Chapter 7 बादल राग | class 12th | Quick Revision Notes Hindi Aroh

बादल राग Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 7

बादल राग कविता का सारांश

बादल राग’ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की ओजपूर्ण कविता है जो उनके सुप्रसिद्ध काव्य-संग्रह अनामिका से संकलित है। निराला जी साम्यवादी चेतना से प्रेरित कवि माने जाते हैं। उन्होंने अपने काव्य में शोषक वर्ग के प्रति घृणा, शोषित वर्ग के प्रति गहन सहानुभूति । और करुणा के भाव अभिव्यक्त किए हैं। इस कविता में कवि ने बादल को क्रांति और विप्लव का प्रतीक मानकर उसका आहवान किया – है। किसान और जनसामान्य की आकांक्षाएँ बादल को नव-निर्माण के राग के रूप में पुकार रही हैं।

बादल पृथ्वी पर मँडरा रहे हैं। वायु रूपी सागर पर इनकी छाया वैसे ही तैर रही है जैसे अस्थिर सुखों पर दुखों की छाया मँडराती रहती – है। वे पूँजीपति अर्थात शोषक वर्ग के लिए दुख का कारण हैं। कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहता है कि वे शोषण करनेवालों । के हृदयों पर क्रूर विनाश का कारण बनकर बरसते हैं। उनके भीतर भीषण क्रांति और विनाश की माया भरी हुई है। युद्ध रूपी नौका के – समान बादलों में गरजने-बरसने की आकांक्षा है, उमंग है।

युद्ध के समान उनकी भयंकर नगाड़ों रूपी गर्जना को सुनकर मिट्टी में दबे हुए बीज अंकुरित होने की इच्छा से मस्ती में भरकर सिर उठाने लगते हैं। बादलों के क्रांतिपूर्ण उद्घोष में ही अंकुरों अर्थात निम्न वर्ग । का उद्धार संभव है। इसलिए कवि उनका बार-बार गरजने और बरसने का आह्वान करता है। बादलों के बार-बार बरसने तथा उनकी । बज्र रूपी तेज हुँकार को सुनकर समस्त संसार भयभीत हो जाता है। लोग घनघोर गर्जना से आतंकित हो उठते हैं। बादलों की वन रूपी

हुँकार से उन्नति के शिखर पर पहुँचे सैकड़ों-सैकड़ों वीर पृथ्वी पर गिरकर नष्ट हो जाते हैं। गगन को छूने की प्रतियोगिता रखने वाले लोग अर्थात सुविधाभोगी पूँजीपति वर्ग के लोग नष्ट हो जाते हैं। लेकिन उसी बादल की वज्र रूपी हुँकार से मुक्त विनाशलीला में छोटेछोटे पौधों के समान जनसामान्य वर्ग के लोग प्रसन्नता से भरकर मुसकराते हैं। वे क्रांति रूपी बादलों से नवीन जीवन प्राप्त करते हैं। शस्य-श्यामल हो उठते हैं। वे छोटे-छोटे पौधे हरे-भरे होकर हिल-हिलकर, खिल-खिलकर हाथ हिलाते हुए अनेक प्रकार के संकेतों से बादलों को बुलाते रहते हैं। क्रांति रूपी स्वरों से छोटे पौधे अर्थात निम्न वर्ग का जनसामान्य ही शोभा प्राप्त करता है। समाज के ऊँचे-ऊँचे भवन महान नहीं होते। वे तो वास्तव में आतंक और भय के निवास होते हैं।

ऊँचे भवनों में रहनेवाले पूँजीपति वर्ग के ऊँचे लोग सदा : भयभीत रहते हैं। जैसे बाढ़ का प्रभाव कीचड़ पर होता है। वैसे ही क्रांति का अधिकांश प्रभाव बुराई रूपी कीचड़ या शोषक वर्ग पर ही – होता है। निम्न वर्ग के प्रतीक छोटे पौधे रोग-शोक में सदा मुसकराते रहते हैं। इन पर क्रांति का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। शोषक वर्ग ने निम्न वर्ग का शोषण करके अपने खजाने भरे हैं लेकिन उन्हें फिर.भी संतोष नहीं आता।

उनकी इच्छाएँ कभी पूर्ण नहीं होती लेकिन वे – क्रांति से गर्जना सुनकर अपनी प्रेमिकाओं की गोद में भय से काँपते रहते हैं। कवि क्रांति के दूत बादलों का आह्वान करता है कि वह जर्जर और शक्तिहीन गरीब किसानों व जनसामान्य की रक्षा करें। पूँजीपतियों ने इनका सारा खून निचोड़ लिया है। अब उनका शरीर हाड़ मात्र ही रह गया है। इसलिए कवि ने बादलों को ही क्रांति के द्वारा उन्हें नवजीवन प्रदान करने का आह्वान किया है।

बादल राग कवि परिचय

नाधन परिचय-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ आधुनिक हिंदी साहित्य के छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। छायावाद युगीन कवियों में महाप्राण निराला जी सदैव अनूठे रहे हैं। हिंदी साहित्य में इनकी प्रतिभा निराली है। ये वास्तव में संघर्षशील प्राणी थे। इनका जन्म सन् 1899 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० रामसहाय त्रिपाठी था जो उन्नाव (उत्तर प्रदेश) के गाँव गठाकोला के रहनेवाले थे।
Class 12 Hindi Aroh Chapter 7 Summary बादल राग
बाद में आजीविका उपार्जन हेतु मेदिनीपुर में आकर बस गए थे। निराला के तीन वर्ष की अवस्था में ही उनकी माता जी का देहावसान हो गया था। इनकी अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंगाली आदि साहित्य का गहन अध्ययन किया था। चौदह वर्ष की आयु में ही इनका विवाह मनोहरा देवी से हो गया था। इनकी पत्नी अत्यंत सुशील, सुसंस्कृत, सौम्य एवं साहित्य-प्रेमी महिला थीं।

इनकी पत्नी पुत्र रामकृष्ण और पुत्री सरोज को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई थीं। कुछ समय बाद इनके पिता तथा चाचा जी का भी स्वर्गवास हो गया। परिवार पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। इनका जीवन अनेक अभावों एवं विपत्तियों से पीड़ित रहा किंतु इन्होंने कभी हार नहीं मानी। इसके बाद इन्होंने महिषादल रियासत में नौकरी की, किंतु कुछ कारणों से वहाँ से त्याग-पत्र देकर चले गए। कुछ समय तक रामकृष्ण मिशन कलकत्ता के पत्र समन्वय का संपादन किया, बाद में ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन करने लगे।

सन 1935 ई० में इनकी पुत्री सरोज का भी निधन हो गया। पुत्री के निधन से निराला जी को गहन शोक हुआ। इसी से प्रेरित हो इन्होंने ‘सरोज स्मृति’ शोक गीत लिखा। पुत्री के निधन से वे अत्यंत दुखी रहने लगे, फिर बीमार हो गए। धीरे-धीरे इनका शरीर बीमारियों से जर्जर हो गया था और अंत में 15 अक्तूबर, सन् 1961 ई० को इलाहाबाद में ये अपना नश्वर शरीर त्याग कर परलोक सिधार गए थे। निराला जी का व्यक्तित्व निराला था। ये अत्यंत स्वाभिमानी, कर्मठ, अध्ययनशील, प्रकृति-प्रेमी एवं त्यागी पुरुष थे। वे एक संगीत-प्रेमी साहित्यकार थे। रचनाएँ… निराला जी बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने गद्य-पद्य की अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। . उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-अनामिका, परिमल, गीतिका, बेला, नए पत्ते, अणिमा, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, सरोज-स्मृति, राम की शक्तिपूजा, राग-विराग, अर्चना, आराधना आदि।
(ii) उपन्यास-अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे, चमेली आदि।
(iii) कहानी-संग्रह-चतुरी चमार, सुकुल की बीवी, लिली सखी।
(iv) रेखाचित्र-कुल्लीभाट, बिल्लेसुर बकरिह।
(v) निबंध-संग्रह-प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, प्रबंध परिचय एवं रवि कविता कानन।
(vi) जीवनियाँ-ध्रुव भीष्म तथा राणा प्रताप।
(vii) अनुवाद-आनंद पाठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेशनंदिनी, रजनी, देवी चौधरानी, राधारानी, विषवृक्ष, कृष्णकांत का दिल,

युगलांगुलीय, राजा सिंह, महाभारत आदि। माहित्यिक विशेषताएँ-निराला जी छायावादी काव्यधारा के आधार स्तंभ हैं। इनके काव्य में छायावाद के अतिरिक्त प्रगतिवादी तथा
प्रयागवादी काव्य की विशेषताएँ भी परिलक्षित होती हैं। इनके व्यक्तित्व के साथ-साथ इनकी लेखनी भी अत्यंत निराली है तथा इनका – साहित्य भी निराला है। इनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ अनलिखित हैं

(i) वैयक्तिकता-छायावादी कवियों के समान निराला के काव्य में वैयक्तिकता की सफल अभिव्यक्ति हुई है। ‘अपरा’ की अनेक
कविताओं में इन्होंने अपनी आंतरिक अनुभूतियों तथा व्यक्तिगत सुख-दुख को चित्रण किया है। जूही की कली, हिंदी के सुमनों के प्रति, मैं अकेला, राम की शक्ति पूजा, विफल वासना, स्नेह निर्झर बह गया है, सरोज स्मृति आदि अनेक कविताओं में इनकी व्यक्तिगत भावनाओं की सफल अभिव्यक्ति हुई है। ‘सरोज स्मृति’ तो निराला जी के संपूर्ण जीवन का शोक गीत है। वे कहते हैं

दुख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज जो नहीं कहीं।

(ii) निराशा, वेदना, दुख एवं करुणा का चित्रण-निराशा, वेदना, दुख एवं करुणा छायावाद की प्रमुख विशेषताएँ हैं। छायावादी कवि वेदना एवं दुख को जीवन का सर्वस्व एवं उपकारक मानते हैं। निराला जी ने वेदना, करुणा एवं दुखवाद को कई प्रकार से चित्रित किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है

दिए हैं मैंने जगत को फूल-फल।
किया है अपनी प्रभा से चकित-चल;
यह अनश्वर था सकल पल्लवित पल
ठाठ जीवन का वही जो ढह गया है।

(iii) प्रगतिवादी चेतना-निराला जी प्रगतिवादी चेतना से ओत-प्रोत कवि थे। इन्होंने अपने साहित्य में पूँजीपति वर्ग के प्रति आक्रोश ।
एवं दीन-हीन गरीब के प्रति सहानुभूति की भावना व्यक्त की है। कुकुरमुत्ता, वह तोड़ती पत्थर, भिक्षुक आदि ऐसी ही कविताएँ हैं, जिनमें कवि की प्रगतिवादी चेतना के दर्शन होते हैं। ‘भिक्षुक’ कविता में वे एक भिखारी की दयनीय करुण दशा का चित्रण करते हुए कहते हैं

वह आतादो
टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता
पेट-पीठ, दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठीभर दाने को भूख मिटाने को
मुँह-फटी पुरानी झोली को फैलाता
वह आता

(v) विद्रोह की भावना-निराला जी विद्रोही प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। यही विद्रोह इनके काव्य में भी अभिव्यक्त हुआ है। निराला जं.
अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छंदता प्रेमी रहे थे। ये तो आजीवन संघर्ष ही करते रहे। इनकी बादल राग, कुकुरमुत्ता आदि अनेक कविताओं में विद्रोह की भावना अभिव्यक्त हुई है। ‘कुकुरमुत्ता’ में वे पूँजीपति वर्ग के प्रतीक गुलाब के प्रति विद्रोह करते हुए कहते हैं
अबे !
सुन बे, गुलाब
भूल मत गर पाई खुशबू रंगो आब;
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतराता है कैपिटेलिस्ट!

इतना ही नहीं बादल राग में वे क्रांति के प्रतीक बादलों का आह्वान करते हुए कहते हैं

तुझे बुलाता कृषक अधीर
ए विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार॥
हाड़-मात्र ही है आधार
ऐ जीवन के पारावार!

(v) प्रकृति-चित्रण-छायावादी कवियों का प्रकृति से अन्यतम संबंध रहा है। प्रकृति पर चेतना का आरोप तथा मानवीकरण करना
छायावाद की प्रमुख विशेषता रही है। निराला जी भी इससे अछूते नहीं हैं। इन्होंने भी प्रकृति पर चेतना का आरोप करके प्रकृति का अनूठा चित्रण किया है। बादल राग कविता में प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कवि कहते हैं

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।’

निराला की दृष्टि में बादल प्रपात यमुना-सभी कुछ चेतना है। वे यमुना से पूछते हैं

तू किस विस्मृत की वीणा से, उठ-उठकर कातर झंकार।
उत्सुकता से उकता-उकता, खोल रही स्मृति के दृढ़ द्वार?

(vi) देश-प्रेम की भावना-निराला जी के हृदय में देश-प्रेम की उदात्त भावना भरी हुई थी। इनको अपने देश, समाज तथा संस्कृति से गहन प्रेम था। देश के सांस्कृतिक पतन को देखकर निराला जी अत्यंत दुखी हो जाते हैं। इन्होंने स्पष्ट कहा है कि हमारे देश के भाग्य के आकाश को विदेशी शासक रूपी राहू ने ग्रस लिया है। उनकी इच्छा है कि किसी भी तरह देश का भाग्योदय हो जिससे भारत का जन-जन आनंद विभोर हो उठे। भारती वंदना, जागो फिर एक बार, तुलसीदास, छत्रपति शिवाजी का पत्र, राम की शक्ति पूजा आदि ऐसी अनेक कविताओं से निराला जी की देशभक्ति की भावना अभिव्यक्त हुई है। जैसे

सोचो तुम,
उठती है, नग्न तलवार जब स्वतंत्रता की,
कितने ही भावों से
याद दिलाकर दुख दारुण परतंत्रता का
फूंकती स्वतंत्रता निजमंत्र से जब व्याकुल कान
कौन वह समेरू, जो रेणु-रेणु न हो जाए।”

निराला जी भारत की परतंत्रता को मिटाने के लिए भारत के प्रत्येक निवासी को युद्धभूमि में आने के लिए ललकारते हैं। ‘जागो फिर एक बार कविता’ में ऐसी ही ललकार है।
यह तेरी रण-तरी भरी आकांक्षाओं से, धन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के, आशाओं से नवजीवन की; ऊँचा कर सिर, ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!”

