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कन्यादान Kanyadal Summary Class 10 Kshitij
कवि परिचय
ऋतुराज
इनका जन्म सन 1940 में भरतपुर में हुआ। राजस्थान विश्वविधालय, जयपुर से उन्होंने अंग्रेजी में एम.ए किया। चालीस वर्षो तक अंग्रेजी साहित्य के अध्यापन के बाद अब वे सेवानिवृत्ति लेकर जयपुर में रहते हैं। उनकी कविताओं में दैनिक जीवन के अनुभव का यथार्थ है और वे अपने आसपास रोजमर्रा में घटित होने वाले सामाजिक शोषण और विडंबनाओं पर निग़ाह डालते हैं, इसलिए उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक जीवन से जुडी हुई है।
कन्यादान Class 10 Hindi कविता का सार ( Short Summary )
कवि ने ‘कन्यादान’ में माँ-बेटी के आपसी संबंधों की घनिष्ठता को प्रतिपादित करते हुए नए सामाजिक मूल्यों की परिभाषा देने का प्रयत्न किया है। माँ अपनी युवा होती बेटी के लिए पहले कुछ और सोचती थी पर सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन के कारण अब कुछ और सोचती है। पहले उसके प्रति कुछ अलग तरह के डर के भाव छिपे हुए थे पर अब उसकी दिशा और मात्रा बदल गई है इसीलिए वह अपनी बेटी को परंपरागत उपदेश नहीं देना चाहती। उसके आदर्शों में भी परिवर्तन आ गया है। बेटी ही तो माँ की अंतिम पूंजी होती है क्योंकि वह उसके दुःख-सुख की पूंजी होती है। बेटी अभी पूरी तरह से बड़ी नहीं हुई। वह भोली-भाली और सरल थी। उसे सुखों का आभास तो होता था पर उसे जीवन के दुःखों की ठीक से पहचान नहीं थी। वह तो धुंधले प्रकाश में कुछ तुक और लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ने का प्रयास मात्र करती है। माँ ने उसे समझाते हुए कहा कि उसे जीवन में संभल कर रहना पड़ेगा। पानी में झांककर अपने ही चेहरे पर न रीझने और आग से बच कर रहने की सलाह उसने अपनी बेटी को दी। आग रोटियां सेंकने के लिए होती हैं, न कि जलने के लिए। वस्त्रों और आभूषणों का लालच तो उसे जीवन के बंधन में डालने का कार्य करता है, माँ ने कहा कि उसे लड़की की तरह दिखाई नहीं देना चाहिए। उसे सजग, सचेत और दृढ़ होना चाहिए। जीवन की हर स्थिति का निर्भयतापूर्वक डट कर सामना करना आना चाहिए।
कन्यादान Class 10 Hindi कविता का सार ( Detailed Summary )
1. कितना प्रामाणिक था उसका दुखलड़की को दान में देते वक़्तजैसे वही उसकी अंतिम पूंजी होलड़की अभी सयानी नहीं थीअभी इतनी भोली सरल थीकि उसे सुख का आभास होता थालेकिन दुख बाँचना नहीं आता थापाठिका थी वह धुंधले प्रकाश कीकुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की
व्याख्या – प्रस्तुत कविता में कवि कहते हैं कि कन्यादान के समय माँ का दुःख बहुत ही प्रामाणिक था।कन्यादान की रस्म में माँ विवाह के समय अपनी बेटी को किसी पराए को दान दे रही हैं।माँ के जीवन भर का लाड प्यार दुलार द्वारा सँवारी बेटी – उसकी अंतिम पूँजी थी।बेटी की उम्र ज्यादा नहीं है।उसे दुनियावी ज्ञान नहीं है। वह बहुत ही सरल और सहृदय है। संसार में उसे केवल सुख का ही आभास था ,लेकिन ससुराल में जाने के बाद पुरुष प्रधान समाज द्वारा वैवाहिक जीवन कैसा होगा – इसी चिंताओं में माँ दुःख हैं।बेटी को केवल विवाह के सुरीले और मोहक पक्ष का ज्ञान था ,लेकिन कल्पना से इतर दुःख भी मिल सकता है। इस बात को लेकर माँ चिंतित है।
2. माँ ने कहा पानी में झाँककरअपने चेहरे में मत रीझानाआग रोटियाँ सेंकने के लिए हैजलने के लिए नहींवस्त्र और आभूषण शब्दिक भ्रमों की तरहबंधन हैं स्त्री-जीवन केमाँ ने कहा लड़की होनापर लड़की जैसी मत दिखाई देना।
व्याख्या – माँ ,अपनी बेटी को सीख देते हुए कहती है कि बेटी तुम ससुराल में जाकर अपने सौंदर्य पर रीझ कर मत रह जाना। आग से सावधान रहना। आग का प्रयोग भोजन पकाने के लिए करना। न की जलने के लिए। तू सावधानी से रहना। पर अपने ऊपर अत्याचार न सहना। स्त्री जीवन में आभूषणों के मोह में न रहना। क्योंकि यह केवल एक बंधन है और स्त्री को मोह में फँसाती है। माँ कहती है कि तू हमेशा की तरह निश्चल ,सरल रहना। लेकिन लोक व्यवहार के प्रति सजग रहना ,जिससे तेरा कोई गलत लाभ न उठा सके। अन्यथा दुनिया के लोग तुझे मुर्ख बनाकर तेरा शोषण करेंगे। अतः बेटी तू सावधान रहना।
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