पाठ 5 मैं क्यों लिखता हूँ? | class 10th | hindi Kritika Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?
उत्तर-

लेखक की मान्यता है कि सच्चा लेखन भीतरी विवशता से पैदा होता है। यह विवशता मन के अंदर से उपजी अनुभूति से जागती है, बाहर की घटनाओं को देखकर नहीं जागती। जब तक कवि का हृदय किसी अनुभव के कारण पूरी तरह संवेदित नहीं होता और उसमें अभिव्यक्त होने की पीड़ा नहीं अकुलाती, तब तक वह कुछ लिख नहीं पाता।

प्रश्न 2.
लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
उत्तर

लेखक हिरोशिमा के बम विस्फोट के परिणामों को अखबारों में पढ़ चुका था। जापान जाकर उसने हिरोशिमा के अस्पतालों में आहत लोगों को भी देखा था। अणु-बम के प्रभाव को प्रत्यक्ष देखा था, और देखकर भी अनुभूति न हुई इसलिए भोक्ता नहीं बन सका। फिर एक दिन वहीं सड़क पर घूमते हुए एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया देखी। उसे देखकर विज्ञान का छात्र रहा लेखक सोचने लगा कि विस्फोट के समय कोई वहाँ खड़ा रहा होगा और विस्फोट से बिखरे हुए रेडियोधर्मी पदार्थ की किरणें उसमें रुद्ध हो गई होंगी और जो आसपास से आगे बढ़ गईं पत्थर को झुलसा दिया, अवरुद्ध किरणों ने आदमी को भाप बनाकर उड़ा दिया होगा। इस प्रकार समूची ट्रेजडी जैसे पत्थर पर लिखी गई है।
इस प्रकार लेखक हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया।

प्रश्न 3.
मैं क्यों लिखता हूँ? के आधार पर बताइए कि-

  1. लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?
  2. किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं?

उत्तर-
लेखक को यह जानने की प्रेरणा लिखने के लिए प्रेरित करती है कि वह आखिर लिखता क्यों है। यह उसकी पहली प्रेरणा है। स्पष्ट रूप से समझना हो तो लेखक दो कारणों से लिखता है-

  1. भीतरी विवशता से। कभी-कभी कवि के मन में ऐसी अनुभूति जाग उठती है कि वह उसे अभिव्यक्त करने के लिए व्याकुल हो उठता है।
  2. कभी-कभी वह संपादकों के आग्रह से, प्रकाशक के तकाजों से तथा आर्थिक लाभ के लिए भी लिखता है। परंतु दूसरा कारण उसके लिए जरूरी नहीं है। पहला कारण अर्थात् मन की व्याकुलता ही उसके लेखन का मूल कारण बनती है।

प्रश्न 4.
कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के साथ-साथ बाह्य दबाव भी महत्त्वपूर्ण होता है। ये बाह्य दबाव कौन-कौन से हो सकते हैं?
उत्तर-

कुछ रचनाकारों की रचनाओं में स्वयं की अनुभूति से उत्पन्न विचार होते हैं और कुछ अनुभवों से प्राप्त विचारों को लिखा जाता है। इसके साथ ऐसे कारण (बाह्य दबाव) भी उपस्थित हो जाते हैं जिससे लेखक लिखने के लिए प्रेरित हो उठता है। ये बाह्य-दबाव हैं-

  1. सामाजिक परिस्थितियाँ
  2. आर्थिक लाभ की आकांक्षा
  3. प्रकाशकों और संपादकों का पुनः-पुनः का आग्रह
  4. विशिष्ट के पक्ष में विचारों को प्रस्तुत करने का दबाव

प्रश्न 5.
क्या बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?
उत्तर-

बाहरी दबाव सभी प्रकार के कलाकारों को प्रेरित करते हैं। उदाहरणतया अधिकतर अभिनेता, गायक, नर्तक, कलाकार अपने दर्शकों, आयोजकों, श्रोताओं की माँग पर कला-प्रदर्शन करते हैं। अमिताभ बच्चन को बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक अभिनय करने का आग्रह न करें तो शायद अब वे आराम करना चाहें। इसी प्रकार लता मंगेशकर भी 50 साल से गाते-गाते थक चुकी होंगी, अब फिल्म-निर्माता, संगीतकार और प्रशंसक ही उन्हें गाने के लिए बाध्य करते होंगे।

प्रश्न 6.
हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है, यह आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर-

हिरोशिमा पर लिखी कविता हृदय की अनुभूति प्रस्फुटित होती हुई भावों और शब्दों में जीवंत हो उठी है। कवि ने हिरोशिमा के भयंकर रूप को देखा था, आहत लोगों को देखा था। उसे देखकर लेखक के मन में उनके प्रति सहानुभूति तो उत्पन्न हुई होगी। किंतु उनकी व्यक्तिगत त्रासदी नहीं बनी। जब पत्थर पर मनुष्य की काली छाया को

देखा तो उन्हें अपने हृदय से अणु-बम के विस्फोट का प्रतिरूप त्रासदी बनकर मन में समाने लगा। वही त्रासदी जीवंत होकर कविता में परिवर्तित हो गई। इस तरह हिरोशिमा पर लिखी कविता अंतः दबाव का परिणाम थी।

बाह्य दबाव मात्र इतना हो सकता कि जापान से लौटने पर लेखक ने अभी तक कुछ नहीं लिखा? वह इससे प्रभावित हुआ होगा और कविता लिख दिया होगा।

प्रश्न 7.
हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ किस तरह से हो रहा है।
उत्तर

आजकल विज्ञान का दुरुपयोग अनेक जानलेवा कामों के लिए किया जा रहा है। आज आतंकवादी संसार-भर में मनचाहे विस्फोट कर रहे हैं। कहीं अमरीकी टावरों को गिराया जा रहा है। कहीं मुंबई बम-विस्फोट किए जा रहे हैं। कहीं गाड़ियों में आग लगाई जा रही है। कहीं शक्तिशाली देश दूसरे देशों को दबाने के लिए उन पर आक्रमण कर रहे हैं। जैसे, अमरीका ने इराक पर आक्रमण किया तथा वहाँ के जनजीवन को तहस-नहस कर डाला।।
विज्ञान के दुरुपयोग से चिकित्सक बच्चों का गर्भ में भ्रूण-परीक्षण कर रहे हैं। इससे जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है। विज्ञान के दुरुपयोग से किसान कीटनाशक और जहरीले रसायन छिड़ककर अपनी फसलों को बढ़ा रहे हैं। इससे लोगों को स्वास्थ्य खराब हो रहा है। विज्ञान के उपकरणों के कारण ही वातावरण में गर्मी बढ़ रही है, प्रदूषण बढ़ रहा है, बर्फ पिघलने को खतरा बढ़ रहा है तथा रोज-रोज भयंकर दुर्घटनाएँ हो रही हैं।

प्रश्न 8.
एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?
उत्तर-

एक संवेदनशील युवा नागरिक होने के कारण विज्ञान का दुरुपयोग रोकने के लिए हमारी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए निम्नलिखित कार्य करते हुए मैं अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकता हूँ-

  1. प्रदूषण फैलाने तथा बढ़ाने वाले उत्तरदायी कारकों प्लास्टिक, कूड़ा-कचरा आदि के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के साथ-साथ लोगों से अनुरोध करूंगा कि पर्यावरण के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपयोग न करें ।
  2. विज्ञान के बनाए हथियारों का प्रयोग यथासंभव मानवता की भलाई के लिए ही करें, मनुष्यों के विनाश के लिए नहीं।
  3. विज्ञान की चिकित्सीय खोज का दुरुपयोग कर लोग प्रसवपूर्ण संतान के लिंग की जानकारी कर लेते हैं और कन्या शिशु की भ्रूण-हत्या कर देते हैं जिससे सामाजिक विषमता तथा लिंगानुपात में असमानता आती है। इस बारे में आम जनता का जागरूक करने का प्रयास करूंगा।
  4. टी.वी. पर प्रसारित अश्लील कार्यक्रमों का खुलकर विरोध करूँगा और समाजोपयोगी कार्यक्रमों के प्रसारण का अनुरोध करूँगा।
  5. विज्ञान अच्छा सेवक किंतु बुरा स्वामी है। यह बात लोगों तक फैलाकर इसके दुरुपयोग के परिणामों को बताने का प्रयत्न करूंगा।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक को कौन-सा प्रश्न सरल दिखाई देते हुए भी कठिन लगता है? और क्यों?
उत्तर-

लेखक के लिए आसान-सा लगने वाला यह प्रश्न ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ कठिन लगता है क्योंकि इसका उत्तर इतना संक्षिप्त नहीं है कि एक या दो वाक्यों में बाँधकर सरलता से दिया जा सके। इसका कारण यह है कि इस प्रश्न का सच्चा उत्तर लेखक के आंतरिक जीवन के स्तरों से संबंध रखता है।

प्रश्न 2.
उन तथ्यों का उल्लेख कीजिए जो लेखक को लिखने के लिए प्रेरित करते हैं?
उत्तर-

लेखक को कुछ लिखने के लिए प्रेरित करने वाले तथ्य निम्नलिखित हैं-

  • अपनी भीतरी प्रेरणा और विवशता जानने के लिए लेखक लिखता है।
  • किस बात ने लिखने के लिए उसे प्रेरित और विवश किया, यह जानने के लिए।
  • मन के दबाव से मुक्त होने के लिए लेखक लिखता है।

प्रश्न 3.
कभी-कभी बाहरी दबाव भी भीतरी उन्मेष बन जाते हैं, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

कई बार लेखक का मन कुछ लिखने को नहीं होता है परंतु प्रकाशक और संपादक का आग्रह उसे लेखन के लिए प्रेरित करता है। इसके अलावा आर्थिक विवशता भी लिखने को विवश करती है तब इस तरह से लिखा गया साहित्य भी आंतरिक अनुभूति को जगा देता है। इससे लेखक इन वाहय दबावों के बिना भी लिखने को तत्पर हो जाता है क्योंकि ये वाय दबाव केवल सहायक साधना का ही काम करते हैं, फिर भी लेखन अच्छा लेखन कर जाता है।

प्रश्न 4.
लेखन में कृतिकार के स्वभाव और अनुशासन की महत्ता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

लेखन में कृतिकार के स्वभाव और अनुशासन दोनों का ही महत्त्व होता है क्योंकि कुछ कृतिकार ऐसे होते हैं जो बाहरी दबाव के बिना लिख ही नहीं सकते हैं। इसी से उनकी भीतरी विवशता व्याकुलता में बदल पाती है और लिखने को विवश होते हैं।
उदाहरणार्थ : कोई व्यक्ति सवेरे के समय नींद खुल जाने पर भी तब तक बिस्तर पर अलसाया पड़ा रहता है जब तक कि घड़ी का अलार्म न बज जाए। अतः कृतिकार का स्वभावतः अनुशासित होना आवश्यक है।

प्रश्न 5.
हिरोशिमा के बम विस्फोट में हुई क्षति को देखकर लेखक को कौन-सी घटना याद आई?
उत्तर

हिरोशिमा में अणुबम विस्फोट से निकली रेडियोधर्मी तरंगों ने असमय असंख्य लोगों को कालकवलित कर दिया। लेखक ने उस विस्फोट का दुख भोगते हुए लोगों को देखा। यह देखकर भारत की पूर्वी सीमा की घटना याद आ गई कि कैसे सैनिक ब्रह्मपुत्र में बम फेंककर हजारों मछलियाँ मार देते थे जबकि उनका काम थोड़ी-सी मछलियों से चल सकता था। इससे जीवों का व्यर्थ ही विनाश हुआ था।

प्रश्न 6.
हिरोशिमा में हुए अणुबम विस्फोट के दुष्प्रभावों को पढ़कर भी लेखक कविता क्यों न लिख सका?
उत्तर-

यद्यपि लेखक विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण अणु, रेडियोधर्मी तत्व, रेडियोधर्मिता के प्रभाव आदि का सैद्धांतिक ज्ञान गहराई से रखता था, इसके बाद भी हिरोशिमा में अणुबम गिरने और उसके परवर्ती प्रभावों का विवरण पढ़ने के बाद भी वह लेख आदि में तो कुछ लिख पाया पर कविता न लिख सका क्योंकि लेख लिखने के लिए बौधिक पकड़ की आवश्यकता होती है जबकि कविता के लिए अनुभूति के स्तर की विवशता। हिरोशिमा की घटना पढ़ने मात्र से उसके भीतर अनुभूति के स्तर की विवशता उत्पन्न न हो सकी।

प्रश्न 7.
लेखक अज्ञेय ने प्रत्यक्ष अनुभव और अनुभूति में क्या अंतर बताया है?
उत्तर-

लेखक अज्ञेय ने प्रत्यक्ष अनुभव और अनुभूति में अंतर बताते हुए कहा है कि अनुभव तो घटित का होता है, पर अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे उसे सत्य को आत्मसात कर लेता है जो कृतिकार के साथ घटित नहीं हुआ है। जो आँखों के सामने नहीं आया, जो घटित के अनुभव में नहीं आया, वही आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है, तब वह अनुभूति-प्रत्यक्ष हो जाती है।

प्रश्न 8.
लेखक ने हिरोशिमा में पत्थर पर लिखी कौन-सी ट्रेजिडी देखी?
उत्तर-

हिरोशिमा में घूमते हुए एक दिन लेखक ने देखा कि एक जले हुए पत्थर पर एक उजली छाया है। उसने अनुमान लगाया कि जिस समय हिरोशिमा में विस्फोट हुआ उस समय वहाँ पत्थर के पास कोई खड़ा रहा होगा। अणुबम की रेडियोधर्मी तरंगों ने पत्थर को जला दिया पर जो किरणें (तरंगें) व्यक्ति में अवरुद्ध हो गई थीं उन्होंने उसे भाप बनाकर उड़ा दिया होगा जिसकी छाया पत्थर पर अंकित हो गई। इस तरह लेखक ने हिरोशिमा में पत्थर पर मानवता के विनाश की ट्रेजिडी देखी।

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पाठ 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! | class 10th | hindi Kritika Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

