व्याख्या – प्रस्तुत पक्तियों में कवि ने विभिन्न रूपकों का परिचय देते हुए प्राकृतिक उपादानों का वर्णन किया है। कवि को पहाड़ किसी किसान की तरह लगता है, जो की आकाश का साफा बांधकर बैठा है। वह सूरज को चिलम की तरह पी रहा है। पर्वत रूपी चादर किसान के घुटनों के पास नदी चादर सी बह रही है। पास के पलास के जंगलों को अंगीठी जल रही है। अन्धकार पूर्व दिशा में छा रहा है ,वे सब इकठ्ठा हो रहे हैं ,मानों भेड़ों का समूह हो।
शाम एक किसान कविता
अचानक- बोला मोर।
जैसे किसी ने आवाज़ दी-
‘सुनते हो’।
चिलम औंधी
धुआँ उठा-
सूरज डूबा
अंधेरा छा गया।
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि अचानक मोर ने आवाज दी ,मानों किसी ने किसान को आवाज दी कि सुनते हो।किसान के हाथ से चिलम गिर जाती है। धुंवा उठा है। सूरज डूब जाता है और आकाश में अँधेरा छा जाता है।
शाम एक किसान कविता का सारांश summary of shaam ek kisan
कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना जी ने किसान के रूप में जाड़े की शाम के प्राकृतिक दृश्य का चित्रण किया है .इस प्राकृतिक दृश्य में पहाड़ – बैठे हुए एक किसान की तरह दिखाई दे रहा है ,आकाश उसके सिर पर बंधे साफे के समान, पहाड़ के नीचे बहती हुई नदी -घुटनों पर रखी चादर सी ,पलाश के पेड़ों पर खिले लाल -लाल फूल -जलती अंगीठी के समान ,पूर्व क्षितिज पर घाना होता अन्धकार -झुण्ड में बैठी भेड़ों जैसा और पश्चिम दिशा में डूबता सूरज -चिलम पर सुलगती आग की भाँती दिख रहा है .यह पूरा दृश्य शांत है .अचानक मोर बोल उठता है .मानों किसी ने आवाज लगायी -सुनते हो .इसके बाद यह दृश्य घटना में बदल जाता है – चिलम उलट जाती है ,आग बूझ जाती है ,धुआं उठने लगता है ,सूरज डूब जाता है ,शाम ढल जाती है और रात का अँधेरा छा जाता है .
पापा खो गए वसंत भाग – 1 (Summary of Papa Kho Gye Vasant)
यह एकांकी लेखक श्री विजय तेंदुलकर जी द्वारा लिखा गया है जिसमें निर्जीव वस्तुओं की पीड़ा का सजीव चित्रण किया गया है और पाठ के द्वारा बच्चों के अपहरण के बढ़ते वारदातों को दिखाया है| रात के समय सड़क पर एक बिजली का खंभा, एक पेड़, एक लैटरबॉक्स और दीवार पर नाचने की मुद्रा में खड़ी लड़की का पोस्टर है। सुबह खड़े-खड़े वे जो भी देखते थे, रात में उसकी बातें करते थे| खम्भा एक स्थान पर खड़े रहने के कारण परेशान है| पेड़ कहता है कि वह तो उससे पहले का खड़ा है उसका तो जन्म ही इसी स्थान पर हुआ था। उस समय यहाँ कुछ नहीं था, वह और सामने फैला विशाल समुद्र था। सड़क बनने पर जब खंभे को उसके पास लगाया गया तो पेड़ को लगा कि उसका अकेलापन दूर करने के लिए एक साथी मिल गया है। खंभे पर जब बरसात के दिनों में मुसीबत आई तो उस समय पेड़ ने उसे सहारा देकर संभाला था। उस दिन से दोनों में दोस्ती हो गई। दीवार पर लगे पोस्टर के टेढ़े होने से पोस्टर पर बनी नाचने वाली औरत के घुँघरू बज उठते हैं।
उसी समय लैटरबक्स एक भजन गुनगुनाता हुआ आता है। कौवा भी भजन सुनकर पेड़ के पीछे से बाहर आता है। लैटरबक्स अपने डिब्बे में से चिट्ठियाँ निकालकर पढ़ने लगता है। पेड़ और खंभा लैटरबक्स को चिट्ठियाँ पढ़ने से रोकते हैं।
उसी समय वहाँ किसी के आने की आहट होती है। सब चुप हो जाते हैं। एक आदमी अपने कंधे पर एक लड़की को उठाए चला आ रहा था। आदमी ने उस लड़की को बेहोश कर दिया था इसलिए वह गहरी नींद में सो रही थी। आदमी लड़की को वहीं छोड़कर अपने लिए खाने का प्रबंध करने चला जाता है।
आदमी के जाने के बाद खंभा, पेड़, लैटरबॉक्स और कौवा, लड़की-आदमी के बारे में बातें करने लगते हैं। वे छोटी लड़की को उस आदमी से बचाने का उपाय सोचने लगते हैं। उन सबकी बात करने की आवाजों के कारण लड़की जाग जाती है। वह सबको बातें करते देखकर हैरान रह जाती है। लड़की को उठा देखकर सब चुप हो जाते हैं। लड़की अपने माँ-बाप और घर को याद करके रोने लगती है। लैटरबॉक्स से अब चुप नहीं रहा जाता। लैटरबक्स लड़की से बात शुरू करता है| वह उसके मन का डर दूर करने का प्रयास करता है। वह लड़की से उसके घर का पता पूछता है परन्तु उसे अपने घर का पता मालूम नहीं था।
लैटरबॉक्स लड़की को बताता है कि वे लोग भी इनसानों की तरह बात करते हैं। लड़की उन लोगों के साथ घुल-मिल जाती है। वे सब आपस में खेलने लगते हैं। सब चीज़ें उसको दुष्ट आदमी से बचाने का उपाय सोचने लगते हैं। उसी समय बच्चे उठाने वाला आदमी वहाँ आ जाता है। सभी वस्तुएँ अपने-अपने स्थान पर खड़ी हो जाती हैं। लड़की पेड़ के पीछे छिप जाती है। आदमी लड़की को ढूँढ़ता है परन्तु उसे लड़की कहीं नहीं मिलती। सभी चीज़ें मिल-जुलकर उस लड़की की रक्षा करती हैं। आदमी वहाँ से चला जाता है। सभी लोग लड़की को बचाकर खुश होते हैं। लड़की खेलते हुए सो जाती है।
