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Class 12 Hindi रिपोर्ट लेखन
प्रश्नः 1.
रिपोर्ट के विषय में बताइए।
उत्तरः
‘रिपोर्ट’ शब्द का हिंदी पर्याय ‘प्रतिवेदन’ है। समाचार संकलित करके उसे लिखकर प्रेस में भेजना रिपोर्टिंग कहलाता है। ज्यादातर यह कार्य फील्ड में जाकर किया जाता है। एक संवाददाता सेमिनार, रैली अथवा संवाददाता सम्मेलन से विविध प्रकार की खबरें एकत्रित करके उन्हें अपने कार्यालय में प्रेषित कर देता है। वास्तव में रिपोर्ट एक प्रकार की लिखित विवेचना होती है जिसमें किसी संस्था, सभा, दल, विभाग अथवा विशेष आयोजन की तथ्यों सहित जानकारी दी जाती है। रिपोर्टिंग का उद्देश्य संबंधित व्यक्ति, संस्था, परिणाम, जाँच अथवा प्रगति की सही एवं पूर्ण जानकारी देना है।
प्रश्नः 2.
रिपोर्टिंग के प्रकार बताइए।
उत्तरः
रिपोर्टिंग कई प्रकार की होती है; यथा –
- राजनीतिक, साहित्यिक, सामाजिक, आर्थिक भाषणों एवं सम्मेलनों की रिपोर्ट।
- अदालतों की रिपोर्ट।
- आपराधिक मामलों की रिपोर्ट।
- प्रेस कांफ्रेंस या संवाददाता सम्मेलन की रिपोर्ट।
- युद्ध एवं विदेश यात्रा की रिपोर्ट।
- प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना, दंगा आदि की रिपोर्ट।
- संगीत सम्मेलन व कला संबंधी रिपोर्ट।
- खोजी समाचारों की रिपोर्ट।
- व्यावसायिक प्रगति अथवा स्थिति की रिपोर्ट।
- पुस्तक प्रदर्शनी, चित्र प्रदर्शनी आदि की रिपोर्ट।
प्रश्नः 3.
अच्छी रिपोर्टिंग के लिए अपेक्षित गुण बताइए।
उत्तरः
एक रिपोर्टिंग तभी अच्छी और उपयोगी बन सकती है, जब उसमें गुण हों। अच्छी रिपोर्टिंग के लिए निम्नलिखित गुण होना अनिवार्य है –
- रिपोर्टर के डेस्क से संबंध अच्छे होने चाहिए।
- रिपोर्ट पूरी तरह स्पष्ट और पूरी हो।
- रिपोर्ट की भाषा न आलंकारिक हो, न ही मुहावरेदार।
- रिपोर्ट में सूचना भर होनी चाहिए।
- किसी भी वाक्य के एक-से अधिक अर्थ न निकलें।
- भाषा में प्रथम पुरुष का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
- जो भी तथ्य दिए जाएँ वे विश्वसनीय एवं प्रामाणिक हों।
- रिपोर्ट संक्षिप्त हों।
- उन्हीं तथ्यों का समावेश करना चाहिए जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण हों।
- तथ्यों का तर्क और क्रम सुविधानुसार हों।
- रिपोर्ट का शीर्षक स्पष्ट और सुरुचिपूर्ण हों।
- शीर्षक ऐसा हो जो मुख्य विषय को रेखांकित करे।
- रिपोर्ट में प्रत्येक तथ्य और विषय को अलग अनुच्छेद में लिखा जाना चाहिए।
- प्रतिवेदन के अंत में सभा अथवा दल अथवा संस्था के अध्यक्ष को हस्ताक्षर कर देने चाहिए।
प्रश्नः 4.
रिपोर्टिंग लिखने की विधि बताइए।
उत्तरः
रिपोर्टिंग लिखने में निम्नलिखित विधियों को अपनाना चाहिए –
- सर्वप्रथम संस्था का नाम लिखा जाना चाहिए।
- बैठक सम्मेलन का उद्देश्य स्पष्ट किया जाना चाहिए।
- आयोजन स्थल का नाम लिखें।
- आयोजन की तिथि और समय की सूचना दी जानी चाहिए।
- कार्यक्रम में उपस्थित लोगों की जानकारी दी जाए।
- कार्यक्रम एवं गतिविधियों की जानकारी दी जाए।
- यदि भाषण है तो उसके मुख्य बिंदुओं के बारे में बताया जाए।
- निर्णयों की जानकारी भी दी जानी चाहिए।
- प्रतियोगिता का परिणाम आया हो तो उसका भी उल्लेख किया जाना चाहिए।
प्रश्नः 5.
