पाठ 10 वाख | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

NCERT important questions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 10 वाख

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नाव किसका प्रतीक है? कवयित्री उसे कैसे खींच रही है?

उत्तर-
नाव इस नश्वर शरीर का प्रतीक है। कवयित्री उसे साँसों की डोर रूपी रस्सी के सहारे खींच रही है।

प्रश्न 2.
कवयित्री भवसागर पार होने के प्रति चिंतिते क्यों है?

उत्तर-
कवयित्री भवसागर पार होने के प्रति इसलिए चिंतित है क्योंकि वह नश्वर शरीर के सहारे भवसागर पार करने का निरंतर प्रयास कर रही है परंतु जीवन का अंतिम समय आ जाने पर भी उसे अच्छी प्रार्थना स्वीकार होती प्रतीत नहीं हो रही है।

प्रश्न 3.
कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना किससे की है और क्यों?

उत्तर-
कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना कच्चे सकोरों से की है। मिट्टी के इन कच्चे सकोरों में जल रखने से जल रिसकर बह जाता है और सकोरा खाली रहता है उसी प्रकार कवयित्री के प्रयास निष्फल हो रहे हैं।

प्रश्न 4.
कवयित्री के मन में कहाँ जाने की चाह है? उसकी दशा कैसी हो रही है?

उत्तर-
कवयित्री के मन में परमात्मा की शरण में जाने की चाह है। यह चाह पूरी न हो पाने के कारण उसकी दशा चिंताकुल है।

प्रश्न 5.
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री क्या आवश्यक मानती है?

उत्तर-
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री का मानना है कि मनुष्य को भोग लिप्ता से आवश्यक दूरी बनाकर भोग और त्याग के बीच का मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। उसे संयम रखते हुए भोग और त्याग में समान भाव रखना चाहिए।

प्रश्न 6.
‘न खाकर बनेगा अहंकारी’-कवयित्री ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर-
‘न खाकर बनेगा अहंकारी’-कवयित्री ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि भोग से दूरी बनाते-बनाते लोग इतनी दूरी बना लेते हैं कि वे वैराग्य धारण कर लेते हैं। उन्हें अपनी इंद्रियों को वश में करने के कारण घमंड हो जाता है। वे स्वयं को सबसे बड़ा तपस्वी मानने लगते हैं।

प्रश्न 7.
कवयित्री किसे साहब मानती है? वह साहब को पहचानने का क्या उपाय बताती है?

उत्तर-
कवयित्री परमात्मा को साहब मानती है, जो भवसागर से पार करने में समर्थ हैं। वह साहब को पहचानने का यह उपाय बताती है कि मनुष्य को आत्मज्ञानी होना चाहिए। वह अपने विषय में जानकर ही साहब को पहचान सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री ने क्या कहना चाहा है? इससे मनुष्य को क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर-
‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री यह कहना चाहती है कि हठयोग, आडंबर, भक्ति का दिखावा आदि के माध्यम से प्रभु को प्राप्त करने का प्रयास असफल ही होता है। इस तरह का प्रयास भले ही आजीवन किया जाए पर उसके हाथ भक्ति के नाम कुछ नहीं लगता है। भवसागर को पार करने के लिए मनुष्य जब अपनी जेब टटोलता है तो वह खाली मिलती है। इससे मनुष्य को यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति का दिखावा एवं आडंबर नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘वाख’ पाठ के आधार पर बताइए कि परमात्मा को पाने के रास्ते में कौन-कौन सी बाधाएँ आती हैं?

उत्तर-
परमात्मा को पाने के रास्ते में आने वाली निम्नलिखित बाधाएँ पाठ में बताई गई हैं-

  1. क्षणभंगुर मानव शरीर और नश्वर साँसों के सहारे मनुष्य परमात्मा को पाना चाहता है।
  2. परमात्मा को पाने के प्रति मन का शंकाग्रस्त रहना।
  3. अत्यधिक भोग में लिप्त रहना या भोग से पूरी तरह दूर होकर वैरागी बन जाना।
  4. मन में अभिमान आ जाना।
  5. सहज साधना का मार्ग त्यागकर हठयोग आदि का सहारा लेना।
  6. ईश्वर को सर्वव्यापक न मानना।
  7. मत-मतांतरों के चक्कर में उलझे रहना।
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पाठ 9 साखियाँ एवं सबद | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

NCERT important questions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हंस किसके प्रतीक हैं? वे मानसरोवर छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते हैं?

उत्तर-
हंस जीवात्मा के प्रतीक हैं। वे मानसरोवर अर्थात् मेन रूपी सरोवर को छोड़कर अन्यत्र इसलिए जाना चाहते हैं क्योंकि उसे प्रभु भक्ति का आनंद रूपी मोती चुगने को मिल रहे हैं। ऐसा आनंद उसे अन्यत्र दुर्लभ है।

प्रश्न 2.
कबीर ने सच्चा संत किसे कहा है? उसकी पहचान बताइए।

उत्तर-
कबीर ने सच्चा संत उसे कहा है जो हिंदू-मुसलमान के पक्ष-विपक्ष में न पड़कर इनसे दूर रहता है और दोनों को समान दृष्टि से देखता है, वही सच्चा संत है। उसकी पहचान यह है कि किसी धर्म/संप्रदाय के प्रति कट्टर नहीं होता है और प्रभुभक्ति में लीन रहता है।

प्रश्न 3.
कबीर ने ‘जीवित’ किसे कहा है?

उत्तर-
कबीर ने उस व्यक्ति को जीवित कहा है जो राम और रहीम के चक्कर में नहीं पड़ता है। इनके चक्कर में पड़े व्यक्ति राम-राम या खुदा-खुदा करते रह जाते हैं पर उनके हाथ कुछ नहीं लगता है। इन दोनों से दूर रहकर प्रभु की सच्ची भक्ति करने वालों को ही कबीर ने ‘जीवित’ कहा है।

प्रश्न 4.
‘मोट चून मैदा भया’ के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर-
मोट चून मैदा भया के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों की बुराइयाँ समाप्त हो गई और वे अच्छाइयों में बदल गईं। अब मनुष्य इन्हें अपनाकर जीवन सँवार सकता है।

प्रश्न 5.
कबीर ‘सुबरन कलश’ की निंदा क्यों करते हैं?

उत्तर-
कबीर ‘सुबरन कलश’ की निंदा इसलिए करते हैं क्योंकि कलश तो बहुत महँगा है परंतु उसमें रखी सुरा व्यक्ति के लिए हर तरह से हानिकारक है। सुरा के साथ होने के कारण सोने का पात्र निंदनीय बन गया है।

प्रश्न 6.
‘सुबरन कलश’ किसका प्रतीक है? मनुष्य को इससे क्या शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए?

उत्तर-
‘सुबरन कलश’ अच्छे और प्रतिष्ठित कुल का प्रतीक है जिसमें जन्म लेकर व्यक्ति अपने-आप को महान समझने लगता है। व्यक्ति तभी महान बनता है जब उसके कर्म भी महान हैं। इससे व्यक्ति को अच्छे कर्म करने की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
कबीर मनुष्य के लिए क्रिया-कर्म और योग-वैराग्य को कितना महत्त्वपूर्ण मानते हैं?
उत्तर-

कबीर मनुष्य के लिए क्रिया-कर्म और योग-वैराग्य को महत्त्वपूर्ण नहीं मानते हैं क्योंकि मनुष्य इन क्रियाओं के माध्यम से ईश्वर को पाने का प्रयास करता है, जबकि कबीर के अनुसार ईश्वर को इन क्रियाओं के माध्यम से नहीं पाया जा सकता है।

प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को क्यों नहीं खोज पाता है?

