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The Address Summary In English
This is a moving story of a daughter who goes in search of her mother’s belongings after the War, in Holland. The narrator is the daughter of Mrs S., who died during the war. The narrator went to number 46, Marconi Street to see Mrs Dorling who was an old acquaintance of her mother, and who had removed almost all the belongings of her mother during the war to this place. All this was done with Mrs S’s silent consent as Mrs Dorling wanted to save her things, which they would lose if they had to leave the place.
The narrator had seen Mrs Dorling for the first time during the first half of the war. She had come home for a few days and noticed the change in the rooms. She missed various things. Her mother informed her that Mrs Dorling had moved these things to safety and gave her the address 46, Marconi Street. After the war, the narrator visited the address her mother had given her. She remembered Mrs Dorling clearly. She was woman with a broad back. Mrs Dorling looked at the narrator searchingly and showed no sign of recognition. She kept staring in silence. She saw that the narrator, who had recognised her mother’s green knitted cardigan, was looking at it. She half hid herself behind the door and refused to see her. She was surprised to see the narrator who had survived from the war.
The narrator returned to the station and boarded the train. While in train she remembered the first time she had seen Mrs Dorling and how her mother had introduced her to her old acquaintance and given the address.
After the first fruitless visit to Mrs Dorling’s house, the narrator visited the place a second time. This time, a girl of about fifteen opened the door to her. She asked the girl if her mother was at home. Since she was away, the narrator decided to wait for her.
She followed the girl along the passage. The first thing that struck her was an old-fashioned iron Hanukkah candle-holder hung next to a mirror. Then they went into the living room. The narrator was horrified as she was in a room she knew and did not know. She found herself in the midst of things she had so wanted to see again, but which oppressed her in the strange atmosphere. The tasteless way of arrangement, ugly furniture and the muggy smell all contributed to arouse this feeling. She didn’t have the courage to look around her. She sat down and stared at the woollen table-cloth. As she followed the lines of the pattern, she remembered that it was their table-cloth, which had a burn mark that had never been repaired. Soon she found the hole.
The girl poured her tea from a white pot which had a gold border on the lid. She opened the box and took out some spoons. The narrator praised the box. Mrs Dorling’s daughter said that it was an antique. They had got lots more and she pointed round the room. The narrator knew very well which things she meant. She remarked that the cutlery-spoons, forks and knives was silver. The girl laughed. She walked to the side board and wanted to open a drawer.
The narrator fell perturbed. The objects linked with her mother, aroused memories of her former life. At first she was eager to see them, but now they had lost their value since they were severed from her mother and were stored in strange surroundings. Moreover, they were useless to her in her present state. She lived in a small rented room with space for no more than a handful of cutlery fitted in the narrow table drawer.
She resolved to forget the address. She wanted to leave the memories of her mother and the war behind her and decided to move on.
The Address Summary In Hindi