प्रश्न 1.
दुलारी अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग थी। इसके लिए वह क्या करती थी और क्यों ?
उत्तर-

दुलारी उन महिलाओं से अलग थी जो अपने स्वास्थ्य के प्रति असावधान रहती हैं। वह अपने स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखती थी। इसके लिए नियमपूर्वक कसरत करती और भिगोए हुए चने खाती। दुलारी समाज के उस वर्ग से संबंधित थी जहाँ गीत गाकर गुजारा करना उनकी रोजी-रोटी का साधन होता है। फेंकू सरदार जैसे लोगों से स्वयं को बचाने के लिए उसका स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना आवश्यक था।

प्रश्न 2.
टुन्नू दुलारी के लिए खद्दर की सूती साड़ी लेकर क्यों आया?
उत्तर-

टुन्नू सोलह-सत्रह वर्षीय ब्राह्मण किशोर था, जो कजली गायन का उभरता कलाकार था। उसके भीतर राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रीयता की भावना उफ़ान पर थी। मलमल के वस्त्र पहनने वाले टुन्नू ने स्वयं भी खादी पहनना शुरू कर दिया था। वह अपने मन के किसी कोने में दुलारी के लिए कोमल भावनाएँ रखता था। अपने मूक प्रेम की अभिव्यक्ति करने एवं होली के त्योहार के अवसर पर उपहार देने के लिए वह खद्दर की सूती साड़ी ले आया।

प्रश्न 3.
अपने दरवाजे पर टुन्नू को खड़ा देख दुलारी ने क्या प्रतिक्रिया प्रकट की और क्यों?
उत्तर

टुन्नू को अपने दरवाजे पर खड़ा देख दुलारी ने पहले तो उससे कहा कि तुम फिर यहाँ टुन्नू? मैंने तुम्हें यहाँ आने के लिए मना किया था। उसने जब टुन्नू के मुँह से सालभर के त्योहार की बात सुनी तो वह अत्यंत क्रोधित हो उठी और टुन्नू को अपशब्द कहने लगी। वास्तव में दुलारी नहीं चाहती थी कि टुन्नू जैसा किशोर अभी से अपने भविष्य की उपेक्षा करके प्रेम-मोहब्बत के चक्कर में पड़े।

प्रश्न 4.
दुलारी का उपेक्षापूर्ण व्यवहार देखकर टुन्नू चला गया पर इसके बाद दुलारी के मनोभावों में क्या-क्या बदलाव आए?
उत्तर-

दुलारी ने न टुन्नू की लाई खद्दर की साड़ी स्वीकार की और न उससे उचित व्यवहार किया। इससे आहत होकर उसकी व्यथा आँसू बनकर टपक पड़ी, जो उसके ही पैरों के पास उस साड़ी पर जा गिरी थी। टुन्नू बिना कुछ कहे सीढ़ियाँ उतरता चला गया और दुलारी उसे देखे जा रही थी, परंतु उसके नेत्रों में कौतुक और कठोरता का स्थान करुणा की कोमलता ने ग्रहण कर लिया था। उसने भूमि पर पड़ी खद्दर की धोती उठाई और स्वच्छ धोती पर पड़े काजल से सने आँसुओं के धब्बों को बार-बार चूमने लगी।

प्रश्न 5.
खोजवाँ वालों ने अपनी ओर से कजली दंगल में किसे खड़ा किया था और क्यों?
उत्तर-

खोजवाँ वालों ने कजली दंगल में अपनी ओर से दुलारी को खड़ा किया। इसका कारण यह था कि दुक्कड़ पर गानेवालियों में दुलारी बहुत प्रसिद्ध थी। उसे पद्य में सवाल जवाब करने की अद्भुत क्षमता प्राप्त थी। कजली गानेवाले बड़े-बड़े शायर भी उससे मुकाबला करने से बचते थे। दुलारी जिस ओर से गायन के लिए खड़ी होती थी, उसकी विजय निश्चित मानी जाती थी।

प्रश्न 6.
टुन्नू के परिवार का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताइए कि उसने दुलारी से गायन में मुकाबला करने का साहस कैसे कर लिया?
उत्तर-

टुन्नू सोलह-सत्रह वर्षीय गौरवर्ण वाला दुबला-पतला ब्राह्मण युवक था। उसके पिता घाट पर बैठकर और कच्चे महाल के दस-पाँच घरों में यजमानी करते हुए, सत्यनारायण की कथा से लेकर श्राद्ध और विवाह तक कराकर कठिनाई से गुजारा कर रहे थे। इधर टुन्नू को आवारा लड़कों की संगति में शायरी का चस्का लगा। उसने भैरोहेला को अपना उस्ताद बनाया और शीघ्र ही कजली की रचना करने लगा। इसके अलावा वह पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी में कुशल था। अपनी इसी योग्यता पर वह बजरडीहा वालों की तरफ से कजली दंगल में गया और दुलारी से गायन का मुकाबला कर बैठा।

प्रश्न 7.
टुन्नू का गायन सुनकर खोजवाँ वालों की सोच और दुलारी के व्यवहार में क्या अंतर आया?
उत्तर-

खोजवाँ बाजार में आयोजित कजली दंगल में जब साधारण गाना हो गया तो सवाल-जवाब के लिए दुक्कड़ की आवाज़ सुनाई दी। उधर विपक्ष से एक युवा गायक गौनहारिनों में सबसे आगे खड़ी दुलारी की ओर हाथ उठाकर ललकार उठा. “रनियाँ लऽ परमेसरी लोट!” मधुर कंठ से निकले इस गीत को सुनकर खोजवाँ वालों ने सोचा कि अब उनकी विजय तय नहीं है। उधर तनिक-सी बात में नाराज़ हो जाने वाली दुलारी टुन्नू का गीत सुनकर अपने स्वभाव के विपरीत मुसकरा रही थी और मुग्ध होकर गीत सुन रही थी।

प्रश्न 8.
कजली दंगल की मजलिस बदमज़ा क्यों हो गई?
उत्तर-

भादों महीने में तीज के अवसर पर खोजवाँ बाजार के आयोजित कजली दंगल में खोजवाँ वालों ने अपनी ओर से दुलारी। को बुलाया था और बजरडीहा वालों ने टुन्नू को। इस आयोजन में साधारण गाना पूरा हो जाने के बाद जब सवाल-जवाब के पद्यात्मक गायन की प्रतियोगिता शुरू हुई तो टुन्नू ने दुलारी के सवालों का भरपूर जवाब अपने गीत के माध्यम से दिया। दोनों एक-दूसरे के आक्षेपों का जवाब दे रहे थे। टुन्नू के द्वारा गायन के माध्यम से दिए गए जवाब पर फेंकू सरदार को गुस्सा आ गया। वह टुन्नू को मारने के लिए लाठी लेकर खड़े हो गए। यह देख दुलारी ने टुन्नू की रक्षा की। इसके बाद लोगों के बहुत कहने पर उन दोनों में से किसी ने भी न गाया और मजलिस बदमज़ा हो गई।

प्रश्न 9.
टुन्नू की उपेक्षा करने वाली दुलारी के मन में उसके प्रति कोमल भावनाएँ कैसे पैदा हो गईं?
उत्तर-

टुन्नू और दुलारी की प्रथम मुलाकात खोजवाँ बाजार में गायन के समय हुई थी। उसी समय उसने टुन्नू के हृदय की दुर्बलता का अनुभव पहली मुलाकात में ही कर लिया था परंतु उसे भावना की लहर मानकर वह टुन्नू की उपेक्षा करती रही। होली के त्योहार पर जिस भाव से टुन्नू ने उसे उपहार दिया उससे दुलारी ने समझ लिया कि उसके शरीर के प्रति टुन्नू के मन में कोई लोभ नहीं है। उसकी आसक्ति का कारण शरीर नहीं आत्मा है। वह अनुभव कर चुकी थी कि उसके हृदय के किसी कोने पर टुन्नू विराजमान है। इस तरह उसके मन में टुन्नू के प्रति कोमल भावनाएँ पैदा हो गईं।

प्रश्न 10.
होली के दिन देश के दीवाने अपनी होली किस तरह मनाना चाहते थे? उनके इस कार्य में दुलारी ने किस तरह सहयोग किया?
उत्तर-

होली के दिन देश के दीवाने अपनी होली कुछ अलग ढंग से ही मनाना चाह रहे थे। इस दिन वे सवेरे से ही जुलूस निकालकर जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह करते फिर रहे थे। वे दल बनाकर घूमते हुए भारत जननि तेरी जय, तेरी जय हो’ का गायन करते हुए लोगों को उत्साहित कर रहे थे और लोग अपने कुरते, कमीज, टोपी, धोती आदि दे रहे थे। दुलारी ने भी देश के दीवानों की पुकार सुनकर खिड़की खोली और मैंनचेस्टर तथा लंकाशायर के मिलों की बनी साड़ियों का नया बंडल फेंककर अपना योगदान दिया।

प्रश्न 11.
विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने का आह्वान करने वाला दल क्या देखकर चकित रह गया?
अथवा

दुलारी ने विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का नाटक नहीं किया बल्कि सच्चे मन से सहयोग दिया, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने का आह्वान करने वाले दल के सदस्यों द्वारा उठाई गई चादर पर लोग अपने धोती, साड़ी, कमीज, कुरता, टोपी आदि डाल रहे थे परंतु जब दुलारी ने बारीक सूत की मखमली किनारे वाली नई कोरी धोतियों का बंडल फेंका तो चादर सँभालने वाले व्यक्ति चकित रह गए क्योंकि अब तक जिन वस्त्रों का संग्रह हुआ था वे फटे पुराने थे जबकि नए बंडल की धोतियों की तह भी न खुली थी।

प्रश्न 12.
सहायक संपादक ने अपनी रिपोर्ट में टुन्नू की मौत का उल्लेख किस तरह किया है?
उत्तर-

सहायक संपादक ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाला जुलूस टाउनहाल आकर विघटित हो गया। तब पुलिस जमादार ने टुन्नू को पकड़ा और गालियाँ दीं, जिसका टुन्नू ने प्रतिवाद किया। जमादार ने उसे बूट की ठोकर मारी जो पसली में जा लगी। इससे टुन्नू के मुँह से चुल्लूभर खून निकला। पास ही खड़े गोरे सैनिकों की गाड़ी में टुन्नू को लाद लिया गया और अस्पताल ले जाने के नाम पर रात्रि आठ बजे वरुणा में प्रवाहित कर दिया गया।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
टुन्नू जैसा साधारण-सा युवक भी देश की स्वाधीनता में अपना योगदान देकर मातृभूमि का ऋण चुकाता है। टुन्नू के चरित्र से आप किन-किन जीवन मूल्यों को अपनाना चाहेंगे?
उत्तर-

देश को स्वाधीन कराने में देश की आम जनता और टुन्नू जैसे साधारण से युवकों का भी योगदान है जो भिन्न-भिन्न तरीके से मातृभूमि का ऋण चुकाते हैं। टुन्नू एक ओर विदेशी वस्त्रों का त्याग करता है तो दूसरी ओर विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने वाले देश भक्तों के साथ जुलूस में बढ़-चढ़कर भाग लेता है जो बाद में उसकी मौत का कारण भी बन जाता है। टुन्नू के चरित्र से हम निम्नलिखित जीवन-मूल्यों की सीख ले सकते हैं-

1. देश प्रेम एवं राष्ट्रीयता- टुन्नू के मन में राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना भरी है। वह विदेशी वस्त्रों का त्यागकर खद्दर धारण कर लेता है और देश को स्वतंत्र कराने में अपना योगदान देता है। इससे हमें भी देश प्रेम एवं राष्ट्रीयता को बनाए रखने की सीख मिलती है।

2. भारतीय वस्तुओं से लगाव- टुन्नू स्वयं विदेशी वस्त्रों का त्याग ही नहीं करता वरन विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने वाले जुलूस में शामिल होकर दूसरों को भी ऐसा करने की प्रेरणा देता है। इससे हमें भी भारतीय वस्तुओं को अपनाने की सीख मिलती है।

3. स्वाभिमानी होना- टुन्नू पुलिस जमादार अली सगीर की गालियाँ सुन नहीं पाता और तुरंत प्रतिवाद कर अपने स्वाभिमान का परिचय देता है। इससे हमें भी स्वाभिमानी बनने की सीख मिलती है।

प्रश्न 2.
दुलारी का चरित्र समाज के उपेक्षित उस वर्ग का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है जो देश की आज़ादी में अपने ढंग से अपना योगदान देता है। इस कथन के आलोक में स्पष्ट कीजिए कि दुलारी के चरित्र से आप किन-किन मूल्यों को अपनाना चाहेंगे?
उत्तर

दुलारी समाज के उस वर्ग से संबंध रखती है जो सभा, उत्सव जैसे आयोजनों में गीत (लोकगीत) गाकर अपनी आजीविका चलाती है। समाज इस वर्ग को अच्छी दृष्टि से नहीं देखता है और समाज के कुछ लोग इन पर कुदृष्टि रखते हैं। उन्हें पुरुषों की उस घटिया सोच का भी सामना करना पड़ता है जो महिलाओं के स्वतंत्र जीने को अच्छी दृष्टि से नहीं देखते हैं। दुलारी भी इन बातों से अनभिज्ञ नहीं है, इसलिए वह अपने शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखना चाहती है ताकि फेंकू सरदार जैसे लोगों का समय-असमय मुकाबला कर सके। वह टुन्नू की देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता से प्रभावित होकर विदेशी वस्त्रों का त्याग कर देती है। दुलारी के चरित्र से हमें स्वाभिमान बनाए रखने, समय पर उचित निर्णय लेने, राष्ट्रीयता की भावना बनाए रखने, देश प्रेम प्रकट करने का साहस रखने जैसे मूल्यों की सीख मिलती है।

प्रश्न 3.
‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर-

एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’-लोकभाषा में रचित इस गीत के मुखड़े का शाब्दिक भाव है-इसी स्थान पर मेरी नाक की लोंग खो गई है। इसका प्रतीकार्थ बड़ा गहरा है। नाक में पहना जाने वाला लोंग सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है। वह किसके नाम का लोंग अपने नाक में पहने। लेकिन मन रूपी नाक में उसने टुन्नू के नाम का लोंग पहन लिया है और जहाँ वह गा रही है; वहीं टुन्नू की हत्या की गई है। अतः दुलारी के कहने का भाव है-यही वह स्थान है जहाँ मेरा सुहाग लुट गया है।