उत्तर-
मनुष्य ईश्वर को इसलिए नहीं खोज पाता है क्योंकि वह ईश्वर का वास मंदिर-मस्जिद जैसे धर्मस्थलों और काबा-काशी जैसी पवित्र मानी जाने वाली जगहों पर मानता है। वह इन्हीं स्थानों पर ईश्वर को खोजता-फिरता है। वह ईश्वर को अपने भीतर नहीं खोजता है।

प्रश्न 9.
कबीर ने संसार को किसके समान कहा है और क्यों?

उत्तर-
कबीर ने संसार को श्वान रूपी कहा है क्योंकि जिस तरह हाथी को जाता हुआ देखकर कुत्ते अकारण भौंकते हैं उसी तरह ज्ञान पाने की साधना में लगे लोगों को देखकर सांसारिकता में फँसे लोग तरह-तरह की बातें बनाने लगते हैं। वे ज्ञान के साधक को लक्ष्य से भटकाना चाहते हैं।

प्रश्न 10.
कबीर ने ‘भान’ किसे कहा है? उसके प्रकट होने पर भक्त पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर-
कबीर ने ‘भान’ (सूर्य) ज्ञान को कहा है। ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त होने पर मनुष्य के मन का अंधकार दूर हो जाता है। इस अंधकार के दूर होने से मनुष्य के मन से कुविचार हट जाते हैं। वह प्रभु की सच्ची भक्ति करता है और उस आनंद में डूब जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि कबीर खरी-खरी कहने वाले सच्चे समाज सुधारक थे।

उत्तर-
कबीर ने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों को अत्यंत निकट से देखा था। उन्होंने महसूस किया कि सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता, भक्ति का आडंबर, मूर्तिपूजा, ऊँच-नीच की भावना आदि प्रभु-भक्ति के मार्ग में बाधक हैं। उन्होंने ईश्वर की वाणी को जन-जन तक पहुँचाते हुए कहामोको केही ढूँढे बंदे मैं तो तेरे पास में। इसके अलावा ऊँचे कुल में जन्म लेकर महान कहलाने वालों के अभिमान पर चोट करते हुए कहा-‘सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोय’। इससे स्पष्ट होता है कि कबीर खरी-खरी कहने वाले सच्चे समाज-सुधारक थे।

प्रश्न 2.
ज्ञान की आँधी आने से पहले मनुष्य की स्थिति क्या थी? बाद में उसकी दशा में क्या-क्या बदलाव आया? पठित ‘सबद’ के आधार पर लिखिए।

उत्तर-
ज्ञान की आँधी आने से पहले मनुष्य का मन मोह-माया, अज्ञान तृष्णा, लोभ-लालच और अन्य दुर्विचारों से भरा था। वह सांसारिकता में लीन था, इससे वह प्रभु की सच्ची भक्ति न करके भक्ति का आडंबर करता था। ज्ञान की आँधी आने के बाद मनुष्य के मन से अज्ञान का अंधकार और कुविचार दूर हो गए। उसके मन में प्रभु-ज्ञान का प्रकाश फैल गया। वह प्रभु की सच्ची भक्ति में डूबकर उसके आनंद में सराबोर हो गया।

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पाठ 8 एक कुत्ता और एक मैना | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

NCERT important questions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैनालघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरुदेव को श्रीनिकेतन के पुराने आवास में ले जाने में परेशानी क्यों हो रही थी?

उत्तर-
गुरुदेव को श्रीनिकेतन के पुराने आवास में ले जाने में इसलिए परेशानी हो रही थी क्योंकि-

  • गुरुदेव वृद्ध थे। उनका शरीर कमज़ोर हो चुका था।
  • उन्होंने तीसरी मंजिल पर अपना आवास बनाने का निर्णय लिया था।
  • लोहे की चक्करदार सीढ़ियों से उन्हें ले जाना आसान न था।
  • गुरुदेव अपने आप चल-फिर नहीं सकते थे।

प्रश्न 2.
गुरुदेव कैसे दर्शनार्थियों से डरते थे और क्यों ?

उत्तर-
गुरुदेव उन दर्शनार्थियों से डरते थे जो समय-असमय, स्थान आदि का ध्यान रखे बिना गुरुदेव से मिलने आ जाते थे और देर तक वह गुरुदेव से बातें किया करते थे। उनकी इस धृष्टता से गुरुदेव को कितनी परेशानी होती थी इसकी उन्हें चिंता नहीं रहती थी।

प्रश्न 3.
गुरुदेव को शांतिनिकेतन की तुलना में श्रीनिकेतन किस तरह सुविधाजनक लगा?

उत्तर-
गुरुदेव को शांतिनिकेतन की अपेक्षा श्रीनिकेतन कई तरह से सुविधाजनक लगा; जैसे-

  • श्रीनिकेतन का वातावरण अधिक शांतिमय था।
  • श्रीनिकेतन में गुरुदेव से मिलने वालों की भीड़ नहीं होती थी।
  • श्रीनिकेतन में वे अकेले रहते थे।
  • यहाँ उन्हें अधिक सुखानुभूति होती थी।

प्रश्न 4.
अचानक कुत्ते के आ जाने से गुरुदेव को कैसा लगा और क्यों?

उत्तर-
श्रीनिकेतन में अचानक कुत्ते के आ जाने से गुरुदेव को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसे श्रीनिकेतन के दो मील लंबे रास्ते का पता न था, न उसे किसी ने बताया था कि गुरुदेव यहाँ हैं। वह आत्मज्ञान से आया था।

प्रश्न 5.
कुत्ता गुरुदेव के पास क्यों आ गया? गुरुदेव का सान्निध्य उसे कैसा लगता था?

उत्तर-
कुत्ता अत्यंत स्वामिभक्त था। वह गुरुदेव से असीम लगाव रखता था। वह गुरुदेव का प्यार भरा स्पर्श पाने के लिए उनके पास गया था। जब गुरुदेव ने कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरा तो वह आँखें बंदकर रोम-रोम से स्नेह रस का अनुभव करने लगा। गुरुदेव के सान्निध्य की परितृप्ति उसके चेहरे पर झलकने लगी।

प्रश्न 6.
आरोग्य में लिखी कविता में गुरुदेव ने कुत्ते की किस अद्भुत विशेषता की ओर ध्यान आकर्षित कराया है?

उत्तर-
आरोग्य में लिखी कविता में गुरुदेव ने कुत्ते की अद्भुत विशेषता के बारे में लिखा है कि इस वाक्यहीन प्राणिलोक में यही अकेला जीव अच्छा-बुरा सबको भेदकर संपूर्ण मनुष्य को देख सकता है। यह उस आनंद को देख सका है जिसे प्राण दिया जा सकता है, जिसमें अहैतुक प्रेम ढाल दिया जा सकता है, जिसकी चेतना असीम चैतन्य लोक में राह दिखा सकती है।

प्रश्न 7.
गुरुदेव द्वारा लिखी कविता पढ़कर लेखक के सामने कौन-सी घटना साकार हो उठती है?

उत्तर-
गुरुदेव द्वारा लिखी कविता पढ़कर लेखक के सामने श्री निकेतन के तितल्ले वाली वह घटना साकार हो उठती है, जब स्वामिभक्त कुत्ता गुरुदेव को खोजते-खोजते दो मील चलकर आ गया और गुरुदेव के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव द्वारा उसकी पीठ पर हाथ फेरते ही उसका रोम-रोम स्नेह रस से आनंदित हो उठा।

प्रश्न 8.
गुरुदेव की मृत्यु पर कुत्ते ने अपनी संवेदना का परिचय कैसे दिया?