रिपोर्ट की विशेषताएँ बताइए।
उत्तरः
रिपोर्ट अपने आप में एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसका महत्त्व मात्र समसामयिक नहीं होता अपितु संबंधित क्षेत्र में सुदूर भविष्य तक भी इसकी उपयोगिता रहती है। रिपोर्ट की विशेषताओं का विवेचन नीचे किया जा रहा है –
1. कार्य योजना-रिपोर्टर को पहले पूरी योजना बनानी चाहिए। विषय का अध्ययन करके उसके उद्देश्य को समझना चाहिए। इसकी प्रारंभिक रूपरेखा बनाने से रिपोर्ट लिखने में सहायता मिलती है।
2. तथ्यात्मकता-रिपोर्ट तथ्यों का संकलन होता है। इसलिए सबसे पहले विषय से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी लेनी पड़ती है। इसके लिए पुराने रिपोर्टों, फाइलों, नियम-पुस्तकों, प्रपत्रों के द्वारा आवश्यक सूचनाएँ इकट्ठी की जाती हैं। सर्वेक्षण तथा साक्षात्कार द्वारा आँकड़ों और तथ्यों को प्राप्त किया जाता है। इन तथ्यों को रिकार्ड किया जाए और आवश्यकता पड़े तो इनके फोटो भी लिए जा सकते हैं।
3. प्रामाणिकता-तथ्यों का प्रामाणिक होना अत्यंत आवश्यक है। किसी विषय, घटना अथवा शिकायत आदि के बारे में जो तथ्य जुटाए जाएँ, उनकी प्रामाणिकता से रिपोर्ट की सार्थकता बढ़ जाती है।
4. निष्पक्षता-रिपोर्ट एक प्रकार से वैधानिक अथवा कानूनी दस्तावेज़ बन जाती है। इसलिए रिपोर्टर का निर्णय विवेकपूर्ण होना अत्यंत आवश्यक है। रिपोर्ट लिखते समय या प्रस्तुत करते समय रिपोर्टर प्रत्येक तथ्य, वस्तुस्थिति, पक्ष-विपक्ष, मत-विमत का निष्पक्ष भाव से अध्ययन करे और फिर उसके निष्कर्ष निकाले। इस प्रकार प्रत्येक स्थिति में उसका यह नैतिक दायित्व हो जाता है कि वह नीर-क्षीर विवेक का परिचय दे। इससे रिपोर्ट उपयोगी होगा और मार्गदर्शक भी सिद्ध होगा।
5. विषय-निष्ठता-रिपोर्ट का संबंधित प्रकरण पर ही केंद्रित होना अपेक्षित है। यदि किसी विषय-विशेष पर रिपोर्ट लिखा जाना है तो उससे संबंधित तथ्यों, कारणों और सामग्री आदि तक ही सीमित रखना चाहिए। इसमें प्रकरण को एक सूत्र की तरह प्राप्त तथ्यों में पिरोया जाए, जिससे प्रकरण अपने-आप में स्पष्ट होगा।
6. निर्णयात्मकता-रिपोर्ट मात्र विवरण नहीं होती। इसलिए रिपोर्टर को संबंधित विषय का विशेष जानकार होना आवश्यक है। यदि वह विशेषज्ञ होगा तो साक्ष्यों और तथ्यों का सही या गलत अनुमान लगा पाएगा तथा उनका विश्लेषण करने में समर्थ होगा। साथ ही वह प्राप्त तथ्यों, साक्ष्यों और तर्कों का सम्यक परीक्षण कर पाएगा और अपने सुझाव तथा निर्णय भी दे पाएगा।
7. संक्षिप्तता और स्पष्टता-रिपोर्ट लिखते समय यह ध्यान रखा जाए कि उसमें अनावश्यक विस्तार न हो। प्रत्येक तथ्य या साक्ष्य का संक्षिप्त और सुस्पष्ट विवरण दिया जाए। यदि रिपोर्ट काफी लंबा हो गया हो तो उसका सार दिया जाए जिससे प्राप्त तथ्यों और सुक्षावों पर ध्यान तुरंत आकृष्ट हो सके। लेकिन अस्पष्ट सूचना या विवरण से उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। अत: रिपोर्ट संक्षिप्त होते हुए भी अपने आप में स्पष्ट और पूर्ण होनी चाहिए।
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