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पाठ 3 साना-साना हाथ जोड़ि | class 10th | hindi Kritika Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

प्रश्न 1.
रात के सम्मोहन में डूबी लेखिका अपने बाहर-भीतर एक शून्यता की स्थिति महसूस कर रही थी। लेखिका ऐसी स्थिति से कब और कैसे मुक्त हुई ?
उत्तर-

लेखिका गंतोक की सितारों भरी रहस्यमयी रात देखकर सम्मोहित हो रही थी। सौंदर्यपूर्ण उन जादू भरे क्षणों में लेखिका अपने बाहर-भीतर शून्यता की स्थिति महसूस कर रही थी। उसकी यह स्थिति तब टूटी जब उसके होंठ एक प्रार्थना गुनगुनाने लगे–साना-साना हाथ जोड़ि गर्दहु प्रार्थना । हाम्रो जीवन तिम्रो कोसेली। इस प्रार्थना को आज ही सवेरे उसने एक नेपाली युवती से सीखा था।

प्रश्न 2.
सुबह-सुबह बालकनी की ओर भागकर लेखिका के हाथ निराशा क्यों लगी? उसके निराश मन को हलकी-सी सांत्वना कैसे मिली?
उत्तर-

सवेरे-सवेरे आँख खुलते ही लेखिका बालकनी की ओर इसलिए भागकर गई क्योंकि वह कंचनजंगा देखना चाहती थी। उसे यहाँ के लोगों ने बताया था कि मौसम साफ़ होने पर बालकनी से कंचनजंगा दिखाई देती है। मौसम अच्छा होने के बाद भी बादल घिरे थे, इसलिए कंचनजंगा न देख पाने के कारण उसके हाथ निराशा लगी। लेखिका ने रंग-बिरंगे इतने सारे फूल खिले देखे कि उसे लगा कि वह फूलों के बाग में आ गयी है। इससे उसके मन को हलकी-सी शांति मिली।

प्रश्न 3.
‘कवी-लोंग-स्टॉक’ के बारे में जितेन नार्गे ने लेखिका को क्या बताया?
उत्तर-

‘कवी-लोंग-स्टॉक’ के बारे में जितेन नार्गे ने लेखिका को यह बताया कि इसी स्थान पर ‘गाइड’ फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। तिब्बत के चीस-खेबम्सन ने लेपचाओं के शोमेन से कुंजतेक के साथ संधि-पत्र पर यहीं हस्ताक्षर किए थे। यहाँ सिक्किम की दोनों स्थानीय जातियों लेपचा और भूटिया के बीच लंबे समय तक चले झगड़े के बाद शांतिवार्ता की शुरूआत संबंधी पत्थर स्मारक के रूप में मौजूद है।

प्रश्न 4.
ऊँचाई की ओर बढ़ते जाने पर लेखिका को परिदृश्य में क्या अंतर नज़र आए?
उत्तर-

लेखिका ज्यों-ज्यों ऊँचाई की ओर बढ़ती जा रही थी, त्यों-त्यों-

  • बाज़ार लोग और बस्तियाँ कम होती जा रही थीं।
  • चलते-चलते स्वेटर बुनने वाली नेपाली युवतियाँ और कार्टून ढोने वाले बहादुर नेपाली ओझल हो रहे थे।
  • घाटियों में बने घर ताश के बने घरों की तरह दिख रहे थे।
  • हिमालय अब अपने विराट रूप एवं वैभव के साथ दिखने लगा था।
  • रास्ते सँकरे और जलेबी की तरह घुमावदार होते जा रहे थे।
  • बीच-बीच में रंग-बिरंगे खिले हुए फूल दिख जाते थे।

प्रश्न 5.
यूमथांग के रास्ते में दोनों ओर बिखरे असीम सौंदर्य को देखकर लेखिका एवं अन्य सैलानियों की प्रतिक्रिया किस तरह अलग थी?
उत्तर-

गंतोक से युमथांग जाते समय रास्ते के दोनों किनारों पर असीम सौंदर्य बिखरा था। इस सौंदर्य को देखकर अन्य सैलानी झूमने लगे और सुहाना सफ़र और ये मौसम हँसी…।’ गीत गाने लगे, पर लेखिका की प्रतिक्रिया इससे हटकर ही थी। वह किसी ऋषि की भाँति शांत होकर सारे परिदृश्य को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। वह कभी आसमान छूते पर्वत शिखरों को देखती तो कभी दूध की धार की तरह झर-झर गिरते जल प्रपातों को, तो कभी नीचे चिकने-चिकने गुलाबी पत्थरों के बीच इठलाकर बहती, चाँदी की तरह कौंध मारती तिस्ता नदी को। ऐसा सौंदर्य देखकर वह रोमांचित हो गई थी।

प्रश्न 6.
‘सेवन सिस्टर्स वाटर फॉल’ को लेखिका ने किसका प्रतीक माना? उसका सौंदर्य देख लेखिका कैसा महसूस करने लगी?
उत्तर-

‘सेवन सिस्टर्स वाटर फॉल’ को लेखिका जीवन की अनंतता का प्रतीक मान रही थी। लेखिका को उस झरने से जीवन-शक्ति का अहसास हो रहा था। इसका सौंदर्य देख लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे वह स्वयं देश और काल की सीमाओं से दूर बहती धारा बनकर बहने लगी है। उसकी मन की तामसिकता इस निर्मल धारा में बह गई है। वह अनंत समय तक ऐसे बहते रहना चाहती है और झरने की पुकार सुनना चाहती है।

प्रश्न 7.
लेखिका ने ‘छाया’ और ‘माया’ का अनूठा खेल किसे कहा है?
उत्तर-

लेखिका ने यूमथांग के रास्ते पर दुर्लभ प्राकृतिक सौंदर्य देखा। ये दृश्य उसकी आँखों और आत्मा को सुख देने वाले थे। धरती पर कहीं गहरी हरियाली फैली थी तो कहीं हल्का पीलापन दिख रहा था। कहीं-कहीं नंगे पत्थर ऐसे दिख रहे थे जैसे प्लास्टर उखड़ी पथरीली दीवार हो। देखते ही देखते आँखों के सामने से सब कुछ ऐसे गायब हो गया, जैसे किसी ने जादू की छडी फिरा दी हो, क्योंकि बादलों ने सब कुछ ढक लिया था। प्रकृति के इसी दृश्य को लेखिका ने छाया और माया का खेल कहा है।

प्रश्न 8.
लेखिका ने किस चलायमान सौंदर्य को जीवन का आनंद कहा है? उसका ऐसा कहना कितना उचित है और क्यों?
उत्तर-

लेखिका ने निरंतरता की अनुभूति कराने वाले पर्वत, झरने, फूल, घाटियाँ और वादियों के दुर्लभ नज़ारों को देखकर आश्चर्य से सोचा कि पल भर में ब्रह्मांड में कितना घटित हो रहा है। निरंतर प्रवाहमान झरने, वेगवती तीस्ता नदी, उठती धुंध ऊपर मँडराते आवारा बादल, हवा में हिलते प्रियुता और रूडोडेंड्रो के फूल सभी लय और तान में प्रवाहमान हैं। ऐसा लगता है। कि ये चरैवेति-चरैवेति का संदेश दे रहे हैं। उसका ऐसा कहना पूर्णतया उचित है क्योंकि इसी चलायमान सौंदर्य में जीवन का वास्तविक आनंद छिपा है।

प्रश्न 9.
लेखिका ने पहाड़ी औरतों और आदिवासी औरतों में क्या समानता महसूस की?
उत्तर

लेखिका ने देखा कि कोमल कायावाली औरतें हाथ में कुदाल और हथौड़े लिए भरपूर ताकत से पत्थरों पर मार रही थीं। इनमें से कुछ की पीठ पर बँधी डोको में उनके बच्चे भी बँधे थे। वे भूख से लड़ने के लिए मातृत्व और श्रम साधना साथ-साथ ढो रही थीं। ऐसा ही पलामू और गुमला के जंगलों में लेखिका ने देखा था कि आदिवासी युवतियाँ पीठ पर बच्चे को कपड़े से बाँधकर पत्तों की तलाश में वन-वन डोलती थीं। उनके पाँव फूले हुए थे और इधर पहाड़ी औरतों के हाथों में श्रम के कारण गाँठे पड गई थीं।

प्रश्न 10.
पहाड़ के निवासियों का जीवन परिश्रमपूर्ण एवं कठोर होता है, सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

पहाड़ के निवासी परिश्रम करते हुए कठोर जीवन जीते हैं। उन्हें अपनी रोजी-रोटी के लिए इतना श्रम करना पड़ता है कि वहाँ कोई बर्बाला नहीं दिखता है। वहाँ की औरतें शाम तक गाएँ चराती हैं और लौटते समय लकड़ियों के भारी भरकम गट्ठर लादे आती हैं। बहुत-सी औरतें पहाड़ों को तोड़कर सड़क बनाने, उन्हें चौड़ा करने जैसे कठोर परिश्रम और खतरनाक कार्यों में लगी हैं। यहाँ के बच्चों को तीन-चार किलोमीटर दूर स्कूल जाना पड़ता है। वे लौटते समय लकड़ियों का गठ्ठर साथ लाते हैं।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
गरमियों में बरफ़ शिलाएँ पिघलकर हमारी प्यास बुझाती हैं? ऐसा लेखिका की सहेली ने किस संदर्भ में कहा? बढ़ते जल प्रदूषण को दूर करने के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे?

उत्तर-
गरमियों में बरफ़ शिलाएँ पिघलकर हमारी प्यास बुझाती हैं। ऐसा लेखिका की सहेली ने प्रकृति द्वारा जल संरक्षण की अद्भुत व्यवस्था के संदर्भ में कहा है। प्रकृति सरदियों में बरफ़ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गरमियों में पानी के लिए हाय-तौबा मचने पर ये बरफ़ शिलाएँ पिघल-पिघलकर हमारी प्यास बुझाती हैं। बढ़ते जल प्रदूषण को दूर करने के लिए मैं निम्नलिखित उपाय एवं कार्य करना चाहूँगा-

  • नंदियों, झीलों तथा तालाबों में दूषित जल मिलने से रोकने के लिए लोगों को जागरूक करूंगा।
  • फैक्ट्रियों का रसायनयुक्त कचरा इनमें मिलने से बचाने का अनुरोध करूंगा।
  • पूजा-पाठ की अवशिष्ट सामग्री नदियों में न डालने का अनुरोध करूंगा।
  • जल स्रोतों के निकट गंदगी न फैलाने का अनुरोध करूंगा।

प्रश्न 2.
‘जाने कितना ऋण है हम पर इन नदियों का’ लेखिका ने ऐसा क्यों कहा है? इन नदियों का ऋण चुकाने के लिए। आप क्या-क्या करना चाहेंगे?
अथवा
नदियों का हम पर ऋण होने पर भी हमारी आस्था इनके लिए घातक सिद्ध हो रही है, कैसे? आप नदियों को साफ़ रखने के लिए क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर

‘जाने कितना ऋण है हम पर इन नदियों का’ लेखिका ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि नदियों का पानी हमारी प्यास बुझाकर जीवन का आधार बन जाता है तो दूसरी ओर सिंचाई के काम आकर अन्न के रूप में हमारा पोषण करता है, फिर भी हम इन नदियों को विविध तरीकों से प्रदूषित एवं गंदा करते हैं। एक ओर इनमें गंदापानी मिलने देते हैं तो दूसरी ओर पुण्य पाने के लिए पूजा-पाठ की बची सामग्री, मूर्तियाँ, फूल मालाएँ डालते हैं तथा स्वर्ग पाने की लालसा में इनके किनारे लाशें जलाते हैं तथा इनमें राख फेंककर इन्हें प्रदूषित करते हैं।
इन नदियों का ऋण चुकाने के लिए हमें-

  • इनकी सफ़ाई पर ध्यान देना चाहिए तथा इनके किनारे गंदगी नहीं फैलाना चाहिए।
  • इनमें न जानवरों को नहलाना चाहिए और न कपड़े या बर्तन धोना चाहिए।
  • नालों एवं फैक्ट्रियों का पानी शोधित करके इनमें मिलने देना चाहिए।
  • पूजा-पाठ की मूर्तियाँ और अन्य सामग्री नदियों में फेंकने के बजाय जमीन में गाड़ देना चाहिए तथा लाशें जलस्रोतों से दूर जलाना चाहिए।

प्रश्न 3.
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ में कहा गया है कि ‘कटाओ’ पर किसी दुकान का न होना वरदान है, ऐसा क्यों? भारत के अन्य प्राकृतिक स्थानों को वरदान बनाने में युवा नागरिकों की क्या भूमिका हो सकती है? 

