Chapter 15 महादेवी वर्मा | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

जाग तुझको दूर जाना – महादेवी वर्मा (अंतरा भाग 1 पाठ 15)

कवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद, उत्तरप्रदेश में हुआ था l इनकी प्रारंभिक शिक्षा, इंदौर में हुईl इनका विवाह  बारह वर्ष की आयु मे हो गया था।
प्रयाग विश्वविद्यालय से इन्होंने एम. ए. किया l
इनकी प्रमुख काव्य कृति है– निहार, रश्मि, नीरजा, संध्या गीत, यामा और दीप शिखा है l महा देवी वर्मा ने भारतीय समाज में स्त्री जीवन के बारे में वर्तमान, अतीत और भविष्य सब का मूल्यांकन किया है l प्रस्तुत काव्यांश दीप शिखा पाठ्य पुस्तक से उद्धृत की गई है, सब आँखों के आंसू उजले कविता में प्रकृति कि उस मनोरम दृश्य की चर्चा की गई  है जो जीवन का सत्य है और मनुष्य को हर संभव लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता करता है l

जाग तुझको दूर जाना कविता का भावार्थ – Jaag Tujhko Door Jaana Hai Poem Summary in Hindi

ये महादेवी वर्मा का एक प्रेरक गीत है इस गीत में महादेवी वर्मा खुद को मोटीवेट करती हुई कहती है कि आज तुम इतने आलस्य में क्यों है, क्यों व्यर्थ के कामों में उलझी हुई हो। फालतु व्यवस्थाओं और आलस्य से खुद को जगाओ क्योंकि अभी तुमे जिंदगी में काफी कुछ करना है, अभी तुमे अपनी जिंदगी में काफी दूर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये तुमे बिना किसी बात से परेशान हुए हमेशा अपने मार्ग में आगे बढ़ते रहना है फिर चाहे भले ही हिमालय पर्वत अपनी जगह से हिलने लगे या आसमानों से ऑसुओ की बारिश होने लगे या फिर आकाश में घना अधेंरा हो जाये और सिवाय अंधकार के कुछ भी दिखाई ना दे। चाहे कुछ भी हो जाये तुम्हें निरंतर आगे बढ़ते रहना है। चाहे बिजली की चमक से भयंकर तूफान आ जाये या भयंकर तूफान आने की वजह से मार्ग भी दिखाई ना दे।

लेकिन तुझे बिना किसी बात की परवाह करते हुए आगे बढ़ते रहना है। निराशा को कभी अपने ऊपर हावी नही होने देना है भले ही अपनी इस कोशिश में तुम्हें अपनी जान भी गवानी पड़ जाये। इस दुनिया में कुछ ऐसा करके जाना है कि दुनिया वाले तुमे हमेशा याद रखे और तुम्‍हारे जाने के बाद भी इस दुनिया में तुम्हारी अमिट छाप मौजूद रहें।

महादेवी वर्मा इस कविता में संसारिक बंधनों के बारे में भी बात करती है। वो कहती है कि क्या संसारिक मोहमाया के बंधन जो बहुत आसानी से मोम के सामान पिघल सकते हैं तेरा रास्ता रोक सकते है। क्या तितलियों के रंगों के जैसे दिखने वाले संसारिक सुख तुम्हारी राह में रूकावट बन सकते हैं। इस संसार में इसके अलावा भी बहुत कुछ है। ये संसार दुखों से भरा पड़ा है।

क्या इन दुखों के बारे में सोचकर और इन्हें जानकर भी तुम संसारिक सुखों के बारे में सोच सकती हो। क्या तुम्‍हारा हृदय समाज की इस व्यथा को दूर करने के लिए तड़प नही उठता है। संसार के सभी सुख और आर्कषण तुम्हारी खुद की परछाई के सामान है। यदि तुम अपनी परछाई का पीछा करने लग गए तो कभी आगे नही बढ़ पाओगे और तुम्हारा विकास रूक जाएगा। इसलिए बिना डरे, बिना निराश हुए अपनी परछाई को अपने रास्ते की रूकावट मत बनने दो और हमेशा आगे बढ़ते रहो।

वो अपनी इस कविता में आगे कहती है कि तुम्हें अपनी अंदर की शक्ति को पहचानना होगा। तुम्हारे अंदर काफी साहस है। तुम्हारे अंदर असीम इच्छा शक्ति है जिसके सामने कोई भी ससांरिक आर्कषण ज्यादा समय तक नही टिक सकता। लेकिन आज तुम्हें ना जाने क्या हो गया है। आज तुम्हारी इच्छा शक्ति क्यों कमजोर पड़ रही है।

आज क्यों तुम संसार के अत्याचार और उत्पीड़न को भूलकर आलस्य में डूबी हुई हो। ऐसे तो तुम अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच पाओगी। तुम्हे इस आलस्य को छोड़कर अपने लक्ष्य के बारे में सोचना पड़ेगा।

अभी अपने लक्ष्य को याद करके अपना सफर शुरू का दो। अपनी मौत से पहले तुम्‍हे उसे हर हाल में पाना होगा। इसलिए अब निराश होने का वक्‍त नही है। अपने गुजरे हुए कल के बारे में सोचकर निराश होने से कुछ नही मिलने वाला। अपने अतीत को भूल जाओ और आगे बढ़ो। उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति होने से पहले रूको मत।

अपने लक्ष्य पर पहुंचने से पहले अगर तुम्‍हारी जान भी चली गई तो ये संसार तुमहे हमेशा याद रखेगा। दीपक की लौ पर चलने वाला पंतग मरने के बाद भी दीपक को अमर बना देता है। तुम्‍हारा रास्‍ता त्‍याग और बलिदान का है। तुम्हें जीवन की तमाम कठिनाईयो से पार पाते हुए आगे बढ़ते रहना है। अत: अब तुम जागो और आगे बढ़ो अभी तुम्हारी मंजिल काफी दूर है। 

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Chapter 14 सुमित्रानंदन पंत | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

Sandhya Ke Baad Class 11 Hindi Antra Chapter 14 Summary

सुमित्रानन्दन पंत का जीवन परिचय :

👉 छायावादी काव्यधारा के महान कवि सुमित्रानंदन पंत  का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गांव में हुआ। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी में हुई तथा उच्च शिक्षा इलाहाबाद के ‘म्योर कॉलेज’ में हुई।

      पंत जी ने ‘लोकायतन’ संस्था की स्थापना की। ये लंबे समय तक आकाशवाणी के परामर्शदाता रहें। 28 दिसम्बर 1977 में इनका निधन हो गया।

सुमित्रानन्दन पंत की रचनाएं व सम्मान:-

👉 ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘ग्रंथि’, ‘स्वर्नकिरण’, ‘गुंजन’ एवं ‘उत्तरा’।

साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960 कला व बूढ़ा चांद) ज्ञानपीठ पुरस्कार (1969 चिदम्बरा) पाने वाले हिन्दी के प्रथम कवि हैं।

पद्मभूषण (1961) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार।

सुमित्रानन्दन पंत की काव्यगत विशेषताएं:-

  1. सुमित्रानंदन पंत की आरंभिक कविताओं में प्रकृति प्रेम एवं रहस्यवाद झलकता है। इसके बाद के चरण की कविताएं मार्क्स व गांधी से प्रभावित है अगले चरण की कविताओं पर अरविंद दर्शन का प्रभाव नजर आता है।
  2. पंत जी प्रकृति के चितेरे (चित्रकार) कवि है।
  3. प्रकृति के काल रूप का चित्रण एवं उसके पल-पल के परिवर्तनशील सौंदर्य का चित्रात्मक वर्णन इनकी विशेषता है।

सुमित्रानन्दन पंत की भाषा-शैली:-

  1. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
  2. मानवीकरण, विशेषण-विप्रयय एवं धवन्यार्थ व्यंजना जैसे नवीन अलंकारों के साथ उपमा, रूपक एवं उत्प्रेक्षा जैसे परम्परागत अलंकारों का प्रयोग।
  3. अमृत के माध्यम से मूर्त का वर्णन उनकी प्रमुख विशेषता है।

Sandhya ke baad summary in Hindi – संध्या के बाद कविता का सारांश 

👉 प्रस्तुत कविता छायावाद के प्रमुख आधार स्तंभ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ‘ग्राम्या’ में संकलित है।

      कविता में संध्या के समय होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों, ग्रामीण जीवन के दैनिक किर्याकलापों के वर्णन के साथ-साथ मानवता एवं संवेदनशीलता का भी संदेश दिया है कवि ने एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की आश्यकता पर बल दिया है।

जो शोषणमुक्त हो, जिसमें दरिद्रता न हो एवं कर्म तथा गुणों के आधार पर साधनों व अर्थ की प्रप्ति हो, गावन दरिद्रता, उत्पीड़न एवं निराशा व्याप्त है। परंतु व्यक्ति इनको प्रकट करने में असमर्थ है। कवि ने समस्त पापों का कारण दरिद्रता को माना है। दरिद्रता के लिए कोई व्यक्ति-विशेष दोषी नहीं है। बल्कि सामाजिक व्यवस्था दोषी है।

      गांव के बनिए के माध्यम से कवि कहना चाहता है की व्यक्ति अपनी कथनी और कहनी में समानता द्वारा सामाजिक व्यवस्था में तभी परिवर्तन का सकता है। जब व्यक्ति की सोच और आचरण समान है।

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Chapter 13 पद्माकर| CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

Padmakar Class 11 Hindi Antra Chapter 13 Summary

Padmakar ka jeevan parichay – पद्माकर का जीवन परिचय
👉 श्री पद्माकर का जन्म 1733 में सागर में हुआ था लेकिन कुछ इतिहासकार इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बताते है। इनके पिता श्री मोहन लाल भट्ट थे। इनके पिता व अन्य वशंज कवि थे इसलिए इनके वंश का नाम कविश्वर पड़ा। बूंदी नरेश, पन्ना के राजा जयपुर से इन्हें विशेष सम्मान मिला। इनका निधन सन् 1833 में हुआ।

पद्माकर की रचनाएं:-
पदमाभरण, रामरसायन, गंगा लहरी, हिम्मत बहादुर, विरुदावली, प्रताप सिंह विरुदावली, प्रबोध पचासा इनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं। कवि राज शिरोमणि की उपाधि से इन्हें सम्मानित किया गया।

Padmakar class 11 summary in Hindi


👉 पहले कवित्त में कवि ने प्रकृति-सौंदर्य का वर्णन किया है। प्रकृति का संबंध विभिन्न ऋतुओं से है। वसंत ऋतुओं का राजा है। वसंत के आगमन पर प्रकृति, विहग और मनुष्यों की दुनिया में जो सौंदर्य संबंधी परिवर्तन आते हैं, कवि ने इसमें उसी को लक्षित किया है।

👉 दूसरे कवित्त में गोपियाँ लोक-निंदा और सखी-समाज की कोई परवाह किए बिना कृष्ण के प्रेम में डूबे रहना चाहती हैं।

👉 अंतिम कवित्त में कवि ने वर्षा ऋतु के सौंदर्य को भौंरों के गुंजार, मोरों के शोर और सावन के झूलों में देखा है। मेघ के बरसने में कवि नेह को बरसते देखता है।

पद्माकर के कवित्त 

औरै भाँति कुंजन में गुंजरत
औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौंर,
औरे डौर झौरन पैं बौरन के ह्वै गए।
कहैं पद्माकर सु औरै भाँति गलियानि,
छलिया छबीले छैल औरै छबि छ्वै गए।
औरै भाँति बिहग-समाज में अवाज होति,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए।
औरै रस औरै रीति औरै राग औरै रंग,
औरै तन औरै मन औरै बन ह्वै गए।।

गोकुल के कुल के गली के गोप
गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के
जौ लगि कछू-को-कछू भाखत भनै नहीं।
कहैं पद्माकर परोस-पिछवारन के,
द्वारन के दौरि गुन-औगुन गनैं नहीं।
तौ लौं चलित चतुर सहेली याहि कौऊ कहूँ,
नीके कै निचौरे ताहि करत मनै नहीं।
हौं तो स्याम-रंग में चुराई चित चोराचोरी,
बोरत तौं बोर्यौ पै निचोरत बनै नहीं।।

भौंरन को गुंजन बिहार
भौंरन को गुंजन बिहार बन कुंजन में,
मंजुल मलारन को गावनो लगत है।
कहैं पद्माकर गुमानहूँ तें मानहुँ तैं,
प्रानहूँ तैं प्यारो मनभावनो लगत है।
मोरन को सोर घनघोर चहुँ ओरन,
हिंडोरन को बृंद छवि छावनो लगत है।
नेह सरसावन में मेह बरसावन में,
सावन में झूलिबो सुहावनो लगत है।।

Padmakar class 11 vyakhya

औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भीर भौंर,
औरे डौर झौरन पैं बौरन के ह्वै गए।
कहैं पद्माकर सु औरै भाँति गलियानि,
छलिया छबीले छैल औरै छबि छ्वै गए।
औरै भाँति बिहग-समाज में अवाज होति,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए।
औरै रस औरै रीति औरै राग औरै रंग,
औरै तन औरै मन औरै बन ह्वै गए।।

