
कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का सारांश ( Very Short Summary ) class 9 Sanchayan
कल्लू कुम्हार की उनाकोटी में लेखक के. विक्रम सिंह ने अपनी यात्रा का वर्णन करा है। एक बार काम के सिलसिले में लेखक त्रिपुरा गए थे। वहाँ अपने कार्यक्रम के लिए उन्होंने अनेक स्थानों की यात्रा करी। उनाकोटी उन स्थानों में से एक था। लेखक ने इस स्थान का विशेष रूप से वर्णन करा है और बताया है कि वहाँ शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ हैं।
त्रिपुरा में कल्लू नाम का एक कुम्हार रहता था। वह शिव जी के साथ रहना चाहता था। भगवान शिव ने शर्त रखी कि उसे एक रात में शिव जी की एक करोड़ मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू जाने के लिए बहुत उत्सुक्त था इसलिए तुरंत मूर्तियाँ बनाने लगा। परन्तु एक मूर्ति रह गयी और सुबह हो गई। इसलिए वह शिव जी के साथ नहीं जा सका और वहीँ रह गया। उसी के नाम से त्रिपुरा के उस स्थान का नाम उनाकोटी पड़ा। उनाकोटी का अर्थ है एक करोड़ से एक कम।
लेखक को यह स्थान बहुत रमणीय लगा। इस स्थान पर लेखक ने अपने कार्यक्रम की शूटिंग भी करी।
इसके अतिरिक्त लेखक ने त्रिपुरा की संस्कृति, सभ्यता, धर्म, वहाँ का जन जीवन और जनजातियों के बारे में बताया है। त्रिपुरा बहुधार्मिक समाज का उदाहरण है। वहाँ पर लगातार बाहरी लोग आते रहे हैं। त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियाँ हैं। वहाँ विश्व के चारों बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है। अगरतला के बाहरी हिस्से पैचारथल में एक सुंदर बौध मंदिर है। त्रिपुरा के उन्नीस कबीलों में से चकमा और मुघ महायानी बौध हैं। ये कबीले म्यांमार से आये थे। इस मंदिर की मुख्य बुद्ध प्रतिमा 1930 में रंगून से लाई गयी थी।
टीलियामुरा में लेखक का परिचय समाज सेविका मंजू ऋषिदास और लोकगायक हेमंत कुमार जमातिया से हुई।
त्रिपुरा में अगरबत्ती बनाना, बाँस के खिलौने बनाना और गले में पहनने की मालायें बनाना आदि घरेलू उद्योग चलते हैं।
कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ का सारांश ( Detailed Summary ) class 9 Sanchayan
इस पाठ में लेखक ने अपनी त्रिपुरा यात्रा का वर्णन किया है। इन्होनें त्रिपुरा के व्यक्तियों, धर्मों, दर्शनीय स्थलों आदि का वर्णन किया है। यह पाठ हमें छोटे से राज्य त्रिपुरा के बारे में कई जानकरियाँ देता है।
लेखक सूर्योदय के समय उठतें हैं, चाय और अखबार लेकर सुबह का आनंद लेते हैं। एक दिन लेखक की नींद बिजलियाँ चमकने और बादलों के गर्जना की कानफोड़ू आवाज़ से खुली। इस दृश्य ने उन्हें दिसम्बर 1999 की घटना जब वह ‘ऑन द रोड’ शीर्षक की टीवी श्रृंखला बनाने के सिलसिले में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की यात्रा पर गए थे की याद दिला दी। श्रृंखला का मुख्य उद्देश्य त्रिपुरा की राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से यात्रा करने और राज्य के विकास संबंधी गतिविधियों की बारे में जानकारी देना था।
त्रिपुरा राज्य की जनसंख्या 34 प्रतिशत है, जो काफी ऊँची है। यह राज्य बांग्लादेश से तीन तरफ से घिरा है और एक तरफ से भारत के दो राज्य मिजोरम और असम सटे हैं। सोनुपुरा, बेलोनिया, सबरूम , कैलासशहर त्रिपुरा के महत्वपूर्ण शहर हैं, जो बांग्लादेश करीब है। अगरतला भी सीमा चौकी से दो किलोमीटर दूर है। बांग्लादेश, अस्मा, पश्चिम बंगाल के क्षेत्रों से लोगों की भारी आवक ने यहाँ के जनसंख्या को असंतुलित कर दिया है, जो त्रिपुरा में आदिवासी असंतोष की मुख्य वजह है।