उत्तर-
गुरुदेव की मृत्यु के बाद जब उनका चिता भस्म कोलकाता से आश्रम लाया गया उस समय अपने सहज बोध के बल पर। आश्रम के द्वार तक आया और चिताभस्म के साथ अन्य आश्रमवासियों के साथ गंभीर भाव से उत्तरायण तक आया और कलश के पास थोड़ी देर तक बैठा रहा।

प्रश्न 9.
गुरुदेव पशु-पक्षियों से भी लगाव रखते थे। एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-
गुरुदेव पशु-पक्षियों से भी लगाव रखते थे, यह बात दो उदाहरणों से स्पष्ट हो जाती है-

  • गुरुदेव का स्वामिभक्त कुत्ता उनका सान्निध्य पाने के लिए सदैव आतुर रहता था। गुरुदेव भी उस पर प्यार भरा हाथ फेरकर उसे आनंदमय कर देते थे।
  • गुरुदेव ने दल से अलग होकर चल रही मैना को देखकर उसकी करुण स्थिति के बारे में अनुमान कर लिया।

प्रश्न 10.
गुरुदेव प्रकृति से निकटता रखते हुए उससे असीम प्रेम करते थे। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-
गुरुदेव प्रकृति के निकट रहकर उससे असीम प्रेम करते थे। यह इस बात से पता चलता है कि लेखक जब गुरुदेव से मिलने गया तो वे कुरसी पर बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यानमग्न होकर आनंदित हो रहे थे।
बगीचे में सवेरे-सेवेरे टहलते हुए वे एक-एक फूल-पत्ते को ध्यान से देख रहे थे। यह उनके प्रकृति प्रेम का उदाहरण है

प्रश्न 11.
मैना के चेहरे पर करुण भाव देखकर लेखक ने क्या अनुमान लगाया?

उत्तर-
गुरुदेव की बात पर विचार करके लेखक ने मैना के चेहरे के करुणभाव को देखकर लेखक ने यह अनुमान लगाया कि शायद यह विधुर मैना है जो पिछली स्वयंवर-सभा के युद्ध में घायल होकर परास्त हो गया था या विधवा पत्नी है जो पिछले बिड़ाल आक्रमण के समय पति को खोकर ईषत् चोट खाकर एकांत विहार कर रही है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक ने किस आधार पर ऐसा कहा है कि मैना दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है?

उत्तर-
लेखक तीन-चार साल से ऐसे नए मकान में रहने लगा है जिसकी दीवारों में सूराख छोड़ दिया गया है। इसी मकान में एक मैना दंपत्ति प्रतिवर्ष घोंसला बना लिया करता था। वे तिनके और चिथड़े लाकर जमा करते और नाना प्रकार की मधुर वाणी में गाना शुरू कर देते। उन्हें मकान में रहने वालों की कोई परवाह नहीं। यदि नर मैना कोई कागज का टुकड़ा लाते तो मादा और नर दोनों नाच-गाना और आनंद से सारा मकान मुखरित कर देते। मैना के ऐसे स्वभाव को देखकर ही लेखक ने कहा है कि मैना दूसरों पर अनुकंपा दिखाया करती है।

प्रश्न 2.
करुण भाव वाली मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने जो कविता लिखी थी, उसका सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-

गुरुदेव द्वारा लिखी कविता का सार इस प्रकार है। गुरुदेव ने अपने बगीचे में सेमल के पेड़ के नीचे एक अकेली मैना देखी जो लँगड़ाकर चल रही थी। इसके बाद गुरुदेव ने देखा कि वह मैना रोज़ सवेरे साथियों से अलग होकर कीड़ों का शिकार करती है, बरामदे में चढ़ जाती है, नाच-नाचकर चहल-कदमी करती है। गुरुदेव सोचते हैं कि समाज के किस दंड पर उसे निर्वासन मिला है। कुछ ही दूरी पर बाकी मैनाएँ बक-झक कर रही हैं, घास पर उछल-कूद रही हैं पर इसके जीवन में न जाने कहाँ गाँठ पड़ी है। इसकी चाल में वैराग्य का गर्व भी नहीं है।

प्रश्न 3.
लेखक को कौओं के संबंध में किस नए तथ्य का ज्ञान हुआ और कैसे?

उत्तर-
एक दिन गुरुदेव सवेरे-सवेरे बगीचे में टहल रहे थे। लेखक भी एक अध्यापक महोदय को लेकर उनके साथ हो लिया गुरुदेव एक-एक फूल-पत्ते को ध्यान से देखते हुए टहल रहे थे तभी गुरुदेव ने पूछा कि आश्रम के कौए कहीं चले गए। हैं क्या, उनकी आवाज़ सुनाई ही नहीं दे रही। लेखक अब तक कौओं को सर्वव्यापी पक्षी समझता था पर उस दिन पता चला कि कौए भी प्रवास पर चले जाते हैं। आखिर सप्ताह भर बाद ही आश्रम में बहुत से कौए दिखाई दिए।

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पाठ 7 मेरे बचपन के दिन | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

पाठ 7 – मेरे बचपन के दिन important Questions क्षितिज़ Class 9th हिंदी

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. महादेवी के परिवार में लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार होता था?

उत्तर

200 वर्ष पहले तक महादेवी के परिवार में लड़कियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था| महादेवी का जन्म परिवार में कई पीढ़ियों के बाद कुल-देवी दुर्गा की आराधना के बाद हुआ था| लेखिका का पालन-पोषण बड़े ही लाड़-प्यार से हुआ| माता-पिता ने खूब पढ़ाया-लिखाया और किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया गया|

2. लेखिका उर्दू-फारसी क्यों नहीं सीख पाईं?

उत्तर

लेखिका के परिवार में बाबा उर्दू-फारसी के अच्छे जानकार थे| वे चाहते थे कि लेखिका भी उर्दू-फारसी सीख ले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ| जब भी मौलवी साहब घर पर सिखाने आते थे, लेखिका चारपाई के नीचे छिप जातीं थीं| उन्हें उर्दू-फारसी सीखने में कोई रुचि नहीं थी| इस प्रकार वह कभी उर्दू-फारसी नहीं सीख पाईं|

3. महादेवी वर्मा की माँ के व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन करें|

उत्तर

लेखिका महादेवी वर्मा की माँ को हिंदी से बहुत लगाव था| वे पूजा-पाठ भी बहुत करती थीं| वह संस्कृत भी जानती थीं| गीता में उन्हें विशेष रुचि थी| उन्हें लिखने का भी शौक था| वह विशेष रूप से मीरा के पद भी गाती थीं|

4. बेगम साहिबा की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन किजिए|

उत्तर

बेगम साहिबा मुसलमान होते हुए भी लेखिका महादेवी जी के परिवार से भावनात्मक रूप से जुड़ी थीं| वह एक मिलनसार तथा खुले विचारों वाली महिला थी| उन्होंने महादेवी के परिवार के साथ ऐसे संबंध जोड़ लिए थे जैसे वह उन्हीं के परिवार का हिस्सा हो|   

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. बचपन की स्मृतियों में एक विचित्र-सा आकर्षण होता है। कभी-कभी लगता है, जैसे सपने में सब देखा होगा। परिस्थितियाँ बहुत बदल जाती हैं। अपने परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई। मेरे परिवार में प्राय: दो | सौ वर्ष तक कोई लड़की थी ही नहीं। सुना है, उसके पहले लड़कियों को पैदा होते ही परमधाम भेज देते थे। फिर मेरे बाबा ने बहुत दुर्गा पूजा की। हमारी कुलदेवी दुर्गा थीं। मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा | जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है। परिवार में बाबा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी। हिंदी का कोई वातावरण नहीं था। मेरी माता जबलपुर से आईं तब वे अपने साथ हिंदी लाईं। वे पूजा-पाठ भी बहुत करती थीं। पहले-पहल उन्होंने मुझको ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया।

(क) महादेवी के जन्म के समय समाज में लड़कियों की दशा कैसी थी?

(ख) महादेवी ने हिंदी किस प्रकार सीखी?

(ग) लेखिका का पालन-पोषण अन्य लड़कियों से भिन्न कैसे और क्यों हुआ?