Padmakar class 11 explanation: कवि कहता है कि वसंत ऋतु के आते ही लताओं-झांडियो में घूमते विचरते भांरों की गुंजार कुछ और ही प्रकार की हो गई है। आम की मंजरियों के गुच्छों की छटा भी अलग ही प्रकार की हो गई है। कवि का तात्पर्य यह है कि वसंत ऋतु का आगमन होते ही प्रकृति में एक विशेष प्रकार का निखार आ गया है ल। कवि पद्माकर कहते है कि गलियों में घूमने वाले वांके, सजीले और सुंदर नवयुवकों पर अलग प्रकार की ही छवि छा गई है। अर्थात् सुंदर युवकों की छवि और भी आकर्षक प्रतीत हो रही है।

गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के
जौ लगि कछू-को-कछू भाखत भनै नहीं।
कहैं पद्माकर परोस-पिछवारन के,
द्वारन के दौरि गुन-औगुन गनैं नहीं।
तौ लौं चलित चतुर सहेली याहि कौऊ कहूँ,
नीके कै निचौरे ताहि करत मनै नहीं।
हौं तो स्याम-रंग में चुराई चित चोराचोरी,
बोरत तौं बोर्यौ पै निचोरत बनै नहीं।।

Padmakar class 11 explanation: कवि के अनुसार गोकुल क्षेत्र के ग्वालों के सभी गांवों की गली-गली में होली का उल्लास इस तरह से छाया हुआ है कि वहां के हाल के बारे में कुछ भी कहते नहीं बनता। कवि का तात्पर्य यह है कि वहां हर ओर होली की मस्ती छाई हुई है। कवि पद्माकर कहते है कि लोग अपने आस-पड़ोस, पिछवाड़े और द्वार-द्वार तक दौड़ लगते हुए होली खेल रहे है। वे किसी के गुण-अवगुण का भी ध्यान नहीं रखते। कवि होली का वर्णन करते हुए आगे कहता है कि कोई चंचल और चतुर सखी अपनी सखी से कहती है कि वह रंग में भीगे हुए अपने कपड़े को अच्छी तरह से निचोड़ने का प्रयास करती है, लेकिन उसमें निचोड़ते नहीं बनता क्योंकि उसका मन वश में नहीं रहा।

भौंरन को गुंजन बिहार बन कुंजन में,
मंजुल मलारन को गावनो लगत है।
कहैं पद्माकर गुमानहूँ तें मानहुँ तैं,
प्रानहूँ तैं प्यारो मनभावनो लगत है।
मोरन को सोर घनघोर चहुँ ओरन,
हिंडोरन को बृंद छवि छावनो लगत है।
नेह सरसावन में मेह बरसावन में,
सावन में झूलिबो सुहावनो लगत है।।

Padmakar class 11 explanation: कवि के अनुसार सावन में वन और झंडियों  – लताओं के बीच घूमते हुए भौरों का गुंजार करना राग मल्हार में गीत गाने जैसा प्रतीत हो रहा है कवि पद्माकर कहते हैं कि वर्षा के प्रेमपूर्ण वातावरण में मुझे आत्म अभियान, मान-सम्मान अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय अपना प्रियतम लगता है। दूसरा अर्थ यह है कि सावन में प्रेयसी का घमंड से रूठना भी प्राणों से प्यारा और मन को अच्छा लगने वाला लगता है। यहां कवि का तात्पर्य यह है कि वर्षा ऋतु के आनंददायक परिवेश में यदि प्रेयसी घमंड करते हुए रूठ भी जाए तो उसको बुरा नहीं लगता बल्कि अधिक आकर्षक उत्पन्न होता है।

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Chapter 12 देव | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

देव का जीवन परिचय:-

👉 महाकवि देव का जन्म सन् 1673 में इटावा उत्तर प्रदेश में हुआ था | उनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था | औरंगजेब के पुत्र आलमशाह के संपर्क में आने से देव ने कई अस्रादाता बदले, परन्तु उन्हें सबसे ज्यादा संतुष्टि भोगीलाल नाम के सह्रदय अश्रेदाता के यहाँ प्राप्त हुई जिसमे उनके काव्य से खुश होकर इन्हें लाखो की संपत्ति दान की |

कई अश्रेयदाता राजाओं, नवाबो, धनिकों से सम्बन्ध रहने के कारण राज दरबारों का आदम्बर्पूर्ण व चाटुकारिता भरा जीवन देव ने बहुत नजदीक से देखा था, इसलिए उन्हें ऐसे जीवन से वृतषषना हो गयी थी |

रचनाएं:-
👉 देव कृत कुल ग्रंथो की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है | उनमे ‘भावविलास’, ‘भवानीविलास’, ‘अष्टयम’, ‘सुमिल विनोद’, ‘सुजन्विनोद’ , ‘काव्यरसायन’, ‘प्रेमदीपिका’ आदि मुख्या है |

भाषा शैली:-
👉 देव के कवित्त सवैयों में प्रेम व सौंदर्य के इन्द्रधनुष चित्र मिलती हैं | संकलित सवैयों तथा कवित्तों में एक तरफ जहाँ रूप-सौन्दर्य का अलंकारिक चित्रण हुआ है, वही रागात्मक भावनाओ की अभिव्यक्ति भी संवेदनशील के साथ हुई है |
👉 रीतिकालीन कविओ में देव बड़े प्रगतिशील कवि थे | दरबारी अभिरुचि से बंधे होने के कारण उनकी कविता में जीवन के विविध दृश्य नही मिलते, परन्तु उन्होंने प्रेम और सौन्दर्य के मार्मिक चित्र पेश किए है|

काव्यगत विशेषताएं:-
👉 कवि देव प्रेम और सौंदर्य के कवि थे। इनके काव्य में श्रंगार के उदास रूप का चित्रण है। अनुप्रास और यमक इनके पसंदीदा अलंकार है।
👉 कवि देव के काव्य की भाषा कोमलकांत पदावली युक्त ब्रज भाषा है। भाषा में प्रवाह और लालित्य हैं। प्रचलित मुहावरों का भी खूब प्रयोग किया है।

Hasi ki chot summary in Hindi

👉 ‘हंसी की चोट’ विप्रलंभ शृंगार का अच्छा उदाहरण है। कृष्ण के मुँह फेर लेने से गोपियाँ हँसना ही भूल गई हैं। वे कृष्ण को खोज-खोज कर हार गई हैं। अब तो वे कृष्ण के मिलने की आशा पर ही जीवित हैं। उनके शरीर के पंच तत्त्वों में से अब केवल आकाश तत्त्व ही शेष रह गया है।

👉 ‘सपना’ में कृष्ण स्वप्न में गोपी को अपने साथ झूला झूलने को कहते हैं। तभी गोपी की नींद टूट जाती है, और उसका स्वप्न खंडित हो जाता है। इसमें संयोग-वियोग का मार्मिक चित्रण हुआ है। ‘दरबार’ में पतनशील और निष्क्रिय सामंती व्यवस्था पर देव ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

हंसी की चोट

साँसनि ही सौं समीर गयो अरु, आँसुन ही सब नीर गयो ढरि।
तेज गयो गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तन की तनुता करि।।
‘देव’ जियै मिलिबेही की आस कि, आसहू पास अकास रह्यो भरि,
जा दिन तै मुख फेरि हरै हँसि, हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि।।

Hasi ki chot vyakhya – हंसी की चोंट की व्याख्या:-
👉 कृष्ण के चले जाने पर गोपी कहती है कि जब से कान्हा ने मुंह फेरा है, तब से मेरी सांसों की वायु चली गई है अर्थात् सांस तो चल रही है पर जान चली गई है। उसके आंसू थम नहीं रहे हैं। उसके शरीर का सारा पानी सूख रहा है। अपने सारे गुण अर्थात् शक्ति को साथ लिए हुए तेज़ भी चला गया है। कमजोरी के कारण मात्र कंकाल रह गया है।

देव कहते हैं कि गोपी केवल कृष्ण से मिलने की आश में जीवित है। उस आशा के पास ही आकाश पानी शून्य भर रहा है, अतः वहीं मेरे जीने का सहारा है। गोपी कहती है कि कान्हा ने मेरी हंसी का भी हरण कर लिया है, मैं हंसना भूल गई हूं। मैं उसे ढूंढ़ती फिर रही हूं, जिसने मेरे हृदय को हर लिया है।

सपना

झहरि-झहरि झीनी बूँद हैं परति मानो,
घहरि-घहरि घटा घेरी है गगन में।
आनि कह्यो स्याम मो सौं ‘चलौ झूलिबे को आज’
फूली न समानी भई ऐसी हौं मगन मैं।।
चाहत उठ्योई उठि गई सो निगोड़ी नींद,
सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में।
आँख खोलि देखौं तौ न घन हैं, न घनश्याम,
वेई छाई बूँदैं मेरे आँसु ह्वै दृगन में।।

सपना कविता की व्याख्या:-

👉 गोपी कहती है कि मैंने सपने में देखा कि झर-झर की आवाज के साथ हल्की हल्की बूंदे पड़ रही है। आकाश में गड़गड़ाहट करते हुए बादल छाए हुए है। उसी समय कृष्ण आकर कहते है कि चलो झूला झूलते है। मैं आनंद में मग्न होकर बहुत खुश हो रही है।

मैं उठना ही चाहती थी कि आभगी नींद खुल गई। मेरा भाग्य ही खराब था कि मेरी नींद ही खुल गई और मैं कृष्ण के सहचर्या का आनंद ना उठा सकी। आंखे खुली तो देखा कि ना बादल थे ना ही कृष्ण थे। कृष्ण से मिलन का वह आंनद अब विरह कि वेदना के रूप में बदल चुका है।

दरबार

साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहिरी, रंग रीझ को माच्यो।
भूल्यो तहाँ भटक्यो घट औघट बूढ़िबे को काहू कर्म न बाच्यो।।
भेष न सूझ्यो, कह्यो समझ्यो न, बतायो सुन्यो न, कहा रुचि राच्यो।
‘देव’ तहाँ निबरे नट की बिगरी मति को सगरी निसि नाच्यो।।

दरबार कविता की व्याख्या:-

👉 कवि कहता है कि वर्तमान समाज में राजा अंधे हो चुके है, दरबारी गूंगे है तथा राजसभा बहरी बन चुकी है। वे लोग सुंदर रंग-रूप में सब कुछ लुटा रहे है। राजा अपने फर्ज और जिम्मेदारियों को अनदेखा कर रहे है। दरबारी चुप है।

आम जनता की आवाज़ दब रही है। राजा और दरबारी अपना कर्त्तव्य को भुला कर रूप सौंदर्य में खो रहे है। वे लोग सारे पतित कार्य कर रहे है।

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Chapter 11 सूरदास | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

सूरदास का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के रचयिता सूरदास जी हैं। सूरदास जी के जन्म को लेकर मतभेद है। कुछ विद्वानों के अनुसार इनका 

जन्म सन् 1478 को रुनकता उत्तरप्रदेश जिला आगरा में हुआ माना जाता है। और कुछ विद्वानों का मानना है कि इनका जन्म दिल्ली के निकट सीही ग्राम में हुआ था। सूरदास जी गऊघाट पर रहते थे। सूरदास भक्ति-काल के सगुण भक्ति-शाखा के श्रेष्ठ कवि हैं। महाकवि सूरदास जी वात्सल्य रस के महान सम्राट माने जाते हैं। वे महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य थे। सुरदास पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय के ‘अष्टछाप’ कवियों में से सबसे प्रसिद्ध कवि थे। इनकी काव्य रचना में प्रकृति और कृष्णबाल लीला का वर्णन किया गया है। सुरदास कृष्णभक्त कवि थे उन्होंने कृष्ण के जन्म से लेकर उनके मथुरा जाने तक की कथा और कृष्ण के अन्य लीलाओं का बहुत ही मनोरम काव्य रचना की है। वे ब्रज भाषा तथा अन्य बोलचाल की भाषा में काव्य रचना करते थे। उन्होंने अपने काव्यों में भक्ति-भावना, प्रेम, वियोग, श्रृंगार इत्यादि को बड़ी ही सजगता से सरल और सहज स्वाभाविक रूप में वर्णन किया है। सुरदास जी के सभी पद गेय हैं आर्थत गायन रूप में है | उनकी रचना किसी ना किसी राग में बंधी हुई है। उनके अनुसार अटल भक्ति ही मोक्ष-प्राप्ति का एक मात्र साधन है और उन्होंने भक्ति को ज्ञान से भी बढ़ कर माना है। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1583 ई. में हुई मानी जाती है | 

सूरदास जी की कुछ प्रमुख कृतियाँ में सूरसागर, साहित्य लहरी, सूर सारावली आदि शामिल हैं। उनका लिखा सूरसागर ग्रन्थ सबसे ज़्यादा लोकप्रिय माना जाता है | सूरसागर को राग सागर भी कहा जाता है…|| 

खेलन में को काको गुसैयाँ मुरली तऊ गुपालहिं भावति पाठ का सारांश

प्रस्तुत दोनों पद के रचयिता सूरदास जी हैं। प्रथम पद में कवि ने कृष्ण के बाललीला का अत्यंत मनोरम वर्णन किया है। कृष्ण और सखाओं के बीच खेल-खेल में हो रहे नाराजगी को बताया है, जिसमें कान्हा खेल में हार जाते हैं लेकिन हार स्वीकार नहीं करते | उनके सखा कान्हा से कहते हैं तुम हार गए हो और तुम हमारे स्वामी नहीं हो जो हम तुम्हारी हर बात को माने | हमें इस तरह के मित्र नहीं चाहिए जो खेल में नाराज हो जाए लेकिन कवि कहते हैं कि कान्हा खेलना चाहता है और कान्हा ने अपने नँदबाबा कि शपथ भी ली है और दाव सखा को दे दिया । इस पद में बाल-मनोविज्ञान का अत्यंत सूक्ष्म चित्रण किया गया है। दूसरे पद में कवि ने कृष्ण की मुरली के प्रति गोपियों के इर्ष्या के भवना को प्रकट किया है। इसमें सारी सखियाँ कृष्ण की मुरली को अपना दुश्मन समझती हैं, कहती हैं कि इस मुरली ने कान्हा को वश में करके रखा है और इशारों पर नचा रही है। इस जलन की भावना में गोपीयों का कृष्ण के प्रति प्यार भी झलकता है। इस पद में कृष्ण और गोपियों का अनन्त प्रेम देखने को मिलता है…|| 

सूरदास के पद पाठ के प्रश्न उत्तर 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए — 
प्रश्न-1 खेलन में को काको ‘गुसैयाँ’ पद में कृष्ण और सुदामा के बीच किस प्रसंग का वर्णन है ? 