लड़की के सोने के बाद सब उसे घर कैसे पहुँचाया जाए सब इसके बारे में सोचने लगते हैं। कौवा उन्हें लड़की के घर का पता लगाने का एक उपाय बताता है। वह कहता है – पेड़ और खंभा लड़की के ऊपर इस प्रकार टेढ़े हो जाएँगे, जिससे लगे कि यहाँ कोई दुर्घटना घटी है। खंभा कहता है कि यदि फिर भी वहाँ कोई नहीं आता, तब क्या होगा? कौवा लैटरबॉक्स को एक संदेश लिखने के लिए कहता है।
कुछ देर बाद सुबह हो जाती है। खंभा टेढ़ा खड़ा है, पेड़ सोई हुई लड़की के ऊपर झुका हुआ था, कौवा काँव-काँव कर रहा था। पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में पापा खो गए हैं लिखा हुआ था। नाचने वाली लड़की उस बच्ची की मुद्रा बना लेती है जिसके पापा खो गए थे। अंत में लैटरबॉक्स सबका ध्यान अपनी ओर खींचता है। वह सबसे कहता है कि जिसे भी इस लड़की के पापा मिले, उन्हें यहाँ पर ले आएँ।
कठिन शब्दों के अर्थ –
• भंगिमा – मुद्रा • आफ़त – मुसीबत • थर-थर काँपना – डर से काँपना • झेलना – सहन करना • गरूर – घमंड • कर्कश – कानों को खराब लगने वाली आवाज़ • फोकट – मुफ्त में • पेट में चूहे दौड़ना – बहुत भूख लगना • दाल में काला होना – कुछ गड़बड़ की आशंका • गश्त लगाना – चारों ओर घूमना • गौर से देखना – ध्यान से देखना • चकमा देना – धोखा देना • प्रेक्षक – दर्शक
रक्त और हमारा शरीर वसंत भाग – 1 (Summary of Rakt aur Hmara Sharir Vasant)
यह पाठ में लेखक डॉ० यतीश अग्रवाल ने शरीर में रक्त की भूमिका के बारे में बताया है। अनिल अपनी छोटी बहन दिव्या को लेकर जाँच करवाने डॉक्टर के पास गया था। अस्पताल में डॉक्टर ने दिव्या को खून की कमी के बारे में बताया और उसे डॉक्टर दीदी के पास जाँच कराने भेज दिया। डॉक्टर ने दिव्या की उँगली से खून लेकर उन्हें रिपोर्ट के लिए कल आने को कहा।
अगले दिन जब अनिल रिपोर्ट लेने गया तब डॉक्टर दीदी ने बताया कि दिव्या को अनीमिया है। अनिल ने डॉक्टर से पूछा कि अनीमिया क्या है? डॉक्टर दीदी ने कहा अनीमिया को जानने से पहले तुम्हें रक्त के बारे में जानना होगा जो लाल द्रव के समान दिखता है| इस द्रव के दो भाग प्लाज्मा और प्लेटलेट्स होते हैं। प्लाज्मा तरल भाग है लेकिन प्लेटलेट्स में लाल, सफ़ेद और बेरंग कण होते हैं। डॉ० दीदी ने सूक्ष्मदर्शी के द्वारा रक्त को अनिल को भी दिखाया। अनिल को लाल रक्त कण एक बालूशाही की भाँति दिखाई दिए। अनिल के पूछने पर डॉक्टर दीदी ने बताया कि लाल कण बनावट में बालूशाही के समान होते हैं जो गोल और दोनों तरफ़ से अवतल होते हैं। रक्त की एक बूंद में लाल कणों की संख्या लाखों में होती है। एक मिलीलीटर रक्त में चालीस से पचपन लाख लाल कण होते हैं। ये लाल कण शरीर के हर हिस्से में ऑक्सीजन पहुँचाते हैं। इनका जीवन काल लगभग चार महीने का होता है। पुराने कण के नष्ट हो जाने पर नए लाल कण बनते रहते हैं।
रक्त कणों का निर्माण हड्डियों के मध्य भाग मज्जा में बहुत-से कारखाने प्रोटीन, लौहतत्व और विटामिन रूपी कच्चे माल के द्वारा करते हैं। हमारे देश में अनीमिया होने का प्रमुख कारण पौष्टिक आहार की कमी है| एक और कारण है पेट में कीड़ों का हो जाना। डॉ० दीदी ने कहा कि इस रोग से बचने हेतु साफ़-स्वच्छ भोजन खाना चाहिए। शौचालय का प्रयोग करना चाहिए।
डॉ० दीदी ने कहा कि सफेद कण शरीर के वीर सिपाही हैं, जो रोगाणुओं से डटकर मुकाबला करते हैं उन्हें शरीर के अंदर नहीं आने देते। प्लेटलेट्स चोट लगने पर रक्त जमाव क्रिया में मदद करता है। यदि खून की कमी हो तो खून भी देना पड़ सकता है। सभी का खून एक समान नहीं होता। जाँच करने पर ही किसी का खून चढ़ाया जा सकता है। आपातकालीन स्थिति में ब्लड-बैंक से रक्त मिल सकता है। अनिल के पूछने पर कि क्या वह रक्तदान कर सकता है। डॉ० दीदी ने बताया कि 18 वर्ष की आयु से अधिक स्वस्थ व्यक्ति ही रक्तदान कर सकते हैं। एक समय में 300 मिलीलिटर रक्त ही लिया जाता है। मानव के शरीर में लगभग पाँच लीटर खून होता है। रक्तदान करने से शरीर में कोई कमज़ोरी नहीं आती। उन्होंने सभी को रक्तदान करने की प्रेरणा दी ताकि वह जरूरतमंद व्यक्ति के लिए जीवनदान बन जाए।
कठिन शब्दों के अर्थ –
• स्लाइड – खून जाँच करने का एक यंत्र द
