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उत्साह और अट नहीं रही – भावार्थ NCERT Class 10th Hindi
कवि परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
इनका जन्म बंगाल के महिषादल में सन 1899 में हुआ था। ये मूलतः गढ़ाकोला, जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। इनकी औपचारिक शिक्षा नवीं तक महिषादल में ही हुई। इन्होने स्वंय अध्ययन कर संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी का ज्ञान अर्जित किया। रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद की विचारधारा ने इनपर गहरा प्रभाव डाला। सन 1961 में इनकी मृत्यु हुई।
उत्साह, अट नहीं रही है Class 10 Hindi Short Summary – क्षितिज भाग 2
उत्साह
प्रस्तुत कविता एक आह्वाहन गीत है। इसमें कवि बादल से घनघोर गर्जन के साथ बरसने की अपील कर रहे हैं। बादल बच्चों के काले घुंघराले बालों जैसे हैं। कवि बादल से बरसकर सबकी प्यास बुझाने और गरज कर सुखी बनाने का आग्रह कर रहे हैं। कवि बादल में नवजीवन प्रदान करने वाला बारिश तथा सबकुछ तहस-नहस कर देने वाला वज्रपात दोनों देखते हैं इसलिए वे बादल से अनुरोध करते हैं कि वह अपने कठोर वज्रशक्ति को अपने भीतर छुपाकर सब में नई स्फूर्ति और नया जीवन डालने के लिए मूसलाधार बारिश करे।
आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल को देखकर कवि को लगता है की वे बेचैन से हैं तभी उन्हें याद आता है कि समस्त धरती भीषण गर्मी से परेशान है इसलिए आकाश की अनजान दिशा से आकर काले-काले बादल पूरी तपती हुई धरती को शीतलता प्रदान करने के लिए बेचैन हो रहे हैं। कवि आग्रह करते हैं की बादल खूब गरजे और बरसे और सारे धरती को तृप्त करे।
अट नहीं रही
प्रस्तुत कविता में कवि ने फागुन का मानवीकरण चित्र प्रस्तुत किया है। फागुन यानी फ़रवरी-मार्च के महीने में वसंत ऋतू का आगमन होता है। इस ऋतू में पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नए पत्ते आते हैं। रंग-बिरंगे फूलों की बहार छा जाती है और उनकी सुगंध से सारा वातावरण महक उठता है। कवि को ऐसा प्रतीत होता है मानो फागुन के सांस लेने पर सब जगह सुगंध फैल गयी हो। वे चाहकर भी अपनी आँखे इस प्राकृतिक सुंदरता से हटा नही सकते।
इस मौसम में बाग़-बगीचों, वन-उपवनों के सभी पेड़-पौधे नए-नए पत्तों से लद गए हैं, कहीं यहीं लाल रंग के हैं तो कहीं हरे और डालियाँ अनगिनत फूलों से लद गए हैं जिससे कवि को ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति देवी ने अपने गले रंग बिरंगे और सुगन्धित फूलों की माला पहन रखी हो। इस सर्वव्यापी सुंदरता का कवि को कहीं ओऱ-छोर नजर नही आ रहा है इसलिए कवि कहते हैं की फागुन की सुंदरता अट नही रही है।
उत्साह, अट नहीं रही है Class 10 Hindi Detailed Summary – क्षितिज भाग 2
उत्साह कविता का सार
बादल, गरजो!घेर घेर घोर गगन,
धाराधर ओ!ललित ललित, काले घुँघराले,बाल कल्पना।
के-से पाले,विद्युत छवि उर में, कवि,
नवजीवन वालेवज्र छिपा नूतन कविताफिर भर दो-बादल गरजो!