(vii) मानवतावादी जीवन-दर्शन-मानवता एक ऐसी विराट भावना है जिसमें सृष्टि के प्रत्येक प्राणी का हित-चिंतन किया जाता
है। रवींद्रनाथ टैगोर, टॉलस्टाय, महात्मा गांधी आदि महानुभावों ने मानव की वंदना की और इस प्रकार एक नवीन मानवतावादी जीवन-दर्शन का उदय और विकास हुआ। अन्य छायावादी कवियों की भाँति निराला के काव्य में भी इस मानवतावादी जीवन-दर्शन।
की अभिव्यक्ति हुई है। वह तोड़ती पत्थर, बादल राग, भिक्षुक आदि अनेक कविताओं में कवि की इसी भावना के दर्शन होते हैं। __ ‘बादल राग’ कविता में निराला जी कहते हैं

विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टालिका नहीं है हे, आतंक भवन।”

(viii) रहस्यवादी भावना-छायावाद के अन्य कवियों की भाँति निराला के साहित्य में रहस्यवादी भावना का चित्रण हुआ है। इन्होंने
अपनी इस भावना को जिज्ञासा तथा कौतूहल के रूप में अभिव्यक्त किया है। तुम और मैं, यमुना के प्रति आदि कविताओं में निराला की रहस्य-भावना स्पष्ट झलकती है, जैसे

लहरों पर लहरों का चंचल नाच, याद नहीं था करना इसकी जाँच।
अगर पूछता कोई तो वह कहती, उसी तरह हँसती पागल हँसी होती
जब जीवन की प्रथम उमंग, जा रही मैं मिलने के लिए।”

(ix) नारी के विविध एवं नवीन रूपों का चित्रण-छायावादी कवियों की नारी के प्रति सम्मानजनक भावना है। इन्होंने बदलती।
परिस्थितियों में नारी को विविध रूपों में देखा है। नारी के प्रति इनके हृदय में गहन सहानुभूति है। कहीं वह जीवन की सहचरी एवं प्रेयसी है और कहीं प्रकृति में व्याप्त होकर अलौकिक भावों से अभिभूत करती हुई दिखाई देती है। कवि कहीं नारी के दिव्य दर्शन । की झलक पाते हैं और कहीं नारी को लक्ष्य करके प्रेमोन्माद की अस्फुट मनोवृत्ति का चित्रण करते हैं। निराला जी के साहित्य में भी नारी के इन्हीं विविध रूपों का चित्रण हुआ है। इनकी ‘अपरा’ की कई कविताओं में नारी के विविध रूपों का चित्रण मिलता है। वह प्रेयसी भी है और प्रेरणा शक्ति भी है। समस्त प्रकृति उसी का स्वरूप है। ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता में निराला जी एक। नारी के प्रति अपार सहानुभूति प्रकट करते हैं

वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर।
वह तोड़ती पत्थर॥

(x) नवीन मुक्तक छंद का प्रयोग-निराला जी मुक्तक छंद के प्रणेता हैं। हिंदी-साहित्य को यह इनकी अद्वितीय देन है। निराला जी ने सदियों से चली आ रही परंपरा को तोड़कर मुक्तक छंद में काव्य-रचना की। निराला के अनुसार मनुष्य की मुक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग होना। निराला जी ने मुक्तक छंद का निर्भयतापूर्वक प्रयोग किया है। इसके बाद साहित्य में इसी छंद का प्रचलन हो गया है। जुही की कली, पंचवटी प्रसंग, छत्रपति शिवाजी का पत्र, । जागो फिर एक बार आदि मुक्तक छंद की प्रसिद्ध कविताएँ हैं।

(xi) भाषा-शैली-निराला जी ने हिंदी-साहित्य को नवीन भाव, नवीन भाषा और नवीन मुक्तक छंद प्रदान किए हैं। इन्होंने अपने बुद्धि-कौशल के बल पर हिंदी को अनेक उपहार भेंट किए हैं। जो प्रखरता और विद्रोह उनके व्यक्तित्व में था वही प्रखरता और विद्रोह उनकी भाषा में भी दृष्टिगोचर होता है। निराला जी ने अपने साहित्य में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है । जिसमें तत्सम, तद्भव, विदेशी आदि भाषाओं के शब्दों का मेल है। कोमल कल्पना के अनुरूप इन्होंने कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया है। कोमलता, संगीतात्मकता, शब्दों की मधुर योजना, भाषा का लाक्षणिक प्रयोग, चित्रात्मकता आदि इनकी भाषा की विशेषताएँ हैं।

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Chapter 6 उषा | class 12th | Quick Revision Notes Hindi Aroh

Chapter 6 उषा Summary Notes Class 12 Hindi Aroh

उषा कविता का सारांश

कवि ने ‘उषा’ कविता में सुबह-सवेरे सूर्य के निकलने से पहले को प्राकृतिक शोभा का सुंदर चित्रण किया है। आकाश का गहरा नीलापन सफ़ेद शंख के समान दिखाई देने लगता है। आकाश का रंग ऐसा लगता है जैसे किसी गृहिणी ने राख से चौका लीप-पोत दिया हो जो अभी गीला है। उसका रंग गहरा है। जैसे ही सूर्य कुछ ऊँचा उठता है और उसकी लाली फैलती है तो ऐसे प्रतीत होने लगता है जैसे केसर से युक्त काली सिल को किसी ने धो दिया है या उसपर लाल खड़िया चाक मल दी हो। नीले आकाश में सूर्य ऐसे शोभा देने लगता है जैसे कोई सुंदरी नीले जल से बाहर आती हुई रह-रहकर अपने गोरेपन की आभा बिखेर रही हो। जब सूर्य पूर्व दिशा में दिखाई देने लगता है तो उसका जादुई प्रभाव समाप्त हो जाता है।

उषा कवि परिचय

जीवन-परिचय-शमशेर बहादुर सिंह हिंदी-साहित्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका ० अज्ञेय के तार सप्तक में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म13 जनवरी, सन 1911 ई० को उत्तराखंड 0 के देहरादून जिले के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के एक स्कूल में हुई। हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा गोंडा से प्राप्त की। इन्होंने बी० ए० तथा एम० ए० पूर्वाद्ध की उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रहण की। इनकी प्रारंभ से ही चित्रकला में अधिक रुचि थी जिसका प्रयोग इन्होंने अपनी रचनाओं में किया है। इन्होंने दो वर्ष तक सुमित्रानंदन पंत के ‘रूपाभ पत्र’ में कार्य किया।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 Summary सहर्ष स्वीकारा है 

इसके बाद ये ‘कहानी’ और ‘नया साहित्य’ आदि पत्र-पत्रिकाओं के संपादक मंडल में रहे। ये दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में कोश से संबंधित कार्य भी करते रहे। तत्पश्चात विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में ‘प्रेमचंद सृजन’ पीठ के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे। सन 1977 ई० में ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ काव्य-संग्रह पर इन्हें ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार से अलंकृत किया गया। इन्हें साहित्य की उत्कृष्टता के लिए ‘कबीर सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया।

अंततः सन 1993 ई० में दिल्ली में ये अपना महान साहित्य-हिंदी जगत को सौंपकर चिरनिद्रा में लीन हो गए। प्रमुख रचनाएँ-शमशेर बहादुर सिंह हिंदी साहित्य के एक श्रेष्ठ प्रगतिशील कवि माने जाते हैं। इन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनीचलाई है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-संग्रह-चुका भी हूँ नहीं मैं, कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ इतने पास अपने, बात बोलेगी, काल तुमसे होड़ है मेरी।
(ii) संपादन-उर्दू-हिंदी कोश।।
(iii) निबंध-संग्रह-दोआब।
(iv) कहानी-संग्रह-प्लाट का मोर्चा।

साहित्यिक विशेषताएँ-शमशेर जी हिंदी के सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि हैं। बौद्धिक स्तर पर इन पर मार्क्सवादी विचारों का गहन । प्रभाव है। ये विचारों के स्तर पर प्रगतिशील तथा शिल्प के स्तर पर प्रयोगधर्मी कवि हैं। इनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित

(i) गरीबी का सजीव चित्रण-शमशेर जी ने अपने काव्य में समाज में फैली गरीबी का सजीव चित्रण किया है। गरीबी के कारण समाज की दयनीय दशा के प्रति इन्होंने गहन चिंता व्यक्त की है। गरीबी रूपी दानव ने संपूर्ण समाज को घेर लिया है जिसके कारण जनता बुद्धिहीन हो गई। इन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से बताया है कि समाज में घर-घर मजदूरी करनेवाले मजदूरों की दुर्दशा त्रासदपूर्ण है। घर-घर मजदूरी करनेवाले मजदूर का पूरा परिवार घर-घर मजदूरी करने पर मजबूर है। कवि ने समाज में बढ़ रही इस त्रासदी पर गहन चिंता व्यक्त की है।

दैन्य दानव; काल
भीषण; कर स्थिति; कंगाल
बुद्धि घर मजूर।
दैन्य दानव, कृर स्थिति।
कंगाल बुद्धि; मजूर घर भर।

(ii) देशभक्ति की भावना-शमशेर हिंदी साहित्य के एक सजग साहित्यकार थे। इनके हृदय में अपने देश के प्रति गहन प्रेम था। इन्होंने अपने काव्य में अपने देश तथा संस्कृति का अनूठा चित्रण किया है। इनकी अनेक कविताएँ भारतीय जनता को स्वतंत्रता के प्रति जागृत करने का आह्वान करती हैं। कवि ने भारतीय जनता को अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए एकजुट रहने का संदेश दिया है। वे कहते हैं, हमें अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए एकता की भावना को बनाए रखना चाहिए। इनकी अनेक कविताएँ ऐसे ही भारतीय जनता का आहवान करती प्रतीत होती हैं

एक जनता का-अमर वर
एकता का स्वर।
अन्यथा स्वातंत्र्य इति।

(iii) सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण-शमशेर जी यथार्थवादी भावना से ओत-प्रोत कवि माने जाते हैं। इन्होंने अपने काव्य में |
यथार्थ की भावभूमि का सहारा लेकर वर्णन किया है। यही कारण है कि इनकी कविताओं में समकालीन समाज के जन-जीवन का यथार्थ चित्रण मिलता है। इन्होंने समाज की उठा-पटक, ईष्या-द्वेष, ग़रीबी, लाचारी, शोषण आदि की यथार्थ अभिव्यंजना की है। इनका एक यथार्थवादी चित्र द्रष्टव्य है

सींग और नाखून
लोहे के बख्तर कंधों पर।
सीने में सुराख हड्डी का।
आँखों में घास काई की नमी।
एक मुस्दा हाथ
पाँव पर टिका
उलटी कलम थामे
तीन तसलों में कमर का घाव सड़ चुका है
जड़ों का भी कड़ा जाल
हो चुका पत्थर।

(iv) प्रगतिवादी चेतना-शमशेर जी मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित कवि हैं। इसलिए इनके साहित्य में प्रगतिवादी चेतना का प्रतिपादन भी हुआ है। इनकी अनेक कविताओं पर द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का गहन प्रभाव दिखाई देता है। इन्होंने अपने साहित्य में शोषक | वर्ग की खुलकर निंदा की है तथा शोषित समाज के प्रति विशेष सहानुभूति प्रकट की है। इन्होंने शोषण का शिकार झेल रहे। दीन-हीन समाज के प्रति गहरी संवेदना अभिव्यक्त की है।

(v) प्रकृति चित्रण-शमशेर जी का मन प्रकृति-वर्णन में खूब रमा है। इनका जन्म ही प्रकृति के आँचल में हुआ था। अतः प्रकृति से | इनका बचपन से लगाव था। इन्होंने प्रकृति-सौंदर्य को बहुत नजदीक से देखा है इसीलिए इनके काव्य में प्रकृति-सौंदर्य का अनूठा | चित्रण हुआ है। इन्होंने अनेक कविताओं में प्रकृति में अनेक सुंदर और मनोहारी चित्र बिखरे हैं। चित्रकला में विशेष रुचि होने | के कारण इनके प्राकृतिक चित्र अत्यंत सजीव बन पड़े हैं। इन्होंने अनेक कविताओं में बाग-बगीचों, पहाड़ों, झरनों और नदियों के सुंदर-सुंदर बिंब प्रस्तुत किए हैं’उषा’ कविता में कवि ने प्रात:कालीन वातावरण का सजीव चित्रण किया है

प्रातः नभ था-बहुन नीला, शंख जैसे
भोर का नभ,
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है।)
बहुत काली सिल
जग से लाल केसर मे
कि जैसे धुल गई हो।
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने।

(vi) रहस्यवादी भावना-शमशेर जी एक प्रयोगधर्मी कवि हैं, अतः इन्होंने अपने साहित्य में अनेक नए-नए प्रयोग किए हैं। कहीं-कहीं। इनके ऊपर छायावाद का प्रभाव दिखाई देता है। इनके ‘राग’ नामक संग्रह में इनकी रहस्यवादी भावना का चित्रांकन हुआ है। ‘बात बोलेगी’ कविता के माध्यम से इन्होंने वस्तुनिष्ठ सत्य की वकालत की है तथा सत्य क्या है; दुःख क्या है; विडंबना क्या है आदि अनेक रहस्यों का उद्घाटन भी किया है। जैसे

बात बोलेगी;
हम नहीं।
भेद खोलेगी
बात ही।
सत्य का मुख
झूठ की आँखें
क्या-देखें
सत्य का रुख;
समय का रुख है:
अभय जनता को
सत्य ही सुख है,
सत्य ही सुख।

(vii) भाषा-शैली-शमशेर जी कविताएँ जहाँ एक ओर अत्यंत बोधगम्य तथा सरल हैं तो दूसरी ओर नितांत जटिल भी हैं। कवि पर। उर्दू शायरी का भी प्रभाव देखा जा सकता है जिसके कारण उन्होंने संज्ञा और विशेषण से अधिक सर्वनामों, क्रियाओं, अव्ययों और मुहावरों पर बल दिया है। शमशेर जी की प्रवृत्ति सदा ही वस्तुपरकता को उसके मार्मिक रूप में ग्रहण करने की रही है, इसीलिए उनकी काव्य-अनुभूति बिंब ही नहीं बल्कि बिंबलोक की है।

इनके काव्य में प्रगतिवाद, प्रयोगवाद तथा नई कविता के तत्व घुल-मिलकर इनके भाव और भाषा को उजला रूप प्रदान करते हैं। चित्रकला, संगीत और कविता इनकी सर्जनात्मकता को नया रंग देते हैं। इनकी भाषा सरल, सुबोध, साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें तत्सम, तद्भव, अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी आदि भाषाओं की। शब्दावली का प्रयोग हुआ है। इनकी शैली भावपूर्ण है। इसके साथ-साथ चित्रात्मक, वर्णनात्मक शैलियों का प्रयोग भी किया है। मुहावरों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता उत्पन्न हो गई है।

(viii) अलंकार, छंद और बिंब-शमशेर जी के काव्य में शब्द और अर्थ दोनों प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया गया है। इन्होंने अपनी कविताओं में अनुप्रास, यमक, श्लेष, पदमैत्री, मानवीकरण, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है। उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण द्रष्टव्य है

नील जल में या
किसी की गौर, सिलमिल देह जैसे
हिल रही हो।
और —
जादू टूटता है उस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

इन्होंने अपने काव्य के लिए मुक्तक छंद का प्रयोग किया है। इनकी बिंब-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है। इनके शब्द-चित्र अत्यंत सजीव हैं।

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Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है | class 12th | Quick Revision Notes Hindi Aroh

सहर्ष स्वीकारा है Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 5

सहर्ष स्वीकारा है  कविता का सारांश

गजानन माधव मुक्तिबोध नई कविता के प्रमुख कवि हैं। वे लंबी कविताओं के कवि हैं। ‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की छोटी कविता है जो छायावादी चेतना से प्रेरित है। इस कविता में कवि ने जीवन में मनुष्य को सुख-दुख, राग-विराग, हर्ष-विषाद, आशा-निराशा, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक आदि भावों को सहर्ष अंगीकार करने की प्रेरणा प्रदान की है। इसके साथ यह कविता उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता की ओर संकेत करती हैं जिससे कवि को प्रेरणा प्राप्त हुई है।