• सूक्ष्मदर्शी – एक प्रकार का यंत्र, जिससे छोटी वस्तुएँ बड़ी करके दिखाई देती हैं
• अनीमिया – एक प्रकार का रोग जो खून की कमी से होता है
• जिज्ञासा – जानने की इच्छा
• प्लाज्मा – शरीर में रक्त का तरल भाग
• प्लेटलेट्स – शरीर में रक्त का वह भाग जिसमें लाल, सफ़ेद और बिना रंग के कण होते हैं
मिठाईवाला वसंत भाग – 1 (Summary of Mithaiwala Vasant)
यह कहानी भगवतीप्रसाद वाजपेयी जिसमें कहानीकार ने एक पिता का बच्चों के प्रति प्रेमभाव को दर्शाया है| किस तरह से एक पिता अपने बच्चों को खोने के बाद अन्य बच्चों में उस ख़ुशी की तलाश करता है|
एक आदमी पहले एक खिलौनेवाले के रूप में आता है। वह मधुर स्वर में बच्चों को बहलाने वाला, खिलौनेवाला’ गाकर सुनाता है। सभी बच्चे उसके खिलौनों पर रीझकर अपनी तोतली आवाज़ में भाव पूछते हैं। नन्हे-नन्हे बच्चों से पैसे लेकर तथा उन्हें खिलौने दे वह फिर वहाँ से गीत गाता हुआ चल पड़ता है| राम विजय बहादुर के बच्चे चुन्नू-मुन्नू भी एक दिन खिलौने लेकर आए। उनकी माँ रोहिणी इतने सुंदर और सस्ते खिलौने देखकर सोचने लगी कि वह इतने सस्ते खिलौने कैसे दे कर गया।
इसके छह महीने बाद नगर में किसी मधुर मुरली बजाकर बेचने वाले का समाचार शहर फैल गया। वह बहुत सस्ती मुरली बेचता था। रोहिणी उसकी आवाज़ सुनकर पहचान गयी ये वही खिलौनेवाला है| रोहिणी ने अपने पति के द्वारा इस मुरलीवाले को बुलाया तथा अपने बच्चों के लिए मुरली खरीद ली। फिर उसे देख बच्चों का समूह खुश होकर उसके चारों तरफ़ इकट्ठा हो गए। मुरली वाले ने सभी बच्चों को देने के बाद उस बच्चे को भी मुफ्त में मुरली दी जिसके पास पैसे भी नहीं थे।
इसके आठ मास बाद सर्दियों में एक मिठाई बेचने वाला गीत गाता हुआ आया। रोहिणी को इसका स्वर भी कुछ सुना हुआ-सा लगा। वह अपनी छत से तुरंत नीचे आई। उसने मिठाईवाले को बुलाया। रोहिणी के पूछने पर उसने बताया कि वह इससे पहले खिलौने और मुरली बेचने आया था। रोहिणी ने उससे पूछा कि वह इतनी सस्ती चीज़ें क्यों बेचता है| मिठाईवाले ने बताया कि वह एक नगर का अमीर आदमी था। उसके दो बच्चे और एक सुंदर पत्नी थी लेकिन अब कुछ भी नहीं रहा। वह अपनी पुरानी बातें याद करके फूट-फूटकर रोने लगा। उसने बताया कि वह इन्हीं बच्चों में अपने बच्चों की झलक देखने के लिए यह सामान बेचता फिरता है। वह रोहिणी के बच्चों चुन्नू-मुन्नू को कागज़ की पुड़िया में मिठाई बिना पैसे लिए ही देकर गीत गाता चल दिया।
कठिन शब्दों के अर्थ –
• मेला – मेरा • घोला – घोड़ा • मादक – मस्त • केछा – कैसा • छंदल – सुंदर • अस्थिर – जो स्थिर न हो • स्नेहाभिषिक्त – प्रेम में डूबा हुआ • कंठ – गला • उस्ताद – कुशल • साफ़ा – पगड़ी • मृदुल – कोमल • चिक – घूँघट • स्मरण – याद • छज्जा – छत का आगे वाला भाग • सोथनी – पाजामा • अंतर्व्यापी – बीच में फैला हुआ • अम – हम • लेंदे – लेंगे • इछका – इसका • मुल्ली – मुरली • औल – और • दुअन्नी – दो आने • स्नेहसिक्त – प्रेम में डूबा हुआ • क्षीण – नष्ट • आजानुलंबित – घुटनों तक लंबे • केश-राशि – बालों का समूह • पोपला मुँह – जिसमें दाँत न हों • चेष्टा – कोशिश • विस्मयादि भावों में – हैरानी से युक्त भावों में • अतिशय – बहुत अधिक
प्रस्तुत कविता ” कठपुतली ” में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने कठपुतलियों के मन की व्यथा को दर्शाया है। ये सभी कठपुतलियाँ धागों में बंधे – बंधे परेशान हो चुकी हैं और इन्हें दूसरों के इशारों पर नाचने में दुख होता है। इस दुख से बाहर निकलने के लिए एक कठपुतली विद्रोह के शुरुआत करती है , वो सब धागे तोड़कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। अन्य सभी कठपुतलियां भी उसकी बातों से सहमत हो जाती हैं और स्वतंत्र होने की चाह व्यक्त करती हैं। क्योंकि उनका मन भी स्वतन्त्र हो कर चलना चाहता था। परन्तु जब पहली कठपुतली पर सभी की स्वतंत्रता की ज़िम्मेदारी आती है , तो वो सोच में पड़ जाती है कि क्या वो इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी निभा पाएगी ? इस बात का क्या भरोसा है कि स्वतंत्र होने के बाद वो ख़ुश रह पाएंगी ? क्योंकि कहीं न कहीं कठपुतली को भी पता है कि उसकी यह स्वतन्त्र होने की इच्छा सही नहीं है , वह जानती है कि बिना धागों के उसका अस्तित्व बेजान है। इन बातों की वजह से ही पहली कठपुतली अपने फैसले के बारे में दोबारा सोचने पर मजबूर हो गयी और उसे लगने लगा कि उसके मन की इच्छा सही भी है या नहीं।
