पक्ष छल-कपट, शोषण आदि की जानकारी नहीं है।
  • लड़की विवाह की सुखद कल्पना में खोई है।
  • उसे केवल सुखों का अहसास है, दुखों का नहीं।
  • उसे ससुराल की प्रतिकूल परिस्थितियों का ज्ञान नहीं है।

प्रश्न 4.
माँ को अपर्च, बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर-

माँ को अपनी बेटी अंतिम पूँजी इसलिए लग रही थी क्योंकि कन्यादान के बाद माँ एकदम अकेली रह जाएगी। उसकी बेटी ही उसके दुख-सुख की साथिन थी, जिसके साथ वह अपनी निजी बातें बाँट लिया करती थी। इसके अलावा बेटी माँ के लिए सबसे प्रिय वस्तु (पूँजी) की तरह थी जिसे अब वह दूसरे के हाथ में सौंपने जा रही थी। इसके बाद वह नितांत अकेली रह जाएगी।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर-

माँ ने कन्यादान के बाद अपनी बेटी को विदा करते समय निम्नलिखित सीख दी

  • वह ससुराल में दूसरों द्वारा की गई प्रशंसा से अपने रूप-सौंदर्य पर आत्ममुग्ध न हो जाए।
  • आग का उपयोग रोटियाँ पकाने के लिए करना। उसका दुरुपयोग अपने जलने के लिए मत करना।
  • वस्त्र-आभूषणों के मोह में फँसकर इनके बंधन में न बँध जाना।
  • नारी सुलभ गुण बनाए रखना पर कमजोर मत पड़ना।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर-

मेरी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना उचित नहीं है। दान तो किसी वस्तु का किया जाता है। कन्या कोई वस्तु तो है नहीं। उसका अपना एक अलग व्यक्तित्व, रुचि, पसंद, इच्छा अनिच्छा आदि है। वह किसी वस्तु की भाँति निर्जीव नहीं है। दान देने के बाद दानदाता का वस्तु से कोई संबंध नहीं रह जाता है, परंतु कन्या का संबंध आजीवन माता-पिता से बना रहता है। कन्या एक वस्तु जैसी कभी भी नहीं हो सकती है, इसलिए कन्या को दान देने जैसी बात करना पूर्णतया अनुचित है।

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पाठ 7 छाया मत छूना | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kshitiz Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर-

कवि ने यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि यथार्थ ही जीवन की सच्चाई है। बीते समय की सुखद यादों में खोए रहने से वर्तमान का यथार्थ अच्छा नहीं बन जाता। वर्तमान में हमारे सामने जो भी परिस्थितियाँ हैं, उन्हें न स्वीकारना, उनसे पलायन करना कायरता के लक्षण हैं। हमें कठिन यथार्थ का साहस से सामना करना चाहिए तथा उन पर विजय पाते हुए आगे बढ़ना चाहिए। इससे भविष्य को सुंदर और सुखमय बनाने का हौंसला मिलता है।

प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट कीजिए
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर-

भाव यह है कि प्रभुता का शरणबिंब अर्थात् ‘बड़प्पन का अहसास’ एक छलावा था भ्रम मात्र है जो मृग मारीचिका के समान है। जिस प्रकार हिरन रेगिस्तान की रेत की चमक को पानी समझकर उसके पास भागकर जाता है, परंतु पानी न पाकर निराश होता है। इसी बीच वह अन्यत्र ऐसी ही चमक को पानी समझकर भागता-फिरता है। इसी प्रकार मनुष्य के लिए यह ‘बड़प्पन का भाव’ एक छल बनकर रह जाता है। मनुष्य को याद रखना चाहिए कि चाँदनी रात के पीछे अमावस्या अर्थात् सुख के पीछे दुख छिपा रहता है। मनुष्य को सुख-दुख दोनों को अपनाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मनां क्यों किया है?
उत्तर-

‘छाया’ शब्द का प्रयोग कवि ने बीते समय की सुखंद यादों के लिए किया है। ये यादें हमारे मन में उमड़ती-घुमड़ती रहती हैं। कवि इन्हें छूने से इसलिए मना करता है क्योंकि इन यादों से हमारा दुख कम नहीं होता है, इसके विपरीत और भी बढ़ जाता है। हम उन्हीं सुखद यादों की कल्पना में अपना वर्तमान खराब कर लेते हैं।

प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ।।
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर-

कविता में आए विशेषणयुक्त कुछ शब्द और अनेक अर्थ में विशिष्टता-
सुरंग सुधियाँ सुहावनी – ‘सुधियाँ’ के लिए प्रयुक्त विशेषण-सुरंग, सुहावनी।
इनके प्रयोग से यादें अधिक मनोहारिणी बन गई हैं।
जीवित क्षण – क्षण के लिए प्रयुक्त विशेषण ‘जीवित’।
इसके प्रयोग से बीते हुए पलों की यादें सजीव हो उठी हैं।
दुविधा-हत साहस – ‘साहस’ के लिए दुविधा-हत विशेषण का प्रयोग।
इसके प्रयोग से साहस के कुंठित होने का भाव प्रकट हुआ है।
दुख दूना – ‘दुख’ के लिए दूना’ विशेषण का प्रयोग।
दुख की मात्रा दो गुनी बताने का भाव।
एक रात कृष्णा – ‘रात’ के लिए एक और ‘कृष्णा’ विशेषण का प्रयोग।
‘रात’ की ‘कालिमा की गहनता’ की अभिव्यक्ति प्रकट हो रही है।