पहले तीन दिनों में लेखक ने अगरतला और उसके नजदीक स्थित जगहों की शूटिंग की। उज्जयंत महल अगरतला का मुख्य महल है जिसमें अब वहाँ की राज्य विधानसभा बैठती है। त्रिपुरा में बाहरी लोगों के आने से समस्याएँ पैदा हुईं हैं, लेकिन इस कारण यह राज्य बहुधार्मिक समाज का उदाहरण भी बना है। त्रिपुरा में उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चार बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व मौजूद है।
अगरतल्ला के बाद लेखक टीलियामुरा कस्बा पहुँचे जो एक विशाल गाँव है। यहाँ लेखक की मुलाकात हेमंत कुमार जमातिया से हुई। जिन्हें 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। ये कोकबारोक बोली में गाते हैं जो त्रिपुरा की कबीलाई बोलियों में से है। हेमंत ने हथियारबंद संघर्ष का रास्ता छोड़कर चुनाव लड़ा और जिला परिषद के सदस्य बने गए थे। जिला परिषद ने लेखक के शूटिंग यूनिट के लिए एक भोज का आयोजन भी किया जिसमें उन्हें सीधा-सादा खाना परोसा गया। भोज के बाद लेखक ने हेमंत से गीत सुनाने के अनुरोध किया और उन्होंने लेखक को धरती पर बहती शक्तिशाली नदियों, ताज़गी भरी हवाओं और शांति का एक गीत गाया। बॉलीवुड के सबसे मौलिक संगीतकारों में एक एस. डी. बर्मन त्रिपुरा से ही थे।
टीलियामुरा शहर के वार्ड नं. 3 में लेखक की मुलाकात एक और गायक मंजू ऋषिदास से हुई। ऋषिदास मोचियों के एक समुदाय का नाम है जो जूते बनाने के अलावा तबला और ढोल जैसे वाद्यों का निमाण भी करते हैं। ऋषिदास रेडियो कलाकार होने के अतिरिक्त नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व भी करती थीं। उन्होंने लेखक को दो गीत सुनाए जिनका लेखक ने शूटिंग किया।
टीलियामुरा के बाद त्रिपुरा का हिंसाग्रस्त इलाका शुरू होता है। लेखक वहाँ से सी.आर.पी.एफ. की हथियारबन्द गाड़ी में मनु कस्बे ओर चल पड़े। मनु कस्बा मनु नदी के किनारे स्थित है। शाम के समय वे लोग मनु कस्बा पहुँचे। वे लोग उत्तरी त्रिपुरा जिले में पहुँच चुके थे। वहाँ लोकप्रिय घरेलू गतिविधियों में से एक है अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींके तैयार करना। अगरबत्तियाँ बनाने के लिए इन्हें कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है।
उत्तरी त्रिपुरा जिले का मुख्यालय कैलासशहर है जो बांग्लादेश की सीमा से करीब है। यहाँ के जिलाधिकारी से लेखक ने टी.पी.एस (टरु पोटेटो सीड्स) के बारे में जाना जो मात्र 100 ग्राम में ही एक हेक्टेयर की बुआई कर देती है।
लेखक को बाद में उनकोटि के बारे में पता चला जो देश के सबसे बड़े तीर्थों में से एक है। उनाकोटी का अर्थ होता है एक करोड़ से कम। दंतकथा के अनुसार उनकोटि में शिव की एक करोड़ में से एक मूर्ति कम है। विद्वानों के अनुसार यह जगह दस वर्ग से किलोमीटर इलाके से ज्यादा में फैली हुयी है। पहाड़ों को अंदर से काटकर मूर्तियों का निर्माण किया गया है। एक विशाल चट्टान पर गंगा अवतरण की कथा को चित्रित किया गया है।
इन आधार-मूर्तियों का निर्माता कौन है यह नहीं पता है। आदिवासियों के अनुसार इन मूर्तियों का निर्माता कल्लू कुम्हार था। कल्लू पार्वती का बड़ा भक्त था और शिव-पार्वती के साथ कैलाश जाना चाहता था। पार्वती के जोर देने पर शिव कल्लू को ले जाने के लिए तैयार हो गए परन्तु उन्होंने शर्त रखी कि एक रात में कल्लू कुम्हार को शिव की एक कोटि मूर्तियाँ बनानी होंगी। कल्लू रात भर काम करता रहा परन्तु सुबह में उसकी मूर्तियों की संख्या एक करोड़ में से एक कम निकलीं। इसी बात का बहाना बनाते हुए शिव ने कल्लू कुम्हार से अपना पीछा छुड़ा लिया और कैलाश चले गए।
इस जगह की शूटिंग करते हुए लेखक को चार बजे गए। उनाकोटी में अँधेरा छा गया और बादल गरज-गरज कर बरसने लगे। आज का गर्जन ने लेखक को तीन साल पहले वाले उनाकोटी के गर्जन का याद दिला दिया।
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