कठपुतली पाठ व्याख्या
कठपुतली गुस्से से उबली बोली – यह धागे क्यों हैं मेरे पीछे – आगे ? इन्हें तोड़ दो ; मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो। कठिन शब्द गुस्से से उबलना ( मुहावरा ) – बहुत अधिक गुस्सा आना पाँव – पैर व्याख्या – कविता की इन पंक्तियों में कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी ने एक कठपुतली के मन के भावों को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है। इन पंक्तियों में एक कठपुतली बहुत अधिक गुस्सा होते हुए कह उठती है कि उसके आगे – पीछे ये धागे क्यों बांधे गए हैं ? कठपुतली कहती है कि ये सभी धागे तोड़ दो और उसे उसके पैरों पर छोड़ दो। कहने का तात्पर्य यह है कि कठपुतली धागों की सहायता से किसी और के इशारों पर नहीं चलना चाहती। वह इन धागों से मुक्त हो कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है अर्थात वह स्वतन्त्र होना चाहती है। भावार्थ – कठपुतली दूसरों के हाथों में बंधकर नाचने से परेशान हो गयी है और अब वो सारे धागे तोड़कर स्वतंत्र होना चाहती है। भाव यही है कि किसी को भी पराधीनता या गुलामी पसंद नहीं होती , सभी स्वतंत्रता से रहना पसंद करते हैं।
सुनकर बोलीं और – और कठपुतलियाँ कि हाँ , बहुत दिन हुए हमें अपने मन के छंद छुए। कठिन शब्द मन के छंद – मन में खुशी व्याख्या – कविता की इन पंक्तियों में कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी ने कठपुतली और उसकी अन्य सभी साथी कठपुतलियों के मन के भाव दर्शाए हैं। पहली कठपुतली के मुँह से स्वतंत्र होने की बात सुनकर अन्य सभी कठपुतलियाँ भी उससे कहती हैं कि हाँ , उन्हें भी स्वतंत्र होना है। कठपुतलियाँ कहती हैं कि इन धागों के बंधन में बंधे हुए बहुत दिन हो गए हैं और उन्होंने इतने दिनों में अपने मन में ख़ुशी का एहसास भी नहीं किया है। अर्थात न जाने कितने दिनों से स्वतन्त्र हो कर उन्होंने ख़ुशी से कोई काम नहीं किया है। भावार्थ – इन पंक्तियों में एक कठपुतली की बातें सुन कर सभी कठपुतलियों को स्वतन्त्र होने की इच्छा होती है। वे भी स्वतन्त्र हो कर रहना चाहती हैं जिससे उनके मन को ख़ुशी प्राप्त हो।
मगर… पहली कठपुतली सोचने लगी – यह कैसी इच्छा मेरे मन में जगी ? कठिन शब्द इच्छा – चाह या भावना व्याख्या – कविता की इन अंतिम पंक्तियों में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने पहली कठपुतली के मन के संदेहात्मक स्थिति के भावों को दर्शाया है। कवि कहते हैं कि जब बाकी सभी कठपुतलियाँ पहली कठपुतली की स्वतंत्र हो कर रहने की बात का समर्थन करती हैं और सभी स्वतन्त्र होने की बात करती हैं , तो पहली कठपुतली सोच में पड़ जाती है कि उसके मन में ये कैसी भावना जागृत हुई और क्यों ? कहने का तात्पर्य यह है कि पहली कठपुतली सोच में पड़ गई थी कि क्या वो सही कर रही है ? क्या वो सभी कठपुतलियों की स्वतंत्रता की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले पाएगी ? क्या उसकी स्वतन्त्र होने की इच्छा जायज़ है ? भावार्थ – अंतिम पंक्तियां कठपुतली के संदेहात्मक स्थिति वाले मनभावों को समर्पित हैं। कठपुतली खुद को तो स्वतन्त्र कराने का आत्मविश्वास रखती है परन्तु जब सभी कठपुतलियाँ उसके साथ स्वतन्त्र होने की बात करती हैं तो पहली कठपुतली का आत्मविश्वास डगमडा जाता है। क्योंकि कहीं न कहीं कठपुतली को भी पता है कि उसकी यह स्वतन्त्र होने की इच्छा सही नहीं है , वह जानती है कि बिना धागों के उसका अस्तित्व बेजान है। कवि भी हमें यही समझाना चाहता है कि जब तक किसी काम को करने के लिए आपको पूर्ण आत्मविश्वास न हो तब तक किसी भी काम को करने की जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए।
हिमालय की बेटियाँ वसंत भाग – 1 (Summary of Himalaya ki Betiyan Vasant)
यह पाठ लेखक नागार्जुन ने लिखा है जिसमें उन्होंने हिमालय और उससे निकलने वाली नदियों के बारे में बताया है| हिमालय से बहने वाली गंगा, यमुना, सतलुज आदि नदियाँ दूर से लेखक को शांत, गंभीर दिखाई देती थीं| लेखक के मन में इनके प्रति श्रद्धा के भाव थे। जब लेखक ने जब इन नदियों को हिमालय के कंधे पर चढ़कर देखा तो उन्हें लगा की ये तो काफी पतली हैं जो समतल मैदानों में विशाल दिखाई देती थीं।