उत्तर
लेखिका सिक्किम की यात्रा के क्रम में गंतोक, यूमथांग गई पर वहाँ उसे बरफ़ देखने को नहीं मिली, क्योंकि इन स्थानों पर बाज़ार एवं दुकानें होने से पर्याप्त व्यावसायिक गतिविधियाँ होती थीं। यहाँ प्रदूषण की मात्रा अधिक होने से आसपास का तापमान भी बढ़ा था पर कटाओं की स्थिति एकदम विपरीत थी। वहाँ कोई दुकान न होने से न प्रदूषण था और न तापमान में वृद्धि। इससे वहाँ बरफ़ गिरना पहले जैसा ही जारी था। वहाँ दुकान न होना उसके लिए वरदान था। भारत के अन्य प्राकृतिक स्थानों को वरदान बनाने के लिए युवाओं को-

  • वहाँ साफ़-सफ़ाई रखनी चाहिए तथा खाने के खाली पैकेट, गिलास यहाँ-वहाँ नहीं फेंकना चाहिए।
  • वहाँ मिलने वाले कूड़े को जलाने के बजाए ज़मीन में दबा देना चाहिए।
  • वहाँ व्यावसायिक गतिविधियों को बंद करा देना चाहिए।
  • सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए।
  • तेज़ आवाज़ में संगीत नहीं बजाना चाहिए।
  • वहाँ किसी वस्तु को जलाने से बचना चाहिए।

प्रश्न 4.
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी कई तरह से कठिनाइयों का मुकाबला करते हैं। सैनिकों के जीवन से किन-किन जीवन मूल्यों को अपनाया जा सकता है? 
उत्तर-

देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में देश की रक्षा करते हुए कठिनाइयों का मुकाबला करते हैं। ये फ़ौजी रेगिस्तान की गरम लू तथा पचास डिग्री सेल्सियस से अधिक गरमी में हॉफ-हॉफकर देश की चौकसी करते हैं। दूसरी ओर ये भारत के उत्तरी एवं पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा पर माइनस पंद्रह डिग्री सेल्सियस में काम करते हैं। वे पेट्रोल के अलावा सब कुछ जमा देने वाले वातावरण की भी परवाह नहीं करते हैं।

ये फ़ौजी खुद रात-रात भर जागकर देशवासियों को चैन की नींद सोने का अवसर देते हैं। इन विपरीत स्थितियों में काम करते हुए उन्हें समय-असमय दुश्मन की गोलियों का सामना करना पड़ जाता है, पर वे अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटते हैं। इन सैनिकों के जीवन से हमें मातृभूमि से असीम लगाव, देश प्रेम, देशभक्ति, देश के लिए सर्वस्व समर्पण की भावना, देश-हित को सर्वोपरि समझने, मातृभूमि के लिए प्राणों की बाजी लगाने, कर्तव्य के प्रति सजग रहने तथा त्याग करने जैसे जीवन मूल्य अपनाना चाहिए।

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पाठ 2 जॉर्ज पंचम की नाक | class 10th | hindi Kritika Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक

प्रश्न 1.
एलिजाबेथ के भारत आगमन पर इंग्लैंड और भारत दोनों स्थानों पर हलचल मच गई। उनके इस दौरे का असर किन-किन पर हुआ?
उत्तर

रानी एलिजाबेथ के आगमन से इंग्लैंड और भारत दोनों ही जगहों पर हलचल बढ़ गई। उनके इस दौरे से प्रभावित होने वालों में विभिन्न समाचारपत्र, पूरी दिल्ली, एलिजाबेथ का दरजी, विभिन्न विभागों के अधिकारी, कर्मचारी और मंत्रीगण विशेष रूप से प्रभावित हुए। अखबारों में रानी एलिजाबेथ, प्रिंस फिलिप, उनके नौकरों, बावर्चियों, अंगरक्षकों तथा कुत्तों की जीवनी तथा फ़ोटो छपे राजधानी दिल्ली में तहलका मचा हुआ था। सरकारी तंत्र दिल्ली की साफ़ तथा सुंदर तस्वीर प्रस्तुत करना चाहता था। वे सड़कों की साफ़-सफ़ाई, सरकारी इमारतों को साफ़ कर उनका रंग-रोगन कर चमकाने तथा राजमार्ग को चमकाने के लिए परेशान थे। इसके अलावा अन्य तैयारियों के लिए अफ़सरों तथा मंत्रियों की परेशानी तो देखते ही बनती थी क्योंकि जॉर्ज पंचम की लाट की टूटी नाक जोड़ने का प्रबंध उन्हें जो करना था।

प्रश्न 2.
मूर्तिकार की उन परेशानियों का वर्णन कीजिए जिनके कारण उसे ऐसा हैरतअंगेज़ निर्णय लेना पड़ा। वह निर्णय के या था?
उत्तर-

जॉर्ज पंचम की लाट की टूटी नाक ठीक करने के लिए पहले तो मूर्तिकार पहाड़ी प्रदेशों और पत्थर की खानों में उसी किस्म का पत्थर तलाशता रहा। ऐसा करने में असफल रहने पर उसने देश के विभिन्न भागों-मुंबई, गुजरात, बिहार, पंजाब, बंगाल, उड़ीसा आदि भागों के शहीद नेताओं की नाक लिया ताकि उनमें से कोई नाक काटकर लगा सके। यहाँ भी असफल रहने पर उसने बिहार सचिवालय के सामने शहीद बच्चों की मूर्तियों की नाकों की नाप लिया पर यह भी असफल रहा तब उसने ऐसा हैरतअंगेज़ निर्णय लिया। मूर्तिकार द्वारा लिया गया वह हैरतअंगेज़ निर्णय यह था कि चालीस करोड़ में से कोई एक जिंदा नाक काट ली जाए और जॉर्ज पंचम की टूटी नाक पर लगा दी जाए।

प्रश्न 3.
रानी एलिजाबेथ के भारत दौरे के समय अखबारों में उनके सूट के संबंध में क्या-क्या खबरें छप रही थीं?
उत्तर-

रानी एलिजाबेथ के भारत दौरे के समय भारतीय अखबारों में जो खबरें छप रही थीं उनमें ऐसी खबरें अधिक प्रकाशित होती थीं, जिन्हें लंदन के अखबार एक दिन पूर्व ही छाप चुके होते थे। इन खबरों के बीच रानी एलिजाबेथ के सूट की चर्चा भी प्रमुखता के साथ रहती थी। अखबारों ने प्रकाशित किया कि रानी ने एक ऐसा हलके नीले रंग का सूट बनवाया है, जिसका रेशमी कपड़ा हिंदुस्तान से मँगाया गया है जिस पर करीब चार सौ पौंड का खर्च आया है।

प्रश्न 4.
जॉर्ज पंचम की नाक’ नामक पाठ में भारतीय अधिकारियों, मंत्रियों और कार्यालयी कार्य प्रणाली पर कठोर व्यंग्य किया गया है। इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘जॉर्ज पंचम की नाक’ नामक पाठ व्यंग्य प्रधान रचना है। इसमें जॉर्ज पंचम की टूटी नाक को प्रतिष्ठा बनाकर मंत्रियों एवं सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली पर करारा व्यंग्य किया गया है। एलिजाबेथ के भारत आगमन पर राजधानी में तहलका मचने, अफसरों और मंत्रियों के परेशान होने की स्थिति देखकर यही लगता है कि जैसे आज भी हम अंग्रेजों के गुलाम हों। देश के सम्मान से सरकारी कर्मचारियों का कुछ लेना-देना नहीं होता है। यदि उनकी स्वार्थपूर्ति हो रही हो तो वे देश के सम्मान को ठेस पहुँचाने में जरा-सा भी संकोच नहीं करते हैं। येन-केन प्रकारेण स्वार्थ सिधि ही उनका उद्देश्य बनकर रह गया है।

प्रश्न 5.
जॉर्ज पंचम की लाट की टूटी नाक लगाने के क्रम में पुरातत्व विभाग की फाइलों की छानबीन की ज़रूरत क्यों आ गई? इस छानबीन का क्या परिणाम रहा?
उत्तर

जॉर्ज पंचम की लाट की टूटी नाक लगाने के क्रम में पुरातत्व विभाग की फाइलों की छानबीन की ज़रूरत इसलिए आ गई क्योंकि इन्हीं फाइलों में प्राचीन वस्तुओं, इमारतों, लाटों तथा महत्त्वपूर्ण वस्तुओं से संबंधित विस्तृत जानकारी सजोंकर रखी जाती है, जिससे समय आने पर इनसे देश के इतिहास संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सके। इन फाइलों की खोजबीन इसलिए की जा रही थी जिससे मूर्तिकार लाट के पत्थर का मूलस्थान, लाट कब बनी, कहाँ बनी, किसके द्वारा बनाई गई आदि संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर उसकी टूटी नाक की मरम्मत कर सके।

प्रश्न 6.
इस छानबीन का कोई सकारात्मक परिणाम न निकला, क्योंकि फाइलों में ऐसा कुछ न मिला। भारतीय हुक्मरान अपनी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालते नज़र आते हैं। जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ से ज्ञात होता है कि सरकारी कार्यालय के बाबू अपनी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालते नज़र आते हैं। हर कोई इस जिम्मेदारी से बचना चाहता है। मूर्तिकार जब कहता है कि उसे यह मालूम होना चाहिए कि यह लाट कब और कहाँ बनी तथा उसके लिए पत्थर कहाँ से लाया गया, इसका जवाब देने के लिए भारतीय हुक्मरान एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं और अंत में निर्णय कर यह काम एक क्लर्क को सौंप देते हैं।

प्रश्न 7.
जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ के आधार पर बताइए पाठ से भारतीय अधिकारियों की किस मानसिकता की झलक मिलती है?
उत्तर

‘जॉर्ज पंचम की नाक’ नामक पाठ में सरकारी तंत्र के अफसरों की मानसिक परतंत्रता की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। ये अफसरगण मानसिक गुलामी में जीते हुए एलिजाबेथ को खुश करने के लिए बदहवास से दिखाई देते हैं। उन्हें राष्ट्र के शहीद, देशभक्त नेताओं तथा बच्चों के सम्मान का ध्यान नहीं रह जाता और वे लाट पर जिंदा नाक लगाने में तनिक भी आपत्ति नहीं दिखाते हैं। इस असर पर वे देश की मर्यादा और भारतीयों के स्वाभिमान को ताक पर रख देते हैं।

प्रश्न 8.
इंग्लैंड के अखबारों में छपने वाली उन खबरों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण हिंदुस्तान में सनसनी फैल रही थी?
उत्तर-

महारानी एलिजाबेथ के भारत आगमन के समय इंग्लैंड के अखबारों में तरह-तरह की खबरें छप रही थीं, जैसे- रानी ने एक ऐसा हलके नीले रंग का सूट बनवाया है जिसका रेशमी कपड़ा हिंदुस्तान से मँगवाया गया है और उस पर करीब चार सौ पौंड खरचा आया है। रानी एलिजाबेथ की जन्मपत्री, प्रिंस फिलिप के कारनामे, उनके नौकरों बावर्चियों और खानसामों तथा अंगरक्षकों की पूरी जीवनियों के साथ शाही महल में रहने वाले कुत्तों तक की खबरें छप रही थीं। ऐसी खबरों के कारण हिंदुस्तान में सनसनी फैल रही थी।

प्रश्न 9.
जॉर्ज पंचम की नाक की सुरक्षा के लिए क्या-क्या इंतजाम किए गए थे?
उत्तर

जॉर्ज पंचम की नाक की सुरक्षा के लिए हथियार बंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे। किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई उनकी नाक तक पहुँच जाए। भारत में जगह-जगह ऐसी नाकें खड़ी थीं। जिन नाकों तक लोगों के हाथ पहुँच गए उन्हें शानो-शौकत के साथ उतारकर अजायबघरों में पहुँचा दिया गया था। जॉर्ज पंचम की नाक की रक्षा के लिए गश्त भी लगाई जा रही थी ताकि नाक बची रहे।

प्रश्न 10.
रानी के भारत आगमन से पहले ही सरकारी तंत्र के हाथ-पैर क्यों फूले जा रहे थे?
उत्तर-

रानी एलिजाबेथ के भारत आने से पूर्व ही सुरक्षा के कई उपाय करने पर भी जॉर्ज पंचम की नाक गायब हो गई थी। रानी आएँ और नाक न हो। यह सरकारी तंत्र के लिए परेशानी खड़ी कर देने वाली बात थी। अब रानी के भारत आने तक जॉर्ज पंचम की नाक को कैसे ठीक किया जाय कि रानी को जॉर्ज पंचम की लाट सही सलामत हालत में मिले, इसी चिंता में सरकारी तंत्र के हाथ-पैर फूले जा रहे थे।

प्रश्न 11.
मूर्तिकार ने भारतीय हुक्मरानों को किस हालत में देखा? उनकी परेशानी दूर करने के लिए उसने क्या कहा?
उत्तर-

जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक अवश्य होनी चाहिए, यह तय होते ही एक मूर्तिकार को दिल्ली बुलाया गया। मूर्तिकार ने हुक्मरानों के चेहरे पर अजीब परेशानी देखी, उदास और कुछ बदहवास हालत में थे। यह देख खुद मूर्तिकार दुखी हो गया। उनकी परेशानी दूर करने के लिए मूर्तिकार ने कहा, “नाक लग जाएगी पर मुझे यह मालूम होना चाहिए कि यह लाट कब और कहाँ बनी थी? तथा इसके लिए पत्थर कहाँ से लाया गया था।”

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक लगाने के लिए मूर्तिकार ने अनेक प्रयास किए। उन प्रयासों का उल्लेख करते हुए बताइए कि आप इनमें से किसे सही मानते हैं और किसे गलत। इससे उसमें किन मूल्यों का अभाव दिखता है?
उत्तर-

जॉर्ज पंचम की लाट की नाक लगाने के लिए मूर्तिकार सबसे पहले उसी किस्म का पत्थर खोजने के लिए हिंदुस्तान के पहाडी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे पर गया और चप्पा-चप्पा छानने पर भी उसके हाथ कुछ न लगा। उसके इस प्रयास को मैं सही मानता हूँ क्योंकि उसके द्वारा उठाया गया यह सार्थक कदम था। मूर्तिकार जब देश के नेताओं की मूर्तियों की नाप लेने निकला और जब मुंबई, गुजरात, पंजाब, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि के नेताओं की मूर्तियों की नाप के अलावा वर्ष 1942 में शहीद बच्चों तक की नाकों की नाप लिया और अंततः सफल न होने पर एक जिंदा नाक लगा दी तो उसका यह कृत्य अत्यंत गलत लगा क्योंकि एक बुत के लिए जिंदा नाक कितनी विचित्र और लज्जाजनक बात थी। मूर्तिकार के कृत्य से उसमें दूरदर्शिता, शहीदों के प्रति सम्मान और देश के मान-सम्मान की रक्षा करने जैसे मूल्यों का अभाव नज़र आता है।

प्रश्न 2.
जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में देश के विभिन्न भागों के प्रसिद्ध नेताओं, देशभक्तों और स्वाधीनता सेनानियों को उल्लेख हुआ है। इनके जीवन-चरित्र से आप किन मूल्यों को अपनाना चाहेंगे?