उत्तर- 
खेलन में को काको  ‘गुसैयाँ’ पद में कृष्ण और सुदामा के बीच खेल-खेल में हो रहे नाराजगी का वर्णन किया गया है। कान्हा खेल में हार जाते हैं लेकिन अपना हार स्वीकार नहीं करते हैं, जिससे नाराज होकर सभी मित्र इधर-उधर चले जाते हैं।

प्रश्न-2 हार जाने पर भी कृष्ण के क्रोध करने का क्या कारण था ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कृष्ण हारने के बाद भी अपनी हार स्वीकार नहीं कर रहा था। जीत की रट लगा रहा था। कृष्ण के क्रोध का कारण अपनी हार को स्वीकार नहीं करना था। 

प्रश्न-3 ‘मुरली तऊ गुपालहिं भावति।’ पद में एक सखी दूसरी सखी से क्या कहती है ? 

उत्तर- 
‘मुरली तऊ गुपालहिं भावति।’ पद में एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि सखी सुनती हो ये मुरली नंदलाल को कई तरह से नचाती है। उसके बाद भी कृष्ण को इस मुरली से इतनी मोह है। यह मुरली कान्हा को एक पैर में खड़ा करके रखती है और कान्हा पर अपना अधिकार जमाती है। और तो और उनके कोमल शरीर से आज्ञा तक मनवा लेती है। और कृष्ण की कमर भी टेढ़ी हो आती है। बस बात इतनी ही नहीं किसी दास की तरह श्रीकृष्ण का सर भी उसके सामने झुकाने को मजबूर कर देती है। यह मुरली कान्हा के होठों पर सज कर उनके हाथों से अपना पैर तक दबवाती है। उनके अधर पर मुरली को देखकर लगता है जैसे कोई सेज में लेटा हो। टेढ़ी भृकुटी, बाँके नेत्रों और फड़कते हुए नासिका पुटों से हम पर क्रोध करवाती हैं। मुरली श्री कृष्ण को एक क्षण के लिए भी प्रसन्न जानकर धड़ से सिर हिलवाती हैं। इस तरह सखियाँ मुरली के प्रति अपना नाराजगी जता रही हैं | 

प्रश्न-4 कृष्ण को ‘सुजान कनौड़े’ क्यों कहा गया है ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कृष्ण को ‘सुजान कनौड़े’ इसलिए कहा गया है क्योंकि कृष्ण की मुरली बहुत चतुर है | वह कृष्ण को अपने दास की तरह अपने सामने सिर झुकाने को मजबूर कर देती है | 

प्रश्न-5 खेल में रूठने वाले साथी के साथ सभी क्यों नहीं खेलना चाहते हैं ? 

उत्तर- खेल-खेल में किसी एक के रूठ जाने से सारा खेल का मज़ा समाप्त हो जाता है। जो खेल में अपनी हार नहीं मानता उसके साथ खेलना अच्छा नहीं लगता है। कान्हा भी अपनी हार स्वीकार नहीं करता है, इसलिए सारे मित्र उन्हें छोड़कर ईधर-उधर चले जाते हैं। कान्हा से कहते हैं जो खेल में रूठ जाए उसके साथ कौन खेलना चाहेगा। 

प्रश्न-6 खेल में कृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने उन्हे डॉंटते हुए क्या-क्या तर्क दिए ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, खेल में कृष्ण के रूठने से उनके सखा ग्वालबाल उनको डाँटते हुए कहते हैं कि कृष्ण खेल-खेल में हार जाने से नाराजगी कैसी, खेल में कौन किसका स्वामी होता है। तुम हार गए हो और सखा श्रीदामा जीत गए हैं। फिर जबरदस्ती का नाराज क्यों हो रहे हो | झगड़ा क्यों कर रहे हो ?  तुम्हारी जाति-पाति हमसे बड़ी तो है नहीं और न ही हम तुम्हारे अधीन है तुम्हारी छाया के नीचे तो रहते नही हैं। तुम इतना अधिकार इसलिए दिखाते हो क्योंकि तुम्हारे बाबा के पास हमसे अधिक गाय हैं |  कृष्ण को साथियों ने यही तर्क दिए | 

प्रश्न-7 कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दाव क्यों दिया ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कृष्ण जब हार नहीं मानते हैं तो सारे सखा उनसे झगड़ा करके इधर-उधर भाग जाते हैं। लेकिन कृष्ण खेलना चाहते हैं। इसलिये कृष्ण ने नंद बाबा का दुहाई देकर दाव सखा को दे देता है | 

प्रश्न-8 बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की छवि किस प्रकार हो जाती है ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की छवि ऐसा लगता है जैसे बाँसुरी कृष्ण के होंठों पर सज कर उनसे अपना पैर दबाव रही हो। टेढ़ी भृकुटी, बाँके नेत्रों और फड़कते हुए नासिका पुटों से हम पर क्रोध करवाती हैं |  

प्रश्न-9 गिरधर नाव नवावती से सखी का क्या आशय है ? 

प्रश्न-10 कृष्ण के अधरों की तुलना सेज से क्यों की गई है ? 

उत्तर- 
कृष्ण की अधरों की तुलना सेज से इसलिए कि गई है क्योंकि मुरली को कान्हा जब होंठों पर सजाते हैं,  तो हाथों पर मुरली को देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई सेज में लेटा हो। कृष्ण के हाथ मुरली के लिए सेज बन जाता है | 

प्रश्न-11 पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विषेशताएँ बताइए | 

उत्तर- 
पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विषेशताएँ निम्नालिखित हैं — 

• पदों में गेयता का गुण है | 
• बाल लीलाओं का मनोरम वर्णन | 
• गोपियों का कृष्ण के प्रति अत्यंत प्रेम का भाव | 
• जलन में छुपा गोपियों का कान्हा के पति प्रेम | 
• इन पदों में ब्रज भाषा का प्रयोग | 
• बाल मनोविज्ञान बालकों के स्वभाव का चित्रण | 
• अधर सज्जा ,कर – पल्लव में रुपक अलंकार का  प्रयोग है | 
• सुनिरी सखी, नैन नासा में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग | 
• इस कविता में श्रृंगार रस का प्रयोग | 

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सूरदास के पद पाठ से संबंधित शब्दार्थ 

• कटी – कमर
• गुसैयां – स्वामी।
• श्रीदामा – श्रीकृष्ण का एक सखा।
• बरबस हीं – जबरदस्ती ही।
• छैयां – छायाँ के नीचे , अधीन।
• सुजान – चतुर।
• कोय – क्रोध
• कनौड़े – क्रीतदास।
• नार – गर्दन, स्त्री
• सन – समान।
• गिरिधर – पर्वत को उठाने वाले
• घर तैं सीस ढुलावति – धड़ पर सिर हिलवाने  लगती है। 

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Chapter 10 कबीर | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार – पाठ 11 – कबीर (Kabir) आरोह भाग – 1 NCERT Class 11th Hindi Notes

सारांश

1. हम तो एक एक …………………….कहै कबीर दीवाना||

अर्थ

यहाँ प्रस्तुत पहले पद में कबीर ने परमात्मा को दृष्टि के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई तो इसी व्याप्ति की अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है|

कबीर उस एक परमात्मा को जानते हैं, जिन्होंने समस्त सृष्टि की रचना की है और वे इसी संसार में व्याप्त हैं| जिन्हें परमात्मा का ज्ञान नहीं है, वे इस संसार और परमात्मा के अस्तित्व को अलग-अलग रूप में देखते हैं| कबीर ने कहा है कि समस्त संसार में एक ही वायु और जल और एक ही परमात्मा की ज्योति विद्यमान है| उन्होंने कुम्हार की तुलना परमात्मा से करते हुए कहा है कि जिस प्रकार कुम्हार एक ही मिट्टी को भिन्न-भिन्न आकार व रूप के बर्तनों में गढ़ता है उसी प्रकार ईश्वर ने भी एक ही तत्व से हम मनुष्यों की रचना अलग-अलग रूपों में की है| मनुष्य का शरीर नश्वर है किन्तु आत्मा अमर है| जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी को काट सकता है लेकिन उसमें निहित अग्नि को नहीं, उसी प्रकार शरीर के मरने के बाद भी आत्मा कभी नहीं मरती| कबीर कहते हैं कि संसार का मायावी रूप लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है और इसी झूठी माया पर लोगों को गर्व क्यों है| वे परमात्मा की भक्ति में दीवाना बनकर लोगों को सांसारिक मोह-माया से मुक्त होने की बात करते हैं| वे कहते हैं कि जो लोग इस मोह-माया के बंधन से मुक्त हो जाते है, उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं रहता|

2. संतो देख……………………..सहजै सहज समाना||

अर्थ

दूसरे पद में कबीर ने बाह्याडंबरों पर प्रहार किया है, साथ ही यह भी बताया है कि अधिकांश लोग अपने भीतर की ताकत को न पहचानकर अनजाने में अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते हैं और वास्तविक संसार से बेखबर रहते हैं|

कबीर कहते हैं कि इस संसार के लोग पागल हो गए हैं| उनके सामने सच्ची बात कही जाए तो वे नाराज होकर मारने दौड़ते हैं और वे झूठी बातों पर विश्वास करते हैं| कबीर ने इस संसार में ऐसे साधु-संतों को देखा है जो धर्म के नाम पर व्रत और नियमों का कठोरता से पालन करते हैं| वे अपनी अंतरात्मा की आवाज को नहीं सुनते और बाह्याडंबरों का दिखावा करते हैं| ऐसे कई पीर-पैगंबर हैं जो धार्मिक पुस्तकें पढ़कर स्वयं को ज्ञानी समझते हैं| ये अपने शिष्यों को भी परमात्मा की प्राप्ति का उपाय बताते हैं जबकि ऐसे पाखंडी स्वयं इस ज्ञान से वंचित हैं| कुछ लोग आसन-समाधि लगाकर बैठे रहते हैं तथा स्वयं को ईश्वर का सच्चा साधक मानकर अहंकार में डूबे रहते हैं| पत्थर की मूर्तियों तथा वृक्षों की पूजा करना, तीर्थ यात्रा करना, ये सब व्यर्थ के भुलावे हैं| कुछ लोग गले में माला, टोपी और माथे पर तिलक लगाकर पाखंड करते हैं| उन्हें स्वयं परमात्मा का ज्ञान नहीं है, लेकिन दूसरों को ज्ञान बाँटते फिरते हैं| कबीर कहते हैं कि लोग धर्म के नाम पर आपस में लड़ते हैं| हिन्दू राम को और मुसलमान रहीम को श्रेष्ठ मानते हैं और आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं| जबकि ये दोनों ही मूर्ख हैं क्योंकि किसी ने भी ईश्वर के अस्तित्व को नहीं समझा है| कबीर कहते हैं कि अज्ञानी गुरूओं की शरण में जाने पर उनके शिष्य भी उन्हीं की तरह मूर्ख बन जाते हैं और संसार रुपी मोह-माया के जाल में फँस कर रह जाते हैं| ऐसे गुरू अपने शिष्यों को आधा-अधूरा ज्ञान बाँटते हैं, जिन्हें स्वयं परमात्मा का कोई ज्ञान नहीं होता| इस प्रकार, कबीर का कहना है कि सच्चे परमात्मा की प्राप्ति सहजता और सरलता से होती है न कि दिखावे और ढोंग से|