लेखक को हिमालय की इन बेटियों की बाल-लीलाओं को देखकर आश्चर्य होता है। हिमालय की इन बेटियों का न जाने कौन-सा लक्ष्य है, जो इस प्रकार से बेचैन होकर बह रही हैं। नदियाँ बर्फ की पहाड़ियों में, घाटियों में और चोटियों पर लीलाएँ करती हैं। लेखक को लगता है देवदार, चीड़, सरसों, चिनार आदि के जंगलों में पहुँचकर शायद इन नदियों को अपनी बीती बातें याद आ जाती होंगी।
सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो महानदियाँ हिमालय से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं। हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका दामाद कहने में भी लेखक को कोई झिझक नहीं होती। कालिदास के यक्ष ने अपने मेघदूत से कहा था कि बेतवा नदी को प्रेम का विनिमय देते जाना जिससे पता चलता है कि कालिदास जैसे महान कवि को भी नदियों का सजीव रूप पसंद था।
काका कालेलकर ने भी नदियों को लोकमाता कहा है। लेकिन लेखक इन्हें माता से पहले बेटियों के रूप में देखते हैं। कई कवियों ने इन्हें बहनों के रूप में भी देखा है| लेखक तिब्बत में सतलुज के किनारे पैर लटकाकर बैठने से वे इससे काफी प्रभावित हो गए।
कठिन शब्दों के अर्थ –
• संभ्रांत – सभ्य • कौतूहल – जिज्ञासा • विस्मय – आश्चर्य • बाललीला – बचपन के खेल • प्रेयसी – प्रेमिका बे • अधित्यकाएँ – पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि • उपत्यकाएँ – चोटियाँ • लीला निकेतन – लीला करने का घर • यक्ष – कालिदास के मेघदूत का मुख्य पात्र • प्रतिदान – वापस • सचेतन – सजीव प्रे • मुदित – खुश • खुमारी – नशा • बलिहारी -कुर्बानी • नटी – कोई भूमिका निभाने वाली स्त्री
दादी माँ वसंत भाग – 1 (Summary of Dadi Maa Vasant)
यह कहानी शिवप्रसाद सिंह हैं जिसमें लेखक ने अपनी दादी माँ का वर्णन किया है और बड़ों के महत्व को दिखाया है। लेखक बड़े हो चुके थे| उन्होंने अब तक बहुत तरह के सुख-दुख देखे थे परंतु जरा-सी कठिनाई पड़ते ही मन अनमना हो जाता था। मित्र उसके आगे तो उसके साथ होने का दिखावा करते थे, परंतु पीठ पीछे उनको कमजोर कहकर मज़ाक उड़ाते थे। ऐसे समय में लेखक को अपनी दादी माँ की बहुत याद आती थी। लेखक की दादी ममता, स्नेह, दया, की मूर्ति थी।
बच्चों में लेखक को बरसात के दिनों में गंध भरे जल में कूदना अच्छा लगता था जिससे एक बार उसे बुखार आ गया था। उस समय उसे बीमार पड़ना भी अच्छा लगता था। बीमारी में उसे दिन-भर नींबू और साबू मिलता था परंतु इस बार उसे जो बुख़ार चढ़ा था वह उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। वे उसकी दादी उसके माथे पर कोई अदृश्य शक्तिधारी चबूतरे की मिट्टी लगाती थीं। वह उसकी पूरी तरह से देखभाल करती थीं। दादी माँ को गाँवों में मिलने वाली पचासी किस्म की दवाओं के नाम याद थे। उन्हें गंदगी बिलकुल नापसंद थी। लेखक आज भी बीमार पड़ता है, परंतु मेस महाराज अपनी इच्छानुसार देखभाल करता है। डॉक्टर की शक्ल देखते ही अब उसका बुखार भाग जाता है। अब लेखक का बीमार पड़ने को मन नहीं करता था।
एक दोपहर दादी माँ रामी की चाची को डाँट रही थीं। रामी की चाची ने पहले पैसे वापस नहीं किए थे और दोबारा पैसे माँगने आ गई थी। वह दादी माँ के आगे गिड़गिड़ा रही थी कि बेटी की शादी के बाद वह सब दे देगी। लेखक ने दादी को पैसे दे देने को कहा परन्तु दादी ने उसे भी डाँटा। कई दिनों बाद लेखक को पता चला कि उसकी दादी माँ ने रामी की चाची का पिछला ऋण भी माफ़ कर दिया और उसे बेटी की शादी के लिए दस रुपये भी दिए।
लेखक के किशन भैया की शादी थी| लेखक को बुखार आ रहा था इसलिए वह बारात में नहीं गया। दादी माँ ने लेखक को उसके पास ही चारपाई पर सुला दिया। घर में औरतें विवाह की रात को अभिनय करती हैं। उसके मामा का लड़का राघव देर से पहुँचने के कारण बरात में जाने से रह गया। औरतों ने एतराज़ किया कि इस समय यहाँ लड़के का काम नहीं है। दादी माँ ने कहा कि छोटे लड़के और ब्रह्मा में कोई अंतर नहीं होता।
दादी माँ ने अपने जीवन में बहुत सुख-दुख देखे थे। दादा की अचानक मृत्यु से वे उदास रहने लगी थीं। उनकी मृत्यु पर पिताजी और दादी माँ को उनका शुभचिंतक बताने वालों की कमी नहीं थी। इन्हीं शुभचिंतकों के कारण घर की स्थिति बिगड़ गई थी। दादी माँ के मना करने पर दादा जी के श्राद्ध पर पिताजी ने बहुत खर्चा किया। घर का उधार बहुत बढ़ गया|
एक दिन दादी माघ की सर्दी में गीली धोती पहने कमरे में संदूक पर दीपक जलाए बैठी थीं। लेखक उनके पास जाकर बैठ गया। उसने दादी माँ से उनके रोने का कारण पूछा। दादी माँ ने उसे टाल दिया। अगली सुबह लेखक ने देखा कि उसके पिताजी और किशन भइया दुखी मन से कुछ सोच रहे थे। उन्हें कहीं से भी उधार नहीं मिल रहा था| उस समय दादी माँ ने पिताजी को दिलासा दिया कि उनके रहते चिंता मत करें। उन्होंने पिताजी को अपने सोने के कंगन दिए।
