चार्ली चैप्लिन यानी हम सब Class 12 Hindi Aroh NCERT Books Solutions
अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न 1. लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?
चार्ली चैप्लिन अपने समय के एक महान कलाकार थे। उनकी फिल्में आज समाज और राष्ट्र के लिए अनेक संदेश देती है। यद्यपि पिछले 75 वर्षों से चार्ली के बारे में बहुत कुछ कहा गया और अगले 50 वर्षो तक बहुत कुछ कहा जाएगा। इसका पहला कारण तो यह है कि चार्ली के बारे में कुछ ऐसी रीलें मिली है जिनके बारे में कोई कुछ नहीं जानता था। अतः उसका मूल्यांकन तथा उस पर काफी चर्चा होगी। इसके साथ साथ चार्ली ने भारतीय जनजीवन पर जो एक अपनी अमिट छाप छोड़ी है अभी उसका मूल्यांकन बाकी है।
प्रश्न 2. चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने और वर्ण व्यवस्था को तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाने का अर्थ है- उसे सभी लोगों के लिए उपयोगी बनाना। चार्ली से पहले की फिल्में एक विशेष वर्ग के लिए तैयार की जाती थी। इन फिल्मों की कथावस्तु भी वर्ग विशेष से संबंधित होती थी परंतु चार्ली ने निम्न वर्गों को अपनी फिल्मों में स्थान दिया था। यह कहना उचित होगा कि चार्ली ने फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया।
वर्ण तथा वर्ग व्यवस्था को तोड़ने से अभिप्राय है कि फिल्में किसी विशेष वर्ग तथा जाति के लिए न बनाना। फिल्मों को सभी वर्गों के लोग देख सकते हैं। उदाहरण के रूप में समाज के सुशिक्षित लोगों के लिए फिल्में तैयार की जाती थी। परंतु चार्ली ने वर्ग विशेष तथा वर्ण व्यवस्था की जकड़न को भंग कर दिया और आम लोगों के लिए फिल्में बनाई। परिणाम यह हुआ कि उनकी फिल्में पूरे विश्व में लोकप्रिय बन गई।
प्रश्न 3. लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गाँधी और नेहरू ने भी उनका सानिध्य क्यों चाहा?
लेखक ने राज कपूर द्वारा बनाई गई ‘आवारा’ नामक फिल्म को चार्ली का भारतीयकरण कहा है। जब आलोचकों ने राज कपूर पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने चार्ली की नकल की है तो उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। ‘आवारा’ और ‘श्री 420’ के बाद तो भारतीय फिल्मों में यह परंपरा चल पड़ी। यही कारण था कि दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी ने चार्ली का अनुसरण करते हुए स्वयं पर हँसने की परंपरा को बनाए रखा।
नेहरू और गाँधी चार्ली के साथ रहना पसंद करते थे क्योंकि वे दोनों स्वयं पर हँसने की कला में निपुण थे।
प्रश्न 4. लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप ऐसे कुछ उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ साथ दिए हों।
लेखक ने कलाकृति व रस के संदर्भ में ‘रस’ को श्रेयस्कर माना है। मानव जीवन में हर्ष और विषाद स्थितियाँ आती रहती हैं। करुण रस का हास्य रस में बदल जाना, एक नवीन रस की मांग उत्पन्न करता है। परंतु यह भारतीय कला में नहीं है। ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। जहाँ कई रस एक साथ आ जाते हैं। उदाहरण के रूप में नायक नायिका वार्तालाप कर रहे हैं, इस स्थिति में श्रृंगार रस हैं। यदि वहाँ पर अचानक साँप आ जाए तो श्रृंगार रस भय में परिवर्तित होकर भयानक रस को जन्म देता है
प्रश्न 5. जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया था?