उत्तर

(क) महादेवी के जन्म के समय समाज में लड़कियों को बोझ माना जाता था| उनके पैदा होते ही उन्हें मार दिया जाता था|

(ख) महादेवी के पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी और घर में हिंदी का कोई वातावरण नहीं था| जब उनकी माता जबलपुर से आईं तब उन्होंने महादेवी को पंचतन्त्र पढ़ना सिखाया और इस प्रकार उन्होंने हिंदी सीखी|

(ग) लेखिका के जन्म के समय लड़कियों को हीन दृष्टि से देखा जाता था, लेकिन उनका पालन-पोषण बड़े ही लाड़-प्यार से हुआ| उनकी बड़ी खातिर हुई तथा किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया गया|

2. फिर यहाँ कवि-सम्मेलन होने लगे | तो हम लोग भी उनमें जाने लगे। हिंदी का उस समय प्रचार-प्रसार था। मैं सन् 1917 में यहाँ आई थी। उसके उपरांत गांधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया और आनंद भवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केंद्र हो गया। जहाँ-तहाँ हिंदी का भी प्रचार चलता था। कवि-सम्मेलन होते थे तो क्रास्थवेट से मैडम हमको साथ लेकर जाती थीं। हम कविता सुनाते थे। कभी हरिऔध जी अध्यक्ष होते थे, कभी श्रीधर पाठक होते थे, कभी रत्नाकर जी होते थे, कभी कोई होता था। कब हमारा नाम पुकारा जाए, बेचैनी से सुनते रहते थे। मुझको प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। सौ से कम पदक नहीं मिले होंगे उसमें|

(क) प्रतिभागी के रूप में महादेवी कवि-सम्मलेन में कौन-सा स्थान प्राप्त करती थीं?

(ख) 1917 में स्वतंत्रता-संग्राम का क्या स्वरुप था?


(ग) सन् 1917 में हिंदी की क्या स्थिति थी?

उत्तर

(क) प्रतिभागी के रूप में महादेवी वर्मा को कवि-सम्मलेन में प्रथम पुरस्कार मिलता था| उन्हें सौ से अधिक पदक मिले थे| 

(ख) 1917 में गांधीजी के नेतृत्व में स्वतंत्रता-संग्राम शुरू हो चुका था| इसकी पहल गांधीजी ने सत्याग्रह से किया| जगह-जगह हिंदी के कवि-सम्मलेन के द्वारा जन-जागरण का कार्य शुरू हो चुका था|

(ग) सन् 1917 में हिंदी का खूब प्रचार-प्रसार हो रहा था और जगह-जगह हिंदी में कवि-सम्मलेन भी होते थे| हिंदी के प्रचार के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन को और भी व्यापक बनाया जा रहा था|

 

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पाठ 6 प्रेमचंद के फटे जूते  | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

पाठ 6 – प्रेमचंद के फटे जूते Extra important Questions क्षितिज़ Class 9th हिंदी

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. लोग फोटो में अधिक सुंदर क्यों दिखना चाहते हैं?

उत्तर

लोग फोटो में अधिक सुंदर दिखना चाहते हैं ताकि बाहरी दुनिया में उनकी प्रशंसा हो| इसके लिए वे जब फोटो खिंचवाते हैं तो कई प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग करते हैं, जिससे कि फोटो में सुंदर और भले दिख सकें| वे माँगी हुई पोशाक तक पहनने में नहीं हिचकिचाते| कई तो इत्र लगाकर फोटो खिंचाते हैं ताकि उनकी फोटो में भी खुशबू आ जाए|

2. लेखक के अनुसार, प्रेमचंद के जूते फटने का क्या कारण था?

उत्तर

लेखक के अनुसार, प्रेमचंद का जूता किसी सख्त चट्टान से टकराने के कारण ही फटा है| अर्थात् प्रेमचंद ने चट्टान से बचकर निकलने की कोशिश नहीं की बलिक उसे रास्ते से हटाने का प्रयास किया| इसका अर्थ है कि वे हमेशा समाज की कुरीतियों से लड़ते रहे भले ही उनका जीवन कष्टमय रहा हो|

3. प्रेमचंद की फोटो से उनके किस व्यक्तित्व का पता चलता है?

उत्तर

प्रेमचंद ने फोटो में फटे जूते पहन रखे हैं तथा बंद भी बेतरतीब ढंग से बँधे हुए हैं| उनकी पोशाक भी पुरानी है| इससे यही पता चलता है कि उनके वास्तविक जीवन और बाहरी जीवन में कोई अंतर नहीं था| उन्होंने हमेशा सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत किया| इस प्रकार उनकी फोटो से उनके सरल व्यक्तित्व का पता चलता है| 

4. ‘पर्दे के महत्त्व’ पर लेखक और प्रेमचंद में क्या अंतर है?

उत्तर

प्रेमचंद पर्दे को महत्त्व नहीं देते थे क्योंकि उन्होंने कभी अपनी वास्तविकता दुनिया से नहीं छिपाई| उन्होंने अपनी दुर्दशा पर पर्दा डालकर अच्छी छवि बनाने की कोशिश नहीं की| वहीँ दूसरी ओर, लेखक को पर्दे का महत्व पता है| वे अपनी वास्तविकता दुनिया से छिपा कर रखना चाहते हैं| प्रेमचंद की तरह वे भी अभाव तथा कमी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, लेकिन अपनी दुर्दशा पर पर्दा डालकर कमजोरियाँ छिपाते हैं| 

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड़ियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूंछे चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।

पाँवों में कैनवस के जते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं।

दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।

मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है। सोचता हूँ-फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी-इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है। यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है।

(क) फोटो में प्रेमचंद ने कैसे जूते पहन रखे थे?

(ख) प्रेमचंद के फटे जूते देखकर लेखक के मन में क्या विचार आया?

(ग) फोटो देखकर प्रेमचंद के किस गुण का पता चलता है?

उत्तर

(क) फोटो में प्रेमचंद ने फटे जूते पहन रखे थे, जिनके बंद बेतरतीब बँधे थे|

(ख) प्रेमचंद के फटे जूतों को देखकर प्रेमचंद के मन में यही विचार आया कि यदि फोटो खिंचवाते समय इन्होने ऐसी पोशाक पहन रखी है तो वास्तविक जीवन में उनका क्या हाल होगा| या फिर ये भी हो सकता है कि ये वास्तविक जीवन में भी ऐसे ही रहते होंगे|

(ग) लेखक के पास प्रेमचंद की जो फोटो थी, उससे यही पता चलता है कि वे वास्तविक जीवन में बहुत-ही सीधे-सादे व्यक्ति थे| वे अपना जीवन बड़ी सरलता से जीते थे| 

2. तुम फोटो का महत्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं। और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए! गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है।

(क) फोटो के महत्व को कौन नहीं जानता और क्यों?

(ख) लोग फोटो खिंचाने के लिए क्या-क्या करते हैं?