कवि उस विशिष्ट सत्ता को संबोधन करके कहता है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, हर्ष-विषाद आदि मिला है उसको मैंने सहर्ष भाव से अंगीकार किया है। इसलिए वह जीवन में सब कुछ उसी सत्ता का दिया हुआ मानता है। गर्वयुक्त गरीबी, गंभीर अनुभव, भव्य विचार, दृढ़ता हृदय रूपी सरिता सब कुछ उनके जीवन में मौलिक हैं, बनावटी कुछ भी नहीं। इसलिए उन्हें गोचर जगत अदृश्य शक्ति का भाव लगता है।

वे सोचते हैं कि न जाने उस असीम सत्ता से उनका क्या रिश्ता-नाता है कि बार-बार वे उनके प्रति प्रेम रूपी झरने को ख़त्म करना चाहते हैं लेकिन वह बार-बार अपने-आप भर जाता है, जिसे चाहकर भी वे समाप्त नहीं कर सकते। उन्हें रात्रि में धरती पर मुसकुराते चाँद की भाँति अपने ऊपर असीम सत्ता का चेहरा मुसकुराता हुआ दिखता है। कवि बार-बार उस प्रभु से अपनी भूल के लिए दंड चाहते हैं। वे दक्षिण ध्रुव पर स्थित अमावस्या में पूर्ण रूप से डूब जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अब प्रभु द्वारा ढका और घिरा हुआ रमणीय प्रकाश सहन नहीं होता। अब उन्हें ममता रूपी बादलों की कोमलता भी हृदय में पीड़ा पहुँचाती है।

उनकी आत्मा कमजोर और शक्तिहीन हो गई है। इसलिए होनी को देखकर उनका हृदय छटपटाने लगता है। अब तो स्थिति यह है कि उन्हें दुखों को बहलाने व सहलानेवाली आत्मीयता भी सहन नहीं होती। कवि वास्तव में उस असीम, विशिष्ट जन से दंड चाहता है। ऐसा दंड जिससे कि वह पाताल लोक की गहन गुफाओं, बिलों और धुएँ के बादलों में बिलकुल खो जाए। लेकिन वहाँ भी उन्हें प्रभु का ही सहारा दिखता है। इसलिए वह अपना सब कुछ उसी सत्ता को स्वीकार करते हैं और जो कुछ उस सत्ता ने सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, आशा-निराशा आदि प्रदान किए हैं उन्हें खुशी-खुशी स्वीकार करता है।

इस कविता के माध्यम से कवि मनुष्यों को भी यही प्रेरणा देते हैं कि जीवन में मनुष्य को प्रभु प्रदत्त राग-विराग, सुख-दुख, आशा-निराशा आदि भाव सहर्ष भाव से या निर्विवाद रूप से स्वीकार कर लेने चाहिए।

सहर्ष स्वीकारा है  कवि परिचय
जीवन परिचय-श्री गजानन माधव मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी साहित्य की नई कविता के बेजोड़ 0 कवि थे। ये एक संघर्षशील साहित्यकार थे जो आजीवन समाज, इतिहास और स्वयं से संघर्ष करते रहे। इनका जन्म 13 नवंबर, सन् 1917 ई० को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पूर्वज पहले महाराष्ट्र में रहते थे जो बाद में मध्य प्रदेश में आकर रहने लगे। इनके पिता का नाम माधव मुक्तिबोध था। वे पुलिस में सिपाही थे।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 Summary सहर्ष स्वीकारा है 

इनकी माँ बुंदेलखंड के एक किसान की बेटी थी। मुक्तिबोध जी एक विचारक एवं घुमक्कड़ प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। ये अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। ये शांता नामक लड़की से प्रेम करते थे। बाद में इन्होंने परिवार की मरजी के खिलाफ़ शांता जी से शादी कर ली थी। इस घटना से इनका परिवार के सदस्यों से मतभेद हो गया। मुक्तिबोध की प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। ये मिडिल की परीक्षा में एक बार अनुत्तीर्ण हुए लेकिन निरंतर परिश्रम करते हुए सन् 1953 ई० में नागपुर विश्वविद्यालय से एम० ए० की परीक्षा पास की। बाद में जीविकोपार्जन के लिए मध्य प्रदेश के एक मिडिल स्कूल में अध्यापक नियुक्त हुए किंतु चार मास के बाद ही यह नौकरी छोड़ दी।

तत्पश्चात शुजालपुर में शारदा शिक्षण सदन में रहे। फिर दौलतगंज मिडिल स्कूल उज्जैन में आ गए। इस प्रकार ० कवि ने आजीविका हेतु कोलकाता, इंदौर, मुंबई, बंगलौर (बेंगलुरु), बनारस, जबलपुर, राजनाँद गाँव आदि स्थानों पर कार्य किया। इन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। सन 1945 ई० में ‘हँस’ पत्र के संपादक मंडल के सदस्य के रूप में कार्य किया। 0 सन् 1956 से 1958 तक ‘नया खून’ नामक पत्र के संपादन कार्य से जुड़े रहे। इस प्रकार मुक्तिबोध जी को जीवन में दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। अंत में ये बीमार रहने लगे। ‘मैनिन जाइटिस’ नामक रोग ने इनके शरीर को जकड़ लिया।

उन्हें उपचार के लिए भोपाल और दिल्ली लाया गया किंतु वे स्वस्थ नहीं हुए। अंततः 11 सितंबर सन् 1964 ई० को नई दिल्ली में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ-मुक्तिबोध जी एक संघर्षशील साहित्यकार थे। ये बहुमुखी प्रतिभा से ओत-प्रोत रचनाकार थे। जो संघर्ष इनके जीवन में रहा
वही इनके साहित्य में भी दृष्टिगोचर होता है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-संग्रह-चाँद का मुँह टेढ़ा है (सन 1964), भूरी-भूरी खाक धूल (सन 1964)।
(ii) कहानी-संग्रह-काठ का सपना, सतह से उठता आदमी।
(iii) उपन्यास-विपात्र।
(iv) समीक्षात्मक ग्रंथ-कामायनी-एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्म-संघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, एक साहित्यिक डायरी, ० समीक्षा की समस्याएँ, भारत : इतिहास और संस्कृति।

साहित्यिक विशेषताएँ-‘मुक्तिबोध’ के साहित्य में सामाजिक चेतना, लोक-मंगल की भावना तथा जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण विद्यमान ० हैं। इनके काव्य में प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी संवेदनाओं का चित्रण मिलता है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) शोषक वर्ग के प्रति घृणा-मुक्तिबोध जी मार्क्सवादी चिंतन से प्रेरित कवि हैं। इन्होंने समाज के पूँजीपति वर्ग के प्रति घृणा-भाव व्यक्त किए हैं। इनकी अनेक कविताओं में उस व्यवस्था के प्रति गहन आक्रोश अभिव्यक्त किया गया है जो मजदूरों, निर्धनों का शोषण करके ऐशो-आराम का जीवन जी रहे हैं। पूँजीवादी समाज के प्रति’ इनकी ऐसी ही कविता है जिसमें प्रगतिवादी भावना दृष्टिगोचर होती है। ये पूँजीवादियों की मनोवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं

तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ
तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ।

कवि शहरी सभ्यता को भी सुविधा भोगी वर्ग की देन मानते हैं। यहाँ एक ओर शोषक समाज की चमक-दमक झूठी शान की जिंदगी है तो दूसरी ओर दीन-हीन मजदूर वर्ग की विवशतापूर्ण जिंदगी। इस दोहरी नागरिकता से परिपूर्ण जीवन पर कवि ने गहन आक्रोश व्यक्त किया है। जैसे

पाउडर में सफ़ेद अथवा गुलाबी
छिपे बड़े-बड़े चेचक के दाग मुझे दीखते हैं
सभ्यता के चेहरे पर।

(ii) शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति-मुक्तिबोध ने शोषक वर्ग के प्रति गहन आक्रोश तथा शोषित वर्ग के प्रति विशेष सहानुभूति प्रकट की है। कवि समाज के दीन-हीन निर्धन लोगों को आर्थिक शोषण से मुक्त करना चाहता है। इन्होंने अपनी अनेक कविताओं में शोषण के शिकार नारी, शिशु और मजदूरों का सजीव और मार्मिक अंकन किया है। ये शोषित समाज के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहते हैं

गिरस्तिन मौन माँ बहनें
उदासी से रंगे गंभीर मुरझाए हुए प्यारे
गऊ चेहरे
निरखकर
पिघल उठता मन।

(iii) समाज का यथार्थ चित्रण-मुक्तिबोध जी भ्रमणशील व्यक्ति थे। अतः इन्होंने समाज को बहुत नजदीकी से देखा। इसलिए इनके काव्य में समाज का यथार्थ बोध होता है। इनके काव्य में भोगे हुए यथार्थ की अभिव्यंजना हुई है। कवि ने समकालीन समाज में | फैली विसंगतियों, कुरीतियों, शोषण, अमानवीय मूल्यों का यथार्थ चित्रण किया है।

ये ‘चाँद का मुंह टेढ़ा’ में समकालीन समाज के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं
आज के अभाव के और कल के उपवास के
व परसों की मृत्यु के
दैन्य के महा अपमान के व क्षोभपूर्ण
भयंकर चिंता के उस पागल यथार्थ का
दीखता पहाड़ स्याह।

(iv) निराशा, वेदना एवं कुंठा का चित्रण-मुक्तिबोध की प्रारंभिक रचनाओं में उनका व्यक्तिगत चित्रण हुआ है। इसी प्रवृत्ति के कारण इनकी अनेक कविताओं में निराशा, वेदना, कुंठा आदि का चित्रण हुआ है। मुक्तिबोध आजीवन संघर्षरत रहे। इन्हें पग-पग पर ठोकरें खानी पड़ी। इसी संघर्ष और वेदना के उनके काव्य में दर्शन होते हैं। कवि ने अपनी वेदना को संत-चित वेदना इसलिए कहा है क्योंकि ये समाज की विसंगतियों, शोषण वेदना को अपने भीतर घटित होते देखते हैं। इन्होंने आजीवन जिस वेदना, कुंठा, दुख, पीड़ा को झेला उसी का सजीव चित्रांकन अपनी कविताओं में किया है

दुख तुम्हें भी है,
दुख मुझे भी है
हम एक ढहे हुए मकान के नीचे
दबे हैं।
चीख निकालना भी मुश्किल है
असंभव
हिलना भी।

‘अँधेरे में मुक्तिबोध का आस्थावादी दृष्टिकोण अभिव्यक्त हुआ है। इन्होंने निराशा-वेदना के अंधकारमय वातावरण में भी आशा का दीपक जलाए रखा है।

(v) वैयक्तिकता-छायावादी कवियों की भाँति मुक्तिबोध की अनेक कविताओं में व्यक्तिवादिता का भाव अभिव्यक्त हुआ है। इनकी वैयक्तिकता व्यक्तिगत होते हुए भी समाजोन्मुख है। ‘तारसप्तक’ में संकलित इनकी अधिकांश कविताएँ इसी छायावादी भावना से ओत-प्रोत हैं। इनकी अनेक कविताएँ छायावादी भावना और प्रगतिशीलता का अनूठा समन्वय लिए हुए हैं।
कहीं-कहीं अकेलेपन की प्रवृत्ति झलकती है लेकिन वह भी समाज से उन्मुख होती दिखाई पड़ती है। कवि ‘चाँद का मुँह टेढ़ा’ में कहते हैं याद रखो कभी अकेले में मुक्ति नहीं मिलती
यदि वह है तो सब के साथ ही।

(vi) वर्गहीन समाज का चित्रण-मुक्तिबोध मार्क्सवादी चेतना से प्रेरित कवि हैं। ये समाज से शोषक वर्ग को समाप्त कर वर्गहीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं। यही भावना इनकी अनेक कविताओं में प्रकट होती है। जहाँ ये पूँजीपति समाज का साम्राज्य समाप्त करना चाहते हैं। इनकी कविताएँ जन-विरोधी समाज व्यवस्था के विरुद्ध संघर्षशील हैं। कवि ने अपने काव्य में शोषण, वर्ग-भेद को मिटाकर एक स्वस्थ एवं वर्गहीन समाज की कल्पना की है। ये वर्तमान समाज के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कविता में कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ वर्तमान समाज चल नहीं सकता।

(vii) भाषा-शैली-मुक्तिबोध की काव्य-कला की महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि इन्होंने मानव-जीवन की जटिल संवेदनाओं और अंतवंवों की सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए फैटेसियों का कलात्मक उपयोग किया है। मुक्तिबोध सामान्य जन-जीवन में प्रचलित शब्दावली से युक्त भाषा का प्रयोग किया है। भाषा की मौलिकता इनकी काव्य-कला की प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग है तो अंग्रेजी, उर्दू, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। इनकी भाषा पाठक को वास्तविक मर्म सौंपने का कार्य करती है। इनकी शैली भावपूर्ण है। इसके साथ-साथ आत्मीय व्यंजनात्मक, चित्रात्मक, व्यंग्यात्मक, प्रतीकात्मक आदि शैलियों के भी दर्शन होते हैं।

(viii) बिंब-विधान-मुक्तिबोध का बिंब-विधान अत्यंत श्रेष्ठ है। इस दृष्टि से इनका काव्य अत्यंत समृद्ध है। इनकी संपूर्ण कविताएँ बिंबमयी हैं। इन्होंने सामाजिक यथार्थ, विसंगति, त्रासदी, वेदना आदि के सजीव चित्र उपस्थित किए हैं। इन्होंने अपने काव्य में दृश्य, ध्वनि, स्पर्श, स्थिर, गत्यात्मक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक आदि अनेक बिंबों का सजीव चित्रण किया है।

जैसे
सामने मेरे
सरदी में बोरे को ओढ़ कर
कोई एक अपने
हाथ-पैर समेटे
काँप रहा, हिल रहा-वह मर जाएगा।

(ix) प्रतीक विधान-मुक्तिबोध ने अपने काव्य में प्रतीकों का प्रचुर प्रयोग किया है। इन्होंने अपने काव्य में परंपरावादी प्रतीकों की अपेक्षा नए, जीवंत और सामान्य जन-जीवन के प्रतीकों का प्रयोग किया है। ब्रह्मराक्षस, ओरांग, उटांग, बावड़ी कवि के प्रिय प्रतीक हैं। इसलिए इनका उन्होंने बार-बार प्रयोग किया है। मुक्तिबोध की लंबी कविता ‘अँधेरे में’ समकालीन मनुष्य के संघर्ष का प्रतीक है जिसमें प्रयुक्त चरित्र ‘गांधी और तिलक’ दो। विचारधाराओं के प्रतीक हैं। इसके साथ-साथ इन्होंने पौराणिक प्रतीकों का भी प्रयोग किया है।

(x) छंद-मुक्तिबोध ने अपनी काव्य-रचना के लिए मुख्यतः मुक्तक छंद का प्रयोग किया है। इनके काव्य में लय और ताल का अनूठा संगम दिखाई देता है। इसके साथ तुकांत, अतुकांत छंदों के भी दर्शन होते हैं। अष्टक इनका प्रिय छंद है। इन्होंने लंबी कविताओं में इस छंद का प्रयोग किया है।

(xi) अलंकार-योजना-मुक्तिबोध की अलंकार योजना अत्यंत सुंदर है। इन्होंने परंपरागत उपमानों की अपेक्षा नवीन उपमानों का प्रचुर प्रयोग किया है। इनके काव्य में अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेह, उल्लेख, मानवीकरण’ रूपकातिशयोक्ति आदि अलंकारों का सुंदर एवं सजीव प्रयोग हुआ है। रूपक अलंकार का उदाहरण दृष्टव्य है