प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर-

मई-जून महीने की चिलचिलाती गरमी में रेगिस्तान में दूर से चमकती रेत पानी का भ्रम पैदा करती है। गरमी में प्यास से बेहाल मृग उसी चमक को पानी समझकर उसके पास दौड़कर जाता है और निराश होता है। वहाँ से उसे कुछ दूर पर यही चमक फिर पानी का भ्रम पैदा करती है और वह रेगिस्तान में इधर-उधर भटकता-फिरता है। इस कविता में इसका प्रयोग बड़प्पन के अहसास के लिए किया गया है जिसके पीछे मनुष्य आजीवन भागता-फिरता है।

प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर-

‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ का भाव कविता की निम्न पंक्ति में व्यक्त हुआ है ‘जो न मिला भूल उसे कर भविष्य का वरण’।

पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ‘छाया’ छूने से क्यों मना करता है?
उत्तर-

कवि ‘छाया’ छूने के लिए इसलिए मना करता है क्योंकि ‘छाया’ से कवि का तात्पर्य बीते हुए सुखमय दिनों से है। इन सुखमय दिनों को याद करने से वर्तमान के दुख कम नहीं होते हैं, उलटे बढ़ और जाते हैं। ये बीते सुखमय दिन तो लौटकर आते नहीं, उन्हें याद करने से क्या फायदा मिलता है।

प्रश्न 2.
कवि के जीवन की कौन-सी यादें उसे दुखी कर रही हैं?

उत्तर-
कवि के जीवन में अनेक रंग-बिरंगी और सुंदर यादें हैं जो समय-समय पर उसे गुदगुदा जाती हैं। उन यादों के माध्यम से बने चित्रों की सुगंध मनभावनी महसूस हो रही है। ये यादें और इन यादों की सुगंध अब वैसी नहीं रही। उसका समय अब उतना सुखद नहीं रहा। अतः कवि इन यादों से दुख महसूस कर रहा है।

प्रश्न 3.
‘भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-

‘भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण’ से कवि का आशय है-कवि के द्वारा अपनी प्रिया के साथ बिताए पलों को भूलकर भी याद कर लेने से वे पल चलचित्र की भाँति सजीव होकर आँखों के सामने घूम जाते हैं। इन दृश्यों की क्रमिक याद आने से कवि का दुख बढ़ जाता है।

प्रश्न 4.
‘जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-

‘जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि यश, वैभव और मान-सम्मान, प्रतिष्ठा जैसा कुछ नहीं है। ये भौतिक वस्तुएँ छलावा मात्र हैं। इनको पाने के लिए व्यक्ति जितना ही भागता है उतना ही भ्रमित होता है क्योंकि उसके हाथ कुछ नहीं लगता है। इन भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए भ्रमित रहता है।

प्रश्न 5.
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है’ पंक्ति में कवि हमें किस यथार्थ एवं सत्य से अवगत कराना चाहता है?
उत्तर-

‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है’ पंक्ति के माध्यम से कवि हमें यह बताना चाहता है कि जिस प्रकार हर चाँदनी रात के बाद अमावस्या की रात अवश्य ही आती है उसी प्रकार मानव जीवन में सुख के बाद दुख का आना अवश्यंभावी होता है। अतः मनुष्य को सुख के बाद दुख सहने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

प्रश्न 6.
कविता में यथार्थ स्वीकारने की बात क्यों कही गई है?
उत्तर-

‘छाया मत छूना’ कविता में यथार्थ को स्वीकारने की बात इसलिए कही गई है क्योंकि वर्तमान का यथार्थ ही सत्य होता है। भूतकाल की बातें बनकर रह जाती हैं और भविष्य के बारे में कुछ ज्ञान नहीं होता है। अच्छे भविष्य के बारे में सोचते रहना कल्याण करना है। यथार्थ से ही हमारा जीवन चलता है। ये यथार्थ हमारे साहस और धैर्य की परीक्षा लेते हैं तथा जीवन पथ को सुगम बनाते हैं।

प्रश्न 7.
प्रभुता की कामना को मृगतृष्णा क्यों कहा गया है?
उत्तर-

प्रभुता की कामना को मृगतृष्णा इसलिए कहा गया है क्योंकि जिस तरह रेगिस्तान में भीषण गरमी में दूर चमकती रेत देखकर हिरन को पानी का भ्रम होता है, वह भागकर उसके पास जाता है, परंतु उसे निराश होना पड़ता है। उसी प्रकार प्रभुता या बड़प्पन का अहसास एक भ्रम है, जिसके पीछे व्यक्ति आजीवन भागता रहता है परंतु हासिल कुछ नहीं होता है।

प्रश्न 8.
‘छाया मत छूना’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
अथवा
‘छाया मत छूना’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘छाया मत छूना’ कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जीवन में सुख और दुख दोनों आते-जाते रहते हैं। विगत समय के सुख को याद करके वर्तमान के दुख को बढ़ा लेना अनुचित है। विगत की सुखद काल्पनिकता से जुड़े रहना और वर्तमान के यथार्थ से भागने की अपेक्षा उसकी स्वीकारोक्ति श्रेयकर है। यह कविता अतीत की यादों को भूलकर वर्तमान का सामना करने एवं भविष्य के वरण का संदेश देती है।

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पाठ 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kshitiz Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

प्रश्न 1.
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-

बच्चे की दंतुरित मुसकान को देखकर कवि का मन अत्यंत प्रसन्न हो उठा। प्रवास पर रहने के कारण वह शिशु को पहली बार देखता है तो उसकी दंतुरित मुसकान पर मुग्ध हो जाता है। इससे कवि के मन की सारी निराशा और उदासी दूर हो जाती है।