(ग) गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है- में छिपा व्यंग्य स्पष्ट कीजिए|

उत्तर

(क) लेखक के अनुसार प्रेमचंद फोटो के महत्व को नहीं जानते क्योंकि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ जो फोटो खिंचवाई थी, उसमें उनके जूते फटे हुए थे| 

(ख) लोग फोटो खिंचाने के लिए सुंदर बनते हैं| इसके लिए वे माँगी हुई पोशाक तक पहनने में नहीं हिचकिचाते| कई तो इत्र लगाकर फोटो खिंचाते हैं ताकि उनकी फोटो में भी खुशबू आ जाए|    

(ग) प्रस्तुत कथन में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो वास्तविक जीवन में कुछ और होते हैं लेकिन दिखावे के लिए अच्छे बनते हैं| दुनिया के सामने वे अपनी सुंदर छवि प्रस्तुत करते हैं| ऐसे आदमी बनावटी होते हैं और अपनी असलियत सबसे छिपा कर रखते हैं|

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पाठ 5 नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

पाठ 5 – नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया important Questions क्षितिज़ Class 9th हिंदी

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. सन् 1857 ई. के विद्रोही नेता धुंधूपंत नाना साहब कानपुर में असफल होने पर जब भागने लगे, तो वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके। देवी मैना बिठूर में पिता के महल में रहती थी; पर विद्रोह दमन करने के बाद अंगरेजों ने बड़ी ही क्रूरता से उस निरीह और निरपराध देवी को अग्नि में भस्म कर दिया। उसका रोमांचकारी वर्णन पाषाण हृदय को भी एक बार द्रवीभूत कर देता है।

कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंगरेजों का सैनिक दल बिठूर की ओर गया। बिठूर में नाना साहब का राजमहल लूट लिया गया; पर उसमें बहुत थोड़ी सम्पत्ति अंगरेजों के हाथ लगी। इसके बाद अंगरेजों ने तोप के गोलों से नाना साहब | का महल भस्म कर देने का निश्चय किया।

(क) अंग्रेजों ने किसका महल भस्म कर देने का निश्चय किया?

(ख) मैना कौन थी? वह महल में अकेली क्यों रह गई थी?

(ग) अंग्रेजों ने देवी मैना को अग्नि में क्यों भस्म कर दिया?

उत्तर

(क) अंग्रेजों ने 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन के विद्रोही नेता नाना साहब का महल भस्म कर देने का निश्चय किया|

(ख) मैना नाना साहब की पुत्री थी| 1857 में कानपुर में विद्रोह के असफल होने पर जब नाना साहब भागने लगे, तो जल्दबाजी में वे अपनी पुत्री देवी मैना को साथ नहीं ले जा सके और वह महल में अकेली रह गई|

(ग) नाना साहब ने अंग्रेजों के विरूद्ध हुए स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था| चूँकि देवी मैना नाना साहब की पुत्री थी, इसलिए अंग्रेजों ने बदला लेने के लिए जलती आग में डालकर भस्म कर दिया|

2. सेनापति ने दु:ख प्रकट करते हुए कहा, कि कर्तव्य के अनुरोध से मुझे यह मकान गिराना ही होगा। इस पर उस बालिका ने अपना परिचय बताते हुए कहा कि“मैं जानती हूँ, कि आप जनरल ‘हे हैं। आपकी प्यारी कन्या मेरी में और मुझ में बहुत प्रेम-सम्बन्ध था। कई वर्ष पूर्व मेरी मेरे पास बराबर आती थी और मुझे हृदय से चाहती थी। उस समय आप भी हमारे यहाँ आते थे और मुझे अपनी पुत्री के ही समान प्यार करते थे। मालूम होता है, कि आप वे सब बातें भूल गये हैं। मेरी की मृत्यु से मैं बहुत दु:खी हुई थी; उसकी एक चिट्ठी मेरे पास अब तक है।” यह सुनकर सेनापति के होश उड़ गये। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, और फिर उसने उस बालिका को भी पहिचाना, और कहा-“अरे यह तो नाना साहब की कन्या मैना है।”

(क) सेनापति ‘हे’ को किस बात का बहुत दुःख था?

(ख) देवी मैना सेनापति को कैसे जानती थी?

(ग) सेनापति नाना साहब के मकान को क्यों गिराना चाहते थे?

उत्तर

(क) सेनापति ‘हे’ देवी मैना की महल न गिराने के आग्रह को चाहकर भी नहीं मान सके क्योंकि वे अपने कर्तव्य के हाथों मजबूर थे| यही उनके दुःख का कारण था|

(ख) देवी मैना सेनापति की बेटी मेरी को जानती थी| वह उसकी प्रिय सहेली थी और कभी-कभी सेनापति भी अपनी बेटी के साथ उसके घर आया करते थे| वह उसे अपनी पुत्री समान मानते थे| इस प्रकार देवी मैना पहले से ही सेनापति ‘हे’ को जानती थी|

(ग) अंग्रेज नाना साहब की हर चीज को नष्ट कर देना चाहते थे| इसलिए उन्होंने सेनापति ‘हे’ के नेतृत्व में उनके महल को तोड़ने का आदेश दिया था| यही कारण था कि सेनापति नाना साहब के मकान को गिराना चाहते थे|

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन-कौन से तर्क देकर महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया?

उत्तर

बालिका मैना ने महल को बचाने के लिए सेनापति ‘हे’ से प्रार्थना की कि वह इसे न तोड़ें| सेनापति की पुत्री मैना की प्रिय सहेली थी| उसने यह भी याद दिलाया कि वह भी कभी-कभी अपनी पुत्री के साथ उसके घर आया करते थे| अतीत की बातें याद दिलाकर मैना ने सेनापति महल की रक्षा के लिए प्रेरित किया|

2. अंग्रेज नाना साहब के महल को नष्ट क्यों करना चाहते थे?

उत्तर

नाना साहब 1857 में हुए स्वतंत्रता आंदोलन के विद्रोह के प्रमुख नेताओं में से एक थे| उन्होंने कानपुर में हुए विद्रोह का नेतृत्व किया था| विद्रोह के दमन करने के बाद अंग्रेज उन्हें आंदोलन का नेतृत्व करने की सजा देना चाहती थी| इसलिए वे नाना साहब से जुड़ी हर चीज को नष्ट करना चाहते थे|  

3. मैना को खोजने के लिए जनरल आउटरम ने क्या प्रयास किए?

उत्तर

जनरल आउटरम ने नाना साहब के महल को चारों तरफ से घेर लिया| महल का फाटक तोड़कर अंग्रेज सैनिक भीतर घुस गए और मैना को खोजने लगे| उन्होंने महल का कोना-कोना छान मारा| 

4. सेनापति ‘हे’ ने मैना तथा राजमहल को बचाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए?

उत्तर

सेनापति ‘हे’ को देवी मैना से बहुत सहानुभूति थी| वो उसमे अपनी मृत पुत्री की छवि देखते थे| इसलिए उन्होंने मैना तथा राजमहल को बचाने के लिए जनरल आउटरम से प्रार्थना की कि दोनों को छोड़ दिया जाए| उन्होंने गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग के पास भी इस विषय में तार भेजा|

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पाठ 4 साँवले सपनों की याद | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

पाठ 4 – साँवले सपनों की याद Extra important Questions क्षितिज़ Class 9th हिंदी

1. सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है। 

इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र पिछले तमाम सफ़रों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने | सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा।

मुझे नहीं लगता, कोई इस सोए हुए पक्षी को जगाना चाहेगा। वर्षों पूर्व, खुद सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नज़र से नहीं, आदमी की नजर से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज़ का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है?

(क) सालिम अली किसकी तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं?

(ख) सालिम अली पक्षियों को किन नजरों से देखना चाहते थे?

(ग) मनुष्य पक्षियों की मधुर आवाज सुनकर रोमांच अनुभव क्यों नहीं कर सकता?

उत्तर

(क) प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो|

(ख) सालिम अली को पक्षियों से बहुत प्रेम था| वे पक्षियों को उनकी ही नजर से देखते थे| वे पक्षियों की सुरक्षा तथा उनके आनंद के बारे में सोचते थे| पक्षियों की सुरक्षा में उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था| 

(ग) मनुष्य पक्षियों की भाषा नहीं समझ सकता| वह उन्हें अपने मनोरंजन के साधन के रूप में देखता है| यही कारण है कि पक्षी कलरव अथवा अपनी मधुर आवाज के माध्यम से जिन भावनाओं को व्यक्त करते हैं, उन्हें सुनकर मनुष्य रोमांच का अनुभव नहीं करता| 

2. पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भाँडे फोड़े थे और दूध-छाली से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँह | में विश्राम किया था। कब दिल की धडकनों को एकदम से तेज करने वाले अंदाज़ में बंसी बजाई थी। और, पता नहीं, कब वृंदावन की पूरी दुनिया संगीतमय हो गई थी। पता नहीं, यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटनाक्रम की याद दिला देगा। हर सुबह, सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है | जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज़ पर सब किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का | माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं | से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा। | वृंदावन कभी कृष्ण की बाँसुरी के जादू से खाली हुआ है क्या!

