लेखक परिचय
बचेंद्री पाल
इनका जन्म सन 24 मई, 1954 को उत्तरांचल के चमोली जिले के बमपा गाँव में हुआ। पिता पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते थे। अत: बचेंद्री को आठवीं से आगे की पढ़ाई का खर्च सिलाई-कढ़ाई करके जुटाना पड़ा। विषम परिस्थितियों के बावज़ूद बचेंद्री ने संस्कृत में एम.ए. और फिर बी. एड. की शिक्षा हासिल की। बचेंद्री को पहाद़्ओं पर चढ़ने शौक़ बचपन से था। पढ़ाई पूरी करके वह एवरेस्ट अभियान – दल में शामिल हो गईं। कई महीनों के अभ्यास के बाद आखिर वह दिन आ ही गया , जब उन्होंने एवरेस्ट विजय के लिए प्रयाण किया।
Everest Meri Shikhar Yatra Summary | एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा पाठ का सारांश : Short Summary
प्रस्तुत लेख में बचेंद्री पाल ने अपने अभियान का रोमांचकारी वर्णन किया है कि 7 मार्च को एवरेस्ट अभियान दल दिल्ली से काठमांडू के लिए चला। नमचे बाज़ार से लेखिका ने एवरेस्ट को निहारा। लेखिका ने एवरेस्ट पर एक बड़ा भारी बर्फ़ का फूल देखा। यह तेज़ हवा के कारण बनता है। 26 मार्च को अभियान दल पैरिच पहुँचा तो पता चला कि खुंभु हिमपात पर जाने वाले शेरपा कुलियों में से बर्फ़ खिसकने के कारन एक कुली की मॄत्यु हो गई और चार लोग घायल हो गए। बेस कैंप पहुँचकर पता चला कि प्रतिकूल जलवायु के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई है। फिर दल को ज़रुरी प्रशिक्षण दिया गया। 29 अप्रैल को वे 7900 मीटर ऊँचाई पर स्थित बेस कैंप पहुँचे जहाँ तेनजिंग ने लेखिका का हौसला बढ़ाया। 15-16 मई, 1984 को अचानक रात 12:30 बजे कैंप पर ग्लेशियर टूट पड़ा जिससे कैंप तहस-नहस हो गया , हर व्यक्ति चोट-ग्रस्त हुआ। लेखिका बर्फ़ में दब गई थी। उन्हें बर्फ़ से निकाला गया। फिर कुछ दिनों बाद लेखिका साउथकोल कैंप पहुँची। वहाँ उन्होंने पीछे आने वाले साथियों की मदद करके सबको खुश कर दिया। अगले दिन वह प्रात: ही अंगदोरज़ी के साथ शिखर – यात्रा पर निकली। अथक परिश्रम के बाद वे शिखर – कैंप पहुँचे। एक और साथी ल्हाटू के आ जाने से और ऑक्सीजन आपूर्ति बढ़ जाने से चढ़ाई आसान हो गई। 23 मई , 1984 को दोपहर 1:07 बजे लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। वह एवरेस्त पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थी। चोटी पर दो व्यक्तियों के साथ खड़े होने की ज़गह नहीं थी, उन्होंने बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आप को सुरक्षित किया। लेखिका ने घुटनों के बल बैठकर ‘सागरमाथे’ के ताज को चूमा। फिर दुर्गा माँ तथा हनुमान चालीसा को कपडे में लपेटकर बर्फ़ में दबा दिया। अंगदोरज़ी ने उन्हें गले से लगकर बधाई दी। कर्नल खुल्लर ने उन्हें बधाई देते हुए कहा – मैं तुम्हरे मात-पिता को बधाई देना चाहूँगा। देश को तुम पर गर्व है। अब तुम जो नीचे आओगी , तो तुम्हें एक नया संसार देखने को मिलेगा।
Everest Meri Shikhar Yatra Summary | एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा पाठ का सारांश : Detailed Summary
लेखिका बचेंद्री पाल एवरेस्ट विजय के जिस अभियान दल में एक सदस्य थीं, लेखिका उस अभियान दल के साथ 7 मार्च, 1984 को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से गयी। एक मजबूत अग्रिम दल हमारे पहुचने से पहले ‘बेस कैम्प’ पहुँच गया जो उस उबड-खाबड़ हिमपात के रास्ते को साफ कर सके,लेखिका एक स्थान का जिक्र किया जिसका नाम नमचे बाज़ार है और वहाँ से एवरेस्ट की प्राकृतिक छटा का बहुत सुंदर निरीक्षण किया जा सकता है। लेखिका ने बहुत भारी बड़ा सा बर्फ का फूल (प्लूम) देखा जो उन्हें आश्चर्य में डाल दिया। लेखिका केअनुसार वह बर्फ़ का फूल 10 कि.मी. तक लंबा हो सकता था।
इस अभियान दल के सदस्य पैरिच नामक स्थान पर 26 मार्च को पहुँचे, जहाँ से आरोहियों और काफ़िलों के दल पर प्राकृतिक आपदा मँडराने लगी। यह संयोग की बात था कि 26 मार्च को अग्रिम दल में शामिल प्रेमचंद पैरिच लौट आए थे। उनसे खबर मिली कि 6000 मी. की ऊँचाई पर कैंप-1 तक जाने का रास्ता पुरी तरह से साफ़ कर दिया गया है। दूसरे-तीसरे दिन पार कर चौथे दिन दल के सदस्य अंगदोरजी, गगन बिस्सा और लोपसांग साउथ कोल पहुंच गए। 29 अप्रैल को 7900 मीटर की ऊँचाई पर उन लोगों ने कैंप-4 लगाया। लेखिका 15-16 मई, 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन ल्होत्से की बर्फीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंग के नाइलोन के बने टेंट के कैंप-3 में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे। साउथ कोल कैंप पहुँचने पर लेखिका ने अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। सारी तैयारिओं के बीच अभियान चल रही थी , पर्वतारोही दल आगे बढ़ता रहा और 23 मई, 1984 दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच गई।
एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी होकर लेखिका ने अद्भुत अनुभव किया। लेखिका ने उन छोटी-छोटी भावों को भी लिपिबद्ध किया, जिन भावों को अभिव्यक्त कर पाना बहुत कठिन है। इस सफलता के बाद लेखिका को बहुत सारी बधाईयाँ मिली। लेखिका ने उस स्थान को फरसे से काटकर चौड़ा किया, जिस पर वह खड़ी हो सके। उन्होंने वहा राष्ट्रध्वज फहराया, और कुछ संक्षिप्त पूजा-अर्चना भी किया । विजय दल का वर्णन किया ,लेखिका ने वर्णनात्मक शैली को एकरूप बनाए रखा कि पाठक को इन घटनाओं का वर्णन आँखों देखा दृश्य जैसा लगने लगा।
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