प्रश्न 2.
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर-

बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में बहुत अंतर होता है। बच्चे की मुसकान अत्यंत सरल, निश्छल, भोली और स्वार्थरहित होती है। इस मुसकान में स्वाभाविकता होती है। इसके विपरीत एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में स्वार्थपरता तथा बनावटीपन होता है। वह तभी मुसकराता है जब उसका स्वार्थ होता है। इसमें कुटिलता देखी जा सकती है जबकि बच्चे की मुसकान में सरलता दिखाई देती है।

प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर-

कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है

  • कवि को लगता है कि कमल तालाब छोड़कर इसकी झोपड़ी में खिल गये हैं।
  • ऐसा लगता है जैसे पत्थर पिघलकर जलधारा के रूप में बह रहे हों।
  • बाँस या बबूल से शेफालिका के फूल झरने लगे हों।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मृतक में भी डाल देगी जान’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

शिशु की नवोदित दाँतों वाली सुंदर मुसकान व्यक्ति के हृदय में सरसता उत्पन्न कर देती है। इससे थक-हारकर निराश और निष्प्राण हो चुका व्यक्ति भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता है। ऐसे व्यक्ति के मन में भी कोमल भावों का उदय होता है और वह शिशु को देखकर हँसने-मुसकराने के लिए बाध्य हो जाता है।

प्रश्न 2.
यह दंतुरित मुसकान कविता में ‘बाँस और बबूल’ किसके प्रतीक बताए गए हैं? इन पर शिशु की मुसकान का के या असर होता है?
उत्तर-

यह दंतुरित मुसकान कविता में ‘बाँस और बबूल’ कठोर और निष्ठुर हृदय वाले लोगों का प्रतीक है। ऐसे लोगों पर मानवीय संवेदनाओं का कोई असर नहीं होता है। ये दूसरों के दुख से अप्रभावित रहते हैं। शिशु की दंतुरित मुसकान देखकर ऐसे लोग भी सहृदय बन जाते हैं और उसके मुसकान के रूप में शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं।

प्रश्न 3.
‘चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर-

कवि नागार्जुन यायावर अर्थात् घुमंतू व्यक्ति थे। वे देश-विदेश के भ्रमण के क्रम में घर पर कम ही रुकते थे। उनकी यह यात्राएँ कई-कई महीनों की हुआ करती थीं। ऐसे ही प्रवास के बाद जब कवि अपने घर लौटा तो शिशु ने उसे पहली बार देखा और पहचान न सका। अपने ही घर में अपनी ऐसी स्थिति देख कवि ने कहा, चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य।

प्रश्न 4.
शिशु के धूल लगे शरीर को देखकर कवि को कैसा लगा?
उत्तर-

शिशु को धूल-धूसरित शरीर कवि को मुग्ध कर गया। शिशु के ऐसे शरीर को देखकर कवि को लगा कि जैसे तालाब छोड़कर कमल उसकी झोंपड़ी में खिल गया हो और अपना रूप-सौंदर्य बिखेर रहा हो।

प्रश्न 5.
‘पिघलकर जल बन गया होगा कठिने पाषाण’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-

‘पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि शिशु की नवोदित मुसकान अत्यंत मनोहारी होती है। इससे प्रभावित हुए बिना व्यक्ति नहीं रह सकता है। इस मुसकान के वशीभूत होकर पत्थर जैसा कठोर हृदय वाला व्यक्ति भी पिघलकर पानी की तरह हो जाता है।

प्रश्न 6.
शिशु किसे अनिमेष ताके जा रहा था और क्यों?
उत्तर-

शिशु अनिमेष कवि को ताके जा रहा था। इसका कारण यह था कि प्रवास में रहने के कारण कवि काफ़ी दिनों बाद घर आया था और शिशु उसे पहली बार देखने के कारण पहचान नहीं पा रहा था। शिशु के लिए कवि अपरिचित था और उसे पहचानने का प्रयास कर रहा था।

प्रश्न 7.
कवि शिशु की ओर से आँखें क्यों फेर लेना चाहता है?
उत्तर-

कवि शिशु की ओर से इसलिए आँखें फेर लेना चाहता है क्योंकि कवि को न पहचान पाने के कारण शिशु उसे अपलक देखे जा रहा है। कवि को लगता है कि इस तरह अपलक निहारने के कारण शिशु शायद थक गया होगा। शिशु को थकान से बचाने और उसका ध्यान अपनी ओर से हटाने के कारण कवि आँखें फेर लेना चाहता है।

प्रश्न 8.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने नारी को गरिमामय स्थान प्रदान किया है? इससे आप कितना सहमत हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने शिशु की माँ को महत्ता देकर संपूर्ण नारी जाति को गरिमामय स्थान प्रदान किया है। मैं इससे पूर्णतया सहमत हूँ। इसका कारण यह है कि कवि यह स्वीकार करता है कि शिशु की माँ न होती तो वह शिशु से परिचित न हो पाता। इस प्रकार का यथार्थ पाठकों के सामने रखकर उसने नारी जाति की गरिमा बढ़ाई है।

प्रश्न 9.
“यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने किन्हें धन्य कहा है और क्यों?
उत्तर-

‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने नवजात शिशु और उसकी माँ दोनों को धन्य कहा है। उसने शिशु को इसलिए धन्य कहा है क्योंकि ऐसी मुसकान के प्रभाव से कठोर हृदय और थका-हारा जीवन से निराश व्यक्ति भी सहृदय और नवोत्साह से भर उठता है। उसने शिशु की माँ को इसलिए धन्य कहा है क्योंकि उसी के कारण कवि को सुंदर शिशु और उसकी मुसकान देखने का अवसर मिला।