(क) वृंदावन में सुबह-शाम क्या अनुभूति होती है?

(ख) यमुना नदी का साँवला पानी किस घटना-क्रम की याद दिलाता है?

(ग) वृंदावन किसकी जादू से खाली क्यों नहीं होता?

उत्तर

(क) वृंदावन में सुबह-शाम ऐसी अनुभूति होती है कि जैसे भीड़ को चीरते हुए कृष्ण आएँगे और अपनी बाँसुरी की मधुर आवाज सुनाने लगेंगे|

(ख) यमुना नदी का साँवला पानी वहाँ आने वाले को कृष्ण के बाललीला की याद दिलाता है| इतिहास में यहीं पर कृष्ण ने रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था| कब माखन भरे घड़े फोड़े थे और दूध-छाली से अपने मुँह भरे थे| यमुना किनारे घने पेड़ों की छांह में विश्राम किया था तथा मनमोहक बाँसुरी बजाई थी|

(ग) वृंदावन में वर्ष-भर तीर्थयात्री भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए आते रहते हैं| सुबह-शाम यमुना नदी के किनारे ऐसा लगता है मानो कृष्ण की बाँसुरी की मधुर आवाज सुनाई दे रही है| इसलिए वृंदावन कृष्ण की बाँसुरी की आवाज के जादू से कभी खाली नहीं होता| 

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. लेखक ने सालिम अली की अंतिम यात्रा का वर्णन कैसे किया है?

उत्तर

लेखक के शब्दों में, प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली किसी वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे थे, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो| ऐसा लग रहा था मानो सुनहरे पक्षियों के पंखों पर साँवले सपनों का एक झुंड सवार है और सालिम अली उसका नेतृत्व कर रहे हैं| वे सैलानियों की तरह पीठ पर बोझ लादे अंतहीन यात्रा पर चल पड़े हैं|    

2. वृंदावन में कृष्ण की मुरली का जादू हमेशा क्यों बना रहता है?

उत्तर

वृंदावन कृष्ण की नगरी के रूप में जाना जाता है| हिंदू तीर्थयात्री यहाँ वर्ष-भर कृष्ण के दर्शन के लिए आते रहते हैं| उन्हें यहाँ की गलियों में कृष्ण की बाँसुरी की मधुर धुन सुनाई पड़ती है| इस प्रकार वृंदावन में कृष्ण की मुरली जादू हमेशा बना रहता है|    

3. सालिम अली के अनुसार प्रकृति को किस नजर से देखना चाहिए?

उत्तर

सालिम अली के अनुसार प्रकृति को उसी के नजर से देखना चाहिए| प्रकृति को अपने आनंद के लिए नहीं, बल्कि उसकी सुरक्षा की दृष्टि से देखना चाहिए| लोग प्रकृति को अपने स्वार्थ पूर्ति का साधन-मात्र मानते हैं, जबकि सालिम अली प्रकृति की सुंदरता बनाए रखने में विश्वास रखते थे|

4. सालिम अली की तुलना टापू से न करके अथाह सागर से क्यों की गई है?

उत्तर

लेखक के अनुसार, सालिम अली ने प्रकृति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया था| उनका जीवन देखने में सरल था लेकिन उनका ज्ञान प्रकृति के संबंध में असीम था| उन्होंने किसी सीमा में बंधकर काम नहीं किया बल्कि प्रकृति के हर अनुभव को महसूस किया| उन्हें अथाह सागर की तरह प्रकृति से गहरा प्रेम था| इस प्रकार उन्होंने किसी छोटे टापू की तरह नहीं बल्कि गहरे सागर की तरह खुले संसार में प्रकृति का गहन अध्ययन किया| 

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पाठ 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

पाठ 3 – उपभोक्तावाद की संस्कृति important Questions क्षितिज़ Class 9th हिंदी

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. एक नयी जीवन-शैली अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है। उसके साथ आ रहा है एक नया जीवन-दर्शन-उपभोक्तावाद का दर्शन। उत्पादन बढ़ाने पर जोर है चारों ओर। यह उत्पादन आपके लिए है; आपके भोग के लिए है, आपके सुख के लिए है। ‘सुख’ की व्याख्या बदल गई है। उपभोग-भोग ही सुख है। एक सूक्ष्म बदलाव आया है नई स्थिति में उत्पाद तो आपके लिए हैं, पर

आप यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

(क) लेखक के अनुसार, नयी जीवन-शैली अपनाने से क्या हुआ है?

(ख) उपभोक्तावाद के दर्शन के कारण हमारी जीवन-शैली में कैसा बदलाव आया है?

(ग) सुख की व्याख्या किस प्रकार बदल गई है?

उत्तर

(क) लेखक के अनुसार, नयी जीवन-शैली अपनाने के साथ ही उपभोक्तावाद का नया सिद्धांत हमारे जीवन में प्रवेश कर रहा है|

(ख) उपभोक्तावाद का अर्थ है- उपभोग के लिए ही उत्पादन को बढ़ाना| नयी जीवन-शैली उपभोक्तावाद से प्रेरित है, जिसमें उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाता जाता है ताकि उपभोग के लिए साधन उपलब्ध हो सकें| उपभोक्तावाद के दर्शन के कारण हम उत्पाद के प्रति समर्पित होते जा रहे हैं|

(ग) आधुनिक युग में सुख की व्याख्या पूरी तरह बदल गई है| पहले लोग मानसिक और आध्यात्मिक सुख को ही वास्तविक सुख मानते थे| लेकिन अब उनके लिए सुख का अर्थ है धन-दौलत से परिपूर्ण होना| समाज में जो व्यक्ति जितना अधिक समृद्ध है, वह उतना ही अधिक सुखी है|

2. संभ्रांत महिलाओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हज़ार की सौंदर्य सामग्री होना तो मामूली बात है। पेरिस से परफ्यूम मॅगाइए, इतना ही और खर्च हो जाएगा। ये प्रतिष्ठा-चिह्न हैं, समाज में आपकी हैसियत जताते हैं। पुरुष भी इस दौड़ में पीछे | नहीं है। पहले उनका काम साबुन और तेल से चल जाता था। आफ़्टर शेव और कोलोन बाद में आए। अब तो इस सूची में दर्जन-दो दर्जन चीजें और जुड़ गई हैं।

(क) संभ्रांत महिलाओं से क्या आशय है?

(ख) ‘प्रतिष्ठा-चिन्ह’ का क्या तात्पर्य है?

(ग) आधुनिक युग में पुरूष किस दौड़ में शामिल हो गए हैं?

उत्तर

(क) संभ्रांत महिलाओं का अर्थ है संपन्न परिवारों की महिलाएँ, जो समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने में कोई कमी नहीं करतीं|

(ख) ‘प्रतिष्ठ-चिन्ह’ का तात्पर्य है मान-सम्मान का सूचक| जिस वस्तु के उपयोग से समाज में किसी की ऊँची हैसियत का पता चलता है, उसे प्रतिष्ठा-चिन्ह माना जाता है|

(ग) आधुनिक युग में महिलाओं के साथ-साथ पुरूष भी सौन्दर्य-सामग्री का उपयोग करने में पीछे नहीं हैं| वे केवल साबुन और शैम्पू के प्रयोग करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि कई अन्य प्रकार के सौन्दर्य-साधनों का उपयोग करने में नहीं हिचकते| वे महिलाओं की तरह रूप-सज्जा के दौड़ में शामिल हो गए हैं|

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. उपभोक्तावाद की संस्कृति हमारी जीवन-शैली को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?