चार्ली को जीवन में निरंतर संघर्ष का सामना करना पड़ा। उसकी माँ परित्यक्ता नारी थी। यही नहीं वह दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री भी थी तथा उसकी माँ पागल भी हो गई थी। नानी की ओर से वे खानाबदोश थे परंतु उनके पिता यहूदी बंशी थे। संघर्ष के कारण उन्हें जो जीवन मूल्य मिले। वे उनके करोड़पति बन जाने पर भी ज्यों की त्यों बने रहे। इस लंबे संघर्ष ने उनके व्यक्तित्व में त्रासदी और हास्य को उत्पन्न करने वाले तत्वों का मिश्रण कर दिया। उन्होंने अपनी फिल्मों में भी शासकों की गरिमामय दशा को दिखाया और उन पर लात मारकर सबको हँसाया।
प्रश्न 6. चार्ली चैपलिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?
चार्ली चैपलिन की फिल्मों में त्रासदी/करुणा/हास्य का अनोखा सामंजस्य भारतीयकला और सौंदर्य शास्त्र की परिधि में नहीं आता। इसका कारण यह है कि भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में कहीं भी करुण रस का हास्य रस में बदल जाना नहीं मिलता और रामायण और महाभारत में हास्य के जो उदाहरण मिलते हैं; वे हास्य दूसरों पर हैं। अर्थात पात्र दूसरे पात्रों पर हँसते हैं। संस्कृत नाटकों का विदूषक थोड़ी बहुत बदतमीजी करते दिखाया गया है। उसमें भी करुण और हास्य का मिश्रण नहीं है।
प्रश्न 7. चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है?
चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर तब हँसता है जब वह स्वयं को आत्मविश्वास से लबरेज, गर्वोन्नत, सभ्यता, सफलता और समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से अधिक शक्तिशाली और श्रेष्ठ रूप में दिखाता है। इस स्थिति में समझ लेना चाहिए कि यह सारी गरिमा सुई-चुभे गुब्बारे की तरह फुस्स हो जाएगी। इस स्थिति में चार्ली सबसे ज्यादा हँसता है।
Table of Contents
चार्ली चैप्लिन यानी हम सब
अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1:
चार्ली चैप्लिन की जिंदगी ने उन्हें कैसा बना दिया? चार्ली चैप्लिन यानी हम सब पाठ के आधार पर स्पष्ट कजिए।
उत्तर –
चार्ली एक परित्यक्ता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री के बेटे थे। उन्होंने भयंकर गरीबी और मां के पागलपन से संघर्ष करना सीखा। साम्राज्यवाद, औद्योगिक क्रांति पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज का तिरस्कार उन्होंने सहन किया। इसी कारण मासूम चैप्लिन को जो जीवन मूल्य मिले, वे करोड़पति हो जाने के बाद भी अंत तक न रहे। इन परिस्थितियों ने चैप्लिन में fi का वह बधा सदा जीवित रखा, जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है, जितना में हैं और हँस देता है। यही यह कलाकार है, जिसने विषम परिस्थितियों में भी हिम्मत से काम लिया।
प्रश्न 2:
चार्ली चैप्लिन ने दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था की कैसे तोडा हैं?
उत्तर –
चार्ली की फिल्में बच्चे-बूढे, जवान, वयस्कों सभी में समान रूप से लोकप्रिय हैं। यह चैप्लिन का चमत्कार ही है कि उनकी फिल्मों को पागलखाने के मरीजों, विकल मस्तिष्क लोगों से लेकर आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभावाले व्यक्ति तक एक स्तर पर कहीं अधिक सूक्ष्म रसास्वाद के साथ देख सकते हैं। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि हर वर्ग में लोकप्रिय इस कलाकार ने फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया और दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को तोड़ा। कहीं-कहीं तो भौगोलिक सीमा, भाषा आदि के बंधनों को भी पार करने के कारण इन्हें सार्वभौमिक कलाकार कहा गया है।
प्रश्न 3:
चैप्लिन के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिनके कारण उन्हें भुलाना कठिन हैं?