अभी लेखक के हाथ में किशन भैया का पत्र था, जिसमें लिखा था कि दादी माँ नहीं रहीं। लेखक को इस समाचार पर विश्वास नहीं हो रहा था।
कठिन शब्दों के अर्थ –
• शुभचिंतक – भला चाहने वाले • प्रतिकूलता – विपरीतता • सन – रूई • सद्यः – अभी-अभी • निस्तार – उद्धार • वात्याचक्र – तूफ़ान • मुँह में राम बगल में छुरी – ऊपर से मित्रता का नाटक करने वाले
हम पंछी उन्मुक्त गगन के वसंत भाग – 1 (Summary of Hum Panchi Unmukt Gagan Ke Vasant)
यह कविता कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा लिखी गयी है जिसमें कवि ने पक्षियों के माध्यम से स्वतंत्रता के मायने समझाए हैं|
पक्षी कह रहे हैं कि हम खुले आकाश में रहते हैं। यदि हमें पिंजड़े में बन्द कर दिया गया तो हम अपना मधुर गीत नहीं गा पाएँगे। सोने के पिंजरे में भी खुशी से फड़फड़ाते हमारे पंख उससे टकरा कर टूट जाएँगे|
पक्षियाँ कहती हैं हमें नदियों और झरनों का बहता जल पीना पसंद है, पिंजड़े के अन्दर हमारी भूख-प्यास नहीं मिटेगी| हमें आज़ाद रहकर कड़वे नीम का फल खाना, गुलामी में रहकर सोने की कटोरी में मैदा खाने से ज्यादा पसंद है|
पक्षियाँ कहती हैं सोने की जंजीरों के बंधन में रहकर हम अपनी चाल और उड़ने का ढंग सब भूल जाएँगें। हम तो वृक्ष की ऊँची डालियों पर झूला झूलना का सपना देखते हैं|
पक्षियों की इच्छा खुले नीले आसमान में उड़ने की है। उड़ते हुए वे आसमान की सीमा को छूना चाहते हैं। वे अपनी चोंच से आसमान के तारों जैसे अनार के दानों को चुगना चाहते हैं।
आसमान में उड़ते हुए पक्षियों में एक होड़-सी लग जाती है| वे आसमान की उस सीमा को छु लेना चाहते हैं, जिसका कोई अंत नहीं है। वे यही इच्छा लेकर आसमान में उड़ते हैं कि या तो वे मंजिल को प्राप्त ही कर लेंगे या फिर मंज़िल पाने की चाह में उनकी साँसें ही उखड़ जाएगी अर्थात् वे मर जाएँगे।
कठिन शब्दों के अर्थ –
• उन्मुक्त – खुला, बंधन रहित
• गगन – आसमान
• पुलकित – प्रसन्नता से भरे
• कनक – सोना
• कटुक – कड़वी
• निबौरी – नीम का फल
• कनक-कटोरी – सोने से बना बर्तन
• स्वर्ण – सोना
• श्रृंखला – जंजीरें
• तरु – पेड़
• फुनगी – वृक्ष का सबसे ऊपरी भाग
• तारक – तारे
• सीमाहीन – असीमित
• क्षितिज – जहाँ धरती और आसमान परस्पर मिलते हुए प्रतीत होते हैं
Chapter 10 The Story of Cricket Class 7 English Summary
Cricket has come a long way in last 500 years. The word ‘bat’ is an old English word that simply means stick or club. Till the middle of the eighteenth century, bat used to be like a hockey stick curving outwards. The curious characteristic of the game is that the length of the pitch is specified 22 yards but unlike other games, the dimension of the playing area is not fixed. There are cricket grounds of different shapes and sizes around the world.
The first written Laws for Cricket were drawn up in 1744. The laws stated that two umpires must be present on the field during the game and their decisions would be final and binding. Stumps must be 22 inches high, the bail across them should be of six inches, and the two set of stumps should be 22 yards apart.
The first cricket club was formed in Hambledon in 1760’s and the next Marylebone cricket club in 1787. During 1760’s and 1770’s, it was a common practice to ball through the air giving options of length deception to the bowler and it also increased the pace. Then opened new possibilities to spin and swing. To counter, batsmen had to master timing and shot selection. Initially, the weight of the ball was between 5-6 ounces but later was limited to 5/2 to 54 ounces. In 1774, the first leg-before law was published. Back in 1760’s the first cricket club was formed in Hambledon. By 1780, three days had become the length of a major match. Cricket’s most important tools are all made of natural, pre-industrial materials. The bat is made with leather, twine and cork. Even today both bat and ball are handmade.