कवि-परिचय

कबीर

जन्म – सन् 1398, वाराणसी के पास ‘लहरतारा’ में|

प्रमुख रचनाएँ- इनकी प्रमुख रचना ‘बीजक’ है जिसमें साखी, सबद एवं रमैनी संकलित हैं|

मृत्यु – सन् 1518 में बस्ती के निकट मगहर में|

कबीर भक्तिकाल की निर्गुण धारा के प्रतिनिधि कवि हैं| वे अपनी बात को साफ़ एवं दो टूक शब्दों में प्रभावी ढंग से कह देने के हिमायती थे| इसीलिए कबीर को हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा है| कबीर ने देशाटन और सत्संग से ज्ञान प्राप्त किया| किताबी ज्ञान के स्थान पर आँखों देखे सत्य और अनुभव को प्रमुखता दी| वे कर्मकाण्ड और वेद-विचार के विरोधी थे तथा जाति-भेद, वर्ण-भेद, और संप्रदाय-भेद के स्थान पर प्रेम, सद्भाव और समानता का समर्थन करते थे|


कठिन शब्दों के अर्थ:

• दोजग (फा. दोज़ख)- नरक
• समांनां- व्याप्त
• खाक- मिट्टी
• कोंहरा- कुम्हार, कुंभकार
• सांनां- एक साथ मिलाकर
• बाढ़ी- बढ़ई
• अंतरि- भीतर

• सरूपै- स्वरूप
• गरबांनां- गर्व करना
• निरभै- निर्भय
• बौराना- बुद्धि भ्रष्ट हो जाना, पगला जाना
• धावै- दौड़ते हैं
• पतियाना- विश्वास करना
• नेमी- नियमों का पालन करने वाला
• धरमी- धर्म का पाखंड करने वाला
• असनाना- स्नान करना, नहाना
• आतम- स्वयं
• पखानहि- पत्थर को, पत्थरों की मूर्तियों को
• बहुतक- बहुत से
• पीर औलिया- धर्मगुरू और संत, ज्ञानी
• कुराना- कुरान शरीफ़ (इस्लाम धर्म की धार्मिक पुस्तक)
• मुरीद – शिष्य
• तदबीर – उपाय
• आसन मारि – समाधि या ध्यान मुद्रा में बैठना
• डिंभ धरि – आडंबर करके
• गुमाना – अहंकार
• पीपर – पीपल का वृक्ष
• पाथर – पत्थर
• छाप तिलक अनुमाना – मस्तक पर विभिन्न प्रकार के तिलक लगाना
• साखी – गवाह
• सब्दहि – वह मंत्र जो गुरु शिष्य को दीक्षा के अवसर पर देता है
• आत्म खबरि – आत्मज्ञान
• रहिमाना – दयालु
• महिमा – गुरु का माहात्म्य
• सिख्य – शिष्य

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Chapter 9 भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है? | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है का सारांश

प्रस्तुत पाठ भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ? लेखक हरिश्चंद्र भारतेंदु जी के द्वारा लिखित है। यह पाठ भारतेंदु जी के प्रसिद्ध भाषण से लिया गया है इसमें लेखक ने भारतीयों एवं ब्रिटिशों के बीच तुलना किया है | एक ओर ब्रिटिश शासन के मनमानी पर व्यंग्य है तो वहीं दूसरी ओर उनके परिश्रमी स्वभाव के प्रति आदर भी है। तो वहीं भारतीयों के आलसी पन का भी उल्लेख किया लेखक ने भारतीयों को रेल गाड़ी के समान भी कहा है जो बिना इंजन का कुछ नहीं कर सकते हैं। भारतेंदु ने आलसी पन, समय के अपव्यय आदि कमियों को दूर करने की बात कही है तथा भारतीय समाज के रूढ़िवादी और गलत जीवन शैली पर भी तीखा प्रहार किया है। लेखक ने भारतीयों को देश का  हितैषी बन कर मेहनत और परिश्रम करके देश की उन्नति में आगे बढ़कर कार्य करने को भी कहा है जिससे हमारा देश आगे बढ़ते रहे। जनसंख्या नियंत्रण, श्रम की महत्ता,  आत्म बल और त्याग भावना को देश की उन्नति में अनिवार्य माना है | 

लेखक ने मेहनत करके आगे बढ़ने को कहा है क्योंकि जो मेहनत नहीं करेगा वह इस जिंदगी की दौड़ में पीछे रह 

जाएगा | उसके बाद लाख कोशिश कर ले आगे नहीं बढ़ सकेगा। देश की गरीबी को लेकर भी उन्होंने बताने का प्रयास किया है | देश में गरीबी बुरी तरीके से छाई हुई है। गरीबी से सब ह्रास हैं | जो लीगों को आगे बढ़ने का मौका ही नहीं देती है। ना ही गरीब लोग अपनी इज्ज़त बचा सकते हैं। इनको तो बस अपनी रोजी-रोटी की ही चिंता होती है तो ये कब उन्नति के बारे में सोच पाएंगे। पहले के जो राजा-महाराजा थे प्रजा की समस्याओं को हल करने के स्थान पर पूजा-पाठ, खाने-पीने तथा बेकार की बातें करने और छट्टियाँ मानने में समय नष्ट कर देते थे। अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर भागते थे तथा प्रजा को सुखी नहीं रखते थे। बस अपनी ही धुन में रहते थे और ब्रिटिश मेहनत करके अपने विवेक का इस्तेमाल करके उन्नती की शिखर चढ़ रहे थे। कई लोग धर्म के आड़ में, देश की चाल की आड़ में देश को खोखला कर रहे हैं। धर्म शास्त्रों में कई बातें लिखी गई है, जो समाज के विरुद्ध मानी जाती है | लेकिन धर्म शास्त्रों के खिलाफ़ है, जैसे जहाज का सफर, बाल-विवाह,  विधवा विवाह, कुलीन प्रथा, बहुविवाह आदि इनका संशोधन होना चाहिए। समय और देश के अनुसार इनमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। लेखक ने हिंदू, मुसलमानों के झगड़े पर भी व्यंग्य किया है | उन्होंने कहा है कि एक ही देश में रहकर एक दूसरे के बुराई मत करो। जो एक दूसरे को दुख पहुँचाए मित्र बनकर एक दूसरे के भई बनकर देश की उन्नति में साथ दो। हिन्दुओं को भी जंतर मंतर से दूर रहने को कहा है तथा मुसलमानों को पुरानी बादशाहत छोड़कर बच्चों को अच्छी तालीम देने को कहा है एवं लड़कियों को रोजगार भी सीखने का उल्लेख किया है। लोगों को जाती-पति, रंग-भेद, छोटे-बड़े, ऊँच-नीच की भवना को छोड़कर प्रेम से रहने की सिख दी है। तथा एक दूसरे की सहायता करने की तालीम भी दी है। लेखक ने आगे विलायती वस्तु को छोड़कर अपने परिश्रम से बने चीजों को उपयोग करने को कहा है क्योंकि हम विदेशियों के बनाए हुए चीज़ों को उपयोग में लाते हैं | लेखक कहते हैं, यह तो वही मसला हुई कि एक बेफ़िकरे मँगनी का कपड़ा पहिनकर किसी महफ़िल में गए। वे कहते हैं कि बहुत अफसोस की बात है कि तुम अपने निजी काम की वस्तु भी नहीं बना सकते लेकिन अब तो जाग जाओ अपने देश की सब तरह से उन्नति करो । जो तुम्हें पसन्द है वही करो परदेशी वस्तु और परदेसी भाषा का भरोसा मत रखो अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो। परिश्रम से आगे बढ़ो देश की उन्नति में अपना योगदान दो ताकि देश सबसे आगे हो आलस छोड़कर मेहनत करो लेखक देश के उन्नती के लिए सबको जगाने का प्रयास किया है…|| 

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भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय 

प्रस्तुत पाठ के लेखक ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र’ जी हैं | इनका जन्म सन् 1850 में काशी में हुआ था। इनके पिता गोपालचंद्र जी थे | वे भी एक प्रसिद्ध कवि थे। जब हरिश्चन्द्र जी मात्र 5 वर्ष के थे तब इनकी माता चल बसीं और दस वर्ष की आयु में पिता जी भी चल बसे। भारतेन्दु जी विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। इन्होंने अपने परिस्थितियों से प्रेरणा ली। इनके सारे मित्र बड़े-बड़े लेखक, कवि एवं विचारक थे, जिनकी बातों से हरिश्चंद्र जी प्रभावित थे। बंगाल के प्रख्यात व्यक्ति ईश्वरचंद्र विद्यासागर से इनका गहरा सम्बंध था। हरिश्चंद्र जी देशप्रेम और क्रांतिचेतना वाले व्यक्ति थे। वे पुनर्जागरण के चेतना के अप्रतिम नायक रहे है तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। इन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया जैसे – कविवचनसुधा, हरिश्चंद्र चंद्रिका आदि का प्रकाशन किया।  उनके द्वारा स्त्री-शिक्षा के लिए बाला बोधनी पत्रिका प्रकाशित की गई। हिंदी नाटक और निबंध की परंपरा भी इन्होंने ही  प्रारंभ की थी। आधुनिक हिंदी गद्य के इतिहास में इनका उलेखनीय योगदान है। हरिश्चंद्र जी को हिन्‍दी, अँग्रेजी, संस्‍कृत, फारसी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं का उच्‍च ज्ञान था | 
        

उन्‍होंने अनेक विधाओं में साहित्‍य सृजन किया और हिन्‍दी साहित्य को सर्वाधिक रचनाएँ समर्पित कर समृद्ध बनाया । काव्‍य-सृजन में भारतेन्‍दु जी ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया तथा गद्य-लेखन में उन्‍होंने खड़ी बोली भाषा को अपनाया। उन्‍होंने खड़ी बोली को व्‍यवस्थित, परिष्‍कृत और परिमार्जित रूप प्रदान किया। उन्‍होंने आवश्‍यकतानुसार अरबी, फारसी, उर्दू, अँग्रेजी, आदि भाषाओं के शब्‍दों का भी प्रयोग किया। भाषा में प्रवाह, प्रभाव तथा ओज लाने हेतु उन्‍होंने लोकोक्तियॉं एवं मुहावरों का भलीभॉंति प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है। हरिश्चंद्र जी  के गद्य में विविध शैलियों के दर्शन होते है, जिसमें प्रमुख हैं वर्णनात्‍मक विचारात्‍मक, भावात्‍मक, विवरणात्‍मक व्‍यंग्‍यात्‍मक आदि। भारतेन्‍दु जी के विषय थे- भाक्ति, श्रृंगार, समाज-सुधार, प्रगाढ़ देश-प्रेम, गहन राष्‍ट्रीय चेतना, नाटक और रंगमंच का परिष्‍कार आदि। उन्होंने जीवनी और यात्रा-वृत्तान्‍त भी लिखे है। 6 जनवरी 1885 ई. में 35 वर्ष की अल्‍पायु में ही इनकी मृत्‍यु हो गयी।

इनके प्रमुख कृतियाँ हैं — भारत-दुर्दशा ,नील देवी, अँधेर नगरी , सती प्रताप , प्रेम-जोगिनी, विद्या, सुन्‍दर , रत्‍नावली, पाखण्‍उ विडम्‍बन ,धनंजय विजय कर्पूर मंजरी ,मुद्राराक्षस , भारत जननी , दुर्लभ बंधु ,वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ,सत्‍य हरिश्‍चन्‍द्र ,श्री चन्‍द्रावली विषस्‍य विषमौषधम् आदि…|| 

भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1 हिंदुस्तानी लोगों की रेल की गाड़ी से तुलना क्यों कि गई है ? 

भारतेंदु हरिश्चंद्र

उत्तर- हिंदुस्तानी लोगों की तुलना रेल की गाड़ी से इसलिए कि गई है क्योंकि रेल की गाड़ी बहुत बड़ी-बड़ी, अच्छी-अच्छी महसुल होती है | फर्स्ट क्लास, सेकण्ड क्लास लेकिन उसे चलाने के लिए इंजन की आवश्यकता होती है, वैसे ही हिंदुस्तानी लोगों को किसी चलाने वाले कि आवश्यकता होती है जो उन्हें सही रास्ता दिखा सके | 

प्रश्न-2 लेखक ने अपनी खराबियों के मूल कारण खोजने के लिए क्यों कहा है ? 

उत्तर- लेखक ने अपनी खराबियों के मूल कारण खोजने के लिए इसलिए कहा है कि देश में जो लोग खुद को देश का हितैषी मानते हों वे सभी अपने सुख को छोड़कर, धन और मान का बलिदान करके कमर कस के उठो देख-देख के सब सिख जाओगे लेकिन अपने अन्दर के कमी को पहचानो और देश मे छिपे चोरों को पकड़-पकड़कर लाओ उनको बांधकर कैद करो। अपनी शक्ति के अनुरूप कार्य करो | 

प्रश्न-3 देश का रुपया और बुद्धि बढ़े इसके लिए क्या करना चाहिए?

