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लेखक परिचय
रामविलास शर्मा
इनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में सन 1912 में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा इन्होने गाँव में ही पायी तथा उच्चा शिक्षा के लिए लखनऊ आ गए, वहां से अंग्रेजी में एम.ए. करने के बाद विश्वविधालय में प्राध्यापक और पीएच डी की डिग्री हासिल की। लेखन के क्षेत्र में पहले-पहले कविताएँ लिखकर फिर एक उपन्यास और नाटक लिखने के बाद पूरी तरह से आलोचना कार्य में जुट गए।
धूल पाठ का सारांश : Very Short Summary
धूल’ पाठ में लेखक रामविलास शर्मा ने धूल के महत्व का वर्णन किया है। लेखक स्वयं गाँव से जुड़े हुए व्यक्ति हैं। आज के लोगों द्वारा धूल की अनदेखी उन्हें अच्छी नहीं लगती है। उनके अनुसार गाँव में, पहलवानों के अखाड़े में, किसानों के लिए और बच्चों के लिए गोधूलि बहुत महत्वपूर्ण है। परन्तु विडंबना देखिए कि शहरों में लोग इस धूल को गंदगी मान कर इससे बचने का प्रयास करते हैं। लेखक को यह बात बुरी लगती है। इसलिए इस पाठ में लेखक ने धूल के महत्व, उसकी विशेषता और भारत के गाँवों में धूल की महिमा का वर्णन किया है। उन्होंने अलग-अलग उदाहरणों द्वारा यह बताने का प्रयास किया है कि धूल कितनी अमूल्य धरोहर है, हम भारतीयों के लिए। उन्होंने पूरे पाठ में हमारे जीवन में धूल की उपस्थिति का वर्णन किया है।
धूल पाठ का सारांश : Detailed Summary
प्रस्तुत पाठ धूल लेखक रामविलास शर्मा जी के द्वारा लिखित है | इस पाठ में लेखक ने धूल की महिमा और महात्म्य, उपयोगिता और उपलब्धता का बखान करते हुए देशज शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों और दूसरे रचनाकारों की रचनाओं के उद्धरणों से ली गई सूक्तियों तथा पंक्तियों का बख़ूबी इस्तेमाल किया है | वास्तव में लेखक अपने किशोरावस्था और युवावस्था में पहलवानी के शौकीन थे, जिस कारण से रामविलास शर्मा जी अपने इस पाठ के माध्यम से पाठकों को अखाड़ों, गाँवों और शहरों के जीवन-जगत की भी सैर कराते हैं | इसके साथ ही लेखक धूल के नन्हें कणों के वर्णन से देश प्रेम तक का भाव पाठकों के हृदय में सृजित करने में सफल हो जाते हैं |
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने धूल-धूसरित शिशुओं को धूल भरे हीरे कहकर संबोधित किया है | इसी संदर्भ में एक काव्य पंक्ति का उल्लेख करते हुए लेखक कहते हैं कि — ‘जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाए |’ लेखक के अनुसार, धूल के बिना शिशुओं की कल्पना नहीं की जा सकती है | हमारी सभ्यता धूल के संसर्ग से बचना चाहती है | वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है |
आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक कहते हैं कि जो बचपन में धूल से खेला है , वह जवानी में अखाड़े की मिट्टी में सनने से वंचित नहीं रह सकता है | यदि रहता भी है तो उसका दुर्भाग्य है और क्या ! आगे लेखक कहते हैं कि शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता पर बहुत कुछ कहा जा सकता है, परन्तु यह भी ध्यान देने की बात है कि जितने सारतत्व जीवन के लिए अनिवार्य हैं, वे सब मिट्टी से ही मिलते हैं | लेखक कहते हैं कि माना कि मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में | मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है |
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक का स्पष्ट मत है कि ग्राम भाषाएँ अपने सूक्ष्म बोध से धूल की जगह गर्द का प्रयोग कभी नहीं करतीं | ग्राम भाषाओं में हमने गोधूलि शब्द को अमर कर दिया है | लेखक रामविलास शर्मा जी कहते हैं कि गोधूलि पर कितने कवियों ने अपनी कलम नहीं तोड़ दी, लेकिन यह गोधूलि गाँव की अपनी संपत्ति है , जो शहरों के बाटे नहीं पड़ी | धूल, धूलि, धूली, धूरि आदि की व्यंजनाएँ अलग-अलग हैं | धूल जीवन का यथार्थवादी गद्य, धूलि उसकी कविता है | धूली छायावादी दर्शन है, जिसकी वास्तविकता संदिग्ध है और धूरि लोक-संस्कृति का नवीन जागरण है | इन सबका रंग एक ही है, रूप में भिन्नता जो भी हो | लेखक कहते हैं कि मिट्टी काली, पीली, लाल तरह-तरह की होती है, लेकिन धूल कहते ही शरत् के धुले-उजले बादलों का स्मरण हो आता है | धूल के लिए श्वेत नाम का विशेषण अनावश्यक है, वह उसका सहज रंग है |
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, आगे लेखक कहते हैं कि हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे | लेखक कहते हैं कि ये धूल रूपी हीरे अमर हैं और एकदिन अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे | लेखक ‘रामविलास शर्मा’ जी को पूर्ण विश्वास है कि इस पाठ को पढ़ने के पश्चात् पाठक ‘धूल’ को यूँ ही धूल में न उड़ा सकेगा…||
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NCERT Solution -धूल
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