In India, cricket was first played by the Parsis in Bombay. Due to their interest in trade, Parsis came into close contact with the British. They founded the first Indian cricket club called the Oriental Cricket Club in Bombay in 1848. The Parsi club was funded by the Parsi businessmen like the Tata and the Wadias. They received no help from the British cricketers. In fact, there was rift between the Bombay Gymkhana (the whites only club) and Parsi cricketers over the use of a public park. In 1889, Parsis beat Bombay Gymkhana at cricket. The Parsi team, the first Indian cricket team to tour England in 1886.
Modern cricket is dominated by Tests and one-day internationals, played between national teams. The players who play for their country remain in the memories of their Indian fans like C.K Nayudu, an outstanding batsman. His place in test cricket history is assured because he was the captain of the country’s first test team. India played its first test in 1932, fifteen years before it got its independence from the British rule.
Cricket has a lot to owe to television for its present popularity. Due to the telecast of the cricket on television, it came to the reach of the people living in small towns and villages. Satellite television and the world-wide reach of multinational television companies created a global market for cricket. Matches in Sydney can now be watched live in Surat India has the largest viewership for the game amongst the cricket playing nations. South-Asia became the centre of gravity of cricket because India had the largest viewship. Dubai became the headquarter of the ICC, instead of London. Today, in the global market, the Indian players are the best paid and most famous cricketers.
chapter 10- summry in hindi
पिछले 500 सालों में क्रिकेट ने एक लंबा सफर तय किया है। शब्द 'बैट' एक पुराना अंग्रेजी शब्द है जिसका सीधा अर्थ है छड़ी या क्लब। अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक बल्ला बाहर की ओर मुड़ी हुई हॉकी स्टिक की तरह हुआ करता था। खेल की जिज्ञासु विशेषता यह है कि पिच की लंबाई 22 गज निर्दिष्ट है लेकिन अन्य खेलों के विपरीत, खेल क्षेत्र का आयाम निश्चित नहीं है। दुनिया भर में विभिन्न आकार और आकार के क्रिकेट मैदान हैं।
क्रिकेट के लिए पहला लिखित कानून 1744 में तैयार किया गया था। कानूनों में कहा गया है कि खेल के दौरान मैदान पर दो अंपायर मौजूद होने चाहिए और उनके निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होंगे। स्टंप 22 इंच ऊंचे होने चाहिए, उनके चारों ओर बेल छह इंच की होनी चाहिए और स्टंप के दो सेट 22 गज की दूरी पर होने चाहिए।
पहला क्रिकेट क्लब 1760 के दशक में हैम्बल्डन में और अगला मैरीलेबोन क्रिकेट क्लब 1787 में बनाया गया था। 1760 और 1770 के दौरान, हवा के माध्यम से गेंद करना एक आम बात थी, जिससे गेंदबाज को लंबाई में धोखा देने का विकल्प मिलता था और इससे गति भी बढ़ जाती थी। फिर स्पिन और स्विंग की नई संभावनाएं खोलीं। इसका मुकाबला करने के लिए बल्लेबाजों को टाइमिंग और शॉट सिलेक्शन में महारत हासिल करनी थी। शुरुआत में गेंद का वजन 5-6 औंस के बीच था लेकिन बाद में इसे 5/2 से 54 औंस तक सीमित कर दिया गया। 1774 में, पहला चरण-पूर्व कानून प्रकाशित हुआ था। 1760 में हैम्बलडन में पहला क्रिकेट क्लब बनाया गया था। 1780 तक, तीन दिन एक बड़े मैच की लंबाई बन गए थे। क्रिकेट के सबसे महत्वपूर्ण उपकरण सभी प्राकृतिक, पूर्व-औद्योगिक सामग्री से बने होते हैं। बल्ला चमड़े, सुतली और काग से बनाया जाता है। आज भी बल्ला और गेंद दोनों हाथ से बने होते हैं।
भारत में क्रिकेट सबसे पहले पारसियों द्वारा बॉम्बे में खेला जाता था। व्यापार में उनकी रुचि के कारण पारसी अंग्रेजों के निकट संपर्क में आ गए। उन्होंने 1848 में बॉम्बे में ओरिएंटल क्रिकेट क्लब नामक पहले भारतीय क्रिकेट क्लब की स्थापना की। पारसी क्लब को टाटा और वाडिया जैसे पारसी व्यापारियों द्वारा वित्त पोषित किया गया था। उन्हें ब्रिटिश क्रिकेटरों से कोई मदद नहीं मिली। दरअसल, एक सार्वजनिक पार्क के इस्तेमाल को लेकर बॉम्बे जिमखाना (केवल गोरे क्लब) और पारसी क्रिकेटरों के बीच अनबन चल रही थी। 1889 में, पारसियों ने क्रिकेट में बॉम्बे जिमखाना को हराया। पारसी टीम, 1886 में इंग्लैंड का दौरा करने वाली पहली भारतीय क्रिकेट टीम
आधुनिक क्रिकेट में राष्ट्रीय टीमों के बीच खेले जाने वाले टेस्ट और एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों का बोलबाला है। अपने देश के लिए खेलने वाले खिलाड़ी अपने भारतीय प्रशंसकों की यादों में बने रहते हैं जैसे कि एक उत्कृष्ट बल्लेबाज सी.के. नायडू। टेस्ट क्रिकेट इतिहास में उनका स्थान पक्का है क्योंकि वे देश की पहली टेस्ट टीम के कप्तान थे। भारत ने अपना पहला टेस्ट 1932 में ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने से पंद्रह साल पहले खेला था।
क्रिकेट को अपनी वर्तमान लोकप्रियता के लिए टेलीविजन का बहुत कुछ देना है। टेलीविजन पर क्रिकेट के प्रसारण के कारण यह छोटे शहरों और गांवों में रहने वाले लोगों की पहुंच में आया। सैटेलाइट टेलीविजन और बहुराष्ट्रीय टेलीविजन कंपनियों की विश्वव्यापी पहुंच ने क्रिकेट के लिए एक वैश्विक बाजार तैयार किया। सिडनी में मैच अब सूरत में लाइव देखे जा सकते हैं भारत में क्रिकेट खेलने वाले देशों के बीच खेल के लिए सबसे बड़ी दर्शक संख्या है। दक्षिण-एशिया क्रिकेट के गुरुत्वाकर्षण का केंद्र बन गया क्योंकि भारत में व्यूशिप सबसे ज्यादा थी। दुबई लंदन के बजाय आईसीसी का मुख्यालय बन गया। आज, वैश्विक बाजार में, भारतीय खिलाड़ी सबसे अधिक भुगतान पाने वाले और सबसे प्रसिद्ध क्रिकेटर हैं।
The Bicycle Ride One of the friend of the author suggested that the two should go for a bicycle ride the next day. The author reached the place half an hour before his friend and was waiting for him in the garden. The author’s friend enquired about his bicycle and then gave it a shake holding its front wheel and the fork. After a while the man took out the front wheel of the cycle while the author was away for a while looking for a hammer.