रवि निकलता
लाल चिंता की रुधिर-सरिता
प्रवाहित कर दीवारों पर
उदित होता चंद्र
ब्रज पर बाँध देता
श्वेत धौली पट्टियाँ।

वस्तुतः गजानन माधव मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी काव्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका हिंदी साहित्य में प्रमुख स्थान है।

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Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज | class 12th | Quick Revision Notes Hindi Aroh

कैमरे में बंद अपाहिज Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 4

कैमरे में बंद अपाहिज कविता का सारांश

कैमरे में बंद अपाहिज कविता रघुवीर सहाय के काव्य-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं से संकलित की गई है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती को झेलते व्यक्ति से टेलीविजन कैमरे के सामने किस तरह के सवाल पूछे जाएंगे और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए उससे कैसी भंगिमा की अपेक्षा की जाएगी इसका लगभग सपाट तरीके से बयान करते हुए एक तरह से पीड़ा के साथ दृश्य संचारमाध्यम के संबध को रेखांकित किया है।

साथ ही कवि ने व्यंजना के माध्यम से ऐसे व्यक्ति की ओर इशारा किया है जो अपनी दुःख-दर्द, यातनावेदना को बेचना चाहता है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती झेलते हुए लोगों के प्रति संवेदनशीलता व्यक्त की है। कवि ने इस कविता में बताया है कि अपने कार्यक्रम को सफल बनाने तथा किसी की पीड़ा को बहुत बड़े दर्शक वर्ग तक पहुँचाने के लिए दरदर्शनवाले किसी दल और शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति को अपने कैमरे के सामने प्रस्तुत करते हैं। उससे अनेक तरह से सवाल पर सवाल पूछते हैं। उसे कैमरे के आगे बार-बार लाया जाता है। बार-बार उससे अपाहिज होने के बारे में सवाल पूछे जाते हैं

कि आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है तथा उस कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए दूरसंचारवाले स्वयं प्रतिक्रिया व्यक्त करके बताते स हैं। अनेक ऐसे संवेदनशील सवालों को पूछ-पूछकर वे उस व्यक्ति को रुला देते हैं। दूरदर्शन के बड़े परदे पर उस व्यक्ति की आँसूभरी ” आँखों को दिखाया जाता है। इस प्रकार दूरदर्शनवाले बार-बार एक ऐसे अपाहिज व्यक्ति की पीड़ा को दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

कैमरे में बंद अपाहिज कवि परिचय

कवि-परिचय जीवन-परिचय-रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील कवि हैं। उनका जन्म सन् 1929 ई० में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 में एम० ए० अंग्रेजी की परीक्षा उत्तीर्ण की। एम० ए० करने के पश्चात ये पत्रकारिता क्षेत्र में कार्य करने लगे। इन्होंने ‘प्रतीक’, ‘वाक् और ‘कल्पना’ अनेक पत्रिकाओं के संपादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 4 Summary कैमरे में बंद अपाहिज

ततपश्चात कुछ समय तक आकाशवाणी में ऑल इंडिया रेडियो के हिंदी समाचार विभाग से भी सबद्ध रहे। ये 1971 से 1982 तक प्रसिद्ध पत्रिका दिनमान के संपादक रहे। इनको कवि के रूप में ‘दूसरा सप्तक’ से विशेष ख्याति प्राप्त हुई। इनकी साहित्य सेवा भावना के कारण ही इनको साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित किया गया। अंत में दिल्ली में सन् 1990 ई० में ये अपना महान साहित्य संसार को सौंपकर चिरनिद्रा में लीन हो गए।

रचनाएँ-रघुवीर सहाय हिंदी साहित्य के सफल कवि हैं। इन्होंने समकालीन समाज पर अपनी लेखनी चलाई है। इन्होंने समकालीन अमानवीय दोषपूर्ण राजनीति पर व्यंग्योक्ति तथा नए ढंग की कविता का आविष्कार किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

काव्य-संग्रह-सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो, हँसो जल्दी हँसो, लोग भूल गए हैं, आत्महत्या के विरुद्ध इनका प्रसिद्ध काव्य-संग्रह है। सीढ़ियों पर धूप में ‘कविता-कहानी-निबंध’ का अनूठा संकलन है। काव्यगत विशेषताएँ-रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी जगत के प्रसिद्ध कवि हैं। उनका काव्य समकालीन जगत का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करता है। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) समाज का यथार्थ चित्रण-रघुवीर सहाय जी ने समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है। इनके काव्य में सामाजिक यथार्थ के प्रति विशिष्ट सजगता दृष्टिगोचर होती है। इन्होंने सामाजिक अव्यवस्था, शोषण, विडंबना आदि का यथार्थ चित्रण किया है।

(ii) अदम्य जिजीविषा का चित्रण-रघुवीर सहाय ने अपने काव्य में अदम्य जिजीविषा का वर्णन किया है। इन की अनेक कविताओं में इस विशेषता का अनूठा चित्रण हुआ है। ‘सीढ़ियों पर धूप में’ काव्य-संग्रह की प्रायः सब कविताओं में अदम्य जीने की इच्छा। की सफल अभिव्यक्ति हुई है।

“और जिंदगी के अंतिम दिनों में काम करते हुए बाप काँपती साइकिलों पर
भीड़ से रास्ता निकाल कर ले जाते हैं।
तब मेरी देखती हुई आँखें प्रार्थना करती हैं
और जब वापस आती हैं अपने शरीर में
तब दे दिया जा चुका होता है।”

(iii) मध्यवर्गीय जीवन का चित्रण-कवि ने समकालीन समाज के मध्यवर्गीय जीवन का यथार्थ चित्रांकन प्रस्तुत किया है। इन्होंने अपने काव्य में मध्यवर्गीय जीवन में परिव्याप्त तनावों और विडंबनाओं का वर्णन किया है। वह कवि और शेष दुनिया के बीच का अनुभूत तनाव है। जो कवि को निरंतर आंदोलित करता रहता है। इसके साथ-साथ कवि ने कुछ व्यक्ति और समूह के मध्य तनाव का चित्रांकन भी किया है।

(iv) भ्रष्टाचार का चित्रण-रघुवीर सहाय ने अपने काव्य में समकालीन समाज में फैले भ्रष्टाचार का यथार्थ चित्रण किया है। इन्होंने लोकतंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की प्रत्येक गतिविधि का मार्मिक वर्णन किया है। ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ एक नाटकीय एकालाप है | जिसमें भ्रष्टाचार को ध्वन्यात्मक रूप से अंकित किया गया है। इस संग्रह में कवि ने ‘समय आ गया है’ वाक्यांश के माध्यम से

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Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर | class 12th | Quick Revision Notes Hindi Aroh

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 3

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर कविता का सारांश

श्री कुँवर नारायण की इस कविता की रचनात्मकता और उसमें छिपी अपार ऊर्जा को प्रतिपादित करने में सक्षम है। कविता के लिए शब्दों : । का संबंध सारे जड़-चेतन से है। यह अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़ी हुई है। इसकी व्यापकता अपार है। इसकी कोई सीमा नहीं है। । यह किसी प्रकार के बंधन में बँधती नहीं। इसके लिए न तो भाषा का कोई बंधन है और न ही समय का। ‘कविता के बहाने’ नामक कविता | आकार में छोटी है पर भाव में बहुत बड़ी है। आज का समय मशीनीकरण और यांत्रिकता का है जिसमें सर्वत्र भाग-दौड़ है। मनुष्य का मन :

इस बात से आशंकित रहता है कि क्या कविता रहेगी या मिट जाएगी। क्या कविता अस्तित्वहीन हो जाएगी ? कवि ने इसे एक यात्रा माना। – है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक है। चिड़िया की उड़ान सीमित है, पर कविता की उड़ान तो असीमित है। भला चिड़िया की उड़ान ।

कविता जैसी कैसे हो सकती है। कविता के पंख तो सब जगह उसे ले जा सकते हैं पर चिड़िया के पंखों में ऐसा बल कहाँ है! कविता :
का खिलना फल के खिलने का बहाना तो हो सकता है पर फल का खिलना कविता जैसा नहीं हो सकता। फ – कुछ ही देर बाद मुरझा जाता है लेकिन कविता तो भावों की महक लेकर बिना मुरझाए सदैव प्रभाव डालती रहती है। कविता तो बच्चों के – खेल के समान है जिसकी कोई सीमा ही नहीं है। जैसे बच्चों के सपनों की कोई सीमा नहीं, वे भविष्य की ओर उड़ान भरते हैं वैसे ही कविता भी शब्दों का ऐसा अनूठा खेल है जिस पर किसी का कोई बंधन नहीं है। कविता का क्षेत्र सीमा-रहित है। वह किसी भी सीमा से – पार निकली हुई राह में आने वाले सभी बंधनों को तोड़ कर आगे बढ़ जाती है।

बात सीधी थी पर कविता का सारांश

‘बात सीधी थी पर’ कविता में कुँवर नारायण ने यह स्पष्ट किया है कि जब भी कवि कोई रचना करने लगता है तो उसे अपनी बात को सहज भाव से कह देना चाहिए, न कि तर्क-जाल में उलझाकर अपनी बात को उलझा देना चाहिए। आडंबरपूर्ण शब्दावली से युक्त रचना कभी भी प्रभावशील तथा प्रशंसनीय नहीं होती। इसके लिए कवि ने पेंच का उदाहरण दिया है।

पेंच को यदि सहजता से पेचकस से कसा जाए वह कस जाती है। यदि उसके साथ जबरदस्ती की जाए तो उसकी चूड़ियाँ घिस कर मर जाती हैं और उसे ठोंककर वहीं दबाना पड़ता है। इसी प्रकार से अपनी अभिव्यक्ति में यदि कवि सहज भाषा का प्रयोग नहीं करता तो उसकी रचना प्रभावोत्पादक नहीं बन पाती। सही बात को सही शब्दों के माध्यम से कहने से ही रचना प्रभावशाली बनती है।

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर कवि परिचय

कवि-परिचय जीवन-परिचय-कुँवर नारायण आधुनिक हिंदी साहित्य में नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका अज्ञेय के तारसप्तक’ में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में 19 सितंबर, 0 1927 को हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में हुई। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से उच्च o शिक्षा ग्रहण की। कुछ दिनों तक ‘युग चेतना’ नामक प्रसिद्ध साहित्यिक मासिक पत्रिका का संपादन किया।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 Summary कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

ये एक भ्रमणशील व्यक्ति थे। इन्होंने चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, रूस, चीन आदि देशों का भ्रमण किया। रचनाएँ- श्री कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरे सप्तक के प्रमुख कवि हैं। ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार हैं। इन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है, लेकिन एक कवि रूप में अधिक प्रसिद्ध हुए हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(i) काव्य-संग्रह-चक्रव्यूह (1956), परिवेश : हम-तुम, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनों आदि।
(ii) प्रबंध काव्य-आत्मजयी।
(iii) कहानी संग्रह-आकारों के आस-पास।
(iv) समीक्षा-आज और आज से पहले।
(v) साक्षात्कार-मेरे साक्षात्कार।

साहित्यिक विशेषताएँ-
कुँवर नारायण का काव्य संबंधी दृष्टिकोण अत्यंत उच्च एवं श्रेष्ठ है। तीसरे सप्तक में कुँवर नारायण ने जो वक्तव्य ० दिया है उसके आधार पर उनकी भव्य-दृष्टि को बखूबी समझा जा सकता है। उनकी काव्य-चेतना अत्यंत उत्तम है। उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) वैज्ञानिक दृष्टिकोण-कुँवर नारायण एक भ्रमणशील व्यक्ति हैं। उनकी इसी भ्रमणशीलता तथा पाश्चात्य साहित्य के अध्ययन के फलस्वरूप कविता के प्रति इनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। उन्होंने अपने काव्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रमुखता प्रदान की है। उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘यह वह दृष्टि है जो सहिष्णु और उदार मनोवृत्ति से जुड़ी हुई है। वैज्ञानिक दृष्टि जीवन को किसी पूर्वाग्रह से पंगु करके नहीं देखती, बल्कि उसके प्रति एक बहुमुखी सतर्कता बरतती है।’

(ii) विचार पक्ष की प्रधानता-कुँवर नारायण का साहित्य जहाँ एक ओर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ओत-प्रोत है, वहीं दूसरी ओर उसमें विचार पक्ष की भी प्रधानता है। इसी प्रधानता के कारण वे कविता को कोरी भावुकता का पर्याय नहीं मानते। उन्होंने अपने काव्य में विचारों को अधिक महत्व दिया है, उसके बाह्य आकर्षण पर नहीं। यही कारण है कि इनकी कविता गंभीरता लिए हुए हैं।

(iii) प्रतीकात्मकता-कवि ने अपनी संवेदना को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतीकात्मकता का सहारा लिया है। उनका चक्रव्यूह काव्यसंग्रह एक प्रतीकात्मक रचना है जिसमें कवि ने समकालीन समस्याओं में डूबे मानव को विघटनकारी सात महारथियों से घिरे हुए अभिमन्यु के रूप में चित्रित किया है।

(iv) नगरीय संवेदना का चित्रण-कुँवर नारायण को नगरीय संवेदना का कवि माना जाता है। यह पक्ष उनके काव्य में स्पष्ट झलकता है। उन्होंने नगर तथा महानगरीय सभ्यता का अपने काव्य में यथार्थ चित्रण किया है।

(v) सामाजिक चित्रण-कुँवर नारायण जी सामाजिक चेतना से ओत-प्रोत कवि हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में समकालीन समाज की। यथार्थ झाँकी प्रस्तुत की है। ‘आत्मजयी’ प्रबंध काव्य में नचिकेता के मिथक के माध्यम से उन्होंने सामाजिक जीवन का सजीव चित्रांकन किया है। सामाजिक रहन-सहन, उहापोह आदि का इनके काव्य में यथार्थ चित्रण हुआ है।

(vi) मानवतावाद-कुँवर नारायण के काव्य में मानवतावादी विराट भावना के दर्शन भी होते हैं। उन्होंने वैज्ञानिक युग की भागदौड़ में फँसे सामान्य जन-जीवन का चित्रण किया है। ‘चक्रव्यूह’ काव्य संग्रह में कवि ने समकालीन मानव को विघटनकारी सात-सात महारथियों से घिरे हुए अभिमन्यु के रूप में चित्रित किया है।

(vii) भाषा-शैली-भाषा और विषय की विविधता कुँवर नारायण की कविताओं के विशेष गुण हैं। उन्होंने विषय-विविधता के साथ साथ अनेक भाषाओं का प्रयोग भी किया है। उनके काव्य की प्रमुख भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी, तत्सम और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है। उनकी शैली विषयानुरूप है जो अत्यंत गंभीर, विचारात्मक तथा प्रतीकात्मक है।

(viii) अलंकार-कुँवर जी के साहित्य में विचारों की प्रधानता है इसलिए सौंदर्य की ओर इनका ध्यान कम ही गया है। इनके काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। अनुप्रास, यमक, उपमा, पदमैत्री, स्वरमैत्री, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है। . मुक्तक छंद का प्रयोग है। बिंब योजना अत्यंत सुंदर एवं सटीक है। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि कुँवर नारायण आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि हैं। उनका साहित्यिक दृष्टिकोण अत्यंत वैज्ञानिक है, अतः उनका आधुनिक काव्यधारा में प्रमुख स्थान है।

