फ़ीचर लेखन
प्रश्न :- निम्न में से किसी एक विषय पर फ़ीचर लेखन कीजिए-
मेरे विद्यालय का पुस्तकालय
अथवा
मेट्रो रेल का सफ़र
उत्तर:-
मेरे विद्यालय का पुस्तकालय
पुस्तकों का विशाल भण्डार, सुहाना मौन | व्यवस्थित मेज़-कुर्सियाँ | सेवा में तत्पर पुस्तकालयाध्यक्ष | यह है मेरे विद्यालय का पुस्तकालय | मेरे विद्यालय के पुस्तकालय के तीन तल हैं | निचले तल में समाचारपत्र, पत्रिकाएँ तथा बैठने के लिए मेज़-कुर्सियाँ हैं | बीच वाले तल में पुस्तकों की आलमारियाँ हैं | लगभग तीस-चालीस आलमारियों में हज़ारों मूल्यवान पुस्तकें व्यवस्था से सजी हैं | छात्र और अध्यापक अपनी इच्छा से इनमें से पुस्तकें खोजते हैं, पढ़ते हैं और पढ़कर वापस मेज़ पर छोड़ देते हैं | इस पुस्तकालय में पाठ्यक्रम से सम्बंधित पुस्तकें तो हैं ही; असली आकर्षण हैं- अन्य पुस्तकें- कथा कहानियों की पुस्तकें, महापुरुषों की जीवनियाँ, विश्व भर को चौकाने वाले कारनामे, वैज्ञानिक आविष्कार आदि-आदि | छात्र इन पुस्तकों को पुस्तकालय के तीसरे तल पर रखी मेज़-कुर्सियों पर बैठकर पढ़ सकते हैं | चाहे तो दो पुस्तकें घर भी ले जा सकते हैं | विद्यालय के तीन हज़ार विद्यार्थियों में से चालीस-पचास छात्र ही पुस्तकालय में दिखाई देते हैं | यहाँ बोलना बिल्कुल मना है | ज़रा भी बोले तो पुस्तकालयाध्यक्ष की पैनी नज़रें उन्हें मौन करा देती हैं | पुस्तकालय सचमुच ज्ञान की गंगा है | मेरे जैसे विद्या-व्यसनी के लिए तो यह सैरगाह है | मुझे ख़ाली समय में पुस्तकों की आलमारी के सामने खड़े होकर नये-नये शीर्षक देखना और जानकारी लेना अच्छा लगता है |
मेट्रो रेल का सफ़र
सामान्य भारतीय रेल और मेट्रो रेल के सफ़र में अंतर है | मेट्रो की यात्रा साफ़-सुथरी, वातानुकूलित और आरामदायक होती है | इसकी टिकट खिड़की से लेकर सवारी डिब्बे तक कहीं भी धूल-धक्कड़ या धींगामुश्ती नहीं होती | टिकट-खिड़की पर या तो भीड़ होती नहीं; होती भी है तो लोग पंक्तिबद्ध होकर टिकट लेते हैं | टिकट देने वाले कर्मचारी भी बड़ी कुशलता से टिकट बाँटते हैं | टोकन चेक़ करने की प्रणाली भी इलेक्ट्रानिक होती है इसलिए यात्री भी समझ लेते हैं कि यहाँ सबकुछ व्यवस्था के अनुरूप ही चलेगा, मनमानी से नहीं | मेट्रो प्लेटफ़ॉर्म तक पहुँचने के लिए या तो स्वचालित सीढ़ियाँ होती हैं, या साफ़-सुथरे चौड़े मार्ग होते हैं | प्लेटफ़ॉर्म बिल्कुल स्वच्छ और जगमगाते हुए होते हैं | प्रायः हर तीन से पाँच मिनट में एक गाड़ी आ जाती है | उसके दरवाजे स्वचालित रूप से खुलते और बंद होते हैं | अंदर साफ़-सुथरी सीटें होती हैं | खड़े यात्रियों के सहारे के लिए बीच में लटकनें लगी होती हैं |
मेट्रो रेल में भीड़ न हो तो उसके सुख का कहना ही क्या ? परन्तु भीड़ होने पर भी किसी प्रकार की धक्का-मुक्की, गंदगी या हुल्लड़बाज़ी नहीं होती | महानगरीय सभ्यता में ढले हुए लोग बड़े ही अनुशासन से यात्रा करते हैं | सबसे बड़ी सुविधा यह होती है कि हर स्टेशन के आने पर बराबर घोषणाएँ होती रहती हैं | इससे यात्रियों को बहुत ही आसानी होती है | यद्यपि मेट्रो की सुविधा को देखते हुए आजकल उसमें भी भीड़ बढ़ने लगी है, किन्तु यह भीड़ अराजक नहीं होती | इसलिए इसमें सफ़र करना बहुत आरामदायक है | इसमें लेट होने और समय पर न पहुँचने की परेशानियाँ भी न के बराबर हैं | वास्तव में महानगरों के आतंरिक यातायात के लिए यह सर्वोत्तम साधन है |
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