उत्तर-
‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में गांधी जी, रवींद्र नाथ टैगोर, लाला लाजपत राय से लेकर रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे देशभक्तों का उल्लेख हुआ है। इन शहीदों एवं देशभक्तों ने देश के लिए अपना तन, मन, धन और सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए नाना प्रकार के कष्ट सहे। इन नेताओं देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन एवं चरित्र से मैं देश प्रेम एवं देशभक्ति, देश के स्वाभिमान पर मर-मिटने की भावना, देशभक्तों का सम्मान, राष्ट्र के गौरव को सर्वोपरि समझने जैसे मूल्यों को अपनाना चाहूँगा तथा समय पर उचित निर्णय लेते हुए ऐसा कार्य करूंगा जिससे देश का गौरव बढ़े।

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पाठ 1 माता का आँचल | class 10th | hindi Kritika Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 माता का आँचल

प्रश्न 1.
‘माता का अँचल’ पाठ में भोलानाथ के पिता की दिनचर्या का वर्णन करते हुए आज के एक सामान्य व्यक्ति की दिनचर्या से उसकी तुलना कीजिए।
उत्तर-

‘माता का अँचल’ पाठ में वर्णित भोलानाथ के पिता की दिनचर्या के बारे में यह पता चलता है कि वे सुबह जल्दी उठते और नहा-धोकर पूजा-पाठ पर बैठ जाते थे। वे अकसर बालक भोलानाथ (अपने पुत्र) को भी अपने साथ बिठा लिया करते थे। वे प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे। पूजा के समय वे भोलानाथ को भभूत से तिलक लगा देते थे। पूजा-पाठ के उपरांत वे रामनामी बही पर एक हज़ार बार राम-राम लिखते थे और अपनी पाठ करने की पोथी में रख लेते थे। इसके उपरांत वे पाँच सौ बार कागज के टुकड़े पर राम-राम लिखते और उन्हीं कागजों पर आटे की छोटी-छोटी गोलियाँ रखकर लपेटते। उन गोलियों को लेकर वे गंगा जी के तट पर जाते और अपने हाथों से मछलियों को खिला देते थे। इस समय भी भोलानाथ उनके साथ ही हुआ करता था। आज के आम आदमी की सुबह इस सुबह की दिनचर्या से इसलिए भिन्न है क्योंकि आज इस भौतिकवादी युग में धन-दौलत के पीछे लगी भागम-भाग के कारण आम आदमी के पास इतना समय ही नहीं है।

प्रश्न 2.
चिड़िया उड़ाते-उड़ाते भोलानाथ और उसके साथियों ने चूहे के बिल में पानी डालना शुरू किया। इस घटना का के या परिणाम निकला?
उत्तर-

खेल से चिड़ियों को उड़ाने के बाद भोलानाथ और उसके साथी को चूहों के बिल में पानी डालने का ध्यान आया। सभी ने एक टीले पर जाकर चूहों के बिल में पानी उलीचनी शुरू किया। पानी नीचे से ऊपर फेंकना था। यह कार्य करते हुए सभी थक गए थे। तभी उनकी आशा के विपरीत चूहे के स्थान पर साँप निकल आया, साँप से भयभीत होकर सभी रोतेचिल्लाते बेतहाशा भागने लगे। कोई औधा गिरा, कोई सीधा। किसी का सिर फूटा, किसी का दाँत टूटा। सभी भागते ही जा रहे थे। भोलानाथ की देह लहू-लुहान हो गई। पैरों के तलवे में अनेक काँटे चुभ गए थे।

प्रश्न 3.
‘माता का अँचल’ पाठ में वर्णित समय में गाँवों की स्थिति और वर्तमान समय में गाँवों की स्थिति में आए परिवर्तन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

पहले गाँवों की स्थिति बहुत अच्छी न थी। वहाँ बिजली, पानी, परिवहन जैसी सुविधाएँ नाम मात्र की थी। लोगों की आजीविका का साधन कृषि थी। आज गाँवों में टेलीविज़न के प्रचार-प्रसार से लोगों में एकाकी प्रवृत्ति बढ़ी है। बच्चे परंपरागत खेलों से विमुख होकर वीडियोगेम, टेलीविज़न आदि के साथ अपना समय बिताना चाहते हैं। इस बढ़ती आधुनिकता ने ग्रामीण संस्कृति को पतन की ओर उन्मुख कर दिया है।

प्रश्न 4.
पिता भले ही बच्चे से कितना लगाव रखे पर माँ अपने हाथ से बच्चे को खिलाए बिना संतुष्ट नहीं होती है- ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

भोलानाथ के पिता भोलानाथ को अपने साथ रखते, घुमाते-फिराते, गंगा जी ले जाते। वे भोलानाथ को अपने साथ चौके में बिठाकर खिलाते थे। उनके हाथ से भोजनकर जब भोलानाथ का पेट भर जाता तब उनकी माँ थोड़ा और खिलाने का हठ करती। वे बाबू जी से पेट भर न खिलाने की शिकायत करती और कहती-देखिए मैं खिलाती हूँ। माँ के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भरता है। यह कहकर वह थाली में दही-भात मिलाती थी और अलग-अलग तोता-मैना, हंस-कबूतर आदि पक्षियों के बनावटी नाम लेकर भोजन का कौर बनाती तथा उसे खिलाते हुए यह कहती कि खालो नहीं तो ये पक्षी उड़ जाएँगे। इस तरह भोजन जल्दी से भरपेट खा लिया करता था।

प्रश्न 5.
बच्चे रोना-धोना, पीड़ा, आपसी झगड़े ज्यादा देर तक अपने साथ नहीं रख सकते हैं। माता के अँचल’ पाठ के आधार पर बच्चों की स्वाभाविक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-

बच्चे मन के सच्चे होते हैं। वे आपसी झगड़े, रोना-धोना, कष्ट की अनुभूति आदि जितनी जल्दी करते हैं उतनी ही जल्दी भूल जाते हैं। वे आपस में फिर इस तरह घुल-मिल जाते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों के सरल तथा निश्छल स्वभाव का पता चलता है। वे लड़ाई-झगड़े की कटुता को अधिक देर तक अपने मन में नहीं रख सकते हैं। खेल-खेल में रो देना या हँस देना उनके लिए आम बात है। अपने मनोरंजन के लिए वे किसी को चिढ़ाने से। भी नहीं चूकते हैं। सुख-दुख से बेपरवाह हो वे अपनी ही दुनिया में मगन रहते हैं।

प्रश्न 6.
मूसन तिवारी को बैजू ने चिढ़ाया था, पर उसकी सजा भोलानाथ को भुगतनी पड़ी, ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

एक दिन भोलानाथ और उसके साथी बाग से आ रहे थे कि उन्हें मूसन तिवारी (गुरु जी) दिखाई दिए। उन्हें कम दिखई पड़ता था। साथियों में से ढीठ बैजू ने उन्हें चिढ़ाते हुए कहा ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करेला का चोखा ।’ गुरु जी को चिढ़ाकर सभी बच्चे घर की ओर भागने लगे। गुरु जी बच्चों को पकड़ने के लिए भागे पर बच्चे हाथ न आए। वे पाठशाला चले गए। पाठशाला से चार बच्चे भोलानाथ और बैजू को पकड़ने के लिए घर आ गए। शरारती बैजू तथा अन्य बच्चे भाग गए पर भोलानाथ को गुरु जी के शिष्य पकड़कर पाठशाला ले गए। जिन बच्चों ने गुरु जी को चिढ़ाया था, उनके साथ रहने के कारण उन्होंने भोलानाथ को दंडित किया।

प्रश्न 7.
भोलानाथ और उसके साथी खेल ही खेल में दावत की योजना किस तरह बना लेते थे?
उत्तर-

भोलानाथ और उसके साथी खेलते-खेलते भोजन बनाने की योजना बना लेते। फिर वे सब भोजन बनाने के उपक्रम में जुट जाते घड़े के मुँह का चूल्हा बनाया जाता। दीये (दीपक के पात्र) की कड़ाही और पूजा की आचमनी की कलछी बनाते। वे पानी को घी, धूल को आटा, बालू को चीनी बनाकर भोजन बनाते तथा सभी भोजन के लिए पंगत में बैठ जाते। उसी समय बाबू जी भी आकर पंगत के अंत में बैठ जाते। उनको देखते ही बच्चे हँसते-खिलखिलाते हुए भाग जाते।

प्रश्न 8.
भोलानाथ और उसके साथी खेल-खेल में फ़सल कैसे उगाया करते थे?
उत्तर-

खेलते-खेलते भोलानाथ और उसके साथी खेती करने और फ़सल उगाने की योजना बनाते चबूतरे के छोर पर घिरनी गाड़कर बाल्टी को कुआँ बना लेते पूँज की पतली रस्सी से चुक्कड़ बाँधकर कुएँ में लटका दिया जाता। दो लड़के बैलों की भाँति मोट खींचने लगते। चबूतरा, खेत, कंकड़, बीज बनता और वे खेती करते। फ़सल तैयार होने में देर न लगती। वे जल्दी से फ़सल काटकर पैरों से रौंदकर ओसाई कर लेते।

प्रश्न 9.
भोलानाथ की माँ उसे किस तरह कन्हैया बना देती?
उत्तर

भोलानाथ जब अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा होता तभी भोलानाथ की माँ उसे अचानक ही पकड़ लेती और भोलानाथ के लाख ना-नुकर करने पर भी चुल्लूभर कड़वा तेल सिर पर डालकर सराबोर कर देती। उसकी नाभि और। लिलार पर काजल की बिंदी लगा देती। बालों में चोटी गूंथकर उसमें फूलदार लट्टू बाँधती और रंगीन कुरता-टोपी पहनाकर ‘कन्हैया’ बना देती थी।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर-

यह बात सच है कि बच्चे (लेखक) को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता उसका लालन-पालन ही नहीं करते थे, उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। परंतु विपदा के समय उसे लाड़ की जरूरत थी, अत्यधिक ममता और माँ की गोदी की जरूरत थी। उसे अपनी माँ से जितनी कोमलता मिल सकती थी, उतनी पिता से नहीं। यही कारण है कि संकट में बच्चे को माँ या नानी याद आती है, बाप या नाना नहीं। माँ का लाड़ घाव को भरने वाले मरहम का काम करता है।

प्रश्न 2.
आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर

शिशु अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रुचि लेता है। उनके साथ खेलना अच्छा लगता है। अपनी उम्र के साथ जिस रुचि से खेलता है वह रुचि बड़ों के साथ नहीं होती है। दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक भी है-बच्चे को अपने साथियों के बीच सिसकने या रोने में हीनता का अनुभव होता है। यही कारण है कि भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।

प्रश्न 3.
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-

भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामग्रियों में कल्पना से अधिक अंतर आ गया है। भोलानाथ के समय में परिवार से लेकर दूर पड़ोस तक आत्मीय संबंध थे, जिससे खेलने की स्वच्छंदता थी। बाहरी घटनाओं-अपहरण आदि का भय नहीं था। खेल की सामग्रियाँ बच्चों द्वारा स्वयं निर्मित थीं। घर की अनुपयोगी वस्तु ही उनके खेल की सामग्री बन जाती थी, जिससे किसी प्रकार ही हानि की संभावना नहीं थी। धूल- मिट्टी से खेलने में पूर्ण आनंद की अनुभूति होती थी। न कोई रोक, न कोई डर, न किसी का निर्देशन । जो था वह सब सामूहिक बुधि की उपज थी।

आज भोलानाथ के समय से सर्वथा भिन्न खेल और खेल सामग्री और ऊपर से बड़ों का निर्देशन और सुरक्षा हर समय सिर पर हावी रहता है। आज खेल सामग्री स्वनिर्मित न होकर बाज़ार से खरीदी हुई होती है। खेलने की समय-सीमा भी तय कर दी जाती है। अतः स्वच्छंदता नहीं होती है। धूल-मिट्टी से बच्चों का परिचय ही नहीं होता है।

प्रश्न 4.
पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर-

पाठ का सबसे रोमांचक प्रसंग वह है जब एक साँप सब बच्चों के पीछे पड़ जाता है। तब वे बच्चे किस प्रकार गिरते-पड़ते भागते हैं और माँ की गोद में छिपकर सहारा लेते हैं-यह प्रसंग पाठक के हृदय को भीतर तक हिला देता है। | इस पाठ में गुदगुदाने वाले प्रसंग भी अनेक हैं। विशेष रूप से बच्चे के पिता का मित्रतापूर्वक बच्चों के खेल में शामिल होना मन को छू लेता है। जैसे ही बच्चे भोज, शादी या खेती का खेल खेलते हैं, बच्चे का पिता बच्चा बनकर उनमें शामिल हो जाता है। पिता का इस प्रकार बच्चा बन जाना बहुत सुखद अनुभव है जो सभी पाठकों को गुदगुदा देता है।

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पाठ 17 संस्कृति | class 10th | hindi Kshitij important questions

NCERT important questions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 17 संस्कृति

प्रश्न 1.
सभ्यता और संस्कृति जैसे शब्द और भी भ्रामक कब बन जाते हैं?
उत्तर-

सभ्यता और संस्कृति जैसे शब्द तब और भी भ्रामक बन जाते हैं जब इन शब्दों के साथ आध्यात्मिक, भौतिक विशेषण आदि जुड़ जाते हैं। ऐसी स्थिति इनका अर्थ गलत-सलत हो जाता है।

प्रश्न 2.
आग के आविष्कारक को बड़ा आविष्कर्ता क्यों कहा गया है?
उत्तर-

आग के आविष्कारक को बड़ा आविष्कारकर्ता इसलिए कहा गया है क्योंकि आग के आविष्कार ने मनुष्य को सभ्य बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इससे एक ओर मनुष्य के पेट की ज्वाला शांत हुई तो दूसरी ओर उसे प्रकाश और ऊष्मा भी मिली।

प्रश्न 3.
संस्कृति और सभ्यता क्या हैं?
उत्तर-

संस्कृति एक संस्कृत मनुष्य की वह योग्यता प्रेरणा अथवा प्रवृत्ति है जिसके बल पर वह किसी नए तथ्य का दर्शन करता है। इस संस्कृति के द्वारा समाज के लिए कल्याणकारी आविष्कार कर जाता है जो मनुष्य को सभ्य बनने में सहायता करता है वही सभ्यता है।