प्रश्न 10.
‘फ़सल’ कविता हमें उपभोक्तावादी संस्कृति के दौर से कृषि संस्कृति की ओर ले जाती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

फ़सल’ कविता के माध्यम से हमें कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि फ़सल क्या है ? किन-किन तत्वों के योगदान से उसका यह अस्तित्व हमारे सामने आता है। इस कविता से यह भी ज्ञात होता है कि एक ओर प्रकृति के अनेकानेक तत्व फ़सल के लिए रूपांतरित होते हैं तो मानव श्रम भी इसके लिए आवश्यक है।

प्रश्न 11.
फ़सल उगाने में किसानों के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

फ़सल उगाने में प्रकृति के विभिन्न तत्व हवा, पानी, मिट्टी अपना योगदान देते हैं, परंतु किसानों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। सारी परिस्थितियाँ फ़सल उगाने योग्य होने पर भी किसान के अथकश्रम के बिना फ़सल तैयार नहीं हो सकती है। इससे स्पष्ट है कि किसानों का योगदान सर्वाधिक है।

प्रश्न 12.
‘फ़सल’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘फ़सल’ कविता का प्रतिपाद्य है-लोगों को इस उपभोक्तावादी संस्कृति के बीच कृषि संस्कृति से परिचित कराना तथा फ़सल, जो मानव जीवन का आधार है के योगदान में प्राकृतिक तत्वों के साथ-साथ मानव श्रम को गरिमामय स्थान प्रदान करना। कवि बताना चाहता है कि फ़सल हज़ारों नदियों के पानी, तरह-तरह की मिट्टी के गुणधर्म, हवा की थिरकन, सूरज की किरणों का रूपांतरण और किसानों के अथक श्रम का सुपरिणाम है।

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पाठ 5 उत्साह और अट नहीं रही | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kshitiz Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर-

बच्चे की दंतुरित मुसकान को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है। उसके उदास-गंभीर मन में जान आ जाती है। उसे ऐसे लगता है मानो उसकी झोंपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों। मानो पत्थर जैसे दिल में प्यार की धारा उमड़ पड़ी हो या बबूल के पेड़ से शेफालिका के फूल झरने लगे हों।।
क्यों बच्चे की निश्छलता और पिता की ममता के कारण ही कवि-मन इस तरह प्रभावित होता है। ”

प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर-

कवि ने कविता का शीर्षक उत्साह इसलिए रखा है, क्योंकि कवि बादलों के माध्यम से क्रांति और बदलाव लाना चाहता है। वह बादलों से गरजने के लिए कहता है। एक ओर बादलों के गर्जन में उत्साह समाया है तो दूसरी ओर लोगों में उत्साह का संचार करके क्रांति के लिए तैयार करना है।

प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-

कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है
1. बच्चे की मुसकान से मृतक में भी जान आ जाती है।
2. यों लगता है मानो झोंपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों।
3. यों लगता है मानो चट्टानें पिघलकर जलधारा बन गई हों।
4. यों लगता है मानो बबूल से शेफालिका के फूल झरने लगे हों।

प्रश्न 4.
शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद हैं, छाँटकर लिखें।
उत्तर-

‘उत्साह’ कविता में नाद सौंदर्य वाले शब्द निम्नलिखित हैं
बादल गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने क्रांति लाने के लिए किसका आह्वान किया है और क्यों ?
उत्तर-

कवि ने क्रांति लाने के लिए बादलों का आह्वान किया है। कवि का मानना है कि बादल क्रांतिदूत हैं। उनके अंदर घोर गर्जना की शक्ति है जो लोगों को जागरूक करने में सक्षम है। इसके अलावा बादलों के हृदय में बिजली छिपी है।

प्रश्न 2.
कवि युवा कवियों से क्या आवान करता है?
उत्तर-

कवि युवा कवियों से आह्वान करता है कि वे प्रेम और सौंदर्य की कविताओं की रचना न करके लोगों में जोश और उमंग भरने वाली कविताओं की रचना करें, जो लोगों पर बज्र-सा असर करे और लोग क्रांति के लिए तैयार हो सकें।

प्रश्न 3.
कवि ने ‘नवजीवन’ का प्रयोग बादलों के लिए भी किया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

कवि बादलों को कल्याणकारी मानता है। बादल विविध रूपों में जनकल्याण करते हैं। वे अपनी वर्षा से लोगों की बेचैनी दूर करते हैं और तपती धरती का ताप शीतल करके मुरझाई-सी धरती में नया जीवन फेंक देते हैं। वे धरती को फ़सल उगाने योग्य बनाकर लोगों में नवजीवन का संचार करते हैं।

प्रश्न 4.
बादल आने से पूर्व प्राणियों की मनोदशा का चित्रण कीजिए।
उत्तर-

जब तक आसमान में बादलों का आगमन नहीं हुआ था, गरमी अपने चरम सीमा पर थी। इससे लोग बेचैन, परेशान और उदास थे। उन्हें कहीं भी चैन नहीं था। गरमी ने उनका जीना दूभर कर दिया था। उनका मन कहीं भी नहीं लग रहा था।

प्रश्न 5.
कवि निराला बादलों में क्या-क्या संभावनाएँ देखते हैं?
उत्तर-

कवि निराला बादलों में निम्नलिखित संभावनाएँ देखते हैं

  • बादल लोगों को क्रांति लाने योग्य बनाने में समर्थ हैं।
  • बादल धरती और धरती के प्राणियों दोनों को नवजीवन प्रदान करते हैं।
  • बादल धरती और लोगों का ताप हरकर शीतलता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 6.
कवि ने बादलों के किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