यह एक ऐसी बेटी की हृदयस्पर्शी कथा है जो हालैंड में युद्ध के उपरांत अपनी माँ की संपत्ति (वस्तुओं) की तलाश में जाती है। कथाकार श्रीमति एस० की पुत्री है जिसकी युद्ध के दौरान मृत्यु हो गई। वर्णनकर्ता मारकोनी स्ट्रीट के 46 नंबर मकान में उस श्रीमति डोरलिंग से भेंट करने गई जो कि उसकी माँ की पुरानी परिचित थी तथा जो युद्ध के दौरान उसकी माँ की सभी वस्तुओं को यहाँ ले आई थी। यह सब श्रीमती एस० की मौन स्वीकृति के साथ किया गया क्योंकि श्रीमति डोरलिंग उन वस्तुओं को बचाना चाहती थीं जिन्हें वे खो देते यदि उन्हें वह स्थान त्यागना पड़ता। वर्णनकर्ता ने श्रीमति डोरलिंग को पहली बार युद्ध के पूर्वाद्ध में देखा था। वह अपने घर पर कुछ दिन के लिए आई थी तथा उसका कमरों में परिवर्तन की ओर ध्यान गया। उसे कई वस्तुएँ नदारद (गायब) मिली। उसकी माँ ने उसे सूचित किया कि श्रीमति डोरलिंग इन वस्तुओं को सुरक्षित स्थान पर ले गई थी और उसे पता बताया- नंबर 46, मारकोनी स्ट्रीट।
युद्ध के उपरांत वर्णनकर्ता उस पते पर पहुँची जो उसकी माँ ने उसे दिया था। उसे श्रीमति डोरलिंग स्पष्टतया याद थी। वह चौड़ी पीठ वाली महिला थी। श्रीमति डोरलिंग ने वर्णनकर्ता को खोजने की दृष्टि से देखा किंतु पहचान के कोई भाव प्रकट नहीं किए। वह चुपचाप घूरती रही। उसने देखा कि वर्णनकर्ता, जिसने अपनी माँ का सलाइयों से बना हरा कार्डिगन पहचान लिया था, इसे ध्यान से देख रही थी। उसने स्वयं को आधा दरवाजे के पीछे छिपा लिया तथा उससे भेंट करने से मना कर दिया। उसे उस वर्णनकर्ता को देखकर आश्चर्य हुआ जो युद्ध के बाद जीवित बच गई थी।
वर्णनकर्ता स्टेशन पर लौट आई तथा रेलगाड़ी में सवार हो गई। जब वह गाड़ी में थी तो उसे श्रीमति डोरलिंग के साथ प्रथम भेंट याद आई और यह कि किस प्रकार उसकी माँ ने उसको परिचय अपनी पुरानी परिचित से कराया था तथा उसे यह पता दिया था।
श्रीमति डोरलिंग के घर, प्रथम निष्फल भ्रमण के उपरांत, वर्णनकर्ता दूसरी बार उसके घर गई। इस बार 15 वर्षीय एक लड़की ने उसके लिए दरवाजा खोला। उसने लड़की से पूछा कि क्या उसकी माँ घर पर थी। क्योंकि वह बाहर गई हुई थी, वर्णनकर्ता ने उसकी प्रतीक्षा करने का निर्णय किया।
वह लड़की के पीछे-पीछे गलियारे में गई। पहली वस्तु जिसने उसका ध्यान आकर्षित किया वह था पुराना लोहे का हानुका शमादान-नुमा फानूस जो एक दर्पण के समीप लटक रहा था। फिर वे बैठक में चले गए। वर्णनकर्ता भयभीत हो गई क्योंकि वह एक ऐसे कक्ष (कमरे) में थी जिसे वह जानती भी थी और नहीं भी। उसने स्वयं को उन वस्तुओं के मध्य में पाया जिनको देखने की उसकी इतनी अधिक चाह (इच्छा) थी, किंतु वे इस विचित्र वातावरण में उसे सता रही थीं। वस्तुओं को सजाने का रुचिहीन क्रम, भद्दा फर्नीचर तथा सीलन की दुर्गन्ध-सभी ने इस भावना को उभारने में योगदान दिया। उसमें अपने चारों ओर देखने का साहस नहीं रही। वह बैठ गई तथा ऊनी मेज़पोश को घूर घूरकर देखने लगी। जब वह नमूने की रेखाओं का ध्यान से अनुसरण करने लगी, तो उसे याद आया कि यह उनको ही मेज़पोश था, जिसमें जल जाने का ऐसा चिह्न था जिसकी कभी मरम्मत नहीं की गई थी। शीघ्र ही उसे वह छेद मिल गया।
लड़की ने उसके लिए एक सफेद चायदानी से चाय डाली जिसके ढक्कन पर सुनहरा किनारा था। उसने डिब्बा खोला तथा कुछ चम्मच निकाले। वर्णनकर्ता ने डिब्बे की प्रशंसा की। श्रीमति डोरलिंग की पुत्री ने कहा कि यह एक अति प्राचीन वस्तु थी। उनके पास काफी अधिक और भी थे तथा उसने कमरे के चारों और इशारा किया। वर्णनकर्ता को भली-भाँति ज्ञात था कि उसका तात्पर्य किन वस्तुओं से था। उसने कहा कि चम्मच, काँटे, छुरी आदि ये उपकरण चाँदी के थे। वह लड़की हँस पड़ी। वह साथ रखी दराजों वाली मेज के पास चलकर गई और उसने इसका एक दराज़ खोलना चाहा।।
वर्णनकर्ता परेशान (विचलित) महसूस करने लगी। उसकी माँ से संबंधित वस्तुएँ उसके विगत जीवन की स्मृतियों को उभारने लगी। पहले वह उन्हें देखने को लालायित (उत्सुक) थी, किंतु अब वे अपना मूल्य गंवा बैठे थे क्योंकि वे उसकी माँ से पृथक् हो गए थे तथा उन्हें अज़नबी वातावरण में सहेजकर रखा गया था। इसके अतिरिक्त, उसकी अपनी वर्तमान स्थिति में, वे उसके लिए बेकार थे। वह किराए के एक छोटे से कमरे में रहती थी जिसमें तंग दराजों वाली मेज में मुट्ठीभर चाकू, काँटे, छुरी आदि रखने से अधिक स्थान नहीं था।
उसने इस पते को भूल जाने का निश्चय किया। वह अपनी माँ तथा युद्ध की स्मृतियों को पीछे छोड़ना चाहती थी और उसने आगे बढ़ने का निर्णय लिया।
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