प्रश्न 4.
एक संस्कृत मानव और सभ्य मानव में क्या अंतर है?
उत्तर-

एक संस्कृत मानव वह है जो अपने ज्ञान एवं बुधि-विवेक से किसी नए तथ्य का दर्शन और आविष्कार करता है। इसके विपरीत सभ्य मानवे वह है जो इन आविष्कारों का उपयोग करके अपना रहना-सुधारता है और सभ्य बनता है।

प्रश्न 5.
न्यूटन से भी अधिक ज्ञान रखने वाले और उन्नत जीवन शैली अपनाने वाले को संस्कृत कहेंगे या सभ्य और क्यों?
उत्तर-

न्यूटन से भी अधिक ज्ञान रखने वाले और उन्नत जीवन शैली अपनाने वाले व्यक्ति को सभ्य कहा जाएगा क्योंकि ऐसा व्यक्ति न्यूटन द्वारा आविष्कृत गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के अलावा भले ही बहुत कुछ जानता हो पर उसने किसी नए तथ्य का आविष्कार नहीं किया है, बल्कि दूसरों के आविष्कारों का प्रयोग करते-करते सभ्य बन गया है।

प्रश्न 6.
संस्कृत व्यक्तियों के लिए भौतिक प्रेरणा का क्या महत्त्व है, उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए?
उत्तर-

संस्कृत व्यक्तियों का सदा यही प्रयास रहता है कि वे अपनी बुद्धि और विवेक से किसी नए तथ्य की खोज करें। इसमें भौतिक प्रेरणाओं का बहुत योगदान होता है। ऐसा व्यक्ति तन बँका और पेट भरा होने पर भी खाली नहीं बैठता है और भौतिक प्रेरणाओं के प्रति जिज्ञासु बना रहता है और इस जिज्ञासा को शांत करने में प्रयासरत रहता है।

प्रश्न 7.
सिद्धार्थ ने मानव संस्कृति में किस तरह योगदान दिया?
उत्तर-

सिद्धार्थ राजा शुद्धोदन के पुत्र थे जिनके पास सुख-सुविधाओं का विशाल भंडार था पर सिद्धार्थ को मानवता का दुख दुखी कर रहा था। उन्होंने इस दुखी मानवता के दुख के निवारणार्थ अपने सुख को ठोकर मारकर ज्ञान की प्राप्ति हेतु निकल पड़े जिसका लाभ उठाकर मनुष्य दुखों से छुटकारा पा सके।

प्रश्न 8.
संस्कृति के असंस्कृति बनने का तात्पर्य स्पष्ट करते हुए बताइए इस असंस्कृति का परिणाम क्या होगा?
उत्तर-

संस्कृति मनुष्य का सदा कल्याण करती है। जब संस्कृति से कल्याण की भावना समाप्त होती है तो वह असंस्कृति बन जाती है। संस्कृति मनुष्य को सभ्य बनाती है परंतु इस असंस्कृति का परिणाम यह होगा कि सर्वत्र असभ्यता का बोलबाला होगा जिससे मनुष्यता के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।

प्रश्न 9.
संस्कृति का कूड़ा-करकट’ किसे कहा गया है?
उत्तर-

संस्कृति का कूड़ा-करकट उन सड़ी गली परंपराओं और कुरीतियों को कहा गया है जो समाज के विकास में बाधक सिद्ध होने के साथ ही मानवता हेतु अकल्याणकारी सिद्ध होती है तथा कुछ लोगों को दबाने का प्रयास करती हैं।

प्रश्न 10.
‘संस्कृति’ पाठ का उद्देश्य या उसमें निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘संस्कृति’ पाठ से स्पष्ट होता है कि ज्ञानी एवं बुद्धिमान लोगों द्वारा नए-नए आविष्कार करने की प्रेरणा उसकी संस्कृति है जिससे मानवता का कल्याण होता है। इसी संस्कृति का परिणाम सभ्यता है। संस्कृति के मूल में कल्याण की भावना समाई होती है। मनुष्य को अपने कार्यों से कल्याण की भावना में कमी नहीं आने देना चाहिए। मनुष्य का सदा यही प्रयास होना चाहिए कि उसकी सभ्यता असभ्यता न बनने पाए।

प्रश्न 11.
लेखक की दृष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर-

लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति शब्दों की सही समझ अब तक इसलिए नहीं बन पाई। क्योंकि लोग सभ्यता और संस्कृति शब्दों का प्रयोग तो खूब करते हैं पर वे इनके अर्थ के बारे में भ्रमित रहते हैं। वे इनके अर्थ को जाने-समझे बिना मनमाने ढंग से इनका प्रयोग करते हैं। इन शब्दों के साथ भौतिक और आध्यात्मिक विशेषण लगाकर इन्हें और भी भ्रामक बना देते हैं। ऐसी स्थिति में लोग इनका अर्थ अपने-अपने विवेक से लगा लेते हैं। इससे स्पष्ट है कि इन शब्दों के सही अर्थ की समझ अब तक नहीं बन पाई है।

प्रश्न 12.
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर-

आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज इसलिए मानी जाती है क्योंकि इससे मनुष्य की जीवन शैली और खानपाने में बहुत बदलाव आया। दूसरे मनुष्य के पेट की ज्वाला अधिक सुविधाजनक ढंग से शांत होने लगी। इससे उसका भोजन स्वादिष्ट बन गया तथा उसे सरदी भगाने का साधन मिल गया। इसके अलावा प्रकाश और आग का भय दिखाने से जंगली जानवरों के खतरे में कमी आई। आग ने मनुष्य के सभ्य बनने का मार्ग भी प्रशस्त किया। इसकी खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत पेट की ज्वाला, सरदी से मुक्ति, प्रकाश की चाहत तथा जंगली जानवरों के खतरे में कमी लाने की चाहत रही होगी।

प्रश्न 13.
वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकना है?
उत्तर-

वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति उसे कहा जा सकता है जो अपना पेट भरा होने तथा तन ढंका होने पर भी निठल्ला नहीं बैठता है। वह अपने विवेक और बुधि से किसी नए तथ्य का दर्शन करता है और समाज को अत्यंत उपयोगी आविष्कार देकर उसकी सभ्यता का मार्ग प्रशस्त करता है। उदाहरणार्थ न्यूटन संस्कृत व्यक्ति था जिसने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की। इसी तरह सिद्धार्थ ने मानवता को सुखी देखने के लिए अपनी सुख-सुविधा छोड़कर जंगल की ओर चले गए।

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पाठ 16 नौबतखाने में इबादत | class 10th | hindi Kshitij important questions

NCERT important questions For Class 10 Hindi Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

प्रश्न 1.
अमीरुद्दीन के मामा की दिनचर्या की शुरुआत कैसे होती थी?
उत्तर-

अमीरुद्दीन के मामा देश के जाने-माने शहनाई वादक थे। उनकी दिनचर्या की शुरुआत बालाजी के मंदिर से होती थी। वे सर्वप्रथम इसी मंदिर की ड्योढ़ी पर आ बैठते और रोज बदल-बदलकर मुल्तानी, कल्याण, ललित और कभी भैरव राग सुनाते रहते थे। इसके बाद ही वे विभिन्न रियासतों के दरबार में शहनाई बजाने जाया करते थे।

प्रश्न 2.
रीड क्या है? शहनाई के लिए इसकी क्या उपयोगिता है?
उत्तर-

रीड, एक प्रकार की घास ‘नरकट’ से बनाई जाती है। यह बिहार के डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है। रीड अंदर से पोली खोखली होती है। इसी के सहारे शहनाई में हवा फेंकी जाती है। इसी की मदद से शहनाई बजती है। यदि रीड न हो तो शहनाई बजना कठिन हो जाएगा।

प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ बालाजी मंदिर क्यों जाया करते थे? वे किस रास्ते से मंदिर जाया करते थे?
उत्तर-

बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के रियाज़ के लिए प्रतिदिन नियमित रूप से बालाजी मंदिर जाया करते थे। वे मंदिर तक पहुँचने के लिए रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के पास से जाने वाले रास्ते का प्रयोग करते थे। उन्हें इस रास्ते से जाना अच्छा लगता था। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी दादरा, कभी टप्पे आदि सुनते हुए वे मंदिर पहुँचते थे।

प्रश्न 4.
इतिहास में शहनाई का उल्लेख किस तरह मिलता है?
उत्तर-

वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। संगीत शास्त्रों में इसे सुषिर वाद्य के रूप में गिना जाता है। अरब देश में नरकट या रीड वाले वाद्य यंत्रों को नये कहा जाता है। शहनाई को सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि प्रदान की गई है। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तानसेन द्वारा रचित बंदिश में शहनाई आदि का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 5.
बिस्मिल्ला खाँ अपने खुदा से सजदे में क्या माँगते हैं? इससे उनके व्यक्तित्व की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर-

बिस्मिल्ला खाँ अपनी संगीत कला को समर्पित कलाकार थे। वे अपनी संगीत कला में निखार लाने के लिए खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगा करते थे। वे सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते थे और बार-बार सच्चे सुर की माँग करते। थे। इससे बिस्मिल्ला खाँ की विनम्रता और सीखने की ललक जैसी विशेषताओं का पता चलता है।

प्रश्न 6.
बिस्मिल्ला खाँ की तुलना कस्तूरी मृग से क्यों की गई है?
उत्तर-

बिस्मिल्ला खाँ अपनी सफलता और उपलब्ध्यिों से संतुष्ट होने वाले व्यक्ति न थे। वे सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचकर भी अपने कदम ज़मीन पर रखे हुए थे। जिस तरह हिरन अपनी ही कस्तूरी की महक से परेशान होकर उसे जंगल भर में खोजता फिरता है, उसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के सुर सम्राट होकर भी यही सोचते थे कि उन्हें सुरों को बरतना अभी तक क्यों नहीं आया।

प्रश्न 7.
बिस्मिल्ला खाँ अपनी जवानी के दिनों की किन यादों में खो जाते हैं?
उत्तर-

बिस्मिल्ला खाँ अपनी जवानी के दिनों की निम्नलिखित यादों में खो जाते हैं

  • वे अपने युवावस्था में रियाज को कम जुनून को अधिक याद करते हैं।
  • वे पक्का महाल की कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी वाली दुकान को याद करते हैं।
  • वे गीताबाली एवं अपनी पसंदीदा अभिनेत्री सुलोचना की यादों में खो जाते हैं।

प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ फ़िल्म देखने के अपने शौक को किस तरह पूरा किया करते थे?
उत्तर-

बिस्मिल्ला खाँ फ़िल्म देखने के जुनूनी थे। उस समय थर्ड क्लास का टिकट छह पैसे का मिलता था। वे दो पैसे मामू से, दो पैसे मौसी से और दो पैसे नानी से लेते थे और घंटों लाइन में लगकर टिकट हासिल किया करते थे। वे सुलोचना की। नई फ़िल्म सिनेमाहाल में आते ही बालाजी मंदिर पर शहनाई बजाने से होने वाली आमदनी लेकर फ़िल्म देखने चल पड़ते थे।

प्रश्न 9.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जिस तरह अपने धर्म के प्रति समर्पित थे, उसी प्रकार काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे, तब विश्वनाथ एवं बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे और थोड़ी देर के लिए ही सही पर, शहनाई उन्हें समर्पित कर बजाते थे। उनके मन की आस्था बालाजी और बाबा काशी विश्वनाथ में लगी रहती थी।

प्रश्न 10.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते हैं?
उत्तर-

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ काशी से असीम लगाव रखते हैं। बाबा विश्वनाथ और बालाजी में उनकी गहन आस्था है। उनके पूर्वजों ने काशी में रहकर शहनाई बजाई । बिस्मिल्ला खाँ काशी में ही रहकर शहनाई बजाना सीखा और संस्कार अर्जित किए। उनके नाना और मामा का जुड़ाव भी काशी से रहा है, इसलिए वे कोशी छोड़कर अन्यत्र नहीं जाना चाहते हैं।

प्रश्न 11.
आज के युवाओं को बिस्मिल्ला के चरित्र से क्या सीख लेनी चाहिए?
उत्तर-

बिस्मिल्ला खाँ अत्यंत सादगी से जीवन जीते थे। वे सफलता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी घंटों रियाज किया करते थे। वे बनाव-सिंगार पर ध्यान न देकर लक्ष्य प्राप्ति में जुटे रहे। उनके चरित्र से युवाओं को फैशन एवं सिंगार से दूर रहकर सफलता या लक्ष्य प्राप्ति की ओर ध्यान लगाने, परिश्रमी बनने तथा निरंतर अभ्यास करने की सीख लेनी चाहिए।

प्रश्न 12.
‘नौबतखाने में इबादत’ नामक पाठ में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘नौबतखाने में इबादत’ नामक पाठ में एक ओर सादगीपूर्ण जीवन जीने का संदेश निहित है तो दूसरी ओर निरंतर अभ्यास करने के अलावा धार्मिक कट्टरता त्यागकर धार्मिक उदारता बनाए रखने, दूसरे धर्मों का आदर करने, अभिमान न करने, सफलता मिलने पर भी जमीन पर पाँव टिकाए रखने तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता बनाए रखने का संदेश निहित है।

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पाठ 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन | class 10th | hindi Kshitij important questions

NCERT important questions For Class 10 Hindi Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

प्रश्न 1.
लेखक स्त्री-शिक्षा विरोधियों की किस सोच पर दुख प्रकट करता है?
उत्तर-

लेखक स्त्री-शिक्षा विरोधियों की उस सोच पर दुख व्यक्त करता है जो स्त्रियों को पढ़ाना गृह सुख के नाश का कारण समझते हैं। ये लोग स्वयं में कोई अनपढ़ या गॅवार नहीं हैं बल्कि सुशिक्षित हैं और धर्मशास्त्र और संस्कृत से परिचय रखने वाले हैं। ये लोग अधार्मिकों को धर्म तत्व समझाने वाले हैं फिर भी ऐसी सोच रखते हैं।