अथवा
चार्ली के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
चैप्लिन के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं जिनके कारण उन्हें भुलाना कठिन है-
1, चाली चैप्लिन सदैव खुद पर हँसते थे।
2. वे सदैव युवा या बच्चों जैसा दिखते थे।
3. कोई भी व्यक्ति उन्हें बाहरी नहीं समझता था।
4. उनकी फिल्मों में हास्य कब करुणा के भाव में परिवर्तित हो जाता था पता नहीं चलता था।
प्रश्न 4:
चार्ली चैप्लिन कौन था? उसके भारतीयकरण से लेखक का क्या आशय हैं?
उत्तर –
चार्ली चैप्लिन पक्षिम का महान कलाकार था जिसने हास्य मूक फ़िल्में बनाई। उसकी फिल्मों में हास्य करुणा में बदल जाता था। भारतीय रस सिद्धति में इस तरह का परिवर्तन नहीं पाया जाता। यहाँ फ़िल्म का अभिनेता स्वयं पर नहीं होता। राजकपूर ने ‘आवारा’ फिल्म को ‘द ट्रैम्प’ के आधार पर बनाया। इसके बाद श्री 420′ व कई अन्य फिल्म के कलाकारों ने चालों का अनुकरण किया।
प्रश्न 5:
भारतीय जनता ने चार्ली के किस ‘पिनोमेनन को स्वीकार किया? उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
भारतीय जनता ने चाली के उस फिनोमेनन को स्वीकार किया जिसमें नायक स्वयं पर हँसता है। यहाँ उसे इस प्रकार कार किया गया से बत्तख पानी को स्वीकारती है। भारत में राजकपूर, जानी वाकर, अमिताभ बच्चन, शम्मी कपूर, देवानंद आदि कलाकारों ने ऐसे चरित्र के अभिनय किए। लेखक ने चाल का भारतीयकरण राजकपूर को कहा। उनकी फिल्म अवारा सिर्फ ‘द ट्रैप’ का शब्दानुवाद ही नहीं थी, बल्कि चार्ली का भारतीयकरण ही थी।
प्रश्न 6:
पश्चिम में बार-बार चार्ली का पुनजीवन होता हैं।-कैसे?
उत्तर –
लेखक बताता है कि पश्चिम में चाली द्वारा निभाए गए चरित्रों की नकल बार-बार की जाती है। अनेक अभिनेता उसकी तरह नकल करके उसकी कला को नए रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार चार्ली नए रूप में जन्म लेता रहता है।
प्रश्न 7:
चार्ली के जीवन पर प्रभाव डालने वाली घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
बचपन को किन दो घटनाओं ने धानी के जीवन पर गहरा एथ रथायी प्रभाव डाला?
उत्तर –
चार्ली के जीवन पर दो घटनाओं का प्रमुख प्रभाव पड़ा, जो निम्नलिखित हैं।
1. एक बार चार्ली बीमार हो गया। उस समय उसकी मों ने बाइबिल से ईसा मसीह का जीवन चरित्र पढ़कर सुनाया। ईसा के सूली पर पढ़ने के प्रसंग पर माँ बेटे दोनों रोने लगे। इस कथा से उसने करुणा, स्नेह व मानवता का पाठ पदा।
2. दूसरी घटना चाल के घर के पास की है। पास के कसाईखाने से एक बार एक भेड़ किसी प्रकार जान बचाकर भाग निकली। उसको पकड़ने के लिए उसके पी भागने वाले कई बार फिसलकर सड़क पर गिरे जिसे देखकर दर्शकों ने इसी के ठहाके लगाए। इसके बाद भेड़ पकड़ी गई। चाली ने भेड़ के साथ होने वाले व्यवहार का अनुमान लगा लिया। उसका हृदय करुणा से भर गया। हाय के दाद करुणा का यही भाव उसकी भावी फ़िल्मों का आधार बना।
प्रश्न 8:
चार्ली की फ़िल्मों की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं?
उत्तर –
लेखक ने चालों की फिल्मों की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं।
1. इनमें भाषा का प्रयोग बहुत कम है।
2. इनमें मानवीय स्वरूप अधिक है।
3, चालों में सार्वभौमिकता है।
4. वह सदैव चिर युवा या बच्चे जैसा दिखता है।
5. वह किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगता।
6. वह सबको अपना स्वरूप लगता है।
प्रश्न 9:
अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम क्या होते हैं?