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Chapter 2 पतंग | class 12th | Quick Revision Notes Hindi Aroh

पतंग Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 2

पतंग कविता का सारांश

श्री आलोक धन्वा दवारा रचित ‘पतंग’ कविता उनके काव्य-संग्रह ‘दुनिया रोज बनती है’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने बाल-सुलभ इच्छाओं एवं उमंगों का सुंदर एवं मनोहारी चित्रण किया है। कवि ने बाल क्रियाकलापों तथा प्रकृति में आए परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए अनेक सुंदर बिंबों का समायोजन किया है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है, जिसमें वे खो जाना चाहते हैं। आकाश में उड़ती हुई पतंग ऊँचाइयों की वे हदें हैं, जिन्हें बाल-मन छूना चाहता है और उसके पार जाना चाहता है।

कविता एक ऐसी नई दुनिया की सैर कराती है, जहाँ शरद ऋतु का चमकीला सौंदर्य है; तितलियों की रंगीन दुनिया है; दिशाओं के नगाड़े – बजते हैं, छत्तों के खतरनाक कोने से गिरने का भय है तो दूसरी ओर इसी भय पर विजय का ध्वज लहराते बच्चे हैं। ये बच्चे गिर-गिरकर

संभलते हैं तथा पृथ्वी का हर कोना इनके पास आ जाता है। वे हर बार नई पतंग को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला लिए भादो के बाद शरद की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कवि के अनुसार सबसे तेज़ बौछारों के समय का अंधेरा व्यतीत हो गया है और खरगोश की आँख के समान लालिमा – से युक्त सौंदर्यमयी प्रकाशयुक्त सवेरा हो गया है। शरद अनेक झड़ियों को पार करते हुए तथा नई चमकदार साइकिल तेज गति से चलाते हुए जोरों से घंटी बजाते आ गया है। वह अपने सौंदर्य से युक्त चमकीले इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों के समूह को बुलाता है।

वह आकाश को इतना सुंदर तथा मुलायम बना देता है कि पतंग ऊपर उठ सके। पतंग जिसे दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन वस्तु माना जाता है, वह इस असीम आकाश में उड़ सके। इस हसीन दुनिया का सबसे पहला कागज़ और बाँस की पतली कमानी आकाश में उड़ सके और इनके उड़ने : के साथ ही चारों ओर का वातावरण बच्चों की सीटियों, किलकारियों और तितलियों की मधुर ध्वनि से गूंज उठे।

कोमल बच्चे अपने जन्म से ही कपास के समान कोमलता लेकर आते हैं। ये पृथ्वी भी उनके बेचैन पाँवों के साथ घूमने लगती है। जब । ये बच्चे मकानों की छतों पर बेसुध होकर दौड़ते हैं तो छतों को नरम बना देते हैं। जब ये बच्चे झूला-झूलते हुए आते हैं तो दिशाओं के । नगाड़े बजने लगते हैं। प्राय: बच्चे छतों पर तेज गति से बेसुध होकर दौड़ते हैं तो उस समय उनके रोमांचित शरीर का संगीत ही उन्हें गिरने से बचाता है। उस समय मात्र धागे के सहारे उडते पतंगों की ऊँचाइयाँ उन्हें सहारा देकर थाम लेती हैं।

असीम आकाश में पतंगों की ऊँचाइयों के साथ-साथ ये कोमल बच्चे भी अपने रंध्रों के सहारे उड़ रहे हैं। कवि का मानना है कि अगर बच्चे छतों के खतरनाक किनारों से गिरकर बच जाते हैं तो उसके बाद वे पहले से ज्यादा निडर होकर स्वर्णिम सूर्य के सामने आते हैं। तब उनके इस साहस, धैर्य | और निडरता को देखकर यह पृथ्वी भी उनके पैरों के पास अधिक तेजी से घूमती है।

पतंग कवि परिचय

जीवन-परिचय-श्री आलोक धन्वा समकालीन हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि माने जाते हैं। ये सामाजिक ० चेतना से ओत-प्रोत कवि हैं। इनका जन्म सन् 1948 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले में हुआ था। इनकी साहित्य-सेवा के कारण इन्हें राहुल सम्मान से अलंकृत किया गया। इन्हें बिहार राष्ट्रभाषा परिषद 10 का साहित्य सम्मान और बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान से भी सम्मानित किया गया है।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 2 Summary पतंग

रचनाएँ-आलोक धन्वा एक कवि के रूप में उन्हें विशेष ख्याति प्राप्त हैं। उनकी लेखनी अबाध गति से साहित्य-सृजन हेतु चल रही है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-जनता का आदमी (उनकी पहली कविता है, जो सन् 1972 में प्रकाशित हुई) भागी हुई लड़कियाँ, ब्रूनों की बेटियाँ, गोली दागो पोस्टर आदि। ब्रूनों की बेटियाँ से कवि को बहुत 10 प्रसिद्धि प्राप्त हुई है।

(ii) काव्य-संग्रह-दुनिया रोज बनती है (एकमात्र संग्रह)। साहित्यिक विशेषताएँ–आलोक धन्वा समकालीन काव्य-जगत के विशेष हस्ताक्षर हैं। ये एक संवेदनशील व्यक्ति हैं। इनका साहित्य समकालीन समाज की संवेदना से ओत-प्रोत है। ये सातवें-आठवें दशक के जन-आंदोलनों से अत्यंत प्रभावित हुए, इसलिए इनके काव्य में समाज का यथार्थ चित्रण मिलता है। इनके साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का भाव प्रमुखता से झलकता है।

इन्होंने अपने साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं समाज का अनूठा चित्रांकन प्रस्तुत किया है। इनके मन में अपने देश के प्रति गौरव की भावना है। यही गौरवपूर्ण भावना इनके साहित्य में झंकृत होती है। आलोक धन्वा बाल मनोविज्ञान के कवि हैं। इन्होंने भाग-दौड़ की जिंदगी में उपेक्षित बाल-मन को जाँच-परखकर उसका अनूठा चित्रण किया है। ‘दुनिया रोज बनती है’ काव्य-संग्रह की ‘पतंग’ कविता में बाल-सुलभ चेष्टाओं एवं क्रियाकलापों का सजीव एवं मनोहारी अंकन हुआ है।  इन्होंने अपने साहित्य में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली भाषा का प्रयोग किया है।

इसके साथ-साथ इसमें संस्कृत के तत्सम, तद्भव, साधारण बोलचाल और विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। इनके काव्य में कोमलकांत पदावली का भी सजीव चित्रण हुआ है। इनकी अभिधात्मक शैली भावपूर्ण है। प्रसाद गुण के साथ-साथ माधुर्य गुण का भी समायोजन हुआ है। इनकी भाषा-शैली में अनुप्रास, स्वभावोक्ति, पदमैत्री, स्वरमैत्री, यमक, उपमा, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग मिलता है। आलोक धन्वा समकालीन काव्यधारा के प्रमुख कवि हैं। इनका समकालीन हिंदी कविता में प्रमुख

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Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत | class 12th | Quick Revision Notes Hindi Aroh

आत्म-परिचय, एक गीत Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 1

आत्म-परिचय, एक गीत कविता का सारांश

“आत्मपरिचय कविता हरिवंश राय बच्चन के काव्य-संग्रह ‘बुद्ध और नाचघर से ली गई है। इस कविता में कवि ने मानव के। आत्म-परिचय का चित्रण किया है। आत्मबोध अर्थात अपने को जानना संसार को जानने से ज्यादा कठिन है। व्यक्ति का समाज से घनिष्ठ : – संबंध है, इसलिए संसार से निरपेक्ष रहना असंभव है। इस कविता में कवि ने अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपनी दुविधा और । वंद्वपूर्ण संबंधों का रहस्य ही प्रकट किया है। कवि कहता है कि वह इस सांसारिक जीवन का संपूर्ण भार अपने कंधों पर लिए फिर रहा है। सारे भार को उठाने के पश्चात भी वह

जीवन में प्यार लिए घूम रहा है। वह कहता है कि मेरी हृदय रूपी वीणा को किसी ने प्रेम से छूकर झंकृत कर दिया और मैं उसी झंकृत – वीणा के साँसों को लिए दुनिया में घूम रहा हूँ। – प्रेम रूपी मदिरा को पी लिया है, इसलिए वह तो इसी में मग्न रहता है। उसे इस संसार का बिल्कुल भी ध्यान नहीं है। यह संसार केवल उनकी पूछ करता है जो उसका गान करते हैं। यह स्वार्थ के नशे में डूबकर औरों को अनदेखा कर देता है। मैं तो अपनी मस्ती में डूब : मन के गीत गाता रहता हूँ। उसे इस संसार से कोई लेना-देना नहीं है। यह एकदम अपूर्ण है अतः उसे यह अच्छा नहीं लगता। वह तो अपने हृदय में भाव का उपहार लिए फिर रहा है।

उसका अपना एक स्वप्निल-संसार है। उसी संसार को लिए वह विचरण कर रहा है। वह अपने हृदय में अग्नि जलाकर स्वयं उसमें जलता रहता है। वह अपने जीवन को समभाव होकर जीता है। वह सुख-दुख दोनों अवस्थाओं । में मग्न रहता है। संसार एक सागर के समान है। ये दुनिया वाले इस संसार रूपी सागर को पार करने हेतु नाव बना सकते हैं। उसको इस नाव की कोई आवश्यकता नहीं है। वह तो सांसारिक खुशियों में डूब कर यूँ ही बहना चाहता है।

कवि कहता है कि एक तो उसके पास जवानी का जोश है तथा दूसरा उस जोश में छिपा दुख है। इसी कारण वह बाह्य रूप से तो हँसता हुआ दिखता है लेकिन आंतरिक रूप से निरंतर रोता रहता है। वह अपने हृदय में किसी की यादें समाए फिर रहा है। कवि प्रश्न करता है। कि आंतरिक सत्य कोई नहीं जान पाया। अनेक लोग प्रयास करते-करते खत्म हो गए लेकिन सत्य की थाह तक कोई नहीं पहुंच पाया। नादान वहीं होते हैं, जहाँ अक्लमंद निवास करते हैं। फिर भी यह संसार मूर्ख नहीं है जो इसके बावजूद भी सीखना चाहता है।

कवि और संसाररीका कोई संबंध नहीं है। उसकी राह कोई और थी तथा संसार की कोई और। वह न जाने प्रतिदिन कितने जग बना-बना 5 कर मिटा देता है। यह संसार जिस पृथ्वी पर रहकर अपना वैभव जोडना चाहता है, वह प्रति पग इस पृथ्वी के वैभव को ठुकरा देता है। 14 उसके रुदन में भी एक राग छिपा है तथा उसकी शीतल वाणी में क्रोध रूपी आग समाहित है। वह ऐसे विराट खंडहर का अंश अपने साथ

लिए फिरता है, जिस पर बड़े-बड़े राजाओं के महल भी न्योछावर हो जाते हैं। यह संसार तो अजीब है जो उसके रोने को भी गीत समझता है। दुखों की अपार वेदना के कारण जब वह फूट-फूट कर रोया तो इसे संसार ने उसके छंद समझे। वह तो इस जहाँ का एक दीवाना है लेकिन यह संसार उसे एक कवि के रूप में क्यों अपनाता है? वह तो दीवानों का वेश धारण कर अपनी मस्ती में मस्त होकर घूम रहा है। वह तो मस्ती का एक ऐसा संदेश लेकर घूम रहा है, जिसको सुनकर ये संसार झम उठेगा, झुक जाएगा तथा लहराने लगेगा।

एक गीत कविता का सारांश

‘एक गीत’ कविता हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित उनके काव्य-संग्रह निशा निमंत्रण में संकलित है। बच्चन जी हालावाद के प्रवर्तक कवि हैं तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार माने जाते हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने समय के व्यतीत होने के एहसास के साथ-साथ लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्राणी द्वारा कुछ कर गुजरने के जज्बे का चित्रण किया है। इस कविता में कवि की रहस्यवादी चेतना मुखरित हुई है। समय चिर-परिवर्तनशील है जो निरंतर गतिशील है। यह क्षणमात्र भी नहीं रुकता और न ही किसी की परवाह करता है। यहाँ प्रत्येक प्राणी अपनी मंजिल को पाने की चाह लेकर जीवन रूपी मार्ग पर निकलता है।

वह यह सोचकर अति शीघ्रता से चलता है कि कहीं उसे मार्ग में चलते-चलते रात न हो जाए। उसकी मंजिल भी उससे दूर नहीं, फिर वह चिंता में मग्न रहता है। पक्षियों के बच्चे भी अपने घोंसलों में अपने माँ-बाप को न पाकर परेशानी से भर उठते हैं। घोंसलों में अपने बच्चों को अकेला छोड़कर गए पक्षी भी इसी चिंता में रहते हैं कि उनके बच्चे भी उनकी आने की आशा में अपने-अपने घोंसलों से झाँक रहे होंगे। जब-जब ये ऐसा सोचते हैं तब यह भाव उनके पंखों में न जाने कितनी चंचलता एवं स्फूर्ति भर देता है। मार्ग पर चलते-चलते प्राणी यह चिंतन करता है कि इस समय उससे मिलने के लिए कौन इतना व्याकुल हो रहा होगा?

फिर वह किसके लिए इतना चंचल हो रहा है या वह किसके लिए इतनी शीघ्रता करे। जब भी राही के मन में ऐसा प्रश्न उठता है तो यह प्रश्न उसके पैरों को सुस्त कर देता है तथा उसके हृदय में व्याकुलता भर देता है। इस प्रकार दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है।

आत्म-परिचय, एक गीत कवि परिचय

जीवन-परिचय-श्री हरिवंश राय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। इनका आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म 21 नवंबर, 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) के एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल में हुई। बाद में कायस्थ पाठशाला तथा गवर्नमेंट स्कूल में भी पढ़ाई की। प्रयाग विश्वविद्यालय में एम० ए० (अंग्रेज़ी) में दाखिला लिया, लेकिन असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।
Class 12 Hindi Aroh Chapter 1 Summary आत्म-परिचय, एक गीत
1939 ई० में काशी विश्वविद्यालय से बी० टी० सी० की डिग्री प्राप्त की थी। ये 1942 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद ये इंग्लैंड चले गए। वहाँ इन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से एम० ए० तथा पी-एच० डी० की उपाधि ग्रहण की। सन 1955 ई० में भारत सरकार ने इन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त किया। जीवन के अंतिम क्षणों तक वे स्वतंत्र लेखन करते रहे। इन्हें सोवियतलैंड तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

‘दशद्वार से सोपान तक’ रचना पर इन्हें सरस्वती सम्मान दिया गया। इनकी प्रतिभा और साहित्य सेवा को देखकर भारत सरकार ने इनको ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। 18 जनवरी, 2003 को ये इस संसार को छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए। रचनाएँ-हरिवंश राय बच्चन जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-संग्रह-मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलय यामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए-पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ, बुद्ध और नाचघर
(ii) आत्मकथा चार खंड-क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।
(iii) अनुवाद-हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ।
(iv) डायरी-प्रवास की डायरी।

साहित्यिक विशेषताएँ-हरिवंश राय बच्चन एक श्रेष्ठ साहित्यकार थे, जिन्होंने हालावाद का प्रवर्तन कर साहित्य को एक नया मोड़ दिया। उनका एक कहानीकार के रूप में उदय हुआ था, लेकिन बाद में अपने बुद्धि-कौशल के आधार पर उन्होंने अनेक विधाओं पर लेखनी चलाई। उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) प्रेम और सौंदर्य-हरिवंश राय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं जिसमें प्रेम और सौंदर्य का अनूठा संगम है। इन्होंने साहित्य में प्रेम और मस्ती की एक नई धारा प्रवाहित थी। इन्होंने प्रेम और सौंदर्य को जीवन का अभिन्न अंग मानकर उनका चित्रण किया है। ये प्रेम-रस में डूबकर रस की ऐसी पिचकारियाँ छोड़ते हैं जिससे संपूर्ण जग मोहित हो उठता है। वे कहते हैं

इस पार प्रिये, मधु है तुम हो
उस पार न जाने क्या होगा?