प्रश-4 ऐसी कौन सी बातें हैं जो समाज विरुद्ध मानी जाती है, किंतु धर्मशास्त्रों में उनका विधान है ? 

उत्तर- बहुत सी बातें हैं जो समाज विरुद्ध मानी जाती है लेकिन धर्मशास्त्रों में उनका विधान है जैसे- जहाज का सफर, विधवा-विवाह, लड़कों को छोटेपन में ही विवाह कर देना,  कुलीन-प्रथा, बहुविवाह, आदि | 

प्रश-5 देश की सब प्रकार से उन्नति हो उसके लिए लेखक ने क्या उपाय बताए हैं ? 

उत्तर- देश की सब प्रकार से उन्नति हो उसके लिए लेखक ने कई उपाय बताए हैं जैसे — जिसमें तुम्हारी भलाई हो वैसी ही किताब पढ़ो, वैसे ही खेल खेलो वैसी ही बातचीत करो, परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत करो अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो | 

प्रश्न-6 निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए — 
(क)- राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, झूठ गप से छुट्टी नहीं | 

उत्तर- इस पंक्ति में लेखक ने उस समय के राजा-महाराजों के बारे में बताया है। उस समय के राजा-महाराजा प्रजा की समस्याओं को हल करने के स्थान पर पूजा-पाठ, खाने-पीने तथा बेकार की बातें करने और छट्टियाँ मानने में समय नष्ट कर देते थे। अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर भागते थे तथा प्रजा को सुखी नहीं रखते थे। बस अपनी ही धुन में रहते थे | 

(ख)- सबके जी में यही है कि पाला हमीं पहले छू लें | 

उत्तर- 
इस पंक्ति का आशय यह है कि सब के मन में यही  बात है कि हमें ही सबकुछ पहले मिले। हमें ही सबसे पहले सफलता मिले | 

(ग)- हमको पेट के धंधे के मारे छुट्टी ही नहीं रहती बाबा, हम क्या उन्नति करैं ? 

उत्तर- इसमें लेखक कहते हैं कि भारतीय लोगों को बस रोजी-रोटी से लेना-देना है। जो मिल जाता है बस, उसी में ही वे खुश हो जाते हैं। यही कारण है कि भारतीयों की उन्नति नहीं होती है। जीवन में मात्र पेट भरना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए। पेट की आग बुझाने के साथ-साथ देश के हित के लिए हमें हमेशा आगे बढ़ना चाहिए | 

(घ)- उन चोरों को वहाँ-वहाँ से पकड़-पकड़कर लाओ, उनको बांध-बांध कर कैद करो | 

उत्तर- लेखक कहते हैं कि जो धर्म की आड़ में, देश की चाल की आड़ में, कोई सुख की आड़ में छिपे हैं, उनको पकड़ के लाओ उनको कैद करो और देश के लिए अपना फर्ज पूरा करो देश की उन्नति में  भागीदार बनो | 

(ड़)- यह तो वही मसल हुई कि एक बेफ़िकरे मँगनी का कपड़ा पहिनकर किसी महफिल में गए | 

प्रश्न-7 निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए — 
(क)- सास के अनुमोदन से …………….. फिर परदेस चला जाएगा।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति ”भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?” लेखक ‘हरिश्चंद्र भारतेंदु’ जी के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक कहते हैं कि भारवासी आलस्य प्रवृत्ति के होते हैं | उन्होंने उदाहरण के माध्यम से कटाक्ष करते हुए बताया है कि एक बहू अपनी सास से पति से मिलने की आज्ञा लेकर पति से मिलने जाती है लेकिन लज्जा के कारण कुछ बोल ही नहीं पाई। सारी परिस्थितियाँ उसके अनुकूल थी । लेकिन कुछ बोल न सकी इस कारण पति का मुख देखना भी नसीब नहीं हुआ। अब इसे उसका दुर्भाग्य ही कहें कि अगले दिन उसका पति वापिस  परदेस जाने वाला था। लेकिन उससे मिलना नही हुआ। इसके माध्यम से लेखक बताना चाहते हैं कि भारवासियों को सभी प्रकार के अवसर मिले हुए हैं। भारतवासियों में आलस्य इस प्रकार छाया हुआ है कि वह इस अवसर का सही उपयोग नहीं कर पा रहे हैं | 

(ख)- दरिद्र कुटुंबी इस तरह …………… वही दशा हिंदुस्तान की है।

उत्तर- 
प्रस्तुत पंक्ति ”भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?” लेखक ‘हरिश्चंद्र भारतेंदु’ जी के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक कहते हैं कि हमारे देश में एक गरीब परिवार समाज में अपनी इज्जत बचाने में असमर्थ हो जाता है। लेखक बताते हैं कि गरीब तथा कुलीन वधू अपने फटे हुए वस्त्रों में अपने अंगों को छिपाकर अपनी इज्जत बचाने का हर संभव प्रयास करती है। भले उसके पास कुछ नहीं है लेकिन वह हार नहीं मानती है | ऐसे ही भारतावासियों के हाल है। चारों ओर गरीबी विद्यमान है। सभी गरीबी से त्रस्त हैं। इसके कारण लोग अपनी इज्जत बचा पाने में असमर्थ हो रहे हैं। गरीबी ने देश को चारो ओर से घेर रखा है | 

(ग)- वास्तविक धर्म तो ……………….. शोधे और बदले जा सकते हैं।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति ”भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?” लेखक ‘हरिश्चंद्र भारतेंदु’ जी के द्वारा लिखित है। इसमें लेखक कहते हैं कि जो धर्म और ग्रंथो में लिखा गया है उसे तो बदला जा सकता है | उसका संशोधन भी किया जा सकता है। जो समाज और धर्म के अलावा अन्य बातें धर्म के साथ जोड़ी गई हैं, वे समाज-धर्म कहलाती हैं। समय और देश के अनुसार इनमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। हमें जरूरी बातों को जोड़ कर उसमें संशोधन करवाना चाहिए | 

भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है पाठ से संबंधित शब्दार्थ 

• महसूल – कर टैक्स
• चुंगी की कटवार – म्युनिसिपालिटी का कचरा
• रंगमहल – भोग विलास का स्थान
• कमबख्ति – अभागापन
• मर्दु मशुमारी – जनगणना
• तिल्फ़ी – बचपन से सम्बंधित
• तालीम – शिक्षा
• बरताव – व्यवहार  | 

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Chapter 8 उसकी माँ| CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

उसकी मां कहानी का सारांश 

उसकी माँ पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र जी द्वारा रचित अत्यंत मार्मिक एवं क्रांतिकारी विचारों की कहानी है। इस कहानी में लेखक एक जमींदार है जिसके यहाँ एक दिन पुलिस आती है और अपनी पॉकेट से तस्वीर निकाल उसे दिखाती है। लेखक उस तस्वीर वाले का नाम लाल बताता है जो कि उन्ही के पड़ोस में रहता है। लाल के पिता का देहांत हुए सात -आठ वर्ष हो चुके हैं। अब उसके परिवार में उसकी माँ जानकी और वह ही बचे हैं। लाल के पिता लेखक के यहाँ मैनेजर थे जो कि समय समय पर कुछ पैसा लेखक के पास रखवा दिया करते थे। आजकल उनके परिवार का पालन – पोषण उन्ही के पैसों से हो रहा है। लाल के सम्बन्ध में यह जानकारी देकर लेखक पुलिस से इस छानबीन का कारण पूछता है तो वे केवल इतना बताते हैं कि वे सरकारी मामला है अतः इसके बारे में वे ज्यादा नहीं बता सकेंगे। 

लेखक लाल के सम्बन्ध में बड़ा बेचैन होकर उसकी माँ के पास जाता है तथा यह बताता है कि अंग्रेज पुलिस आजकल लाल की पूछताछ कर रही है। लेखक लाल को समझाते है कि तुम्हारा यह समय पढ़ाई का है अतः पहले पढ़ाई का कर्म पूरा करने के बाद तथा अपना उद्धार करने के बाद ही सरकार के सुधार या विरोध का विचार करो। लेकिन लाल लेखक के जमींदारी रूप का विरोध कर उन्हें सच्चा राज भक्त और स्वयं को सच्चा राष्ट्रभक्त कहता है। उसका मानना है कि जो व्यक्ति ,समाज या राष्ट्र किसी अन्य व्यक्ति ,समाज या राष्ट्र के नाश पर जीता हो – उसका सर्वनाश होना चाहिए। इस सर्वनाश के लिए वह आवश्यकता पड़ने पर षड्यन्त्र ,विद्रोह एवं हत्या करने को भी तैयार है। ऐसे विचार सुन लेखक को लाल के सम्बन्ध में चिंता होने लगती है। 

कुछ दिनों के बाद लेखक अपनी पत्नी और लाल की माँ के बीच चलती वार्तालाप को सुनता है। लाल की माँ लेखक को बताती है कि उसके बेटे की मित्र मण्डली नित्य प्रति उसके घर पर इक्कठी होती है। लाल के मित्रों में एक बंगड़ नाम का लड़का है जो कि बहुत तगड़ा और हँसमुख प्रवृत्ति का है। वह लाल की बूढ़ी माँ को भारत माता के रूप में मानता है। वह कहता है कि हे माँ सर तेरा हिमालय ,माथे की बड़ी रेखायें गंगा और यमुना नदी है ,नाक विंध्याचल पर्वत के समान है ,ठुड्डी कन्याकुमारी है ,छोटी बड़ी झुरियाँ पहाड़ और नदियाँ हैं। ऐसा कहकर वह मुझे भारत माता मानकर गले से लगा लेता है जिससे सब हँसने लगते हैं। इन्ही में एक लड़का उत्तेजित होकर अंग्रेजी परतंत्रता का विरोध करता ,दूसरी सरकारी प्रशासन प्रणाली को गाली देता जबकि एक अन्य मित्र प्रकृति प्रदत्त स्वतंत्रता छीनने वाले अंग्रेजी सत्ता का विरोध करता। इस प्रकार सभी सरकार के खिलाफ बातें करते और आपस में कुछ न कुछ रणनीति बनाने पर विचार करते रहते। 

लेखक कुछ दिन के लिए कहीं से घूमकर आते हैं। इसी बीच उसे आते ही सूचना मिलती है कि लाल के यहाँ छापे मारे गए और तलाशी करने पर उसके यहाँ से पिस्तौल और कारतूस प्राप्त किया गया। लाल और उसके मित्रों को गिरफ्तार कर उनके विरुद्ध हत्या ,षड्यन्त्र ,सरकारी राज्य उलटने की चेष्टा का आरोप लगाया है। इन चारों पर मुकदमा चला। इनके विरुद्ध गुप्त समितियां निर्धारित की गयी। लेकिन इन लड़कों की पैरवी करने वाला कोई नहीं था। लाल की माँ ने बहुत कोशिश की लेकिन अंततः ऊँची अदालत ने लाल और बंगड़ समेत चारों मित्रों को फाँसी तथा अन्य दस को दस वर्ष से सात वर्ष की सजा सुनाई। लाल की माँ निराश अवश्य हो गयी थी लेकिन फिर भी वह जेल में जाकर उन बच्चों की सहायता करती है और उन्हें अच्छा भोजन देती है। लाल के पकड़े जाने के बाद से ही सभी लोग लाल की माँ से दूर रहने लगते हैं। यहाँ तक कि लेखक भी बड़ी सावधानी के साथ ही लाल की माँ से दूर रहने लगते हैं। यहाँ तक कि लेखक भी बड़ी सावधानी के साथ ही लाल की माँ से बात करता है। लेखक का मन लाल की माँ से जुड़ा हुआ था ,लेकिन पुलिस का ध्यान आते ही वह अपने कदम पीछे रख लेता। 

एक दिन लाल की माँ लेखक की पत्नी के साथ उनके घर आती है। लाल की माँ के हाथ में एक पत्र था जिसमें लाल ने लिखा था कि माँ ,जिस दिन तुम्हे यह पत्र प्राप्त होगा उस दिन सुबह मेरा जीवन समाप्त हो चुका होगा। मैंने जानबूझकर तुम्हारे पीछे से मरना स्वीकार किया। मैं विधाता से यही प्रार्थना करता हूँ कि जन्म जन्मान्तर तक तुम ही मेरी माँ बनो। ” पत्र समाप्त कर लेखक लाल की माँ को जडवत देखता है। लाल की माँ बिना कुछ कहे घर चली जाती है। कुछ दिन बाद लेखक को अपने नौकर से पता चलता है कि लाल के घर में ताला लगा हुआ है। लाल की माँ हाथ में पुत्र की चिट्ठी लिए दरवाजे पर मरी हुई है। 