उत्तर –
अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली ही होते हैं जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है और अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम क्लैब्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी- कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलतः हम सब चार्ली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।
प्रश्न 10:
‘चाली की फिल भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्ध पर नहीं।’-चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
हास्य फ़िल्मों के महान अभिनेता एवं निर्देशक चार्ली चैप्लिन की सबसे बड़ी विशेषता थी-करुणा और हास्य के तत्वों का सामंजस्य। उनकी फिल्मों में भावना प्रधान अभिनय दर्शकों को बाँधे रहता है। उनकी फ़िल्मों में भावनाओं की प्रधानता है, बुद्ध तत्व की नहीं। चार्ली को बचपन से ही करुणा और हास्य ने जबरदस्त रूप से प्रभावित किया है। वह बाइबिल पढ़ते हुए ईसा के सूली पर चढ़ने की घटना पर रो पड़ा और कसाई खाने से भागी भेड़ देखकर वह दयाद्र। होता है तो उसे पकड़ने वाले फिसल-फिसलकर गिरते हुए हँसी पैदा करते हैं।
प्रश्न 11:
चार्ली चैप्लिन’ का जीवन किस प्रकार हास्य और त्रासदी का रूप बनकर भारतीयों को प्रभावित करता है। उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर –
चार्ली चैप्लिन का जीवन हास्य और त्रासदी का रूप बनकर भारतीयों को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करता है-
1. प्रसिद्ध भारतीय सिनेजगत के कलाकारों-राजकपूर, दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, देवानंद आदि के अभिनय पर चार्ली चैप्लिन के अभिनय का प्रभाव देखा जा सकता है।
2. चार्ली चैप्लिन के असंख्य प्रशंसक भारतीय हैं जो उनके अभिनय को बहुत पसंद करते हैं।
3, उन्होंने जीवन की त्रासदी भरी घटनाओं को भी हास्य द्वारा अभिव्यक्त करके दर्शकों को प्रभावित किया।
चार्ली चैप्लिन यानी हम सब
पठित गद्यांश
निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
पौन शताब्दी से चैप्लिन की कला दुनिया के सामने है और पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है। समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं से खिलवाड़ करता हुआ चार्ली आज भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है जो उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे। पश्चिम में तो बार बार चालों का पुनर्जीवन होता ही है, विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से चार्ली को घड़ी ‘सुधारते।’ या जूते खाने की कोशिश करते हुए देख रहा है। चैप्लिन की ऐसी कुछ फ़िल्में या इस्तेमाल न की गई रीलें भी मिली हैं जिनके बारे में कोई जानता न था। अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा।
प्रश्न
(क) चार्ली की जन्मशती का वर्ष क्यों महत्वपूर्ण हैं?
(ख) भारत में चार्ली की क्या स्थिति हैं?
(ग) विकासशील देशों में चलिन की लोकप्रियता का क्या कारण हैं?
(घ) लेखक ने यह क्यों कहा कि चैप्लिन पर करीब पचास वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?
उत्तर –
(क) चार्ली की जन्मशती का वर्ष महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इस वर्ष उनकी पहली फ़िल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ के 75 वर्ष पूरे हो गए। हैं। वह पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है।
(ख) चार्ली अब समय, भूगोल व संस्कृतियों की सीमाओं को लाँघ चुका है। अब वह भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है। वे उसकी कला को बुढ़ापे तक याद रखेंगे।
(ग) विकासशील देशों में टेलीविजन व वीडियो का प्रसार हो रहा है जिसके कारण एक बड़ा व नया दर्शक वर्ग फ़िल्मी कार्यक्रमों से जुड़ रहा है। वह चार्ली को घड़ी ‘सुधारते।’ या जूते खाने की कोशिश करते हुए देख रहा है।
(घ) लेखक ने यह बात इसलिए कही है क्योंकि चैप्लिन की कुछ फ़िल्मों की रीलें मिली हैं जो इस्तेमाल नहीं हुई हैं। इनके बारे में किसी को जानकारी नहीं थी इसलिए अभी उन पर काम होना शेष है।
प्रश्न 2.