बच्चन जी ने अपने काव्य में ही नहीं बल्कि गद्य साहित्य में भी प्रेम और सौंदर्य की सुंदर अभिव्यक्ति की है। वे तो इस संवेदनहीन । और स्वार्थी दुनिया को ही प्रेम-रस में डुबो देना चाहते हैं। वे प्रेम का ऐसा ही संदेश देते हुए कहते हैं

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम झुके लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ !

(ii) मानवतावाद-मानवतावाद एक ऐसी विराट भावना है जिसमें संपूर्ण जगत के प्राणियों का हित-चिंतन किया जाता है। बच्चन जी केवल प्रेम और मस्ती में डूबे कवि नहीं थे बल्कि उनके साहित्य में ऐसी विराट भावना के भी दर्शन होते हैं। उनके साहित्य में | मानव के प्रति प्रेम-भावना अभिव्यक्त हुई है। इन्होंने निरंतर स्वार्थी मनुष्यों पर कटु व्यंग्य किए हैं।

(iii) वैयक्तिकता-हरिवंश राय बच्चन के साहित्य में व्यक्तिगत भावना सर्वत्र झलकती है। उनकी इस व्यक्तिगत भावना में सामाजिक भावना मिली हुई है। एक कवि की निजी अनुभूति भी अर्थात सुख-दुख का चित्रण भी समाज का ही चित्रण होता है। बच्चन जी ने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर ही जीवन और संसार को समझा और परखा है। वे कहते हैं

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।
हत्यारमकता का जामष्यक्ति हो

(v) सामाजिक चित्रण-हरिवंश राय बच्चन सामाजिक चेतना से ओत-प्रोत कवि हैं। उनके काव्य में समाज की यथार्थ अभिव्यक्ति हुई है। इनकी वैयक्तिकता में भी सामाजिक भावना का चित्रण हुआ है।

(vi) भाषा-शैली-हरिवंश राय बच्चन प्रखर बुद्धि के कवि थे। उनकी भाषा शदध साहित्यिक खड़ी बोली है। संस्कत की तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग हुआ है। इसके साथ-साथ तद्भव शब्दावली, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। कवि ने प्रांजल शैली का प्रयोग किया है जिसके कारण इनका साहित्य लोकप्रिय हुआ है। गीति शैली का भी इन्होंने प्रयोग किया है।

(vii) अलंकार-बच्चन के साहित्य में प्रेम, सौंदर्य और मस्ती का अद्भुत संगम है। इन्होंने अपने काव्य में शब्दालंकार तथा अर्थालंकार दोनों का सफल प्रयोग किया है। अलंकारों के प्रयोग से इनके साहित्य में और ज्यादा निखार और सौंदर्य उत्पन्न हो गया है। इनके साहित्य में अनुप्रास, यमक, श्लेष, पदमैत्री, स्वरमैत्री, पुनरुक्ति प्रकाश, उपमा, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। जैसे हो जाय न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

(viii) बिंब योजना-कवि की बिंब योजना अत्यंत सुंदर है। इन्होंने भावानुरूप बिंब योजना की है। ऐंद्रियबोधक बिंबों के साथ सामाजिक  राजनीतिक आदि बिंबों का सफल चित्रण हुआ है।

(ix) रस-बच्चन जी प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं, अत: उनके साहित्य में शृंगार रस के दर्शन होते हैं। श्रृंगार रस के संयोग पक्ष की अपेक्षा उनका मन वियोग पक्ष में अधिक रमा है। उन्होंने वियोग-शृंगार का सुंदर वर्णन किया है। इसके साथ रहस्यात्मकता को प्रकट करने के लिए शांत रस की भी अभिव्यंजना की है। वस्तुतः हरिवंश राय बच्चन हिंदी-साहित्य के लोकप्रिय कवि माने जाते हैं। उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाकर हिंदी-साहित्य की श्रीवृद्धि की है। हिंदी-साहित्य में उनका स्थान अद्वितीय है।

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Memories of Childhood Summary | class 12th | Quick Revision Notes for English Vistas

Memories of Childhood Summary In English

I. The Cutting of My Long Hair (Zitkala-Sa)
It was the writer’s first day at school. It was bitter cold. A large bell rang for breakfast. Shoes clattered on bare floors. Many voices murmured. A paleface woman, with white hair, came up after them. They were placed in a line of girls who were marching into the dinning room. She walked noiselessly in her soft moccasins. She felt like sinking to the floor, for her blanket had been removed from her shoulders. The Indian girls did not seem to care though they were more immodestly dressed in tight fitting clothes. The boys entered at an opposite door. A small bell was tapped. Each of the pupils drew a chair from under the table. The writer pulled out hers. She at once slipped into it from one side. She turned her head. She found that she was the only one seated. All the rest at their table remained standing. She began to rise. A second bell sounded. All were seated at last. She heard a man’s voice at the end of the hall. She looked around to see him. All the others hung their heads over their plates. She found the paleface woman looking at her. The man stopped his mutterings. Then a third bell was tapped. Everyone picked up his knife and fork and began eating. She began to cry. This eating by formula was a difficult experience.

Late in the morning her friend Judewin told her that she had overheard the paleface woman talk about cutting their long heavy hair. Among their people, short hair was worn by mourners and shingled hair by cowards. Judewin said that they had to submit because the school authorities were strong. The writer rebelled. She decided to struggle before submitting.

When no one noticed, she disappeared and crept upstairs. She hid herself under the bed in a large room with three white beds in it. She heard loud voices in the hall calling her name. Even Judewin was searching for her. She did not open her mouth to answer. The sound of steps came nearer and nearer. Women and girls entered the room. They searched her everywhere. Someone threw up the curtains. The room was filled with sudden light. They stopped and looked under the bed. She was dragged out. She resisted by kicking and scratching wildly. She was carried downstairs and tied fast in a chair.

She cried aloud and shook her head. Then she felt the cold blade of scissors against her neck. One of her thick braids was removed. Her long hair was being shingled like a coward’s. Since the day she had come here, she had suffered insults. People had stared at her. She had been tossed about in the air like a wooden puppet. She moaned for her mother, but no one came to comfort her. Now she was only one of many little animals driven by a herder.

II. We Too are Human Beings (Bama)
When Bama was studying in the third class, she had not yet heard people speak openly of untouchability. But she had already seen, felt, experienced and been humiliated by what it was.

She was walking home from school one day. It was possible to walk the distance in ten minutes, but it would usually take her at least thirty minutes. She watched all the fun and games, novelties and oddities in the streets, the shops and the bazaar. Each thing would pull her to a standstill and not allow her to go any further.

Speeches by leaders of political parties, street plays, puppet show, stunt performances or some other entertainment happened from time to time. She watched waiters pouring coffee in other tumbler to cool it, people chopping up onion with eyes turned to other side, or almonds blown down from the tree by the wind. According to the season, there would be various fruit. She saw people selling sweet and tasty snacks, payasam, halva and iced lollies.

One day she saw in her street, a threshing floor set up in the corner. Their people were driving cattle in pairs round and round to crush the grain from straw. The animals were muzzled. She saw the landlord seated on a piece of sacking spread over a stone slab. He was watching the proceedings. She stood there for a while, watching the fun.

Just then, she saw an elder of their street coming from the direction of the bazaar. He looked quite funny in his manner. He held out a packet by its string without touching it. Then he went to the landlord, bowed low and extended the packet towards him. He cupped the hand that held the string with his other hand. The landlord opened the parcel and began to eat the vadais.

She told her elder brother the story with its comic details. Annan was not amused. He told her that the elder was carrying the package for his upper caste landlord. These people believed that people of lower caste should not touch them. If they did, they would be polluted. That was the reason why he had to carry the package by the string. She became sad on listening all this. She felt angry towards the people of upper castes.

She thought that these miserly people, who had collected money somehow, had lost all human feelings. But the lower castes were also human beings. They should not do petty jobs for them. They should work in their fields, take their wages home, and leave it at that.

Annan, her elder brother, was studying at a university. He had come home for the holidays. He would often go to the library in their neighbouring village in order to borrow books. One day, one of the landlord’s men met him. Thinking him to be a stranger, he addressed Annan respectfully. His manner changed on knowing his name and he asked for the street he lived in. The street would indicate their caste.

Annan told her that they were not given any honour, dignity or respect because they were born in a particular community. He advised her to study and make progress. People will come to her of their own accord then. She studied hard and stood first in her class. Many people then became her friends.

Memories of Childhood Summary In Hindi

I. मेरे लम्बे बालों को काटा जाना (जिटकाला-सा)
यह विद्यालय में लेखिका का पहला दिन था। ठिठुरन भरी ठंड थी। नाश्ते के लिए एक बड़ी घंटी बजी। नंगे फर्शो पर जूतों की कट-कट हुई। कई आवाजों की फुसफुसाहट हुई। पीले चेहरे तथा सफेद बालों वाली एक स्त्री उनके पीछे-पीछे आई। उनको उन लड़कियों की पंक्ति में रखा गया जो भोजन कक्ष की ओर बढ़ती जा रही थीं। वह अपने नरम चमड़े वाले सपाट तली के जूतों में बिना शोर किए चलती रही। वह फर्श पर सिकुड़ना चाहती थी क्योंकि उसके कन्धों से कम्बल हटा लिया गया था । मूल अमरीकी लड़कियाँ बिल्कुल परवाह करती प्रतीत नहीं होती थीं। यद्यपि चुस्त वस्त्रों में वे और भी अधिक निर्लज्जतापूर्वक दिखती थीं। लड़कों ने सामने वाले द्वार से प्रवेश किया। एक छोटी घंटी हल्के से बजाई गई। प्रत्येक विद्यार्थी ने मेज़ के नीचे से एक कुर्सी को बाहर खींची । लेखिका ने अपनी कुर्सी निकाली। वह एक तरफ से तुरन्त इसमें खिसक गई। उसने अपना सिर घुमाया। उसने पाया कि केवल वह ही एकमात्र बैठी हुई थी। उनकी मेज़ पर अन्य सभी खड़े थे। वह उठने लगी। दूसरी घंटी बजी। अन्ततः सभी बैठ गए। उसने हाल के छोर (एक किनारे) पर एक व्यक्ति की आवाज़ सुनी। उसे देखने के लिए उसने चारों ओर देखा । अन्य सभी ने अपना सिर प्लेट पर झुकाया हुआ था। उसने पीले चेहरे वाली स्त्री को अपनी ओर देखते हुए पाया । उस व्यक्ति ने बुड़बुड़ाना समाप्त कर दिया। फिर तीसरी घन्टी बजी। प्रत्येक ने अपना छुरी-काँटा उठा लिया तथा खाना आरम्भ कर दिया। वह रोने-चीखने लगी। सूत्रों (नियमों) के अनुसार इस तरह भोजन करना कठिन अनुभव था।

सवेरे के समय देर बाद उसकी मित्र जूडविन ने उसे बताया कि उसने पीले चेहरे वाली स्त्री को उसके लम्बे, भारी बालों को काटने के विषय में बातें करते अकस्मात् सुन लिया था। उनके लोगों के मध्य छोटे बाल विलाप (शोक) करने वालों द्वारा रखे जाते थे, जबकि खोपड़ी के समीप से मुन्डन (घोट-मोट सफाचट) केवल कायरों द्वारा करवाया जाता था। जूडविन ने कहा कि उन्हें आज्ञापालन करना पड़ेगा क्योंकि विद्यालय के अधिकारी ताकतवर थे। लेखिका ने विद्रोह किया। उसने समर्पण से पहले विरोध करने का निर्णय लिया।

जब कोई भी उसे नहीं देख रहा था, तो वह गायब हो गयी तथा ऊपर की मंजिल में रेंगती हुई पहुँच गई। उसने एक विशाल कमरे में, जिसमें तीन सफेद बिस्तर थे, स्वयं को एक पलंग के नीच छिपा लिया। उसने नीचे हाल में अपना नाम पुकारती हुई तेज आवाजें सुनीं। जूडविन भी उसे तलाश कर रही थी। उसने उत्तर देने के लिए अपना मुँह नहीं खोला। पदचापे निकट तथा अधिक निकट आती गईं। लड़कियों तथा स्त्रियों ने कमरे में प्रवेश किया। उन्होंने उसे प्रत्येक स्थान पर तलाश किया । किसी ने पर्दे को ऊपर फेंक दिया। कमरा अचानक प्रकाश से भर गया। वे झुके तथा पलंग के नीचे देखने लगे। उसे घसीटकर बाहर निकाला गया। उसने लातें मारकर तथा नाखूनों से नोंच-खरोंच करके विरोध किया। उसे नीचे की मंजिल में ले जाया गया तथा एक कुर्सी में कसकर बाँध दिया गया।

वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाई तथा उसने अपना सिर हिलाया। फिर उसे अपनी गर्दन पर कैंची के ठंडे फल का स्पर्श महसूस हुआ । उसकी एक मोटी चोटी काट दी गई। एक कायर के सिर की भाँति उसके सिर का भी मुण्डन किया जा रहा था। जिस दिन से वह यहाँ आई थी, उसने अपमान ही सहन किया था। लोग उसे घूर-घूर कर देखते रहते थे। उसे लकड़ी की एक कठपुतली की भाँति हेवा में उछाला गया। वह अपनी माँ के लिए सिसकियाँ भरती रही, किन्तु कोई भी उसे सांत्वना देने को आगे नहीं आया। अब वह चरवाहे द्वारा हांके गए झुण्ड के कई छोटे-छोटे पशुओं में से एक थी।

II. हम भी मानव हैं (बामा)
जब बामा तीसरी कक्षा में पढ़ती थी, तो उसने अभी तक लोगों को अस्पृश्यता (छुआछूत) के विषय में खुले रूप में बातें करते हुए नहीं सुना था। किन्तु वह पहले ही, जो कुछ यह था, को देख चुकी थी, महसूस कर चुकी थी, अनुभव कर चुकी थी, तथा इसके द्वारा अपमानित हो चुकी थी।

एक दिन वह विद्यालय से पैदल घर आ रही थी। इस दूरी को दस मिनट में पैदल चलना सम्भव था, किन्तु उसे प्राय: 30 मिनट लगा करते थे। वह गलियों, दुकानों तथा बाजार में सभी आनन्ददायक वस्तुओं, खेलों, नवीनताओं एवं विचित्रताओं को ध्यान से देखती थी। प्रत्येक चीज उसे स्तब्ध कर देती तथा उसे आगे जाने की अनुमति नहीं देती थी।