उत्तर

उपभोक्तावाद की संस्कृति ने हमारी जीवन-शैली को पूरी तरह बदल दिया है| चारों ओर उत्पादन बढ़ाने पर जोर है| लोग उपभोग को ही वास्तविक सुख मानने लगे हैं| हम उत्पाद के प्रति समर्पित होते जा रहे हैं तथा आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं|

2. लोग महँगे उत्पाद का प्रयोग क्यों करते हैं?

उत्तर

लोग महँगे उत्पाद का प्रयोग करके समाज में अपनी हैसियत जताते हैं| वे इन्हें प्रतिष्ठा-चिन्ह मानते हैं| उदाहरण के लिए, संभ्रांत महिलाओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार की सामग्री होना मामूली बात है|

3. विज्ञापन आधुनिक समाज को किस तरह प्रभावित करते हैं?

उत्तर 

विज्ञापन तरह-तरह के उत्पादों के माध्यम से लोगों को लुभाने की जी तोड़ कोशिश करते हैं| समाज के लोग बहुविज्ञापित और कीमती ब्रांड के वस्तुओं को खरीदना शान की बात मानते हैं| सौंदर्य प्रसाधन की अंधाधुंध चमक में लोग खो कर रह गए हैं| हर माह उसमें नए उत्पाद जुड़ते जाते हैं और लोग अपनी हैसियत से बढ़कर उन पर खर्च कर रहे हैं|

4. हम बौद्धिक दासता के शिकार किस प्रकार हो रहे हैं?

उत्तर

बौद्धिक दासता का अर्थ है दूसरे को अपने से अधिक बुद्धिमान समझ कर उसी के तरह बनने की कोशिश करना| हम अमेरिकी तथा यूरोपीय देशों के उत्पाद को अधिक अच्छा मानकर प्रयोग करते हैं| हम अपने विवेक से काम नहीं लेते और विदेशी संस्कृति को अपना कर उनके जैसा बनना चाहते हैं|

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पाठ 2 ल्हासा की ओर | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

Important Questions for Class 9th:ल्हासा की ओर Kshitiz Hindi

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. वह नेपाल से तिब्बत जाने का मुख्य रास्ता है। फरी-कलिङपोङ का रास्ता जब नहीं खुला था, तो नेपाल ही नहीं हिंदुस्तान की भी चीजें इसी रास्ते तिब्बत जाया करती थीं। यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं, जिनमें कभी चीनी पलटन रहा करती थी। आजकल बहुत से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं। दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है, वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं। ऐसा ही परित्यक्त एक चीनी किला था। हम वहाँ चाय पीने के लिए ठहरे। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत सी तकलीफें भी हैं और कुछ आराम की बातें भी। वहाँ जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं। बहुत निम्नश्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते; नहीं तो आप बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं। चाहे आप बिलकुल अपरिचित हों, तब भी घर की बहू या सासु को अपनी झोली में से चाय दे सकते हैं। वह आपके लिए उसे पका देगी। मक्खन और सोडा-नमक दे दीजिए, वह चाय चोङी में कूटकर उसे दूधवाली चाय के रंग की बना के मिट्टी के टोटीदार बरतन (खोटी) में रखके आपको दे देगी। यदि बैठक की जगह चूल्हे से दूर है और आपको डर है कि सारा मक्खन आपकी चाय में नहीं पड़ेगा, तो आप खुद जाकर चोङी में चाय मथकर ला सकते हैं। चाय का रंग तैयार हो जाने पर फिर नमक-मक्खन डालने की जरूरत होती है।

(क) नेपाल-तिब्बत मार्ग किस-किस काम आता था?

(ख) तिब्बत में यात्रियों के लिए आराम की बातें क्या थीं?

(ग) नेपाल-तिब्बत मार्ग पर फौजी चौकियाँ और किले क्यों बने हुए हैं?

उत्तर

(क) नेपाल-तिब्बत मार्ग व्यापारिक मार्ग होने के साथ-साथ सैनिक रास्ता भी था| साथ ही यह आम आवागमन का भी मार्ग था|

(ख) तिब्बत में यात्रियों के लिए कई आराम की बातें थीं, जैसे वहाँ जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं| चाहे आप बिलकुल अपरिचित हों, तब भी घर की बहू या सासू को अपनी झोली में से चाय दे सकते हैं| वह आपके लिए उसके पका देगी| 

(ग) नेपाल-तिब्बत मार्ग पर अनेक फौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं क्योंकि पहले कभी यह सैनिक मार्ग था| इसलिए इसमें चीनी सैनिक रहा करते थे| आजकल इन किलों का उपयोग किसान करते हैं| 

2. अब हमें सबसे विकट डाँडा थोङ्ला पार करना था। डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ़ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे

अच्छी जगह है। तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए, तब तो खूनी को सज़ा भी मिल सकती है, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता। सरकार खुफ़िया-विभाग और पुलिस पर उतना खर्च नहीं करती और वहाँ गवाह भी तो कोई नहीं मिल सकता। डकैत पहिले आदमी को मार डालते हैं, उसके बाद देखते हैं कि कुछ पैसा है कि नहीं। हथियार का कानून न रहने के कारण यहाँ लाठी की तरह लोग पिस्तौल, बंदूक लिए फिरते हैं। डाकू यदि जान से न मारे तो खुद उसे अपने प्राणों का खतरा है। 

(क) तिब्बत के डाँड़े खतरनाक क्यों हैं?

(ख) डाँड़े डाकुओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह क्यों हैं?

(ग) तिब्बत में डाकू आदमियों को लूटने से पहले क्यों मार देते हैं? 

उत्तर

(क) तिब्बत के डाँड़े सोलह-सत्रह फुट की ऊँचाई पर स्थित हैं, जहाँ दूर-दराज तक कोई गाँव नहीं है| ये डाकुओं के छिपने की अच्छी जगह है, जिसके कारण वे खतरनाक हैं| 

(ख) डाँड़े डाकुओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह हैं क्योंकि यहाँ दूर-दूर तक गाँव नहीं हैं, आबादी नहीं है| नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता| यहाँ पुलिस का भी कोई डर नहीं है, यही कारण है कि डाकू इन्हें अपने लिए सुरक्षित जगह मानते हैं|

(ग) तिब्बत में हथियार रखने या न रखने के संबंध में कोई कानून-व्यवस्था नहीं है| डाकुओं को पता है कि यहाँ लोग पिस्तौल या बंदूक रखते हैं| इसलिए उन्हें अपनी जान का खतरा बना रहता है, इसलिए वे आदमियों को लूटने से पहले मार देते हैं|

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. नेपाल-तिब्बत मार्ग की विशेषताओं का वर्णन करें|

उत्तर

नेपाल-तिब्बत मार्ग व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था| इस मार्ग से ही नेपाल और हिंदुस्तान की चीजें तिब्बत जाया करती थीं| सैनिक मार्ग होने के कारण जगह-जगह फौजी चौकियाँ और किले बने हुए थे| इसमें चीनी सेना रहा करती थी| आजकल बहुत-से फौजी मकान गिर चुके हैं और किले के कई भागों में किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है|

2. लेखक के अनुसार, तिब्बत में यात्रियों के लिए कौन-सी आरामदायक सुविधाएँ हैं?

उत्तर

लेखक के अनुसार, तिब्बत में यात्रियों के लिए कई आरामदायक सुविधाएँ हैं| तिब्बत के समाज में जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं| चाहे आप बिलकुल अपरिचित हों, तब भी घर की बहू या सासू को अपनी झोली में से चाय दे सकते हैं| वह आपके लिए उसके पका देगी| बस निम्नश्रेणी के भिखमंगों को छोड़कर कोई भी अपरिचित व्यक्ति घर के अंदर जा सकता है| 

3. तिब्बत में हथियार का कानून न होने के कारण यात्रियों को किस खतरे का सामना करना पड़ता था?