प्रसंग– यहाँ कवि निराला ने बादल को संबोधित किया है। बादल का आहवान करते हुए कवि ने कहा है की –उत्साह का भावार्थ (सार)– उत्साह कविता में कवि कहता है की हे बादल! तुम गरजना करते हुए आओ। तुम उमड़-घुमड़ कर ऊँची आवाज करते हुए संपूर्ण आकाश को घेरते हुए छा जाओ। अरे बादल! तुम सुन्दर, सुन्दर और घुमावदार काले रंग वाले हो और तुम बच्चों की विचित्र कल्पनाओं की पतवारों तथा पालों के समान लगते हो। हे नवजीवन प्रदान करने वाले बादल रूपी कवि! तुम्हारे हृदय में बिजली की कांति और वज्र के समान कठोर गर्जना छिपी हुई है। तुम अपनी बिजली की चमक और भीषण गर्जना से जनमानस में एक नई चेतना का संचार कर दो। कवि बादल के गर्जने का आह्वान करता है।
विकल विकल, उन्मन थे उन्मन विश्व के निदाघ के सकल जन,आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!तप्त धरा,
जल से फिर शीतल कर दो- बादल, गरजो!
प्रसंग– यहाँ कवि ने बादल को नयी कल्पना और नये अंकुर के लिए विनाश, विप्लव और क्रांति चेतना को संभव करने वाला बताया है। निराला जी का कहना है कि-
उत्साह का भावार्थ(सार)– उत्साह कविता में कवि कहता है की संसार के सभी लोग गर्मी के कारण व्याकुल और अनमने हो रहे थे। संसार के संपूर्ण मानव-समुदाय में बदलाव के परिणामस्वरूप व्याकुलता और अनमनी परिस्थितियों का वातावरण बना हुआ था। साहित्य के द्वारा ही समाज में चेतना का भाव आने का भरोसा बना है। हे कभी न समाप्त होने बादल! तुम्हारा अनजान दिशा से आगमन हुआ है। यह धरती गर्मी से तप रही है. तुम जल बरसाकर इसे शीतल कर दो. साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को इस प्रकार प्रेरित करें कि संसार में विचारों के मतभेदों से होने वाली क्रांतियों का वातावरण शांत हो जाए। हे बादल! तुम घोर गर्जन करते हुए आकाश मण्डल में छा जाओ।
अट नहीं रही है का सार
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तनसट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुमपर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तोहट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डालकहीं हरी,
कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर मेंमंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्रीपट नहीं रही है।
प्रसंग– अट नहीं रही है कविता में कवि ने फागुन की मादकता को प्रकट करते हुए फागुन की सर्वव्यापक सुंदरता का सजीव चित्रण किया है।
अट नहीं रही है का भावार्थ (सार)– अट नहीं रही है कविता में कवि कहता है कि फागुन के महीने की कांति कहीं भी समा नहीं रही है। फागुन में प्राकृतिक उपमानों का सौंदर्य इतना अनुपम और मनोहारी हो गया है कि वह पूरी तरह से शरीर के अन्दर नहीं समा पा रहा है। सर्वत्र सुंदर एवं हृदयग्राही नज़ारे बिखरे हुए हैं, वे सभी एक साथ मन में नहीं बसाए जा सकते हैं।
अट नहीं रही है कविता में कवि निराला फागुन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे फागुन! जहाँ कहीं भी साँसे ली जाती है वहीं से सुगंध आती है। फागुन ने ही सुगंध से परिपूर्ण आकाश में उड़ने के लिए सभी को पंख लगा दिए हैं। फागुन के महीने में सभी प्राणियों पर मस्ती का वातावरण छा जाता है और प्रसन्नता के कारण स्वयं को हल्का अनुभव करते हैं। चारों तरफ इतना अधिक सौंदर्य फैल गया है यदि मैं उससे अपनी आँखों को हटाना चाहता हूँ तो भी इतना विवश हूँ कि चाहते हुए भी मैं अपनी आँखें नहीं हटा पा रहा हूँ।
अट नहीं रही है कविता में कवि कहता है कि फागुन के महीने में चारों तरफ हरियाली छाई हुई है। पेड़ों की डालियाँ हरे और किसलयी लाल रंग की पत्तियों से आच्छादित हैं। कहीं पेड़-पौधों की छाती पर मंद-सुगंध से महकते फूलों की मालाएँ सुशोभित हो रही है। पेड़-पौधे खिले हुए सुगंधित फूलों से लद जाते हैं। प्रकृति का एक-एक अंग सौंदर्य से परिपूर्ण है और वह सुंदरता इतनी अधिक है कि उन जगहों पर समा नहीं रही है।
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NCERT Solution – उत्साह, अट नहीं रही है
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