कवि ने बादलों को ‘आज्ञात दिशा के घन’ और ‘नवजीवन वाले’ जैसे विशेषणों का प्रयोग किया है। कवि उन्हें अज्ञात दिशा के घन इसलिए कहा है क्योंकि बादल किस दिशा से आकर आकाश में छा गए, पता नहीं। इसके अलावा वे धरती और प्राणियों को नवजीवन देते हैं।

प्रश्न 7.
‘कहीं साँस लेते हो’ ऐसा कवि ने किसके लिए कहा है और क्यों?
अथवा
कवि ने फागुन का मानवीकरण कैसे किया है? ।
उत्तर-

फागुन महीने में तेज हवाएँ चलती हैं जिनसे पत्तियों की सरसराहट के बीच साँय-साँय की आवाज़ आती है। इसे सुनकर ऐसा लगता है, मानो फागुन साँस ले रहा है। कवि इन हवाओं में फागुन के साँस लेने की कल्पना कर रहा है। इस तरह कवि ने फागुन का मानवीकरण किया है।

प्रश्न 8.
‘उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो’ के आलोक में बताइए कि फागुन लोगों के मन को किस तरह प्रभावित करता है?
उत्तर-

‘उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो’ से ज्ञात होता है कि फागुन में चारों ओर इस तरह सौंदर्य फैल जाता है कि वातावरण मनोरम बन जाता है। रंग-बिरंगे फूलों के खुशबू से हवा में मादकता घुल जाती है। ऐसे में लोगों का मन कल्पनाओं में खोकर उड़ान भरने लगता है।

प्रश्न 9.
‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर फागुन में उमड़े प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-

फागुन का सौंदर्य अन्य ऋतुओं और महीनों से बढ़कर होता है। इस समय चारों ओर हरियाली छा जाती है। खेतों में कुछ फसलें पकने को तैयार होती हैं। सरसों के पीले फूलों की चादर बिछ जाती है। लताएँ और डालियाँ रंग-बिरंगे फूलों से सज जाती हैं। प्राणियों का मन उल्लासमय हुआ जाता है। ऐसा लगता है कि इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य छलक उठा है।

प्रश्न 10.
‘अट नहीं रही है’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-

‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन महीने के सौंदर्य का वर्णन है। इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य कहीं भी नहीं समा रहा है और धरती पर बाहर बिखर गया है। इस महीने सुगंधित हवाएँ वातावरण को महका रही हैं। पेड़ों पर आए लाल-हरे पत्ते और फूलों से यह सौंदर्य और भी बढ़ गया है। इससे मन में उमंगें उड़ान भरने लगी हैं।

प्रश्न 11.
‘उत्साह’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

कवि ने ‘उत्साह’ कविता में बादलों का आह्वान करते हुए क्रांति लाने के लिए कहा है। इस कविता में बादलों को क्रांतिदूत मानकर सोए, अलसाए और कर्तव्यविमुख लोगों को क्रांति लाने के लिए प्रेरित किया गया है। इस क्रांति या विप्लव के बिना समाज की जड़ता और कर्तव्यविमुखता में परिवर्तन लाना संभव नहीं है। लोगों में उत्साह भरना ही ‘उत्साह’ कविता का उद्देश्य है।

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पाठ 4 आत्मकथ्य | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kshitiz Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर-

कवि बादलों को क्रांति का सूत्रधार मानता है। वह उससे पौरुष दिखाने की कामना करता है। इसलिए वह उसे गरजने-बरसने के लिए बुलाता है, न कि फुहार छोड़ने, रिमझिम बरसने या केवल बरसने के लिए। कवि तापों और दुखों को दूर करने के लिए क्रांतिकारी शक्ति की अपेक्षा करता है।

प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर-

‘अभी समय भी नहीं’ कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि कवि को लगता है कि उसने जीवन में अब तक कोई ऐसी उपलब्धि नहीं हासिल की है जो दूसरों को बताने योग्य हो तथा उसकी दुख और पीड़ा इस समय शांत है अर्थात् वह उन्हें किसी सीमा तक भूल गया है और इस समय उन्हें याद करके दुखी नहीं होना चाहता है।

प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर

कविता में बादल तीन अर्थों की ओर संकेत करता है

  1. जल बरसाने वाली शक्ति के रूप में
  2. उत्साह और संघर्ष के भाव भरने वाले कवि के रूप में
  3.  पीड़ाओं का ताप हरने वाली सुखकारी शक्ति के रूप में।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर-

(क) उक्त पंक्तियों का भाव यह है कि कवि भी अन्य लोगों की भाँति सुखमय जीवन बिताना चाहता था पर परिस्थिति वश सुखमय जीवन की यह अभिलाषा उसकी इच्छा बनकर ही गई। सुख पाने का उसे अवसर भी मिला पर वह हाथ आते-आते रह गया अर्थात् उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाने से वह सुखी जीवन का आनंद अधिक दिनों तक न पा सका।
(ख) कवि की प्रेयसी अत्यंत सुंदर थी। उसके कपोल इतने लाल, सुंदर और मनोहर थे कि प्रात:कालीन उषा भी अपना सौंदर्य बढ़ाने के लिए लालिमा इन्हीं कपोलों से लिया करती थी। अर्थात् उसकी पत्नी के कपोल उषा से भी बढ़कर सौंदर्यमयी थे।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ’ किसका प्रतीक हैं? ये किसका बोध करा रही हैं?
उत्तर-