The Bicycle Inspection and its Repair Work The author insisted on putting on the various parts of cycle in place, but his friend wanted to check the front wheel. He unscrewed something and from somewhere around a dozen of ball bearings came out. His friend insisted that the author must collect all of them else the bicycle might not be resorted to its old condition. The author collected around 16 of them and kept them in his hat. The author’s friend now started taking off the gear-case. The author warned him not to mess up with the gear-case, but his friend said that nothing is as easier as taking off the gear-case. He took it off easily, but had a nightmare while fixing it back to its place.
His bicycle which was until now in good condition was now lying scattered divided in many parts. Author wanted to stop his friend from causing further troubles, but he admits that he is weak at hurting others. Then it was the time for the chain which he tightened to an extent that it stopped moving. He then loosened it until it became twice as loose as it was before.
Hard work to collect the parts After applying his tricks on the cycle, author’s friend seemed to be contended and now wanted to put all the pieces back into their place. It took a lot of time and a great effort. The process revealed that his friend was inexperienced and knew nothing about repairing a bicycle. After struggling for many hours his friend was able to somehow fix the different parts of the bicycle. The author took him to his back kitchen where his friend cleaned himself and then the author sent him back to his home.
A Bicycle in Good Repair Summary In Hindi
साइकिल की सवारी लेखक के एक मित्र ने प्रस्ताव दिया कि अगले दिन वे दोनों साइकिल की सवारी करेंगे। तय समय से आधा घंटा पहले लेखक निर्धारित स्थान पर आ गए और वहीं बगीचे में एक जगह इंतजार करने लगे। लेखक के मित्र ने उनकी साइकिल के बारे में पूछा और उसके आगे वाले पहिए को जोर से हिलाया। थोड़ी देर के बाद मित्र ने उनकी साइकिल का अगला पहिया निकाल दिया और लेखक इस दौरान घर के अंदर हथौड़ा खोज रहे थे।
साइकिल का निरीक्षण तथा इसकी मरम्मत का काम लेखक चाहते थे कि साइकिल के सारे कल-पुजें को व्यवस्थित कर दिया जाए, पर उनका मित्र साइकिल के अगले टायर का निरीक्षण करना चाहता था। मित्र ने कहीं का एक बोल्ट ढीला किया, तो पता नहीं कहाँ से ढेर सारे वॉल-बेयरिंग बाहर आ गए। मित्र ने लेखक को सुझाव दिया कि उसे सारे बेयरिंग को जमा कर लेना चाहिए, नहीं तो साइकिल को ठीक नहीं किया जा सकेगा। लेखक ने उनमें से 16 को जमा कर अपनी टोपी में रख लिया। लेखक के मित्र ने अब साइकिल का गियर-बॉक्स निकालना शुरू कर दिया। लेखक ने मित्र को चेताया भी कि वह गियर-बॉक्स से छेड़छाड़ न करे, पर उनके मित्र ने कहा कि गियर-बॉक्स खोलने से आसान काम तो और कुछ हो ही नहीं सकता। इसे उसने निकाल तो आसानी से लिया, पर उसे वापस सही जगह पर लगाना एक बुरे सपने जैसा था।
लेखक की जो साइकिल थोड़ी देर पहले तक अच्छी हालत में थी, अब वह कई भागों में बिखरी पड़ी थी। लेखक ने उसे रोकना चाहा पर उनके मित्र ने कहा कि वह किसी को यूं घायल नहीं देख सकते? इसके बाद मित्र ने साइकिल की चेन को इतना ज्यादा कस दिया था कि अब वह आगे घूम ही नहीं रही थी। इसके बाद मित्र ने चेन को इतना ढीला कर दिया कि वह पहले से दोगुना ज्यादा ढीली हो गई थी।
भागों को जमा करने का मुश्किल काम अपनी सारी योग्यता को साइकिल पर लगा चुकने के बाद लेखक के मित्र ने तितर-बितर भागों को वापस जोड़ने का काम शुरू कर दिया था। इसमें काफी समय और काफी मेहनत लग रही थी। कार्य-प्रणाली को देखकर यह स्पष्ट हो चुका था कि उनके मित्र को साइकिल ठीक करने का कोई अनुभव नहीं था। कई घंटों की मशक्कत के बाद अंतत: लेखक के मित्र ने किसी तरह साइकिल के भागों को जोड़ने में सफलता प्राप्त कर ली। लेखक उसे घर के पिछले रसोइधर में ले गए, जहाँ पर उनके मित्र ने अपने आप को साफ किया तथा बाद में लेखक ने उसे अपने घर भेज दिया।