काले मेघा पानी दे Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 13
काले मेघा पानी दे पाठ का सारांश
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण धर्मवीर भारती द्वारा रचित है। इसमें लोक-प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वन्द्व का सुंदर चित्रण हुआ है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास की अपनी सामर्थ्य। इसमें कौन कितना सार्थक है, यह प्रश्न पढ़े-लिखे समाज को उत्तेजित करता रहता है। इसी दुविधा को लेकर लेखक ने पानी के संदर्भ में असंग रचा है। लेखक ने अपने किशोरपन जीवन के इस संस्मरण में दिखलाया है कि अनावृष्टि दूर करने के लिए गाँव के बच्चों की इंद्रसेना द्वार-द्वार पानी मांगते चलती है। लेखक का तर्कशील किशोर मन भीषण सूखे में उस पानी को निर्मम बर्बादी के रूप में देखता है।
आषाढ़ के उन सूखे दिनों में जब चहुँ ओर पानी की कमी होती है ये इंद्रसेना गाँव की गलियों में जयकारे लगाते हुए पानी माँगते फिरती है। अभाव । के बावजूद भी लोग अपने-अपने घरों से पानी लेकर इन बच्चों को सिर से पैर तक तर कर देते हैं। आषाढ़ के इन दिनों में गाँव-शहर के सभी लोग गर्मी से परेशान त्राहिमाम कर रहे होते हैं तब ये मंडली ‘काले मेघा पानी दे’, के नारे लगाती हुई यहाँ-वहाँ घूम रही होती है।
अनावृष्टि के कारण शहरों की अपेक्षा गाँवों की हालत त्रासदपूर्ण हो जाती है। खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती है। जमीन फटने लगती है। पशु प्यास के कारण मरने लगते हैं। लेकिन बारिश का कहीं नामोनिशान नहीं होता। बादल कहीं नज़र नहीं आते। ऐसे में लोग पूजा-पाठ कर हार जाते तो यह इंद्रसेना निकलती है। लेखक मानता है कि लोग अंधविश्वास के कारण पानी की कमी होते हुए भी पानी को बर्बाद कर रहे हैं। इस तरह के अंधविश्वासों से देश की बहुत क्षति होती है जिसके कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और उनके गुलाम बन गए हैं। लेखक वैसे तो इंद्रसेना की उमर का था लेकिन वह आर्यसमाजी संस्कारों से युक्त तथा कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था। अत: उसमें समाज सुधार का जोश अधिक था। : अंधविश्वासों से वह डटकर लड़ता था। लेखक को जीजी उसे अपने बच्चों से ज्यादा प्रेम करती थी। तीज-त्योहार, पूजा अनुष्ठानों को जिन्हें ।
लेखक अंधविश्वास मानता था, जीजी के कहने पर उसे सब कछ करना पड़ता था। इस बार जीजी के कहने पर भी लेखक ने मित्र-मंडली पर पानी नहीं डाला, जिससे वह नाराज हो गई। बाद में लेखक को समझा-बुझाकर उसने अनेक बातें कहीं। पानी फेंकना अंधविश्वास नहीं। यह तो हम उनको अर्घ्य चढ़ाते हैं, जिससे खुश होकर इंद्र हमें पानी देता है। उन्होंने बताया कि ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान । 1 दिया है। जीजी ने लेखक के तर्कों को बार-बार काट दिया। अंत में लेखक को कहा कि किसान पहले पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ बीज रूप : में अपने खेत में बोता है, तत्पश्चात वह तीस-चालीस मन अनाज उगाता है। वैसे ही यदि हम बीज रूप में थोड़ा-सा पानी नहीं देंगे तो । बादल फ़सल के रूप में फिर हमें पानी कैसे देंगे?