‘मुरझाकर गिरने वाली पत्तियाँ’ मानव जीवन में आए दुख और निराशाओं की प्रतीक हैं। कवि के जीवन में आए दुख वृक्ष की पत्तियों के समान गिरकर, एक-एक कर क्रमशः याद आ रहे हैं। इससे कवि को जीवन की नश्वरता का बोध भी हो रही है।

प्रश्न 2.
‘असंख्य जीवन-इतिहास’ कहकर कवि किस ओर संकेत करना चाहता है?
उत्तर-

‘असंख्य जीवन-इतिहास’ कहकर कवि उन अगणित लोगों की ओर संकेत करना चाहता है जिन्होंने अपनी-अपनी आत्मकथा लिखी। उसमें अपनी दुर्बलताओं का उल्लेख किया और उन्हें लोगों के व्यंग्य मलिन उपहास का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 3.
कवि के मित्र उससे क्या आग्रह कर रहे थे? वह इस आग्रह को पूरा क्यों नहीं करना चाहता था?
उत्तर-

कवि के मित्र उससे यह आग्रह कर रहे थे कि कवि अपनी आत्मकथा लिखे। कवि उनका यह आग्रह इसलिए नहीं पूरा करना चाहता था क्योंकि इससे पहले अनगिनत लोगों ने आत्मकथा लिखी। उसमें उन्होंने अपनी उपलब्धियों के साथ-साथ दुर्बलताओं का भी उल्लेख किया, जिससे वे उपहास का पात्र बन गए।

प्रश्न 4.
कवि को अपनी गागर रीती क्यों लगती है?
उत्तर-

कवि को अपनी गागर अर्थात् जीवन इसलिए रीती (सूना) या खाली सा लगता है क्योंकि उसे लगता है कि उसे जीवन में कोई विशेष उपलब्धि हासिल न हो सकी। उसकी पत्नी की असामयिक मृत्यु हो जाने से उसने जिस सुख की कल्पना की थी, वह उसके पास आकर भी मात्र स्वप्न बनकर रह गया।

प्रश्न 5.
‘तुम ही खाली करने वाले’ के माध्यम से कवि किनसे, क्या कहना चाहता है?
उत्तर-
‘तुम ही खाली करने वाले’ के माध्यम से कवि अपने उन मित्रों से कहना चाहता है जो उससे आत्मकथा लिखने का आग्रह कर रहे हैं। कवि उनसे यह कहना चाहता है कि मेरी आत्मकथा में मेरे जीवन के कटु अनुभवों को सुनकर तुम यह न समझ बैठो कि मेरे जीवन को रसहीन बनाकर सूनापन भरने वाले तुम्हीं स्वयं हो।

प्रश्न 6.
कवि किसकी हँसी नहीं उड़ाना चाहता है और क्यों?
उत्तर-

कवि ने अपना जीवन अत्यंत सरलता से जीया है। इस अत्यधिक सरलता के कारण उसे अपनों के छल-कपट और प्रवंचना का शिकार होना पड़ा है। इस पर भी कवि अपनी इस सरलता का उपहास नहीं उड़ाना चाहता है भले ही यही सरलता उसके अनेक कष्टों का कारण रही है।

प्रश्न 7.
उन तथ्यों का उल्लेख कीजिए जिनका उल्लेख कवि अपनी आत्मकथा में नहीं करना चाहता है?
उत्तर-

कवि अपनी आत्मकथा में निम्नलिखित तथ्यों का उल्लेख नहीं करना चाहता है

  • वह अपनी सरलता जो उसके दुखों का कारण रही है, का उल्लेख नहीं करना चाहता है।
  • वह अपने जीवन में की गई न तो भूलों को दिखाना चाहता है और न दूसरों के छल-कपट को।
  • वह अपनी प्रेयसी के साथ बिताए सुखमय पलों को सबसे नहीं कहना चाहता है।
  • वह अपने जीवन के दुर्बल पक्षों का भी उल्लेख नहीं करना चाहता है।

प्रश्न 8.
कवि ने अपने जीवन की उज्ज्वल गाथा किसे कहा है?
उत्तर-

कवि के जीवन में कुछ सुखमय पल आए थे। उसके जीवन में भी प्रेमभरी मधुर चाँदनी रातें आईं और उसने प्रेम के इन उज्ज्वल क्षणों को अपनी पत्नी के साथ बिताया, उसके साथ हँस-हँसकर, खिलखिलाकर बातें की। पत्नी के साथ बिताए गए इन सुखमय पलों को जीवन की उज्ज्वल गाथा कहा है।

प्रश्न 9.
कवि के लिए सुख दिवा स्वप्न बनकर रह गए, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

कवि ने जन सामान्य की भाँति ही सुखमय जीवन जीने की आकांक्षा पाल रखी थी परंतु वे सुख उसके लिए स्वप्न की भाँति साबित हुए। वह आँख खुलते ही स्वयं को जीवन के कठोर धरातल पर पाता। उसने अपनी पत्नी के साथ कुछ सुख के पल बिताए, जो क्षणिक थे। पत्नी की असामयिक मृत्यु के कारण वह सुख दिवा स्वप्न बनकर ही रह गए।

प्रश्न 10.
‘अनुरागिनी उषा लेती थी, जिन सुहाग मधुमाया, में’ के आलोक में कवि ने अपनी पत्नी के विषय में क्या कहना चाहता है?
उत्तर-

‘अनुरागिनी उषा लेती थी, जिन सुहाग मधुमाया में’ के माध्यम से कवि ने यह कहना चाहा है कि उसकी पत्नी अत्यंत सुंदर थी। उसके कपोल इतने लाल और सुंदर थे कि प्रात:कालीन उषा भी उससे लालिमा लेकर अपनी सौंदर्य वृद्धि करती। थी अर्थात् कवि की पत्नी उषा से भी अधिक सुंदर थी।