प्रश्न 2.
स्त्री-शिक्षा के विरोधी अपनी बात के समर्थन में क्या-क्या तर्क देते हैं?
उत्तर-

स्त्री-शिक्षा के विरोधी अपनी बात के समर्थन में कई कुतर्क प्रस्तुत करते हैं; जैसे

  • स्त्रियों के प्राकृत बोलने से ज्ञात होता है कि इतिहास-पुराणादि में उनको पढ़ाने की नियमबद्ध प्रणाली नहीं थी।
  • स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होता है। शकुंतला प्रकरण इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
  • शकुंतला ने जिस भाषा में श्लोक रचा था, वह अपढ़ों की भाषा थी।

प्रश्न 3.
लेखक नाटकों में स्त्रियों के प्राकृत बोलने को उनके अपढ़ होने का प्रमाण क्यों नहीं मानता है?
उत्तर-

लेखक नाटकों में स्त्रियों के प्राकृत बोलने को उनके अनपढ़ होने का प्रमाण इसलिए नहीं मानता है क्योंकि

  • उस समय का अधिकांश जन समुदाय प्राकृत बोलता है।
  • प्राकृत ही उस समय की जन प्रचलित भाषा थी।
  • संस्कृत का प्रयोग शिक्षित वर्ग ही करता था।
  • अनेक ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं, अत: प्राकृत बोलने वालों को अनपढ़ कैसे कहा जा सकता है।

प्रश्न 4.
प्राचीन काल में प्राकृत का प्रयोग साहित्यिक एवं व्यावहारिक दोनों ही रूपों में होता था, सप्रमाण सिद्ध कीजिए।
उत्तर-

प्राचीन काल में प्राकृत का प्रयोग साहित्यिक एवं व्यावहारिक दोनों ही रूपों में किया जाता था। इसका प्रमाण यह है कि प्राकृत भाषा में बौद्धों एवं जैनों के हजारों ग्रंथ लिखे गए। इसके अलावा भगवान शाक्य मुनि और उनके चेलों ने प्राकृत भाषा में धर्मोपदेश दिए। बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ प्राकृत में ही रचे गए। पंडितों ने गाथा सप्तशती, सेतुबंधु महाकाव्य और कुमारपालचरित जैसे ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में ही की थी।

प्रश्न 5.
‘हिंदी, बाँग्ला आजकल की प्राकृत हैं’ ऐसा कहकर लेखक ने क्या सिद्ध करना चाहा है?
उत्तर-

जिस प्रकार हिंदी, बाँग्ला, मराठी आदि भाषाएँ पढ़कर हम इस जमाने में सभ्य, सुशिक्षित और विद्वान हो सकते हैं तथा इन्हीं भाषाओं में नाना प्रकार के साहित्य और समाचार पत्र पढ़ते हैं उसी प्रकार उस ज़माने में शौरसेनी, मागधी, पाली भी भाषाएँ थीं, जिनमें साहित्य रचे गए और ये भाषाएँ जनसमुदाय द्वारा व्यवहार में लाई जाती थी। इस आधार पर लेखक ने। यह सिद्ध करना चाहा है कि प्राकृत बोलने को हम अपढ़ कैसे कह सकते हैं।

प्रश्न 6.
लेखक ने स्त्री-शिक्षा विरोधियों पर व्यंग्य करते हुए कहा है, इस तर्कशास्त्रज्ञता और न्यायशीलता की बलिहारी! इस तर्कशास्त्रज्ञता और न्यायशीलता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक कहता है कि हम सभी यह मानते हैं कि पुराने जमाने में यह विमान उड़ते थे। इनसे लोग दुवीप द्वीपांतरों को जाते थे, पर उनके बनाने का वर्णन करने वाले कोई ग्रंथ नहीं मिलते हैं। विमानों की यात्राओं के उदाहरण मात्र से उनका अस्तित्व स्वीकार कर लेते हैं पर पुराने ग्रंथों में प्रगल्भ पंडिताओं के नाम होने पर भी स्त्री-शिक्षा विरोधी स्त्रियों को मुर्ख, अपढ़ और गॅवार मानते हैं। लेखक उनकी इसी तर्कशास्त्रज्ञता और न्यायशीलता पर बलिहारी होना चाहता है।

प्रश्न 7.
प्राचीन भारत की किन्हीं दो विदुषी स्त्रियों का नामोल्लेख करते हुए यह भी बताइए कि उस समय स्त्रियों को कौन कौन-सी कलाएँ सीखने की अनुमति थी?
उत्तर-

प्राचीन भारत की दो विदुषी स्त्रियाँ शीला और विज्जा हैं जिन्हें बड़े-बड़े पुरुष कवियों से आदर मिला है। शार्गंधर पद्धति में उनकी कविता के नमूने हैं। उस काल में कुमारी लड़कियों को चित्र बनाने, नाचने, गाने, बजाने, फूल चुनने, हार गूंथने, पैर मलने जैसी अनेक कलाएँ सीखने की अनुमति थी।

प्रश्न 8.
स्त्री-शिक्षा विरोधी स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट क्यों समझते थे?
उत्तर-

स्त्री-शिक्षा विरोधी कभी नहीं चाहते थे कि स्त्रियाँ पढ़-लिखकर आगे बढ़े। उन्हें यह भय सताता रहता था कि इससे वे (पुरुष) स्त्रियों को शोषण नहीं कर पाएँगे। उनके सत्य-असत्य को चुनौती मिलनी शुरू हो जाएगी। वे अपने अभिमान पर इस तरह की चोट सहन नहीं कर सकते थे। अत्रि ऋषि की पत्नी द्वारा पत्नी-धर्म पर घंटों व्याख्यान देना, गार्गी दुद्वारा ब्रह्मवादियों को हराना, मंडन मिश्र की सहधर्मिणी द्वारा शंकराचार्य के छक्के छुड़ाने को आश्चर्यजनक और पाप समझते थे, इसलिए उनकी दृष्टि में स्त्रियों को पढ़ाना कालकूट जैसा था।

प्रश्न 9.
महावीर प्रसाद विवेदी ने स्त्री-शिक्षा विरोधियों को किस संदर्भ में दशमस्कंध का तिरपनवाँ अध्याय पढ़ने का आग्रह किया है?
उत्तर-

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने स्त्री-शिक्षा विरोधियों को इस संदर्भ में दशमस्कंध का तिरपनवाँ अध्याय पढ़ने का आग्रह किया है। जिससे वे यह जान सकें कि पुराने जमाने में सभी स्त्रियाँ अपढ़ नहीं होती थीं और उस समय भी उन्हें पढ़ने की इजाजत थी। वे क्षण भर के लिए भी अपने मन में यह बात न ला सकें कि उस जमाने में स्त्रियों को पढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी जाती थी।

प्रश्न 10.
लेखक ने स्त्री-शिक्षा के समर्थन में किस पौराणिक ग्रंथ का उल्लेख किया है? उसका कथ्य संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

लेखक ने स्त्री-शिक्षा के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करते हुए श्रीमद्भागवत नामक पौराणिक ग्रंथ दशमस्कंध के उत्तरार्ध का तिरंपनवाँ अध्याय का उल्लेख किया है, जिसमें रुक्मिणीहरण की कथा लिखी है। इसका कथ्य यह है कि रुक्मिणी ने एकांत में एक लंबा-चौड़ा खत लिखकर ब्राह्मण के हाथों श्रीकृष्ण को भिजवाया था। उस ग्रंथ में रुक्मिणी की विद्वता उनके पढ़े-लिखे होने का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 11.
शिक्षा की व्यापकता के संदर्भ में लेखक का दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

शिक्षा की व्यापकता के संदर्भ में लेखक का दृष्टिकोण यह है कि लेखक शिक्षा को अत्यंत व्यापक मानता है जिसमें सीखने योग्य अनेक विषयों का समावेश हो सकता है। पढ़ना-लिखना भी शिक्षा के अंतर्गत ही है। लेखक देश-काल और परिस्थिति के अनुरूप शिक्षा में बदलाव का पक्षधर है। वह चाहता है कि शिक्षा प्रणाली में भी सुधार करते रहना चाहिए तथा क्या पढाना है, कितना पढ़ाना है, कहाँ पढ़ाना है आदि विषयों पर बहस करके इसकी गुणवत्ता में सुधार करना चाहिए तथा इसे समान रूप से सभी के लिए उपयोगी बनाए रखने पर विचार करना चाहिए।

प्रश्न 12.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ पाठ का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ पाठ में स्त्रियों के लिए शिक्षा की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए इसे समाज की उन्नति के लिए अत्यावश्यक बताया गया है। लेखक ने समाज में स्त्री शिक्षा विरोधियों के कुतर्को का जवाब देते हुए अपने तर्कों के माध्यम से लोहा लेने का प्रयास किया है। वे उन्हीं परंपराओं को अपनाने का आग्रह करते हैं। जो स्त्री-पुरुष दोनों के लिए समान रूप से उपयोगी हों। वे लोगों से स्वविवेक से फैसला लेने तथा शिक्षा के प्रति सड़ी-गली रूढ़ियों को त्यागने का आग्रह करते हैं। हर काल में स्त्री शिक्षा को प्रासंगिक एवं उपयोगी बताते हुए अनेकानेक उद्धरणों का उल्लेख किया है।

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पाठ 14 एक कहानी यह भी | class 10th | hindi Kshitij important questions

NCERT Important Questions For Class 10 Hindi Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

प्रश्न 1.
इंदौर में लेखिका के पिता खुशहाली के दिन जी रहे थे। लेखिका के पिता के खुशहाली भरे दिनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

इंदौर में लेखिका के पिता की प्रतिष्ठा थी, नाम था और सम्मान था। वे कांग्रेस के साथ-साथ सुधार कार्यों से जुड़े थे। शिक्षा के नाम पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे बल्कि आठ-दस विद्यार्थियों को अपने घर पर रखकर पढ़ाया करते थे, जिनमें से कई आज अच्छे पदों पर हैं। वहाँ उनकी उदारता के चर्चे भी खूब प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 2.
लेखिका के पिता का स्वभाव शक्की क्यों हो गया था? इस शक का परिवार पर क्या असर पड़ रहा था?
उत्तर-

लेखिका के पिता का स्वभाव इसलिए शक्की हो गया था क्योंकि उन्होंने जिन लोगों पर आँख बंद करके भरोसा किया था उन्होंने उनके साथ विश्वासघात किया। इतना ही नहीं उनके अपनों ने भी उनके विश्वास पर चोट पहुँचाई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि वे परिवार के सदस्यों को भी शक की दृष्टि से देखते थे और उनके क्रोध का शिकार परिवारवालो को होना पड़ता था।

प्रश्न 3.
लेखिका अपने भीतर अपने पिता को किन-किन रूपों में पाती है?
उत्तर-

लेखिका के व्यक्तित्व के विकास में उसके पिता का सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों रूपों में योगदान है। लेखिका आज अपने विश्वास को जो खंडित पाती है, उसकी व्यथा के नीचे उनके शक्की स्वभाव की झलक दिखाई पड़ती है। इसके अलावा उसके पिता जी उसके भीतर कुंठा के रूप में, प्रतिक्रिया के रूप में और कहीं प्रतिच्छाया के रूप में विद्यमान हैं।

प्रश्न 4.
लेखिका अपने ही घर में हीनभावना का शिकार क्यों हो गई ?
उत्तर-

लेखिका बचपन में काली, दुबली-पतली और मरियल-सी थी। इसके विपरीत उसकी दो साल बड़ी बहन सुशीला खूब गोरी, स्वस्थ और हँसमुख थी। लेखिका के पिता को गोरा रंग पसंद था। वे बात-बात में लेखिका की तुलना उसकी बहन से करते और उसे हीन सिद्ध करते। इससे लेखिका के मन में धीरे-धीरे हीनता की ग्रंथि पनपने लगी और वह हीन भावना का शिकार हो गई।

प्रश्न 5.
लेखिका को अपने वजूद का अहसास कब हुआ?
अथवा
घर में लेखिका के व्यक्तित्व को सकारात्मक विकास कब से शुरू हुआ?
उत्तर-

अपने ही घर में लेखिका के व्यक्तित्व का सकारात्मक विकास उस समय शुरू हुआ जब उसकी बड़ी बहनों का विवाह हो गया और उसके भाई घर से बाहर अर्थात् कोलकाता पढ़ाई करने चले गए। अब पिता जी ने उसके व्यक्तित्व पर ध्यान देना शुरू किया। वे उसे रसोई में न भेजकर उन बैठकों में उठने-बैठने के लिए प्रोत्साहित करते जहाँ राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चाएँ होती थीं।

प्रश्न 6.
उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण वह अपनी माँ को आदर्श नहीं बना सकी?
उत्तर-

लेखिका की माँ ने अपने आप को परिवार की भलाई में समर्पित कर दिया था। उनका अपना कोई व्यक्तित्व न था। वे बच्चों की उचित-अनुचित माँग को पूरा करते हुए तथा पति के अत्याचार को सहन करते हुए जी रही थी। इसके अलावा निम्नलिखित कारणों से लेखिका उन्हें अपना आदर्श नहीं बना पा रही थी

  • वे अनपढ़ थीं।
  • उनका अपना कोई व्यक्तित्व न था।
  • उनका त्याग मजबूरी में लिपटा हुआ था।

प्रश्न 7.
लेखिका का अपने पिता के साथ टकराव क्यों चलता रहा? यह टकराव कब तक चलता रहा?
उत्तर-

लेखिका का अपने पिता के साथ इसलिए टकराव चलता रहा क्योंकि लेखिका के पिता विशिष्ट बनना-बनाना तो चाह रहे। थे, परंतु वे लेखिका की स्वतंत्रता घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखना चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि मन्नू सड़कों पर नारे लगवाए, लड़कों के साथ हड़तालें करवाए और दुकान बंद कराती एवं सड़कों पर भाषण देती फिरे। अपने पिता के साथ उसका यह टकराव राजेंद्र से शादी होने तक चलता रहा।