उसकी मां कहानी का प्रमुख पात्र लाल  

लाल उसकी माँ कहानी का प्रमुख पात्र है जो कि स्वतंत्रता प्रेमी नवयुवक है। इसमें आक्रोश ,विद्रोह एवं क्रोध का भाव कूट कूट कर भरा हुआ है। लाल स्वतंत्रता प्रेमी ऐसे नवयुवकों का प्रतिनिधित्व कर रहा है जो सरकारी अत्याचार का विरोध कर क्रांति के मार्ग पर निकल पड़े हैं। लाल जैसे असंख्य युवा स्वतंत्रता आन्दोलन में कूदकर भारत माता को आजाद कराने के भाव मन में भरे रखते हैं। ऐसे युवा अपनी तनिक भी परवाह नहीं करते तथा भारत को माँ मान कर उनकी सेवा में निरस्त रहते हैं। 

लाल के चरित्र का सबसे उज्जवल पक्ष उसके देशभक्ति के भाव में निहित में है। उसमें अपनी माँ के प्रति भी पूर्ण आदर भाव एवं स्नेह है ,इसी कारण फाँसी पर लटकने से पूर्व वह माँ से नहीं मिलता क्योंकि ऐसे समय में माँ से यह दृश्य देखा न जाता और पत्र के माध्यम से अपनी यही इच्छा रखता है कि उसे जन्म जन्मातर तक ऐसे ही माँ मिले। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी के पात्र लाल में बलिदानी ,देश प्रेमी ,माँ भक्त एवं विद्रोही देखी जा सकती है। 

जानकी का चरित्र चित्रण

जानकी लाल की माँ है। वह अत्यंत सरल हृदया एवं कुशल गृहणी है। उसका संसार उसके बेटे तक की सीमित है। सादगी पर विश्वास रखने वाली जानकी अपना पूर्ण जीवन एवं उसका सुख दुःख अपने पुत्र पर ही न्योछावर कर देती है। जानकी के मन में पुत्र के प्रति समर्पण भाव के साथ साथ सरलता एवं सादगी भी है। वह मध्यम परिवार की कुशल गृहणी है जो वक्त बेवक्त पुत्र की मार्गदर्शन बनकर भी सामने आती है। लाल और उसके मित्र मंडली को देखकर वह सदैव प्रसन्न रहती है और उनकी देख भाल करती है। लेकिन इसके साथ साथ वह धर्मभीरु और थोड़ी बहुत अंधविश्वासी भी है। वह इतनी भोली है कि सभी की बातें तुरंत मान लेती है। उसका सहृदय मन को कष्ट में नहीं देख पाता है इसी कारण वह लाल के जेल जाने पर हवलदार के सम्मुख गिडगिडाती है। इतना ही नहीं बेटे के फाँसी झूलने पर वह इस दुःख को सह ही नहीं पाती है और अंततः प्राण त्याग देती है। जानकी के ऐसे उदार चरित्र का प्रभाव लेखक पर भी पड़ता है। 

उसकी मां कहानी की मूल संवेदना उद्देश्य 

स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष में अनेक नवयुवक सर पर कफ़न बाँधे सरकार से टकराने के लिए निकल पड़े थे। इस कहानी का लाल नामक पात्र एक ऐसा ही सिरफिरा नवयुवक है जो अपने स्वार्थ ,घर ,परिवार ,माँ आदि को पीछे छोड़कर भारत माँ को आजाद कराने और देश के भले के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हो जाता है। उसकी माँ सहृदय बन उसे समझाती भी है लेकिन वह देश की राह में कदम रख निरन्तर आगे बढ़ता जाता है। उसकी माँ कहानी हमें यही प्रेरणा देती है कि हमें भी घर परिवार से ऊपर राष्ट्र को मानना चाहिए तथा राष्ट्र पर विप्पति देखकर उस विप्पति को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार यह कहानी आज के नवयुवकों के प्रेरक बनती है और स्वस्थ मार्ग का निर्देशन करती है। 

उसकी मां पाठ के प्रश्न उत्तर

प्र. पुलिस लाल के सम्बन्ध में पूछताछ क्यों कर रही है ?

उ. लाल विद्रोही प्रवृत्ति का युवक है। वह अंग्रेजी सत्ता और उनके अन्याय को समाप्त करना चाहता है। अतः वह एक मंडली बनाकर राजद्रोह की तैयारी में जुटा हुआ है। पुलिस को इस बात की भनक लग जाती है। अतः वे इस विद्रोह को समय से पूर्व दबाने के लिए पूछताछ शुरू कर देते हैं। 

प्र. पुलिस की बात सुनकर लेखक क्या करता है ?

उ. पुलिस की बात सुनकर लेखक को बहुत आश्चर्य होता है। लेखक लाल का शुभचिंतक है। अतः उसे लाल के सम्बन्ध में चिंता होने लगती है। अतः वह लाल के घर जाकर पहले उसकी माँ से और बाद में स्वयं लाल से बातकर उसे समझाने की चेष्टा करता है। 

प्र. लेखक ने जमींदार के रूप में किस वर्ग का परिचय दिया है ?

उ. लेखक ने जमींदार के रूप में एक ऐसे वर्ग का परिचय दिया है जिसकी दृष्टि में अपना घर ,परिवार ,पहचान ज्यादा महत्वपूर्ण है। वे समाज में अपनी प्रतिष्टा में भूखें हैं। वे राज भक्त हैं। उनके लिए अंग्रेजी सरकार श्रेष्ठ है क्योंकि उससे उन्हें मान सम्मान ,पहचान और रोजगार मिला। इनमें देशभक्ति की भावना तो है लेकिन राजभक्ति के कारण वे देश भक्ति व्यक्त करने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं। वस्तुतः ऐसे स्वार्थी लोगों ने भारत की गुलामी को लम्बा खींचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

प्र. लेखक लाल को क्या समझाता है ?

उ. लेखक सच्चा राज भक्त और जमींदारों का प्रतिनिधि पात्र है। स्वतंत्रता आन्दोलन के मार्ग पर चलते लाल को देख लेखक समझाते हुए कहता है कि साजिश ,विद्रोह आदि करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। तुम्हारा काम पढ़ना है ,इसी में मन लगाओ। पढ़ लिखकर पहले कुछ बन जाओ ,उसके बाद देश को संवारते रहना। पहले अपना घर का ,खुद का उद्धार करो और उसके बाद सरकार के सुधार पर विचार शुरू करना। 

प्र. जानकी के बेटे लाल और उसके मित्रों को क्या सजा सुनाई गयी और क्यों ?

उ. जानकी के बेटे लाल और उसके मित्रों को षड्यन्त्र करने ,राजद्रोह करने तथा सरकार के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए गिरफ्तार किया गया। पूरी अंग्रेजी सत्ता उनके खिलाफ थी ,अतः कोई वकील उनके बचाव पक्ष में आगे न आ सका। परिणामस्वरूप अंग्रेजी सत्ता ने बागियों की आवाज को हमेशा के लिए दबाने के लिए तथा अवथा डर लोगों ने बिठाने के लिए लाल और उसके मित्रों को फाँसी की सजा सुनाई। 

प्र. लाल ने अपनी माँ को पत्र कब और क्या लिखा ?

उ. लाल ने अपनी माँ को पत्र अपनी फाँसी से पूर्व ही लिखा था लेकिन वह उसकी माँ के पास फाँसी के बाद पहुँचा। उस पत्र में लिखा हुआ था कि जिस दिन तुम्हे यह पत्र मिलेगा उस दिन सुबह सवेरे मुझे फाँसी हो चुकी होगी। मैं चाहता तो अंत समय तुमसे मिल सकता था मगर उससे क्या फायदा ? मुझे विश्वास है तुम मेरी जन्म जन्मान्तर की जननी हो ,रहोगी। मैं तुमसे दूर थोड़े जा सकता है। जब तक पवन साँस लेता रहेगा ,सूर्य चमकता है ,समुन्द्र लहराता रहेगा ,तब तक मुझे तुम्हारी करुणामयी गोद से कोई दूर नहीं कर सकता है। 

प्र. लाल के पत्र का जानकी पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उ.लाल के पत्र पढ़कर जानकी पत्थर के समान हो जाती है। उसके चेहरे पर मृत्यु सी शान्ति दिखलाई देती है। इसी जड़वत अवस्था में पुत्र के वियोग को वह सह नहीं पाती है और अंततः वह भी अपने प्राण त्याग पुत्र प्रेम का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है।  

उसकी माँ कहानी के कठिन शब्द अर्थ

मुग्ध – मोहित 

दिवाकर – सूर्य 

सकपकाया – चकित होना 

बगावत – विद्रोह 

मर्दक – दबाने वाले 

विभूति – वैभव 

दिक्कत – कष्ट में 

अवाक – चकित 

जीर्ण – कमजोर ,फूटा हुआ 

आततायी – अत्याचारी

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Chapter 7 नए की जन्म कुंडली: एक | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

कक्षा 11 नए की जन्म कुंडली : एक पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ नए की जन्म कुंडली : एक लेखक गजानंद माधव मुक्तिबोध जी के द्वारा लिखित है | लेखक ने प्रस्तुत पाठ में व्यक्ति और समाज के बाहरी तथा आंतरिक परिवर्तन के फलस्वरूप प्राप्त चेतना को नए की सन्दर्भ में देखने का प्रयास किया है। मुक्तिबोध जी का कहना है कि धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परिवर्तन के फलस्वरूप पर्याप्त यथार्थ के वैज्ञानिक चेतना को नया मानना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि संघर्ष और विरोध के परिणाम को व्यवहारिकता में ना जीने के कारण ही हम पुराने को छोड़ देते हैं। लेकिन नए को वास्तविक रूप से अपना नहीं पाते। लेखक के अनुसार नए की पुकार हम लगाते हैं, लेकिन नया क्या है, इस विषय में हमारी जानकारी शून्य के बराबर है। हमने सोचा ही नहीं है कि यह नया मान-मूल्य हो, एक नया मनुष्य हो या क्या हो ? जब हम यह नहीं जान पाए, तो जो स्वरूप उभरा था, वह भी शून्यता के कारण मिट गया। उनको दृढ़ तथा नए जीवन, नए मानसिक सत्ता का रूप धारण करना था | पर वे प्रश्नों के उत्तर न होने के कारण समाप्त हो गए। वे हमारे धर्म और दर्शन का स्थान नहीं ले सके। वे इनका स्थान तभी ले पाते जब हम इन विषयों पर अधिक सोचते। नए को अपना पाते।

इस संसार का नियम है कि जो पुराना हो चुका है, वह वापिस नहीं आता। अर्थात् जो बातें, विचार, परंपराएँ इत्यादि हैं, वे आज भी हमारे परिवार में दिखाई दे जाती हैं। वे मात्र उनके अवशेष के रूप में विद्यमान हैं। समय बदल रहा है और नए विचार, बातें तथा परंपराएँ जन्म ले रही हैं। ये जो भी नया आ रहा है, इसने पुराने का स्थान नहीं लिया है। ये अलग से अपनी जगह बना रहे हैं। परिणाम जो पुराना है, वह अपने अस्तित्व के लिए तड़प रहा है और नए का विरोध करता है। इस कारण दोनों में अंतर्द्वंद्व की स्थिति बन गई है। उदाहरण के लिए धर्म हमारी संस्कृति का आधार है। हम लोगों की इस पर बड़ी आस्था है। आज की पीढ़ी वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए है। उसने धर्म को नकार दिया है। चूंकि धर्म हमारी संस्कृति का आधार है। अतः इसे पूर्णरूप से निकालना संभव नहीं है। हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हर बात को परखते हैं, लेकिन कई चीज़ें हमारी समझ से परे होती हैं, तो हम उसे धर्म के क्षेत्र में लाकर खड़ा कर देते हैं। हमने धार्मिक भावना को तो छोड़ दिया है लेकिन वैज्ञानिक बुद्धि का सही से प्रयोग करना नहीं सीखा है। हम इसके लिए न प्रयास करते हैं और न हमें ज़रूरत महसूस होती है। ये दोनों बातें एक दूसरे से टकरा जाती हैं। हमें उत्तर में कुछ नहीं मिलता है। प्रायः यह स्थिति शिक्षित परिवारों में देखने को मिलती हैं | 

गजानन माधव मुक्तिबोध

लेखक के अनुसार आज की युवापीढ़ी के स्वभाव में अंतर हैं। वे घर से बाहर साहित्य और राजनीति की अनेकों बातें करते हैं। उसके बारे में सोचते हैं और करते भी हैं। जब यह बात घर की आती है, तो उनका व्यवहार बदल जाता है। पूंजीपतियों के विरुद्ध विद्रोह, शासन के विरुद्ध विद्रोह आदि विद्रोह सरलता से खड़े हो जाते हैं। जब समाज की बात आती है, तो उनके मुँह में ताले लग जाते हैं। राजनीति के पास समाज-सुधार का कोई कार्यक्रम नहीं है। राजनीति अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए मनुष्य द्वारा की जाती है। यही कारण है कि राजनीति के पास समाज-सुधार का कोई कार्यक्रम नहीं है। राजनीति ने समाज को विकास के स्थान पर मतभेद और अशांति इत्यादि ही दी है। आज जाति भेद, आरक्षण आदि बातें राजनीति की देन हैं। यदि राजनीति देश के विकास का कार्य करती, तो भारत की स्थिति ही अलग होती | पिछले बीस वर्षों में भारत जैसे देश में संयुक्त परिवार का ह्रास हुआ है। यह स्वयं में बहुत बड़ी बात है। संयुक्त परिवार आज के समय में मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है। उसकी सर्वप्रथम शिक्षा, संस्कार, विकास, चरित्र का विकास इत्यादि परिवार के मध्य रहकर ही होता है। आज ऐसा नहीं है। इसके परिणाम हमें अपने आसपास दिखाई दे रहे हैं। इससे मनुष्य को सामाजिक तौर पर ही नहीं अन्य तौर भी पर नुकसान झेलना पड़ रहा है। लेखक कहता है कि साहित्य और राजनीति ऐसा कोई साधन विकसित नहीं कर पाया है, जिससे संयुक्त परिवार के विघटन को रोक पाए। परिणाम आज वे समाप्त होते जा रहे हैं। इससे समाज को ही नहीं देश को भी नुकसान होगा। 