उनकी फ़िल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्ध पर नहीं। मेट्रोपोलिस’, ‘द कैबिनेट ऑफ़ डॉवर कैलिगारी’, ‘द रोवध सील’, ‘लास्ट इयर इन मारिएनबाड’, ‘द सैक्रिफाइस’ जैसी फिल्में दर्शक से एक उच्चतर अहसास की माँग करती हैं। चैप्लिन का चमत्कार यही है कि उनकी फिल्मों को पागलखाने के मरीजों, विकल मस्तिष्क लोगों से लेकर आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले व्यक्ति तक कहीं एक स्तर पर और कहीं । सूक्ष्मतम रसास्वादन के साथ देख सकते हैं। चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। यह अकारण नहीं है कि जो भी व्यक्ति, समूह या तंत्र गैर बराबरी नहीं मिटाना चाहता वह अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फ़िल्मों पर भी हमला करता है। चैप्लिन भीड़ का वह बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूँ और भीड़ हँस देती है। कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता।
प्रश्न
(क) चार्ली की फिल्मों के दर्शक कैसे हैं?
(ख) चार्ली ने दशकों की वर्ण तथा वर्ण-व्यवस्था को कैसे तोड़ा?
(ग) चार्ली की फिल्मों को कौन – सा वर्ग नापसंद करता है?
(घ) चार्ली व शासक वर्ग के बीच नाराजगी का क्या कारण है?
उत्तर –
(क) चार्ली की फिल्मों के दर्शक पागलखाने के मरीज, सिरफिरे लोग व आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले लोग हैं। वे सभी चालों को पसंद करते हैं।
(ख) चार्ली ने दर्शकों की वर्ग व वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। उससे पहले लोग जाति, धर्म, समूह या वर्ण के लिए फ़िल्म बनाते थे। कुछ कला फ़िल्में बनती थीं जिनका दर्शक वर्ग विशिष्ट होता था, परंतु चालों ने ऐसी फ़िल्में बनाई जिनको देखकर हर आदमी आनंद का अनुभव करता है।
(ग) चाली की फ़िल्मों को वे लोग नापसंद करते हैं जो व्यक्ति, समूह या तंत्र में भेदभाव को नहीं मिटाना चाहते।
(घ) चार्ली आम आदमी की कमजोरियों के साथ-साथ शासक वर्ग की कमजोरियों को भी जनता के सामने प्रकट कर देता है। शासक या तंत्र नहीं चाहता कि जनता उन पर हँसे। इस कारण दोनों में तनातनी रहती थी।
प्रश्न 3.
एक परित्यक्ता, दूसरे दर्ज की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगर एक समाज द्वारा दुरदुराया जाना इन सबसे चैप्लिन को ये जीवन मूल्य मिले । करोड़पति हो जाने के बावजूद भेत तक उनमें रहे। अपनी नानी की तरफ से चैप्लिन खानाबदोशों से जुड़े हुए थे और यह एक सुदूर रूमानी संभावना बनी हुई है कि शायद उस खानाबदोश औरत में भारतीयता रहीं हो क्योंकि यूरोप के जिसी भारत से ही गए थे और अपने पिता की तरफ से वे यहुदीवंशी थे। इन जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को हमेशा एक बाहरी’, ‘घुमंतू चरित्र बना दिया। वे कभी मध्यवर्गी, बुर्जुआ था। उच्चवर्गी जीवन-मूल्य न अपना सके। यदि उन्होंने अपनी फ़िल्मों में अपनी प्रिया छवि ट्रैम्प (बडू, खानाबदोश, आवारागर्द) की प्रस्तुति की है। तो इसके कारण उनके अवचेतन तक पहुँचते हैं।
प्रश्न
(क) चार्ली का बचपन कैसा बीता
(ख) चार्ली के घुमंतू बनने का क्या कारण था?
