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लोकगीत वसंत भाग – 1 (Summary of Lokgit Vasant)
यह पाठ एक निबंध है जिसमें लेखक ने लोकगीत की उत्पत्ति, विकास और महत्व को विस्तार से समझाया है| लोकगीत जनता का संगीत है| लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता के कारण शास्त्रीय संगीत से अलग होता है। त्योहारों और विशेष अवसर पर ये गाए जाते हैं| इन्हें साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि वाद्ययंत्रों की मदद से गाया जाता है। पहले ये शास्त्रीय संगीत से खराब समझा जाता था परन्तु बदलते समय ने
लोकगीतों और लोकसाहित्य को उच्च स्थान दिया है।
लोकगीत कई प्रकार के होते हैं। आदिवासी मध्य प्रदेश, दकन, छोटा नागपुर में गोंड-खांड, ओराँव-मुंडा, भील-संथाल आदि क्षेत्रों में फैले हुए हैं और इनके संगीत बहुत ही ओजस्वी तथा सजीव होते हैं| पहाड़ियों के गीत भिन्न-भिन्न रूपों में होते हैं। गढ़वाल, किन्नौर, कांगड़ा आदि के अपने-अपने गीत हैं और उन्हें गाने की अपनी-अपनी विधियाँ हैं। विभिन्न होते हुए भी इन गीतों का नाम ‘पहाड़ी’ पड़ गया है। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि के लोकगीत मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के अन्य पूर्वी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाए जाते हैं। बंगाल में बाऊल और भतियाली, पंजाब में माहिया, हीर-राँझा, सोहनी-महिवाल संबंधी गीत और राजस्थान में ढोला मारु लोकगीत बड़े चाव से गाए जाते हैं।
लोकगीत कल्पना पर आधारित नहीं होते हैं बल्कि देहाती जीवन के रोजमर्रा के विषय पर आधारित होते हैं। इनके राग भी साधारणत: पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन आदि हैं। देहात में कहरवा, बिरहा, धोबिया आदि राग गाए जाते हैं। बिहार में ‘बिदेसिया’ बहुत लोकप्रिय है। इनका विषय रसिका प्रेमी और प्रियाओं तथा परदेसी प्रेमी पर आधारित होता है। जंगल की जातियों में भी दल-गीत होते हैं जो बिरहा आदि पर गाए जाते हैं। बुंदेलखंड में आल्हा के गीत गाए जाते हैं। इनकी शुरुआत चंदेल राजाओं के राजकवि जगनिक द्वारा रचित आल्हा-ऊदल की वीरता के महाकाव्य से माना जाता है। धीरे-धीरे दूसरे देहाती कवियों ने इन्हें अपनी बोली में उतारा है। इन गीतों को नट रस्सियों पर खेल करते हुए गाते हैं|
हमारे देश में स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों की संख्या ज्यादा है। इनकी रचना भी वे ही करती हैं। भारत के लोकगीत अन्य देशों से भिन्न हैं क्योंकि अन्य देशों में स्त्रियों के गीत मर्द से अलग नहीं होते। हमारे देश में विभिन्न अवसरों पर विभिन्न गीत गाए जाते हैं – जैसे जन्म, विवाह, मटकोड़, ज्यौनार आदि जो स्त्रियाँ गाती हैं। इन अवसरों पर गाए जाने वाले गीतों का संबंध प्राचीन काल से है। बारहमासा गीत आदमियों के साथ-साथ स्त्रियाँ भी गाती हैं। स्त्रियों के गीत दल बनाकर गाए जाते हैं। इनके स्वरों में मेल नहीं होता है फिर भी अच्छे लगते हैं। होली, बरसात में गाई जाने वाली कजरी सुनने वाली होती है। पूर्वी भारत में अधिकतर मैथिल कोकिल विद्यापति के गीत गाए जाते हैं। गुजरात में ‘गरबा’ नामक नृत्य गायन प्रसिद्ध है। इस दल में औरतें घूम-घूम कर एक विशेष विधि से गाती हैं और नाचती हैं। ब्रज में होली के अवसर पर रसिया दल बनाकर गाया जाता है। गाँव के गीतों के अनेक प्रकार हैं|
कठिन शब्दों के अर्थ –
• लोच-लचीलापन
• झाँझ–एक वाद्य यंत्र जो काँसे की दो तश्तरियों से बना होता है
• करताल-तालियाँ
• हेय-हीन
• निर्द्वद्व-बिना किसी दुविधा के
• मर्म को छूना-प्रभावित करना
• आह्लादकर–प्रसन्न करने वाले
• सिरजती-बनाती
• पुट-अंश
• उद्दाम-निरंकुश
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