इस पाठ में लेखक व्यक्ति को असामान्य तथा असाधारण मानता था। उसके पीछे कारण था। उसके अनुसार जो व्यक्ति अपने एक विचार या कार्य के लिए स्वयं को और अपनों का त्याग सकता है, वह असामान्य तथा असाधारण व्यक्ति है। वह अपने मन से निकलने वाले उग्र आदेशों को निभाने का मनोबल रखता है। ऐसा प्रायः साधारण लोग कर नहीं पाते हैं। वह सांसारिक समझौते करते हैं और एक ही परिपाटी में जीवन बीता देते हैं। ऐसा व्यक्ति ही असामान्य तथा असाधारण होता है। इसमें लेखक ने दो मित्रों के स्वभाव और उनके समय के साथ बदलने वाले व्यवहार को बताया है जो आज के आधुनिक समय में होता आ रहा है। प्रस्तुत पाठ में मुक्तिबोध जी स्वयं और मित्र के बीच के अंतर को भी बताया है। मित्र सांसारिक खुशियों से दूर हो जाता है हमेशा असफलता मिलने के कारण उसके व्यवहार में निर्दयता और क्रूरता आ जाता है, लेकिन लेखक शान्त और अच्छे आचरण वाला होता है जिसे दूसरों को खुश करना अच्छा लगता है। लेकीन मित्र बिल्कुल अलग होता है। इसमें सामाजिक व्यवस्था और परिवार के महत्व के बारे में बताया गया है…|| 

गजानन माधव मुक्तिबोध का जीवन परिचय 

प्रस्तुत पाठ के लेखक गजानन माधव मुक्तिबोध जी हैं। इनका जन्म सन् 1917 में श्योपुर कस्बा, ग्वालियर मध्य प्रदेश में हुआ था। मुक्तिबोध जी के पिता जी पुलिस विभाग में सब-इंस्पेक्टर थे उनके पिता जी का बार-बार तबादला होने के कारण इनकी पढ़ाई बीच-बीच में प्रभावित होती थी। इसके बाद में माधव जी ने सन् 1954 में एम.ए. की डिग्री नागपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त किया। माधव जी ने ईमानदारी, दृढ़ इच्छाशक्ति एवं न्यायप्रियता के गुण अपने पिता जी के अच्छे आचरण से सीखा था। वे लंबे समय तक नया खून साप्ताहिक का संपादन करते थे। उसके बाद वे दिग्विजय महाविद्यालय मध्य प्रदेश में अध्यापन कार्य में लग गए। मुक्तिबोध जी का पुरा जीवन संघर्ष और विरोध से गुजरा। उनकी कविताओं में उनके जीवन की छवि नजर आती है। पहली बार उनकी कविता तारसप्तक में सन् 1943 में छपी थी। वे कहानी, उपन्यास, आलोचना भी लिखते थे। मुक्तिबोध जी एक समर्थ पत्रकार थे। वे नई कविता के प्रमुख कवि हैं। इनमें गहन विचारधारा और विशिष्ट भाषा शिल्प के कारण इनकी साहित्य में एक अलग पहचान है।  उनके साहित्य में स्वतंत्र भारत के मध्यमवर्गीय ज़िंदगी की विडंबनाओं और विद्रूपताओं के चित्रण के साथ ही एक बेहतर मानवीय समाज-व्यवस्था के निर्माण की आकांक्षा भी की है। उनके साहित्य की प्रमुख विशेषता आत्म लोचन की प्रवृत्ति है | 

इनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं — चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल, नए साहित्य का सौंदयशास्त्र ,कामायनी, एक पुनर्विचार, एक साहित्यिक की डायरी…|| 

नए की जन्म कुंडली : एक पाठ के प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-1 ‘सांसारिक समझौते’ से लेखक का क्या आशय है ? 

उत्तर- 
मुक्तिबोध जी कहते हैं कि सांसारिक समझौते से ज्यादा विनाशक कोई चीज़ नहीं है। खास तौर पर वहाँ, जहाँ किसी अच्छी व महत्वपूर्ण बात के मार्ग में अपने या अपने जैसे लोग या पराए लोग आड़े आते हों। वे कहते हैं, जितनी जबरदस्त उनकी बाधा होगी उतनी ही कड़ी लड़ाई भी होगी अथवा उतना ही निम्नतम समझौता होगा | 

प्रश्न-2 लेखक ने ‘व्यावहारिक सामान्य बुद्धि’ किसे माना है ? 

उत्तर- 
लेखक ने ‘व्यावहारिक सामान्य बुद्धि’ उसे माना है,  जिसमें लेखक यदि कोई काम करता तो इसलिए करता की लोग खुश हों और उनका मित्र काम करता तो इसलिए की कोई काम एक बार हाथ में  ले लेने पर उसे आधिकारिक ढंग से भली-भाँति करना ही है। यह लेखक की अपनी व्यावहारिक सामान्य बुद्धि थी | 

प्रश्न-3 लेखक के मित्र ने यह क्यों कहा की उसकी पूरी जिन्दगी भूल का एक नक्शा है ? 

उत्तर- लेखक कहते हैं कि उसका दोस्त ज़िंदगी में छोटी-छोटी सफलताएँ चाहता था, लेकिन उसे असफलता ही हासिल हुई | उसके दोस्त को संयुक्त परिवार का ह्रास भी था और सांसारिक सफलताओं की चाहत भी, जो पूरी नहीं हो सकी | इसलिए उसने पूरी ज़िंदगी को भूल का नक्शा कहा है | 

प्रश्न-4 व्यक्ति ने तैश में आकर समाज और परिवार के बारे में जो विचार रखे उससे आप कहाँ तक सहमत हैं ? 

उत्तर- व्यक्ति ने तैश में आकर समाज और परिवार के बारे में जो विचार रखे वो बिल्कुल सही है लेखक ने व्यक्ति एवं समाज के बाहरी तथा आंतरिक परिवर्तन के बारे में इस पाठ में बताने का प्रयास किया है। मित्र तैश में कहता है कि समाज में वर्ग है, श्रेणियाँ हैं, श्रेणियों में परिवार है, परिवार समाज की बुनियादी इकाई होती है। समाज की अच्छाई-बुराई परिवार के माध्यम से व्यक्त होती है | मनुष्य के चरित्र का विकास भी परिवार में ही होता है। बच्चे पलते हैं, उनको सांस्कृतिक शिक्षा मिलती है | 

सारे अच्छे-बुरे गुण परिवार से ही सीखते हैं। मित्र की समाज एवं परिवार के बारे में जो विचार है, उससे हम शत प्रतिशत सहमत हैं | 

प्रश्न-5 लेखक ने शैले की ‘ओड टू वैस्ट विंड’ और ‘स्क्वेअर रुट ऑफ माइनस वन’ प्रयोग किस संदर्भ में किया और क्यों ? 

प्रश्न-6 ‘अभिधार्थ एक होते हुए भी ध्वन्यार्थ और व्यंग्यार्थ अलग-अलग हो जाते हैं।’ इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- 
यदि हम अभिधार्थ का अर्थ देखें, तो इसका मतलब सामान्य अर्थ होता है। जब हम किसी शब्द का प्रयोग करते हैं, तो कई बार उस शब्द का अर्थ हमारे काम नहीं आता। उसका अर्थ हमारे लिए उपयोगी नहीं होता। यदि हम ध्वन्यार्थ के बारे में कहे, तो इसका अर्थ होता हैः ध्वनि द्वारा अर्थ का पता चलना और व्यंग्यार्थ का अर्थ होता हैः व्यंजना शक्ति के माध्यम से अर्थ मिलना। इसे हम सांकेतिक अर्थ कहते हैं। पाठ में दूरियों का अभिधार्थ फासले से है |  

प्रश्न-7 लेखक को अपने मित्र की ज़िंदगी के किस बुनियादी तथ्य से सदा बैर रहा और क्यों ? 

उत्तर- लेखक की दृष्टि में उनका मित्र असाधारण और असामान्य था। एक असाधारणता और क्रूरता भी उसमें थी। निर्दयता भी उसमें थी | वह अपनी एक धुन, अपने विचार या एक कार्य पर सबसे पहले खुद को और साथ में लोगों को कुर्बान कर सकता था। इस भीषण त्याग के कारण, उसके अपने आत्मीयों का उसके विरुद्ध युद्ध होता तो वह उसका नुकसान भी बर्दाश्त कर लेता था। उसकी ज़िंदगी की इस बुनियादी तथ्य से लेखक का सदा बैर रहा। क्योंकि इससे उसके मित्र का ही नुकसान था और लेखक इसके ठीक विपरीत स्वभाव का था | 

प्रश्न-8 स्वयं और अपने मित्र के बीच लेखक ‘दो ध्रुवों का भेद’ क्यों मानता है ? 

उत्तर- लेखक स्वयं और अपने मित्र के बीच ‘दो ध्रुवों का भेद’ इसलिए मानता है क्योंकि लेखक यदि कोई काम करता तो इसलिए करता की लोग खुश हों।  और वह काम करता तो इसलिए की कोई काम एक बार हाथ में ले लेने पर उसे आधिकारिक ढंग से भली-भाँति करना ही है। यह लेखक की अपनी व्यावहारिक सामान्य बुद्धि थी। उसकी कार्य-शक्ति, आत्म प्रकटीकरण की एक निर्द्वंद्व शैली के कारण दोनों में दो ध्रुवों का भेद था | 

प्रश्न-9 ”वैज्ञानिक पद्धति का अवलंबन करके उत्तर खोज निकालने की ना जल्दी है ना तबियत है” — यह वाक्य किसके लिए कहा गया है और क्यों ? 

उत्तर- 
‘वैज्ञानिक पद्धति का अवलंबन करके उत्तर खोज निकालने की ना जल्दी है ना तबियत है’ — यह वाक्य मध्यम वर्गीय परिवार के लिए कहा गया है। क्योंकी जो पुराना है वह लौट के नहीं आएगा, लेकिन जो नया है वह पुराने का स्थान नहीं लिया। धर्म-भावना गई, लेकिन वैज्ञानिक बुद्धि नहीं आई |  धर्म ने हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष को अनुशासित किया था। वैज्ञानिक मानवीय दृष्टि ने धर्म का स्थान नहीं लिया, इसलिए केवल हम प्रवृत्तियों के यंत्र में चालित हो उठे। नए की अपेक्षा में मानसिक सत्ता के अनुशासन का रूप धारण ना कर सके | 

प्रश्न-10 निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए — 

(क)- इस भीषण संघर्ष की हृदय भेदक ………….इसलिए वह असामान्य था।

उत्तर- लेखक ने  इसमें व्यक्ति के बारे में बताया है। लेखक  कहते हैं कि व्यक्ति ने बहुत संघर्ष किया है। संघर्ष ने उसके व्यक्तित्व को बहुत अलग बना दिया है। इस संघर्ष से व्यक्ति के ऊपर जो भी गुजरा है वह संघर्ष करना व्यक्ति के लिए कठिन था। लेखक का कहना है कि इतने संघर्षों से गुजरने के बाद प्रायः लोग संभल नहीं पाते हैं। वे स्वयं के व्यक्तित्व को खो देते हैं। लेखक को इस बात से हैरानी होती है कि उस व्यक्ति ने स्वयं को नहीं खोया है। उसने स्वयं के स्वाभिमान को बचाए रखा है। उसने समझौता नहीं किया है। वह लड़ा है और इस लड़ाई में स्वयं को बचाए रखना उसके असामान्य होने का प्रमाण है।

(ख)- लड़के बाहर राजनीति या साहित्य के मैदान में …………. धर के बाहर दी गई।

उत्तर- 
लेखक के अनुसार आज की युवापीढ़ी और पुराने लोगों के स्वभाव में अंतर हैं। वे घर से बाहर साहित्य और राजनीति की बहुत सी बातें करते हैं। लेकिन जब यह बात घर आती है, तो उनका व्यवहार बदल जाता है। अन्याय तो कहीं भी हो सकता है घर के बाहर भी और घर के अंदर भी जब अन्याय को चुनौती देने बात जो तो मनुष्य चुप हो जाता है इस कारण घर के लोग उसके अपने होते हैं । अतः लोग चुप्पी साध लेते हैं। घर के बाहर अन्यायपूर्ण व्यवस्था को चुनौती देना सरल होता है। पूंजीपतियों के विरुद्ध विद्रोह, शासन के विरुद्ध विद्रोह आदि विद्रोह सरलता से खड़े हो जाते हैं। जब समाज की बात आती है, तो उनके मुँह में ताले लग जाते हैं | 