उत्तर

लेखक की यात्रा के समय तक तिब्बत में हथियार रखने से संबंधित कोई कानून नहीं था| लोग वहाँ खुलेआम हथियार रखते थे| निर्जन और वीरान जगहों पर डाकुओं का खतरा मंडराता रहता था क्योंकि वहाँ पुलिस का कोई प्रबंध नहीं था| वे यात्रियों को लूटने से पहले मार दिया करते थे|

4. तिब्बत में प्रचलित जागीरदारी व्यवस्था का वर्णन करें|  

उत्तर

तिब्बत की जमीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बंटी है| इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों के हाथ में है| अपनी-अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी कराता है, जिसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं| खेती का प्रबंध देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए किसी राजा से कम नहीं होता|  

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पाठ 1 दो बैलों की कथा | Class 9th hindi Kshitiz Most Important Questions

Important Questions for Class 9th:दो बैलों की कथा Kshitiz Hindi| Extra Questions

1 जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ़ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्याई हुई गाय तो । अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है; किंतु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता हो; पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर एक विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दुख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं; पर आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है।

(क) ऋषि-मुनियों तथा गधे में क्या समानता देखी गई है?

(ख) किसी आदमी को गधा कहने का क्या अर्थ है?

(ग) गधे को बुद्धिहीन क्यों माना जाता है?

उत्तर

(क) ऋषि-मुनियों तथा गधे में यही समानता होती है कि दोनों का स्वभाव सरल और सहनशील होता है|

(ख) जानवरों में गधा अपनी मूर्खता के लिए प्रसिद्ध है| किसी आदमी को गधा कहने का अर्थ है कि वह पहले दरजे का बेवक़ूफ़ है|

(ग) गधे को बुद्धिहीन जानवर माना जाता है क्योंकि वह कभी किसी बात पर प्रतिक्रिया नहीं करता| उसे चाहे मारो या सड़ी हुई खराब घास खिलाओ कभी क्रोध नहीं करता|

2. देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श | को नीचा करते हैं। अगर वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते तो शायद  गधे से नीचा है| सभ्य कहलाने लगते। जापान की मिसाल सामने है। एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।
लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह | है ‘बैल’। जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में ‘बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे; मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है। और भी कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट कर देता है; अतएव उसका स्थान गधे से नीचा है।

(क) ‘बछिया का ताऊ’ किसे कहा जाता है?

(ख) बैल को गधे का छोटा भाई क्यों कहा गया है?

(ग) भारतवासियों को अमेरिका में क्यों घुसने नहीं दिया जाता है?

उत्तर

(क) ‘बछिया का ताऊ’ बैल को कहा जाता है|

(ख) बैल को गधे का छोटा भाई कहा गया है क्योंकि मूर्खता और सरल-सहनशीलता का गुण उसमें गधे से कम है| बैल भी गधे की तरह ही सीधा और सहनशील होता है लेकिन कभी-कभी असंतुष्ट होने पर क्रोधित होकर रोष व्यक्त करता है तथा हमला भी कर देता है|

(ग) भारतवासियों के अत्यधिक सरल स्वभाव के कारण उनके साथ गलत व्यवहार किया जाता है| उन्हें यह कहकर अमेरिका में घुसने नहीं दिया जाता है कि उनके निम्न रहन-सहन के कारण वे जीवन के आदर्श को नीचे गिराते हैं|

3. झूरी काछी के दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती। दोनों पछाईं जाति के थे-देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊँचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक, दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते। थे-विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हलकी-सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला-हिलाकर चलते, उस वक्त हर एक की यही चेष्टा होती थी कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गरदन पर रहे। दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते, तो एक-दूसरे को चाट-चूटकर अपनी थकान मिटा लिया करते। नाँद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नाँद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता, तो दूसरा भी हटा लेता था।

(क) हीरा और मोती बैल आपस में किस प्रकार बात करते थे?

(ख) हीरा और मोती में ऐसी कौन-सी गुप्त शक्ति थी, जो मनुष्य में नहीं होती?

(ग) प्रस्तुत गद्यांश में सच्ची मित्रता के कौन-से लक्षण प्रकट हुए हैं?

उत्तर

(क) हीरा और मोती बैल आमने-सामने या आस-पास बैठकर एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे|

(ख) हीरा और मोती दो बैल थे, जो आपस में बिना बोले एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते थे| मनुष्य इस भावना को प्रकट करने के लिए भाषा का प्रयोग करता है लेकिन पशु होने के बावजूद इनमें ऐसी कोई गुप्त शक्ति थी, जिसके माध्यम से वे एक-दूसरे के मन की बात जान लेते थे|

(ग) लेखक ने दो बैलों के माध्यम से सच्ची मित्रता के असल मायने प्रकट किए हैं कि एक-दूसरे के प्रति प्रेम व्यक्त करने के लिए भाषा की आवश्यकता नहीं होती| दोनों आपस में शरारत, मौज-मस्ती, धौल-धप्पा करते हैं, जो सच्ची मित्रता के विश्वसनीय पहलू हैं|

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर –

1. लेखक ने गधे का छोटा भाई किसे और क्यों कहा है?

उत्तर

लेखक ने गधे का छोटा भाई बैल को कहा है क्योंकि मूर्खता और सरल-सहनशीलता का गुण उसमें गधे से कम है| बैल भी गधे की तरह ही सीधा और सहनशील होता है लेकिन कभी-कभी असंतुष्ट होने पर क्रोधित होकर रोष व्यक्त करता है तथा हमला भी कर देता है|

2. प्रस्तुत पाठ में दिए गए उदाहरण के साथ हीर-मोती की सच्ची मित्रता का वर्णन करें|

उत्तर

हीरा और मोती दो बैल थे, जो आपस में बिना बोले एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते थे| दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे| जिस वक्त वे दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते तो हर वक्त उनकी यही कोशिश होती थी ज्यादा-से-ज्यादा बोझ उनकी गर्दन पर रहे| दोनों एक साथ खाते थे और एक ही साथ बैठते थे|

3. झूरी के ससुराल से भागने पर बैलों के साथ उसने कैसा व्यवहार किया?

उत्तर

जब दोनों बैल झूरी के ससुराल से भागकर वापस अपने मालिक के पास आए तो उसने बहुत ही प्यार से उन्हें गले लगा लिया| उसके मन में अपने बैलों के प्रति बहुत स्नेह भरा था| वह बैलों को देखकर स्नेह से गदगद हो गया और उनका प्रेमालिंगन किया| 

4. दोनों बैल कसाई की कैद से कैसे मुक्त हुए? 

उत्तर

नीलामी के बाद जैसे ही दोनों बैल कसाई के साथ खेत के रास्ते से आगे बढ़े, उन्हें वह जगह जानी-पहचानी लगी| वही खेत, वही बाग़, वही गाँव सब परिचित-से लगने लगे| यह अनुभव होते ही उनकी चाल प्रतिक्षण तेज क्यों होने लगी| दोनों दौड़कर अपने स्थान पर आ गए| कसाई भी उनके पीछे दौड़कर आया और उन पर अपना हक़ जमाने लगा| झूरी ने अपने बैलों को देखकर उन्हें गले से लगा लिया और कहा कि वे उसके बैल हैं| जैसे ही कसाई जबरदस्ती बैलों को ले जाने के लिए आगे बढ़ा, मोती ने सींग चलाया| मोती ने फिर पीछा किया तो कसाई भाग गया| इस प्रकार दोनों उसके कैद से आजाद हुए| 

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