(ग) थैप्लिन के जीवन में कौन से मूल्य अंत तक रहे?
(घ) ‘चार्ली चलिन के जीवन में भारतीयता के संस्कार थे-कैसे?
उत्तर –
(क) चार्ली का बचपन अत्यंत कष्टों में बीता। वह साधारण स्टेज अभिनेत्री का बेटा था जिसे पति ने छोड़ दिया था। उसे गरीबी व माँ के पागलपन से संघर्ष करना पड़ा। उसे पूँजीपतियों व सामंतों द्वारा दुत्कारा गया।
(ख) चार्ली की नानी खानाबदोश थीं। वह बचपन से ही बेसहारा रहा। मों के पागलपन, समाज के दुत्कार के कारण उसे कभी संस्कार नहीं मिले। इन जटिल परिस्थितियों ने उसे घुमंतू बना दिया।
(ग) चैप्लिन के जीवन में निम्नलिखित मूल्य अंत तक रहें-एक परित्यक्ता व दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, भयावह गरीबी व मों के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्यवादी व पूँजीवादी समाज द्वारा दुवारा जाना।
(घ) धाली चैप्लिन की नानी खानाबदोश थीं। ये खानाबदोश कभी भारत से ही यूरोप में गए थे तथा ‘जि कहलाए थे। थाली ने भी घुमंतुओं जैसा जीवन जिया तथा फ़िल्मों में उसे प्रस्तुत किया। इस कारण उसके जीवन में भारतीयता के संस्कार मिलते हैं।
प्रश्न 4,
चार्ली पर कई फिल्म समीक्षकों ने नहीं, फिल्म कला के उस्तादों और मानविकी के विद्वानों ने सिर धुने हैं और उन्हें नेति नेति कहते हुए | यह मानना पड़ता है कि चार्ली पर कुछ नया लिखना कठिन होता जा रहा है। दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने । सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है। जो करोड़ों लोग चाल को देखकर अपने पेट दुखा लेते हैं उन्हें मैल टिंगर या जेम्स एणी की बेहद सारगर्भित समीक्षाओं से क्या लेना-देना? वे चार्ली को समय और भूगोल से काटकर देखते हैं और जो देखते हैं उसकी ताकत अब तक ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। यह कहना कि वे चार्ली में खुद को देखते हैं।’ दूर की कौड़ी लाना है लेकिन बेशक जैसा चालीं वे देखते हैं वह उन्हें जाना पहचाना लगता है, जिस मुसीबत में वह अपने को हर दसवें सेकेंड में डाल देता है वह सुपरिचित लगती है। अपने को नहीं लेकिन वे अपने किसी परिचित या देखे हुए को चार्ली मानने लगते हैं।
प्रश्न
(क) चार्ली के बारे में समीक्षकों को क्या मानना पड़ा।
(ख) कला व सिद्धांत के बारे में क्या बताया गया हैं?
(ग) समीक्षक बालों का विश्लेषण कैसे करते हैं।
(घ) चार्ली के बारे में दशक क्या सोचते हैं?
उत्तर –
(क) चार्ली के बारे में फिल्म समीक्षकों, फ़िल्म कला के विशेषज्ञों तथा मानविकी के विद्वानों ने गहन शोध किया, परंतु उन्हें यह मानना पड़ा कि चार्ली पर कुछ नया लिखना बेहद कठिन है।
(ख) कला व सिद्धांत के बारे में बताया गया है कि सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, अपितु कला स्वयं अपने सिद्धांत को या तो लेकर आती हैं या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।
(ग) समीक्षक चार्ली को समय व भूगोल से काटकर देखते हैं। वे उसे एक निश्चित दायरे में देखते हैं, जबकि चार्ली समय व भूगोल की सीमा से परे है। उसका संदेश सार्वभौमिक है तथा वह सदैव एक जैसा रहता है।
(घ) चालीं को देखकर लोग स्वयं में चाल देखते हैं या वह उन्हें जाना-पहचाना लगता है। उसकी हरकतें उन्हें अपनी या भास-पास के लोगों जैसी लगती हैं।
प्रश्न 5.