समय-समय पर राजनैतिक दलों के नेताओं के भाषण, नुक्कड़-नाटक, कठपुतली का तमाशा, जोखिमभरे कौशल के कार्य या अन्य मनोरंजन होते रहते थे। वह वेटरों को कॉफी ठंडी करने के लिए दूसरे बर्तन में धार बांधकर उड़ेलते हुए देखती, लोगों को आँखें एक ओर करके प्याज काटते हुए अथवा वायु द्वारा वृक्ष से गिराए गए बादाम देखती। ऋतु के अनुसार, विभिन्न फल वहाँ आते थे। वह लोगों को नाश्ते के लिए स्वादिष्ट व्यंजन, पयासम, हलवा अथवा बर्फ के चूसने वाले गोले बेचते हुए देखती।

एक दिन उसने अपनी ही गली में, एक कोने में, अनाज कूटने-पीटने के लिए बनाए गए फर्श को देखा। उनके ही लोग पशुओं को जोड़ों में हाँक रहे थे ताकि वे अनाज को भूसे से अलग कर सकें। पशुओं के मुँह पर छींकली लगी हुई थी। उसने भू-स्वामी को एक पत्थर पर बिछी बोरियों पर बैठे देखा। वह कार्रवाई को ध्यान से देख रहा था। वह इसका आनन्द लेती हुई कुछ देर वहीं खड़ी रही।

तभी उसने अपनी ही गली के एक बुजुर्ग को बाजार की दिशा से आते हुए देखा। वह अपने ढंग में काफी हास्यप्रद लगता था। वह एक पैकेट को बिना छुए केवल इसकी डोरी से पकड़े हुए था। फिर वह भू-स्वामी के पास गया । नीचे झुका तथा उसकी ओर पैकेट बढ़ी टिगा। उसने जिस हाथ से डोर पकड़ रखी थी उसका दूसरे हाथ से प्याला बनाया। भू-स्वामी ने पैकेट खोला तथा वड़ा खाने लगा।

उसने यह कहानी हास्यप्रद विवरण सहित अपने भाई को सुनाई। अन्नान को आनन्द नहीं आया। उसने उसे बताया कि वह बुजुर्ग उस पैकेट को अपने उच्च जाति वाले भू-स्वामी के लिए ले जा रहा था। ये लोग विश्वास करते थे कि नीची जाति वाले लोगों को उन्हें स्पर्श नहीं करना चाहिए। यदि वे ऐसा करेंगे तो वे अशुद्ध हो जाएँगे। यही कारण था कि उसे पैकेट को डोरी से पकड़ कर ले जाना पड़ रहा था। यह सब सुनकर वह उदास हो गई। वह ऊँची जाति वाले लोगों के प्रति क्रोध महसूस करने लगी।

वह सोचने लगी कि इन कंजूस व्यक्तियों ने, किसी प्रकार से जो धन संचय कर पाए हैं, सभी मानव अनुभूतियां खो दी हैं। किन्तु निचली जाति के लोग भी मानव थे। उन्हें उनके लिए तुच्छ (छोटे-मोटे) काम नहीं करने चाहिए। उन्हें उनके खेतों में काम करना चाहिए, अपनी मजदूरी (वेतन) घर लानी चाहिए तथा इस बात तक यहीं छोड़ देना चाहिए।

उसका बड़ा भाई अन्नान एक विश्वविद्यालय में पढ़ रहा था। वह छुट्टियों में घर आया हुआ था। वह पुस्तकें उधार लेने के लिए प्रायः समीप के गाँव के पुस्तकालय में जाया करता था। एक दिन जमींदार (भू-स्वामी) के व्यक्तियों में से एक (कारिन्दा) उसे मिला। उसे अजनबी समझकर उसने अन्नान को आदरपूर्वक सम्बोधित किया। उसका नाम जानते ही उसका ढंग बदल गया तथा उसने उस गली के विषय में पूछा जिसमें वह रहता था । गली उनकी जाति को सूचित कर देगी।

अन्नान ने उसे बताया कि उन्हें कोई सम्मान, शान अथवा आदर नहीं दिया जाता क्योंकि वे एक विशेष समुदाय (जाति) में उत्पन्न हुए हैं। उसने उसे परामर्श दिया कि वह अध्ययन करे तथा प्रगति करे। तब लोग अपनी इच्छा से उसके पास आएँगे। उसने कठोर अध्ययन किया तथा अपनी कक्षा में प्रथम आई। तब कई लोग उसके मित्र बन गए।

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On the Face of It Summary | class 12th | Quick Revision Notes for English Vistas

On the Face of It Summary In English

The first scene is located in Mr Lamb’s garden. There is an occasional sound of bird song and of tree leaves rustling. Derry’s footsteps are heard as he walks slowly and hesitantly through the long grass. He comes round a screen of bushes. When Mr Lamb speaks to Derry he is close at hand. Naturally, Derry is startled.

Mr Lamb asks Derry to mind the apples. Derry enquires about the person. Mr Lamb gives his name and again asks him to mind the apples. He adds that those are crab apples. They have been blown down from the tree by the wind and are lying in the long grass. The boy could step on one of them and fall.

Derry tries to explain. He says that he thought that was an empty place. He did not know there was anybody there. Mr Lamb asks him not to be afraid. He explains that the house is empty since he is out in the garden. He observes that such a beautiful day is not worth spending indoors.

Derry panics and says that he has got to go. Mr Lamb assures him that he should not feel disturbed on his account-he doesn’t mind who comes into the garden. The gate is always open. It was only the boy who climbed the garden wall. Derry is angry that the old man had been watching him. Mr Lamb welcomes Derry.

Derry explains that he had not come to steal anything. Mr Lamb assures him that he hadn’t. He further adds that only the young lads steal. They steal apples from the garden. He is not that young. Derry explains that he just wanted to come into the garden. He wants to go and says goodbye.

Mr Lamb tells him that there is nothing to be afraid of. It is just a garden and only one person, that is, he himself is there. Derry then says that people are afraid of him. He asks Mr Lamb to look at him and after seeing his face he might think that he is the most frightful and ugliest thing. Derry says that when he looks in the mirror and sees his face, he is afraid of it. Mr Lamb says that the whole of his face is not frightening.

There is pause. Mr Lamb now changes the topic. He says when it is a bit cooler, he’ll get the ladder and a stick, and pull down those crab apples. They are ripe for making a jelly. September is the right time of year for it. The apples look orange and golden. He tells Derry that he could help him.

Derry asks him what he has changed the subject for. He says that the old man does not ask him because he is afraid to do so. Derry says that he doesn’t like being with people. Mr Lamb makes a guess. Perhaps the boy got burned in a fire. Derry says that he got acid all down that side of his face and it burned it all away. Derry asks Mr Lamb if he is not interested. The old man says he is interested in anybody and anything made by God—even grass, rubbish, weeds, flowers, fruit. He observes that it is all life-developing just as they are.

When Derry says that they are not the same, Mr Lamb says that there is no difference. He is old, Derry is young and has got a burned face. The old man has got a tin leg. His real one got blown off years back in the war. Some kids call him Lamey-Lamb but it doesn’t disturb him. There are plenty of things other than his leg to stare at. He refers to Beauty and the Beast. Derry says that no one will kiss him. He won’t change.

Derry says that people talk about persons who are in pain and brave and never cry or complain and don’t feel sorry for themselves. People try to console people suffering from physical impairment by asking them to think of all those people worse off than them. They might have been blinded, or born deaf, or have to live in a wheel chair, or be insane and dribble. But all this will not change his face. Even totally strange persons call him terrible.

Derry repeats that he doesn’t like being near people: specially when they stare at him and when he sees them being afraid of him. Mr Lamb then tells him the story of a man who was afraid of everything in the world. So he locked himself in his room and stayed in his bed. A picture fell off the wall onto his head and killed him.

Derry says that the old man said peculiar things. Then he asks what he does all day. Mr Lamb replies that he sits in the sun. He reads books. His house is full of books. His house has no curtains as he does not like shutting things out. He likes the light and the darkness. He hears the wind from the open window. Derry too hears the sound of rain on the roof, when it is raining. Mr Lamb observes that if he hears things, he is not lost. Derry says that people talk about him downstairs when he is not there. They seem to be worried about him and his future. Mr Lamb gives him a very inspiring advice. He will get on the way he wants like all the rest as he has all the God-given organs. He could even get on better than all the rest, if he determined to do so.

Mr Lamb tells Derry that he has hundreds of friends. The gate is always open. People come in. Kids come for the apples, pears and for toffee. He makes toffee with honey. Sometimes his friendship may be one-sided. Even if Derry might never see him again, Mr Lamb would be still his friend.

He tells Derry that hating others is bad. It harms more than any bottle of acid. Everything is the same, but everything is different.

Derry’s attitude shows a gradual change. He wants to come there again. He thinks that the other friends of Mr Lamb might go away, if he came. Mr Lamb assures him that people are not afraid of him because he is not afraid of them.

Derry wants to stay there but he has to inform his mother where he is. His house is three miles away. Mr Lamb asks him to run there and inform his mother. Derry asks the old man about the persons who come there. He thinks that nobody ever comes there. The old man is there all by himself and miserable. No one would know if he were alive or dead and nobody cared. Derry says that he’ll come back. Then Derry runs off.

In the second scene we see Derry and his mother. He informs his mother about the lame old man. She tells him not to go there. Derry says that he wants to go there, sit and listen to things and look. No body else has ever said the things the old man has said. When his mother says that he is best off there, Derry says he hates it there. He no longer cares about his face. It is not important. It’s what he thinks, feels, sees, hears and finds out that is important. He is going there to help the old man with crab apples and to look at things and listen. If he doesn’t go back there, he will never go anywhere in that world again.

The third or last scene is again located in Mr Lamb’s garden. Derry reaches Mr Lamb’s garden panting. He finds Mr Lamb lying on the grass with the ladder. Derry tells him that he has come back. Since Mr Lamb fails to respond, Derry kneels by him and begins to weep and the curtain falls. The play has a very pathetic end.

On the Face of It Summary In Hindi

पहला दृश्य मि० लैम के उद्यान (बाग) में स्थित है। कभी-कभी पक्षियों के गीत एवं पत्तों की खड़खड़ाहट की आवाज़ आती है। जब वह लम्बी घास में से धीरे-धीरे तथा हिचकिचाता हुआ चलता है तो डैरी की पदचाप सुनाई देती है। वह झाड़ियों की एक कतार के पीछे से निकलता है। जब मि० लैम डैरी से बात करता है तो वह अत्यन्त समीप है। स्वाभाविक है, डैरी चौंक जाता है।

मि० लैम डैरी को सेबों का ध्यान रखने को कहता है। डैरी उस व्यक्ति के विषय में पूछता है। मि० लैम अपना नाम बताता है तथा उसे फिर से सेबों का ध्यान रखने को कहता है। वह कहता है कि वे कड़वे जंगली सेब हैं। तेज वायु द्वारा वे वृक्षों से गिरा दिए गए हैं तथा घास में पड़े हुए हैं। लड़का उनमें से किसी एक पर पैर रख सकता था तथा गिर सकता था।

डैरी (स्थिति) स्पष्ट करना चाहता है। वह कहता है कि उसने सोचा था यह खाली स्थान है। वह नहीं जानता था कि वहाँ कोई था। मि० लैम उससे कहता है कि वह भयभीत न हो। वह स्पष्ट करता है कि मकान तो खाली ही है क्योंकि वह तो उद्यान में है। वह टिप्पणी करता है कि ऐसा सुन्दर दिन घर के भीतर बिताने योग्य नहीं है।
डैरी अकस्मात भय प्रदर्शित करता है तथा कहता है कि उसे जाना ही होगा। मि० लैम उससे कहता है कि वह उसके कारण परेशान न हो। वह परवाह नहीं करता कि उद्यान में कौन आता है। फाटक हमेशा खुला रहता है। यह तो केवल वह लड़का ही था जो दीवार फांद कर आया था। डैरी क्रोधित हो जाता है कि वह वृद्ध व्यक्ति उसे ध्यान से देखे जा रहा था। मि० लैम डैरी का स्वागत करता है।

डैरी स्पष्ट करता है कि वह कोई भी वस्तु चुराने नहीं आया था। मि० लैम उसे आश्वस्त करता है कि वह इसके लिए नहीं आया था। वह आगे कहता है कि केवल छोटे-छोटे बच्चे चोरी करते हैं। वे बाग से सेब चुरा लेते हैं। वह इतना छोटा नहीं है। डैरी स्पष्ट करता है कि वह तो मात्र उद्यान में आना चाहता था। वह जाना चाहता है तथा अलविदा कहता है।

मि० लैम उससे कहता है कि भयभीत होने की कोई बात नहीं है। यह केवल एक उद्यान है तथा वहाँ केवल एक ही व्यक्ति है, स्वयं वह। डैरी फिर कहता है कि लोग उससे (डैरी से) भयभीत हैं। वह मि० लैम से अपनी ओर देखने को कहता है तथा सोचता है कि चेहरा देखने के पश्चात् वह शायद सोचेगा कि वह संसार की सबसे अधिक भयावह (डरावना) तथा कुरूपतम वस्तु है। डैरी कहता है कि जब वह दर्पण में देखता है तथा उसे अपना चेहरा दिखलाई पड़ता है, तो वह इससे भयभीत हो जाता है। मि० लैम कहता है कि उसका पूरा चेहरा तो भयावह नहीं है।

थोड़ा-सा विराम आता है। अब मि० लैम विषय को परिवर्तित कर देता है। वह कहता है कि जब दिन (अपेक्षाकृत) ठंडा हो जाएगा, तो वह एक सीढ़ी तथा एक छड़ी लाएगा तथा उन कड़वे सेबों को तोड़ेगा। वे मुरब्बा बनाने के लिए तैयार हैं। इसके लिए सितम्बर वर्ष का सर्वोत्तम समय है। सेब सन्तरे के रंग के तथा सुनहरे दिखाई देते हैं। वह डैरी से कहता है कि वह उसकी सहायता कर सकता है।

हैरी उससे पूछता है कि उसने विषय किसलिए बदल दिया है। वह कहता है कि वह वृद्ध व्यक्ति उससे इसलिए नहीं पूछता क्योंकि वह ऐसा करने से डरता है। डैरी कहता है कि उसे लोगों के साथ रहना पसन्द नहीं है। मि० लैम एक अनुमान लगाता है। शायद यह लड़का आग में जल गया था। डैरी कहता है कि उसके चेहरे के उस पक्ष (तरफ) पर अम्ल (तेजाब) गिर गया था तथा यह जल गया था। डैरी उस वृद्ध व्यक्ति से कहता है कि क्या उसे (उसमें) रुचि नहीं है। वृद्ध व्यक्ति कहता है कि वह ईश्वर रचित प्रत्येक वस्तु तथा व्यक्ति में रुचि रखता है-चाहे यह तृण (घास), कूड़ा, खरपतवार, फूल या फल हों। वह कहता है कि ये सभी जीवन का रूप हैं-उसी प्रकार विकसित हो रहे हैं, जैसे कि हम (मानव लोग)।