व संस्मरण के अंत में लेखक की राष्ट्रीय चेतना का भाव मुखरित होता है कि हम आजादी मिलने के बावजूद भी पूर्णत: आजाद नहीं। हुए। हम आज भी अंग्रेजों की भाषा संस्कृति, रहन-सहन से आजाद नहीं हुए और हमने अपने संस्कारों को नहीं समझा। हम भारतवासी माँगें तो बहुत करते हैं लेकिन त्याग की भावना हमारे अंदर नहीं है। हर कोई भ्रष्टाचार की बात करता है लेकिन कभी नहीं देखता कि क्या | हम स्वयं उसका अंग नहीं बन रहे। देश की अरबों-खरबों की योजनाएं न जाने कहाँ गम हो जाती हैं? लेखक कहता है कि काले मेघा
खूब बरसते हैं लेकिन फूटी गगरी खाली रह जाती है, बैल प्यासे रह जाते हैं। न जाने यह स्थिति कब बदलेगी? लेखक ने देश की भ्रष्टाचार की समस्याओं के प्रति व्यंग्य व्यक्त किया है।
काले मेघा पानी दे लेखक परिचय
लेखक-परिचय जीवन परिचय धर्मवीर भारती आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं। उनका जन्म सन् 1926 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जनपद में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा तथा माता का नाम श्रीमती चंदा देवी था। भारती जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम०ए० हिंदी की परीक्षा पास की। तत्पश्चात वहीं से पी-एच०डी० की उपाधि भी प्राप्त की। 1960 ई० में ये ‘धर्मयुग’ पत्रिका के संपादक बने और मुंबई में रहने लगे।
सन् 1988 में धर्मयुग के संपादक पद से सेवानिवृत्त होकर फिर मुंबई में ही बस गए। सरकार ने इनको पद्म-श्री की उपाधि से अलंकृत किया। इसके बाद इनको व्यास सम्मान के साथ अनेक राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। सन् 1997 ई० में ये नश्वर संसार को छोड़कर चले गए। रचनाएँ-धर्मवीर भारती जी का आजादी के बाद के साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान है। ये बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न साहित्यकार माने जाते हैं। इन्होंने काव्य, उपन्यास, कहानी, निबंध आदि अनेक विधाओं पर लेखनी चलाई है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
काव्य-संग्रह-कनुप्रिया, सात-गीत वर्ष, सपना अभी भी, ठंडा लोहा आदि।
उपन्यास-सूरज का सातवाँ घोड़ा, गुनाहों का देवता आदि।
कहानी-संग्रह-बंद गली का आखिरी मकान।
गीतिनाट्य-अंधायुग।
निबंध संग्रह-पश्यंती, कहनी-अनकहनी, मानव मूल्य और साहित्य, ठेले पर हिमालय। साहित्यिक विशेषताएँ-धर्मवीर भारती आधुनिक मानवीय संवेदना से ओत-प्रोत साहित्यकार थे। भारती जी के लेखन की महत्वपूर्ण ।
विशेषता है कि हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के मध्य उनकी भिन्न-भिन्न रचनाएँ लोकप्रिय हैं। वे मूलत: व्यक्ति स्वातंत्र्य, मानवीय संकट एवं रोमानी चेतना के रचनाकार हैं। तमाम सामाजिक उठा-पटक एवं उत्तरदायित्वों के बावजूद उनके साहित्य में व्यक्ति की स्वतंत्रता ही सर्वोपरि है।
मानवता उनके साहित्य का प्राण-तत्व है। ‘गुनाहों का देवता’ उनका सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास है जिसमें एक सरस और भावपूर्ण प्रेम की अभिव्यक्ति है। दूसरा लोकप्रिय उपन्यास ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ है, जिस पर हिंदी में फ़िल्म भी बन चुकी है। इस उपन्यास में लेखक ने प्रेम को केंद्र-बिंदु मानकर निम्नवर्ग की निराशा, आर्थिक संघर्ष, नैतिक विचलन और अनाचार को चित्रित किया है। ‘अंधायुग’ में स्वतंत्रता के पश्चात नष्ट होते जीवन-मूल्य, अनास्था, मोहभंग, विश्वयुद्ध की विभीषिका से त्रस्त मानवता और अमानवीयता का यथार्थ चित्रण है। भारती के साहित्य में आधुनिक युग की विसंगतियों, समस्याओं, मूल्यहीनता आदि का सुंदर चित्रण हुआ है।
प्रस्तुत संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ में भारती ने लोक-प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। इसमें दिखलाया गया है कि अनावृष्टि दूर करने के लिए गाँव के बच्चों की इंद्रसेना द्वार-द्वार पानी माँगते चलती है और लेखक का तर्कशील किशोरमन भीषण सूखे में उसे पानी की निर्मम बर्बादी के रूप में देखता है। भाषा-शैली-धर्मवीर भारती एक श्रेष्ठ कवि होने के साथ-साथ श्रेष्ठ गद्यकार भी हैं। उनके गद्य लेखन में सहजता और आत्मीयता है। वे बड़ी-से-बड़ी बात, की भी बातचीत की शैली में कहते हैं और सीधे पाठकों के मन को छू लेते हैं। लेखक ने मुख्यतः खड़ी बोली का सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनके साहित्य में अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी आदि भाषाओं के अतिरिक्त साधारण बोलचाल के शब्दों का समायोजन हुआ है।
प्रस्तुत संस्मरण की भाषा-शैली सहज, सरल, स्वाभाविक एवं प्रसंगानकल है, जिसमें खडी-बोली. उर्द, फ़ारसी. साधारण बोलचाल की भाषाओं के शब्दों का सटीक प्रयोग हुआ है। मुहावरों के प्रयोग से भाषा में रोचकता उत्पन्न हो गई है। इन्होंने विचारात्मक, भावात्मक, व्यंग्यात्मक, संस्मरणात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। शब्द-रचना अत्यंत श्रेष्ठ है। वस्तुतः धर्मवीर भारती आधुनिक युग के एक श्रेष्ठ साहित्यकार हैं। उनका स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान है।
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