चाल के नितांत अभारतीय सौंदर्यशास्त्र की इतनी व्यापक स्वीकृति देखकर राजकपूर ने भारतीय फिल्मों का एक सबसे साहसिक प्रयोग किया। ‘आवारा’ सिर्फ द टैम्प’ का शब्दानुवाद ही नहीं था बल्केि थाली का भारतीयकरण ही था। यह अच्छा ही था कि राजकपूर ने वैप्लिन की नकल करने के आरोपों की परवाह नहीं की। राजकपूर के आवारा और ‘श्री 420’ के पहले फिल्मी नायकों पर हंसने की और स्वयं नायकों के अपने पर हैंसने की परंपरा नहीं थी। 1953-57 के बीच जब चैप्लिन अपनी गैर-ट्रेम्पनुमा अतिम फिल्में बना रहे थे तब राजकपूर चप्लिन का युवा अवतार ले रहे थे। फिर तो दिलीप कुमार (बाबुल, शबनम, कोहिनूर लीडर, गोपी), देव आनंद (नौ दो ग्यारह, ‘टूश, तीन देवियाँ), शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन (अमर अकबर एंथनी) तथा श्री देवी तक किसी-न-किसी रूप से चैप्लिन का कर्ज स्वीकार कर चुके हैं। बुढ़ापे में जब अर्जुन अपने दिवंगत मित्र कृष्ण की पत्नियों को डाकुओं से न बचा सके और हवा में तीर चलाते रहे तो यह दृश्य करु । और हास्योत्पादक दोनों था किंतु महाभारत में सिर्फ उसकी त्रासद व्याख्या स्वीकार की गई। आज फ़िल्मों में किसी नायक को झाड़ओं से। पिटता भी दिखाया जा सकता है लेकिन हर बार हमें चार्ली की ही ऐसी फ़जीहतें याद आती हैं।
प्रश्न
(क) राजकपूर ने क्या साहसिक प्रयोग क्रिया?
(ख) राजकपूर ने किससे प्रभावित होकर कौन कौन-सी फिल्में बनाई
(ग) कौन-कौन से भारतीय नायकों ने अपने अभिनय में परिवतन किया?
(घ) यहाँ महाभारत के किस प्रसंग का उल्लेख किया गया हैं।
उत्तर –
(क) राजकपूर ने चार्ली के हास्य व करुणा के सामंजस्य के सिद्धांत को भारतीय फिल्मों में उतारा। उन्होंने ‘आवारा’ फिल्म बनाई जो ‘द प’ पर आधारित थी। उन पर चैप्लिन की नकल करने के आरोप भी लगे।
(ख) राजकपूर ने चार्ली चैप्लिन की कला से प्रभावित होकर आवारा’, ‘श्री 420’ जैसी फ़िल्में बनाई जिनमें नायकों को स्वयं पर हँसता दिखाया गया है।
(ग) राजकपूर, दिलीप कुमार, देव ६, ५ कपूर, अमिताभ बच्चन व श्री देवी जैसे कलाकारों ने चाल चैप्लिन के प्रभाव से अपने अभिनय में परिवर्तन किया।
(घ) महाभारत में अर्जुन की वृद्धावस्था का वर्णन है जब वह दिवंगत मित्र कृष्ण की पत्नियों को डाकुओं से नहीं बचा सके तथा हवा में तीर चलाते रहे। यह हास्य व करुणा का प्रसंग है, परंतु इसे सिर्फ त्रासद व्याख्या ही माना गया है।
प्रश्न 6.