प्रश्न 11.
कवि ने अपनी तुलना किससे की है? उसके जीवन का पाथेय क्या है?
उत्तर-

कवि ने अपनी तुलना उस पथिक से की है जो जीवन पथ पर चलते-चलते थक गया है। इस जीवन पथ पर वह अपनी पत्नी के साथ बिताए कुछ सुखद पलों की मधुर यादों के सहारे चल रहा है। यही मधुर यादें उसके जीवन का पाथेय बन गई हैं।

प्रश्न 12.
‘आत्मकथ्य’ कविता के माध्यम से ‘प्रसाद’ जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, वह उनकी ईमानदारी और साहस का प्रमाण है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘आत्मकथ्य’ कविता के माध्यम से कवि प्रसाद ने अपनी भूलों को स्वीकारने, अपने जीवन की असफलताओं का वर्णन और सरलता के कारण धोखा खाने की स्वीकारोक्ति करने के अलावा वर्तमान के यथार्थ स्वीकार कर साहसपूर्ण कार्य किया है। कवि द्वारा यह कहना-छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ उसकी ईमानदारी का प्रमाण है।

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पाठ 3 सवैया और कवित्त | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kshitiz Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर-

कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है, क्योंकि

  • उसमें मन की दुर्बलताओं, भूलों और कमियों का उल्लेख करना होगा।
  • उसके द्वारा धोखा देने वालों की पोल-पट्टी खुलेगी और फिर से घाव हरे होंगे।
  •  उससे कवि के पुराने दर्द फिर से हरे हो जाएँगे। उसकी सीवन उधड़ जाएगी।
  • उसमें निजी प्रेम के अंतरंग क्षणों को भी सार्वजनिक करना पड़ेगा। जबकि ऐसा करना उचित नहीं है। निजी प्रेम के क्षण गोपनीय होते हैं।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-

पहले सवैये में अनुप्रास अलंकार वाली पंक्तियाँ हैं

  • कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई – ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण।
  • ‘पट पीत’ – में ‘प’ वर्ण की आवृत्ति के कारण।
  • हिये हुलसै – में ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति के कारण।

रूपक अलंकार
मुखचंद्र – मुख रूपी चंद्रमा
जग मंदिर दीपक – जग (संसार) रूपी मंदिर के दीपक।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नूपुर मंजु बजें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।।
उत्तर-

स्मृति को ‘पाथेय’ अर्थात् रास्ते का भोजन या सहारा या संबल बनाने का आशय यह है कि कवि अपने प्रेम की मधुर यादों के सहारे ही जीवन जी रहा है।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है।
उत्तर-

ऋतुराज वसंत के बाल रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से पूर्णतया भिन्न है। वसंत के परंपरागत वर्णन में प्रकृति में चहुंओर बिखरे सौंदर्य, फूलों के खिलने, मनोहारी वातावरण होने, पशु-पक्षियों एवं अन्य प्राणियों के उल्लसित होने, नायकनायिका की संयोग अवस्था का वर्णन एवं सर्वत्र उल्लासमय वातावरण का वर्णन होता है, वहीं इस कवित्त में ऋतुराज वसंत को कामदेव के नवजात शिशु के रूप में चित्रित किया है। इस बालक के साथ संपूर्ण प्रकृति अपने-अपने तरीके से निकटता प्रकट करती है। इस बालक का पालनी पेड़-पौधे की डालियाँ, उसका बिछौना, नए-नए पल्लव, फूलों का वस्त्र तथा हवा द्वारा उसके पालने को झुलाते हुए दर्शाया गया है। पक्षी उस बालक को प्रसन्न करते हुए बातें करते हैं तो कमल की कली उसे बुरी नजर से बचाती है और गुलाब चटककर प्रात:काल उसे जगाता है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’- इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस कथन के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि निजी प्रेम के मधुर क्षण सबके सामने प्रकट करने योग्य नहीं होते। मधुर चाँदनी रात में बिताए गए प्रेम के उजले क्षण किसी उज्ज्वल कहानी के समान होते हैं। यह गाथा बिल्कुल निजी संपत्ति होती है। अतः आत्मकथा में इनके बारे में कुछ लिखना अनावश्यक है।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर-

चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने निम्नलिखित रूपों में देखा है

  • आकाश में फैली चाँदनी को पारदर्शी शिलाओं से बने सुधा मंदिर के रूप में, जिससे सब कुछ देखा जा सकता है।
  • सफेद दही के उमड़ते समुद्र के रूप में।
  • ऐसी फ़र्श जिस पर दूध का झाग ही झाग फैला है।
  • आसमान को स्वच्छ निर्मल दर्पण के रूप में।

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ – इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
कवि ने स्वप्न में अपनी प्रेमिका को आलिंगन में लेने का सुख देखा था। उसने सपना देखा था कि उसकी प्रेमिका उसकी बाहों में है। वे मधुर चाँदनी रात में प्रेम की चुलबुली बातें कर रहे हैं। वे खिलखिला रहे हैं, हँस रहे हैं, मनोविनोद कर रहे हैं। उसकी प्रेमिका के गालों की लाली ऊषाकालीन लालिमा को भी मात देने वाली है।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण के शरीर पर कौन-कौन से आभूषण मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं?
उत्तर-