जब डैरी कहता है कि वे एक समान नहीं हैं, तो मि० लैम कहता है कि कोई अन्तर नहीं है। वह वृद्ध है, डैरी बालक है तथा उसका चेहरा जला हुआ है। वृद्ध व्यक्ति की एक टांग रांग की (अर्थात् बनावटी) है। उसकी असली टांग तो वर्षों पहले युद्ध के समय विस्फोट में उड़ गई थी। कुछ छोटे बच्चे उसे लंगड़ा लैम कहते हैं किन्तु यह उसे विचलित नहीं करता। उसकी टांग को छोड़कर काफी अन्य वस्तुएँ हैं जिन्हें घूर-घूरकर देखा जा सकता है। वह सुन्दरता (की देवी) तथा जंगली पशु की ओर संकेत करता है। डैरी कहता है कि कोई भी उसका चुम्बन नहीं लेगा। वह परिवर्तित नहीं होगा।

डैरी कहता है कि लोग उन व्यक्तियों के विषय में बातें करते हैं जो पीड़ा (दर्द) में हैं तथा वीर हैं और कभी रोते-चीखते या शिकायत नहीं करते। अतः स्वयं के लिए खेद प्रकट नहीं करते। शारीरिक क्षति से पीड़ित व्यक्तियों को लोग यह कहकर सांत्वना देने का प्रयास करते हैं कि वे उन लोगों के विषय में सोचें जोकि उनसे भी कहीं अधिक खराब स्थिति में हैं। वे अन्धे हो सकते थे, या जन्म से बहरे होते, या अपंग होकर पहिये वाली कुर्सी में ही पड़े रहते अथवा पागल हो सकते थे या उनकी लार टपकती रह सकती थी। किन्तु यह सब उसके चेहरे को नहीं बदल पाएगा। नितान्त अजनबी व्यक्ति भी उसे भयावह कहते थे।

डैरी दोहराता है कि उसे लोगों के समीप (पास) रहना पसन्द नहीं है, विशेष रूप से तब जबकि वे उसे घूर-घूरकर देखते हैं तथा वह उन्हें स्वयं से भयभीत पाता हो। मि० लैम तब उसे एक ऐसे व्यक्ति की कहानी सुनाता है जो संसार की प्रत्येक वस्तु से भयभीत था। अतः उसने स्वयं को अपने कमरे में ताले में बन्द कर लिया तथा अपने बिस्तर में ही पड़ा रहा। दीवार पर लटका एक चित्र उसके सिर पर गिर पड़ा तथा वह मर गया।

डैरी कहता है कि यह वृद्ध व्यक्ति विचित्र (अजीब) बातें कहता है। फिर वह उससे पूछता है कि वह पूरे दिन क्या करता है। मि० लैम उत्तर देता है कि वह धूप में बैठता है। वह पुस्तकें पढ़ता है। उसका घर पुस्तकों से भरा पड़ा है। उसके घर में पर्दे नहीं हैं क्योंकि वह वस्तुओं को बाहर रोके रखने में विश्वास नहीं करता। उसे प्रकाश तथा अन्धेरा पसन्द था। वह खुली खिड़की में से पवन (वायु) की आवाज़ सुनता है। डैरी छत पर वर्षा की ध्वनि तब सुनता है जबकि वर्षा हो रही होती है।

मि० लैम डैरी को कहता है कि यदि वह वस्तुओं को सुनता है, तो वह खो नहीं गया है। डैरी कहता है कि जब वह घर की निचली मंजिल में नहीं होता, तो लोग उसके विषय में बातें करते हैं। वे उसके तथा उसके भविष्य के विषय में चिन्तित प्रतीत होते हैं। मि० लैम उसे एक अत्यन्त प्रेरणाप्रद परामर्श (सलाह) देता है। वह उसी प्रकार आगे बढ़ेगा जैसे कि वह चाहता है। शेष अन्य सभी की भाँति उसके पास भी प्रभु-प्रदत्त शारीरिक अंग हैं। यदि वह ऐसा निश्चय कर ले, तो अन्य सभी से श्रेष्ठ कर सकता था।

मि० लैम डैरी को बताता है कि उसके सैकड़ों मित्र हैं। फाटक सदा खुली रहता है। लोग भीतर आते रहते हैं। बच्चे सेब तथा नाशपाती तथा टाफियों के लिए आते हैं। वह शहीद से टाफियाँ बनाता है। कई बार उसकी मित्रता एक-पक्षीय भी हो सकती है। चाहे डैरी उससे फिर कभी न मिले, मि० लैम फिर भी उसका मित्र रहेगा। वह डैरी को बताता है कि अन्य लोगों से घृणा करना खराब है। यह अम्ल (तेजाब) की किसी बोतल से भी अधिक हानि पहुँचाता है। प्रत्येक वस्तु वही है, किन्तु प्रत्येक वस्तु भिन्न है।।

डैरी के दृष्टिकोण में एक क्रमिक (शनै:शनैः) परिवर्तन आता है। वह वहाँ फिर से आना चाहता है। वह सोचता है कि यदि वह आया तो सम्भवतः मि० लैम के अन्य मित्र वहाँ से चले जाएँ। मि० लैम उसे आश्वस्त करता है कि लोग उससे भयभीत नहीं हैं क्योंकि वह उनसे भयभीत नहीं है।

डैरी वहाँ ठहरना चाहता है किन्तु उसे अपनी माँ को सूचित करना है कि वह कहाँ है। उसका घर तीन मील दूर है। मि० लैम कहता है कि वह दौड़कर वहाँ जाए तथा अपनी माँ को सूचित कर दे। डैरी वृद्ध व्यक्ति से उन लोगों के विषय में पूछता है जो वहाँ आते रहते हैं। वह सोचता है कि कोई भी व्यक्ति वहाँ कभी भी नहीं आता। वृद्ध व्यक्ति वहाँ अकेले रहता है तथा दुःखी रहता है। कोई भी नहीं जानता कि वह जीवित है या मर गया तथा कोई भी परवाह नहीं करता। डैरी कहता है कि वह वापिस आएगा। फिर डैरी दूर दौड़ जाता है।

दूसरे दृश्य में हम डैरी तथा उसकी माँ को देखते हैं। वह अपनी माँ को उस लँगड़े व्यक्ति के विषय में सूचित करता है। वह उसे वहाँ न जाने को कंहती है। डैरी कहता है कि वह वहाँ जाना चाहता है, वहाँ बैठना तथा वस्तुओं को देखना तथा सुनना चाहता है। किसी भी अन्य व्यक्ति ने वे बातें नहीं कहीं जो वृद्ध व्यक्ति ने कही थीं। जब उसकी माँ कहती है कि वह अपने घर में ही सर्वाधिक श्रेष्ठ स्थान पर हैं, तो डैरी कहता है कि वह वहाँ से घृणा करता है। अब वह अपने चेहरे के विषय में परवाह नहीं करता। यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। जो कुछ वह सोचता है, महसूस करता है, देखता है, सुनता है तथा ढूंढ़ पाता है-वह ही महत्त्वपूर्ण है। यदि वह वहाँ वापिस नहीं जाएगा, तो वह फिर इस संसार में कहीं भी नहीं जा पाएगा।

तीसरा या अन्तिम दृश्य फिर से मि० लैम के उद्यान में स्थित है। ज्यों ही डैरी मि० लैम के उद्यान में हाँफता हुआ पहुँचता है, वह मि० लैम को सीढ़ी के साथ भूमि पर पड़ा पाता है। डैरी उसे बताता है कि वह वापस लौट आया है। क्योंकि मि० लैम प्रत्युत्तर देने में असफल रहता है, तो डैरी उसके पास घुटनों के बल झुकता है तथा रोने लगता है तथा पर्दा गिर जाता है। नाटक का अन्त अत्यन्त करुणाजनक है।

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Evans Tries an O-level Summary | class 12th | Quick Revision Notes for English Vistas

Notes for Evans Tries an O-level

  • Evans a kleptomaniac was imprisoned thrice and all the time escaped from the prison. Now he was in the prison for the 4th time and all of a sudden developed curiosity to appear in O-level German Examination which also was an effort to break the prison.
  • The Governor takes utmost care to see that he would not be fooled. Every care was taken to make Evans prepare for the exam.
  • He was tutored by a German tutor for 6 months. The day before the exam the tutor wishes good luck but makes it clear that he had hardly any ‘chance of getting through.’ But Evans gives an ironical twist to the tutor’s observation by saying “I may surprise everybody.”
  • On the day of the exam Jackson and Stephens visited Evans cell and took away everything that may help him injure himself. Evans was insisted to take away the hat but he refused saying that it was lucky charm.
  • Evans cell was bugged so that the Governor could himself listen to each and every conversation in the cell. The invigilator Rev. S. Mc Leery too was searched and left him to complete the task. Stephen sitting outside the cell every now and then peeped into the cell.
  • The exam went on smoothly. Stephen escorted the invigilator to the main gate and took a look into Evans cell and found the invigilator (actually Evans) wounded, informed the Governor. The latter was to be hospitalized but informed that he was alright and asked them to follow Evans. Thus he escaped the prison.
  • When the invigilator was not found in the hospital they went to the residence of Rev. S. Mc Leery only to find him ’bound and gagged in his study in Broad Street”. He has been there, since 8.15 a.m. Now everything was clear to the Governor.
  • Evan escaped the prison the 4th time. But by taking the hint from the question paper the Governor reached the hotel where Evans was and captured him and came to know how he planned his escape and said that his game was over. Evans surrenders himself to the Governor.
  • The Governor tells Evan they would meet soon.
  • The moment they are rid of the Governor, the so called prison officer-a friend of Evans unlocks the handcuffs and asks the driver to move fast and Evans tells him to turn to Newbury. Evans, thus, has the last laugh.

Evans Tries an O-level Summary in English

It is the month of early March. The secretary of the Examination Board receives a call from the Governor of the H.M. Prison, Oxford. He tells that a prisoner named Evans has started night classes in O Level German. Now he wants to attain some academic qualification. The Secretary replies that there is no need to worry. All the necessary forms and other requisite material will be sent. They will give him a chance. He enquires about Evans. The Governor tells him that Evans has no record of violence. Rather he is an amusing fellow. He is one of the stars at the Christmas concert. 

The Secretary asks him if they can arrange a room where Evans can sit in for the examination. The Governor tells that the room of Evans can be used for this purpose.

The Secretary agrees and tells that they could get a parson from St. Mary Mags to invigilate.

The Governor takes utmost care to see that he would not be fooled. Every care was taken to make Evans prepare for the exam. He was tutored by a German teacher for 6 months. The day before the exam the teacher wishes good luck but makes it clear that he had hardly any ‘chance of getting through.’ But Evans gives an ironical twist to the tutor‘s observation by saying “I may surprise everybody”

On the day of the exam Jackson and Stephens visited Evan’s cell and took away everything that may help him injure himself. Evans was insisted to take away the hat but he refused saying that it was lucky charm. Evan’s cell was bugged so that the Governor could himself listen to each and every conversation in the cell. The invigilator Rev. S. Mc Leery too was searched and left him to complete the task. Stephen sitting outside the cell every now and then peeped into the cell.

The exam went on smoothly. Stephen escorted the invigilator to the main gate and looked into Evan‘s cell and found the invigilator (actually Evans) wounded, informed the Governor. The latter was to be hospitalized but informed that he was alright and asked them to follow Evans. Thus he

escaped the prison.

When the invigilator was not found in the hospital they went to the residence of Rev. S. Mc Leery only to find him ‘bound and gagged in his study in Broad Street’. He has been there, since 8.15 a.m. Now everything was clear to the Governor.

Evan escaped the prison the fourth time. But by taking the hint from the question paper the Governor reached the hotel where Evans was staying. He captured him and came to know how he planned his escape. The Governor said that his game was over. Evans surrendered himself to the Governor.

Evans was handcuffed and sent away with a prison officer in the prison van. But here again he befools the Governor. Both the prison officer and the prison van were part of the plan devised by Evan‘s friends. Once again he was a free bird.

Summary of Evans Tries an O-level in Hindi

यह एक दिलचस्प कहानी है जो बताती है कि किस तरह जेम्ज़ ईवन्ज़ नाम का एक कैदी जेल के सभी अधिकारियों को मूर्ख बना देता है और एक सुनियोजित योजना के अन्तर्गत बच निकलता है। अपनी सज़ा काटने के दौरान वह अपनी एक इच्छा व्यक्त करता है कि वह किसी तरह की शैक्षिक योग्यता प्राप्त कर ले। वह जर्मन भाषा में ओ-लेवल (सैकण्ड्री शिक्षा के स्तर का साधारण सर्टिफिकेट) की परीक्षा में बैठना चाहता है। लगभग दस महीने तक एक जर्मन अध्यापक उसे जेल में पढ़ाने के लिए आता है। फिर परीक्षा का प्रबन्ध कैदी की अपनी कोठरी में ही कर दिया जाता है। मकलीरी नाम के एक पादरी को परीक्षा के दौरान निरीक्षक के रूप में भेज दिया जाता है। जेल का गवर्नर स्वयं सुरक्षा के सभी प्रबन्ध करता है ताकि परीक्षा के दौरान कहीं कैदी भाग न जाए। जेल के दो अधिकारियों को उस पर निगरानी रखने के लिए लगा दिया जाता है। परीक्षा समाप्त होने के बाद पादरी सभी कागज़-पत्रों सहित वापस चला जाता है। किन्तु उसके चले जाने के बाद यह पता चलता है कि ईवन्ज़ पादरी का वेश बना कर बच निकला था और बुरी तरह से घायल हुए पादरी को कोठरी में पीछे छोड़ गया था। पादरी कहता है कि वह जानता है ईवन्ज़ को कहां पाया जा सकता था। कैदी को दबोचने के लिए उसे तुरन्त एक पुलिस की गाड़ी में भेज दिया जाता है। पादरी का खून बुरी तरह बह रहा होता है और रास्ते में उसे एक अस्पताल में छोड़ दिया जाता है। किन्तु बाद में पता चलता है कि ऐसा कोई घायल आदमी अस्पताल में नहीं आया था। अब इस बात का आभास हो जाता है कि यह ईवन्ज़ नहीं था जो मकलीरी के वेश में बच निकला था, अपितु यह ईवन्ज़ था जो मकलीरी का वेश बना कर पीछे रह गया था और उसने जेल के सभी अधिकारियों को मूर्ख बना दिया था। वह खून जो उसके सिर से बहता रहा था, वह उसका अपना खून नहीं था। यह किसी सुअर का खून था जो मकलीरी बहुत चतुराईपूर्वक अपने साथ अन्दर ले आया था और यह मकलीरी कोई पादरी भी नहीं था। असली पादरी मकलीरी को इन लोगों ने सुबह से ही उसके कमरे में बांध रखा था। कहानी के अन्त में गवर्नर एक होटल के कमरे में ईवन्ज़ को दबोचने में समर्थ हो जाता है। ईवन्ज़ को हथकड़ी लगा दी जाती है और एक जेल अधिकारी के साथ उसे जेल की गाड़ी में बिठा कर भेज दिया जाता है। किन्तु यहां एक बार फिर ईवन्ज़ गवर्नर को मात दे देता है। जेल अधिकारी और जेल की गाड़ी दोनों ही उस योजना का हिस्सा थीं जो ईवन्ज़ के मित्रों ने तैयार कर रखी थी। ईवन्ज़ जेल से तीन बार पहले भी बच निकला था अब एक बार फिर वह एक आज़ाद पक्षी बन गया था। इसी कारण से जेल के अधिकारी उसे ‘जेलतोड़ ईवन्ज़’ कह कर बुलाया करते थे।

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