(ग)- इसलिए पुराने सामंती अवशेष बड़े मज़े ……… शिक्षित परिवारों की बात कर रहा हूँ।

उत्तर- लेखक कहना चाहता है कि इस संसार का नियम है कि जो पुराना हो चुका है, वह वापिस नहीं आता। अर्थात् जो बातें, विचार, परंपराएँ इत्यादि हैं, वे आज भी हमारे परिवार में दिखाई दे जाती हैं। वे मात्र उनके अवशेष के रूप में विद्यमान हैं। समय बदल रहा है और नए विचार, बातें तथा परम्पराएँ जन्म ले रही हैं। ये जो भी नया आ रहा है, इसने पुराने का स्थान नहीं लिया है। ये अलग से अपनी जगह बना रहे हैं। परिणाम जो पुराना है, वह अपने अस्तित्व के लिए तड़प रहा है और नए का विरोध करता है। इस कारण दोनों में अंतर्द्वंद्व की स्थिति बन गई है। उदाहरण के लिए धर्म हमारी संस्कृति का आधार है। हम लोगों की इस पर बड़ी आस्था है। आज की पीढ़ी वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए है। उसने धर्म को नकार दिया है। चूंकि धर्म हमारी संस्कृति का आधार है। अतः इसे पूर्णरूप से निकालना संभव नहीं है। हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हर बात को परखते हैं, लेकिन कई चीज़ें हमारी समझ से परे होती हैं, तो हम उसे धर्म के क्षेत्र में लाकर खड़ा कर देते हैं। हमने धार्मिक भावना को तो छोड़ दिया है लेकिन वैज्ञानिक बुद्धि का सही से प्रयोग करना नहीं सीखा है। हम इसके लिए न प्रयास करते हैं और न हमें ज़रूरत महसूस होती है। ये दोनों बातें एक दूसरे से टकरा जाती हैं। हमें उत्तर में कुछ नहीं मिलता है। प्रायः यह स्थिति शिक्षित परिवारों में देखने को मिलती हैं | 

(घ)- मान-मूल्य, नया इंसान ………… वे धर्म और दर्शन का स्थान न ले सके।

उत्तर- 
लेखक के अनुसार नए की पुकार हम लगाते हैं, लेकिन नया क्या है इस विषय में हमारी जानकारी शून्य के बराबर है। हमने सोचा ही नहीं है कि यह नया मान-मूल्य हो, एक नया मनुष्य हो या क्या हो ? जब हम यह नहीं जान पाए, तो जो स्वरूप उभरा था, वह भी शून्यता के कारण मिट गया। उनको दृढ़ तथा नए जीवन, नए मानसिक सत्ता का रूप धारण करना था, पर वे प्रश्नों के उत्तर न होने के कारण समाप्त हो गए। वे हमारे धर्म और दर्शन का स्थान नहीं ले सके। वे इनका स्थान तभी ले पाते जब हम इन विषयों पर अधिक सोचते | 

प्रश्न-11 निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए — 

(ख)- बुलबुल भी यह चाहती है कि वह उल्लू क्यों न हुई !

उत्तर- इसका अभिप्राय है कि हमें अपने से अधिक दूसरे अच्छे लगते हैं। हम दूसरे से प्रभावित होकर वैसा बनना चाहते हैं। हम स्वयं को नहीं देखते हैं। अपने गुणों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है | 

(ग)- मैं परिवर्तन के परिणामों को देखने का आदी था, परिवर्तन की प्रक्रिया को नहीं।

उत्तर-
लेखक कहता है कि मेरे सामने बहुत बदलाव हुए। मैंने उन बदलावों से हुए परिणाम देखें। अर्थात् यह देखा कि बदलाव हुआ, तो उसका लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा। इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि जब बदलाव हो रहे तो वह क्यों और कैसे हो रहे थे ? इस प्रक्रिया पर मेरा कभी ध्यान ही नहीं गया।

(घ)- जो पुराना है, अब वह लौटकर आ नहीं सकता।

उत्तर- 
इससे आशय यह है कि जो समय बीत गया है, उसे हम लौटाकर नहीं ला सकते हैं। जो चला गया, वह चला गया। उसका वर्तमान में कोई अस्तित्व नहीं बचा है | 

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नए की जन्म कुंडली पाठ से संबंधित शब्दार्थ 

• शिकंजा – जकड़
• मस्तिष्क तन्तु – मस्तिष्क की शिराएँ
 रोमैंटिक कल्पना – ऐसी कल्पना जिसमे प्रेम और रोमांच हो
• ‘ओड टू वेस्ट विंड’ – अंग्रेजी कवि शैले की रचना
 ‘स्क्वेअर रुट ऑफ माइनस वन – गणित का एक  सूत्र
• अभिधार्थ – शब्द का सामान्य अर्थ, तीन शब्द  शक्तियों में से  एक का बोध कराने वाली
• ध्वन्यार्थ – वह अर्थ जिसका बोध व्यंजना शब्द शक्ति से होता है
 आच्छन्न – छिपा हुआ ,ढँका हुआ
• हृदयभेदक – हृदय को भीतर तक प्रभावित करने वाली
• निजत्व – अपना पन
• ऐंड़ा-वेंड़ा – टेढ़ा-मेढ़ा
• इंटीग्रल – अभिन्न
• आत्म प्रकटीकरण – मन की बात कहना
• यशस्विता – प्रतिष्ठा, अत्याधिक, यश, प्रसिद्धि
• अप्रत्याशिता – जिसकी आशा ना हो, उम्मीद ना  हो
 खरब – सौ अरब की संख्या
• वस्तुस्थिति – वास्तविक स्तिथि
 सप्रश्ननता – प्रश्न के साथ
• सर्व तोमुखी – सभी ओर से, सभी दिशाओं में  | 

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Chapter 6 खानाबदोश | CLASS 11TH HINDI | REVISION NOTES ANTRA

खानाबदोश – पठन सामग्री और सार NCERT Class 11th Hindi

‘खानाबदोश’ कहानी ओमप्रकाश वाल्मीकि ने लिखा है| इस कहानी में कहानीकार ने मजदूरी करके किसी तरह गुजर-बसर कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण और यातना को चित्रित किया है| साथ ही उच्च जाति और नीच जाति के बीच की गहरी खाई को भी दिखाया है| वाल्मीकि ने इस पाठ में मजदूरों के ऊपर ऊपर हो रहे शोषण को दर्शाया है|

सुकिया और मानो असगर ठेकेदार के साथ तरक्की की आस लेकर गाँव छोड़कर, ईंट के भट्ठे पर काम करने आए थे। भट्टे पर मोरी का काम सबसे खतरनाक था। वहाँ ईंटें पकाने के लिए कोयला, बुरादा, लकड़ी और गन्ने की बाली को मोरियों के अंदर डालना होता था। छोटी-सी असावधानी मौत का कारण बन सकती थी। असगर ठेकेदार ने सुकिया और मानो के एक सप्ताह के काम से खुश होकर उन्हें साँचे पर ईंट पाथने का काम दे दिया था।

भट्ठे पर दिन तो गहमा-गहमी वाला होता था लेकिन रात होते ही भट्ठा अंधेरे की गोद में समा जाता था। मानो भट्टे के माहौल से तालमेल नहीं बिठा पाई थी, इसलिए खाना बनाते समय चूल्हे से आती चिट-पिट की आवाजों में उसे अपने मन की दुश्चिंताओं और आशंकाओं की आवाजें सुनाई देती थी। मानों के मन में शारीरिक शोषण का डर, बात न मानने पर प्रतिकूल व्यवहार की घबराहट थी। यदि तरक्की करनी है तो शहर में रहना ही पड़ेगा। पहले महीने ही सुकिया ने कुछ रुपए बचा लिए थे, जिन्हें देखकर मानो भी खुश थी। उन दोनों ने ज्यादा पैसे कमाने के लिए अधिक काम करना शुरू कर दिया।

उनके साथ एक छोटी उम्र का लड़का जसदेव भी काम करता था। एक दिन भट्ठे के मालिक मुखतार सिंह की जगह उनका बेटा सूबे सिंह भट्ठे पर आया। सूबे सिंह के भट्ठे पर आने से भट्ठे का माहौल बदल गया। उसके सामने असगर भी भीगी बिल्ली बन जाता था। भट्ठे पर काम करनेवाली किसनी को सूबे सिंह ने अपने जाल में फंसा लिया था। किसनी उसके साथ शहर भी कई-कई दिन के लिए चली जाती थी। उसका पति महेश मन मारकर रह जाता था। असगर ठेकेदार ने उसे शराब की लत लगा दी थी। किसनी के हालात बदल गए थे। अब उसके पास ट्रांजिस्टर तथा अच्छे-अच्छे कपड़े आ गए थे।

भट्टे पर पकती लाल-लाल ईंटों को देखकर मानों खुश थी। वह ज्यादा काम करके, ज्यादा रुपय जोड़कर अपना एक पक्का मकान बनाने का सपना देखने लगी थी। एक दिन किसनी के अस्वस्थ होने पर सूबेसिंह ने ठेकेदार असगर के द्वारा मानों को अपने दफ्तर में बुलवाया। बुलावे की खबर सुनते ही मानों और सुकिया घबरा गए। वे सूबेसिंह की नीयत भाँप गए। मानों इज्जत की जिंदगी जीना चाहती थी। वह किसनी बनना नहीं चाहती थी। उनकी घबराहट देखकर जसदेव मानों के स्थान पर स्वयं सूबेसिंह से मिलने चला गया। सूबेसिंह ने जसदेव को अपशब्द कहे और लात-घूसों से पिटाई कर अधमरा सा कर दिया| उस दिन की घटना से सूबे सिंह से सभी सहम गए थे।

सुकिया और मानों उसे झोपड़ी में ले आए। जसदेव के इस अपनेपन के कारण मानो उसके लिए रोटी बनाकर ले जाती है लेकिन ब्राह्मण होने के कारण उसने मानो की बनाई रोटी नहीं खाई। असगर ठेकेदार जसदेव को सुकिया और मानो के चक्कर में न पड़ने की सलाह देता है। जसदेव का व्यवहार मानों और सुकिया के प्रति बदलता चला जाता है|

सूबे सिंह सुकिया और मानो को तंग करने लगा। उसने सुकिया से साँचा छीनकर जसदेव को दे दिया। सुकिया को मोरी के काम पर लगा दिया था। मानो डरने लगी थी। उनकी मज़दूरी छोटी-छोटी बातों पर कटने लगी थी। जसदेव भी मानो पर हुक्म चलाने लगा था। एक दिन मानो ने पाथी ईंटों को सूखने के लिए आड़ी-तिरछी जालीदार दीवारों के रूप में लगा दिया। वह अगले दिन सुबह जल्दी ही काम पर गई तो वहाँ पहुँचकर देखा कि पहले दिन की ईंटें टूटी पड़ी थीं। वह दहाड़ें मारकर रोने लगी। उसकी आवाज़ सुनकर सभी मजदूर इकट्ठे हो गए| आवाज़ सुनकर सुकिया भी वहाँ आया और टूटी ईंटे देखकर उसे कुछ समझ में नहीं आया| असगर ठेकेदार ने टूटी ईंटों की मजदूरी देने से साफ इन्कार कर दिया।

सुकिया और मानो दोनों बुरी तरह टूट गए थे। दोनों वहाँ से अगले काम के लिए निकल पड़े थे। भट्ठा उन्हें अपनी खानाबदोश जिंदगी का एक पड़ाव लग रहा था। मानो को लग रहा था कि जसदेव उन्हें रोक लेगा। जसदेव के चुप रहने से उसका विश्वास टूट गया। टूटे हुए सपनों के काँच उसकी आँखों में चुभने लगे थे। वे एक दिशाहीन यात्रा के लिए निकल पड़े थे।

कठिन शब्दों के अर्थ-

• ताड़ लेना – अंदाज़ लगाना
• अंतर्मन – हृदय
• मुआयना – निरीक्षण
• कतार – पंक्ति
• प्रतिध्वनियाँ – गूंज
• निगरानी – देख-रेख

• वामन – ब्राह्मण
• थारी – तुम्हारी
• स्याहपन – अँधेरा
• बसंत खिल उठना – सुखद विचार आना
• घियी बँधना – कुछ बोल न पाना

• तरतीब – ढंग
• जिनावर – जानवर
• टीस – कसक
• दुश्चिता – बुरी चिंता
• शिद्दत – तीव्रता
• बवंडर – हलचल
• टेम – समय
• कातरता – अधीरता
• अदम्य – जिसे रोका न जा सके

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