श्रीकृष्ण के शरीर अर्थात् पैरों में नूपुर और कमर में बँधी करधनी में भी छोटे-छोटे मुँघरू लगे हैं। इन आभूषणों से उसे समय मधुर ध्वनि पैदा होती है, जब श्रीकृष्ण चलते हैं। इन आभूषणों की ध्वनि अत्यंत कर्ण प्रिय और मधुर है।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण का शरीर कैसा है? उसका सौंदर्य किस कारण बढ़ गया है?
उत्तर-

श्रीकृष्ण का शरीर साँवला-सलोना है। उस साँवले शरीर पर उन्होंने पीला वस्त्र धारण कर रखा है। उनके गले में पड़ी वनमाला (वन पुष्पों की माला) उनके हृदय तक लटक रही है। इस पीले वस्त्र और वनमाला के कारण उनका सौंदर्य बढ़ गया है।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण के मुख की तुलना किससे की गई है और क्यों ?
उत्तर-

श्रीकृष्ण का मुख चंद्रमा के समान सुंदर है। उनके मुख की तुलना चंद्रमा से की गई है। इसका कारण यह है कि जिस पर चाँदनी फैलकर चाँद को अधिक सुंदर बना देती है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण के मुखमंडल पर विराजित हँसी (मुसकान) उनके सौंदर्य को बढ़ा देती है।

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण की तुलना किससे की गई है और क्यों ?
उत्तर-
श्रीकृष्ण की तुलना जगरूपी मंदिर में जलते दीपक से की गई है। इसका कारण यह है कि जिस तरह मंदिर में जलता दीपक अंधकार को समाप्त कर अपने प्रकाश से आलोकित किए रहता है उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी अपने रूप सौंदर्य से संसार को आलोकित किए हुए हैं।

प्रश्न 5.
कवि देव अपनी सहायता के लिए किसका आहवान कर रहे हैं?
उत्तर-

कवि देव अपनी सहायता के लिए ब्रजवासियों के मध्य दूल्हे की भाँति पुरुष अर्थात् श्रीकृष्ण से अपनी सहायता करने के लिए आह्वान कर रहे हैं कि श्रीकृष्ण सदैव उनके मददगार बने रहें।

प्रश्न 6.
कवि देव ने वसंत को किस अनूठे रूप में चित्रित किया है? उनकी यह कल्पना अन्य कवियों से किस तरह अलग है?
उत्तर-

कवि देव ने ऋतुराज वसंत को पारंपरिक रूप में चित्रित न करके कामदेव के पुत्र (नवजात) के रूप में चित्रित किया है। उनकी यह कल्पना अन्य कवियों से इसलिए अलग है क्योंकि अन्य कवि वसंत के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हैं, जबकि कवि ने वसंत और प्रकृति के कई अंगों का मानवीकरण किया है।

प्रश्न 7.
बालक वसंत का पालना कहाँ है? उसमें सजा बिस्तर किस तरह का है?
उत्तर-

बालक वसंत का पालना पेड़ की डालियों पर सजा है। उस पालने में नई-नई कोमल पत्तियों एवं पालने का बिस्तर लगा है। इसी पालने में कामदेव का नवजात राजकुमार वसंत झूल रहा है, जिसे हवा झुला रही है।

प्रश्न 8.
कामदेव के पुत्र को कौन, किस तरह प्रसन्न रखने का प्रयास कर रहा है?
उत्तर-

कामदेव के पुत्र वसंत को खुश रखने के लिए तोता और मोर उससे बातें कर रहे हैं। कोयल उसे हिला-झुलाकर प्रसन्न करते हुए बार-बार ताली बजाकर उसका ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रही है।

प्रश्न 9.
बालक को बुरी नजर से बचाने का प्रयास कौन किस तरह कर रहा है?
उत्तर-

बालक को बुरी नजर से बचाने के लिए कंज कली रूपी नायिका लताओं की साड़ी से सिर ढाँक कर फूलों के पराग रूपी राई (सरसों) और नमक को उसके सिर के चारों ओर घुमाकर इधर-उधर फेंक रही है, ताकि बालक को किसी की बुरी नज़र से कष्ट न हो।

प्रश्न 10.
कवि ने गुलाब का मानवीकरण किस तरह किया है?
उत्तर-

कवि देव ने गुलाब को मानवीय क्रियाएँ करते हुए दिखाया है। गुलाब प्रात:काल जब चटककर खिलता है तो चटकने की | आवाज़ सुनकर ऐसा लगता है मानो वह चुटकी बजाकर सोए हुए बालक वसंत को जगा रहा है। इस तरह कवि ने गुलाब का मानवीकरण किया है।

प्रश्न 11.
‘फटिक सिलानि सौं सुधार्या सुधा मंदिर के आधार पर सुधा मंदिर का चित्रण कीजिए।
उत्तर-

चाँदनी रात में चारों ओर फैले उज्ज्वल प्रकाश में आसमान को देखने से ऐसा लगता है, जैसे पारदर्शी शिलाओं से बना हुआ कोई सुधा मंदिर हो। इसकी दीवारें पारदर्शी होने के कारण भीतर-बाहर सब कुछ अत्यंत सुंदर दिखाई दे रहा है। यह मंदिर अमृत की भाँति लग रहा है।

प्रश्न 12.
सुधा मंदिर के बाहर और आँगन की क्या विशेषता है?
उत्तर-

सुधा मंदिर के बाहर उज्ज्वल चाँदनी फैलने से ऐसा लग रहा है मानों चारों ओर दही का समुद्र उमड़ रहा हो। इस मंदिर का आँगन इतना सुंदर और उज्ज्व ल है जैसे पूरे आँगन में दूध का झाग भर गया हो। यह सुधा मंदिर बाहर और भीतर दोनों स्थानों पर कल्पना से भी सुंदर है।

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