चार्ली की अधिकांश फ़िल्मों भाषा का इस्तेमाल नहीं करतीं इसलिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा मानवीय होना पड़ा। सवा चित्रपट पर कई बड़े-बड़े कॉमेडियन हुए हैं, लेकिन वे चैप्लिन को सार्वभौमिकता तक क्यों नहीं पहुँच पाए, इसकी पड़ताल अभी होने को है। चाल का चिर- युवा होना या बच्चों जैसा दिखना एक विशेषता तो है ही, सबसे बड़ी विशेष्यता शायद यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। यानी उनके आस पास जो भी चीजें आगे खलनायक, दुष्ट औरतें आदि रहते हैं वे एक सतत विदेश या ‘परदेस’ बन जाते हैं और चैप्लिन हम बन जाते हैं। चाली के सारे संकटों में हमें यह भी लगता है कि यह मैं भी हो सकता हैं, लेकिन में से ज्यादा चार्ली हमें हम लगते हैं। यह संभव है कि कुछ अथों में बस्टर कीटन चार्ली चैप्लिन से बड़ी हास्य प्रतिभा हो लेकिन कीटन हास्य का काफ्का है जबकि चैलिन प्रेमचंद के ज्यादा नजदीक हैं।
प्रश्न
(क) चार्ली की फिल्मों को मानवीय क्यों होना पड़ा?
(ख) चार्ली चैप्लिन की सावभौमिकता का क्या कारण है?
(ग) चार्ली की फिल्मों को विशेषता क्या है।
(घ) चाली के कारनामे हमें में न लगकर हम क्यों लगते हैं?
उत्तर –
(क) चार्ली की फिल्मों में भाषा का प्रयोग नहीं किया गया। अतः उनमें मानव की क्रियाओं को सहजता व स्वाभाविकता से दिखाया गया ताकि दर्शक उन्हें शीघ्र समझ सकें। इसीलिए चार्ली की फ़िल्मों को मानवीय होना पड़ा।
(ख) चार्ली चैप्लिन की कला की सार्वभौमिकता के कारणों की जॉच अभी होनी है, परंतु कुछ कारण स्पष्ट हैं, जैसे वे सदैव युवा जैसे दिखते हैं तथा दूसरों को अपने लगते हैं।
(ग) चार्ली की फ़िल्मों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
*. चार्ली चिर युवा या बच्चों जैसा दिखते हैं।
*. वे किसी को विदेशी नहीं लगते।
*. उनके खलनायक सदैव विदेशी लगते हैं।
(घ) चालीं के कारनामे इतने अधिक थे कि वे किसी एक पात्र की कहानी नहीं हो सकते। उनके संदर्भ बहुत विस्तृत होते थे। वे हर मनुष्य के आस-पास के जीवन को व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 7.
अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली ही होते हैं जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है। अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम वर्तव्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलतः हम सब चाली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चाल-चार्ली हो जाता है।
प्रश्न
(क) ‘चार्ली के टिली’ का क्या अभिप्राय हैं।
(ख) चार्ली के चरित्र में कैसी घटनाएं हो जाती हैं।
(ग) चार्ली किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हैं।
(घ) चार्ली और सुपरमैन में वया अंतर हैं।
उत्तर –
(क) चार्ली वे दिली’ का अर्थ है-चाली के कारनामों की नकल। चार्टी के कारनामे व प्रेम अंत में असफल हो जाते हैं, उसी तरह भाम आदमी के रोमांस भी फुस्स हो जाते हैं।
(ख) चार्ली के चरित्र में अनेक ऐसी घटनाएँ होती हैं कि वे सफलता के नजदीक पहुँचने वाले होते हैं तो एकदम असफल हो जाते हैं। कभी लाचार होते हुए भी जीत सकते हैं तो कभी वीरता के क्षण में पलायनवादी भी हो सकते हैं। उनके चरित्र में एकदम परिवर्तन हो जाता है।
(ग) चार्ली उस असफल व्यक्ति का प्रतीक है जो सफलता पाने के लिए बहुत परिश्रम करता है, कभी-कभी वह सफल भी हो जाता है, परंतु अफसर वह निरीह व तुच्छ प्राणी ही रहता है।
(घ) घाली आम आदमी है। वह सर्वोच्च स्तर पर पहुँचकर भी अपमान झेलता है, जबकि सुपरमैन शक्तिशाली है। यह राव जीतता है। तधा अपमानित नहीं होता।
Discover more from EduGrown School
Subscribe to get the latest posts sent to your email.