प्रश्न 8.
दसवीं के बाद लेखिका द्वारा पुस्तकों का चयन और साहित्य चयन का दायरा कैसे बढ़ता गया?
उत्तर-

लेखिका दसवीं कक्षा तक लेखकों को चुनाव किए बिना, उनकी महत्ता समझे बिना किताबें पढ़ लिया करती थी, क्योंकि साहित्य संबंधी उसकी समझ विकसित नहीं हुई थी। जब वह वर्ष 1945 में फर्स्ट ईयर में आई और हिंदी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से परिचय हुआ तो उन्होंने स्वयं पुस्तकें चुनकर उसे दी और साल-दो साल बीतते उसकी दुनिया शरत, प्रेमचंद से आगे बढ़कर जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल और भगवती चरण वर्मा तक पहुँच गई । इस तरह उसका दायरा बढ़ता गया।

प्रश्न 9.
लेखिका ने कौन-कौन से उपन्यास पढ़े? उन उपन्यासों पर उसकी क्या प्रतिक्रिया रही?
उत्तर-

उपन्यासों की दुनिया में कदम रखते ही उसे जैनेंद्र द्वारा लिखित उपन्यास ‘सुनीता’ अच्छा लगा, जिसके छोटे-छोटे वाक्यों की शैली ने उसे बहुत प्रभावित किया। उसने अज्ञेय का उपन्यास शेखर : एक जीवनी पढ़ा जिसे वह एक बार में नहीं समझ सकी। नदी के द्वीप उसे इतना अच्छा लगा कि वह शेखर को फिर से पढ़ गई । इसी क्रम में उसने जैनेंद्र का त्यागपत्र और भगवती बाबू का चित्रलेखन पढ़ा जिस पर उसने शीला के साथ बहसें कीं।

प्रश्न 10.
प्रिंसिपल के बुलावे पर लेखिका के पिता कॉलेज नहीं जाना चाहते थे पर वहाँ ऐसा क्या हुआ कि वे खुश होकर लौटे?
उत्तर-

लेखिका के कॉलेज की प्रिंसिपल ने अनुशासनहीनता की शिकायत करते हुए पत्र भेजा। पत्र पाकर उसके पिता आग-बबूला होते हुए कॉलेज गए। वहाँ प्रिंसिपल ने बताया कि सारे कॉलेज की लड़कियों पर मन्नू का रोब है। उसके एक इशारे पर वे बाहर आ जाती हैं। इससे कक्षाएँ चलाना मुश्किल हो रहा है। यह सुनकर उसके पिता खुश हुए। उन्होंने प्रिंसिपल से कहा, यह सारे देश की पुकार है। इसके बाद वे खुशी-खुशी घर लौटे।

प्रश्न 11.
देश की राजनैतिक गतिविधियों में युवा वर्ग अपना योगदान किस तरह दे रहा था?
उत्तर-

वर्ष 1942 के आसपास युवावर्ग देश की राजनैतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग ले रहा था। यह वर्ग अपने साथियों या नेताओं की पुकार पर कॉलेज से बाहर आ जाता, हड़तालों में भाग लेता, नारेबाजी करता, जुलूस-प्रदर्शन करता तथा प्रभात फेरियाँ निकलवाने में मदद करता। इसके अलावा अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध प्रकट करने के लिए दुकानें भी बंद करवाता था। इस समय युवावर्ग का खून लावा बन गया था।

प्रश्न 12.
वर्ष 1947 में लेखिका को कौन-कौन सी खुशियाँ मिलीं? उसे कौन-सी खुशी सबसे महत्त्वपूर्ण लगी और क्यों?
उत्तर-

वर्ष 1947 में लेखिका को मुख्य रूप से दो खुशियाँ मिलीं। पहली थर्ड ईयर की कक्षाएँ शुरू करवाना, दूसरी उसका पुनः कॉलेज जाना और तीसरी देश को मिली आज़ादी। वर्ष 1947 में कॉलेज वालों ने थर्ड ईयर की कक्षाएँ बंद करके अनुशासनहीनता फैलाने वाली लड़कियों का कॉलेज में प्रवेश निषिद्ध कर दिया और शीला अग्रवाल को नोटिस थमा दिया, पर मन्नू और अन्य लड़कियों ने बाहर से इतना शोर मचाया कि उन्हें अगस्त में थर्ड ईयर की कक्षाएँ फिर शुरू करनी पड़ीं। इसके तुरंत बाद उसे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण खुशी मिली के योंकि इसका इंतजार सारे देश को था।

प्रश्न 13.
‘एक कहानी यह भी’ पाठ का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर-

‘एक कहानी यह भी’ पाठ में लेखिका मन्नू भंडारी के किशोर जीवन से जुड़ी घटनाओं के अतिरिक्त उनके पिता और उनकी कॉलेज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल को व्यक्तित्व उभरकर आया है जिनके व्यक्तित्व का असर लेखिकीय व्यक्तित्व में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । यहाँ एक साधारण-सी लड़की के असाधारण बनने तथा वर्ष 1946-47 की आज़ादी की आँधी में जोश और उत्साह में भागीदारी निभाने का वर्णन है।

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पाठ 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक | class 10th | hindi Kshitij Important Questions

NCERT Important Questions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

प्रश्न 1.
फ़ादर बुल्के की मृत्यु से लेखक आहत क्यों था?
उत्तर-

फ़ादर बुल्के लोगों से सद्व्यवहार करते हुए हमेशा प्यार बाँटते रहे। उन्हें किसी पर क्रोध करते हुए लेखक ने नहीं देखा था। उनके मन में दूसरों के लिए सदैव सहानुभूति एवं करुणा भरी रहती थी। ऐसे व्यक्ति की मृत्यु ज़हरबाद नामक कष्टदायी फोड़े से हुई। फ़ादर जैसे उदार महापुरुष की ऐसी मृत्यु के बारे में जानकर लेखक आहत हो गया।

प्रश्न 2.
लेखक ने फ़ादर का शब्द चित्र किस तरह खींचा है?
उत्तर-

लेखक ने फ़ादर का शब्द चित्र खींचते हुए लिखा है-एक लंबी पादरी के सफ़ेद चोगे से ढकी आकृति, गोरा रंग, सफ़ेद झाँई मारती भूरी दाढ़ी, नीली आँखें, बाँहे खोलकर गले लगाने को आतुर, जिनका दबाव लेखक अपनी छाती पर महसूस करता है।

प्रश्न 3.
‘परिमल’ क्या है? लेखक को परिमल के दिन क्यों याद आते हैं?
उत्तर-

‘परिमल’ इलाहाबाद की एक साहित्यिक संस्था है, जिसमें युवा और प्रसिद्ध साहित्य प्रेमी अपनी रचनाएँ और विचार एक-दूसरे के समक्ष रखते थे। लेखक को परिमल के दिन इसलिए याद आते हैं, क्योंकि फ़ादर भी ‘परिमल’ से जुड़े। वे लेखक एवं अन्य साहित्यकारों के हँसी-मजाक में शामिल होते, गोष्ठियों में गंभीर बहस करते और लेखकों की रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते थे।

प्रश्न 4.
फ़ादर का सान्निध्य पाकर लेखक को ऐसा क्यों लगन्ना कि वह किसी देवदारु वृक्ष की छाया में खड़ा हो ?
उत्तर-

फ़ादर का सान्निध्य और उत्सवों के अवसर पर फ़ादर बड़े भाई और पुरोहित के समान साथ खड़े होते और आशीर्वाद से भर देते। लेखक को उसका बच्चा और उसके मुँह में फ़ादर द्वारा अन्न डालना और उनकी आँखों में चमकता वात्सल्य अब भी याद है। यह वात्सल्य और सान्निध्य उसी तरह शीतलता से भर देता, जैसे देवदारु वृक्ष की शीतल छाया किसी यात्री को शीतलता से भर देती है।

प्रश्न 5.
फ़ादर की पारिवारिक पृष्ठभूमि और उनका स्वभाव भी किसी सीमा तक उन्हें संन्यासी बनाने में सहायक सिद्ध हुई’–स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

फ़ादर के परिवार में उनके माता-पिता, दो भाई और एक बहन थे। उनके पिता व्यवसायी थे। एक भाई बेल्जियम में ही पादरी हो गया था। दूसरा भाई काम करता था, उसका भरा-पूरा परिवार था। उनकी बहन जिद्दी और सख्त थी। उसने । बहुत देर से शादी की। पिता और भाइयों के प्रति फ़ादर के मन में शुरू से ही लगाव न था, पर वे अपनी माँ को बराबर याद किया करते थे। इस तरह उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और स्वभाव उन्हें संन्यासी बनाने में सहायक सिद्ध हुआ।

प्रश्न 6.
संन्यासी बनने से पूर्व फ़ादर ने धर्म गुरु के सामने क्या शर्त रखी और क्यों?
उत्तर-

संन्यासी बनने से पूर्व फ़ादर जब इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, तो उसे बीच में ही छोड़कर धर्मगुरु के पास गए और संन्यास लेने की बात कही। उन्होंने धर्मगुरु के सामने भारत जाने की शर्त रखी क्योंकि भारत की प्राचीन संस्कृति और यहाँ जन्म ले चुके महापुरुषों ने उनके मन में भारत के प्रति आकर्षण पैदा किया होगा।

प्रश्न 7.
भारत आने के लिए पूछने पर फ़ादर क्या जवाब देते थे?
उत्तर-

फ़ादर बुल्के से अब पूछा जाता था कि आप भारत क्यों आए तो वे बड़ी सरलता से कह देते थे-प्रभु की इच्छा। वे यह भी बताते थे कि उनकी माँ ने बचपन में ही कह दिया था कि यह लड़का तो गया हाथ से। सचमुच माँ की यह भविष्यवाणी सत्य साबित होती गई। फ़ादर के मन में संन्यासी (पादरी) बनने की इच्छा बलवती होती गई और वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई अधूरी छोड़कर भारत आ गए।

प्रश्न 8.
फ़ादर बुल्के ने भारत में बसने के लिए क्या आवश्यक समझा? उन्हें किस तरह हासिल किया?
अथवा
भारत आने पर फ़ादर द्वारा शिक्षा-दीक्षा प्राप्ति के सोपानों का क्रमिक वर्णन कीजिए।
उत्तर-

भारत आने पर फ़ादर ने सबसे पहले यहाँ शिक्षा-दीक्षा लेना आवश्यक समझा। इसके लिए उन्होंने ‘जिसेट संघ’ में पहले दो साल पादरियों के बीच धर्माचार की पढ़ाई की, फिर नौ-दस वर्ष दार्जिलिंग में पढ़ते रहे। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता से बी०ए० किया और फिर इलाहाबाद से एम०ए० करने के उपरांत अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।

प्रश्न 9.
‘संन्यासी होने के बाद भी फ़ादर का अपनी माँ से स्नेह एवं प्रेम कम न हुआ’–स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

लेखक और फ़ादर के घनिष्ठ संबंध थे। फ़ादर लेखक को अक्सर माँ की स्मृतियों में डूबा हुआ देखा करता था। फ़ादर की माँ की चिट्ठियाँ प्रायः उनके पास आया करती थीं। इन चिट्ठियों को वे अपने अभिन्न मित्र डॉ. रघुवंश को दिखाया करते थे। भारत बसने के बाद भी वे अपनी माँ और मातृभूमि को नहीं भूल पाए थे। इससे स्पष्ट है कि संन्यासी होने के बाद भी फ़ादर का अपनी माँ से स्नेह एवं प्रेम कम न हुआ

प्रश्न 10.
फ़ादर बुल्के ने हिंदी के उत्थान के लिए क्या-क्या प्रयास किए?
उत्तर-

भारत में रहते हुए फ़ादर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एम०ए० किया। इससे ज्ञात होता है कि हिंदी से उन्हें विशेष लगाव था। उन्होंने हिंदी के उत्थान के लिए

  • हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अकाट्य तर्क प्रस्तुत करते।
  • हर मंच से हिंदी की दुर्दशा पर दुख प्रकट करते।
  • हिंदी वालों द्वारा हिंदी की उपेक्षा पर दुख प्रकट करते।
  • वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने के लिए चिंतित रहते।

प्रश्न 11.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के आधार पर फ़ादर की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-

‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ से फ़ादर बुल्के की निम्नलिखित विशेषताओं का ज्ञान होता है

  • फ़ादर संकल्प के संन्यासी थे, मन के नहीं।
  • फ़ादर संबंध बनाकर उसे निभाना जानते थे।
  • फ़ादर अपने परिचितों एवं परिवार वालों के साथ स्नेहमय संबंध रखते थे।
  • वे सुख-दुख में परिवार के सदस्यों की भाँति खड़े नजर आते थे।
  • वे भारत और हिंदी से असीम लगाव रखते थे।

प्रश्न 12.
फ़ादर पास्कल ने ऐसा क्यों कहा कि इस धरती से ऐसे और रत्न पैदा हों?
उत्तर-

फ़ादर कामिल बुल्के वास्तव में रत्न थे। वे करुणा, सहानुभूति और ममत्व से भरपूर थे। वे सदा दूसरों में प्यार बाँटते थे। क्रोध उन्हें छू भी न सका था। भारत आने के बाद वे भारत के होकर रह गए और यहीं की संस्कृति में रचबसकर रह गए। वे दुख में सांत्वना देते तथा सुख और उत्सव में बड़े भाई-सा आशीर्वाद देते। उनका साथ देवदारु वृक्ष की छाया जैसा होता। उनके मानवीय गुणों को याद कर फ़ादर पास्कल ने कहा कि धरती से ऐसे और रत्न पैदा हों।

प्रश्न 13.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ नामक पाठ में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ नामक पाठ के माध्यम से हमें फ़ादर जैसे ‘मानवीय करुणा के सागर’ बुल्के की तरह करुणा एवं सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करने का संदेश मिलता है, वहीं यह भी संदेश मिलता है कि हमें अपनी मातृभूमि से असीम प्यार करना चाहिए। इसके अलावा हम भारतवासियों को विदेश में बसने का लोभ त्यागकर अपने देश की सेवा करनी चाहिए। हमें हिंदी और भारत दोनों का ही भरपूर आदर करने का संदेश भी मिलता है।

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